In this post, we have given Class 12 Hindi Antral Chapter 2 Summary, Aarohan Summary. This Hindi Antral Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.

आरोहण Summary – Class 12 Hindi Antral Chapter 2 Summary

पाठ का सार :

‘आरोहण’ लेखक संजीव द्वारा रचित एक यात्रा-वृत्तांत की भाँति लिखी कहानी है। इस कहानी में पात्रों के माध्यम से पर्वतीय प्रदेश के जीवन-संघर्ष तथा प्राकृतिक परिवेश को उनकी भावनाओं और संवेदनाओं के माध्यम से चित्रित किया गया है। पर्वतीय प्रदेश के आपसी संबंधों और प्राकृतिक आपदाओं का चित्रांकन भी लेखक ने बड़ी ही संजीदगी से किया है। मैदानी और समतल स्थानों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों का जीवन अधिक कठिन, जटिल, कष्टप्रद, दुखद और संघर्षमय होता है। इसी संघर्षशील जीवन का सुंदर विवरण प्रस्तुत कहानी में रेखांकित किया गया है।

रूप सिंह अपने गॉड फ़ादर के बेटे और आई० ए० एस० ट्रेनी मित्र शेखर कपूर के साथ लगभग ग्यारह वर्षों बाद अपने पैतृक गाँव ‘माही’ वापस आ रहा था। बस उन्हें देवकुंड के स्टॉप पर उतारकर आगे बढ़ जाती है। यहाँ से उसका गाँव माही पंद्रह किलोमीटर दूर था। ग्यारह वर्ष बाद भी उसके गाँव को जाने वाली सड़क पगडंडी ही थी। अभी सुबह के दस बजे थे परंतु गाँव पहुँचते-पहुँचते शाम हो ही जाएगी। वहीं एक चाय की छोटी दुकान पर चाय पीकर उन्होंने चायवाले से घोड़ा आदि मिलने के बारे में पूछा।

वहाँ उन्हें एक किशोर मिला जो उन्हें गाँव ले जाने के लिए दो घोड़े (हीरू-वीरू) लेकर आया। वे घोड़ों पर सवार होकर गाँव के लिए चल पड़े। घोड़े वाला किशोर पैदल ही उनके साथ-साथ चल पड़ा। वे रास्ते में पत्थरों की अजीब और अनेक किस्मों के बारे में बातें कर रहे थे। बीच-बीच में वे घोड़े वाले किशोर से भी बात करना चाहते थे, परंतु किशोर उनकी बातों में रुचि न लेकर अपने रास्ते के बारे में अधिक गंभीर था। वह बहुत कम बोलता था। रास्ते में ऊँची-नीची पहाड़ियों के बीच से गुज्तरते हुए रूप सिंह को अपने बचपन की स्मृतियाँ ताज्ता हो जाती हैं।

वह उस घटना को याद करता है, जब वह और उसका बड़ा भाई भूप सिंह एक खाई में गिरते-गिरते बचे थे। रास्ते में उन्हें एक जवान लड़की भेड़े चराती हुई मिली। शेखर ने रूप सिंह से उसी जैसी किसी लड़की से प्यार होने की बात पूछ्छी। रूप सिंह ने उसे अपनी सुंदर प्रेमिका शैला के बारे में बताया। शैला उस भेड़ चराने वाली लड़की से अधिक सुंदर थी। घाटियों और पहाड़ियों के बीच से गीत की गूँज उन्हें निरंतर सुनाई पड़ती थी। यह एक दर्द-भरा गीत था। दर्द से व्यधित रूप सिंह को अपने पिता-माता और बड़े भाई भूपसिंह की याद आने लगी थी। दोनों आरोही अति उत्साही थे। वे पर्वतारोहण पर निरंतर बहस कर रहे थे।

चलते-चलते उन्हें यह पता नहीं चला कि कब वे पर्वत के बीच मैदान में चले आए। पर्वत भृंखलाओं के बीच यह मैदान सँकरा होता चला जाता था। उस घोड़ेवाले किशोर लड़के का नाम महीप था। महीप उन्हें समय न खराब करने की सलाह बार-बार देता है। वे एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ चढ़ते चले जा रहे थे। रास्ते में उह्हें नीचे नदी के साथ सटे सँकरे पहाड़ के साथ चलना था। शेखर ने डर के मारे घोड़े से नीचे उतरना चाहा, परंतु महीप ने उन्हें मना कर दिया। जिस चरागाह पर रूप सिंह और उसकी प्रेमिका शैला कभी भेड़ चराते थे अब उस चरागाह का कहीं नामोनिशान नहीं था।

रास्ते में रूप सिंह शेखर को वह जगह भी दिखाता है जहाँ वह और उसकी प्रेमिका शैला भेड़ें चराने के बहाने मिला करते थे। अब वह पहाड़ और चरागाह भू-स्खलन के कारण कही खो-से गए थे। रूप सिंह शेखर को भावुकता से कहता है, “ओ शेखर साब, पस्त हो गया रूप, भूप दादा की और मेरी प्रेमिकाएँ, प्यार की निशानियाँ, वो मुलाकात सबके सब दब-ढक गए, भू-सखल में। अब तो नए रास्ते हैं और इन्हीं से होकर चलना है।” रास्ते में एक सुरगी गाँव पड़ता है। यह माही के रास्ते का अंतिम गाँव था। सुरगी यानी स्वर्ग।

महीप को देखकर रूप सिंह और शेखर दोनों कहते हैं कि पेट के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता है। परंतु बरफ़ के समय यह किशोर क्या करता होगा ? यह एक बड़ा सवाल था। वे महीप से कहते हैं कि अब हम पैदल चलेंगे और तुम थोड़ी देर के लिए घोड़े पर बैठ जाओ परंतु महीप मना कर देता है। रूप सिंह महीप से पूछता है कि तू किस गाँव का है तथा तेरे परिवार में कौन-कौन से लोग रहते हैं।

महीप कहता है, “साब, बात मत करो, रास्ता बहुत ही खराब है।” आगे रास्ते में एक झरना था और उजड़ी हुई एक पनचक्की। घोड़े ने पानी को मुँह लगा दिया। रूप सिंह और शेखर दोनों नीचे उतरे तो महीप ने भी बहते झरने से पानी पिया। अब गाँव नज़दीक आ रहा था। वर्षों पुरानी स्मृतियों के अब दरवाज़े खुल रहे थे। एक ओर सूपिन नदी और एक और जंगल। रूप सिंह सोच रहे थे कि अब हमारे खेत नीचे हो गए होंगे। वहाँ अपना घर होगा, अपने लोग होंगे, माँ-पिता जी भूप दादा और गाँव के अन्य लोग होंगे।

अब कितनी दूर रह गया है अपना गाँव। वह गुनगुनाता है, “ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन” …. उन्होंने महीप को सौ रुपए किराए देने की बात की थी परंतु न जाने क्यों रूप सिंह ने उसे दस-दस के बारह नए नोट दे दिए। शाम होने लगी थी। उन्होंने महीप को यहीं रुकने के लिए कहा परंतु महीप ने ‘हाँ’ नहीं की। घोड़ों से उतरकर उन्होंने एक बुजुर्ग से पूछा कि यहाँ ग्यारह साल पहले रामसिंह हुआ करते थे। जिनके रूप सिंह और भूप सिंह दो बेटे थे।

वहाँ हिमांग पहाड़ के नीचे उनका घर था। काफ़ी देर के बाद बूड़े ने कहा कि अरे रूप सिंह तो बहुत पहले ही गाँव छोड़कर भाग गया था। तभी रूप सिंह बूढ़े बुजुर्ग से कहता है कि अच्छा आप त्रिलोक सिंह हैं। बातों-बातों में ही वहाँ लोगों को पता चलता है कि यह लड़का रूप सिंह है जो गाँव छोड़कर भाग गया था। अब रूप सिंह पर्वतारोहण संस्थान में चार हज्ञार रूपए की नौकरी करता है। बूढ़ा त्रिलोक उन्हें बताता है कि उसका बड़ा भाई भूप सिंह अभी इसी गाँव में है। अब उसकी बीबी और एक बेटा है। ये जो लड़का तुम्हें घोड़ों पर बैठाकर इस गाँव में लाया है-महीप।

यही उसका लड़का है। तभी वहाँ एक गोरा-चिट्टा गले में मफ़लर डाले दरमियाने कद का व्यक्ति आया। यह व्यक्ति रूप सिंह का बड़ा भाई भूप सिंह था। भूप सिंह उन दोनों को पहाड़ी पर बसे घर में ले जाता है। वहाँ उसकी दूसरी पत्नी है। भूप सिंह उन्हें माँ-बाप और अपनी पहली पत्नी शैला के बारे में बताता है। जिस पहाड़ पर कभी रूप सिंह का घर होता था। वहाँ भू-स्खलन होने के कारण माँ-बाप और पहली पत्नी शैला दबकर मर गए थे। भूप सिंह की पहली पत्नी शैला वही लड़की थी जो कभी रूप सिंह की प्रेमिका हुआ करती थी। ऊपर जहाँ भूप सिंह का घर है वहाँ मकई की फसल खड़ी थी।

चारों ओर सेब और देवदार के पेड़ थे। उस रात बूँदा-बाँदी और कभी-कभी जोरदार बरसात होती रही। सुबह दोनों को भूप ने जगाया और उन्हें खाने के लिए मकई के भुने दाने दिए। कुछ देर बाद सूर्य निकल आया। नाश्ते के समय वे काफ़ी दिनों बाद एक साथ बँठे थे। भुनी हुई मक्के के दाने और चाय। भाभी सेंक-सेंक उन्हें दे रही थी। वे नमक-मिर्च के साथ चबाते जा रहे थे। बातों-बातों में ही भूप सिंह रूप सिंह को बताता है कि तेरे चले जाने के बाद अगले साल इतनी बरफ गिरी की हिमांग पहाड़ उसका वज़न न उठा सका, धसक गया और उसमें तीस नाली खेत, माँ, बाबा, सब दब गए मलबे में …….! “मैं क्योंकि धानी पर दूर था इसलिए बच गया।

में अकेला लाचार था अगर तू होता तो पहाड़ का मलबा क्या था, पहाड़ तक हटा लेते दोनों भाई, खेत भी खींच निकाल लेते, माँ-बाबा को भी, लेकिन नहीं हो सका वही पहाड़ कबर बन गया सबका।” भूप सिंह थोड़ी देर के लिए चुप हो गया था। थोड़ी देर बाद फिर बोला, “तू भी पहले ही भाग चुका था। मुझे अकेला छोड़कर, फिर मैं भौत भटका, भौत छटपटाया, लेकिन कहीं सहारा न मिला, सहारा देता भी कौन ? सबी अपणे-अपणे से-ई तबाह। दस-दस किलोमीटर तक जगह-जगह धँसाव हुए थे। रास्ते बदल गए, नदियाँ बदल गई। इतनी बड़ी तबाही हो चुको थी।’

इसके बाद भूप सिंह उन्हें शैला के साथ नए बनाए खेतों के बारे में बताता है। वह बताता है कि शैला के आने से खेती फैल गई, बरफ जर्मीं न रहे इसलिए हमने खेतों का ढलवा बनाया। दूसरी दिशा में बहते झरने का रख बदलकर अपने खेतों की ओर मोड़ दिया। अब खेतों में पेड़ लगा रखे हैं। सरदियों में इन पेड़ों की लकड़ी जलाने के काम आती है। जब रूप सिंह ने यह पूछा कि अब शैला भाभी कहाँ है तो भूप सिंह ने बताया कि जब काम ज्यादा बढ़ गया तो में नीचे से एक दूसरी औरत ले आया। शैला का एक बेटा महीप पैदा हुआ। जब महीप नौ साल का हुआ तो उसकी माँ ने यहीं से कूदकर जान दे दी। यह सुनकर शेखर और रूप सिंह दोनों स्तब्ध रह गए। अब महीप मेरे साथ बोलता तक नहीं है शायद अपनी माँ की मौत का गुनाहगार मुझे ही मानता है।

अब वह नीचे के घरों में अकेला रहता है। रूप सिंह और शेखर को अब बात समझ में आ रही थी कि क्यों महीप ने माहीवालों से सीधे मुँह बात नही की थी। बातें करते-करते भूप सिंह का गला भर आया था। रूप सिंह बड़े भाई को अपने साथ ले जाने की बात करता है वह भावुक होकर कहता है, “बहोत दुख झेले आपने, बहोत। दुखों का पहाड़ लेकर चढ़ते रहे पहाड़ पर। अब बस करो। मैं तुम्हारा छोटा भाई तुम्हें अपने साथ लिवा जाना चाहता हूँ …… मुझे सरकार की तरफ से एक पक्का क्वार्टर और चार हज्ञार रुपए तनख्वाह मिलती है। उसमें आराम से रह लेंगे हम सभी।” भूप सिंह ने कोई उत्तर नही दिया।

जब रूप सिंह ने यह कहा कि यह पहाड़ कभी भी धँस सकता है इसलिए आप मेरे साथ चलिए। हम सब नीचे चले गए हैं और आप ऊपर अकेले कैसे रहेंगे। भावुक होकर भूप सिंह कहता है, “कौण कैता है अकेला हूँ ? हयाँ माँ है, बाबा हैं, शैला है-सोए पड़े हैं सब। हयाँ महीप है बल्द (बैल) है, मेरी घरवाली है, मौत के मुँह से निकाले हुए खेत है, पेड़ है, झरणा है। इन पहाड़ों में मेरे पुरखों, मेरे प्यारों की आत्मा भटकती रहती है। मैं उनसे बातें करता हूँ ?” ‘दादा !

ये सब देखकर सुन-सुनकर मेरा कलेजा मुँह को आ रहा है। अभी से भी बची-कुची ज्ञिंदगी के साथ इनसाफ़ किया जा सकता है।” रूप सिंह ने भावुक होकर कहा। परंतु भूप सिंह अपनी भीगी पलकों को ऊपर उठाकर कहता है, “भौत इनसाफ़ किया तुम सभी ने मेरे साथ-भौता, अब माफ़ करो भइला। मेरी खुद्दारी को बख्स दो। अब तो बिंदा रहणे तक न ई बल्द (बैल) उतर सकदिन, न हम।” इस प्रकार भूप सिंह पहाड़ पर की सभी कठिनाइयों को सहकर पहाड़ पर ही जिंदगी बिताना चाहता है।

Class 12 Hindi Antral Chapter 2 Summary - Aarohan Summary

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • आरोहुण – चढ़ना
  • खतो-किताबत – पत्र-व्यवहार
  • जर्द – पीला, पीले रंग वाला
  • दरियाफ़्त – जानकारी प्राप्त करना
  • इया – यहाँ
  • अस्फुट – अस्पष्ट, अव्यक्त, गूढ़
  • घसेरी – घासवाली
  • हिलांस – एक पक्षी का नाम
  • गफ़लत – गलतफ़हमी
  • ड्रिल – छेद
  • लैंड स्लाइड – भू-स्खलन
  • सूपिन – एक नदी का नाम
  • संशय – संदेह
  • भुइला – अनुज
  • हैरत – हैरानी
  • जड़ता – चित्त के विवेक शून्य होने की अवस्था, अचेतन अवस्था
  • तिलस्म – जादू
  • म्याल – पहाड़
  • स्तब्ध – हैरान
  • लाज्ञिमी – आवश्यक
  • पुष्ट – ताकतवर, बलवान
  • खुदकुशी – आत्महत्या
  • मुकम्मिल – संपूर्ण/स्थायी
  • तौहीन – बेइक्जती
  • इम्पोर्टंड – आयातित/विदेशी
  • पगुरा करना – जुगाली करना
  • घारबटी – पहाड़ के पार जाने का रास्त
  • कुहेड़ी – कुहरा
  • डांडियाँ – पहाड़ियाँ
  • ना बाँस – न बसना
  • अनुतप्त – पछतावे से भरी हुई
  • संभ्रात – कुलीन
  • फ़्लैट – समतल
  • स्मृति – याद
  • भौत – बहुत
  • हिदायत – निर्देश
  • गुफ़ानुमा – गुफ़ा जैसा
  • शिनाख्त – पहचान
  • वजूद – अस्तित्व
  • आत्मीय ऊष्मा – अपनेपन की गरमी
  • हिम – बरफ़
  • तनहा – अकेलापन
  • मैंड – दिमाग
  • कैता – कहता