गुरु और चेला Summary Class 5 Hindi

गुरु और चेला कविता का सारांश

एक थे गुरु और एक था उनका चेला। एक दिन बिना पैसे के वे घूमने निकल पड़े। चलते-चलते वे एक नगर में पहुँच गए। वहाँ उन्हें एक ग्वालिन मिली। उसने उन्हें बताया कि यह अंधेर नगरी है और इसका राजा बिल्कुल मूर्ख (अनबूझ) है। इस नगरी में सभी चीजों का दाम एक टका है। गुरुजी ने सोचा ऐसी नगरी में रहना ठीक नहीं है। अतः उन्होंने अपने चेले से वहाँ से चलने को कहा। चेले ने बात नहीं मानी। गुरुजी चले गए परन्तु चेला उसी नगरी में रह गया।

एक दिन चेला बाजार में गया। वहाँ उसने देखा कि सभी चीजें टके सेर मिल रही हैं। चाहे वह खीरा हो या रबड़ी मलाई। चेले को सब कुछ अजीब लग रहा था।

उस साल बरसात में खूब बारिश हुई। नतीजा यह हुआ कि राज्य की एक दीवार गिर गई। राजा ने संतरी को फौरन बुलाया और उससे दीवार गिरने का कारण पूछा। संतरी ने कारीगर को दोषी ठहराया। फिर कारीगर को बुलाया गया। उसने भिश्ती को दोषी ठहराया क्योंकि उसने गारा गीला कर दिया। भिश्ती ने मशकवाले पर दोष मढ़ा जिसने ज्यादा पानी की मशक बना दी थी। मशकवाले ने मंत्री को दोषी बताया क्योंकि उसी ने बड़े जानवर का चमड़ा दिलवाया था। फौरन मंत्री को बुलाया गया। वह अपने बचाव में कुछ न कह सका। अतः जल्लाद उसे फाँसी पर चढ़ाने चला। मगरे मंत्री इतना दुबला था कि उसकी गर्दन में फाँसी का फंदा आया ही नहीं। राजा ने आदेश दिया कि कोई मोटी गर्दन वाले को पकड़ लाओ और उसे फाँसी पर चढ़ा दो।

संतरी मोटी गर्दन वाले की खोज में निकल पड़े। अचानक उन्हें चेला दिख गया। उसकी गर्दन मोटी थी। उन्होंने चेले को पकड़कर राजा के सामने प्रस्तुत किया। राजा ने उसे फाँसी पर चढ़ा देने का आदेश दे दिया। बेचारा चेला कठिन परिस्थिति में फँस गया। मगर वह चालाक था। उसने कहा कि फाँसी पर चढ़ाने से पहले मुझे मेरे गुरुजी का दर्शन कराओ।

गुरुजी को बुलाया गया। उन्होंने चेले के कान में कुछ मंत्र गुनगुनाया। फिर गुरु-चेला आपस में झगड़ने लगे। गुरु कहता था मैं फाँसी पर चढ़ेगा और चेला कहता था कि मैं। राजा कुछ देर तक उनका झगड़ा देखता रहा। फिर उसने उन दोनों को अपने पास बुलाया और झगड़ा का कारण पूछा तो गुरु ने कहा कि यह बहुत ही शुभ मुहूर्त है। इस मुहूर्त में जो फाँसी पर चढ़ेगा वह रोजा नहीं बल्कि चक्रवर्ती बनेगा। पूरे संसार का छत्र उसके सिर चढ़ेगा। मूर्ख राजा बोल पड़ा-यदि ऐसी बात है तो मैं फाँसी पर चढ़ेगा। राजा को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। इधर प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई। आखिरकार उन्हें ऐसे मूर्ख राजा से मुक्ति मिल गई।

काव्यांशों की व्याख्या

1. गुरु एक थे और था एक चेला,
चले घूमने पास में था न धेला
चले चलते-चलते मिली एक नगरी,
चमाचम थी सड़कें चमाचम थी डगरी।
मिली एक ग्वालिन धरे शीश गगरी,
गुरु ने कहा तेज़ ग्वालिन न भग री।
बता कौन नगरी, बता कौन राजा,
कि जिसके सुयश का यहाँ बजता बाजा।
शब्दार्थ : चेला-शिष्य। धेला-पैसा। डगरी-रास्ता। शीश-सिर, मस्तक । सुयश-प्रसिद्धि।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रिमझिम भाग-5′ में संकलित कविता ‘गुरु और चेला’ से ली गई हैं। इसके रचयिता हैं-सोहनलाल द्विवेदी।
अर्थ-एक गुरु थे और उनका एक चेला था। दोनों के पास एक भी पैसा नहीं था। फिर वे घूमने निकल पड़े। चलते-चलते वे एक नगर में पहुँच गए। नगर की सड़कें चमक रही थीं। उन्हें एक ग्वालिन दिख गई। उसके सिर पर घड़ा था। गुरु ने ग्वालिन को रोककर पूछा कि यह कौन-सी नगरी है और यहाँ का राजा कौन है? यहाँ किसकी प्रसिद्धि का डंका बजता है?

2. कहा बढ़के ग्वालिनने महाराज पंडित,
पधारे भले हो यहाँ आज पंडित।
यह अंधेर नगरी है अनबूझ राजा,
टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।
गुरु ने कहा-जान देना नहीं है,
मुसीबत मुझे मोल लेना नहीं है।
न जाने की अंधेर हो कौन छन में?
यहाँ ठीक रहना समझता न मन में।
शब्दार्थ : पधारे-आये। अनबूझ-मूर्ख। भाजी-सब्जी। मुसीबत-समस्या।
प्रसंग-पूर्ववत् ।
अर्थ-गुरु ने जब ग्वालिन से पूछा कि यह कौन-सी नगरी है और यहाँ का राजा कौन है तो ग्वालिन ने बढ़कर कहा-महाराज पंडित, भले ही आप यहाँ आए हैं लेकिन यह अंधेर नगरी है। इसका राजा निरा मूर्ख है। यहाँ सब कुछ टके सेर मिलता है, चाहे वह भाजी हो या खाजा। सुनकर गुरु का माथा ठनका। उन्होंने सोचा कि यहाँ रहना उचित नहीं क्योंकि किसी भी पल अंधेर अर्थात् कुछ भी अनर्थ हो सकता है। अतः उन्हें ऐसी मुसीबत में पड़कर जान नहीं देनी है। यहाँ से फौरन चल देना चाहिए।

3. गुरु ने कहा किंतु चेला न माना,
गुरु को विवश हो पड़ा लौट जाना।
गुरुजी गए, रह गया किंतु चेला,
यही सोचता हूँगा मोटा अकेला।
चला हाट को देखने आज चेला,
तो देखा वहाँ पर अजब रेल-पेला।
टके सेर हल्दी, टके सेर जीरा,
टके सेर ककड़ी टके सेर खीरा।
शब्दार्थ : विवश-मजबूर। हाट-बाज़ार।
प्रसंग-पूर्ववत्।।
अर्थ-ग्वालिन से यह जानने पर कि यह अंधेर नगरी है और यहाँ का राजा मूर्ख है, गुरु ने तुरंत उस जगह को छोड़ने का निर्णय ले लिया। उसने चेले से चलने को कहा। परन्तु वह माना नहीं। गुरुजी चले गए और चेला रह गया। एक दिन वह उस नगरी का बाज़ार देखने निकला। वह हैरान रह गया यह जानकर कि वहाँ सब कुछ टके सेर बिक रहा था चाहे वह खीरा हो या ककड़ी, हल्दी हो या जीरा।।

4. टके सेर मिलती है रबड़ी मलाई,
बहुत रोज़ उसने मलाई उड़ाई।
सुनो और आगे का फिर हाल ताज़ा।
थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा।।
बरसता था पानी, चमकती थी बिजली,
थी बरसात आई, दमकती थी बिजली।
गरजते थे बादल, झमकती थी बिजली,
थी बरसात गहरी, धमकती थी बिजली।
प्रसंग-पूर्ववत् ।।
अर्थ-उस अंधेर नगरी में सब कुछ टके सेर मिलता था। अतः चेले ने खूब रबड़ी मलाई खाई। कवि कहता है कि अब आप मूर्ख राजा की अंधेर नगरी का आगे का ताजा हाल सुनिए। उस साल वहाँ खूब बरसात हुई। खूब पानी बरसता । था, खूब बिजली चमकती थी और खूब बादल गरजते थे।

5. गिरी राज्य की एक दीवार भारी,
जहाँ राजा पहुँचे तुरत ले सवारी।
झपट संतरी को डपट कर बुलाया,
गिरी क्यों यह दीवार, किसने गिराया?
कहा संतरी ने-महाराज साहब,
न इसमें खता मेरी, ना मेरा करतब!
यह दीवार कमज़ोर पहले बनी थी,
इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी।
शब्दार्थ : खता-गलती।। प्रसंग-पूर्ववत् ।
अर्थ-उस अंधेर नगरी में बरसात के दौरान इतनी भारी बारिश हुई कि राज्य की एक दीवार गिर गई। राजा तुरंत वहाँ पहुँच गया। उसने संतरी को बुलाया और उससे दीवार गिरने का कारण पूछा। संत्री ने झट जवाब दिया कि दीवार उसकी गलती से नहीं गिरी है। दरअसल दीवार कमजोर बनी थी मोटी और घनी नहीं। इसीलिए गिर गई।

6. खता कारीगर की महाराज साहब,
न इसमें खता मेरी, या मेरा करतब!
बुलाया गया, कारीगर झट वहाँ पर,
बिठाया गया, कारीगर झट वहाँ पर।
कहा राजा ने कारीगर को सजा दो,
खेता इसकी है आज इसको कज़ा दो।
कहा कारीगर ने, ज़रा की न देरी,
महाराज! इसमें खता कुछ न मेरी।
प्रसंग-पूर्ववत्।।
अर्थ-जब राजा ने संतरी से दीवार गिरने का कारण पूछा तो उसने कहा कि दीवार कमजोर बनी थी। इसीलिए गिर गई। इसमें गलती उसकी नहीं बल्कि कारीगर की है। कारीगर को फौरन बुलाया गया। राजा ने आदेश दे दिया कि कारीगर को सजा दो। इसकी गलती से दीवार गिरी है अतः इसे मौत दो। कारीगर बिना एक झण विलंब किए बोल पड़ा, महाराज! इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।

7. यह भिश्ती की गलती यह उसकी शरारत,
किया गारा गीला उसी की यह गफलत।
कहा राजा ने जल्द भिश्ती बुलाओ।
पकड़ कर उसे जल्द फाँसी चढ़ाओ।
चला आया भिश्ती, हुई कुछ न देरी,
कहा उसने-इसमें खता कुछ न मेरी।
यह गलती है जिसने मैशक को बनाया,
कि ज़्यादा ही उसमें था पानी समाया।
शब्दार्थ : भिश्ती-पानी भरने वाला। शरारत-गलती। गफलत-भूल।। प्रसंग-पूर्ववत्।।
अर्थ-जब राजा ने संतरी के माध्यम से जाना कि कारीगर की गलती से दीवार गिरी है तो उसने उसे फाँसी पर चढ़ाने का आदेश दे दिया। कारीगर ने तुरंत अपना बचाव किया। उसने भिश्ती को दोषी करार दिया। उसने राजा से कहा-उसकी गलती से दीवार गिरी है क्योंकि उसी ने गारा गीला कर दिया। राजा के आदेश पर भिश्ती को बुलाया गया। भिश्ती को देखते ही राजा ने उसे फाँसी पर चढ़ाने का हुक्म दे दिया। भिश्ती ने कहा-इसमें मेरी गलती नहीं है बल्कि मशक बनाने वाले की गलती है। उसी ने इतनी बड़ी मशक बना दी कि उसमें पानी ज्यादा समा गया जिसके कारण दीवार कमजोर हो गई और गिर गई।

8. मशक वाला आया, हुई कुछ न देरी,
कहा उसने इसमें खता कुछ न मेरी।
यह मंत्री की गलती, है मंत्री की गफ़लत,
उन्हीं की शरारत, उन्हीं की है हिकमत।
चुराया न चमड़ा मशक को बनाया।
बड़ी है मशक खूब भरता है पानी,
ये गलती न मेरी, यह गलती बिरानी।
प्रसंग-पूर्ववत्
अर्थ-भिश्ती बरी हो गया और उसके कहने पर मशकवाले को बुलाया गया। उसने भी चतुराई से अपना बचाव किया। कहा-दीवार गिरने में मेरी नहीं बल्कि मंत्री की गलती है। यह उन्हीं की भूल और उन्हीं की लापरवाही है। उन्होंने ही मुझे बड़े जानवर का चमड़ा दिलवा दिया। मैंने चमड़ा चुराया नहीं और एक बड़ी मशक बना दिया। इस मशक में पानी ज्यादा भरता है। इस प्रकार यह गलती मेरी नहीं बल्कि किसी और की है।

9. है मंत्री की गलती तो मंत्री को लाओ,
हुआ हुक्म मंत्री को फाँसी चढ़ाओ।
चले मंत्री को लेके जल्लाद फौरन,
चढ़ाने को फाँसी उसी दम उसी क्षण।
मगर मंत्री था इतना दुबला दिखाता,
न गर्दन में फॉसी का फंदा था आता।
कहा राजा ने जिसकी मोटी हो गर्दन,
पकड़ कर उसे फाँसी दो तुम इसी क्षण।
शब्दार्थ : हुक्म-आदेश। जल्लाद-फाँसी पर चढ़ाने वाला आदमी।
प्रसंग-पूर्ववत्।
अर्थ-जब राजा को बताया गया कि दीवार मंत्री की वजह से गिरी है तो उसने मंत्री को हाजिर होने का आदेश दिया। मंत्री आया तो राजा ने उसे फाँसी पर चढ़ा देने को कहा। सुनकर फौरन जल्लाद आ गया और मंत्री को उसी क्षण लेकर चला फाँसी पर चढ़ाने के लिए। किन्तु मंत्री काफी दुबला था। उसकी गर्दन इतनी पतली थी कि फाँसी के फंदे में नहीं आ पाती थी। अतः राजा ने उसकी जगह किसी मोटी गर्दन वाले को पकड़कर लाने को कहा ताकि उसे अच्छी तरह फाँसी पर चढ़ाया जा सके।

10. चले संतरी ढूँढ़ने मोटी गर्दन,
मिला चेला खाता था हलुआ दनादन।
कहा संतरी ने चलें आप फ़ौरन,
महाराज ने भेजा न्यौता इसी क्षण।
बहुत मन में खुश हो चला आज चेला,
कहा आज न्यौता छकुँगा अकेला !!
मगर आके पहुँचा तो देखा झमेला,
वहाँ तो जुड़ा था अजब एक मेला।।
शब्दार्थ : दनादन-जल्दी-जल्दी फौरन-तुरंत।।
‘प्रसंग-पूर्ववत्
अर्थ-अब संतरी मोटी गर्दन वाले व्यक्ति की खोज में निकल पड़े। बहुत जल्दी उन्हें चेला हलुआ खाते हुए मिल गया। उन्होंने चेले से कहा-महाराज ने आपको न्यौता दिया है। अतः फौरन आप चुले चलिए। चेला मन ही मन खुश हुआ। यह सोचकर कि राजा के दरबार में खूब छककर खायेगा। लेकिन आकर देखा तो वहाँ एक नया झमेला खड़ा था। चारों तरफ लोगों की भीड़ उमड़ी थी।

11. यह मोटी है गर्दन, इसे तुम बढ़ाओ,
कहा राजा ने इसको फाँसी चढ़ाओ!
कहा चेले ने-कुछ खता तो बताओ,
कहा राजा ने-‘चुप’ न बकबक मचाओ।
मगर था न बुद्ध-था चालाक चेला,
मचाया बड़ा ही वहीं पर झमेला!!
कहा पहले गुरु जी के दर्शन कराओ,
मुझे बाद में चाहे फाँसी चढ़ाओ।
प्रसंग-पूर्ववत्।।
अर्थ-मोटी गर्दन वाले चेला को देखकर राजा ने तुरंत उसे फाँसी पर चढ़ाने का आदेश दे दिया। चेले ने राजा से पूछा कि आखिर मेरी गलती क्या है? कम-से-कम मेरी गलती तो बतायें। राजा ने फौरन यह कहकर उसे चुप करा दिया कि ज्यादा बकबक मत करो। लेकिन चेला बुद्ध नहीं था, चालाक था। उसने वहीं पर एक बड़ा झमेला खड़ा कर दिया। कहा मुझे फाँसी पर चढ़ाने से पहले मेरे गुरु के दर्शन कराओ।

12. गुरुजी बुलाए गए झट वहाँ पर,
कि रोता था चेला खड़ा था जहाँ पर।
गुरु जी ने चेले को आकर बुलाया,
तुरत कान में मंत्र कुछ गुनगुनाया।
झगड़ने लगे फिर गुरु और चेला,
मचा उनमें धक्का बड़ा रेल-पेला।
गुरु ने कहा-फाँसी पर मैं चढ़ेगा,
कहा चेले ने—फाँसी पर मैं मरूंगा।
प्रसंग-पूर्ववत् ।।
अर्थ-चेले के कहने पर उसके गुरुजी को बुलाया गया। उन्होंने चेले को रोते हुए पाया। उन्होंने उसे अपने पास, बुलाया और कान में कुछ मंत्र गुनगुनाया। फिर दोनों की आपस में भिडंत हो गई। दोनों जमकर लड़ने लगे। गुरु कहता था-मैं फाँसी पर चढ़ेगा। दोनों में से कोई अपनी जिद छोड़ने को तैयार न था।

13. हटाए न हटते अड़े ऐसे दोनों,
छुटाए न छुटते लड़े ऐसे दोनों।
बढ़े राजा फ़ौरन कहा बात क्या है?
गुरु ने बताया करामात क्या है।
चढ़ेगा जो फाँसी महूरत है ऐसी,
न ऐसी महूरत बनी बढ़िया जैसी।
वह राजा नहीं, चक्रवर्ती बनेगा,
यह संसार का छत्र उस पर तनेगा।
प्रसंग-पूर्ववत् ।
अर्थ-फाँसी पर चढ़ने के लिए गुरु और चेले में भिडंत हो गई। दोनों ऐसे लड़ने लगे कि हटाने से भी नहीं हटते थे। राजा ने बढ़कर पूछा कि आखिर बात क्या है? इस पर गुरु ने बताया कि यह फाँसी पर चढ़ने का शुभ मुहूर्त है। इस ।। मुहूर्त में जो फाँसी पर चढ़ेगा वह राजा नहीं चक्रवर्ती बनेगा। उसके सिर पर पूरे संसार का ताज होगा।

14. कहा राजा ने बात सच गर यही
गुरु का कथन, झूठ होता नहीं है।
कहा राजा ने फाँसी पर मैं चढ़ेगा
इसी दम फाँसी पर मैं ही टॅगूंगा।
चढ़ा फाँसी राजा बजा खूब बाजा
प्रजा खुश हुई जब मरा मूर्ख राजा
बजा खूब घर-घर बधाई का बाजा
थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा।।
प्रसंग-पूर्ववत्।
अर्थ-जब राजा को गुरु जी से पता चला कि इस शुभ मुहूर्त में फाँसी पर चढ़ने वाला चक्रवर्ती राजा बनेगा तो उसने कहा-अगर यह बात सच है तो मैं स्वयं इसी क्षण फाँसी पर चढ़ेगा। इस प्रकार राजा फाँसी पर चढ़ गया। प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई। मूर्ख राजा के मरते ही घर-घर में बधाई का बाजा बजने लगा।

Class 5 Hindi Notes