In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 20 Summary, Dusra Devdas Vishvam Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.

दूसरा देवदास Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 20 Summary

दूसरा देवदास – ममता कालिया – कवि परिचय

जीवन-परिचय – ममता कालिया आधुनिक युग की प्रमुख उपन्यासकार मानी जाती हैं। उनका जन्म सन 1940 ई० में उत्तर प्रदेश के मथुरा में हुआ। उनकी शिक्षा नागपुर, पुणे, इंदौर, मुंबई आदि अनेक स्थानों पर हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेज़ी विषय से एम०ए० किया। उसके बाद सन 1963 से 1965 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका रहीं। 1966 से 1970 तक एस० एन० डी० टी० महिला विश्वविद्यालय, मुंबई में अध्यापन कार्य किया। 1973 से 2001 तक महिला सेवा सदन डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद की प्राचार्या रहीं।

सन 2003 से 2006 तक भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता (कोलकाता) की निर्देशक रहीं। कथा-साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने इन को सन 1989 में ‘ कहानी सम्मान’ तथा ‘साहित्य भूषण’ 2004 प्रदान किया गया। इनके समग्र साहित्य पर अभिनव भारती कलकत्ता (कोलकाता) ने रचना पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके साथ-साथ इनको सरस्वती प्रेस तथा साप्ताहिक हिंदुस्तान का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। वर्तमान में नई दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रही हैं। प्रमुख रचनाएँ-ममता कालिया हिंदी-साहित्य की प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उनकी सतत विविध विधाओं में लेखनी चल रही है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

उपन्यास – बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम-कहानी, लड़कियाँ, दौड़।
कहानी संग्रह – 12 कहानी संग्रह प्रकाशित हैं जो ‘संपूर्ण कहानियाँ’ नाम से दो खंडों में प्रकाशित हैं। पच्चीस साल की लड़की, थियेटर रोड के कौवे आदि इनके द्वारा रचित नवीन कहानी संग्रह हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ – ममता कालिया आधुनिक कथा साहित्यकार हैं। इनकी कहानियाँ समकालीन युग की जिजीविषा, कुंठा, युवा संवेदना, नारी संवेदना, उठा-पटक, संघर्ष, समस्याएँ, विसंगतियाँ आदि की अभिव्यक्ति करती हैं। लेखिका ने अपनी कहानियों के माध्यम से समकालीन युग की समस्याओं का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है। समाज में बढ़ रहे शोषण, लूटमार, भ्रष्टाचार आदि के प्रति लेखिका ने गहन चिंता व्यक्त की है।

‘दूसरा देवदास’ कहानी हर की पौड़ी, हरिद्वार के परिवेश को हृदय में रखकर लिखी गई है जो युवामन की संवेदना, भावना तथा विचार जगत की उथल-पुथल का चित्रांकन प्रस्तुत करती है। लेखिका ने युवामन का अत्यंत गहनता से चित्रण किया है। लेखिका ने अत्यंत सरल, सहज बोध गया भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा खड़ी बोली है। इनकी शैली वर्णनात्मक, विचारात्मक, भाषात्मक तथा चित्रात्मक है। शब्द-भंडार अत्यंत व्यापक है। इन्होंने तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है। मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता उत्पन्न हो गई है।वस्तुतः ममता कालिया आधुनिक हिंदी साहित्य की प्रमुख कलाकार हैं। उनका कथा-साहित्य में अनूठा योगदान है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 20 Summary - Dusra Devdas Summary Vyakhya

Dusra Devdas Class 12 Hindi Summary

‘दूसरा देवदास’ कहानी ममता कालिया द्वारा रचित है जो हर की पौड़ी, हरिद्वार के परिवेश को केंद्र में रखकर लिखी गई है। इसमें लेखिका ने युवामन की संवेदना, भावना और विचारजगत की उथल-पुथल को प्रस्तुत किया है। यह कहानी युवा हददय में प्रथम आकस्मिक मुलाकात की हलचल, कल्पना और रूमानियत का उदाहरण है। हर की पौड़ी पर संध्या आरती बेला की थी। असंख्य श्रद्धालु अपनी-अपनी मनोकामनाओं को लेकर इकट्ठे हुए थे। गंगा-सभा के स्वयंसेवक खाकी वर्दी में मुस्तैदी से घूम रहे थे।

कुछ भक्त सामान्य तो कुछ विशेष यानी एक सौ एक या इक्यावन रुपये वाली आरती बोलकर आए थे। आरती से पहले, सब भक्त गंगा के निर्मल जल में स्नान कर रहे थे। अनेक पंडे हाथों में चंदन तथा सिंदूर लेकर भक्तों के माथों पर लगाने हेतु घूम रहे थे। अचानक पंचमंजिली नीलांजलि के दीप जलते ही पुजारियों के समवेत स्वर में आरती का शुभारंभ हो उठा। घंटे, घड़ियाल बजने लगे।

भक्तों ने मनौतियों की प्रतीक फूलों की किश्तियाँ पानी में छोड़ दीं। गंगा-पुत्र उनमें से पैसे उठाकर फूलों को पानी में चलता कर देता। लोगों के हँसने पर भी वह हतप्रभ नहीं होता, अपने कार्यों में लीन रहता। गंगा मैया ही उसकी जीविका और जीवन है। पुजारियों के स्वर रुकते ही लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ चहुँ-ओर गूँजने लगती। औरतें गीले वस्त्रों में ही आरती करती हैं। स्पेशल भक्तों से पुजारी ब्राह्मण भोजन दान निष्ठान की धनराशि कबूलवाते हैं।

संभव नहाकर अपना सामान ले वहाँ से चल पड़ा। पुजारी के याद करवाने पर ही उसने दर्शन किए। नानी के कहने से उसने मंदिर में कुछ पैसे डालने के लिए जेब से एक नोट निकाला। पुजारी ने उसके हाथ पर लाल रंग का कलावा बाँधा। उसके दूसरी ओर एक दुबलीपतली कलाई पुजारी की ओर बढ़ी। उसने थाली में पाँच रुपये रख दिए और वह लड़की आँखें बंद कर संभव के नज़दीक खड़ी हो गई।

उसके गुलाबी आँचल से संभव के कुरते का एक कोना भी गीला हो गया। पुजारी ने इसका अर्थ युगल रूप में लेकर उन दोनों को अनायास आशीष दे छाला। लड़का-लड़की इसे सुनकर अचंभित हो गए। इसके बाद टोकन देकर चप्पल लेते समय फिर दोनों की नज़रें एक-दूसरे से मिल गई। संभव अपने मन-ही-मन सोच रहा था कि वह कहे कि इसमें हमारी कोई गलती नहीं। लेकिन वे दोनों कुछ भी बोल नहीं पाए। लड़की वहाँ से भीड़ में ओझल हो गई। वह यहा-वहाँ उसे टूँड़ता रहा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली।

निराश होकर अपनी नानी के घर चला गया। वह कुछ खाए-पिए बिना ही लेट गया और लड़की के सपनों में खोया रहा। उसे भूख भी नहीं लगी। उसकी नींद और स्वप्न के बीच आँखों में घाट की पूरी पात उतर आई। आँख खुलने पर लड़की को कल मिलने की आशा से वह उठ बैठा। और नानी से रोटी माँगने लगा। भोजन खाते-खाते उसे फिर आशीष वचन की घटना याद हो आई। फिर उसी स्वप्न में खो गया और भोजन बीच में ही छोड़ उठ गया।

संभव एम० ए० पास लड़का था। अब वह सिविल सर्विस की प्रतियोगिताओं में बैठने वाला था। माता-पिता के कहने पर वह गंगा मैया का दर्शन करने हरिद्वार आया। वह टोटकों में विश्वास नहीं करता था लेकिन घूमने तथा नानी से मिलने वह हरिद्वार आ गया था। अभी तक उसके जीवन में लड़की कोई महत्वपूर्ण भूमिका में नहीं आई थी। इस लड़की से मिलना उसके लिए अनोखी अनुभूति थी।

उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह कल शाम पाँच बजे से ही घाट पर जाकर पौड़ी पर वहाँ बैठेगा जहाँ से पुजारी के देवालय पर सीधी नज़र पड़े। वह अपने मन में अनेक प्रश्न सोचने लगा। सुबह होते ही नानी ने आवाज्त दी लेकिन वह नहीं उठा। नानी अकेले ही पूजा के लिए चली गई। वह अब भी स्वप्न में लड़की से अनेक प्रश्न पूछने की योजना बनाने लगा। नानी नहाकर वापस आई लेकिन वह तो अभी भी सपनों में खोया था। वह उठकर 20 रुपए लेकर घाट की ओर चल पड़ा। पौड़ी पर बहुत अधिक भीड़ थी।

भीड़ से एक छोटे लड़के ने संभव का ध्यान भंग किया। संभव के पूछने पर बच्चे ने बताया कि वह अकेला नहीं है, बल्कि उसकी बुआ साथ में है। बचे के मंसा देवी जाने की बात सुनकर संभव की भी इच्छा हुई लेकिन नानी ने मना किया है, इसलिए वह थोड़ा-सा डरा। वह पैदल जाने की बजाय केबिनकार द्वारा मंसा देवी पहुँचा। हिंडोले में बैठकर चारों ओर के विहंगम दृश्य को देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गया।

संभव न मंदिर पहुँचकर अन्य भक्तों की तरह देवी के सामने मनोकामना की गाँठ लगाई, सिर झुकाकर नैवेद्य चढ़ाया और बाहर आ गया। वापस करने के लिए केबिन-कार में बैठ गया। केबिन-कार से आते हुए उसे चौथी पीली कार में वही बच्चा तथा उसके साथ बैठी हुई दुबली-पतली लड़की दिखाई दी। उनको देख संभव बेचैन हो गया। वह इधर-उधर होकर उन्हें पहचान का प्रयास करने लगा। केबिल-कोर से नीचे पहुँचकर संभव ने बच्चे को रोक लिया।

बच्चे ने भी उसको पहचान लिया लेकिन तभी बच्चे के लिए एक पतली-सी आवाज्त आई कि ‘चलना नहीं है’। संभव बच्चे की बुआ से मिला। वह बच्चे की बुआ पारो ही थी जो पहली बार पौड़ी पर मिली थी। उससे मिलकर वह खुश हो उठा। पारो से मिलकर संभव की मनोकामना पूर्ण हो गई और उसे मनोकामना का लाल-पीला धागा तथा उसकी गाँठ का मधुर स्मरण हो आया।

Class 12 Hindi Antra Chapter 20 Summary - Dusra Devdas Summary Vyakhya

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • गोधूलि बेला – संध्या का समय ब्यालू – भोजन
  • मनोरथ – मन की इच्छा, अरमान
  • कलावा – कलाई में बाँधी गई लाल डोरी, मौली
  • झुटपुटा – कुछ-कुछ अँधेरा
  • आत्मसात – अपने में समा लेना
  • मुस्तैदी से – चौकसी से
  • समवेत – इकट्ठा, मिला-जुला, एकत्रित
  • ठिठक गया – अचंभित रह गया
  • अर्चन – पूजा
  • सद्य-स्नात – शीप्र स्नान किया हुआ
  • हुज्ज – बहस
  • नीलांजलि – आरती
  • बेखटके – बिना किसी रूकावट के
  • प्रकोष्ठ – कक्ष, कमरा
  • अस्पुट – अस्पष्ट, कुछ-कुछ उजाला
  • जी खोलकर देना – उदारतापूर्वक खर्च करना
  • नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना, गायब होना
  • यकायक – अचानक
  • स्निग्ध – श्रांत, चमकदार
  • चरणामृत्त – प्रसाद, गंगाजल
  • सौम्य – सुंदर
  • यकीन – विश्वास

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दूसरा देवदास सप्रसंग व्याख्या

1. आरती से पहले स्नान! हर-हर बहता गंगाजल, निर्मल, नीला, निष्पाप। औरतें डुबकी लगा रही हैं। बस उन्होंने तट पर कुंडों से बँधी, ज्ञंजीरें पकड़ रखी हैं। पास ही कोई न कोई पंडा जजमानों के कपड़ों-लत्तों की सुरक्षा कर रहा है। हर एक के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी है। मर्दों के माथे पर चंदन तिलक और औरतों के माथे पर सिंदूर का टीका लगा देते हैं पंडे। कही कोई दादी-बाबा पहला पोता होने की खुशी में आरती करवा रहे हैं, कहीं कोई नयी बहू आने की खुशी में। अभी पूरा अँधेरा नहीं घिरा है। गोधूलि बेला है।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘ अंतरा भाग-2’ में संकलित लेखिका ममता कालिया द्वारा रचित ‘दूसरा देवदास’ नामक कहानी से लिया गया है। इसमें लेखिका ने हरिद्वार में हर की पौड़ी पर संध्या आरती के समय की चहल-पहल का चित्रांकन किया है।

व्याख्या : लेखिका कहती है कि हर की पौड़ी पर संध्या-आरती से पहले प्रत्येक भक्त स्नान करता है। निर्मल, नीला आर निष्पाप गंगा का जल हर की ध्वनि करते हुए बहता है। औरतें गंगा के निर्मल पानी में डुबकी लगा रही हैं। उन्होंने तट पर लगे कुंडों से बंधी हुई जंज़ीरें पकड़ रखी हैं। उनके आस-पास ही कोई-न-कोई पंडा अपने जजमानों के कपड़ों की सुरक्षा कर रहा है। हर एक पंडा के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी है। पंडे मर्दों के माथे पर चंदन का तिलक और औरतों के माथे पर सिंदूर का टीका लगा रहे हैं। लेखिका कहती हैं कि कहीं कोई दादी-बाबा अपना पहला पोता होने की खुशी में आरती करवा रहे हैं तो कहीं कोई नई बहू आने की खुशी में। अभी तक पूरा अंधेरा नहीं घिरा है। यह गोधूलि की बेला है।

विशेष :

  1. लेखिका ने संध्या की गोधूलि बेला में पौड़ी पर चल रहे क्रियाकलापों का सजीव चित्रण किया है।
  2. भाषा सरल, सरस खड़ी बोली है।
  3. चित्रात्मक शैली का भावपूर्ण प्रयोग है।

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2. यकायक सहस्त्र दीप जल उठते हैं। पंडित अपने आसन से उठ खड़े होते हैं। हाथ में अँगोछा लपेट के पंचमंख्विली नीलांजलि पकड़ते हैं और शुरू हो जाती है आरती। पहले पुजारियों के भर्राए गले से समवेत स्वर उठता है-‘जय गंगे माता, जो कोई तुझको ध्याता, सारे सुख पाता, जय गंगे माता।’ घंटे घड़ियाल बजते हैं। मनौतियों के दिए हुए फूलों की छोटी-छोटी किश्तियाँ गंगा की लहरों पर इठलाती हुई आगे बढ़ती है।

प्रसंग : यह अवतरण ममता कालिया द्वारा लिखित ‘दूसरा देवदास’ नामक कहानी से अवतरित है। इसमें लेखिका ने संध्या की आरती का भावपूर्ण चित्रण किया है।

ख्याख्या : लेखिका का कथन है कि संध्या के समय अचानक हत्जारों दीपक जल उठते हैं। पंडित जन अपने-अपने आसन छोड़कर खड़े हो जाते हैं। वे अपने हाथ में अंगोछा लपेटकर पाँचमंज़िला नीलांजलि को पकड़ते हैं। इस तरह आरती शुरू हो जाती है। सबसे पहले पुजारियों के भरे हुए गले से मिला-जुला स्वर ‘जय गंगे माता, जो तुझको ध्याता, सारे सुख-पाता, जय गंगे माता’ गूँज उठता है। चारों ओर घंटे-घड़ियाल बजने लगते हैं। आरती प्रारंभ होते ही भक्तों की मन्नतों की प्रतीक छोटी-छेटी किश्तियाँ दीपकों को लेकर गंगा की लहरों पर इठलाती हुई आगे बढ़ने लगती हैं।

विशेष :

  1. संध्या आरती की बेला का सजीव चित्रांकन हुआ है।
  2. भाषा सरल अर बोधगम्य है।
  3. तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग हुआ है।
  4. चित्रात्मक शैली का भावपूर्ण अंकन हुआ है।

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3. पानी पर सहस्र बाती वाले दीपकों की प्रतिछवियाँ झिलमिला रही हैं। पूर वातावरण में अगरु-चंदन की दिव्य सुंध है। आरती के बाद बारी है संकल्प और मंत्रोच्यार की। भक्त आरती लेते हैं, चढ़ावा चढ़ाते है। स्पेशल भक्तों से पुजारी ब्राहाण-भोज, दान, मिष्ठान की धनराशि कबुलवाते हैं। आरती के क्षण इतने भव्य और दिव्य रहे हैं कि भक्त हुज्जत नहीं करते। खुझी-रखुशी दक्षिणा देते हैं।

प्रसंग : ये पंक्तियॉँ ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित लेखिका ममता कालिया द्वारा रचित ‘दूसरा देवदास’ नामक कहानी से अवतरित हैं। इनमें लेखिका ने गंगा के पवित्र पानी पर तैरती दीपकों की छवियों का चित्रण किया है।

व्याखया : लेखिका का मत है कि गंगा के पानी पर हज्ञारों जलते दीपकों की प्रतिछवियाँ झिलमिला रही हैं। सारे वातावरण में अगरु-चंदन की दिव्य सुगंध महक रही है। संध्या-आरती के पश्चात अब संकल्प और मंत्रों के उच्चारण की बारी है। सभी भक्त आरती लेते हैं। आरती को नमन करते हैं तथा उसमें चढ़ावा देते हैं। स्पेशल भक्तों से पुजारी इस समय ब्राहमण-भोज, दान, मिष्ठान की धनराशि कबूल करवाते हैं। इस आरती का समय इतना सुंदर और श्रेष्ठ होता है कि कोई भी भक्त ना नहीं करता। सभी अपनी खुशी से दक्षिणा देते हैं।

विशेष :

  1. लेखिका ने हर की पौड़ी का अति सहज और सुंदर चित्रण किया है।
  2. गतिशील बिंब योजना की गई है।
  3. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग है।
  4. चित्रात्मकता का प्रयोग है।

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4. स्नान से ज्यादा समय ध्यान ले रहा था। दूर जलधारा के बीच एक आदमी सूर्य की ओर उन्दुख हाथ जोड़े खड़ा था। उसके चेहरे पर इतना विभोर, विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अहम् त्याग दिया है, उसके अंदर ‘स्व’ से जनित कोई कुंठा शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतनस्वर्रूप, आत्माराम और निर्मलानंद है।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित लेखिका ममता कालिया द्वारा रचित है। यह ‘दूसरा देवदास’ नामक पाठ से अवतरित है। इसमें लेखिका ने अन्य स्थानों की भीड़ की अपेक्षा हरिद्वार की हर की पौड़ी पर लगी भीड़ को अनोखी बताया है।

व्याख्या : लेखिका का कहना है कि इस भीड़ में कोई भाग-दौड़ नहीं थी और न कोई अतिक्रमण था। इसमें एक अनूटी बात यह थी कि कोई भी स्नान करने वाला भक्त किसी सैलानी के आनंद में डुबकी नहीं लगा रहा था, बल्कि वह स्नान से ज्यादा समय ध्यान-मग्न कर रहा था। बहुत दूर जल की धारा के बीच एक आदमी सूर्य की और हाथ जोड़े खड़ा था। उसके चेहरे पर अत्यंत विभोर तथा विनय का ऐसा भाव था कि मानो उसने अपना सारा अहे त्याग दिया हो। उसके अंदर स्वं से पैदा हुई कोई कुंठा शेष नहीं है। वह तो केवल शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप, आत्माराम और निर्मल आनंद है।

विशेष :

  1. हर की पौड़ी पर एकत्रित भीड़ को सद्भावना का प्रतीक बताया है।
  2. भक्तों के कल्याण कामना के उद्देश्य का चित्रण हुआ है।
  3. तत्सम, तद्भव, देशज, उर्दू और फ़ारसी शब्दों का प्रयोग हुआ है।

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5. लड़की अब बिलकुल बराबर में खड़ी, औँख मूँदकर अर्चन कर रही थी। संभव ने यकायक मुड़कर उसकी और गौर किया। उसके कपड़े एकदम भीगे हुए थे, यहाँ तक कि उसके गुलाबी आँचल से संभव के कुरते का एक कोना भी गीला हो रहा था। लड़की के लंबे गीले बाल पीठ पर काले चमकीले शॉल की तरह लग रहे थे। दीपकों के नीम उजाले में, आकाश और जल की साँवली संधि-बेला में, लड़की बेहद सौम्य, लगभग काँस्य प्रतिमा लग रही थी।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्य भाग लेखिका ममता कालिया द्वारा प्रणीत ‘दूसरा देवदास’ नामक कहानी से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखिका ने संभव से लड़की के प्रथम मिलन का वर्णन किया है।

व्याख्या : लेखिका कहती है कि लड़की अब बिलकुल संभव के बराबर में खड़ी थी। वह आँख बंद करके पूजा-अर्चन कर रही थी। संभव ने अचानक उसकी ओर देखा। उसके कपड़े पूरे भीगे हुए थे। यहाँ तक कि उसके गुलाबी औँचल से संभव के कुर्ते का एक कोना भी गीला हो रहा था। लड़की के बाल बहुत लंबे थे। उसके लंबे बाल गीले होकर पीठ पर काले चमकीले र्शॉल की तरह दिखाई दे रहे थे। लेखिका लड़की के सॉददर्य का वर्णन करके कहती है कि वह लड़की दीपकों के मंद उजाले में, आकाश और जल की साँवली संध्या की बेला में बहुत सुंदर और लगभग कांस्य मूर्ति के समान दिखाई दे रही थी।

विशेष :

  1. लेखिका ने लड़की की शारीरिक सुंदरता का मनोहारी चित्रण किया है।
  2. साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग है।
  3. चित्रात्मक शैली अत्यंत भावपूर्ण है।
  4. तत्सम तथा विदेशज शब्दावली का समायोजन हुआ है।
  5. विवरणात्मक शैली है।

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6. भीड़ लड़के ने दिल्नी में भी देखी थी, बल्कि रोज्ञ देखता था। दफ्तर जाती भीड़, खरीद-फ़रोखत करती भीड़, तमाशा देखती भीड़, सड़क कॉस करती भीड़। लेकिन इस भीड़ का अंदराज्र निराला था। इस भीड़ में एकसूत्रता थी। न यहाँ जाति का महत्य था, न भाषा का, महत्व उद्देश्य का था और वह सबका समान था, जीवन के प्रति कल्याण की कामना।

इस भीड़ में दौड़ नहीं थी, अतिक्रमण नहीं था और भी अनोखी बात यह थी कि कोई भी स्नानार्थी किसी सैलानी आनंद में डुबकी नहीं लगा रहा था। बल्कि स्नान से ज्यादा समय ध्यान ले रहा था। दूर जलधारा के बीच एक आदमी सूर्य की ओर उन्मुख हाथ जोड़े खड़ा था। उसके चेहरे पर इतना विभोर, विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अहम् त्याग दिया है, उसके अंदर ‘स्व’ से जनित कोई कुंठा शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप, आत्माराम और निर्मलानंद है।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित लेखिका ममता कालिया द्वारा रचित है। यह ‘दूसरा देवदास’ नामक पाठ से अवतरित है। इसमें लेखिका ने अन्य स्थानों की भीड़ की अपेक्षा हरिद्वार की हर की पौड़ी पर लगी भीड़ को अनोखी बताया है।

व्याख्या : लेखिका का कथन है कि भीड़ लड़के ने दिल्ली में भी बहुत देखी थी, बल्कि वह प्रतिदिन दिल्ली में रहता हुआ भीड़ देखता था। दप्तर जाती, खरीद-फरोख करने वाली, तमाशा देखने वाली तथा सड़क पार करने वाली आदि अनेक भीड़ वह प्रतिदिन देखा करता था, लेकिन हरिद्वार की इस भीड़ का स्वरूप बहुत अनूठा था। इस भीड़ में एकसूत्रता थी, परस्पर मेल-जोल था। यहाँ किसी जाति, भाषा का महत्व नहीं था। यहाँ समस्त भीड़ का जीवन के प्रति कल्याण की कामना का उद्देश्य था।

लेखिका का कहना है कि इस भीड़ में कोई भाग-दौड़ नहीं थी और न कोई अतिक्रमण था। इसमें एक अनूठी बात यह थी कि कोई भी स्नान करने वाला भक्त किसी सैलानी के आनंद में डुबकी नहीं लगा रहा था, बल्कि वह स्नान से ज़्यादा समय ध्यान-मग्न कर रहा था। बहुत दूर जल की धारा के बीच एक आदमी सूर्य की ओर हाथ जोड़े खड़ा था। उसके चेहरे पर इतना विभोर तथा विनय का भाव था कि मानो उसने अपना सारा अहं त्याग दिया हो। उसके अंदर ‘स्व’ से पैदा हुई कोई कुंठा शेष नहीं है। वह तो केवल शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप, आत्माराम और निर्मल आनंद जैसा है।

विशेष :

  1. हर की पौड़ी पर एकत्रित भीड़ को एकसूत्रता का प्रतीक बताया है।
  2. भक्तों के कल्याण कामना के उद्देश्य का चित्रण हुआ है।
  3. तत्सम, तद्भव, देशज, उर्द्ध, फ़ारसी शब्दों का प्रयोग हुआ हैं।

Class 12 Hindi Antra Chapter 20 Summary - Dusra Devdas Summary Vyakhya

7. उससे पहले संभव ने कभी बिंदी जैसे भृंगार प्रसाधन पर ध्यान नहीं दिया था। अख यकायक उसे ये बिंदियाँ बहुत आकर्षक लर्गी। मन-ही-मन उसने एक बिंदी उस अज्ञात यौवना के माथे पर सजा दी। माँग में तारे भर देने जैसे कई गाने उसे आधे-अधूर याद आकर रह गए।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ममता कालिया द्वारा रचित कहानी ‘दूसरा देवदास’ से ली गई है, जिसमें लेखिका ने युवामन की संवेदना, भावना और विचारों की शृंखला को सहज रूप से प्रस्तुत किया हैं।

व्याख्या : इन पंक्तियों में लेखिका ने उस समय का वर्णन किया है, जब संभव रोपवे से मंसा देवी के मंदिर जाता है। वहाँ बिंदियों को बिकता हुआ देखकर उसे उस युवती की याद आ जाती है जिसे उसने हर की पौड़ी पर देखा था। इससे पहले संभव ने कभी बिंदिया जैसी वस्तु पर ध्यान नहीं दिया था। अब उसे ये बिंदियाँ बहुत अच्छी लगने लर्गी। वह मन-ही-मन एक बिंदी उस अनजान युवती के माथे पर लगाकर उसके साँदर्य की कल्पना में खो गया और ‘माँग में तारे भरने’ जैसे कई गाने उसे आधे-अधूरे याद आने लगे। उसे लगा, जैसे वह उसी अपरिचिता की माँग में तारे भर रहा है।

विशेष :

i. लेखिका ने युवामन में किसी अज्ञान यौवना के प्रति उत्पन्न भावों का यथार्थ अकन किया है।
ii. भाषा सहज, चित्रात्मक तथा शैली भावपूर्ण है।

अब संभव ने गौर किया, बिलकुल वही कंठ, वही उलाहना, वही अंदाज़। पुलक से उसका रोम-रोम हिल उठा। हे ईश्वर। उसने कब सोचा था मनोकामना का मौन उद्गार इतनी शीश्र शुभ परिणाम दिखाएगा।

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8. लड़की ने आज गुलाबी परिधान नहीं पहना था पर सफ़ेद साड़ी में लाज से गुलाबी होते हुए उसने मंसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ने का संकल्प लेते हुए सोचा, “मनोकामना की गाँठ भी अद्भत अनुठी है, इधर बाँधों उधर लग जाती हैं।”

प्रसंग : यह गद्यावरण हिंदी को पाठ्य-पुस्तक ‘ अंतरा भाग-2’ में संकलित है। इसमें ममता कालिया के द्वारा रचित ‘दूसरे देवदास’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने धर्म के प्रति अटूट विश्वास का चित्रांकन किया है और इसी माध्यम से युवती के हदय में प्रेम के भार्वों को उत्यन्न होता हुआ प्रकट किया है।

व्याख्या : लेखिका का कथन है कि अब संभव ने यह गौर किया कि यह तो बिलकुल पारों जैसी ही कंठ है। उलाहना भी पारो जैसा ही है। और उनके जैसा ही बोलने का अंदाज़ है। यह देखकर संभव का रोम-रोम रोमांचित हो उठा। वह अत्यंत आनंदित हो गया। वह प्रभु का धन्यवाद करते हुए कहने लगा कि हे ईश्वर! उसने कब सोचा था कि मनोकामना का मौन भाव इतनी जल्दी शुभ परिणाम दिखाएगा।

अर्थात उसने जैसे ही प्रभु से अपनी प्रिय से मिलन की इच्छा प्रकट की वैसे ही उसे उसके दर्शन हो गए। लड़की ने आज गुलाबी रंग की वेशभूषा पहनी हुई थी परंतु सफ़ेद रंग की साड़ी में लज्ञा से गुलाबी होते हुए उसने मंसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का निश्चय किया। उसने सोचा कि मनुष्य की मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत और अनूठी होती है। यह इतनी अद्भुत है कि एक तहफ़ मनोकामना करो और दूसरी तरफ़ वह पूर्ण हो जाती है।

विशेष :

  1. भारतीय धर्म-संस्कृति में भक्ति और शक्ति का प्रतिपादन किया गया है।
  2. शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है।
  3. तत्सम शब्दावली की प्रचुरता है।
  4. बिंब योजना सटीक एवं सार्थक है।