Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 7 भरत-राम का प्रेम, तुलसीदास के पद to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 7 भरत-राम का प्रेम, तुलसीदास के पद

Class 12 Hindi Chapter 7 Question Answer Antra भरत-राम का प्रेम, तुलसीदास के पद

भरत-राम का प्रेम –

प्रश्न 1.
‘हारेंदु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से भरत यह कहना चाहते हैं कि राम का उनके प्रति विशेष स्नेह रहा है। इसलिए बचपन में खेलते हुए जब भी वे कभी किसी खेल में हारने लगते थे, तो राम उन्हें जिता देते थे तथा स्वयं हार जाते थे। राम सदा अपने से छोटों का उत्साहवर्धन करते रहे हैं। वे अपने बड़े होने का लाभ नहीं उठाते थे। वे अपने छोटे भाइयों का बहुत ध्यान रखते थे। उन्हें प्रसन्न देखने के लिए वे स्वयं जान-बूझकर हार जाते थे तथा छोटे भाइयों को जिता देते थे।

प्रश्न 2.
‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाउ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से राम के स्वभाव में सबके प्रति प्रेम, दया, ममता, करुणा आदि भावों की ओर संकेत किया गया है। राम का स्वभाव ऐसा है कि वे तो कभी अपराधी पर भी क्रोध नहीं करते हैं। अपने छोटे भाइयों के प्रति उन्हें विशेष प्रेम है। वे स्वयं हारकर अपने भाइयों को जिता देते हैं। वे कभी भी किसी के मन को नहीं दुखाते और न ही किसी के मन के प्रतिकूल कार्य करते हैं। वे खेल में भी कभी अप्रसन्न नहीं होते।

Class 12 Hindi Antra Chapter 7 Question Answer भरत-राम का प्रेम, तुलसीदास के पद

प्रश्न 3.
भरत का आत्म-परिताप उनके चरित्र के किस उज्ञ्तल पक्ष की ओर संकेत करता है ?
अथवा
भरत के परिताप का कारण क्या था और कैसे कहा जा सकता है कि वह परिताय भरत के चरित्र के उज्ज्वल पक्ष को प्रस्तुत करता है ?
उत्तर :
भरत का आत्म-परिताप उनके चरित्र के इस उज्ज्वल पक्ष की ओर संकेत करता है कि भरत सच्चे हैं। राम को वनवास दिलाने में उनका कोई हाथ नहीं है। उन्हें तो यह भी पता नहीं था कि राम को वनवास दिया गया है। उन दिनों वे अपने ननिहाल गए हुए थे। अयोध्या आने पर जैसे ही उन्हें राम के वनवास का पता चला वे उन्हें लौटा लाने के लिए चित्रकूट आ जाते हैं। वे स्वयं को अत्यंत अभागा मानते हैं जो उनके कारण राम को वनवास हुआ। वे राम को अपना स्वामी तथा स्वयं को उनका सेवक कहते हैं। वे सत्यनिष्ठ तथा भ्रातृ-प्रेम के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

प्रश्न 4.
राम के प्रति अपने श्रद्धा भाव अथवा प्रेम को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भरत राम को अपना स्वामी मानते हैं। बचपन से ही राम की उन पर विशेष कृपा रही है। वे राम के सम्मुख कभी भी मुँह नहीं खोलते हैं। उनके राम के प्रति अनन्य प्रेम को अंतर्यामी श्रीराम ही जानते हैं। वे श्रीराम की कृपा को अपने अंतर्मन से जानते हैं। वे सदा अपने स्वामी श्रीराम के दर्शन करते रहना चाहते हैं, क्योंकि उनके दर्शन करने से उनके नेत्र कभी भी तृप्त नहीं होते। वे सदा श्रीराम के चरणों की सेवा में लगे रहना चाहते हैं।

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प्रश्न 5.
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से भरत की इन भावनाओं का ज्ञान होता है कि वे राम से अनन्य प्रेम करते थे, इसलिए उन्हें राम को वनवास दिया जाना ठीक नहीं लगता। राम को वनवास दिए जाने का मूल कारण वे अपनी माता का उसके प्रति अंधा प्रेम मानते हैं। इसके लिए वे अपनी माता को बुरा-भला भी कहते हैं, किंतु बाद में उन्हें लगता है कि इसमें माता का भी कोई दोष नहीं है। यह तो उनका ही दुर्भाग्य है जो उनके कारण राम को वनवास मिला है। उन्हें यह सब अपने पापों का परिणाम ही लगता है। अपनी इस भूल का प्रायश्चित करने का उन्हें कोई साधन भी नहीं दिखाई देता है। उन्हें केवल अपने स्वामी श्रीराम पर ही भरोसा है कि वे ही उसका कल्याण करेंगे।

प्रश्न 6.
‘फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली।’ पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि जिस प्रकार से कोदों से धान की अच्छी फ़सल की आशा नहीं की जा सकती और काली घोंघी में मोती जन्म नहीं ले सकता, उसी प्रकार से बुरी विचारों वाली स्त्री की संतान भी अच्छी नहीं हो सकती है। इस प्रकार भरत स्वयं को कैकेयी की बुरी संतान बताकर आत्म परिताप करते हैं। भाषा अवधी है। चौपाई छंद है।

पद –

प्रश्न 1.
राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देख कर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती हैं ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
अथवा
गीतावली के पद ‘जननी निरखति बान धनुहियाँ’ के आधार पर राम के वन-गमन के पश्चात् माँ कौशल्या की मन:स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
राम के वन चले जाने के बाद राजा दशरथ की भी मृत्यु हो जाती है। ऐसे में माता कौशल्या बहुत व्यथित रहने लगती हैं। घर में जहाँ-कहीं भी उन्हें राम की बचपन की कोई वस्तु दिखाई देती है, उन्हें राम की याद सताने लगती है। वे राम के बचपन के दिनों के खेलने वाले धनुष-बाण को देखकर उठा लेती हैं और बार-बार राम को याद करते हुए उन्हें अपने हृदय और नेत्रों से लगाती हैं। इसी प्रकार से बालक राम के नन्हें-नन्हें पैरों की सुंदर जूतियाँ देखकर भी उनका हदयय उमड़ पड़ता है और उन्हें भी वे अपने हद्य और नेत्रों से लगाती हैं।

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प्रश्न 2.
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कौशल्या की व्याकुलता का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
कौशल्या माता राम के वनगमन से संतृप्त होकर उनके बचपन की वस्तुओं को देखकर और ज्यादा व्याकुल हो रही हैं। वे कभी राम को जगाने और कभी अपने पिता और भाइयों के साथ मनपसंद भोजन करने की बात कहती हैं तभी अचानक उन्हें याद आ जाता है कि राम तो बन गए हैं। इतना स्मरण करते ही वे चकित हो जाती हैं कि वे किससे बातें कर रही थीं और चित्रलिखित-सी हो जाती हैं। वे समझ नहीं पातीं कि उन्हें क्या हो गया है, जो राम यहाँ न होते हुए भी राम से बातें कर रही हैं। वे उन्मादिनी-सी हो जाती हैं।

प्रश्न 3.
गीतावली से संकलित पद ‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ में निहित करुणा और संदेश को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद में कवि ने राम के वियोग में संतप्त माता कौशल्या की दयनीय दशा का परोक्ष वर्णन किया है। माता कौशल्या राम को अपनी विरहावस्था का वर्णन न सुनाकर पथिक के माध्यम से उनके पास यह संदेश पहुँचाती हैं कि उनके वियोग में उनके पाले हुए घोड़े दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होते जा रहे हैं। इसलिए एक बार अवश्य लौटकर अयोध्या आओ और अपने प्रिय घोड़ो को देखकर वापस चले जाना। इस प्रकार यदि राम अयोध्या आएँगे तो माता कौशल्या भी उन्हें देख सकेंगी।

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प्रश्न 4.
(क) उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए।
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है ? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
(क) उपमा अलंकार –
(i) कबहूँ समुझि वन-गमन राम को चकि चित्रलिखी-सी।
(ii) तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी-सी।
(ख) ‘तदपि दिनहिं दिन होत झाँवरे, मनहु कमन हिम-मारे’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है, क्योंकि यहाँ घोड़ों के दुर्बल होने में कमल पर पाला गिरने की संभावना की गई है।

प्रश्न 5.
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था।
उत्तर :
तुलसीदास अपने समय में प्रचलित अवधी और ब्रजभाषा के प्रकांड विद्वान थे। उन्हें संस्कृत भाषा का भी पूर्ण ज्ञान था, इसलिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए भाषा उनके भावों का अनुसरण करती थी। पाठ्यक्रम में निर्धारित दोनों पदों में भी कवि का भाषा पर पूर्ण अधिकार दिखाई देता है। पुत्र के वियोग में संतप्त माता जब अपने पुत्र के बचपन की वस्तुओं को देखती है तो उसकी स्नेहधारा स्वयं ही प्रवाहित होने लगती है। यह भाव कवि ने इन पंक्तियों में व्यक्त किए हैं –

जननी निरखति बान-धनुहियाँ।
बार-बार उर नैननि लावति प्रभुजू की ललित पनहियाँ।’

कवि यदि ‘धनुहियाँ’ के स्थान पर ‘धनुष’ शब्द का प्रयोग करता तो वह चमत्कार नहीं उत्पन्न हो सकता था जो अब हुआ है। इसी प्रकार से राम के वनगमन का स्मरण आते ही माता कौशल्या का यह शब्द-चित्र अनूठा ही बना पाया है’कबहूँ समुझि वन-गमन राम को रहि चकि चित्रलिखी-सी।’
इस प्रकार स्पष्ट है कि तुलसीदास का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। वे अपनी भावनाओं के अनुरूप शब्द-चयन करने में निपुण थे।

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प्रश्न 6.
पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं, उन्हें छाँटकर लिखिए।
उत्तर :

  1. ए बर बाजि बिलोकि आपने
  2. बहुरो बनहि सिधावौ।
  3. कबहूँ कहति यों, बड़ी बार भइ
  4. बंधु बोलि जेंइय जो भावै

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
‘महानता लाभ-लोभ से मुक्ति तथा समर्पण त्याग से हासिल होता है’ को केंद्र में रखकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर :
यदि हम राम वन-गमन के प्रसंग को देखें तो जब कैकेयी ने राम के लिए बनवास और अपने पुत्र भरत के लिए राज्य माँगा था तो सभी लोग कैकेयी के साथ-साथ भरत को भी बुरा-भला तथा स्वार्थी कह रहे थे। जब भरत चित्रकूट जा कर राम को अयोध्या लौट चलने के लिए कहते हैं तथा स्वयं राज्य नहीं करना चाहते। उनके राज्य न करने से राज्य के प्रति उनका कोई लोभ नहीं रहा। जब वे स्वयं ही राजसी सुविधाएँ त्याग कर नंदीग्राम में तपस्वी के वेश में रहने लगते हैं तो वे स्वयं को राम के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित कर देते हैं। इस प्रकार वे अयोध्यावासियों की दृष्टि में महान बन जाते हैं। उन्हें महानता राज्य के लोभ से मुक्त होने पर तथा समर्पण राजसी सुख-सुविधाओं के त्याग से प्राप्त हुआ है।

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प्रश्न 2.
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को भी जानिए।
उत्तर :
भरत ने स्वयं अयोध्या में राज्य नहीं किया। राम के बनवास के समय उन्होंने राजगद्दी पर राम जी की खड़ाऊँ रखी थीं। अपना राजसी सुख त्याग कर तपस्वी के वेश में नंदीग्राम में झोंपड़ी बनाकर रहे। वे गृहस्थ के स्थान पर ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करते रहे। माता कैकेयी का भी त्याग किया था परंतु राम के कहने पर माँ से क्षमा माँग ली थी।

प्रश्न 3.
आज के संदर्भ में क्या राम और भरत जैसा भातृप्रेम संभव है ? अपनी राय लिखिए।
उत्तर :
आधुनिक भौतिकवादी युग में जहाँ मनुष्य धन का गुलाम हो गया है वहीं समस्त संबंधों में अवमूल्यन हो गया है। अपने स्वार्थ में अंधा होकर बेटा बूढ़े माँ-बाप से संबंध विच्छेद कर लेता है। भाई-भाई का गला काटने को तैयार है। ऐसे विषाक्त वातावरण में यह कल्पना करना भी असंभव है कि कहीं राम और भरत जैसा भातृप्रेम देखने को मिल सकता है ? मेरी राय में ऐसा संभव नहीं है। जब तक हमारा भौतिक वस्तुओं के प्रति आकर्षण कम नहीं होगा तब तक राम और भरत जैसा भात्र्र्रम कहीं नहीं दिखाई दे सकता।

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कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘भरत-राम का प्रेम’ प्रसंग के आधार पर भरत की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
राम को जब वनवास हुआ तब भरत अपने ननिहाल में थे। वहाँ से आने के बाद उन्हें यह ज्ञात होता है कि उन्हें राज्य दिलाने के लिए ही उनकी माता कैकेयी ने राम को वनवास दिलाया है। इससे भरत निरपराध होते हुए भी स्वयं को राम के वनवास का कारण मानकर बहुत दुखी होते हैं। वे अपनी माता की भी निंदा करते हैं। उन्हें लगता है कि उनके और राम के स्नेह को विधाता भी नहीं सहन कर सका। उसी ने माता के माध्यम से उनके और राम के बीच में भेदभाव उत्पन्न कर दिया है। वे स्वयं को अत्यंत अभागा मानते हैं तथा पापों का पुँज मानकर स्वयं को कोसते हैं।

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प्रश्न 2.
‘गीतावली’ के पदों में व्यक्त माँ की भावनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
माता कौशल्या राम के वन-गमन और उसके बाद पति राजा दशरथ की मृत्यु से अत्यंत व्यथित है। वह उन्मादिनी-सी हो गई है। राम के बचपन की वस्तुओं को देखकर उसका हृदय उमड़ पड़ता है। वह उन्हें हृदय और नेत्रों से लगाती हैं। उन्हें लगता है कि राम उनके सामने ही हैं। कभी वह उन्हें जगाने जाती हैं तो कभी पिता और भाइयों के साथ मनचाहा भोजन खाने के लिए बुलाती हैं। जब उन्हें स्मरण आता है कि राम तो वन में हैं, वह स्तब्थ-सी हो जाती हैं। स्वयं राम को बुला नहीं सकतीं इसलिए पथिकों को कहती हैं कि राम को कहना कि उनके वियोग में उनके पाले हुए अश्व दुर्बल हो गए हैं। एक बार आकर उन्हें देख जाएँ। इस प्रकार राम के आने पर वह भी उन्हें देख सकेगी।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव और शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
(क) महूँ सनेह सकोच बस सनमुख कही न बैन।
दरसन तृपित न आजु लगि पेम पिआसे नैन।
(ख) बिनु समुझें निज अघ परिपाकू।
जारिडं जायँ जननि कहि काकू ॥
(ग) तेइ रघुनंदनु लखनु सिय अनहित लागे जाहि।
तासु तनय तजि दुसह दु:ख दैड सहावइ काहि॥
(घ) जे पय प्याइ पोखि कर-पंकज बार बार चुचुकारे।
क्यों जीवहीं, मेरेराम लाडिले ! ते अब निपट बिसारे॥
उत्तर :
(क) भरत राम के प्रति इतने अधिक श्रद्धावान हैं कि वे कभी भी उनके सामने मुँह खोलकर नहीं बोलते हैं। वे श्रीराम को देख-देखकर कभी भी तृप्त नहीं होते। वे सदा राम के दर्शन करते रहना चाहते हैं। अवधी भाषा है। दोहा छंद है। भातुप्रेम का उत्कृष्ट उदाहरण है। अनुप्रास अलंकार का सहज भाव से प्रयोग किया गया है।

(ख) राम को वनवास देने का दोषी मानकर भरत ने अपनी माता कैकेयी को व्यंग्यात्मक कटु वचन कहे थे। उन्हें लगता है कि उन्होंने वह सब कहकर व्यर्थ ही अपनी माता का हृदय दुखाया था, क्योंकि राम को वनवास तो भरत के अपने पापों के फलस्वरूप ही मिला है। इसलिए वे स्वयं को अभागा मानते हैं। अवधी भाषा है। चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है। अनुप्रास अलंकार है। भरत के पश्चाताप का स्वर है।

(ग) भरत का मानना है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे उसकी माता ही क्यों न हो, यदि राम, लक्ष्मण और सीता जी से शत्रुता करेगा उसके पुत्र को तो विधाता असहनीय दुख ही देगा। ऐसे व्यक्ति को तो जीवन में दुखों को ही सहन करना पड़ेगा। श्रीराम से शत्रुता करके कोई सुखी नहीं रह सकता। अवधी भाषा है। दोहा छंद है। अनुप्रास अलंकार की छटा है। भरत का पश्चाताप मुखरित हुआ है।

(घ) राम ने जिन्हें पाला-पोसा है अथवा राम के जो प्यारे हैं, यदि राम उनसे दूर चले जाएँगे तो उनके वियोग में वे भला कैसे जीवित रह सकते हैं ? राम जिन्हें भुला देते हैं वे लोग जीवित नहीं रह पाते। अवधी और ब्रजभाषा का सुंदर समन्वित रूप दर्शनीय हैं। अनुप्रास, रूपक तथा पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं। करुण रस और प्रसाद गुण है।

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प्रश्न 4.
सभा में भरत का शरीर रोमांचित क्यों हो उठा ?
उत्तर :
जब चित्रकूट में सभा आयोजित हो रही थी तो राम ने भरत की प्रशंसा की। तब मुनि वशिष्ठ जी भरत को भी अपने मन की बात कहने के लिए कहा। मुनि वशिष्ठ जी की इस वाणी को सुनकर भरत का शरीर रोमांचित हो उठा।

प्रश्न 5.
राम और भरत में अनूठी अनन्यता थी। कैसे ?
उत्तर :
राम और भरत दोनों सगे भाई थे। इसके साथ-साथ वे हृदय से परस्पर जुड़े हुए थे। भरत राम के प्रति विशेष श्रद्धा रखते थे और राम भरत को अत्यधिक स्नेह करते थे। वे भरत पर विशेष कृपा एवं स्नेह रखते थे। दोनों बचपन से साथ-साथ रहते थे। राम भरत की इच्छा के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं करते थे। वे खेल में भरत को हारने पर भी विजयी बना देते थे। उन्होंने कभी भी भरत का मन नहीं तोड़ा। इस प्रकार राम और भरत में अनूठा अनन्यता थी।

प्रश्न 6.
राम और भरत का अटूट स्नेह किसने तोड़ा और कैसे ?
उत्तर :
राम और भरत का अटूट स्नेह भरत की माता कैकेयी ने तोड़ा। कैकेयी ने अपने दो वचनों की पूर्ति में राजा दशरथ से राम को चौदह वर्ष का वनवास तथा भरत के लिए अयोध्या के राजा का पद माँग लिया। इसी कारण वे दोनों दूर हुए।

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प्रश्न 7.
भरत को किस प्रकार के भाव हृदय में लाना करोड़ों दुराचार के समान प्रतीत होता है?
उत्तर :
भरत का विचार है कि उसकी माता के कारण ही राम और उसके संबंधों में दरार पैदा हुई। कोई भी साधु अपनी समझ से पवित्र या सच्चा नहीं होता। मैं स्वयं को सदाचारी और अपनी माँ को दुराचारी और नीच कहूँ, अब इस प्रकार के भाव हृदय में लाना करोड़ों दुराचार के समान प्रतीत होता है।

प्रश्न 8.
भरत को अपनी भलाई का एकमात्र रास्ता कहाँ दिखाई दे रहा है ?
उत्तर :
भरत को अपनी भलाई का एकमात्र रास्ता प्रभु राम के चरणों में दिखाई दे रहा है तभी वे कहते हैं कि गुरु महाराज सर्वसमर्थ हैं और सीताराम उसके स्वामी हैं। सर्वज्ञ मुनि वशिष्ठ और श्रीराम जानते हैं कि उसका प्रेम छल-कपट, झूठ अथवा सच है।

प्रश्न 9.
राम के वियोग में अयोध्या तथा वहाँ के लोगों की विरह-व्यथा का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
राम के वियोग में समस्त अयोध्या नगरी विरह-व्यथा में जल रही है। महाराज दशरथ इसी वियोग में स्वर्ग सिधार गए हैं और माता कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा सभी बहुत दुखी हैं। सभी माता उनके बिना अत्यंत व्याकुल एवं करुण अवस्था में हैं। उनका दुख असहनीय है। संपूर्ण प्रजा भी बहुत दुखी हैं। वह भी श्रीराम के वियोग में तड़प रही है। समस्त नर-नारी वियोग रूपी असहनीय ताप से जल रहे हैं। इतना ही नहीं, यहाँ के पशु-पक्षी भी उनके विरह में व्यथित हैं।

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प्रश्न 10.
राम वन-गमन के पश्चात् माता कौशल्या की कैसी दशा हुई ?
उत्तर :
राम वनगमन के पश्चात माता कौशल्या की दशा अत्यंत कारुणिक एवं हृदय विदारक थी। वे अपने पुत्र की याद में तपड़ रही हैं। वे कभी श्रीराम के धनुष को देखती हैं तो कभी उनकी नन्हीं-नन्हीं सुंदर जूतियाँ देखती हैं। उन्हें बार-बार अपने हदयय से लगाती हैं। पहले की तरह सवेरे ही राम के शयन-कक्ष में जाकर उन्हें स्नेहपूर्वक जगाने का प्रयास करती हैं। कभी माता कौशल्या चकित होकर चित्रालखित-सी बन जाती है, कभी राम के द्वारा पालित घोड़ों को देखकर राम को पुकारने लगती हैं।

प्रश्न 11.
राम का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
राम अत्यंत उदार, दयालु, सत्यनिष्ठ और आदर्शवादी हैं। वे परोपकारी, विनम्र, सहृदयी एवं विनोद-प्रिय हैं। वे छोटों से प्रेम तथा बड़ों का आदर करते हैं। वे आज्ञाकारी, साहसी एवं बलशाली हैं।

प्रश्न 12.
वियोगावस्था में सुख देने वाली वस्तुएँ भी दुख देने लगती हैं। गीतावली से संकलित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
सुखकाल में सुखदायी प्रतीत होने वाली वस्तुएँ भी वियोगावस्था में दुख का कारण बन जाती हैं। इसका कारण यह है कि हम उन चीज़ों को देखकर उनसे जुड़ी सुखद स्मृतियों में खो जाते हैं। उनसे जुड़े व्यक्तियों का स्मरण हो जाता है। यह बातशृंगार तथा वात्सल्य दोनों अवस्थाओं में उत्पन्न होती है। माता कौशल्या भी अपने पुत्र राम से संबंधित वस्तुओं को देखकर भाव विह्वल हो जाती हैं। वह राम के शीघ्र लौटने की कामना करने लगती हैं।

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प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य लिखिए –
पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े।
नीरज नयन नेह जल बाढ़े।।
कहब मोर मुनिनाथ निबाहा।
एहिते अधिक कहौं मैं काहा।।
उत्तर :
काव्य-सौंदर्य-इस चौपाई में तुलसीदास जी ने भरत की मनोदशा का मार्मिक चित्रण किया है जब वह मुनि वसिष्ट के अनुरोध पर अपने मन की बात कहने के लिए श्री राम के सामने खड़े होते हैं तो उनका शरीर पुलकित हो जाता है। इससे भरत की भावुकता का ज्ञान होता है। उनकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकलती है। उनके मुँह से बोल निकलने बड़े कठिन प्रतीत हो रहे हैं, फिर भी वे बोलते हैं कि मैं इससे अधिक क्या कह सकता हूँ। मुनि वसिष्ट ने पहले से ही कह दिया है श्रीराम के स्नेह और प्रेम के कारण वे भावविभोर हो जाते हैं।
शिल्प-सौंदर्य – ‘नीरज नयन नेह’ और ‘मोर मुनिनाथ’ में अनुप्रास अलंकार है।
– ‘नीरज नयन’, ‘नेह जल’ में रूपक अलंकार है।
– अवधी भाषा का प्रयोग है।
– चौपाई छंद है।