Refer to the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers Chapter 4 अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 4 अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

Class 12 Hindi Chapter 4 Question Answer Antral अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में

प्रश्न 1.
मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है तब मालबा के जनजीवन पर इसका क्या असर पड़ता है?
उत्तर :
मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लग जाती है वो वहाँ के सभी नदी-नाले, ताल-तलैया पानी से भरकर बहते हैं । कई जगह बाढ़ की स्थिति बन जाती है। लगातार पानी बरसने से खड़ी फसल पानी में डूब जाती है। गाँव और शहरों में नदियों का पानी घुस जाता है। इससे लोगों की दिनचर्या प्रभावित होती है। जान और माल का भी नुकसान होता है। कई बार अधिक फसल खराब होने के कारण अन्न की कमी हो जाती है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि अगर सोयाबीन की फसल खराब हो गई है, तो गेहूँ और चने की फसल बढ़िया होगी-ऐसा भी लोगों का अनुमान है। लगातार झड़ी लगने से तालाब पानी से लबालब भर जाते हैं; फलस्वरूप गर्मी के दिनों में सूखे की स्थिति पैदा नहीं होती। इस प्रकार मालवा में बरसात की झड़ी से जनजीवन में आशा और निराशा का वातावरण बन जाता है।

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प्रश्न 2.
अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था ? उसके क्या कारण हैं ?
उत्तर :
हमारी जीवन-शैली तथा रहन-सहन के तौर-तरीकों ने ऋहु-चक्र को प्रभावित किया है। फसलें उगाने और काटने के समय में निरंतर परिवर्तन हो रहा है। फलस्वरूप मौसम में भी परिवर्तन होना लाजमी है। वायुमंडल में लगातार बढ़ता तापमान बेमौसम बरसात को निमंत्रण देता है। जब गैर-बरसाती महीनों में अत्यधिक बरसात हो जाती है, तो मानसून अव्यवस्थित हो जाता है। इसके फलस्वरूप बरसात के महीनों में कम बारिश होती है। मालवा क्षेत्र की भी यही कहानी है, इसलिए गत वर्षों की अपेक्षा अब मालवा क्षेत्र में कम पानी बरसता है।

प्रश्न 3.
हमारे आज के इंजीनियर ऐसा क्यों समझते हैं कि वे पानी का प्रबंध जानते हैं और पहले ज़माने के लोग कुछ नही जानते थे?
उत्तर :
प्राकृतिक रूप से बहती नदियों के बहाव को बड़े-बड़े बाँध बनाकर अग्राकृतिक रूप से रोका गया है। फलस्वरूप उन बाँधों के आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को स्थानांतरित कर दिया जाता है । वे अपने पैतृक घरों को छोड़कर नए स्थानों की ओर चले आाते हैं। इन नए स्थानों पर पहले जैसी सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। हमारे आज के इंजीनियर ऐसा समझाते हैं कि उन्होंने बड़े-बड़े बाँध बनाकर पानी का सुव्यवस्थित ङंग से प्रयोग किया है।

पहाड़ों से निंतर पानी बहकर झीलों में इकट्ठा हो जाता है और पहाड़ की चोटियाँ पानी के बिना सूखी रह जाती हैं। सतपुड़ा और विंघ्याचल जैसे छोटे पहाड़ों पर पानी न रुकने के कारण वहाँ वनस्पतियाँ और पेड़-पौधे सूख जाते हैं। पहाड़ों की हरियाली कहीं खो-सी जाती है। वस्तुतः आज के इंजीनियर पर्यावरण की रक्षा करने की बजाय उससे खिलवाड़ करते हैं। वे पढ़े-लिखे और बुद्धिमान माने जाते हैं, इसलिए वे पहले ज्माने के लोगों को कुछ न जानने वाले कहते हैं।

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प्रश्न 4.
मालवा में विक्रमादित्य, भोज और मुंज रिनेसां के बहुत पहले हो गए। पानी के रख-रखाव के लिए उन्होंने क्या प्रबंध किए?
उत्तर :
मालवा प्रदेश में विक्रमादित्य, राजा भोज व राजा मुंज जैसे प्रतापी और प्रकृति के प्रति सही दृष्टिकोण रखने वाले राजा हुए हैं। पश्चिमी जागृति से पहले ही उन राजाओं ने अपने समय में जलयोजना के कार्यक्रम सुचारु रूप से चलाए थे। वे जानते थे कि अगर इस क्षेत्र में हरियाली रखनी है, तो पठार पर पानी को रोककर रखना होगा। इसलिए इन सभी राजाओं ने तालाब और बड़ी-बड़ी बावड़ियों का निर्माण करवाया। बरसात का पानी पठार के ऊपर तालाब और बावड़ियों में रोका गया। पठार पर लगातार पानी रुका रहने से धरती के गर्भ का पानी जीवंत रहा। फलस्वरूप पानी का रखरखाव ठीक प्रकार से हो सका। इस प्रकार पश्चिमी जागृति से पूर्व ही मालवा प्रदेश के राजाओं ने पानी का रखरखाव वैज्ञानिक पद्धति से किया था।

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प्रश्न 5.
‘हमारी आज की सभ्यता इन नदियों को अपने गंदे पानी के नाले बना रही है’ 一क्यों और कैसे ?
उत्तर :
आधुनिक सभ्यता औद्योगिकीकरण की सभ्यता है, जिसमें प्रतिदिन उद्योग-धंधों में बढ़ोतरी हो रही है। नदियों के किनारे कस्बों और नगरों में लगातार जिसमें वृद्धि हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ गंदे पानी में भी बढ़ोतरी हो रही है। यह गंदा पानी नालों के माध्यम से नदियों में छोड़ा जाता है। इसके साथ ही बड़े उद्योगों और फ़क्टरियों का रसायन-मिश्रित गंदा पानी भी नदियों में निरंतर प्रवेश करता है। प्लास्टिक के सामान और पोलीथीन जैसे पदार्थ नदियों के प्राकृतिक बहाव को बाधित करते हैं।

रुका हुआ पानी सड़ जाता है। पुराने समय की नदियों का निर्मल और स्वच्छ पानी अब मैला और गंदला हो रहा है। छोटी नदियों की बात ही क्या गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी बड़ी नदियों में भी अब काला पानी बहता है। बड़ी-बड़ी नदियों, जिनमें कभी निर्मल और स्वच्छ जल की धारा बहा करती थी; अब बड़े शहरों और महानगरों के गंदे पानी को ढोती हैं। नदियों के प्राकृतिक बहाव को बड़े-बड़े बाँध बनाकर रोक दिया गया है। अब इन नदियों में स्वच्छ और निर्मल पानी न होकर गंदा पानी बहता है। इस प्रकार हमारी सभ्यता इन नदियों को गंदे पानी के नाले बना रही है।

प्रश्न 6.
लेखक को क्यों लगता है कि ‘हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ की अपसभ्यता है’। आप क्या मानते हैं ?
उत्तर :
आधुनिक युग में निरंतर बढ़ रहे औद्योगिकीकरण के कारण प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन आए हैं; ॠतु-चक्र लगातार परिवर्तित हो रहा है। बरसात के दिनों में बरसात नहीं होती और ग्रीप्म ऋतु की अवधि लंबी हो गई है। कई बार सर्दी में अधिक सर्दी नहीं पड़ती और कई बार मार्च के महीने में पर्वतों पर बर्फ़ पड़ जाती है। यह सब वातावरण की अव्यवस्था का परिणाम है। हमारे रहन-सहन और जीवन-शैली ने वायुमंडल को प्रभावित किया है। फसलों को बोने और काटने के समय परिवर्तित हो गए हैं। फलस्वरूप जलवायु के क्रम में परिवर्तन हो गया है। समुद्रों का पानी लगातार गर्म हो रहा हैं; ध्रुवों पर बरफ पिघल रही है। सदानीरा नदियों का जल सूख गया है।

गंदे पानी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। लद्दाख में बर्फ़ गिरने की बजाय वर्षा हो रही है। राजस्थान में अब सूखा पड़ने के स्थान पर बाढ़ आ रही है। कारखानों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें वायुमंडल और पर्यावरण को बिगाड़ रही हैं। ये गैसें यूरोपीय महाद्वीप और अमेरिका के औद्योगिकीकरण के कारण अधिक फैली हैं। जिस औद्योगिकीकरण के कारण यूरोपीय देश और अमेरिका अपनी उन्नति की कहानी गढ़ते हैं, वही औद्योगिकीकरण दुनिया के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इसलिए लेखक को विकास की औद्योगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता लगती है।

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प्रश्न 7.
धरती का वात्तावरण गर्म क्यों हो रहा है? इसमें यूहोप और अमेरिका की क्या भूमिका है ? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
आधुनिक युग औद्योगिकीकरण का युग है। प्रत्येक देश औद्योगिकीकरण के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता है। प्रत्येक देश को यह लगता है कि उद्योग ही उसके विकास और उन्नति का सबसे बड़ा माध्यम है। वह उद्योगों के माध्यम से अपनी पूँजी-व्यवस्था को सुदृ़ कर सकता है। पूँजी से देश का विकास हो सकता है। परंतु ये देश भूल जाते हैं कि इन उद्योगों से निकलने वाला धुआँ और गंदा व विषैला पानी नदियों के स्वच्छ जल को दूधित कर रहा है। पानी में रहने वाले जीव-जंतुओं का जीवन भी खतरे में पड़ गया है।

फसलों के बोने और काटने के समय में लगातार हो रहे परिवर्तन के कारण वातावरण में गमी बढ़ी है। कारखानों से निकलने वाली कार्बन-डाईऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें वायुमंडल को गरम कर रही हैं। समुद्रों का पानी लगातार गरम हो रहा है। पर्वतों से लगातार बर्फ़ पिघलकर मैदानों की ओर बह रही है। नदियों का निरंतर बहाव बाँध बनाकर रोक दिया गया है। यूरोप और अमेरिका में उद्योग-धंधे अधिक मात्रा में लगाए गए हैं।

वे इन्हीं उद्योग-धंधों के बल पर विकास की सीढ़ी चढ़ना चाहते हैं। वे पर्यावरण को ताक पर रखकर इन उद्योग-धंधों को चला रहे हैं। इसलिए गरम होते वातावरण का एक बड़ा कारण औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप निकलने वाली गरम और विषैली गैसें हैं। इस प्रकार धरती के वातावरण को गरम करने और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने में यूरोपीय देशों और अमेरिका की बड़ी भूमिका है।

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प्रश्न 8.
‘अमेरिका की घोषणा है कि वह अपनी खाऊ-उजाड़ू जीवन-पद्धति पर कोई समझौता नहीं करेगा’। इस घोषणा पर अपनी टिप्पणी दीजिए।
उत्तर :
अमेरिका आज के युग में महाशक्ति बनकर उभरा है। उसकी इस महाशक्ति के पीछे उसका औद्योगिकीकरण है। अमेरिका में उद्योग-धंधे एक बड़े स्तर पर लगाए गए हैं। वह इन उद्योग-धंधों और कारखानों में सामान बनाकर दूसरे देशों को बेचता है। फलस्वरूप उसकी पूँजी-व्यवस्था सुदृढ़ हो रही है। इन उद्योग-धंधों और कारखानों से निकलने वाली गैसों से वायुमंडल और गंदे पानी से नदियों का पानी दुषित हो रहा है, जिसके कारण समुद्र के पानी का तापमान लगातार बढ़ रहा है।

इससे समुद्र और नदियों में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए भी खत्राता पैदा हो गया है। इस प्रकार यह खाक-उजाड़ जीवन-पद्धति सभी प्राणियों के लिए नुकसानदेय है। अमेरिका इस सभ्यता के बल पर ही अपनी ताकत को बढ़ाना चाहता है, इसलिए वह अपने औद्योगिकीकरण पर रोक नहीं लगाना चाहता। वह इस खाऊ-उजाड़ सभ्यता के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता। लेकिन अमेरिका की जिद्द संसार के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
क्या आपको भी पर्यावरण की चिता है अगर है तो किस प्रकार? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
एक समझदार विद्यार्थी और ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते मुझे भी पर्यावरण की चिंता है। मनुष्य की गलतियों के कारण ही आज पर्यावरण बुरी तरह से बिगड़ गया है। नदियों का प्राकृतिक बहाव बाँध बनाकर रोक दिया गया है। उनमें अब स्वच्छ और निर्मल पानी की बजाय गंदा पानी बहता है।

नदियाँ शहरों और महानगरों का गंदा जल बो रही हैं। फसल चक्र को मनुष्य ने पूर्णत: परिवर्तित कर दिया है। प्रदूषण के कारण वायुमंडल में गरमी बढ़ रही है। में सदा अपने घर के कचरे और पोलीथीन को पानी की नालियों में न फेंककर शहर से दूर जाकर जला देता हूँ। पेड़ लगाकर पर्यावरण को बचाने का हम सामूहिक रूप से प्रयास कर सकते हैं। लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सकता है, ताकि पर्यावरण साफ़ और स्वच्छ किया जा सके।

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प्रश्न 2.
विकास की औद्योगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता है, खाऊ-उजाड़ू सभ्यता के संदर्भ में हो रहे पर्यावरण के विनाश पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘छप्पन के काल ने देशभर में हाय-हाय मचाई हो लेकिन मालवा में लोग न प्यासे मरे न भूखे क्योंकि उसके पहले के साल खूब पानी था और बाद के साल में भी अपने नदी, नाले, तालाब सँभाल के रखो तो दुष्टकाल का साल मजे में निकल जाता है। लेकिन हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ की अपसभ्यता है।’ लेखक को क्यों लगता है कि हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ की अपसभ्यता है। आप क्या मानते हैं? कथन के आलोक में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
आधुनिक युग औद्योगिकीकरण का युग है। यह औद्योगिकीकरण सर्वप्रथम यूरोपीय देशों और अमेरिका में फला-फूला। उन्होंने उद्योग-धंधों को अपनी उन्नति और विकास का माध्यम बनाया। अगर यह कहा जाए कि यूरोपीय देशों और अमेरिका की संपूर्ण पूँजीव्यवस्था और विकास इन्हीं उद्योग-धंधों पर टिका है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ये देश किसी भी कीमत पर इन उद्योग-धंधों को बंद करने के लिए राजी नहीं हैं।

फलस्वरूप इन्होंने अपने विकास के लिए संपूर्ण विश्व को एक खतरनाक और जहरीले वातावरण के हवाले कर दिया है। आज पर्यावरण पूर्ण रूप से बिगड़ चुका है। पूरी दुनिया पर्यावरण के बिगड़ने के कारण खतरा महसूस कर रही है। परंतु अमेरिका जैसे देश अपनी इस खाऊ-उजाड़ सभ्यता के कारण कोई समझौता करने को राजी नहीं हैं। लेखक के अनुसार यह सभ्यता नहीं है बल्कि एक अपसभ्यता है, जो पर्यावरण का विनाश कर रही है।

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प्रश्न 3.
पर्यांवरण को विनाश से बचाने के लिए आप क्या कर सकते हैं? उसे कैसे बचाया जा सकता है ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
पर्यावरण का विनाश करने वाला सबसे प्रमुख हाथ मनुष्य का ही है। वह खानें खोदता है; पहाड़ों से पत्थर निकालता है; पेड़ काटता है; जंगली जीवों का शिकार करता है। अपने सुखों की प्राप्ति के लिए मनुष्य प्रकृति से कैसा भी खिलवाड़ करता है। पर्यावरण की रक्षा की जानी चाहिए, ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे। उसे बचाया जाना चाहिए। पहाड़ों पर उगे पेड़-पौधों को नहीं काटा जाना चाहिए।

पेड़-पौधे भूमि कटाव को रोकते है। प्राकृतिक जीवों का शिकार नहीं करना चाहिए। चट्टानों को प्राप्त करने के लिए पहाड़ नहीं काटने चाहिए। पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग-धंधे स्थापित नहीं करने चाहिए। उद्योग-धंधों के कारण वायुमंडल का तापमान बढ़ता है और उससे पहाड़ों पर जमी बर्फ़ शीघ्रता से पिघलने लगती है। पर्यावरण को विनाश से बचाने के लिए सरकार को योजनाएँ बनाकर जनता तक पहुँचानी चाहिए। जनता को इस विषय में जागरूक बनाना अति आवश्यक है।

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प्रश्न 1.
नवरात्र की पहली सुबह को लेखक ने किस प्रकार व्यक्त किया है ?
उत्तर :
लेखक प्रभाष जोशी नवरात्रों की प्रथम सुबह का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि मालवा में घर सजाने की तैयारी हो रही है। गोबर से घर-आँगन लीपे जा रहे हैं। माता जी के द्वार को रंगोली से सजाया जा रहा है। बहू-बेटियाँ नहा-धोकर नए रंगीन कपड़े पहनकर सज-धज गई हैं तथा त्योहार को मनाने की तैयारी कर रही हैं। लेकिन आसमान में काले बादल घिर आए हैं। रास्ते में छोटे-छोटे स्टेशनों पर महिलाओं की भीड़ देखी जा सकती है।

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प्रश्न 2.
प्रभाष जोशी किनसे अच्छी तरह परिचित हैं?
उत्तर :
प्रभाष जोशी मालवा के प्राकृतिक परिवेश, वनस्पतियों, तालाब, नदी-नालों आदि से अच्छी तरह परिचित हैं।

प्रश्न 3.
प्रभाष जोशी जिस रास्ते से गुख्तरे, वह कैसा था?
उत्तर :
प्रभाष जोशी जिस रास्ते से गुज़रे, उसके दोनों तरफ़ बीच-बीच में उजली चटक धूप निकल आती थी। सब और ज्वार, बाजरे और सोयाबीन की फसल लहराती थी। पीले फूलों से युक्त बेलें और दमकते आँगन दिखाई पड़ते थे। बादलों का समूह उनके साथ-साथ चल रहा था।

प्रश्न 4.
लेखक को अजीब समृद्धि का अनुभव क्यों हुआ ?
उत्तर :
लेखक को अजीब समृद्धि का अनुभव इसलिए हुआ, क्योंकि अब मालवा में औसत वर्षा होती है। चारों तरफ हरियाली बिखरी हुई थी। रास्ते से गुजरते हुए कुएँ-बावड़ी, तालाब-तलैया लबालब भरे दिखाई दे रहे थे। फसलें लहरा रही थी।

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प्रश्न 5.
इंदौर पहुँचकर लेखक की क्या देखने की इच्छा हुई ? वह कौन-सा आनंद लेना चाहता था ?
उत्तर :
इंदौर पहुँचकर लेखक ने वहाँ के पहाड़, नदियाँ, ताल-तलैया, जलाशय आदि देखने की इच्छा व्यक्त की। वह पहाड़ पर चढ़ने तथा नदी-नाले पार करने का आनंद् लेना चाहता था।

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
‘अपना मालवा’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘अपना मालवा’ पाठ विख्यात पर्रकार और समालोचक प्रभाष जोशी द्वारा रचित है। इस पाठ में लेखक ने मालवा प्रदेश की सभ्यता और संस्कृति का चित्रण किया है। मालवा प्रदेश की सभ्यता धन-धान्य से पूर्ण सभ्यता है। वहाँ चारों ओर लहलहाती फसलें देखी जा सकती हैं। नदी-नालों और ताल-तलैया का यह प्रदेश जल-व्यवस्था के लिए जाना जाता था। परंतु लेखक को यह चिता हो रही है कि जिन नदियों में कभी स्वच्छ और निर्मल धारा बहा करती थी, वे नदियाँ और नाले आज कस्बों और छोटे-बड़े शहरों का मैला व दूषित पानी ढो रहे हैं।

अब मालवा प्रदेश में वर्षा अधिक नहीं होती, फिर भी बाढ़ का खतरा बना रहता है। फलस्वरूप प्रदेश का वातावरण और पर्यावरण निरंतर बिगड़ रहा है। लेखक ने अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरण के लिए फैले खतरों की ओर भी ध्यान खींचा है। अमेरिका की खाऊ-उजाडू जीवन-शैली ने दुनिया के लिए खतरे पैदा किए हैं।

आज व्यक्ति प्रगति और विकास की अंधी दौड़ में किस प्रकार अपनी जीवन-पद्धति, संस्कृति, सभ्यता और अपनी धरती को उजाड़ने में लगा हुआ है, इसका वर्णन भी लेखक ने विस्तारपूर्वक किया है। वस्तुतः प्रस्तुत पाठ का मूल उद्देश्य मालवा प्रदेश की सभ्यता और संस्कृति के वर्णन के साथ-साथ पर्यावरण के बिंगड़ने के कारण होने वाले खतरों के प्रति सचेत करना भी है।

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प्रश्न 2.
अपनी यात्रा के दौरान लेखक ने नर्मदा के चित्र किस प्रकार खींचे? वर्णन कीजिए।
उत्तर :
अपनी यात्रा के दौरान लेखक ने नर्मदा के दो बार दर्शन किए। ओंकारेश्वर पार करने के बाद उन्होंने नर्मदा नदी पर सीमेंट-कंक्रीट का विशालकाय राक्षसी बाँध देखा। वहाँ नर्मदा पूरे उफ़ान पर थी। वह तिन-तिन, फिन फिन करके बह रही थी। यहाँ नर्मदा कहीं मटमैली, कहीं छिछली अपने तल के पत्थरों को दर्शाती और कहीं-कहीं अथाह गहरी दिखाई देती है। अब यहाँ बड़ी-बड़ी नावें दिखाई नहीं देती हैं।

शायद बाढ़ के खतरे से पानी में न बह जाए, इसलिए उन्हें कहीं बचाकर रख दिया है। नर्मदा के किनारे पर टूटे पत्थर पड़े हुए हैं। ज्योतिलिंग धाम में कफ़ी परिवर्तन आ गया है। यहीँ बाँध के निर्माण में लगी बड़ी-बड़ी मशीनें और ट्रक गुरां रहे हैं। यहाँ नर्मदा में बाढ़ के निशान साफ़ देखे जा सकते हैं। नेमाकर के पास बजवाड़ा में नर्मदा शांत, गंभीर और पूरी भरी हुई है। शाम के समय उसके पानी में अजीब तरह का नशा-सा छा जाता है। चतुर्थी का चाँद उसके ऊपर लटका मालूम होता है।

वहाँ परिवार के सभी सदस्य नर्मदा को प्रणाम करते हैं। परिवार के सभी सदस्य रात के समय नर्मदा के किनारे पर ही सोए थे। सुबह उठकर फिर वे नर्मदा को नमन करके उसके किनारे बैठे। लेखक के साथ वहाँ के स्थानीय निवासी थे, जो नर्मदा को केवल नदी नहीं मानते बल्कि उसे माँ कहकर पुकारते हैं। नर्मदा मैया के किनारे बैठना लेखक को माँ की गोद में बैठने जैसा लगता है।

प्रश्न 3.
‘अपना मालवा’ पाठ की भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
‘अपना मालवा’ विख्यात पत्रकार और समालोचक प्रभाष जोशी का एक यात्रा-वृत्तांत है। इस यात्रा के दौरान लेखक ने मालवा क्षेत्र की सभ्यता और संस्कृति के चित्र खींचे हैं। उन्होंने मालवा प्रदेश के नदी-नालों, ताल-तलैयों, मिट्टी, वनस्पतियों और नदियों के उद्गम स्थलों को चित्रित किया है। मालवा प्रदेश अपनी सुख-संपन्नता और समृद्धि के लिए सुविख्यात है।

लेखक ने ग्रामीण आंचलों का ही अधिक वर्णन किया है, इसलिए तद्भव और आचलिक शब्दों का प्रयोग अधिक किया गया है। देशज शब्दों के प्रयोग से भाषा में ताज़ी भर गई, जो ग्रामीण आंचलों की संस्कृति को अभिव्यक्त करने में सहायक सिद्ध हुई है। लेखक ने आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। शब्द-चयन अद्भुत है। किसी भी शब्द की काँट-छाँट वाक्य की सुंदरता खराब कर सकती है, इसलिए शब्द चयन प्रसंगानुकूल है।

संक्षिप्त एवं सार्थक वाक्य-योजना ने भाषा में प्रवाह और खानगी भर दी है। काव्यमयी भाषा गद्य को भी काव्यात्मकता प्रदान करती है। अलंकारों के प्रयोग ने भाषा को रोचक बना दिया है। वस्तुतः प्रस्तुत पाठ की भाषा सरल, सहज, सुबोध एवं प्रवाहमयी है जो पाठक को विषय के साथ बाँधे रखती है।

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प्रश्न 4.
‘अपना मालवा’ पाठ में लेखक को क्यों लगता है कि आज की औद्योगिक सभ्यता वस्तुत: उजाड़ की अपसभ्यता है। कारणों का विवेचन कीजिए।
अथवा
‘अपना मालवा’ पाठ में लेखक ने कहा है कि हमारे देश की पवित्र नदियाँ नाले में बदल गई हैं। एक जागरूक और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक होने के नाते आप इस समस्या को दूर करने में क्या योगदान दे सकते हैं? लिखिए।
उत्तर :
आधुनिक युग में निरंतर बढ़ रहे औद्योगिकीकरण के कारण प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन आए हैं। ॠतु चक्र लगातार परिवर्तित हो रहा है। बरसात के दिनों में बरसात नहीं होती और गर्मी की ऋतु की अवधि लंबी हो गई है। कई बार सरदी में सरदी नहीं पड़ती और मार्च के महीने में पर्वतों पर बर्फ़ पड़ जाती है। यह सब वातावरण की अव्यवस्था का परिणाम है। हमारे रहन-सहन और जीवन शैली ने वायुमंडल को प्रभावित किया है। फ़सलों को बोने और काटने के समय परिवर्तित हो गए हैं।

फलस्वरूप जलवायु के क्रम में परिवर्तन हो गया है। समुद्रों का पानी लगातार गर्म हो रहा है। ध्रुवों पर लगातार बर्फ़ पिघल रही है। सदानीरा नदियों का जल सूख गया है। गंदे पानी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। लद्दाख में बर्फ़ गिरने की बजाए वर्ष हो रही है। राजस्थान में अब सूखा पड़ने के स्थान पर बाढ़ आ रही है। कारखानों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड जैसे जहरीली गैसें वायुमंडल और पर्यावरण को बिगाड़ रही हैं।

ये गैसें अधिक यूरोपीय महाद्वीप और अमेरिका के औद्योगिकीकरण के कारण फैली हैं। जिस औद्योगिकीकरण के कारण यूरोपीय देश और अमेरिका अपनी उन्नति की कहानी गढ़ते हैं वही औद्योगिकीकरण दुनिया के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। ऋतु चक्र और वायुमंडल में परिवर्तन हो रहा है। इसलिए लेखक को विकास की औद्योगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता लगती है।