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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 3 यह दीप अकेला, मैंने देखा, एक बूँद

Class 12 Hindi Chapter 3 Question Answer Antra यह दीप अकेला, मैंने देखा, एक बूँद

(क) यह दीप अकेला

प्रश्न 1.
‘दीप अकेला’ के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि उसे कवि ने स्नेहभरा, गर्वभरा एवं मदमाता क्यों कहा है?
अथवा
कवि ने ‘यह दीप अकेला सेहभरा है गर्वभरा मदमाता’ क्यों कहा है?
उत्तर :
इस कविता में कवि ने ‘दीप अकेला’ को उस अस्मिता का प्रतीक माना है, जिसमें लघुता में भी ऊपर उठने की गर्वभरी व्याकुलता विद्यमान है। उसमें स्नेह अर्थात प्रेम रूपी तेल भरा हुआ है। वह गर्व से युक्त होकर ऊपर उठता है और मस्ती से भरकर अपना प्रकाश चारों ओर बिखेरता है। यह अकेला होते हुए भी एक आलोक स्तंभ के समान है जो समाज का कल्याण करेगा और अपने मदमाते गर्व के कारण सबसे अलग दिखाई देगा।

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प्रश्न 2.
यह दीप अकेला है ‘पर इसको भी पंक्ति को दे दो’ के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय क्यों और कैसे संभव है ?
उत्तर :
कवि ने इस कविता में ‘दीप’ को प्रतीक बनाकर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। यह ‘दीप’ एकाकी है जो बहुत बड़ा न होकर लघु है और इस लघुता में उसे किसी प्रकार की आत्महीनता का बोध नहीं होता है। उसका आत्मगौरव अक्षुण है। अपने पृथक अस्तित्व को सार्थकता प्रदान करने के लिए वह ‘पंक्ति’ के प्रति निरपेक्ष भाव से समर्पित है। यह समर्पण उसके लिए अखंड और अनाविल है। उसकी हर बात निराली है। वह ऐसा व्यक्ति है जो प्रगाता के रूप में ऐसे गीत गाता है जिसकी समानता भविष्य में कोई नहीं कर पाएगा। वह ऐसा गोताखोर है जो सच्चे मोती निकालकर लानेवाला है।

यह उस प्रज्वलित समिधा के समान है जो सभी समिधाओं में अद्वितीय है। किंतु इतना सब कुछ होते हुए भी उसका विसर्जन वर्जित न होगा तथा उसका अखंड समर्पण सदा अक्षत रहेगा। कवि इस एकाकी व्यक्तित्व से संपन्न दीप को मधु, गोरस एवं अंकुर कहकर संबोधित करता है जो एक आलोक स्तंभ के समान है जो समष्टि-हितों के अनुकूल सिद्ध होगा एवं अपने मदमाते गर्व के कारण पृथक रूप से उद्भासित रहेगा। इस प्रकार समर्पण के माध्यम ही व्यष्टि का समष्टि में विलय संभव है।

प्रश्न 3.
‘गीत’ और ‘ मोती’ की सार्थकता किससे जुड़ी है ?
उत्तर :
‘गीत’ की सार्थकता कवि कर्म से जुड़ी है। कवि अपने हृदय की गहराइयों में उतरकर श्रेष्ठ कविता की रचना करता है और उस गीत को गाकर समाज के सम्मुख अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है। इस प्रकार ‘गीत’ के माध्यम से समाज ही व्यक्ति की भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान कर रहा है। ‘मोती’ की सार्थकता तभी है जब कोई गोताखोर सागर की अतल गहराइयों से उसे निकालकर लाता है और उसे परखनेवाले समाज में उसकी कद्र होती है।

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प्रश्न 4.
‘यह अद्ववितीय-यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित’ पंक्ति के आधार पर व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए।
उत्तर :
‘यह दीप अकेला’ कविता में कवि व्यक्तित्व की विशिष्टता एवं अद्वितीयता को स्वीकार करते हुए भी सर्जक व्यक्तित्व को समाज को अर्पित करने की बात करता है, यथा –

‘यह अद्वितीय! यह मेरा ! यह मैं स्वयं विसर्जित’

मानव के लिए संगठित मानव व्यक्तित्व आस्था और सर्जनात्मकता का महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। इस कविता में कवि का व्यक्तित्व पंक्ति के प्रति स्वयं अर्पित है। आत्म-समर्पण एवं आत्म-त्याग का भाव आस्तिकता से जन्म लेता है। इस कविता के माध्यम से कवि लोक-संपृक्ति का उदाहरण पेश करता है। यह कविता मूलत: व्यक्ति और समाज के संबंधों को विश्लेषित करती है। कवि अपने अद्वितीय व्यक्तित्व की सार्थकता इसी में पाता है कि वह समाज को अर्पित हो। अकेला व्यक्ति समाज से कटकर किसी भी प्रकार जीवन का उपयोग नहीं कर सकता। वह चाहे कितना भी गुणों से संपन्न क्यों न हो पर समाज के बिना उसके सारे गुण व्यर्थ हैं। व्यक्ति समाज के माध्यम से ही अपनी पहचान बना सकता है।

प्रश्न 5.
‘यह मधु है ……… तकता निर्भय’ पंक्तियों के आधार पर बताइए कि ‘मधु’, ‘गोरस’ और ‘अंकुर’ की क्या विशेषता है?
उत्तर :
मधुमक्खी मधु का संचय बूँद-बूँदकर करती है और इसमें उसे बहुत समय लग जाता है। मधुमक्खी अपना यह कार्य चुपचाप करती चली जाती है। इसी प्रकार से कवि के गीतों की मधुरता युगों से चुपचाप किए जा रहे उसके प्रयासों का संचित फल है। जिस प्रकार कामधेनु सदा अमृत जैसा पवित्र दूध देती है उसी प्रकार से कवि भी समाज को अपने गीतों रूपी पवित्र दूध से पुष्टि प्रदान करता है । जैसे अंकुर स्वयं ही पृथ्वी को फोड़कर निर्भयतापूर्वक सूर्य को देखता है वैसे ही कवि भी अपनी कल्पनाओं को गीतों में ढालकर ऊँची उड़ानें भरता है।

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प्रश्न 6.
भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
(क) ‘यह प्रकृत, स्वयंभू ………………. शक्ति को दे दो।’
(ख) ‘यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक ………….. चिर-अखंड अपनापा।’
(ग) ‘जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो।’
उत्तर :
(क) कवि ने अंकुर को प्रकृत, स्वयंभू और ब्रह्म समान कहा है क्योंकि वह स्वयं ही धरती को फोड़कर निकल आता है और निर्भय होकर सूर्य की ओर देखने लगता है। इसी प्रकार से कवि भी स्वयं गीत बनाकर निर्भय होकर उसे गाता है। इसलिए इन्हें भी सम्मान मिलना चाहिए।

(ख) दीपक सदा आग को धारण कर उसकी पीड़ा को पहचानता है परंतु फिर भी सदा करुणा से द्रवित होकर स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। यह सदा सावधान, जागरूक तथा सबके प्रति प्रेम भाव से युक्त रहता है। वह ऊपर उठकर तथा स्थिर रहते हुए सबको गले लगाने के लिए बाँहें उठाए रहता है। इसी प्रकार से कवि भी समस्त कष्ट स्वयं सहन कर सबको अपनाने के लिए तैयार रहता है।

(ग) यह दीपक सदा जानने की इच्छा से भरपूर, ज्ञानवान तथा श्रद्धा से युक्त रहा है। अत: इसे भक्ति अथवा समाजरूपी देवता को अर्पित कर दो। इसी प्रकार से कवि भी जिज्ञासु, जागरूक तथा श्रद्धावान होता है। इसलिए उसे भी समाज-कल्याण के कार्यों में तत्पर रहने देना चाहिए।

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प्रश्न 7.
‘बह दीप अकेला’ एक प्रयोगवादी कविता है। इस कविता के आधार पर ‘लघु मानव’ के अस्तित्व और महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘यह दीप अकेला’ कविता में कवि ने एक छोटे-से जलते हुए दीपक को ‘लघु मानव’ के रूप में माना है। जैसे छोट-सा दीपक जलकर अँधेर को नष्ट कर देता है और चारों ओर अपना प्रकाश फैला देता है उसी प्रकार से लघु मानव भी इस छोटे-से दीपक के समान एक इकाई है। उसे महत्वहीन नहीं समझा जा सकता। वह अपने कायों द्वारा समाज की बहुत भलाई कर सकता है। जैसे पनडुब्बा समुद्र में गोते लगाकर मोती निकाल लाता है, वह भी समाज रूपी सागर में डुबकियाँ लगाकर समाज-कल्याण के अनेक कार्य कर सकता है। जैसे एक-एक बूँद के मिलने से सागर बन जाता है वैसे ही अनेक लघु मानव मिलकर एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकते हैं, इसलिए समाज में प्रत्येक लघु मानव का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है और उसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है।

प्रश्न 8.
कविता के लाक्षणिक प्रयोगों का चयन कीजिए और उनमें निहित सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अजेय ने ‘यह दीप अकेला’ नामक कविता में लाक्षाणिकता का अति सुंदर प्रयोग किया है और स्वयं पर दीपक का आरोप करते हुए अपने दृढ़ आत्म-विश्वास, ऊपर उठने की भावना और व्यक्ति के लिए समाज की आवश्यकता को व्यक्त किया है। कवि के द्वारा प्रयुक्त लाक्षणिकता को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –

  • यह दीप अकेला – कवि का हृदय रूपी दीपक जो अकेला है।
  • स्नेहभरा – प्रेम रूपी तेल से भरा हुआ होना।
  • पंक्ति को दे दो – समाज में स्थान प्रदान करना।
  • यह जन है – जन-जागरण के गीत गानेवाला कवि हृदय।
  • पनडुब्बा – भावनाओं के सागर में गोता लगानेवाला गोताखोर।
  • सच्चे मोती – कविता रूपी मोती।
  • यह समिधा – काव्य रूपी यज्ञ में भाव रूपी लकड़ियाँ।
  • यह मधु है – हृदय रूपी दीपक अत्यंत मधुर है।
  • काल की मौना का युग संचय – समकालीन युग की शांत भावना का संचय।
  • जीवन कामधनु – जीवन रूपी कामधेनु का अमृत समान दूध।
  • अंकुर – निर्भयतापूर्वक भावनाओं का स्वयं फूटना।
  • प्रकृत, स्वयंभू, ब्रहम, अयुत – ब्रहम सुष्टि के समान सबकी रचना करके भी पृथक।
  • गहराई को स्वयं उसी ने नापा – प्रतिकूल आलोचनाओं को स्वयं धैर्यपूर्वक सहन किया।
  • भक्ति को दे दो – समाज रूपी देवता को अर्पित कर दो।

(ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 1.
‘सागर’ और ‘बूँद’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
इस कविता में कवि ने ‘बूँद’ को मानव तथा ‘सागर’ को जगत के प्रतीक के रूप में ग्रहण किया है। इस आधार पर कवि यही सिद्ध करता है कि यदि मानव संसार-रूपी सागर से बूँद के समान मूलधारा से पृथक हो जाएगा तो उसका व्यक्तित्व उपेक्षणीय हो जाएगा, किंतु यदि उसके अखंड व्यक्तित्व को विराट-चेतना का आलोक बूँद के समान रंग डालेगा तो वह नश्वरता के बंधनों से मुक्त होकर अमर हो जाएगा।

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प्रश्न 2.
‘रंग गई क्षणभर, बलते सूरज की आग से’ पंक्ति के आधार पर बूँद के क्षणभर रैंगने की सार्थकता बताइए।
उत्तर :
समुद्र की झाग से पानी की अनेक बूँदें छिटककर अलग हो जाती हैं और फिर उसी पानी में विलीन हो जाती हैं। उनके इस प्रकार छिटकने और फिर चुपचाप पानी में विलीन हो जाने की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है। परंतु जब एक बूँद सागर के झाग से अलग हुई और उसपर संध्याकालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणें पड़ीं तो वह एक बूँद भी स्वर्णिम होकर झिलमिलाने लगी थी तथा बहुत आकर्षक लग रही थी। इस एक क्षण के लिए उस एक बूँद का स्वर्णिम हो जाना ही उसे अन्य बूँदों से अलग करके उसके जीवन को सार्थकता प्रदान कर देता है क्योंकि सभी उसकी स्वर्णिम क्रांति से मुग्ध हो उठते हैं।

प्रश्न 3.
‘सूने बिराट के समुख ……… दाग से।’ पंक्तियों का भावार्थ स्पज्ट कीजिए।
उत्तर :
उत्तर के लिए इस कविता का स्रसंग व्याख्या भाग देखिए।

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प्रश्न 4.
क्षण के महत्त्व को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए।
उत्तर :
असेय ने अपने काव्य में क्षण को बहुत महत्त्व दिया है। वे जीवन की सफलता-असफलता को क्षण-विशेष पर निर्भर मानते हैं। उन्होंने उन क्षणों को गरिमामय माना है जो मानव जीवन को गति प्रदान करते हैं। उनके अनुसार ‘अस्तित्व का एक सजीव क्षण सत्य के साक्षात्कार का ऐसा अप्रतिम क्षण होता है जब वे सब कुछ भूलकर उसी में खो जाते हैं।’ वे अंतकाल तक जीने की अपेक्षा एक क्षण आनंद से जीना श्रेष्ठ मानते हैं।’मैंने देखा, एक बूँद’ कविता में भी कवि ने क्षण विशेष के चमत्कार को ही प्रस्तुत किया है।

सागर की लहरों से अलग हुई एक बूँद पर संध्याकालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणें क्षणभर के लिए पड़ती हैं तो वह भी स्वर्णिम हो जाती हैं, परंतु एक क्षण के लिए। इसी प्रकार से मानव-जीवन में भी कुछ क्षण उसे सुखाभूति में निमग्न कर उसके जीवन को आकर्षक बना देते हैं। कवि का मानना है कि सामान्य रूप से समष्टि धारा से छिटककर अलग होना व्यक्ति को उपेक्षणीय बना देता है परंतु यदि उसके व्यक्तित्व को विराट चेतना अपने आलोक की एक बूँद से रंग दे तो वह व्यक्ति अमर हो जाता है।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
अझेय की कविताएँ ‘ नदी के द्वीप’ व ‘हरी घास पर क्षणभर’ पढ़िए और कक्षा की भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘मानव और समाज’ विषय पर परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
भारतीय दर्शन में ‘सागर’ और ‘बूँद’ का संदर्भ जानिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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कध्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
कवि ने दीपक की क्या विशेषताएँ बताई हैं ?
उत्तर :
कवि के अनुसार-यह दीपक उस अटल विश्वास का सूचक है जो कि छोटा होते हुए भी अंडिग रहा और कभी भी विचलित नहीं हुआ। अपने लघु आकार के रहते हुए भी यह कभी भी घबराया नहीं। यह दीपक उस गहन पीड़ा को वहन करता है जिसकी गहनता को यह स्वयं ही जानता है। कहने का भाव यह है कि दीपक जो आग अपने शरीर पर धारण करता है उसकी पीड़ा को वह स्वयं ही पहचानता है। यह दीपक निंदा, अपमान, अनादर के कड़वे और धुएँ से भरे अंधकार में सदा जलता आया है। यह सदा ही करुणा से द्रवित हो स्वयं जलकर प्रकाश देता है, यह सदा सावधान रहता है, जागृत रहता है और सदा ही सबको प्रेम पूर्ण नेत्रों से देखता है। यह सदा ऊपर को बाजू उठाकर, स्थिर रहकर सारे विश्वास को अपनाने की घोषणा करता है। यह दीपक सदा से जानने की इच्छा से भरपूर, ज्ञानवान तथा सदा श्रद्धा से युक्त रहा है।

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प्रश्न 2.
कवि अपनी व्यष्टि को बनाए रखने के लिए समष्टि के प्रति कैसे समर्पित होना चाहता है ?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में तरह-तरह की विशेषताएँ लेकर ही उत्पन्न होता है। वह समाज से कुछ लेना चाहता है तो समाज को बदले में देना भी चाहता है। अजेय जी समाज के प्रति समर्पित होने की भावना रखकर भी अपनी पहचान बनाए रखना चाहते हैं। वे समाज में मिलना चाहते हैं पर अपनी आस्था और विश्वास को त्यागना नहीं चाहते। वे दीपक के प्रतीक से अपनी काव्य अनुभूति की चर्चा करते हुए मानते हैं कि उन्हें अपनी कविता पर इतना विश्वास है कि वे कभी भी आलोचकों की निंदा से घबराए नहीं हैं।

उनका विश्वास इस सीमा तक अडिग है कि उनकी कविता में जो पीड़ा है, उसकी गहराई को स्वयं उनकी कविता ने ही गाया है। उनकी कविता ही सामाजिक समस्याओं, पीड़ाओं आदि को मापने का सही साधन है। उन्होंने अनेक कष्ट सहे हैं, उनकी निंदा की गई, अपमान किया गया तथा उपेक्षा के कड़वे घूँट पीने पड़े किंतु उनके काव्य-सृजन के उत्साह में ज़रा भी कमी नहीं आई। वे निरंतर और उसी प्रकार कविता लिखते रहे जो दूसरों के लिए कल्याणकारी एवं संवेदनशील थी। उनकी कविता अपनी आँखों में अनुराग की लाली सँजोए, भावनाओं को आलिंगन के लिए बाहैं उठाए चिरकाल तक बने रहनेवाले अपनेपन को अपनाए रही। कवि किसी भी अवस्था में अपने साहस को नहीं त्यागना चाहता। वह समाज को पाना चाहता है पर स्वाभिमान को नहीं खोना चाहता।

प्रश्न 3.
कवि समाज के विषय में क्या सोचता है ?
उत्तर :
कवि का विचार है कि अकेला व्यक्ति चाहे प्रेम भावों या कल्याणकारी विचारों से कितना भी भरा हुआ क्यों न हो वह समाज से अलग होकर किसी काम का नहीं है। वह समाज में ही अपनी प्रतिभा दिखा सकता है। कवि के अनुसार-मैं यदि समाज का कल्याण करनेवाले गीत नहीं गाऊँगा और समाज में मुझे उचित सम्मान नहीं मिलेगा तो मेरे जैसा गोताखोर अर्थात कर्मशील समाज को कहाँ मिलेगा जो समाज रूपी सागर में से डुबकी लगाकर सच्चे मोती निकाल लाएगा। अपने गीतों द्वारा समाज को समृद्धि प्रदान करेगा।

यदि समाज में कवि को उचित स्थान न दिया गया तो समिधाओं को सुलगा कर कौन-सा हठीला व्यक्ति समाज में चेतना या क्रांति की आग प्रज्वलित करेगा। कवि अद्वितीय होता है, अपने में बेजोड़ या अनुपम होता है, जो अपने को पूर्णतया समाज के प्रति समर्पित कर देता है। तो फिर उसकी प्रतिष्ठा का सही उपयोग करने के लिए समाज को भी चाहिए कि कवि रूपी दीपक को पंक्ति में रख दे ताकि उसे भी सम्मान प्राप्त हो सके और समाज को भी उसकी प्रतिभा उसके अस्तित्व का ज्ञान हो सके।

मेरा जिज्ञासु एवं सदा सचेत रहनेवाला मन सदा समाज का हित चाहता रहा। कवि समाज से, आलोचकों से प्रार्थना करते हुए कहता है कि मुझे भी अन्य कवियों की तरह उचित सम्मान देकर समाज के प्रति उनके उत्तरदायित्व एवं श्रद्धा भावना को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया जाना चाहिए। मैं भले ही अकेले दीपक की तरह हूँ, किंतु स्नेहभरा हूँ, गर्वीला हुँ, अपने में मस्त हूँ। जब तक समाज मुझे अन्य दीपकों की पंक्ति में नही रखेगा वह मेरे अस्तित्व और मेरी प्रतिभा से कैसे परिचित होगा। अतः समाज को चाहिए कि मेरा उचित सम्मान करे जिससे मैं भी समाज के कल्याण हेतु कुछ कर सकूँ।

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प्रश्न 4.
कवि अपने काष्य की रचना कैसे करता है?
उत्तर :
कवि दीपक की तरह अकेला जलता रहता है और मानवीय प्रेम से परिपूर्ण होकर अपने कवित्व में डूबा रहता है। वह अपनी कविता में मस्त है। इसे कवि-समाज की कतार में सम्मिलित कर दो। यदि कवि, कविता की रचना न करे तो अन्य कोई कविता की रचना नहीं कर सकता। कवि गोताखोर की तरह हृदय की गहराइयों में उतरकर श्रेष्ठ कविता-रूपी मोती निकालकर ले आता है। वह श्रेष्ठ गीतों की रचना करता है। कवि के अतिरिक्त ऐसा कौन है जो भावभरे गीतों की रचना कर सकता हो। कवि समिधा की तरह स्वयं की आहूति देकर यज्ञ के समान काव्य की अग्नि को प्रज्वलित करता है। कवि अनुपम है। इसके समान कोई दूसरा नहीं है। यह अन्य कवियों से पृथक नहीं बल्कि कवियों का ही रूप है। यह अपने-आप को काव्य-रूपी देवता पर न्योछावर करता है।

प्रश्न 5.
आत्मा के पक्ष में कविता का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आत्मा दीपक के समान अकेली जगमगा रही है। यह प्रभु के प्रेम से भरी हुई है। इसे प्रभु के प्रेम पर अभिमान है तथा प्रभु के गर्व से यह मदमस्त है। इसे भक्तात्माओं की पंक्ति में सम्मिलित कर लेना चाहिए। यदि भक्त-आत्मा प्रभु के गीत न गाए तो कोई भी प्रभु के गीत नहीं गा सकता। आत्मा अपने हदय में प्रभु को ऐसे ढूँढ़ लेती है जैसे पनडुब्बा समुद्र में से मोती ढूँढ़ लाता है। आत्मा के अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा नहीं कर सकता। आत्मा समिधा की तरह स्वयं की आहुति देकर यज् के समान प्रभु-भक्ति की अंगि को प्रज्वलित करती है। आत्मा प्रभु से अभिन्न है। इस प्रकार वह प्रभु का ही रूप है तथा स्वयं पर ही न्योछावर हो रही है।

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प्रश्न 6.
‘मैंने देखा, एक बूँद’ कविता में कवि ने सत्यता के दर्शन कैसे किए हैं?
उत्तर :
‘मैंने देखा, एक बूँद’ कविता में आत्मबोध के द्वारा ही कवि सत्यता के दर्शन कर सका है क्योंकि मानव स्वयं में परमसत्ता के सत्य को समाहित किए हुए है तथा उस विराट का क्षण विशेष में प्राप्त आलोक ही जीवन की सार्थकता के लिए पर्याप्त है। इसी से नश्वर अनश्वर अथवा अमर हो जाता है। जैसे सागर की लहरों से छिटकी पानी की एक बूँद संध्याकालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणों के आलोक से प्रभामयी होकर अमर हो गई।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
यह मधु है-स्वयं काल की मौना का युग-संचय,
यह गोरस-जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत-पय,
यह अंकुर-फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय,
यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रहूम, अयुत : इसको भी शक्ति दे दो।
उत्तर :

  1. ‘यह दीप अकेला’ कविता की इन पंक्तियों में कवि का मानना है कि सर्जक कितना भी श्रेष्ठ अथवा अद्वितीय क्यों न हो जब वह समाज से जुड़ता है तभी उसका सर्जन अर्थवान बनता है।
  2. कवि ने तत्सम-प्रधान, भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया है।
  3. मुक्त छंद की लययुक्त रचना है।
  4. अनुप्रास, रूपक, स्वाभावोक्ति, उल्लेख तथा अतिशयोक्ति अलंकारों की छटा अवलोकनीय है।
  5. कवि ने दीपक को प्रकृत माना है।
  6. प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
  7. कवि का मानना है कि प्राकृत रूप से अलग-अलग रहने वाली वस्तुएँ भी समूह में मिलकर शक्तिशाली बन जाती हैं, जो व्यष्टि का समष्टि में मिलन कहा जा सकता है।

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प्रश्न 2.
कवि ने दीपक के माध्यम से कैसे रूपक बाँधे हैं?
उत्तर :
कवि ने दीपक के माध्यम से व्यक्ति, आत्मा तथा कवि के स्वरूप को व्यक्त करते हुए माना है कि व्यक्ति भी दीपक के समान प्रेम से परिपूर्ण एवं अपने साँदर्य, यौवन आदि से मदमस्त है, फिर भी उसे समाज का अंग बनकर रहना चाहिए क्योंकि सामाजिक-प्राणी बनने से ही व्यक्ति और समाज दोनों का महत्त्व बढ़ता है। आत्मा भी दीपक के समान अकेली प्रभु-प्रेम एवं भक्ति से युक्त रहती है। उसे भी भक्तों की पंक्ति में सम्मिलित कर देना चाहिए, क्योंकि इसी में आत्मा का सँददर्य निहित है। कवि भी दीपक के समान संसार से अलग अपनी काव्य-साधना में लीन रहता है। उसे भी समाज रूपी माला का एक फूल बन जाना चाहिए। इन्हीं रूपकों का निर्वाह कवि ने समस्त कविता में सफलतापूर्वक किया है।