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बिस्कोहर की माटी Summary – Class 12 Hindi Antral Chapter 3 Summary

पाठ का सार :

‘बिस्कोहर की माटी’ विख्यात साहित्यकार एवं आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा रचित आत्मकथा ‘नंगातलाई का गाँव’ का अंश है। आत्मकथात्मक शैली में लिखा यह पाठ लेखक की जीवन-शैली, आत्मिक संबंधों और प्राकृतिक परिवेश की विभिन्न स्थितियों को अभिव्यंजित करता है। लेखक ने अपने गाँव के भौगोलिक और वैयक्तिक परिवर्तनों का भी वर्णन किया है।

ग्रामीण जीवन में फूल, फल, सब्तियों, प्राकृतिक आपदाओं की अपनी एक अलग भूमिका होती है। लेखक ने इन्हीं परिस्थितियों का वर्णन बड़ी आत्मीयता के साथ किया है। लेखक अपने गाँक का वर्णन करते हुए कहता है कि वहाँ पूर्व टोले के पोखर (तालाब) में कमल खिलते हैं। हिंदू परिवारों में कमल-पत्रों पर भोज करने की पुरानी परंपरा हैं। वहाँ कमल के पत्तों, तनों और जड़ों का भोजन में प्रयोग किया जाता है।

बहुत-सी ‘ भसीण’ (कमल-ककड़ी) शहरी मंडियों में भेज दी जाती है। वहाँ कोइयाँ (जल-पुष्प) भी पानी के गइड्डों में खिल उठती है। आत्मकथा के नायक बिसनाथ को लगता है कि कोइयाँ सिर्फ़ हमारे गाँव में होती हैं, परंतु जब वह वैष्ठों देवी के दर्शनों के लिए पंजाब से गुज्तर रहा था तो उसे वहाँ रेलवे लाइन के दोनों ओर खिली हुई कोइयाँ नजर आई। शरद चाँदनी में सरोवरों में चाँदनी का प्रतिबिंब और कोइयाँ की पत्तियाँ दोनों का रंग एक जैसा हो जाता है।

इन्हीं दिनों बिसनाथ के गाँव के तालाब में सिंघाड़ा भी बहुत अधिक मात्रा में होता है। शरद् ॠतु में हरसिंगार के फूल भी बहुत खिलते हैं। इसी तरह गाँव में ज्ञात-अज्ञात वनस्पतियँ जल में विविध रूपों में सजीव हो उठती हैं। बिसनाथ के साथ दूसरे बच्चे भी उन्हें छूते हैं; पहचानते हैं और उनके साथ बतियाते हैं। उसी समय सभी चीजें; जैसे-आकाश, गाँव का टोला, चंदा मामा, चंदा मामा में बैठी एक बुढ़िया; अपने नज़दीक प्रतीत होती हैं। लेखक का मानना है कि बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं।

माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है। बच्चा सुतुकता हैं; रोता है; माँ को मारता है; माँ भी कभी-कभी मारती है, लेकिन बच्चा चिपका रहता है; माँ चिपटाए रहती है। बिसनाथ भी बचपन में अपनी माँ के साथ ऐसा ही व्यवहार करता था। चाँदनी रात में जब माँ बचे को दूध पिलाती है, तो वह केवल दूध ही नहीं पी रहा होता बल्कि साथ-साथ चाँदनी भी पी रहा होता है। छोटी उस्र में बच्चे माँ का दूध पीते समय दाँतों से काट लेते हैं। आंचलिक भाषा में इसे ‘दाँत टीसना’ कहते हैं।

बिसनाथ को यह बात देर से समझ में आयी कि बतखें अंडे देने के समय पानी छोड़कर ज्ञमीन पर आ जाती हैं। इसके लिए वे एक सुरक्षित काँटेदार बाड़ा बनाती हैं। वे पंख फैलाकर उन्हें छिपाए रखती हैं। वहीं एक कौवा बतख के अंडे खाने की ताक में बैठा है। बतख बड़ी ही सतर्कता और आत्मीयता के साथ अपने अंडों को सेती है।

बिसनाथ पर उस समय अत्याचार हो गया, जब उसका छोटा भाई जन्मा और उसने माँ का दूध पीना शुरू किया। पहले बिसनाथ माँ का दूध पीया करता था, परंतु अब माँ के दूध पर उसके छोटे भाई का कब्ता हो गया था। अब बिसनाथ गाय का दूध पीता, जो उसे बेस्वाद लगता। अब पड़ोस की कसेरिन दाई ही बिसनाथ का पालन-पोषण करती। वह कसेरिन दाई के साथ लेटकर ही चाँद की चाँदनी का रसपान करता। इमली के छतनार पेड़ के अंतरालों में छनकर चाँदनी के टुकड़े बिखरते हैं और शीशम के पत्तों की फुनगी चाँदनी को कैसे चूमती है-बिसनाथ यह सब चुपचाप देखता रहता।

लेखक कमल, कोइयाँ और हरसिंगार के फूलों की बात करता है; परंतु कुछ नये फूलों की भी खोज करता है, जैसे-तोरी, लौकी, भिंडी, भटकैटेया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कद्दू (काशीफल), शरीफा, आम के बोर, कटहल, अरहर, उड़द, चना, मसूर, मंटर के फूल, सेमल के फूल आदि। वहाँ गाँव के दूर तक फैले खेतों में सरसों के फूलों का सागर लहराता प्रतीत होता है।

लेखक अपने गाँव के ‘सत्यानाशी’ फल की बात करता है; वह फल है-‘ भरभंडा’। इस फल का नाम चाहे कैसा भी हो, परंतु इसकी सुंदरता का कोई जवाब नहीं है। इसके फूलों को आँखें आने पर आँखों पर लगाया जाता हैं; शायद बिसनाथ की माँ भी कुछ ऐसा ही करती थी। घास के अनेक वर्णी फूलों को लेखक ने बचपन में चखा, सूँघा और कानों में खोसा है। वह धान, गेहूँ और जौ के फूलों का भी वर्णन करता है।

बिसनाथ के गाँव के घास-पात से भरे मैदानों, पेड़ों और तालाब के भीटों पर अनेक प्रकार के साँप पाए जाते है। साँप अकसर लोगों को दिखाई देते हैं। डोंडहा और मजगिदवा विषहीन माने जाते हैं। लोग डोंडहा साँप को नहीं मारते। इस साँप को साँपों में वामन जाति का माना जाता है। धामिन साँप भी विषहीन होता है। ‘गोंहुअन’ साँप सबसे खतरनाक माना जाता है, जिसे लेखक के गाँब में ‘फेंटारा’ कहा जाता है।

‘घोर कड़ाइच’ साँप के काट लेने से व्यक्ति हिनहिनाकर मरता है। ‘भटिहा’ साँप दो-मुँहा होते हैं। आम, पीपल और केवड़े की झाड़ी में रहने वाला साँप सबसे खतरनाक माना जाता है। लेखक को यह बात अजीब लगती है कि साँपों से डर तो लगता है, परंतु न जाने क्यों उनके मिलने का इंतज्ञार भी रहता है। इसके साथ लेखक ने बिच्छू ततैया आदि के डंक मारने की बात भी कही है। कुछ फूल ऐसे होते हैं, जिन्हें तोड़कर साँपों, देवी और चुड़ैल आदि के डर से बचाने के लिए सूँघा दिया जाता है।

ग्रीष्म ॠतु का वर्णन करते हुए लेखक कहता है कि मेरे गाँव में गरमी खूब चिलचिलाकर पड़ती है। उसे यह भी याद है कि गरमी के दिनों की दुपहरी में जब घर के सभी लोग सो जाते, तो वह चुपके से घर से निकल जाता था। गरमी के दिनों में अकसर लू लगने की घटनाएँ होती हैं। लू से बचाने के लिए माँ धोती और कमीज्ञ से गाँठ लगाकर प्याज बाँध देती थी। लू से बचाने के लिए बच्चों को कच्चे आम का पन्ना भी दवा के रूप में दिया जाता था।

कच्चे आम को भूनकर गुड़ या चीनी में मिलाकर उसका शरबत पीना, देह लीपना, नहाना, सिर धोना आदि लाभदायक होता है। वहाँ आमों के झौर के झँर लगे होते थे। कच्चे आम की हरी गंध, पकने से पहले ही जामुन खाना या तोड़ना-सभी लेखक की स्मृति में अभी तक कायम है। गर्मी के अन्य फलों में तरकारी और कहहल को भी गिना जा सकता हैं।

वर्षा भी सीधे अचानक नहीं आती। पहले आकाश में काले बादल घिरते हैं, फिर गड़गड़ाहट होती है। पूरा आकाश बादलों से घिर जाता है। ऐसा लगता है मानो दिन में ही रात हो गई हो। लेखक का मानना है कि वर्षा ऋतु एक ऐसी ऋतु है, जिसमें संगीत अधिक सुनाई पड़ता है; जैसे-तबला, मृदंग और सितार का संगीत। बिसनाथ छत पर चढ़कर वर्षा के आने की आवाज़ सुनता है। वर्षा ऐसे आती है; जैसे घोड़ों की कतार दौड़ी चली आ रही हो। फिर और पास चली आती है।

अब नदी पर बरसे, अब डेगहर पर, अब बड़की बगिया पर फिर पड़ोस में टप-टप। आँधी आने पर टीन छप्पर उड़ जाते हैं। पशु और पक्षी इधर-उधर भागते और थिरकते हैं। पहली वर्षा में नहाने से खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि ठीक हो जाते हैं। कीड़े-मकोड़े, जोंक, केंचुए, मच्छर आदि बहुतायत में पैदा हो जाते हैं। अनेक प्रकार की दूब और वनस्पतियाँ नई हरियाली की लहरों-सी लहराती हैं। चारों ओर कीचड़ व बदबू का साम्राज्य होता है। जलाने की लकड़ी की कमी हो जाती है; गीले कंडे से घर धुएँ से भर जाते हैं।

बरसात के बाद बिस्कोहर की धरती, आकाश, दिशाएँ, तालाब और राप्ती नदी निखर उठते हैं; धान के पौधे झूमते हैं; तालाब पानी से लबालब भर जाते हैं। बिसनाथ को लगता है कि तालाब के नीले जल से जैसे अभी कोई देवी-देवता प्रकट होने वाला है। खेतों में पानी की नालियों में पानी सुरीली लय में बहता प्रतीत होता है।

लेखक को बचपन की स्मृतियाँ ताज्ञा हो आती हैं। जाड़े की धूप और चैत्र की चाँदनी में उसे ज्यादा फ़र्क नज़र नहीं आता। उसे बचपन में देखी बिस्कोहर की वह औरत भी याद आती है, जो बरसात की भीगी चाँदनी जैसी मधुर और शोभा से दबी हुई थी। बिसनाथ की उम्र उस समय 10 वर्ष से ज्यादा नहीं थी। बरसात की चाँदनी रात में जूही अपनी खुशबू बिखेर रही थी।

चाँदनी रात में पेड़ों पर लगे फूल ऐसे लगते हैं, मानो चाँदनी के फूल लटक रहे हों। बिसनाथ को प्रकृति में केवल चाँदनी ही नज़र आती है। प्रकृति सजीव नारी-सी प्रतीत होती है। लेखक इसी सजीव नारी को आकाश, चाँदनी और सुगंध आदि सभी में देखता है। बिस्कोहर में मिली उस सुंदर नारी से बिसनाथ सारी उम्र शरमाते रहे। वह नारी बिस्कोहर में ही ब्याही गई थी। वे कई बार उससे मिले और फिर बड़ी हिम्मत बाँधने के बाद बिसनाथ ने उससे कहा था-“जो तुम्हें पा जाएगा, वह जरूर पागल हो जाएगा।”

बिसनाथ इस बात को कदापि नहीं मानते कि बिस्कोहर से अच्छा कोई दूसरा गाँव भी हो सकता है और बिस्कोहर से ज्यादा सुंदर कहीं और की औरत भी हो सकती है। बिसनाथ को अपनी माँ के पेट का रंग हल्दी मिलाकर बनाई गई पूड़ी के रंग जैसा लगता और उसके शरीर से आने वाली गंध दूध की गंध जैसी लगती। पिता के पसीने से भीगी कमीज् की बू भी उसे अच्छी लगती। नारी शरीर से उसे बिस्कोहर की फसलों व वनस्पतियों की गंध जैसी प्रतीत होती है। तालाब की चिकनी मिट्टी, खीर, पुआल आदि की गंध भी लेखक की स्मृतियों में अभी तक घुली हुई है।

लेखक अपने गाँव की स्मृतियों को याद करके भावुक हो जाता हैं; रोने लगता है। इसी रूलाई में उसे वही औरत नज़र आती है, जो व्याकुल है। वह सफ़ेद रंग की साड़ी पहने हुए हैं। उसने अपने घने काले केश सँवारे हुए हैं। उसकी आँखों में पता नहीं कैसी आर्द्र व्यथा है। वह न जाने किसका इंतजार कर रही है। वह संगीत, नृत्य, मूर्ति, कविता, स्थापत्य, चित्र आदि सभी प्रकार की कलाओं में मौजूद है। अपने गाँव से जुड़ी स्मृतियाँ बिसनाथ के लिए सुख-दुख से जोड़ने का पुल है। इसी स्मृति में लेखक को मृत्यु बोध भी बड़ा अजीब लगता है।

Class 12 Hindi Antral Chapter 3 Summary - Biskohar Ki Mati Summary

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • भोज – भोजन
  • कुमुद – जल में खिलने वाला फूल
  • सिंघाड़ा – जल में पैदा होने वाला एक फल
  • बतिया – फल का अविकसित रूप
  • कथरी – बिछौना
  • इफलरात – अधिकता
  • डैने – पंख
  • प्रतीक्षा – इंतज़ार
  • सुुकना – धीमे स्वर में रोना
  • अगाध – भरपूर
  • तरकारी – सब्ची
  • तकलीफ़ – दर्द, पीड़ा
  • भसीण – कमलनाल, कमल ककड़ी, कमल का तना
  • शरद – सरदी की ऋतु
  • प्रयोजन – उद्देश्य
  • साफ़-सफ्फाक – साफ़ और स्वच्छ
  • भीटो – टीलों
  • पात – पत्ते
  • मादक – नशीला
  • अँख-आना – गरमियों में होने वाला आँख का एक रोग
  • आर्द्र – नमी
  • आभा – सुंदरता
  • व्याकुल – बेचैन
  • स्मृति – याद