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वसंत आया Summary – तोड़ो Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 6 Summary

वसंत आया, तोड़ो – रघुवीर सहाय – कवि परिचय

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – नई कविता के कवियों में रघुवीर सहाय का विशेष स्थान है। उनका जन्म 9 सितंबर, सन 1929 को लखनऊ में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। आरंभ में वे ‘प्रतीक’, ‘वाक’ और ‘कल्पना’ के संपादक-मंडल में काम करते रहे हैं। बाद में के ‘आकाशवाणी’ को अपनी सेवाएँ देने लगे। कुछ समय तक वे ‘नवभारत टाइम्स’ के संवाददाता भी रहे और बाद में ‘दिनमान’ के कार्यकारी संपादक के रूप में काम किया। इन्हें इनकी रचना ‘लोग भूल गए हैं’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सन 1990 में इनका निधन हो गया।

रचनाएँ – रघुवीर सहाय की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
काव्य-संग्रह – सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विर्द्ध, हैंसो-हँसो जल्दी हैंसो, लोग भूल गए हैं।
रचनावली – रुपीर सहाय रचनावली (छह खंडों में)
काव्य की विशेषताएँ-रघुवीर सहाय के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

i. राजनीति पर प्रहार – रघुवीर सहाय ने अपने जीवन का आरंभ पत्रकारिता से किया था। विभिन्न राजनीतिक दलों से उनका घनिष्ठ संबंध रहा। वे राजनीति की वास्तविकता को भली प्रकार से जानते थे, इसलिए उन्होंने अपनी कविताओं में राजनीति की दूषित राजनीति का पर्दाफ़ाश किया है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद राजनीति में अवसरवाद, जातिवाद और संप्रदायिकता को अत्यधिक बढ़ावा मिला। कविवर रहुवीर सहाय इस तथ्य को भली प्रकार से जानते थे। कभी-कभी वे बड़े-बड़े राजनेताओं पर भी व्यंग्य करने में संकोच नहीं करते।

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ii. जनवाद के पक्षधर – रघुवीर सहाय तत्कालीन समाज को उसके यथार्थ रूप में देखते हैं। वे कार्ल मार्स्स या राम मनोहर लोहिया की दृष्टि से नहीं देखते, बल्कि पत्रकार के रूप में उन्होंने उसमें जन-साधारण के दु:ख-दर्द को देखा है। उनकी कविता में अन्य कवियों के समान अकेलापन और अलगाव नहीं है, बल्कि मध्यम वर्गीय जीवन का दबाव है। रघुवीर सहाय सामाजिक चेतना के कवि हैं। अत: जन-साधारण के दु:खों की वे चर्चा करते हैं। आत्महत्या के विरद्ध में वे कहते हैं –

लोगो, मेंरे देश के लोगों और नेताओ
मैं सिप़़ कवि हूँ
मैं तुम्हें रोटी नहीं दे सकता
न उसके साथ खाने के लिए गम
न मैं मिटा सकता हूँ ईश्वर के विषय में तुम्हारा संक्रम।

iii. मानवीय संबंधों का विवेचन – रछुवीर सहाय की कविताओं में मानवीय संबंधों के प्रति सरोकार दिखाई देता है। नारी की पीड़ा और व्यथा का उन्होंने मार्मिक वर्णन किया है। ‘बैक में लड़कियाँ’ नामक कविता में उन्होंने नारी-पुरुष के मनोविज्ञान पर प्रकाश डाला है। यही नहीं, कवि पारिवारिक और सामाजिक संदर्भों को भी बार-बार उजागर करना चाहता है। लोग भूल गए कविता में वे कहते हैं कि –

सहना परायी पीड़ाओं को बार-बार
जीते रहने का अकेला उपाय है
सही/फिर उसी समय
दूर खड़े हो अपने को देखो।

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iv. सामाजिक विसंगतियों का उद्घाटन – रछुवीर सहाय ने अपने काव्य में समाज और राजनीति के क्षेत्र में व्याप्त सामाजिक विसंगतियों का खुलकर उद्घाटन किया है। कवि ने समीप से देखा कि किस प्रकार लोग जातिवाद के आधार पर समाज का विभाजन करने में लगे हुए हैं। एक पत्रकार होने के नाते उन्होंने ऊँच-नीच और जातिवाद की भावना का डटकर विरोध किया। उन्होने समाज के अभावग्रस्त लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की। रिक्शा खींचने वाले मजदूर, दुबले-पतले नंगे बच्चे, खाँसता हुआ फल-विक्रेता सभी उनकी कविताओं में स्थान प्राप्त कर जाते हैं –

देखो सड़क पार करता है पतला-दुबला बोदा आदमी
आती हुई टरक (ट्रक ) का इसको डर नहीं
या कि जल्दी चलने का इसमें दम नहीं रहा
आँख उठा वह देखता है डरेवर (ड्राइवर) को
देखो मैं ऐसे ही चल पाता हूँ।

v. आक्रोश एवं व्यंग्य का प्रयोग – रघुवीर सहाय की कविता अपने आक्रोश और व्यंग्य के लिए प्रसिद्ध है। कवि उन लोगों पर व्यंग्य करता है, जो आजादी के बाद बूहे भारत पर आतंक फैलाए हुए हैं। जिनके कारण समाज में असुरक्षा, असामाजिकता और मूल्यहीनता का वातावरण पैदा हो चुका है। कभी-कभी तो उनका व्यंग्य इतना तीखा है कि वह पाठक के अंदर तक उतर जाता है। नारी नामक कविता से एक उदाहरण देखिए –

पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सबरे लगा पलीता
किसी मूख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइए।

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vi. भाषा-शैली – रघुवीर सहाय आरंभ से ही समाचार-पत्रों से जुड़े रहे, इसलिए उन्होंने साधारण बोल-चाल की भाषा का ही अत्यधिक प्रयोग किया है। उनकी कविताओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग नही हुआ है, बल्कि साधारण जनभाषा का प्रयोग हुआ है। कही-कहीं संस्कृतनिष्ठ शब्दों का भी मिश्रण भी हुआ है। उनकी आरंभिक कविताओं में प्रकृति के बिंब अधिक मात्रा में मिलते हैं। लेकिन बाद् की कविताओं में उन्होंने जन-साधारण के जीवन के चित्र अंकित किए है। जैसे –

निर्धन जनता का शोषण है
कहलक आप हैंसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कहकर आप हैसे
सबके सब हैं अत्याचारी
कहकर आप हैंसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कहलर आप हैसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा।
सहसा मुझे अकेला पाकर
फिर से आप हैंसे।

रघुवीर सहाय की कविता में पारंपरिक प्रतीक दिखाई नहीं देते क्योंकि उनकी कष्य और शिल्प दोनों रूढ़ियों से मुक्त हैं। कवि ने नेहरू, वाजपेयी नामों का प्रयोग प्रतीक रूप में किया है। ये प्रतीक राजनीतिक हैं। रामदास, रामलाल आदि साधारण पात्र जनता के दु:ख-दर्द के प्रतीक हैं। इनका काव्य आम आदमी के दर्द को अभिव्यक्ति प्रदान करता है।

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Vasant Aaya Class 12 Hindi Summary

‘वसंत आया’ कविता में कवि ने वसंत के आगमन पर आधुनिक जन-जीवन में किसी प्रकार की भी प्रतिक्रिया न होने पर चिंता व्यक्त की है। उसने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि आज का मनुष्य प्रकृति से इतना दूर हो गया है कि उसे वसंत के आने का पता भी कैलेंडर से चलता कि इस महीने में वसंत पंचमी होगी। उसे ॠतु परिवर्तन का ज्ञान पेड़ों से झड़ते पत्तों, नई निकलती कोंपलों, ढाक के दहकते जंगलों, मस्ती में झूमते श्रमरों से नहीं होता। वह इनकी ओर देखकर भी नहीं देख पाता। उसकी समस्त संवेदनाएँ आधुनिक भौतिकतावाद में दबकर रह गई हैं।

Todo Class 12 Hindi Summary

‘तोड़ो’ कविता में कवि नव-निर्माण तथा विकास के लिए चट्टानों तथा ऊसर, बंजर धरती को तोड़ने का आहवान करता है। इसे तोड़-जोड़कर इसमें हरियाली लाने तथा मिट्टी से अन्न उगाने की प्रेरणा देता है। इसके साथ ही कवि ने मानव-मन को भी रुढ़ियों से मुक्त कर, मन की ऊब तथा खीज को तोड़कर रस-वर्ष की भी प्रेरणा देता है। कवि सर्वत्र सृजन में बाधक तत्वों को नष्ट कर सृजन करने के लिए प्रेरणा दे रहा है।

वसंत आया सप्रसंग व्याख्या

1. जैसे बहन ‘दा’ कहती है
ऐसे किसी बँगले के किसी तरु (अशोक?) पर कोई चिड़िया कुऊकी
चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराए पाँव तले
ऊँचे तरुवर से गिरे
बड़े-बड़े पियराए पत्ते
कोई छ: बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो –
खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।
ऐसे फुटपाथ पर चलते चलते चलते।
कल मैंने जाना कि वसंत आया।
और यह कैलेंडर से मालूम था
अमुक दिन अमुक बार मदन-महीने की होवेगी पंचमी
दफ्त्तर में छुट्ट्टी थी-यह था प्रमाण।

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शब्दार्थ : तरु – वृक्ष, पेड़। कुऊकी – चिड़िया का कुहुकना, चहचहाना। चुरमुराए – चरमराने की आवाज़। तले – नीचे। पियराए – पीले, सूखे। फिरकी – फिरकनी। अमुक – इस। मदन-महीने – कामदेव का महीना, वसंत।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता ‘वसंत आया’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्तमान युग में मनुष्य के प्रकृति से टूटते संबंधों पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि वसंत के आने को स्मरण करते हुए लिखता है कि आज के युग में मनुष्य को ॠलु-परिवर्तन का ज्ञान भी कैलेंडर से ही होता है। कवि को लगता है कि जैसे बहन ‘दा’ कहती हैं कि किसी बँगले के किसी अशोक के वृक्ष पर किसी चिड़िया के कुहुकने और चलती सड़क के किनारे की लाल बजरी पर चलते हुए जब ऊँचे बड़े पेड़ों से गिरे हुए सूखे पत्ते पैरों के नीचे आकर चरमराने लगे, सुबह छ: बजे ऐसा लगे कि आज हवा इतनी शुद्ध और खिली हुई है जैसे गर्म पानी से नहा कर साफ़-सुथरी बनकर आई हो, तो समझना चाहिए कि वसंत ऋहु आ गई है। इस प्रकार से चलते-चलते कल कवि को अनुभव हुआ कि वसंत आ गया है। कवि को यह कैलेंडर से भी ज्ञात हो गया था कि किस महीने के किस दिन वसंत-पंचमी होगी। उसके दफ्पतर में उस दिन अवकाश था, इसलिए यह भी वसंत के आने का एक प्रमाण था।

विशेष :

  1. कवि मनुष्य के प्रकृति से टूटते रिश्तों पर कटाक्ष करता है कि उसे वसंत के आगमन का ज्ञान वातावरण में परिवर्तन से न होकर कैलेंडर से होता हैं।
  2. पुनरूक्तिप्रकाश, अनुप्रास, उपमा तथा मानवीकरण अलंकार हैं।
  3. भाषा देशज शब्दों से मुक्त सहज तथा भावपूर्ण है।
  4. मुक्त-छंद की कविता है।
  5. धनि अर्थ-व्यंजना का गुण विद्यमान है।

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2. और कविताएँ पढ़ते रहने से बह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं छाक के जंगल
आम बर आवेंगे
रंग-रस-गंध से लदे-फैंदे दूर के बिदेश के
वे नंदन-वन होवेंगे यशस्वी
मधुमस्त पिक भौर आदि अपना-अषना कृतित्व
अभ्यास करके दिखावेंगे
यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा
जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया।

शब्दार्थ : दहर-दहर – धधक-धधक कर। दहकेंगे – दहकना, लपट के साथ जलना, लालिमा से युक्त। बाक -पलाश। नंदन-वन – इंद्र का उद्यान। मधुमस्त – पुष्पों का रस पीकर मस्त। पिक – कोयल। भौर – भैवरा। कृतित्व – कार्य, लीला। नगण्य – तुच्छ।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता ‘वसंत आया’ से ली गई है। इस कविता में कवि ने ऋतु-परिवर्तन से अनजान आधुनिक जीवन-शैली जीने वाले लोगों पर व्यंग्य किया है कि वे प्रकृति के परिवर्तनों को न पहचान कर कैलेंडर देखकर ऋतु का आना जानते हैं।

व्याख्या : कवि को वसंत के आगमन का ज्ञान कैलेंडर और कार्यालय में वसंत-पंचमी के अवकाश होने से हुआ था। उसे प्रकृति में वसंत पर होने वाले परिवर्तनों के संबंध में भी कविताएँ पढ़ने से पता चला कि वसंत के आने पर ढ्वाक के जंगल दहक उठते हैं। वसंत में ही आम के वृक्ष पर बौर आता है। इंद्रलोक का नंदन-वन भी वसंत के आगमन पर विभिन्न रंगों के फूलों के रस और गंध से भर उठता है। वसंत में फूलों के रस का पान कर भैवरे मस्ती से अपनी गुँजार करते हैं और कोयल कूक उठती है। वे अपनी-अपनी लीलाओं में मस्त हो जाते हैं। कवि को इसी बात का दुख है कि उसके लिए आज्ज का यह दिन इतना तुच्छ है कि वह प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों को देखकर वसंत का आना जानने की अपेक्षा कैलेंडर देखकर और कविता पढ़कर वसंत के आने को जानेगा।

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विशेष :

  1. वसंत के आगमन पर वनस्पति, पशु, पक्षियों, भ्रमरों को मस्त देखकर कवि को इस बात की ग्लानि होती है कि आधुनिकता की चकाचौध में हम प्रकृति के इन परिवर्तनों को नहीं देख पाते।
  2. भाषा देशज तथा तत्सम शब्दावली से युक्त और भावपूर्ण है।
  3. मुक्त छंद की रचना है।
  4. पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार हैं।

तोड़ो सप्रसंग व्याख्या

1. तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्थर ये चट्टानें
ये झूठे खंधन दूटें
तो धरती को हम जानें
सुनते हैं मिद्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने

शब्दार्थ : ख्यापी – छाई, फैली हुई, व्याप्त।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रछुवीर सहाय द्वारा रचित कविता ‘तोड़ो’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने सृजन के लिए बंजर चट्टानों जैसी रूढ़ियों को तोड़ने का आह्वान किया है।

व्याख्या : कवि नव-निर्माण तथा विकास के लिए पत्थरों, चट्टानों, झूठे बंधनों और रूढ़ियों को तोड़ने के लिए कहता है। यदि हम इन चट्टानों को तोड़कर समतल कर देंगे तभी हम धरती को पहचान सकेंगे। धरती की मिट्टी में रस होता है। इससे हरियाली फूटती है, जिससे नव-निर्माण होगा। इसी प्रकार से हमारे मनरूपी मैदानों पर जो ऊब और खीज छाई हुई है उसे भी हटाना होगा, तभी हम नया सृजन कर सकते हैं। जैसे धरती से अन्न पैदा करने के लिए उसे समतल बनाना होता है तभी अच्छी फसल पैदा होती है, उसी प्रकार से सृजनात्मक साहित्य की रचना के लिए भी मन को परंपरागत रूढ़ियों के बंधनों से मुक्त करना होगा।

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विशेष :

  1. कवि नव-निर्माण के लिए परंपरागत रूढ़ियों को समाप्त करने का आह्वान करता है।
  2. भाषा सहज, सरल, तद्भव एवं देशज शब्दों से युक्त है।
  3. पुनरूक्ति प्रकाश, रूपक तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुक्त छंद की रचना है।
  5. उद्बोधनात्मक शैली है।

2. तोड़ो तोड़ो तोड़ो
बे ऊसर बंजर तोड़ो
ये चरती परती तोड़ो
सब खेत बनाकर छोड़ो
मिद्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को ?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो।

शब्दार्थ : ऊसर बंजर – अनुपजाक धरती। चरती परती – चरागाह के लिए छोड़ी गई ज्ञमीन। पोसेगी – पालन-पोषण करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता ‘ वोड़ो’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने नव-निर्माण के लिए बंजर धरती को समतल बनाकर अन्न पैदा करने तथा मन की रूढ़ियों को नष्ट कर सुजनात्मक साहित्य रचना की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि नव-निर्माण की प्रेरण देते हहए लिखता है कि अनुपजाऊ बंजर और ऊसर धरती तथा परती पड़ी हुई धरती को खोदकर खेती के योग्य बना लो। जब सब बंजर धरती खेत बन जाएगी तो उसकी मिट्टी रसयुक्त होकर उसके अंदर डाले गए बीजों का पोषण करेगी। इससे फसलें लहलहा उठेंगी। कवि कहता है कि इसी प्रकार से हमारा मन जो व्यर्थ में ही ऊब और खीज से भरा हुआ है उसे नष्ट करके मन को सृजनात्मक क्रियाओं की ओर मोड़ो, जिससे वह अच्छे साहित्य की रचना कर सके।

Class 12 Hindi Antra Chapter 6 Summary - Vasant Aaya, Todo Summary Vyakhya

विशेष :

  1. कवि ने नवनिर्माण की प्रेरणा देते हुए रुड़ियों को नष्ट करने के लिए आह्वान किया है।
  2. भाषा सहज, सरल, देशज शब्दों से युक्त भावपूर्ण है।
  3. पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास तथा प्रश्न अलंकार है।
  4. मुक्त छंद की रचना है।
  5. उद्वोधनात्मक शैली है।