Refer to the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers Chapter 2 आरोहण to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 2 आरोहण

Class 12 Hindi Chapter 2 Question Answer Antral आरोहण

प्रश्न 1.
यूँ तो प्राय: लोग घर छोड़कर कही-न-कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं किंतु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों घेरने लगी ?
उत्तर :
रूप सिंह मूलत: माही गाँव का रहने वाला था। वह पहाड़ी जीवन से भली-भाँँत परिचित था। आज से ग्यारह साल पहले अपने माही गाँव को छोड़कर भाग गया था। बड़े भाई भूप सिंह ने उसे बहुत दूँढ़ा परंतु वह कहीं नहीं मिला। आजकल रूप सिंह पर्वतारोहण संस्थान में चार हज्ञार प्रतिमास की नौकरी करता है। वह ग्यारह वर्ष के बाद अपने गाँव वापस लौट रहा है।

जब वह बस से देवकुंड स्टॉप पर उतरा तो सबसे पहले उसकी नज़र अपने गाँव की ओर उठी। उसका गाँव यहाँ से पंद्रह किलोमीटर दूर था। उसे घर लौटते समय इसलिए अजीब-सी लज्ञा, अपनत्व और झिझक हो रही थी क्योंकि इन ग्यारह वर्षों में अब घर या गाँववालों के साथ किसी प्रकार पत्र-व्यवहार नहीं किया था। उसे यह भी डर था कि कहीं कोई उससे यह न पूछ ले कि वह इतने वर्ष कहाँ रहा और अब ग्यारह वर्ष बाद इस गाँव में फिर क्यों लौट रहा है ?

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प्रश्न 2.
पत्थर की जाति से लेखक का क्या आशय है ? उसके विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए।
उत्तर पत्थर की जाति से लेखक का आशय है कि अमुक पत्थर किस प्रकार की चट्टान मिट्टी या लावा से बना है। इस पत्थर के किस प्रकार के कण हैं तथा यह पत्थर किस प्रकार की चट्टान के टूटने से बना है। यानी पत्थर की जाति से अर्थ हैं-पत्थर की प्रकार से। पत्थर के अनेक प्रकार होते हैं, जैसे –
(i) इग्नियस
(ii) ग्रेनाइट
(iii) मेटामॉरफ़िक
(iv) सैंडस्टोन
(v) सिलिका।

प्रश्न 3.
महीप अपने विषय में बात पूंडे जाने पर उसे टाल क्यों देता था ?
उत्तर :
महीप अपने विषय में बात पूछे जाने पर उसे इसलिए टाल देता था क्योंकि जिस रास्ते पर वह घोड़ों पर बैठाकर शेखर और रूप सिंह को लिए जा रहा था वह रास्ता बहुत ही सँकरा, पहाड़ी एवं खतरनाक था। जब शेखर महीप से उसके परिवार के बारे में पूछता है तो महीप सवालों पर विराम लगाते हुए कहता है, “साब । बात मत करो, रास्ता भौत ई खराब है।” रास्ते में ऊपर से पत्थर गिरे हुए थे।

वह आगे-आगे घोड़ों को पुचकारते, निर्देश देते चल रहा था, जो उसके लिए इस समय शेखर और रूप सिंह द्वारा पूछे जाने वाले फालतू सवालों से अधिक महत्वपूर्ण लग रहा था। इसके अतिरिकत वह रूप सिंह के बड़े भाई भूप सिंह का बेटा था। वह अपनी माता की मृल्यु का ज्चिम्मेदार अपने पिता को मानता था। इसलिए जब उसे पता चला कि ये उसके पिता के भाई हैं तो उन्हें अपने विषय में कुछ बताने की बजाए टाल देता है।

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प्रश्न 4.
बूढे तिरलोक सिंह को पहाड़ पर चढ़ना जैसी नौकरी की बात सुनकर अजीब क्यों लगा ?
उत्तर :
बुढ़े तिरलोक सिंह को रूपसिंह की पहाड़ चढ़ने जैसी नौकरी की बात सुनकर इसलिए अजीब लगा क्योंकि पर्वतीय प्रदेशों में पहाड़ पर चढ़ना एक दिनचर्या है। पहाड़ी लोग प्रतिदिन न जाने कितनी बार पहाड़ चढ़ते हैं और कितनी बार पहाड़ से नीचे उतरते हैं। जब रूप सिंह ने यह कहा कि, “वह पर्वतारोहण संस्थान पहाड़ पर चढ़ने की नौकरी के चार हज्ञार प्रति मास तनख्याह देती है तो त्रिलोक सिंह सबको सुनाकर कहता है, ‘लेकिन फिर बोलूँ है कि सरकार याको सिर्फ़ क्याल पर चढ़न कूँ वास्ते चार हज्वार तणखा देवे छूँ। यक क्या बात हुई ? कैसी अहमक है यक सरकार की।” तिरलोक के लिए पहाड़ चढ़ने की नौकरी के लिए चार हज्ञार खर्च करना मूर्खता है क्योंक उसका मानना है कि पहाड़ पर चढ़ना पहाड़ियों की रोज्ञमर्रा की ज्ञिंद्गी का एक अंग है।

प्रश्न 5.
रूप सिंह पहाड़ पर चढ़ना सिखाने के बावजूद भूप सिंह के सामने बौना क्यों पड़ गया था ?
उत्तर :
जब ग्यारह वर्षों बाद रूप सिंह की मुलाकात अपने बड़े भाई भूप सिंह से हुई तो वह बहुत कुछ बोले। वह उन्हें ऊपर पहाड़ पर स्थित अपने गाँव चलने के लिए कहता है। जब रूप सिंह और शेखर ने सीधी खड़ी चढ़ाई पर चढ़ना शुरू किया तो वे पत्थरों को पकड़-पकड़कर चढ़ रहे थे फिर हाँफकर रुक गए। उधर से भूप सिंह ने कहा, “क्या हुआ ? आगे नहीं चढ़ पा रहा है ? …. बस इतना भर पहाड़ीपन बचा र गया ई? है ना !”

वे नीचे उतर आए और अपने मफ़लर को मजबूती से कमर में बौधकर रूप सिंह को ऊपर ले गया। चूंक रूप सिंह को आधुनिक उपकरणों के साथ ऊपर चढ़ने का अनुभव था और आज उसे बिना उपकरणों के ही ऊपर चढ़ना पड़ रहा था। उधर भूप सिंह पूरे धैर्य, आत्मविश्वास, ताकत और कुशलतापूर्वक साथ में रूप सिंह को खींचे ऊपर चढ़े जा रहे थे। उन्हें ऊपर पहुँचने में एक घंटे का समय लगा होगा। वह वहीं रूप सिंह को छोड़कर शेखर को लेने नीचे उतर गया। इस प्रकार आज रूप सिंह पहाड़ पर चढ़ने की ट्रेनिंग लेने के बाद भी पहाड़ी भूप सिंह के सामने बौना पड़ रहा था।

प्रश्न 6.
शैला और भूप ने मिलकर किस तरह पहाड़ पर अपनी मेहनत से नई ज़िंदगी की कहानी लिखी?
उत्तर :
जब रूप सिंह के गाँव में भू-स्खलन हुआ था तो उसके गाँव के अनेक लोग दबकर मर गर थे। भूप सिंह रूप सिंह और शेखर को बताता है कि इस भू-स्खलन में माँ, बाबा, खेती सभी कुछ दबकर खत्म हो गया था। में यहाँ अकेला लाचार था, बेबस था। इस तबाही ने मेरा सब कुछ खत्म कर दिया था। इस पहाड़ ने मेरा सब कुछ निगल लिया था। मैं धीरे-धीरे यहाँ से मलबा हटाता गया। थोड़ी बहुत खेती शुरू कर दी थी। जब अकेला काम करते-करते थक जाता था तो नीचे से एक औरत ले आया।

इस औरत का नाम ‘शैला’ था। यह वही शैला थी जिसने कभी रूप सिंह से प्रेम किया था परंतु अब वह भूप सिंह की पत्नी बनकर उसके कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रही थी। भूप सिंह एक बार फिर बताता है- शैला के आने से खेती फैल गई। एक दिन पाणी की खोज में ह्हम हिमांग पर्बत के उपर चढ़ गए वहाँ हमने देखा कि एक झरना यूँ ही उस तरफ सूफिन में गिर रहा था इसे मोड़ लेने से पानी की समस्या हल हो सकती थी।”

परंतु पहाड़ बीच में से ऊँचा था। फिर उन दोनों ने पहाड़ को काटा। जब बरफ़ कुछ पिघलने लगी तो उन्होंने पहाड़ को थोड़ा-थोड़ा काटना शुरू किया वे दोनों खूब मेहनत करके झरने को मोड़कर अपने खेतों में लाने में सफल रहे। इस प्रकार शैला और भूप सिंह ने मिलकर पहाड़ पर अपनी मेहनत और लगन से नई ज्ञिंद्गी की कहानी लिखी।

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प्रश्न 7.
सैलानी (शेखर और रूप सिंह) घोड़े पर चलते हुए उस लड़के के रोज़गार के बारे में सोच रहे थे जिसने उनको घोड़े पर सवार कार रखा था और स्वयं पैदल चल रहा था। क्या आप भी बाल मजाूरों के बारे में सोचते हैं?
उत्तर :
बाल मजदूरी भारतवर्ष की एक बड़ी समस्या है। महानगरीय जीवन के साथ-साथ ग्रामीण परिवेश में भी लाखों की संख्या में बच्चे मकदूरी करके अपना पेट भरते हैं। जहाँ सरकार का यह मकसद और प्रयास होना चाहिए कि देश में बाल मज़दूरी खत्म की जाए परंतु महीप जैसे लाखों करोड़ों बच्चे मजदूरी करने के लिए मज्ञबूर हैं। रूप सिंह और शेखर कपूर को माही गाँव जाना है। यह गाँव यहाँ से पंद्रह किलोमीटर पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। महीप के पास दो घोड़े है। वह दोनों का सौ रुपए किराया लेकर पंद्रह किलोमीटर पैदल चलकर जाता है।

यह कार्य उसका प्रतिदिन का है। जिस उम्र में महीप यह कार्य करता है यह उसके पतुने-लिखने और मौज़-मस्ती के दिन है परंतु वह मज्रदूरी करके अपना पेट पालता है। यह घटना केवल माही गाँव की नहीं है बल्कि देश के प्रत्येक कोने में महीप जैसे लाखों बच्चे मज्रदूरी करते देखे जा सकते हैं। पर्यटन स्थल पर भी इनकी संख्या और भी अधिक होती है इसलिए भारत सरकार को इन बाल मज़दूरों के बारे में नीति बनानी चाहिए जिससे इनके बचपन को बचाया जा सके और ये बच्चे बड़े होकर देश के सच्चे नागरिक बन सकें।

प्रश्न 8. :
पहाड़ों की चढाई में भूप दादा का कोई जवाब नर्ही। उनके चरित्र-चित्रण की विशेषताएँ बताइए।
अथवा
भूप सिंह ऐसा पर्वत-पुत्र है जो पग-पग आपदाओं से टक्कर लेता है पर हार नहीं मानता। उक्त कथन के आलोक में भूप सिंह के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
भूप सिंह एक पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाला एक दृढ़ निश्चयी और परिश्रमी व्यक्ति है। उसका छोटा भाई रूप सिंह ग्यारह वर्ष पूर्व घर से भाग जाता है। पिछले वर्षों यहाँ भू-स्खलन की बड़ी घटना में उसके माता-पिता पत्नी और खेत सभी कुछ तबाह हो गए थे। उसकी माँ और पिता दोनों मिट्टी में दबकर मर गए थे। उसने अपनी मेहनत से एक बार फिर खेती शुरू की। खेतों से मलबे को हटाया जब उसके खेतों में पानी की समस्या आ गई तो वह अपनी पत्नी शैला के साथ ऊपर दूसरी दिशा में बहते झरने का मुँह अपने खेतों की ओर मोड़ देता है।

ग्यारह वर्ष पूर्व उसका घर नीचे पर्वत की तलहटी में था परंतु अब उसने अपना घर ऊपर पहाड़ पर बनाया था। पहाड़ चढ़ना उसकी दिनचर्या का अंग था। जब शेखर और रूप सिंह पहाड़ पर चढ़ते समय थक जाते हैं तो वह उन दोनों को भी पहाड़ पर चढ़ा देता है। इस प्रकार भूपदादा पहाड़ पर चढ़ने में अत्यंत कुशल व्यक्ति हैं। न केवल पहाड़ पर चढ़ते हैं परंतु अपनी ज्ञिंदगी रूपी पहाड़ पर उसे अनेक बार चढ़ना पड़ता है। अपनी खेती को नए सिरे से शुरू करना पड़ता है। इस प्रकार भूपदादा एक कर्मट, मेहनती, परिश्रमी, लगनशील, भावुक, संवेदनशील और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं।

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प्रश्न 9.
इस कहानी को पढकर आपके मन मे पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की क्या छवि बनती है? उसपर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
पहाड़ों पर स्ती की स्थिति दयनीय है जिनका अस्तित्व उनके परिश्रम पर टिका हुआ है। गोरी चिट्टी अति सुंदर रेग-रूप की स्वामिनियों जब मधुर स्वर में गाती हैं तो उनका स्वर घाटियों में दूर-दूर गूँज उठता है। झरने की तरह कल-कल करता उनका मीठा स्वर आत्मा में भी एक नई जान-सी भर देता है। उनका जीवन परिश्रम से सीधा जुड़ा है। जब पहाड़ टूटकर गिर गया था, वह धैस गया था तब भूप पहाड़ के कहीं नीचे से शैला को अपने साथ अपने घर ले आया था क्योंकि वह बिलकुल अकेला हो गया था।

शैला को कभी रूप प्रेम करता था। उसके प्रति अभी भी उसके हदय में प्रेम भाव छिपा था। स्त्री के प्रति पहाड़ पर पुरुषों के हृदय में एकात्म प्रेम भाव नहीं है। जब शैला गर्भवती थी और उसे कार्य करने में कठिनाई होती थी तो भूप किसी दूसरी स्त्री को पत्नी बनाकर घर ले आया था और शायद सौत की पीड़ा से बचने के लिए ही हैला ने पहाड़ से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। पहाड़ पर स्त्री का जीवन अति कठिन है। जीबनभर उसे अति कठोर परिश्रम करना पड़ता है पर वह सम्मान प्राप्त नहीं कर पाती।

योग्युण-विस्तार –

प्रश्न 1.
पहाडों में जीवन अत्यंत कठिन होता है।
अधवा
पर्वतीय जीवन पर प्रकाश डालिए। पाठ के आधार पर उक्त विषय पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर :
भौगोलिक दृष्टि से आगर देखें तो संपूर्ण विश्व में अनेक विविधताएँ हैं, कहीं पर गहरी घाटियाँ, कहीं ऊँचे पर्वत, कही पर दूर तक फैला मरस्थल है, कहीं खुले हरे-भरे मैदान हैं, कहीं दलदल है और कही दूर तक फैला समुद्र। इसी विविधता में पर्वतीय क्षेत्र अपनी संदरता और सौम्यता के कारण सदैव ब्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। प्रस्तुत पाठ ‘आरोहण’ एक कहानी के रूप में लगाया गया है। यह कहानी पर्वतीय जीवन के संघर्षों और पीड़ाओं को व्यक्त करती है। पर्वतारोहण अब पाठ्यक्रमों में स्थान पा चुका है।

विद्यार्थियों में अब पर्वतारोहण के प्रति रुचि बढ़ रही है। गरमियों और सरदियों के दिनों में स्कूलों, कोलेजों, विश्वविद्यालयों से अनेक विद्यार्थी पर्वतारोहुण के लिए पर्वतीय प्रदेशों की यात्रा करते है। वहाँ के स्थानीय निवासी वहाँ आए इन विद्यार्थियों और पर्यटकों के लिए ‘गाइड’ अथवा कोच का कार्य करते हैं। वे बेहतर तरीके से पर्यटकों को वहाँ की संस्कृति और सभ्यता के बारे में बता सकते है। पर्वतीय प्रदेश सदा निचले एवं समतल इलाकों के लोगों के लिए रोमांचित कर देने वाले रहे है। लोग वहाँ जाकर प्राकृतिक परिवेश के प्रति अभिभूत हो जाते हैं।

वे अपनी भाग-दौड़ की जिंदगी में थोड़ा सकून प्राप्त करते हैं। यह कथन उल्लेखनीय है कि पर्वतीय जीवन जितना सुंदर एवं सौम्य लगता है उतना ही जटिल एवं कठिन भी है। वहाँ रहने वाले लोग को कई-कई किलोमीटर पैदल टेढे-मेढ़े पथरीले रास्तों से रोज्ञ गुकरना पड़ता है। वहॉं प्रतिदिन होने वाले भू-सखलन के कारण लोगों का जीना दूभर हो जाता है उनके अपने मकान और संबंधी उनसे बिदुड़ जाते हैं। उन्हें एक बार फिर नया घर बनाना पड़ता है। खेत मिट्टी और मलबे से भर जाते हैं। खेती न होने के कारण उन्हें अपना पेट भरना भी मुश्किल हो जाता है। बरफ़ जमने से उनकी दिनचर्या लगभग बंद हो जाती है। वे अपने घरों में बंद रहने के सिवाय कुछ नाहीं कर सकते।

दस-दस दिन तक उन्हें घरों में ही बिताने पड़ते हैं। अत्यधिक बारिश के कारण पगडंडियाँ अवरूद्ध हो जाती है। रास्ते असुरक्षित हो जाते है। खाने-पीने की चीजों की लगातार कमी हो जाती है। उनकी ज्ञिंदगी दूसरों पर आश्रित हो जाती है। पर्वतीय प्रदेश के छोटे से गाँव माही में रूप सिंह और उसके बड़े भाई भूप सिंह की दिनचर्या उनकी जटिलता को व्यक्त करती है। भूप सिंह का बेटा महीप पहाड़ से नीचे उतरकर देवकुड जाता है। वह वहाँ से सैलानियों को घोड़ों पर बैठाकर स्वयं पंद्रह किलोमीटर पैदल चलकर एक सौ रुपए कमाता है।

यही उसकी दिनचर्या है। भूप सिंह के खेत जब भू-स्खलन में दब जाते हैं तो उसे एक बार फिर मलबा हटाकर नए खेत बनाए जाते है। पानी की समस्चा को खत्म करने के लिए भूप सिंह और उसकी पत्नी शैला पहाड़ के ऊपर दूसरी दिशा में बहते झरने को मोड़कर अपने खेतों की ओर कर लेते हैं। इस प्रकार पर्वतीय जीवन जितना सुगम, सुंदर और सौम्य दिखाई पड़ता है उतना ही कठिन, अटिल, दुखद, संघर्षमय और यीड़ाजन्य है।

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प्रश्न 2.
पर्वतारोहण की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आधुनिक परिवेश में पर्वतारोहण पर्यटन के साथ-साथ जीविकोपार्जन का भी उद्योग बन गया है। आधुनिक जीवन में पर्वतारोहण की प्रासंगिकता अधिक होती जा रही है। अपनी भाग-दौड़ की ज़िंदगी में से कुछ दिन पर्वतीय प्रदेशों में जाकर वहाँ की ज़ंद्गी और सांस्कृतिक परिवेश को निहारने में एक अनूठा अनुभव मिलता है। हिमालय पर्वत सदा से पर्यटकों और सैलानियों के लिए एक जिज्ञासा और कौतूहल का कैंद्र-बिंदु रहा है। यह हमारा सौभाग्य है कि विश्व का सबसे बड़ा पर्वत हिमालय हमारे आस-पास है।

पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का जीवन प्रतिपल संकट और संघर्ष का होता है। भू-सखलन वहाँ प्रतिदिन की घटना है। प्रतिदिन हज्तारों लोगों का जीवन भू-स्खलन के कारण अव्यवस्थित होता रहता है। पर्वतारोहण के माहिर लोग संकट के इस समय में उनकी सहायता कर सकते हैं। पर्वतों की अबूछ चोटियाँ पर्वतारोहियों के लिए जिज्ञासा का केंद्र-बिंदु होती है। प्रत्येक व्यक्ति बरफ़ से ढके ऊँचे शिखरों को देखना चाहता है। उनके नज़दीक पहुँचकर वह उन चोटियों को स्पर्श करना चाहता है।

आधुनिक परिवेश में पर्वतारोहण एक उद्योग बन गया है। प्रतिवर्ष अनेक लोग पर्वतों की खोज में निकल पड़ते हैं। पर्वतों के शिखरों की जीवन-संबंधी जानकारी प्राप्त करना उनके लिए रोमांच पैदा कर देता है। पर्वतों की चोटियों पर पेड़-पौधों और अन्य वनस्पतियों में अनेक प्रकार की औषधियाँ पाई जाती हैं। उनकी खोजबीन करना अपने-आप में एक बड़ा कार्य है इसलिए अपने जीवन को निरोग बना लेने में पर्वतीय क्षेत्रों पर पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों का संचय किया जा सकता है। यह कार्य पर्वतारोही ही अच्छी तरह से कर सकते हैं। वे ऊँची चोटियों पर रहने वाले आम आदमी इन जड़ी-बूटियों के बारे में ठीक से जानकारी दे सकते है। इस प्रकार आधुनिक परिवेश में पर्वतारोहण की प्रासंगिकता निरंतर बनी हुई है।

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प्रश्न 3.
‘पर्वतारोहण’ पर्वतीय प्रदेशों की दिनचया है, वही दिनचर्या आज जीविका का माध्यम बन गई है। उसके गुण-दोष का वियेचन कीजिए।
उत्तर :
पर्वतीय क्षेत्रों में ‘पर्वतारोहण’ आम आदमी की दिनचर्या है। वहाँ रहने वाले लोगों को एक-दूसरे के पास पहुँचने और दैनिक जीवनसंबंधी सामग्री एकत्रित करने के लिए पर्वतों पर चढ़ना और उतरना पड़ता है। वे प्रतिदिन कई किलोमीटर रास्ता तय कर देते हैं। छोटे बच्चों से लेकर बूढ़े बुजुर्गों तक को यह कार्य प्रतिदिन करना पड़ता है। पर्वतीय प्रदेशों में रहने वाले लोगों के शरीर की बनावट पर्वतीय वातावरण के अनुकूल बन जाती है। वे इस काम में पूर्णतः कुशल होते हैं। उनका यही कौशल उनकी जीविका का माध्यम बन गया है।

पर्वतीय प्रदेशों के दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए प्रतिदिन लाखों पर्यटक जाते हैं। वहाँ उन्हें कई बार समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए उन्हें एक अच्छे कोच या गाइड की ज्रूरत होती है। यहाँ ‘कोच’ और ‘गाइड’ की भूमिका वहाँ के स्थानीय निवासी ठीक से निभा पाते हैं। जहाँ मार्ग बहुत दुर्गम होते हैं वहाँ स्थानीय निघासी घोड़ों आदि के साथ कार्य कर सकते हैं।

तंग पगडंडियाँ और सँकरे रास्ते पर्यंटकों को डरा देते है। इन रास्तों पर गुज्रने में यहाँ के स्थानीय निवासी उनकी सहायता कर सकते हैं और सहायता के बद्ले में उन्हें कुछ आर्थिक लाभ भी हो सकता है। इस प्रकार पर्वतीय प्रदेशों की दिनचर्या ‘पर्वतारोहण’ उनकी जीविका का साधन बन सकती है। जीविकोपार्जन का यही कार्य कई बार एक दोष बनकर भी सामने आता है।

वैसे तो पर्वतों पर सारा साल पर्यंटक आते रहते हैं परंतु यह कार्य अधिकतर मौसमी होता है जैसे अत्यधिक गरमी और कहीं बरफ पड़ने के दिनों में पर्यटक पर्वतीय प्रदेशों में ज्यादा आते हैं। इसलिए दूसरे मौसमों में उनकी जौविका का साधन बंद हो जाता है। कई पर्यटकों को कोई दुर्गम स्थान दिखाने के लिए स्थानीय निवासियों को बहुत ही तंग रास्तों में गुज्ररना पड़ता है। इस काम मे उहें अपने प्रापों से भी हाथ धोना पड़ सकता है। इस प्रकार ‘पर्वतारोहण’ एक दिनचर्या है जो जीविका का साधन भी हो सकती है।

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प्रश्न 1.
भूप सिंह और रूप सिंड के स्वभाव और परिस्थितियों के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भूप सिंह और रूप सिंह सगे भाई हैं उनके पिता का नाम राम सिंह था। वे हिमांग पहाड़ के नीचे रहते थे। रूप सिंह गयारह वर्ष पहले अपना गौँव छोड़कर भाग गया था। अब वह पर्वतारोहण संस्थान में चार हबार रुपए प्रतिमाह पर नौकरी करता है। उसे पहाड़ का संघर्षमय जीवन पसंद नहीं है। यहाँ रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्य नहीं हैं। भूप सिंह को अपनी धरती तथा पहाड़ों से प्रेम है। भूस्खलन में अपने मात्ता-पिता, खेती आदि सब कुछ खो देने पर भी भूप अपने गाँव में डटा रहा और धीर-धीरे मलबा हटाकर खेती करने लगा। बाद में शैला से विवाह कर उसका कार्य आसान हो गया तथथा अपनी मेहनत और लगन से उसका जीवन सुखद हो गया।

भूप कर्मठ, परिश्रमी, लगनशील, भावुक, संवेदनशील और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति है। इसके विपरीत रूप सिंह पलायनवादी तथा अस्थिर स्वभाव का व्यकित है। वह ग्यारह वर्ष बाद अपने घर आते हुए लज्जा और झिझक से भरा हुआ है क्योंकि इस बीच उसने कभी भी अपने घरवालों की सुध नहीं ली थी, केवल अपने स्वार्थ में ही लीन रहा था। वह पर्वतारोहण संस्थान में पहाड़ पर चढ़ना सिखाता है, परंतु भूप सिंह के सामने बौना पड़ जाता है और भूप सिंह उसे पूरे धैर्य, आत्मविश्वास, ताकत और कुशलतापूर्वक खीचता हुआ ऊपर चढ़ा जा रहा था। रूपसिंह अपनी प्रेमिका शैला को भी मैझधार में छोड़कर भाग गया था, परंतु भूप सिंह ने उसे अपनी पत्नी बनाकर सहारा दिया था। इस प्रकार दोनों भाइयों के स्वभाव बिलकुल विपरीत हैं, परंतु दोनों में स्नेह बना हुआ है।

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प्रश्न 2.
मैदानी और समतल स्थानों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों का जीवन कैसा होता है ?
उत्तर :
मैदानी और समतल स्थानों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों का जीवन अधिक कठिन और जटिल होता है। यह जीवन अत्यधिक कष्टप्रद, दुखद और अत्यंत संघर्षमय होता है।

प्रश्न 3.
भूप सिंह ने खेतों को क्यों छलवा दिया ?
उत्तर :
भूप सिंह ने खेतों को इसलिए ढलवा दिया ताकि खेतों पर बरफ न जमे और खेती को बरफ़ से कोई नुकसान न हो।

प्रश्न 4.
शेखर और भूप सिंह दोनों स्तब्ध क्यों हो गए ?
उत्तर :
जब भूप सिंह ने बताया कि शैला का एक बेटा पैदा हुआ था जिसका नाम महीप था। जब महीप नौ साल का हुआ तो उसकी माँ ने यहाँ से कूदकर जान दे दी। यह सुनकर शेखर और रूप सिंह दोनों स्तब्ध रह गए।

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प्रश्न 5.
रूप सिंह का कलेजा मुँह को क्यों आ गया ?
उत्तर :
जब भूप सिंह ने भावुक होकर यह बताया कि वह यहाँ अकेला नहीं रहता। यहाँ उसके बाबा, माँ, शैला सब हैं, पर वे सोए पड़े हैं। उसकी घरवाली है। मौत के मुँह से निकले हुए खेत है। पेड़ और झरने हैं। इन पहाड़ों में उसके पुरखों तथा प्रियजनों की आत्मा भटकती है। यह सब देखकर और सुनकर रूप सिंह का कलेजा मुँह को आ गया।

प्रश्न 6.
‘आरोछण’ यात्रा-वृत्तांत का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘आरोहण’ संजीव द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत की भांति लिखी गई एक कहानी है। इस कहानी में यात्राओं के माध्यम से पर्वतीय प्रदेश के जीवन-संघर्ष तथा प्राकृतिक परिवेश को उनकी भावनाओं तथा संवेद्नाओं के माध्यम से चित्रित किया गया है। इसमें पर्वतीय प्रदेश के आपसी संबंधों तथा प्राकृतिक का चित्रांकन बड़ी संजीदगी से हुआ है। मैदानी और समतल स्थानों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों का जीवन अधिक कठिन, जटिल, कष्टप्रद, दुखद तथा संघर्षमय होता है। इस कहानी में इसी का चित्रांकन किया है।

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प्रश्न 7.
पर्वतारोहा के आधार पर पर्वतीय नारी के जीवन की कठिनाइयों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति द्यनीय है उनका अस्तित्व उनके परिश्रम पर टिका हुआ है। गोरी-चिट्टी अति सुंदर रंग-रूप की स्वामिनियाँ जब मधुर स्वर में गाती हैं तो उनका स्वर घाटियों में दूर-दूर तक गूँज उठता है। झरने की तरह कल-कल करता उनका मीठा स्वर आत्मा में भी एक नई जान-सी भर देता है। उनका जीवन परिश्रम से सीधा जुड़ा हुआ है। जब पहाड़ टूटकर गिर गया था, वह धँस गया था तब भूप सिंह पहाड़ के कही नीचे से शैला को अपने साथ अपने घर ले आया था क्योंकि वह बिलकुल अकेला हो गया था।

शैला को कभी रूप सिंह प्रेम करता था। उसके प्रति अभी भी उसके हुदय में प्रेम-भाव छिपा था। स्त्री के प्रति पहाड़ पर पुरुष्षों के हुदय में एकात्म प्रेम-भाव नहीं है। जब शैला गर्भवती थी और उसे कार्य करने में कठिनाई होती थी तो भूप सिंह किसी दूसरी स्त्री को पत्नी बनाकर घर ले आया था और शायद सौत की पीड़ा से बचने के लिए ही शैला ने पहाड़ से कूदकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी। पहाड़ पर स्त्री का जीवन अति कठिन है। जीवनभर उसे अति कठोर परिश्रम करना पड़ता है पर वह सम्मान प्राप्त नहीं कर पाती।

प्रश्न 8.
“भूप सिंह के जीवन-मूल्य हमारे लिए भी प्रेरणा- ख्रोत है” – ‘आरोहण ‘ पाठ के आधार पर सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भूप सिंह एक पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाला एक दृढ़ निश्चयी और परिश्रमी व्यक्ति है। उसका छोटा भाई रूपसिंह ग्यारह वर्ष पूर्व घर से भाग जाता है। पिछले वर्षों यहाँ भू-स्खलन की बड़ी घटना में उसके माता-पिता, पत्नी और खेत सभी कुछ तबाह हो गए थे। उसकी माँ और पिता दोनों मिट्टी में दबकर मर गए थे। उसने अपनी मेहनत से एक बार फिर खेती शुरू की। खेतों से मलबे को हटाया जब उसके खेतों में पानी की समस्या आ गई तो वह अपनी पत्नी शैला के साथ ऊपर दूसरी दिशा में बहते झरने का मुँह अपने खेतों की ओर मोड़ देता है।

ग्यारह वर्ष पूर्व उसका घर नीचे पर्वत की तलहटी में था परंतु अब उसने अपना घर ऊपर पहाड़ पर बनाया था। पहाड़ चढ़ना उसकी दिनचर्या का अंग था। जब शेखर और रूप सिंह पहाड़ पर चढ़ते समय थक जाते हैं तो वह उन दोनों को भी पहाड़ पर चढ़ा देता है। इस प्रकार भूपदादा पहाड़ पर चढ़ने में अत्यंत कुशल व्यक्ति हैं। न केवल पहाड़ पर चढ़ते हैं परंतु अपनी ज़िंदगी रूपी पहाड़ पर उसे अनेक बार चढ़ना पड़ता है। अपनी खेती को नए सिरे से शुरू करना पड़ता है। इस प्रकार भूपदादा एक कर्मठ, मेहनती, परिश्रमी, लगनशील, भावुक, संवेद्नशील और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं।

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निबंधात्मक प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
‘आरोहण’ कहानी की मूल समस्या क्या है ? विवेचना करें।
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी पर्वतीय प्रदेशों में रहने वाले निवासियों के जीवन की संघर्षमय गाथा है। पर्वतीय प्रदेशों का जीवन अत्यंत जटिल एवं कठिन होता है। वहाँ प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है। वहाँ भौगोलिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियाँ निरंतर बदलती रहती हैं। भू-स्खलन जैसी समस्याएँ वहाँ रोज्जमरी की कहानी है। कहानी का प्रमुख्ड पात्र रूप सिंह ग्यारह वर्ष पहले गाँव ‘माही’ से भागकर पर्वतारोहण संस्थान में नौकरी करने लगा है।

वह ग्यारह वर्ष पश्चात अपने गाँव को देखने और वहाँ रहने वाले अपने सगे-संबंधियों से मिलने आता है। ग्यारह वर्ष पहले भी गाँव जानेवाली सड़क कच्ची थी, अब भी है। वह एक किशोर के घोड़ों पर सवार होकर अपने मित्र शेखर के साथ पंद्रह किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर गाँव पहुँचता है। वहाँ के स्थानीय लोगों से अपने घर का पता पूछता है। जब वह घर से भागा था उस समय उसका घर पर्वत की तलहटी में था परंतु अब उसका भाई भूप सिंह पहाड़ की चोटी पर रहता है। वह भूप सिंह को पहचान जाता है।

भूप सिंह उसे घर ले जाता है। बातों-बातों में भूप सिंह भावुक होकर रूप सिंह और उसके मित्र शेखर को बताता है कि एक दिन इतना जोरदार भू-स्खलन हुआ कि माँ, पिताजी, पत्नी शैला और उसके खेत मलबे में दब गए थे। उसने एक बार फिर खेती को शुरू किया। माँ, पिता जी, शैला और खेतों के दब जाने का दर्द उसके आँसुओं में उभर आता है। उसकी आँखें अब डबडबा जाती हैं। भू-स्खलन के कारण जान-माल की हानि पर्वतीय प्रदेशों में प्रतिदिन की कहानी है। इसी समस्या को उजागर करना इस कहानी की मूल समस्या है।

Class 12 Hindi Antral Chapter 2 Question Answer आरोहण

प्रश्न 2.
‘आरोहण’ कहानी की भाषा-शैली की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी को एक आंचलिक कहानी भी कहा जा सकता है। पर्वतीय प्रदेशों में रहने वाले निवासियों की जीवन-शैली को इस कहानी की मूल विषय-वस्तु बनाया गया है। आपसी संबंधों सांस्कृतिक दिनचर्या संघर्ष, पीड़ा और आत्मीय रिश्ते-नाते कहानी में बार-बार व्यक्त किए गए हैं। इन सभी बातों को व्यक्त करने के लिए पात्रों की आपसी बातचीत का व्यापक वर्णन किया गया है। पात्रों की बोलचाल अधिकतर स्थानीय भाषा में व्यक्त की गई है। आम बोलचाल के शब्दों की अधिकता कहानी में आंचलिकता का पुट भर देती है।

जब रूप सिंह गाँव में पहुँचकर एक बूढ़े तिरलोक से कहता है कि मैँ रूप सिंह हूँ तो उत्तर में बूढ़ा कहता है, “लेकिन रूप तो भौत पहली भागी गई छाई” अर्थात रूप तो बहुत पहले ही भाग गया था। लेखक ने भाषा को आंचलिक शब्दों के माध्यम से स्वाभाविकता प्रदान की है। आंचलिक और तद्भव शब्दों ने भाषा में रवानी और अपनत्व प्रदान किया है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भाषा में बाधक नहीं है। लेखन शैली अत्यंत रोचक है। पाठक उन प्रसंगों को बार-बार पढ़ता है जिनमें लोक की भाषा अत्यंत रोचक एवं सारणर्भित है।

Class 12 Hindi Antral Chapter 2 Question Answer आरोहण

प्रश्न 3.
‘पहाड़ों में जीवन-संघर्ष’ विषय पर एक लघु लेख लिखिए।
उत्तर :
यदि भौगोलिक दृष्टि से देखें तो संपूर्ण विश्व में अनेक विविधताएँ हैं, कहीं पर गहरी घाटियाँ, कहीं ऊँचे पर्वत, कहीं पर दूर तक फैला मरुस्थल है, कहीं खुले हरे-भर मैदान हैं, कहीं दलदल है और कहीं दूर तक फैला समुद्र। इसी विविधता में पर्वतीय क्षेत्र अपनी सुंदरता और सौम्यता के कारण सदैव व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करते रहे है। प्रस्तुत पाठ ‘आरोहण’ एक कहानी के रूप में लिया गया है। यह कहानी पर्वतीय जीवन के संघर्षों और पीड़ाओं को व्यक्त करती है। पर्वतारोहण अब पाढ्यक्रमों में स्थान पा चुका है।

विद्यार्थियों में अब पर्वतारोहण के प्रति रुचि बढ़ रही है। गरमियों और सरियों के दिनों में स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों से अनेक विद्यार्थीं पर्वतारोहण के लिए पर्वतीय प्रदेशों की यात्रा करते हैं। वहाँ के स्थानीय निवासी वहाँ आए इन विद्यार्थियों और पर्यंटकों के लिए ‘गाइड’ अथवा ‘कोच’ का कार्य करते हैं। वे बेहतर तरीके से पर्यटकों को वहाँ की संस्कृति और सभ्यता के बारे में बता सकते हैं। पर्वतीय प्रदेश निचले एवं समतल इलाकों के लोगों के लिए रोमांचित कर देने वाले रहे हैं। लोग वहाँ जाकर प्राकृतिक परिवेश के प्रति अभिभूत हो जाते हैं। वे अपनी भाग-दौड़ की जिंदगी में थोड़ा सकून प्राप्त करते हैं।

पर्वतीय जीवन जितना सुंदर एवं सौम्य लगता है उतना ही जटिल एवं कठिन भी है। वहाँ के निवासियों को कई-कई किलोमीटर रोज्ञ पैदल – टेढ़े-मेढ़े पथरीले रास्तों से गुज्तरना पड़ता है। वहाँ प्रतिदिन होनेवाले भू-सखलन के कारण लोगों का जीना दूभर हो जाता है। उनके अपने मकान और संबंधी उनसे बिछुड़ जाते हैं। उन्हें एक बार फिर नया घर बनाना पड़ता है। खेत मिद्टी और मलबे से भर जाते हैं। खेती न होने के कारण उन्हें अपना पेट भरना भी मुश्किल हो जाता है। बरफ जमने से उनकी दिनचर्या लगभग बंद हो जाती है।

वे अपने घरों में बंद रहने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते। दस-द्स दिन तक उन्हें घरों में ही बिताने पड़ते हैं। अत्यधिक बारिश के कारण पगडंडियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं। रास्ते असुराभित हो जाते हैं। खाने-पीने की चीर्जों की लगातार कमी हो जाती है। उनकी ज्ञिंदगी दूसरों पर आश्रित हो जाती है। पर्वतीय प्रदेश के छोटे-से गाँव माही में रूप सिंह और उसके बड़े भाई भूप सिंह की दिनचर्या उनकी जटिलता को व्यक्त करती है। भूप सिंह का बेटा महीप पहाड़ से नीचे उतरकर देवकुंड जाता है।

वह वहाँ सैलानियों को घोड़ों पर बैठाकर स्वयं पंद्रह किलोमीटर का पैदल चलकर एक सौ रुपए कमाता है। यही उसकी दिनचर्या है। भूप सिंह के खेत जब भू-स्खलन में द्ब जाते हैं तो एक बार फिर मलबा हटाकर नए खेत्त बनाए जाते हैं। पानी की समस्या को खत्म करने के लिए भूप सिंह और उसकी पत्नी शैला पहाड़ के ऊपर दूसरी दिशा में बहते झरने को मोड़कर अपने खेतों की ओर कर लेते हैं। इस प्रकार पर्वतीय जीवन जितना सुगम, सुंदर और सौम्य दिखाई पड़ता है उतना ही कठिन, जटिल, दुखद, संघर्षमय और पीड़ाजन्य है।