In this post, we have given Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Summary, Surdas Ki Jhopdi Summary. This Hindi Antral Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.

सूरदास की झोंपड़ी Summary – Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Summary

पाठ का सार :

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास ‘रंगभूमि’ एक चार्चित रचना है। ‘सूरदास की झोंपड़ी’ पाठ इसी उपन्यास का अंश-मात्र है। उपन्यास का नायक सूरदास एक दृष्टिहीन व्यक्ति है। जिस प्रकार एक लाचार और बेबस व्यक्ति अपने-आप से और समाज से दुखी होता है, सूरदास का चरित्र ठीक इसके विपरीत है। यह प्रवृत्ति सूरदास में बिलकुल भी नहीं है। वह विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला भी दृढ़ निश्चय और उत्साह के साथ करता है।

रात-के दो बजे अचानक सूरदास की झोपड़ी धू-धू करके जलने लगी। लोग अपने-अपने घरों के बाहर सो रहे थे। देखते-ही-देखते वहाँ आस-पास के लोग एकत्रित हो गए। आग की लपटें आसमान की ओर ऊँची उठ रही थीं। लोगों ने पानी ला-लाकर आग बुझाने का प्रयास किया चूँक भैरों ने यह आग सूरदास से बदला लेने और ईर्ष्या के कारण लगाई थी इसलिए लेखक कहते हैं कि आग बुझ़ाने का प्रयत किया जा रहा था पर झोपड़े की आग ईष्य्या की आग की भाँते बुझ नहीं रही थी।

सूरदास यह जानते हुए भी कि भैरों ने ही उसकी झोपड़ी में आग लगाई है किसी पर इलज़ाम नहीं लगाता। उसे तो बस वही पोटली चाहिए जिसमें उसके चाँदी के पाँच सौ से अधिक रुपए जमा थे। जब सभी लोग अपने-अपने घर चले गए तो वह जली झोंपड़ी की राख को अपनी मुट्ठियों में भरकर देखता है कहीं उसकी चाँदी के रुपयों से भरी पोटली मिल जाए परंतु उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता।

जगधर के पूछने पर कि तूने ही सूरदास की झोंपड़ी में आग लगाई है भैरों मान जाता है कि मैने ही दियासिलाई से सूरदास की झोपड़ी में आग लगाई है और साथ ही चाँदी के रुपयों से भरी पोटली भी मेरे पास है। जगधर को यह बात बिलकुल भी पसंद नहीं आती कि भैरों के पास इतने रुपए हों। पहले वह कोशिश करता है कि पाँच सौ में से आधे रुपए भैरों उसे दे दे, परंतु भैरों इस बात पर राजी नहीं हुआ। इसलिए वह सूरदास को बता देता है कि तेर रुपयों की पोटली भैरों के पास है।

उसने झोंपड़ी से रुपए चुराकर झोपड़ी में आग लगा दी है। सूरदास को इस बात का दुख नहीं था कि उसका घर जल गया है या बरतन आदि जल गए हैं बस उसे दुख था तो केवल चाँदी के पाँच सौ रुपयों से भरी पोटली के खो जाने का। यह उसके जीवनभर की कमाई थी। यह उसके पूर्वजों और उसके द्वारा संचित राशि थी। वह सोचता है कि वह इन रुपयों को अपने पितरों का पिंडदान करने के लिए खर्च कर सकता था अथवा अपने बेटे मितुआ की सगाई ही कर देता। परंतु वह कुछ भी नहीं कर सका।

जगधर के यह कहने पर भी कि तेरे रुपयों की पोटली भैरों के पास है सूरदास कोई प्रतिक्रिया नहीं करता। भैरों ने सूरदास की झोंपड़ी में आग इसलिए लगाई थी क्योंकि भैरों जब अपनी पत्ली सुभागी को पीटता था तो वह सूरदास के यहाँ रहने लगती थी। लोग भैरों को बुरा-भला कहा करते थे। जगधर भी मन-ही-मन सुभागी को चाहता है, परंतु सुभागी जगधर से ईष्ष्या करती है, क्योंकि उसका मानना है कि जगधर एक बुरा आदमी है।

जब सुभागी को यह पता चलता है कि सूरदास के रुपए भैरों ने चुराए हैं तो वह यह प्रण लेती है कि भैरों चाहे उसे मारे या घर से निकाले वह सूरदास के रुपए भैरों से वापस लेकर रहेगी। सूरदास अब पूर्णात: निराशा, ग्लानि, चिंता और गुस्से के अपार जल में डूबा हुआ था। उसकी आँखों में आँसू थे। वह फूट-फूटकर रोने लगा। अचानक उसे लगा कि कोई उसका हाथ पकड़कर उसे खड़ा कर देता है और वह खड़ा होकर यह निश्चय करता है कि जीवन का खेल हैंसने के लिए है रोने के लिए नहीं।

उसे लगा जैसे उसकी जीत हो गई है। वह अपने दोनों हाथों में राख भर-भरकर उड़ाने लगा। एक क्षण बाद मिटुआ, घीसू और मुहल्ले के बीसों लड़कों के समूह ने इस राख के डेर को घेर लिया और वे उससे प्रश्न-के बाद-प्रश्न करने लगे। सभी राख को हवा में उछालने लगे। वहाँ राख की वर्षा होने लगी। सारी राख बिखर गई। अब जमीन पर केवल काला निशान रह गया था। मिटुआ ने सूरदास से पूछा, “दादा, अब हम रहेंगे कहाँ ?” सूरदास कहता है, “दूसरा घर बनाएँगे।” “अगर फिर आग लगा दी तो ?” मितुआ के प्रश्न का उत्तर देते हुए में सूरदास कहता है, “और फिर बनाएँगे। हज़ार से लाख बार भी किसी ने आग लगा दी तो ” सूरदास दुढ़ निश्चयी होकर कहता है- “तो हम भी लाख बार झोंपड़ी बनाएँगे।”

Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Summary - Surdas Ki Jhopdi Summary

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • अकस्मात – अचानक
  • ज्वालाएँ – आग की लपटें
  • प्रतिबिंब – परछाई
  • चितारिन – चिता की आग
  • बुराई – खोट, दोष
  • यातना – पीड़ा, कष्ट
  • तस्कीन – दिलासा, सांत्वना
  • अधीरता – बेचैनी
  • सुभा – अंदेसा, शक
  • उत्सुक – जानने की इच्छा
  • वल्लम टेर – लुटेरा, गुंडा, बदमाश
  • आबरू – इज्ज्जित, मान
  • संचय – जमा, एकत्र
  • उद्दिष्ट – निर्धारित
  • बालोचित – बालक मन जैसी
  • द्वार – दरवाज़ा
  • कलश – घड़ा
  • नैराश्य – निराशा
  • नाहक – वैसे ही, अकारण
  • धरन – धरती
  • संच्चित – एकत्रित
  • भूबल – ऊपर राख नीचे आग
  • अभिलाषा – इच्छा
  • अदावत – दुश्मनी
  • जरीबाना – ज़ुर्माना, दंड
  • मसक्कत – मेहनत, परिश्रम
  • टेनी मारना – कम तोलना
  • झाँसा देना – धोखा देना
  • भस्म – राख का ढेर