Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 21 कुटज to develop Hindi language and comprehension skills among the students.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 21 कुटज
Class 12 Hindi Chapter 21 Question Answer Antra कुटज
प्रश्न 1.
कुटज को ‘गाढे़ के साथी’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
कुटज को ‘गाढ़े के साथी’ इसलिए कहा गया है क्योंकि कभी इसी कुटज ने कालिदास के दुखी हलदय को सहारा प्रदान किया था। शिवालिक की अत्यंत उच्च चोटियों पर उन्हें केवल यही एक सहारा मिला था जिसने सांत्वना देकर धैर्य प्रदान किया था।
प्रश्न 2.
‘नाम’ क्यों बड़ा है ? लेखक के विच्चार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘नाम’ इसलिए बड़ा नहीं होता कि वह कोई विशेष नाम है बल्कि वह इसलिए बड़ा होता है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली होती है। सामाजिक सरोकार ही नाम को बड़ा बनाते हैं। ‘नाम’ समाज का दिया हुआ एक सत्य है। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है।
प्रश्न 3.
‘कुट’, ‘कुटज’ और ‘कुटनी’ शब्दों का विश्लेषण कार उनमें आपसी संबंध स्थापित कीजिए।
उत्तर :
‘कुट’ का शाब्दिक अर्थ है-घर या घड़ा। ‘कुटज’ का शाब्दिक अर्थ है-घर में पैदा होने वाला या घड़े में पैदा होने वाला। ‘कुटनी’ एक गलत ढंग से कार्य करने वाली दासी को कहा जाता है। कुट का अर्थ घड़ा या घर से लगाया जाता है। संस्कृत में ‘कुटहारिका’ और ‘कुटकारिका’ दासी को कहते हैं। ‘कुटिया’ और ‘कुटीर’ शब्द भी कदाचित इसी शब्द से संबद्ध हैं। इसी शब्द का अर्थ घर भी है। अतः घर में काम-काज करने वाली दासी कुटकारिका तथा कुटहारिका कही जा सकती है। इसी के समान एक गलत ढंग से कार्य करने वाली दासी को कुटनी कहा जाता है।
प्रश्न 4.
कुटज किस प्रकार अपनी अपराज्जेय जीवन-शक्ति की घोषणा करता है?
उत्तर :
कुटज अपनी अपराजेय जीवन-शक्ति की घोषणा करता है कि जीवन में चाहे सुख हो या दुख, कोई प्रिय हो या अप्रिय जो कुछ भी मिले उसे ब्ददय से पूर्णत: अपराजित होकर शान के साथ उल्लास सहित ग्रहण करना चाहिए। कभी भी विपरीत परिस्थितियों से हार नहीं माननी चाहिए। जीवन की अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना चाहिए। जीवन से कभी हार नहीं माननी चाहिए।
प्रश्न 5.
‘कुटज’ हुम सभी को क्या उपदेश देता है ? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
कुटज हम सभी को संघर्षरत तथा कर्मशील जीवन जीने का उपदेश देता है। वह कहता है कि यदि तुम जीना चाहते हो तो कठोर पत्थरों को काटकर पाताल की छाती चीरकर अपना भोग्य ग्रहण करो। वायुमंडल को चूसकर तथा आँधी-तूफ़ान को मिटाकर अपना प्राप्य वसूल करो। असीम आकाश को चूमकर तथा अवकाश की लहरों में झूमकर जीवन में उल्लास तथा आनंद पैदा करो।
प्रश्न 6.
कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?
अथवा
“कुटज में न विशेष साँदर्य है, न सुगंध, फिर भी लेखक ने उसमें मानव के लिए एक संदेशा पाया है।” इस कथन की पुष्टि करते हुए बताइए कि संदेश क्या है ?
उत्तर :
कुटज के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि मनुष्य को निरंतर संघर्षरत तथा कर्मशील रहना चाहिए। जीवन में आनेवाली प्रत्येक परिस्थिति का साहसपूर्ण सामना करना चाहिए। अपने बल तथा परिश्रम के द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति करनी चाहिए। जीवन की अनुकूल तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में विचलित नहीं होना चाहिए। सुख-दुख, राग-विराग, प्रिय-अप्रिय, हार-जीत जो भी मिले हुदय से अपराजित होकर
शान के साथ आनंदपूर्वक ग्रहण करनी चाहिए। कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। मनुष्य के मन को अपने वश में करके जीना चाहिए क्योंकि जिसका मन वश में हो वही मनुष्य सुखी होता है। परवश मनुष्य सदैव दुखी रहता है।
प्रश्न 7.
कुटज क्या केवल जी रहा है? लेखक ने यह प्रश्न उठाकर किन मानवीय कमज़ोरियों पर टिप्पणी की है?
उत्तर :
कुटज क्या केवल जी रहा है ? लेखक ने यह प्रश्न उठाकर निम्नांकित मानवीय कमखोरियों पर टिप्पणी की है –
- कुटज कभी दूसरे के द्वार पर भीख माँगने नहीं जाता।
- किसी के निकट आ जाने पर भय से नहीं काँपता।
- समाज में यहाँ-वहाँ भटकता हुआ नीति-धर्म का उपदेश देता नहीं घूमता।
- वह अपनी उन्नति के लिए अफसरों के जूते नहीं चाटता।
- वह दूसरों को अपमानित करने हेतु ग्रहों की खुशामद नहीं करता।
- अपनी उन्नति के लिए नीलम धारण नहीं करता और न ही अँगूठियों की लड़ी पहनता है।
- वह न तो दाँत निपोरता है और न ही किसी की बगलें झाँकता है।
प्रश्न 8.
दुनिया में त्याग नहीं है, प्रेम नहीं है, परार्थ नहीं है, परमार्थ नहीं है-है केवल प्रचंड स्वार्थ। भीतर की जिजीविषा-जीते रहने की प्रवंड इच्छा ही-अगर बड़ी हो तो फिर यह सारी बड़ी-बड़ी बोलियाँ जिनके बल पर दल बनाए जाते हैं, शत्रुमर्दन का अभिनय किया जाता है, देशोद्धार का नारा लगाया जाता है, साहित्य और कला की महिमा गाई जाती है, झूठ है। इसके द्वारा कोई-न-कोई अपना बड़ा स्वार्थ सिद्ध करता है। लेकिन अंतरतर से कोई कह रहा है, ऐसा सोचना गलत ढंग से सोचना है।
उत्तर :
प्रसंग-यह गद्यावतरण ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित पाठ ‘कुटज’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। इसमें लेखक ने बताया है कि दुनिया केवल स्वार्थ पर आधारित है। हर कहीं केवल स्वार्थ ही स्वार्थ दुष्टिगोचर होता है।
व्याख्या – लेखक का कथन है कि दुनिया में त्याग, प्रेम और परमार्थ की भावना नहीं है। चारों तरफ़ केवल प्रचंड स्वार्थ की भावना ही दिखाई देती है। यदि अंतर्मन में निहित जीने की इच्छा ही बड़ी बात हो तो फिर यह सारी बड़ी-बड़ी बोलियाँ जिनके आधार पर दल बनाए जाते है, शत्रु को मारने का अभिनय किया जाता है। देश के उद्धार का नारा लगाया जाता है, साहित्य और कला की महिमा गाई जाती है यह सब असत्य है। इसके माध्यम से कोई न कोई अपना बड़ा स्वार्थ सिद्ध करता है। लेकिन अंतर्मन से कोई कहता है कि ऐसा सोचना बिलकुल गलत है।
विशेष – (i) दुनिया में प्रचलित स्वार्थ भावना का उल्लेख है जिसके सामने सर्वस्व कुर्बान किया जाता है।
(ii) भाषा सरल, सहज, खड़ी बोली है।
(iii) तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
प्रश्न 9.
लेखक क्यों मानता है कि स्वार्थ से बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचंड कोई-न-कोई शक्ति अवश्य है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से प्रचंड कोई-न-कोई शक्ति अवश्य है इसलिए मानता है क्योंकि स्वार्थ में डूबकर तथा जिजीविषा के कारण मनुष्य जो भी गलत कार्य करता है या सोचता है तो उसके अंदर से एक आवाज़ अवश्य आती है जो यह कह रही होती है कि ऐसा सोचना गलत है। ऐसा कार्य करना अनुचित है। वह शक्ति मनुष्य को निरंतर प्रेरणा देती है कि वह स्वार्थवश होकर कोई अनैतिक कार्य न करें। किसी का अहित न सोचे।
प्रश्न 10.
कुटज पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि दुख और सुख तो मन के विकल्प है।
उत्तर :
दुख और सुख मानव मन के विकल्प हैं। मानव जीवन में दुख और सुख धूप-छाया के समान आते-जाते रहते हैं। दुख के बाद सुख तथा सुख के बाद दुख की अनुभूति होना अनिवार्य है। मानव जीवन में सुखी वही है जिसका मन वश में है। जिसका मन परवश है वह हमेशा दुखी रहता है। परवश होने का अर्थ है खुशामद करना, दाँत निपोरना, चापलूसी करना, हा-हजूरी करना। जिस मनुष्य का मन अपने वश में नहीं है वह दूसरे मन के परदे खोलता रहता है। अपने-आप को छिपाने के लिए झूठे आडंबर रचता है तथा दूसरों को फँसाने के लिए जाल बिछाता है।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग क्याख्या कीजिए –
(क) ‘कभी-कभी’ जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफ़ी गहरी पैठी रहती हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतल गह्वर से अपना भोग्य खर्खिंच लाते हैं।
(ख) ‘रुप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज्ज-सत्य। नाम उस पद को कहते हैं जिसपर समाज की मुहर लगी होती है। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सैक्शन’ कहा करते हैं। मेरा मन नाम के लिए व्याकुल है, समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि-मानव की चित्त-गंगा में स्नात।’
(ग) ‘रूप की तो बात ही क्या है ! बलिहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कुपित यमराज के दारुण नि:श्वास के समान धधकती लू में यह हरा भी है और भरा भी है, दुर्जन के चित्त से अधिक कठोर पाषाण की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्त्रोत सें बरखस रस खीचकर सरस बना हुआ है।’
(घ) ‘हूदयेनापराजितः कितना विशाल वह हदय होगा जो सुख से, दुख से, प्रिय से, अप्रिय से विचलित न होता होगा ! कुटज को देखकर रोमांच हो आता है। कहाँ से मिली है यह अकुतोभया वृत्ति, अपराजित स्वभाव, अविचल जीवन दृष्टि।’
उत्तर :
(क) प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित तथा हज्ञारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित ‘कुटज’ नामक निबंध से अवतरित है। इसमें लेखक ने बेहया लोगों की आंतरिक शक्ति का वर्णन किया है।
व्याख्या – लेखक का मत है कि मानव जीवन में कभी-कभी जो लोग बाहय रूप से बेशर्म दिखाई देते हैं उनकी जड़ें भी काफ़ी गहन प्रवेश करके बैठी रहती हैं अर्थात वे भी अंदर से काफ़ी मज़बूत होते हैं। ऐसे लोग भी पत्थरों की छाती चीरकर न जाने किस असीम गड्ढे से अपने भोगने हेतु आवश्यक वस्तुएँ खींच लाते हैं। वे भी अपनी शक्ति के प्रयोग से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं।
विशेष – (i) लेखक ने बेशर्म लोगों की आंतरिक शक्ति का चित्रण किया है।
(ii) भाषा सहज, सरल खड़ी बोली है।
(iii) तत्सम, तद्भव तथा विदेशी शब्दावली का प्रयोग है।
(ख) प्रसंग – यह अवतरण हज्जारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित ‘कुटज’ नामक निबंध से अवतरित है। इसमें लेखक ने रूप तथा नाम की व्याख्या प्रस्तुत की है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि रूप तो व्यक्तिगत रूप से सत्य होता है जबकि नाम सामाजिक रूप से सत्य होता है। नाम के साथ सामाजिक सरोकार जुड़े रहते हैं। नाम उस पद समूह को कहते हैं जिस पर समाज की मोहर लगी होती है। जो समाज द्वारा सत्यापित होता है। वर्तमान युग में शिक्षित लोग जिसे सोशल सेक्शन कहते हैं। लेखक कहता है कि मेरा मन केवल नाम के लिए व्याकुल है जो समाज द्वारा स्वीकार किया गया है। इतिहास द्वारा प्रमाणित है तथा जो सामूहिक मानव की हदयरूपी गंगा में स्नान किए हुए हैं।
विशेष – (i) लेखक ने नाम को समाज, इतिहास द्वारा प्रमाणित किया है।
(ii) भाषा-शैली सरल तथा सरस है।
(ii) तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
(ग) प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2 ‘ में संकलित तथा हज्ञारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित ‘कुटज’ नामक पाठ से ली गई हैं। इनमें लेखक ने सूखी शिवालिक चोटियों में सरस कुटज की शोभा का वर्णन किया है। व्याख्या-लेखक का मंतव्य है कि रूप की तो बात ही क्या है ? मै इस कुटज की मादक सुंदरता पर बलिहारी जाता हैं। यह कुटज का वृक्ष चारों ओर क्रोधित यमराज के कठोर श्वास के समान उगलती गरमी की लू में भी हरा-भरा है।
शिवालिक की इन सूखी चोटियों में से चारों तरफ़ भयंकर गरमी में भी यह कुटज अत्यंत हरा-भरा है। इस पर गरमी का ताप भी कुछ प्रभाव नहीं डाल सका है। किसी दुष्ट व्यक्ति के हदय से भी ज्यादा कठोर पत्थर के बंधन से रुका हुआ अज्ञात झरने से अचानक रस खींचकर यह कुटज फिर भी हरियाली से भरा हुआ है। लेखक आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते हैं कि पत्थरों की कठोर पंकितयों में रहकर भी न जाने किस झरने से यह कुटज पानी लेकर हरा-भरा है।
विशेष – (i) कुटज के साँदर्य का मनोहारी अंकन हुआ है।
(ii) भाषा सहज, सरस खड़ी बोली है।
(iii) तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
(घ) प्रसंग-यह गद्य अवतरण ‘अंतरा भाग- 2 ‘ में संकलित है। यह हत्रारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित है। यह ‘कुटज’ निबंध से अवतरित किया गया है। लेखक ने कुटज की अपराजेय वृत्ति का चित्रण किया है।
व्याख्या – लेखक का कथन है कि अरे 1 हुदय से पराजित न होना। वह कितना विशाल हदय होगा जो सुख-दुख, प्रिय-अप्रिय से भी विचलित न होता होगा। अरथात जिस हृदय पर सुख-दुख, प्रिय-अप्रिय आदि का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, वह बहुत दृढ़ और शक्तिवान होगा।
लेखक कहता है कि कुटज की इस जीवन-शक्ति को देखकर हुदय में रोमांच पैदा हो जाता है। न जाने इस कुटज को यह निडर वृत्ति, अपराजित स्वभाव तथा विचलित न होने वाली जीवन दृष्टि कहाँ से प्राप्त हुई है। लेखक का अभिप्राय यह है कि कुटज में अपार निडर वृत्ति, अपराजित स्वभाव तथा अविचलित जीवन दृष्टि विराजमान है।
विशेष – (i) लेखक ने कुटज की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किया है।
(ii) कुटज अत्यंत निडर, अपराजित या अविचल है।
(iii) तत्सम-शब्दावली का प्रचुर प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 12.
नाम इसलिए बड़ा है कि वह नाम है। वह इसलिए बड़ा होता है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली होती है। रुप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती हैं। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सेक्शन’ कहा करते हैं। मेरा मन नाम के लिए व्याकुल है, समाज दूवारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि-मानव की चित गंगा में स्नान।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के द्वारा रचित निबंध ‘कुटज’ से अवतरित किया गया है। लेखक ने कुटज के माध्यम से ‘नाम’ के महत्व को प्रतिपादित किया है।
व्याख्या – दृविवेदी जी का निबंध के माध्यम से मानना है कि नाम का महत्व बहुत ऊँचा होता है। वह केवल पहचान मात्र नहीं होता। वह इसलिए बड़ा होता है उसे उसी के आधार पर समाज में पहचाना जाता है। उसे उसी नाम से समाज में जाना-पहचाना जाता है; उसी से सामाजिक स्वीकृति की प्राप्ति होती है। उसी से उस की समाज में निंदा या प्रशंसा होती है। नाम तो किसी भी व्यकित के लिए पहचान होती है, वही समाज में उस को पहचान देती है। उसी से उस पर समाज की पहचान रूपी मोहर लगती है।
आज का शिक्षित वर्ग ‘सोशल सेक्शन’ कहा जाता है। समाज में रहने वाले सारे इनसान अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। लेखक का मानना है कि उस का मन नाम के लिए व्याकुल है। वह परेशान है। समाज के द्वारा स्वीकार कर लिया जाने वाला नाम उसे स्वीकृत है। नियम वही चलते हैं जिन्हें समाज स्वीकार कर लेता है। वही अन्तत: समाज में अनुशासन और नियंत्रण का कार्य करते हैं।
विशेष – (i) लेखक ने नाम के महत्व की विशिष्टता को प्रस्तुत किया है।
(ii) तत्सम-तद्भव शब्दावली की अधिकता है।
(iii) अंग्रेज़ी शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है।
(iv) वर्णनात्मक और व्यंजक शैली का सहज प्रयोग है।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
कुटन की तर्ज्र पर किसी जंगली फूल पर लेख अथवा कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 2.
लेखक ने ‘कुटज’ को ही क्यों चुना ? उसको अपनी रचना के लिए जंगल में पेड़-पौधे तथा फूलों-वनस्पतियों की कोई कमी नहीं थी।
उत्तर :
जंगल में असंख्य पेड़-पौधे तथा फूल-वनस्पतियाँ हैं। सभी का अपना-अपना अस्तित्व है, महत्त्व है। लेकिन जिन विपरीत परिस्थितियों में शिवालिक की सूखी चोटियों पर भयंकर गरमी को सहन करता हुआ भी कुटज का फूल खिल रहा है। वह सारी चोटियों पर असीम सँँदर्य बिखेर रहा है। उन परिस्थितियों में जंगल के कोई अन्य पेड़-पौधे, फूल-वनस्पतियौँ जीवित नहीं रह सकर्ती। न ही उनमें शुष्कता में जीवन-रस की शक्ति है, इसीलिए लेखक ने कुटज को चुना।
प्रश्न 3.
कुटज के बारे में उसकी विशेषताओं को बताने वाले दस वाक्य पाठ से छॉटिए और उनकी मानवीय संदर्भ में विवेचना कीजिए।
अथवा
कुटज क्या है ? उसके जीवन की उन विशेषताओं का उन्लेख करें जो मनुष्य के लिए प्रेरणा है।
उत्तर :
कुटज की विशेषताएँ निम्नांकित हैं –
- कुटज छोटा-सा होकर भी फूलों से हरा-भरा है।
- वह अनोखी अदा बिखरेता हुआ मुसकुराता है।
- वह अत्यंत सुंदर है।
- वह भयंकर गरमी में भी सरस बना हुआ है।
- वह पहाड़ों की कठोर भुजाओं में रहकर भी मस्त है।
- वह दूसरे के द्वार पर भीख माँगने नहीं जाता।
- वह दुखों में कभी भयभीत नहीं होता।
- वह किसी को नीति, धर्म का उपदेश देता नहीं फिरता।
- अपनी उन्नति हेतु वह अफ़सरों के जूते नहीं चाटता।
- वह दूसरों को अपमानित करने के लिए ग्रहों की खुशामद नहीं करता।
- कुटज अपनी उन्नति के लिए नीलम और अँगूठियाँ धारण नहीं करता।
- वह शान से निडर होकर जीता है।
मानवीय संदर्भ में विवेचना –
- कुटज ठिगना-सा होकर भी फूलों से हरा-भरा है लेकिन मनुष्य ठिगना होकर कुंठित होकर रह जाता है। वह दुबककर जीता है।
- कुटज सदा अनोखी अदा बिखेरता है। वह मनुष्य की तरह नहीं जो रोता-बिलखता हुआ जीवन जीता है।
- वह अत्यंत सुंदर है और अपनी सुंदरता को निस््वार्थ भाव से वातावरण में बिखेरता रहता है। मनुष्य के पास यदि सुंदरता हो तो वह अधिक लीन होकर उसमें हूल जाता है।
- मनुष्य भयंकर गरमी को देखकर विचलित हो जाता है। उसे सहन नहीं कर पाता लेकिन कुटज भयंकर गरमी में भी सरस है।
- कुटज पहाड़ों की कठोर भुजाओं तथा सुनसान वातावरण में रहकर भी मस्ती में जी रहा है। मनुष्य यदि इस परिस्थिति में अकेला रहे तो शायद् उसे मस्ती का कम, दुख का अहसास अधिक हो।
- मनुष्य सदा दूसरों की ओर ताकता है। विपरीत परिस्थितियों का सामना न करने पर वह भीख माँगने तक का धिनौनना काम कर लेता है। लेकिन कुटज कभी किसी से उधार लेकर जिंदुी नहीं जीता।
- कुटज मनुष्य की तरह यहाँ-वहाँ घूमकर किसी को नीति-धर्म का उपदेश नहीं देता बल्कि स्वयं अपना जीवन जीता है।
- मानव जैसे अपनी उन्नति की आशा करके अपने अफ़सरों के जूते चाटता फिरता है उसकी खुशामद करता है। उनकी आव-भगत में लगा रहता है वैसे कुटज नहीं करता।
- मनुष्य अत्यंत स्वार्थी-खृत्ति का प्राणी है। वह दूसरों को अपमानित करने हेतु बाहयाडंबरों का सहारा लेने लगता है। ग्रहों की खुशामद में डूब जाता है पर कुटज ऐसा कभी नहीं करता।
- मनुष्य को अपनी उन्नति की आशा हो तो वह अनेक नीलम, अँगूठियाँ आदि अपनी उँगुलियों में पहन लेता है लेकिन कुटज ऐसा नहीं करता।
- मनुष्य पर दुख की घड़ियाँ आएँ तो वह भयभीत होकर काँपने लगता है, रोने लगता है। जीवन से पलायन कर जाता है लेकिन कुटज बिलकुल शान से जीता है।
प्रश्न 4.
जीना भी एक कला है। कुटज के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
कुटज की तरह जो मनुष्य जीना सीख जाता है वह कभी मार नहीं खाता। वह शान से जीवित रहता है। उल्लास से सदा भरा रहता है। जीना एक कला है। जीवन तो सबके पास है पर उसे जीने का ढंग सबके पास नहीं है। जीवन को सर्व के लिए अर्पित करने में ही पूर्णता छिपी हुई है।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 21 कुटज
प्रश्न 1.
हिमालय को पृथ्वी का मानदंड क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
हिमालय को पृथ्वी का मानदंड इसलिए कहा गया है क्योंकि यह पूर्व-पश्चिम, सागर-महासागर को अपनी भुजाओं से नापता है। यह अपार शोभा का भंडार है। इसकी अनेक शिवालिक के समान विशाल चोटियाँ दूर-दूर तक फैली हुई हैं।
प्रश्न 2.
लेखक को ऐसा क्यों लगता है कि ये वृक्ष मुझ अनादिकाल से जानते हैं ?
उत्तर :
लेखक सामान्य मनुष्य की अपेक्षा अधिक भावुक, संवेदनशील तथा कल्पनाशील होता है। वह अपनी संवेदना एवं कल्पना के माध्यम से अनंतकाल तक की सैर कर लेता है। वह प्रत्येक विषय को आंतरिक संवेदनाओं से जोड़कर देखता है। लेखक जब कुटज के वृक्ष को देखता है तो वह भाव विभोर हो उठता है। उनकी सुंदरता लेखक के मन को आकर्षित कर लेती है। वृष्ष उसे हँसते-मुसकराते हुए प्रतीत होते हैं इसलिए लेखक को लगता है कि ये वृक्ष मुझे अनादिकाल से जानते हैं।
प्रश्न 3.
लेखक ने रूप और नाम का वर्णन किया है। कैसे ? दोनों में किसको बड़ा माना है और क्यों ?
उत्तर :
रूप व्यकितत रूप से सत्य है तथा नाम सामाजिक रूप से सत्य है। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर सामाजिक दृष्टि से मान्यता प्राप्त होती है। शिक्षित लोग उसे सोशल सेक्शन कहते है। रूप और नाम दोनों में से नाम बड़ा है। वह इसलिए बड़ा होता है क्योंकि उसे सामाजिक रूप से स्वीकृति प्राप्त है। वह समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित तथा समष्टि मानब की हददय रूपी गंगा में स्नान किए हुए है।
प्रश्न 4.
‘यह दुनिया मतलबी है’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक के अनुसार यह दुनिया मतलबी है। यहाँ हर कोई अपने स्वार्थ-पूर्ति हेतु जीता है। यह दुनिया अपना स्वार्थ पूरा होते ही व्यक्ति को उसी प्रकार फैंक देती है जैसे रस चूसने पर छिलका और गुठली फेंक दी जाती है। जैसे ‘रहीम’ हिंदी के महान कवि तथा दरियादिली व्यक्ति थे। उन्होंने जो भी प्राप्त किया उसे दुनिया पर लुटाया लेकिन इस दुनिया ने रस चूस लेने के बाद रहीम को फेंक दिया था। एक बादशाह ने उनको आदर दिया तथा दूसरे ने फैंक दिया।
प्रश्न 5.
‘जीना भी एक कला है’ कैसे ? लेखक ने जीने का क्या रहस्य बताया है?
उत्तर :
यह सत्य है कि जीना भी एक कला है। इस सृष्टि में असंख्य प्राणी है। हर कोई अपने अनुसार जीवन जीता है। कोई सुखी है तो कोई दुखी। कोई दुख में भी सुखी है तो कोई सुख में भी दुखी। कोई जीवन में आनेवाली अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करता है तो कोई उनके आगे हार मान लेता है। जो व्यक्ति जीने की कला जानता है वह तो प्रतिपल आनंद, उल्लास से जीता है। लेखक जीने का रहस्य बताते हुए कहते हैं कि हमें अपनी जिंदगी में प्राण डाल देने चाहिए तथा जीवन रस उपकरणों में मन लगा लेना चाहिए। जो मनुष्य इस संसार में अनुकूलप्रतिकूल परिस्थितियों में समान भाव से जीता है, जो स्वार्थ, छल-कपट से दूर रहता है वही जीने की कला जानता है।
प्रश्न 6.
याजवल्क्य ऋषि ने अपनी पत्नी को स्वार्थी दुनिया का कौन-सा रहस्य बताया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
याज्ञल्क्य ऋषि ने अपनी पत्नी को स्वार्थी दुनिया का रहस्य बताते हुए कहा है कि यह संसार अपने स्वार्थ के लिए जीता है। यहाँ सब कुछ स्वार्थ के लिए है। यहाँ पुत्र के लिए पुत्र प्रिय नहीं होता। पत्नी के लिए पत्नी प्रिय नही होती। सब अपने मतलब के लिए प्रिय होते हैं।
प्रश्न 7.
“कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता।’ इस कथन का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि कुटज के जीवन से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि कुटज ने अपने मन को अपने वश में कर लिया था। वह सुख-दुख में समभाव से रहता था। इस प्रकार कुटज के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि मनुष्य को निरंतर संघर्षरत तथा कर्मशील रहना चाहिए।
जीवन में आने वाली प्रत्येक परिस्थिति का साहसपूर्ण सामना करना चाहिए। अपने बल तथा परिश्रम के द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति करनी चाहिए। जीवन की अनुकूल तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में विचलित नहीं होना चाहिए। सुख-दुख, राग-विराग, प्रिय-अप्रिय, हार-जीत जो भी मिले हदय से अपराजित होकर शान के साथ आनंदपूर्वक ग्रहण करनी चाहिए। कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। मनुष्य को अपने मन को नियंत्रित कर जीना चाहिए क्योंकि जिसका मन वश में हो वही मनुष्य सुखी होता है। परवश मनुष्य सदैव दुखी रहता है।
प्रश्न 8.
“‘पर्वत शोभा-निकेतन होते हैं, फिर हिमालय का तो कहना ही क्या ?” इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति का भाव है कि पर्वत विशाल होने के साथ-साथ सुंदर, स्वच्छ तथा निर्मल होते हैं। वे प्रकृति के अनुपम भंडार हैं। पर्वतों पर भाँति-भाँति के पेड़-पौधे, फल-फूल तथा वनस्पतियाँ होती हैं। जिनके कारण पर्वतों पर चहुँ ओर सुगंध, सौँदर्य बिखरा रहता है। फिर हिमालय तो पर्वतराज है। वह पर्वतों से श्रेष्ठ है। वहाँ पर तो सामान्य पर्वतो की अपेक्षा अधिक पेड़-पौधे, वनस्पति, फल-फूल होते हैं। वहॉं अनुपम और अनूठे पेड़-पौधे मौजूद हैं जिनपर अनूठे फल-फूल लगते हैं। उनकी शोभा, सौँद्य से हिमालय पर्वत सुशोभित होता है। फूलों की खुशबू वातावरण को सुगंधित बना देती है।
प्रश्न 9.
लेखक ने कुटज की क्या विशेषताएँ बताई हैं ?
उत्तर :
लेखक ने कुटज की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं –
- कुटज द्वंद्वातीत एवं अलमस्त है।
- कुटज छोटा-सा और ठिगना है।
- इसके पत्ते चौड़े और बड़े हैं।
- यह फूलों से लदा है।
- यह मुसकुराता-सा प्रतीत होता है।
प्रश्न 10.
लेखक का मन व्याकुल क्यों हो गया ?
उत्तर :
लेखक ने पहाड़ी पर सुंदर एवं भव्य कुटज को देखा तो वह उसके नाम लेकर चिंतित हो उठा। उसे बार-बार स्मरण करने पर भी याद नहीं आ रहा था कि यह भारतीय पंडितों का प्रश्न कि रूप मुख्य है या नाम। नाम बड़ा है या रूप ? पद पहले है या पदार्थ ? किंतु उसे पद नहीं सूझ रहा था। इसी से लेखक का मन व्याकुल हो गया।
प्रश्न 11.
लेखक के अनुसार नाम बड़ा क्यों होता है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार नाम बड़ा इसलिए होता है क्योंकि नाम को सामाजिक स्वीकृति मिली होती है।
प्रश्न 12.
लेखक ने नाम की परिभाषा क्यों दी है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार नाम उस पद को कहते हैं जिसपर समाज की मुहर लगी रहती है। आधुनिक शिक्षित लोग इसे सोशल सेक्शन कहते हैं।
प्रश्न 13.
उन्नीसर्वी शताब्दी के भाषा विज्ञानी पंडितों को क्या देखकर आश्चर्य हुआ ?
उत्तर :
उन्नीसवीं शताब्दी के भाषा विज्ञानी पंडितों को ऑस्ट्रेलिया के सुदूर जंगलों में बसी जातियों की भाषा एशिया में बसी हुई कुछ जातियों की भाषा से मिलती-जुलती है। प्रारंभ में इस भाषा का नाम ऑस्ट्रो-एशियाटिक था।
प्रश्न 14.
कुटज किसी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषणा कर रहा है और क्यों ?
उत्तर :
कुटज नाम और रूप दोनों की जीवनी शक्ति की घोषणा कर रहा है। वह घोषणा इसलिए कर रहा है क्योंकि इसका आकर्षक नाम हज्ञारों वरों से जीता चला आ रहा है। असंख्य नाम आए और गए, दुनिया उनको भूल गई, वे दुनिया को भूल गए। किंतु कुटज निरंतर अपनी सार्थकता और स्थिरता बनाए हुए है। कुटज का नाम ही नहीं रूप भी अनूठा है। इसकी शोभा अत्यंत मादक और सुंदर है। यह कठोर धूप में भी हरा-भरा रहता है। यह कठोर पाषाण की कारा से रस खींचकर सरस बना हुआ है।
प्रश्न 15.
लेखक ने कुटज के माध्यम से किन पर व्यंग्य किया है ?
उत्तर :
लेखक ने कुटज के माध्यम से उन स्वार्थी लोगों पर व्यंग्य किया है, जो अपनी उन्नति के लिए अफ़सरों के जूते चाटता फिरता है। दूसरों को अपमानित करने हेतु ग्रहों की खुशामद करते हैं। आत्मोन्नति के लिए नीलम धारण करते हैं। अँगूठियों की लड़ी पहनते हैं।
प्रश्न 16.
चाहे सुख हो या दुख, प्रिय हो या अप्रिय जो मिल जाए उसे शान के साथ द्वदय से बिलकुल अपराजित होकर, सोल्लास ग्रहण करो। हार मत मानो। कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लेखक ने मानव-जीवन की प्रेरणा देते हुए कहा है कि मनुष्य सुख-दुख दोनों परिस्थितियों में समान भाव से जीता है जो सुख-दुख, प्रिय-अप्रिय, सबको शान के साथ हृदय से बिलकुल अपराजित होकर आनंदित रूप से ग्रहण करना चाहिए। हमें जीवन में सुख-दुख, आशा-निराशा, मिलन-विरह, आनंद-पीड़ा आदि को आनंद लेकर अपराजित भाव से ग्रहण करना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों से कभी डरना नहीं चाहिए।
प्रश्न 17
कुटज का जीवन किन मानवीय मूल्यों की सीख देता है और कैसे ? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लेखक ने मानव जीवन की प्रेरणा देते हुए कहा है कि मनुष्य सुख-दुख दोनों परिस्थितियों में समान भाव से जीता है जो सुख-दुख, प्रिय-अप्रिय, सबको शान के साथ हृदय से बिलकुल अपराजित होकर आनंदित रूप से ग्रहण करना चाहिए। हमें जीवन में सुख-दुख, आशा-निराशा, मिलन-विरह, आनंद-पीड़ा आदि को आनंद लेकर अपराजित भाव से ग्रहण करना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों से कभी डरना नहीं चाहिए।
प्रश्न 18
‘कुटज’ नाम रखे जाने के कारणों की व्याख्या करते हुए लिखिए कि उसे ‘गाढे का साथी’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
कुटज नाम और रूप दोनों की जीवनी शक्ति की घोषणा कर रहा है। वह घोषणा इसलिए कर रहा है क्योंकि इसका आकर्षक नाम हज्ञारों वर्षों से जीता चला जा रहा है। असंख्य नाम आए और गए दुनिया उनको भूल गई, वे दुनिया को भूल गए। किंतु कुटज निरंतर अपनी सार्थकता और स्थिरता बनाए हुए है। कुटज का नाम ही नहीं रूप भी अनूठा है। इसकी शोभा अत्यंत मादक और सुंदर है। यह कठोर धूप में भी हरा-भर रहता है, यह कठोर पाषाण की कारा से रस खींचकर सरस बना हुआ है।
प्रश्न 19
“‘दुख और सुख तो मन के विकल्प है'” – कथन का आशय स्पष्ट करते हुए जताइए कि कुटज कैसे इन दोनों से अप्रभावित रहता है।
उत्तर :
इस कथन का आशय है कि दुख-सुख मन का विकल्प है। ये जीवन का अहम पहलू है। सुख-दुख भाव आते-जाते रहते हैं। इनका संबंध मन से है। कुटज सुख-दुख दोनों को समान भाव से ग्रहण करता है। वह दोनों परिस्थितियों की उपेक्षा कर अप्रभावित रहता है। उस पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।