In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 4 Summary, Banaras, Disha Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
बनारस Summary – दिशा Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 4 Summary
बनारस, दिशा – केदारनाथ सिंह – कवि परिचय
कवि-परिचय :
जीवन-परिचय – केदारनाथ सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गाँव में 7 जुलाई, सन 1934 को हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इन्होंने बनारस के उदयप्रताप कॉलेज से बी० ए० तथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान का विकास’ विषय पर पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की। इन्होंने बनारस, देवरिया, गोरखपुर तथा नई दिल्ली में अध्यापन-कार्य किया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्हें इनकी रचना ‘अकाल में सारस’ पर सन् 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
सन 1994 में इन्हें मध्य प्रदेश शासन द्वारा मैधिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया गया था। इसके अतिरिक्त इन्हें कुमारन आशान, व्यास सम्मान, दयावती मोदी पुरस्कार आदि कई अन्य सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।
रचनाएँ – केदारनाथ सिंह की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
काव्य-संग्रह – अभी बिलकुल अभी, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, ज्रमीन पक रही है, उत्तर कबीर तथा अन्य कविताएँ, बाघ।
आलोचना – कल्पना और छायावाद।
निबंध-संग्रह – मेंर समय के शब्द, कब्रिस्तान में पंचायत।
काव्य की विशेषताएँ – केदारनाथ सिंह के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
i. साँदर्य और प्रेम – केदारनाथ सिंह का प्रारंभिक काव्य-सौददर्य और प्रेम से युक्त रहा है। इसमें कवि एक सहज, भावुक एवं सरस गीतकार उभरकर आता है। इनके इन गीतों में लोक गीतों जैसी सहजता, भावुकता, ताजगी और मधुरता के दर्शन होते हैं। जैसे ‘फागुन का गीत’ की यह पंक्तियाँ –
गीतों से भरे दिन फागुन के ये गाए जाने को जी करता।
अनगाए भी ये इतने मीठे
इन्हें गाएँ तो क्या गाएँ।
ये आते, उहरते, चले जाते
इन्हें पाएँ तो क्या पाएँ।
ये टेसू में आग लगा जाते, इन्हें छूने में डर लगता!
ii. आस्था और विश्वास-नई कविता के कवि के रूप में केदारनाथ सिंह आस्था और विश्वास के शिल्पी हैं। इनकी अनेक रचनाओं में आगत-भविष्य के प्रति एक निष्ठापूर्ण मंगल-कामना व्यक्त हुई है। संघर्ष की प्रक्रिया तो सनातन है किंतु आस्थापूर्वक भोगे गए संघर्ष की पीठिका पर ही नई-नई सृष्टि होती है। केदार की काव्य-चेतना आधुनिक जीवन संदभीं में इसी दर्शन को लेकर प्रतिफलित हुई है। यही भाव ‘बनारस’ कविता में इस प्रकार मुखरित हुए हैं –
किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से
बिलकुल बेखबर।
iii. सामाजिक चेतना – केदारनाथ व्यक्ति की चेतना को समाज से प्रभावित मानते हैं। इनकी मान्यता है कि कवि समाज से जो कुछ भी ग्रहण करे, उसमें उसका अपनापन अवश्य होना चाहिए। कवि भविष्य के प्रति भी सचेत दिखाई देता है। उसमें जीवन के उच्चतर मूल्यों के प्रति आस्था और विश्वास है। युगीन विकृतियों पर विजय प्राप्त कर भविष्य-निर्माण की लालसा भी कवि में दिखाई देती है। जैसे –
यह धीरे-धीरे होना
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि हिलता नहीं हैं कुछ भी।
iv. संघर्षशीलता – यथार्थ जीवन की कटुता और तिक्तता कवि के मानववादी विश्वासों को सर्वथा तोड़ नहीं पाती। अभावों की विषादपूर्ण काली छाया का आभास इन्हैं अवश्य मिलता है किंतु इनका कवि पराजय, निराशा और कुंठा को स्वीकार नहीं करता। अभावों से जूझते हुए कभी-कदा विचलित हो जाना एक बात है कितु उनसे भयभीत होकर अपने व्यक्तित्व को विसर्जित कर देना नितांत भिन्न स्थिति है। केदार की यथार्थग्राहिणी जीवन-दृष्टि ने इस सत्य का साक्षात्कार किया है।
इसलिए कवि सदा संघर्षरत रहता है तथा जीवन-संघर्षों से विचलित नहीं होता। ‘कमरे का दानव’ कविता में इसी भाव को मूर्त रूप प्रदान किया गया है –
डरता नहीं हैं
मगर उसे जब देखता हैं,
देखा नहीं जाता है।
आज भी खड़ा है वह
मेरे दरवाजे पर, मेरी प्रतीक्षा में
बड़े-बड़े डैनों वाला कमरे का दानव।
v. भाषा-शैली – केदारनाथ सिंह की भाषा सहज तथा भावानुकूल है। कवि की भाषा में अनेक प्रकार की रंगत दिखाई देती है। भाषा प्रगीतों के भावानुसार बदलती रहती है। भाषा प्राय: संस्कृतनिष्ठ है जिसके ऊपर उर्दू और देशज शब्दों का प्रभाव है। बिंब विधान के प्रति कवि की अत्यधिक रुचि है। कवि किसी भी मनःस्थिति अथवा अनुभूति की चित्रात्मक अभिव्यक्ति करने में सक्षम है। कवि के गतिशील बिंब भी दर्शनीय है। ‘दिशा’ कविता की इन पंक्तियों को इस दृष्टि से देखा जा सकता है –
हिमालय किधर है ?
मैने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर
पतंग उड़ा रहा था
उधर-उधर उसने कहा
जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी।
कवि ने लौकिक छंदों फगुआ, दादरा के अतिरिक्त मुक्त छंद में अपने भावों को अभिव्यक्त किया है। विषय-वस्तु, रचना विधान, भाषा-शैली आदि सभी दृष्टियों से केदारनाथ सिंह एक सफल कवि हैं।
Banaras Class 12 Hindi Summary
‘बनारस’ कविता केदारनाथ सिंह द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने बनारस के सांस्कृतिक पवे सामाजिक परिवेश का यथार्थ चित्रण किया है। कवि के अनुसार बनारस में वसंत अचानक ही आ जाता है और उसके आते ही बनारस के लहरतारा या मडुवाडीह मोहल्लों की तरफ से धूलभरी आंधियाँ चलने लगती हैं जिससे इस शहर के लोग परेशान हो जाते हैं। सभी अपने-अपने कायों में लग जाते हैं। दशाश्वमेध घाट पर पूज-पाठ चलता रहता है। भिखारी अपने खाली कटोरे लेकर बैठे रहते हैं।
इस शहर में अनेक लोग आते-जाते रहते हैं। अनेक शवों का दाह-संस्कार यही होता है। इस शहर में सभी कार्य धीमी गति से तथा एक ‘रौ’ में होते है। यहाँ जो जहाँ है वहीं पड़ा रहता है। संध्या के समय यहाँ मंदिरों में मंद-मंद घंटा-ध्वनि से आरती होती है। उस समय गंगा-तट पर टिमटिमाते दीपकों से इसकी छटा अलॉकिक हो जाती है। इस शहर में कोई निराश्रित नहीं है। सबको सहारा मिलता है। यह शहर इसी प्रकार से शताब्दियों से किसी अनदेखे सूर्य को जलांजलि देता हुआ गंगा के जल में एक टांग से खड़ा हुआ है।
Disha Class 12 Hindi Summary
‘दिशा’ बालमनोविज्ञान पर आधारित कवि केदारनाय की एक लघु कविता है। इसमें कवि पतंग उड़ाते हुए बालक से पूछता है कि बताओ हिमालय किधर है ? इसपर वह बालक बिना कोई विचार किए बाल सुलभ, सरलता से उत्तर देता है कि जिधर उसकी पतंग उड़ती जा रही है, हिमालय उधर ही है बालक का यह सहज उत्तर कवि को मोह लेता है और वह सोचता है कि वास्तव में आज ही उसे यथार्थ ज्ञान हुआ है कि हिमालय किधर है।
बनारस सप्रसंग व्याख्या
1. इस शहर में वसंत अचानक आता है
और जब आता है तो मैने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बयंडर
और इस मान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है।
शब्दार्थ : किरकिराने – दाँतों के नीचे कंकड़ जैसी कोई चीज्ञ लगना, किरकिरी पड़ने के समान पीड़ा होना। बवंडर – चक्रवात, चक्र की तरह घूमती हुई वायु, आधधी।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह द्वारा रचित कविता ‘बनारस’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने बनारस के सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत की हैं।
व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि बनारस में वसंत के आगमन का वर्णन करते हुए लिखता है कि बनारस शहर में वसंत का आगमन बिना कोई पूर्व सूचना दिए अचानक ही आ जाता है। वसंत के आगमन पर कवि देखता है कि बनारस के लहरतारा अथवा मडुवाडीह मोहल्लों की ओर से धूल की तेज्ञ आँधी उठती है। इस धूलभरे चक्रवात से इस महान पुराने शहर में रहने वाले लोगों के मुँह में धूल भर जाने से उनकी जीभ किरकिराने लगती हैं।
विशेष :
- इन पंक्तियों में कवि ने वसंत के आगमन पर बनारस में चलने वाली धूलभरी आँधियों का सजीव वर्णन किया है।
- भाषा तद्भव और देशज शब्दों से मुक्त भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- मुक्त छंद की रचना है।
2. जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ
आदमी दशाश्वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढृियों पर बैठे बंदरों की औँखों में
एक अजीब-सी नमी है
और एक अजीब-सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन
शब्दार्थ : दशाश्वमेध – बनारस में गंगा किनारे के एक घाट का नाम। निचाट – बिलकुल।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह द्वारा रचित कविता ‘बनारस’ से ली गई हैं। इस कविता में कबि ने बनारस के सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवेश का चित्रण किया है।
व्याखया : इन पंक्तियों में कवि वसंत के आगमन पर चलने वाली धूलभरी आधधियों के बनारस वासियों पर प्रभाव का चित्रण करते हुए लिखता है कि इस स्थिति में जो जहाँ जिस स्थिति में होता है वह सचेत-सा होने लगता है और जो नहीं है वह पचखियाँ फेंकने लगता है। जब कोई व्यक्ति दशाश्वमेध घाट पर जाता है तो उसे घाट का अंतिम पत्थर कुछ और अधिक मुलायम हो गया लगता है। वहॉं सीढ़ियों पर जो बंदर बँठे है उनकी आँखों में एक विचित्र-सी नमी दिखाई देती है। वहीं पर जो भिखारी बैठे हैं उनके कटोरों का बिलकुल खालीपन एक विचित्र-सी चमक से भर उठता है।
विशेष :
- कवि ने बनारस के सामाजिक परिवेश को प्रकट करने में सहजता का परिचय दिया है।
- मुक्त छंद युक्त है।
- तद्भव और देशज शब्दों की अधिकता है।
- चाक्षुय बिंब योजना है।
- अनुप्रास और उपमा अलंकार की छय अवलोकनीय है।
3. तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में बसंत का उतरना!
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज्ञ-रोज्त एक अनंत शव
ले जाते हैं कंधे
अंधेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ़
इस शहर में धूल
धीरे-धीर डड़ती है
धीरि-धीर चलते हैं लोग
धीरे-धीर बजते हैं घंटे
शाम धीरे-धीर होती है।
शब्दार्थ : अनंत – जिसका अंत न हो, अंतरहित।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह की कविता ‘बनारस ‘ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने बनारस के सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन को अभिव्यक्ति प्रदान की है।
व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि वसंत के आगमन के पश्चात बनारस के जन-जीवन पर हुए प्रभाव को चित्रित करते हुए लिखता है कि क्या आपने कभी ऐसा देखा है कि जिनके कटोरे खाली हैं अर्थात जिन्हें पेट भरने के लिए खाना भी नहीं मिलता। वे भी वसंत के आगमन का उल्लास मनाते हों। बनारस एक ऐसा शहर है जहाँ लोगों का आना-जाना, दिन और रात का होना समान गति से होता रहता है। इस शहर में लोग आते हैं और कुछ लोग जाते भी रहते हैं। इस प्रकार यह शहर भरता भी है और खाली भी हो जाता है। इस शहर में लोग इसी प्रकार से प्रतिदिन अनेक शवों को अपने कंधों पर रखकर अँधेरी गलियों में से होकर चमकती हुई गंगा की तरफ प्रवाहित करने के लिए ले जाते हैं। इस शहर में धूल धीरे-धीर उड़ती है। यहाँ के लोग धीर-धीरे चलते हैं। यहाँ के मंदिरों में घंटे धीरे-धीरे बजते हैं और यहाँ शाम भी धीरे-धीरे होती है। इस शहर में होनेवाले सभी क्रियाकलाप धीरे-धीरे समान गति से चलते रहते है।
विशेष :
- इन पंक्तियों में कवि ने बनारस के लोगों की धीमी जीवन-पद्धति का सजीव शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है।
- भाषा तद्भव, देशज, तत्सम और विदेशी शब्दों से युक्त सहज, सरल, भावपूर्ण एर्व प्रवाहमयी है।
- पुनरुक्तिप्रकाश का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
- लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है।
- मुक्त छंद की रचना है।
4. यह धीरे-धीरे होना
धीर-धीरे होने की सामूहिंक लय
दुढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि हिलता नहीं है कुछ भी
कि जो चीज्त जहाँ थी
वहीं पर रखी है
कि गंगा वहीं है
कि वही पर बंधी है नाव
कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ
सैकड़ों बरस से
शब्दार्थ : समूचे – सारे।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह द्वारा राचित कविता ‘बनारस’ से ली गई है। इस कविता में कवि ने बनारस के सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवेश का सजीव चित्रण किया है।
क्याख्या : इन पंक्तियों में कवि बनारस की धीमी गति से चलने वाली कार्यशैली का वर्णन करते हुए लिखता है कि बनारस में सभी कार्य अत्यंत सहज रूप से तथा धीरे-धीर होते है। यहाँ की इस कार्य-प्रणाली में एक सामूहिक लय के दर्शन होते हैं जिसने सारे शहर को मज्ञबूती से बाँधा हुआ है। बनारस की यह विशेषता है कि यहाँ सभी कार्य अपनी एक ‘रौ’ में होते है तथा यहाँ के लोग परस्पर मिल-जुलकर रहते हैं। यहाँ कभी भी कहीं पर कुछ भी गिरता नहीं हैं। यहाँ तक कि कहीं कुछ हिलता तक नहीं है। जो वस्तु जहाँ रख दी गई है, वह वहीं पर पड़ी रहती है। जैसे गंगा अपने स्थान पर बह रही है। गंगा-किनारे बँधी नाव अपने स्थान पर है। तुलसीदास की खड़ाऊँ जहाँ रखी गई थीं वर्षों से वहीं पड़ी हुई हैं।
विशेष :
- कवि मानता है कि बनारस का जन-जीवन धीमी गति से चलता है परंतु यही बनारस की विशिष्टता है और इसी कारण बनारस का बनारसीपन अभी तक सुरक्षित है।
- भाषा तत्सम तथा देशज शब्दों से युक्त सहज, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।
- पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
- मुक्त छंद की रचना है।
- प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
5. कभी सई-साँझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है
आधा शव में
आधा नीद में है
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं है
शब्दार्थ : सई-साँझ – शाम होते ही। आलोक – प्रकाश, रोशनी।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह द्वारा रचित कविता ‘बनारस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने बनारस के सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवेश का सजीव अंकन किया है।
व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि संध्या के समय बनारस की शोभा का वर्णन करते हुए लिखता है कि यदि आप कभी शाम होते ही बिना किसी को सूचित किए बनारस आएँगे तो उस समय हो रही आरती के प्रकाश में यदि इस शहर को अचानक देखेंगे तो इसकी अद्भुत बनावट आपको अपनी ओर आकर्षित कर लेगी। उस समय यह शहर आधा जल में झिलमिलाता हुआ दिखाई देगा। यहाँ के लोग पूजा-पाठ, मंत्र जाप करते दिखाई देंगे। कुछ लोग फूलों को तैराते हुए तो कुछ शवों का विसर्जन करते हुए दिखाई देंगे। यह शहर आधा नींद में डूबा-सा और आधा शंख ध्वनि के द्वारा आरती करता दिखाई देगा। यदि आप ध्यानपूर्वक इस शहर को देखेंगे तो यह आधा होते हुए भी आधा नहीं लगेगा।
विशेष :
- इन पंक्तियों में कवि ने संध्या के समय बनारस के घाटों पर होने वाली आरती का वर्णन करते हुए वहाँ के शब्द-चित्र प्रस्तुत किए है।
- भाषा देशज, तत्सम, तद्भव और विदेशी शब्दों से युक्त सहज है।
- अनुप्रास अलंकार की शोभा है।
- मुक्त छंद की रचना है।
6. जो है वह खडा है
बिना किसी स्तंभ के
जो नहीं है उसे थामे है
राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तंभ
आग के स्तंभ
और पानी के स्तभ
भुएँ के
खुशाू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ
किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्ध्य
शताबिद्यों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टांग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से
बिलकुल बेखबर।
शब्दार्थ : स्तंभ – खंभा। थामे – रोके हुए। अलक्षित – न दिखाई देने वाला। अर्घ्य – जलाजलि देना।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह द्वारा रचित कविता ‘बनारस’ से ली गई है। इस कविता में कवि ने बनारस के सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवेश का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि बनारस की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए लिखता है कि इस शहर में सब को सहारा मिलता है। इस शहर में जो भी आता है वह अपनी आस्था से बैंधा हुआ यहाँ आता है। उसे उसकी आस्था ने ही आश्रय दिया हुआ है। यहाँ गंगा की आरती के समय आरती के पात्र से उठनेवाली ज्योति की लपटें और धुएँ से गंगा-जल में स्तंभ बन जाते हैं। चारों और आरती की सुगंध फैल जाती है। मनुष्यों के उठे हुए हाथ मानो किसी न दिखाई देते हुए सूर्य को जलांजलि देते हुए प्रतीत होते हैं। सदियों से इस शहर में आस्था, श्रद्धा और भक्ति का यह आयोजन होता आ रहा है। यह शहर अपनी इसी आस्था के सहारे अपने में मग्न है तथा इसे अन्य किसी को कोई चिंता नहीं है।
विशेष :
- कवि ने बनारस को श्रद्धा, भक्ति और आस्था का शहर माना है।
- भाषा सहज, सरल, प्रवाहमयी तथा भावपूर्ण है।
- पुनरक्ति प्रकाश अलंकार है।
- मुक्त छंद की रचना है।
दिशा सप्रसंग व्याख्या
1. हिमालय किधर है ?
मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर
पतंग उड़ा रहा था
उधर-उधर-उसने कहा
जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी
मैं स्वीकार करूँ
मैंने पहली बार जाना
हिमालय किधर है।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह द्वारा रचित कविता ‘दिशा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने बालकों के यथार्थ बोध को सहज रूप से व्यक्त किया है।
व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि बच्चों की सहजता का वर्णन करते हुए लिखता है कि हिमालय किधर है ? जब उसने यह प्रश्न एक उस बच्चे से पूछा जो अपने स्कूल के बाहर पतंग उड़ा रहा था तो उस बालक ने बिना किसी झिझक के कवि को बताया कि जिस तरफ़ उसकी पतंग उड़ती हुई जा रही है उधर ही हिमालय पर्वत है। कवि को बालक का इस प्रकार से सहज भाव से उत्तर देना मोह लेता है और वह स्वीकार करता है कि आज उसे पहली बार यह ज्ञात हुआ कि हिमालय किस तरफ है।
विशेष :
- इन पंक्तियों में कवि ने बाल-मनोविज्ञान के आधार पर स्पष्ट किया है कि किस प्रकार बच्चे सहज भाव से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अपनी बाल सुलभ स्वाभाविकता से दे देते हैं।
- बोलचाल की भाषा का सहज प्रयोग है ओ अत्यंत सरल, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।
- प्रश्न, पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार है।
- मुक्त छंद की कविता है।