Refer to the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

Class 12 Hindi Chapter 1 Question Answer Antral सूरदास की झोंपड़ी

प्रश्न 1.
‘चूल्दा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता ?’ के आधार पर सूरदास की मनःस्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सूरदास एक दृष्टिहीन व्यक्ति है। वह अपने जीवन से संतुष्ट है। वह भीख माँगता है और भीख माँगकर उसने लगभग पाँच सौ से कुछ अधिक रुपए जमा कर लिए हैं। वह इन पाँच सौ रुपयों को एक पोटली में रखता है। ये रुपए चाँदी के सिक्के हैं। वह दूसरों के प्रति सदा दया-भाव तथा सहानुभूति रखता है। गाँव में भैरों नामक एक व्यक्ति भी रहता है जो सूरदास से ईष्या करता है। जब भैरों अपनी पली सुभागी को पीटता है तो वह भागकर सूरदास की झोपड़ी में छिप जाती है।

गाँव के लोग सुभागी के सूरदास से अनैतिक संबंधों के बारे में धठा प्रचार करते हैं। इसी कारण भैरों सूरदास से जलता है, वह उसकी झोपड़ी को तो जला ही देता है साथ ही उसके चाँदी के पाँच सौ से अधिक रुपयों की पोटली भी चुरा लेता है। जब सूरदास की झोपड़ी धू-ध करके जलती है तो आस-पास के रहने वाले लोग एकत्रित हो जाते हैं। सभी लोग झौपड़ी जलने पर दुख व्यक्त करते हैं।

लोगों को भी इस बात का पता है कि भैरों सूरदास से ईईर्ष्या करता है इसलिए जब जगधर सूरदास से पूछता है कि क्या आज चूल्हा ठंडा नहीं किया था ? तो नायकराम नामक व्यक्ति कहता है, “चूलहा ठंडा किया होता तो, दुशमनों का कलेजा कैसे ठंडा होता ?” जब आग बुझ गई तो सभी लोग अपने-अपने घर चले गए और सूरदास वहीं बैठकर आग के ठंडी होने का इंतब्वार करने लगा।

उसे इस बात का दुख नहीं था कि उसकी झौपड़ी जलकर राख हो गई बल्कि उसके मन में इस बात का दुख था कि कही वह पोटली भी न जल गई हो जिसमें उसकी उम्रभर की कमाई थी। उस पोटली को वह अपने पूर्वजों तथा उसके द्वारा संचित कोष मानता था। यही पोटली उसके लोक-परलोक और दीन-दुनिया में आशा का दीपक थी। इस प्रकार पोटली के खो जाने या जल जाने का भय सूरदास को दुछी कर रहा था।

Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Question Answer सूरदास की झोंपड़ी

प्रश्न 2.
भैरों ने सूरदास की झोंडड़ी क्यों जलाई ?
अथवा
सूरवास किसकी ईष्यां का शिकार हुआ था? ईंर्या का कारण क्या था?
उत्तर :
भैरों सूरदास के पड़ोस में रहने वाला एक ईंप्यालु व्यक्ति है। अपनी पत्नी सुभागी के साथ सदा उसकी अनबन रहती है। इसी बात को लेकर वह सदा सुभागी को पीटता रहता है। सुभागी भैरों की मार से बचने के लिए सूरदास की झोंपड़ी में छिप जाती है तथा कुछ समय के लिए सूरदास की झोपड़ी में ही रहने लगती है। सूरदास की झोंपड़ी में रहने के कारण भैरों सूरदास और सुभागी दोनों से नफ़रत करता है। गाँव के लोग भैरों को यह भी बताते हैं कि सूरदास और सुभागी के अनैतिक संबंध भी हैं।

इसलिए भैरों सूरदास से बदला लेना चाहता है। वह न केवल सूरदास की झोंपड़ी में आग लगा देता है, साथ ही उसके पाँच सी से अंििक चाँदी के सिक्कों की पोटली को भी चुरा लेता है। जब जगधर भैरों से यह पूछता है कि तुझे झोपड़ी जलाने से क्या मिला तो उत्तर में भैरों स्पष्ट कहता है- यह सुभागी को बहका ले जाने का जरीबाना (जुर्माना) है।” भैरों को लगता है कि सूरदास की झोंचड़ी जलाकर उसके दिल की आग ठंडी हो गई है। क्योंकि सूरदास ने मेरी आबरू बिगाड़ दी है, इसलिए मैने उसकी झोंपड़ी जलाकर कोई पाप नहीं किया है। इस प्रकार भैरों ने अपनी पत्नी सुभागी और सूरदास के अनैतिक संबंधों के शक के कारण सूरदास की झोंपड़ी जलाई।

प्रश्न 3.
‘यह फूस की राख नही, उसकी अभिलाषाओं की राख थी’ संद्भ सहित विवेचना कीजिए।
उत्तर :
सूरदास एक दृष्टिहीन और संघर्षशील व्यक्ति है। वह सारी उम्र एक झोंपड़ी में रहता है। वह भीख माँगकर अपने परिवार का पेट पालता और भीख के पैसों में से कुछ पैसे जमा करता रहता था। इसी कमाई से उसके पास लगभग पाँच सौ से अधिक चाँदी के रुपए एकत्रित हो गए थे। उसका पड़ोसी भैरों उससे नफ़रत करता है, क्योंकि जब वह अपनी पत्नी सुभागी को पीटता है तो सुभागी भागकर सूरदास की झोपड़ी में छ्छिप जाती है। सूरदास सदा उसकी रक्षा करता है। यही बात भैरों को बुरी लगती है।

साथ में गाँव के लोग भी यह बात फैला देते हैं कि सुभागी और सूरदास के आपस में अनैतिक संबंध हैं। इसी बात से जल-भुनकर भैरों सूरदास की झोपड़ी में आग लगा देता है। जब झोंपड़ी जलकर राख हो गई तो सूरदास उस राख को मुट्ठियों में भर-भर यह पता लगाने की कोशिश करता है कि मेरी चाँदी के रुपयों से भरी पोटली कहाँ है। उसे लगता है कि अगर पोटली जल भी गई तो चाँदी तो मिल ही जाएगी। इसलिए वह सारी राख को छान मारता है।

कभी उसके हाथ में कोई बरतन आ जाता कभी कोई इंट का टुकड़ा। वह इस राख को इस प्रकार टटोल रहा था जैसे कोई पानी में मछलियाँ टटोल रहा हो। जब उसके हाथ पोटली न लगी तो वह निराश और बेचैन हो गया। अचानक उसका पैर फिसल गया और वह नीचे गिर गया उसके मुख से सहसा चीख निकली। वह वहीं राख पर बैठकर रोने लगा। अपनी बेबसी का इतना बड़ा दुख उसे पहले कभी नहीं हुआ था। इसी संदर्भ में लेखक कहते हैं, “‘ यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।”

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प्रश्न 4.
जगधर के मन में किस तरह का ईष्य्या-भाव जगा और लगों ?
उत्तर :
जगधर को पूर्ण विश्वास था कि सूरदास की झोंपड़ी भैरों ने ही जलाई है। यही सोचकर वह सीधा भैरों के पास गया। वह भैरों से कहता है कि लोग तुम्हारे ऊपर शक कर रहे हैं। पहले तो भैरों आग लगाने की बात नहीं मानता, परंतु जगधर के सामने वह मानता हैं कि मँने ही दियासिलाई से सूरदास की झोपड़ी जलाई है। वह जगधर को वह थैली भी दिखाता है, जिसमें रुपए भरे हुए थे। जगधर के मन में भी आया कि भैरों आधे रुपए उसे दे दे। पहले तो वह भैरों को समझाता है कि वह उसके रुपए वापस कर दे, परंतु भैरों यह बात मानने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था।

इसलिए जगधर भैरों को पुलिस की मार के बारे में बताता है और वह यह भी कहता है कि गरीब की हाय बड़ी जानलेवा होती है। इस बात का भी भैरों पर कोई असर नहीं होता। फलस्वरूप जगधर की छाती पर साँप लोटने लगा। वह मन-ही-मन यह सोचने लगा कि भैरों के पास भी अब उससे अधिक रुपए जमा हो गए हैं। अब वह ऐश की जिंदगी व्यतीत करेगा। मौज्ता उड़ाएगा। वह अपने बारे में भी सोचता है कि में कौन दिनभर पुन्न का काम करता है ? दमड़ी-छादाम-कौड़ियों के लिए टेनी मारता हूँ।

बाट खोटे रखता हूँ। तेल की मिठाई घी की कहकर बेचता हूँ। वह यह काम करने के पीछे अपनी मजबूरी मानता है। वह मन-ही-मन एक बार यह भी कल्पना करता है कि काश । ऐसा ही कोई माल उसके हाथ भी पड़ जाए तो जिंदगी सफल हो जाए। वह भैरों के अमीर होने की बात को लेकर जल रहा था। इसलिए उसके मन में ईर्ष्या का बीज अंकुरित हो गया। वह सूरदास के पास जाता है और उसे यह बताता है कि उसके रुपयों की थैली भैरों ने चुरा ली है।

प्रश्न 5.
सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था ?
उत्तर :
सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त इसलिए रखना चाहता था, क्योंकि वह नर्हीं चाहता कि लोग यह मानने लगें कि अंधे और भिखारी भी धन संचय कर सकते हैं। अंधे भिखारी के लिए दरिट्रता लग्जा की बात नही, बलिक धन संचय लज्जा की बात है। सूरदास चाहता था कि धन संचय करके वह गया जाकर पितरों के पिंडदान करना चाहता था, मिहुआ का ब्याह करना चाहता था, कुआँ बनवाना चाहता था।

वह लोगों को यह अहसास करवाना चाहता था कि गरीबों की सहायता ईश्वर अपने आप करता है। उसका मानना था कि अगर भिखारी धन संचय करता है तो वह पाप संचय करता है अर्थात भिखारी अगर पैसा एकत्रित करता है तो पापी कहलाता है। इसलिए वह जगधर को यह विश्वास दिलाना चाहता है कि मेरे पास रुपए ही नहीं थे अर्थात सूरदास अपनी आर्थिक हानि को जगधर के साथ-साथ अन्य लोगों से भी गुप्त रखना चाहता था।

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प्रश्न 6.
‘सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा’। इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
अथवा
‘रेल में रोना कैसा ? खेल हैसने के लिए, दिल बहलाने के लिए, रोने के लिए नहीं’। इस कथन के आलोक में सूरदास का चरित्रचित्रण कीजिए।
उत्तर :
सूरदास की झोंपड़ी भैरों ने जलाकर राख कर दी थी। वह सारी रात झोंपड़ी की राख को मुट्टियों में लेकर छानता रहा, परंतु चाँदी के सिक्कों की पोटली उसे कहीं नहीं मिली। जगधर उसे यकीन दिलाता है कि तुम्हारी झोंपड़ी भैरों ने जलाई और रुपयों की पोटली भी उसी के पास है। चूँकि सूरदास भिखारी के पास धन संचय को पाप मानता है इसलिए वह जगधर को अपने पास रुपए होने का अहसास नहीं होने देता, परंतु उसे यह दुख है कि उसके जीवनभर की संचित राशि अब उसके पास नहीं है।

वह इन पैसों से गया जाकर अपने पूर्वजों के पिंडदान करना चाहता था, एक कुआँ बनवाना चाहता था और वह इन्हीं पैसों से मितुआ का विवाह करना भी चाहता था। इस प्रकार रुपए चोरी होने से उसकी सारी अभिलाषाएँ राख हो चुकी थी। उसका मन निराशा और पीड़ा से भर गया था। वह अपने निराश मन को दिलासा देता हुआ सोचता है कि ये रुपए मेरे थे ही नही। शायद पिछले जन्म में मैंने भैरों के रुपए चोरी किए होंगे। यह उसी का दंड है। सुभागी के साथ अनैतिक संबंध का कलंक भी सिर पर लग गया था।

वह मन-ही-मन पछताता है कि धन गया, घर गया, आबरू गई, थोड़ी-बहुत ज्वमीन बची हुई है वह भी न जाने कब चली जाएगी। वह अपने अंधेपन को एक बड़ा दुख मानता हुआ परमात्मा से कहता है, “अंधापन ही क्या थोड़ी विपत है कि नित ही एक-न-एक चपत पड़ती रहती है। जिसके जी में आता है, चार खोटी-खरी सुना देता है।’ वह इसी दुख के कारण पूरी तरह से टूट चुका है। इन्हीं दुखजन्य विचारों में खोकर वह फूट-फूटकर रोने लगा। अचानक उसे लगा कि जैसे घीसू मिटुआ के साथ खेलते हुए पूछता है, “तुम खेल में रोते हो।”

मिठुआ रोता हुआ घर की ओर चला आ रहा था। सूरदास निराश, हताश और चिंतायुक्त वातावरण में डूबा हुआ था उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसका हाथ पकड़कर खड़ा करते हुए कह रहा हो, “सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं, बाज्री पर बाज़ी हारते हैं, चोट-पर-चोट खाते है, धक्के सहते हैं पर मैदान में डटे रहते हैं, उनकी त्योरियों पर बल नहीं पड़ते। हिम्मत उनका साथ नहीं छोड़ती, खेल हैंसने के लिए है, दिल बहलाने के लिए है, रोने के लिए नहीं” यही सुनकर सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।

Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Question Answer सूरदास की झोंपड़ी

प्रश्न 7.
‘तो हम सौ लाख बार बनाएँगे’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।
उत्तर :
झोपड़ी के जल जाने और रुपयों की पोटली के खो जाने के कारण हताश, निराश सूरदास में एक अजीब शबित अर उत्साह का संचार होता है। वह उठ खड़ा होता है अपने दोनों हार्थों से राख के छेर को ऊपर उड़ाने लगता है तभी वहाँ घीस और मिठुआ के साथ लगभग बीस लड़के आकर सूरदास के साथ राख को उड़ाने लगते है। वे सादास से अनेक प्रश्न करते हैं। वहाँ राख की वर्षा होने लगी। सारी राख इषर-ठधर बिखर गई। भूमि पर अय केवल काला निशान खह गया था। इसी समय मिठुआ सरदास से पूछता है, “दादा, अब हम रहेंगे कहाँ ?” सूरदास उत्तर देता है, “दूसरा घर बनाएँगे।”

अगर फिर किसी मे आग लगा दी तो मिहुआ के प्रश्न का उत्तर देते हुए सूरदास कहता है,” तो फिर घर बनाएँगे।” “हच्तार के बाद सौ लाख बार अगर हमाया घर जला दिया तो मितुआ के इस प्रश्न के उत्तर में सूरदास का दुढ निश्चय बोल उठता है, “तो हम भी सौ लाख बार बनाएँगे।” इस वाक्य में सूरदास के चरित्र की महत्वपूर्ण विशेषता व्यक्त होती है कि वह दृढ निश्चय और पक्के इरादे का व्यक्ति है। वह परिश्रमी, भावुक संवेदनशील और हठी स्वभाव का व्यक्ति है।

योगयता-विस्तार –

प्रश्न 1.
इस पाठ का नाद्य रूपांतर कर उसकी प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Question Answer सूरदास की झोंपड़ी

प्रश्न 2.
प्रेमचंद के उपन्यास ‘रंगभूमि’ का संभिप्ति संस्करण पकिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

प्रश्न 1.
सूरदास का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
सूरदास मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित महान उपन्यास ‘रंगभूमि’ का नायक है। इसी उपन्यास के एक अंश को ‘अंतराल’ पार्यपुस्तक में ‘सूरदास की झोंपड़ी’ के नाम से संकलित किया गया है। सूरदास दृष्टिहीन और गरीब है। वह सारी जिंदगी भीख माँगकर जीवनयापन करता है। उसने भीख माँगकर कुछ पूँजी एकत्रित की है जिसे वह एक पोटली में रखता है। उसका पड़ोसी भैरों सदा अपनी पत्नी को मारता है।

उसकी प्नी मार से बचने के लिए सूरदास की झोंपड़ी में आश्रय लेती है। गाँव के लोग और भैरों को लगता है कि सूरदास और उसकी पत्नी सुभागी के अनैतिक संबंध हैं, इसलिए भैरों सूरदास की झोंपड़ी में आग लगा देता है। सूरदास भावुक और संबेदनशील है। जब उसकी झोंपड़ी जलकर राख हो जाती है तो वह उसकी राख के ढेर पर बैठकर फूट-फूटकर रोता है। सूरदास बहुत परिश्रमी है। वह सारी उत्र भीख माँगकर पेट भरता है। अँंे होते हुए भी वह मेहनत करता है।

अपने लिए वह लगभग पाँच सौ रुपए की पूँजी भी जमा कर लेता है। वह दृढ़ निश्चयी भी है। वह राख के ढेर को अपनी मुट्ठियों में भरकर यह पता करना चाहता है कि कहीं इसी राख के ढेर में मेरे रुपयों की पोटली तो नहीं है। चाँदी के सिक्कों की पोटली को वह सारी रात राख में दूँढ़ता रहता है। जब मिठुआ उससे यह पूछ्छता है कि अब हम कहाँ रहेंगे तो वह नई झोपड़ी बनाने की बात कहता है। मितुआ का यह पूछना की किसी ने अगर हज़ार-लाख बार हमारी झोंपड़ी जली दी तो वह भी हज्ञार-लाख बार झोपड़ी बनाएगा। इस प्रकार सूरदास परिश्रमी, मेहनती, भावुक, संवेदनशील एवं दृढ़ निश्चयी व्यक्ति है।

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प्रश्न 2.
सूरदास की झोंपड़ी में आग लगने के दृश्य का संक्षिप्त वर्णन करते हुए बताइए कि अधिकांश लोग उस अगिन-दाह को ऐसे क्यों देख रहे थे मानो किसी मित्र की च्चिंतागिन्न है ?
उत्तर :
रात के दो बजे अचानक सूरदास की झोपड़ी धू-धू करके जलने लगी थी। उस समय लोग अपने-अपने घरों में सो रहे थे। आग लगने का शोर सुनते ही लोगों की भीड़ वहाँ जमा हो गई। आग की लपटें आसमान चूम रही थीं। आग की ज्वालाएँ कभी मंदिर के स्वर्णकलश की तरह तो कभी आसमान में छाई हुई लालिमा के समान लग रही थीं। लोगों ने पानी ला-लाकर आग बुझाने का प्रयास किया परंतु आग कानू में नहीं आ रही थी। वहाँ उपस्थित जनसमूह में से अधिकांश इस अगिदाह को ऐसे देख रहे थे मानो उनके किसी मित्र की चिता में अगिन लगा दी गई हो। अंधे सूरदास की झोंपड़ी को इस प्रकार जला दिया जाना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि सभी लोगों के प्रति सूरदास का व्यवहार अच्छा था। दूसरे वह अंधा था। अब उसका क्या होगा ? इस कारण भी अधिकांश लोगों की सहानुभूति उसके साथ थी।

प्रश्न 3.
सूरदास की झोपड़ी को आग लगा देने पर भैरों के दिल की वह कौन-सी आग थी जो ठंडी हो गई ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भैरों सूरदास के पड़ोस में रहता था। उसमें सूरददास के प्रति ईष्ष्या की भावना थी। उसकी सदा अपनी पत्नी सुभागी के साथ अनबन रहती थी। इसी बात को लेकर वह सदा सुभागी की पीटता रहता था। सुभागी भैरों की मार से बचने के लिए सूरदास की झोपड़ी में छिप जाती थी तथा कुछ समय के लिए सूरदास की झोंपड़ी में ही रहने लगती थी। सूरदास की झोंपड़ी में रहने के कारण भैरों सूरदास और सुभागी दोनों से नफ़रत करता था। गाँव के लोग भैरों को यह भी बताते थे कि सूरदास और सुभागी के अनैतिक संबंध भी थे। इसलिए भैरों सूरदास से बदला लेना चाहता था।

उसने न केवल सूरदास की कोंपड़ी में आग लगा दी थी, साथ ही उसके पाँच सौ से अधिक चाँदी के सिक्कों की पोटली को भी चुरा लिया था। जब जगधर ने भैरों से यह पूछ्ा कि तुझे झोंपड़ी जलाने से क्या मिला तो उत्तर में भैरों ने स्पष्ट कहा था-वह सुभागी को बहका ले जाने का जरीबाना (जुर्माना) है। भैरों को लगता था कि सूरदास की झोंपड़ी जलाकर उसके दिल की आग ठंडी हो गई थी। क्योंकि सूरदास ने उसकी आबरू बिगाड़ दी थी, इसलिए उसने उसकी झोपड़ी जलाकर कोई पाप नहीं किया था। इस प्रकार भैरों ने अपनी पत्ली सुभागी और सूरदास के अनैतिक संबंधों के शक के कारण सूरदास की झोंपड़ी जलाई थी।

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प्रश्न 4.
सूरदास की झोंपड़ी में आग किसने लगाई, यह जानने को जगधर क्यों बेचैन था ? झोंपड़ी जल जाने पर भी सूरदास का किसी से प्रतिशोध न लेना क्या इंगित करता है ?
उत्तर :
जगधर सूरदास की झोंपड़ी में आग लगाने वाले के संबंध में जानना चाहता था। वह यह सोच-सोचकर बेचैन हो रहा था कि ऐसे अंधे तथा अपने में ही मस्त रहने वाले व्यक्ति के घर में कोई आग क्यों लगाएगा ? जब उसे पता चला कि भैरों ने आग लगाई है और उसने सूरदास की झोंपड़ी से उसके बचाए हुए पाँच सौ रुपए की पोटली भी चुरा ली है तो वह सूरदास को बता देता है कि भैरों ने उसकी झोंपड़ी में आग लगाई है तथा उसके रुपए भी चुरा लिए हैं। सूरदास यह सब जानकर भी किसी पर इलजाम नहीं लगाता। वह अपनी आर्थिक हानि की बात भी गुप्त रखना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि लोग यह मानने लंगें कि अंधा भिखारी भी धन-संचय कर सकता है। उसे ऐसा करना पाप संचय करना लगता है।

प्रश्न 5.
‘सूरदास की झोंपड़ी’ कहानी आपको क्यों फ्रिया है ? कारण लिखिए।
उत्तर :
‘सूरदास की झोपड़ी’ कहानी हमें इससिए फिय है क्योंकि इस कहानी में एक दृष्टिहीन व्यकित सूरदास द्वारा जीवन में आनेवाली विपरीत परिस्थितियों का सामना दृद़ निश्वयु एवं उत्साह के साथ करते हुए चित्रित किया गया है। वह अपने जीवन से संतुष्ट है। भीख माँगकर भी उसने पाँच सौ रुपए एकत्र कर लिए। झोंपड़ी जल जाने तथा रुपयों की पोटली खो जाने पर भी वह हताश-निराश न होकर दोनों हार्थों से राख का ढेर उड़ाते हुए ‘सौ-लाख बार’ घर बनाने की बात कहता है। सूरदास को पता है कि उसकी झोपड़ी में आग लगाने तथा रुपयों की पोटली चुराने का काम भैरों का ही है परंतु वह किसी पर यो आयोप नही लगाता है। वह जीवन का खेल हैसने के लिए मानता है रोने के लिए नहीं।

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प्रश्न 6.
‘सूरदास प्रतिशोध की अपेक्षा क्षमा गें विश्वास रख्या था।’ – इस कशन के आलोक में ‘सूरदास’ कहानी में निहित जीवन-मूल्यों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
‘सूरदास’ कहानी प्रेमचंद द्वारा रचित एक मर्मस्पर्शी एर्य प्रेरणापद कहानी है। इसमें लेखक ने सहनशीलता, क्षमाशीलता, संतोष, द्याशीलता, प्रेम आदि जीवन-मूल्यों का चित्रण किया है। इस कहानी में ऐसे दृष्टिहीन व्यक्ति सूरदास द्वारा जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों का सामना दृढ़ निश्चय एवं उत्साह के साथ करते हुए चित्रित किया गया है। वह अपने जीवन से संतुष्ट है।

भीख माँग कर भी उसने पाँच सौ रुपये एकत्र कर लिए। झोपड़ी जल जाने तथा रुगयों की मोटली खो जने पर भी वह हताश-निराश न होकर दोनों हाथों से राख का ढेर उड़ाते हुए ‘सौ लाख बार’ घर बनाने की बाल कहता है। सूरदास को प्ता है कि उसकी झोपड़ी में आग लगाने तथा रुपयों की पोटली चुराने का काम भैरों का ही है परंतु वह किसी पर भी आरोप नहीं लगात्ता है। वह जीवन का खेल हैंसने के लिए मानता है रोने के लिए नहीं।

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
भैरों सूरदास के बारे में क्या समझता है ? चर्चा कीजिए।
उत्तर :
भैरों सूरदास से ईर्या करता है। वह ईर्य्यालु होने के साथ-साथ काफ़ी क्रूर भी है। उसके मन में किसी के प्रति कोई संवेदना नहीं है। वह अपनी पत्नी सुभागी को प्रतिदिन पीटता है। वह सूरदास के बारे में जगधर को बताता है कि वह पाजी रोज़ राहगीरों को ठग-ठगकर पैसे लाता है और थाली भरता है। बच्चू को इन्हीं पैसों की गरमी थी जो अब निकल जाएगी। अब मैं देखता हूँ कि वह किसके बल पर उछलता है। भैरों का मानना है कि सूरदास उसकी पत्ीी पर डोरे डालता है। वह सूरदास को गरीब भी नहीं मानता। वह सूरदास को पापी कहता है कि वह जगधर को एक बार फिर कहता है कि ऐसे पापियों को गरीब नहीं कहते। अब भी उसके दिल का काँटा नहीं निकला। जब तक उसे रोते न देखेगा, यह काँटा न निकलेगा। जिसने उसकी आबरू बिगाड़ दी, उसके साथ जो चाहे करे उसे पाप नहीं लग सकता। इस प्रकार भैरों सूरदास को पापी मानता है।

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प्रश्न 2.
सुभागी के सूरदास और भैरों के बारे में क्या विच्चार हैं? व्यक्त करें।
उत्तर :
जब सूरदास अपनी झोंपड़ी की राख के ढेर के सामने बैठा रो रहा था तो सुभागी रातभर मंदिर के पिछवाड़े अमरूद के बाग में छिपी बैठी थी। वह जानती थी कि सूरदास की झोंपड़ी में आग भैरों ने ही लगाई है। वह इस बात की चिंता नहीं करती कि भैरों उसके और सूरदास के संबंधों को अनैतिक मानता है। उसका मानना है कि वह दुनिया को सफ़ाई नहीं देना चाहती क्योंकि दुनिया उसकी बात का यकीन नहीं करेगी, लेकिन उसके कारण सूरदास का जो सर्वनाश हुआ है इसका उसे बड़ा दुख था।

उसने अब प्रण कर लिया था कि अब वह किसी भी कीमत पर भैरों के घर वापस नहीं जाएगी। अब वह अलग रहकर मज़दरी करेगी तथा अपना पेट भरेगी। वह भैरों के बारे सोचती है कि उसने कभी भी मेरी परवाह नहीं की है, इतने दिन में उसने मुझ़े कभी सेंदूर भरने के लिए भी पैसे नहीं दिए तो मैं उसके लिए क्यों मरूँ।” परंतु जब जगधर सुभागी को यह बताता है कि भैरों ने ही सूरदास के रुपयों की पोटली चुराई है तो उसी पोटली को वापस लाने के लिए वह निश्चय करते हुए कहती है, “अब चाहे वह मुझे मारे या निकाले, पर रहूँगी उसी के घर। कहाँ-कहाँ थैली को छिपाएगा ? कभी तो मेंर हाथ लगेगी। मेंर ही कारण इसपर विपत पड़ी है। मैने ही उजाड़ा है, मैं ही बसाऊँगी। जब तक उसके रुपए न दिला दूँगी, मुझे चैन न आएगा।” इस प्रकार सुभागी सूरदास को एक भला और नेक इनसान और भैरों को एक क्रूर एवं चोर व्यक्ति मानती है।

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प्रश्न 3.
भैरों का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
भैरों एक ईर्ष्यालु व्यक्ति है। वह सूरदास से ईष्ष्या करता है। वह काफ़ी क्रूर भी है। उसके मन में किसी के प्रति कोई संवेदना नहीं है। वह अपनी पत्नी सुभागी को प्रतिदिन पीटता है। वह सूरदास के बारे में जगधर को बताता है कि वह पाजी रोज़ राहगीरों को ठग-ठगकर पैसे लाता है और थाली भरता है। बच्चू को इन्हीं पैसों की गरमी थी जो अब निकल जाएगी। अब मैं देखता हूँ कि वह किसके बल पर उछलता है। भैरों का मानना है कि सूरदास उसकी पत्नी पर डोरे डालता है।

वह सूरदास को गरीब भी नहीं मानता। वह सूरदास को पापी कहता है कि वह जगधर को एक बार फिर कहता है कि ऐसे पापियों को गरीब नहीं कहते। अब भी उसके दिल का काँटा नहीं निकला। जब तक उसे रोते न देखेगा, यह काँटा न निकलेगा। जिसने उसकी आबरू बिगाड़ दी, उसके साथ जो चाहे करे उसे पाप नहीं लग सकता। इस प्रकार भैरों सूरदास को पापी मानता है और उसकी झोपड़ी में आग लगा देता है। वह सूरदास के रुपयों की पोटली भी चुरा लेता है। जब जगधर भैरों से यह पूछ्छता है कि तुझे झोपड़ी जलाने से क्या मिला तो उत्तर में भैरों स्पष्ट कहता है-यह सुभागी को बहका ले जाने का जरीबाना है। भैरों को लगता है कि सूरदास की कोंपड़ी जलाकर उसके दिल की आग ठंडी हो गई है।

क्योंकि सूरदास ने उसकी आबरू बिगाड़ दी है, इसलिए उसने उसकी झोपड़ी जलाकर कोई पाप नहीं किया है। इस प्रकार भैरों ने अपनी पत्नी सुभागी और सूरदास के अनैतिक संबंधों के शक के कारण सूरदास की झोंपड़ी जलाई। भैरों की इस हरकत के कारण उसकी पत्नी सुभागी भी उससे नफ़रत करने लगी और वह उस बात की चिंता नहीं करती कि भैरों उसके और सूरदास के संबंधों को अनैतिक मानता है। उसका मानना है कि वह दुनिया को सफ़ाई नही देना चाइती क्योंकि दुनिया उसकी बात का यकीन नहीं करेगी, लेकिन उसके कारण सूरदास का जो सर्वनाश हुआ है इसका उसे बड़ा दुख था। उसने अब प्रण कर लिया था कि अब वह किसी भी कीमत पर भैरों के घर वापस नहीं जाएगी।

अब वह अलग रहकर मज़दूरी करेगी तथा अपना पेट भरेगी। पंरतु जब जगधर सुभागी को यह बताता है कि भैरों ने ही सूरदास के रुपयों की पोटली चुराई है तो उसी पोटली को वापस लाने के लिए वह निश्चय करते हुए कहती है, “अब चाहे वह मुझे मारे या निकाले, पर राँूगी उसी के घर। कहाँ-कहाँ थैली को छिपाएगा ? कभी तो मेरे हाथ लमेगी। मेरे ही कारण इसपर विपत पड़ी है। मैंने ही उजाड़ा है, मैं ही बसाऊँगी। जब तक उसके रुपए न दिला दूँगी, मुझे चैन न आएगी।” इस प्रकार सुभागी भैरों को एक क्रूर एवं चोर व्यक्ति मानती है।”