Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 2 गीत गाने दो मुझे, सरोज स्मृति to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 2 गीत गाने दो मुझे, सरोज स्मृति

Class 12 Hindi Chapter 2 Question Answer Antra गीत गाने दो मुझे, सरोज स्मृति

(क) गीत गाने दो मुझे :

प्रश्न 1.
कंठ रुक रहा है, काल आ रहा है-यह भावना कवि के मन में क्यों आई?
उत्तर
कवि संसार में मची हुई लूट-पाट को देखकर बहुत ही व्याकुल है। वह आजीवन विभिन्न मुसीबतों का सामना करता रहा है। जीवन में निरंतर चोट पर चोट खाते रहने से वह अपनी सुध-बुध खो बैठा है। उसे ऐसे अव्यवस्था से परिपूर्ण, छल-कपट के इस वातावरण में उसे अपना दम घुटता हुआ प्रतीत हो रहा है और उसे ऐसा लगता है मानो उसकी मृत्यु ही निकट आ रही है। संसार की इसी विषमता से त्रस्त होकर कवि के मन में यह भावना उत्पन्न हुई है।

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प्रश्न 2.
‘ठग ठाकुरों’ से कवि का संकेत किसकी ओर है ?
उत्तर :
‘ठग ठाकुरों’ के माध्यम से कवि समाज के उन लोगों की ओर संकेत कर रहा है जो अपने बाहुबल से समाज का निरंतर शोषण करते रहते हैं। कवि ने व्यवस्था के पहरेदारों, धर्म के ठेकेदारों तथा समस्त शोषक वर्ग को जन-साधारण को लूटने वाला माना है। चोर-डकैत तो खुले आम लूटते हैं परंतु ये लोग परदे की आड़ में सबको लूट जाते हैं और लुटने वाला हाथ मलता रह जाता है।

प्रश्न 3.
‘जल उठो फिर सींचने को’ इस पंक्ति का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बुझ गई है लौ पृथा की, जल उठो फिर सींचने को’ कवि ने किस आधार पर यह कहा है?
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह प्रेरणा देता है कि संसार में जो अव्यवस्था छा रही है उसे दूर करने के लिए हमें स्वयं आगे बढ़ना होगा। धरती से जो सहनशीलता समाप्त हो रही है उसे फिर से पल्लवित करने के लिए स्वयं में तेज उत्पन्न करना होगा। लोक-वेदना दूर करने के लिए आशा के गीत गाने होंगे। धरती की बुझती हुई लौ को जलाए रखने के लिए स्वयं को जलाना होगा।

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प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता दुख और निराशा से लड़ने की शक्ति देती है। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
इस कविता में कवि ने जीवन में व्याप्त निराशा को आशा का स्वर और मनुष्य में समाप्त हो रही जिजीविषा को पुनः प्रकाश देने की बात कहकर हमें जीने की प्रेरणा दी है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? तर्कयुक्त उत्तर दीजिए।
उत्तर :
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता में कवि ने इस ओर संकेत किया है कि आज समस्त संसार के लोग निरंतर जीवन से संघर्ष करते-करते निराश हो गए हैं। वे अपनी समस्त जमा पूँजी लुटा चुके हैं। सर्वत्र छल-कपट का दानव उनके जीवन को विषाक्त बनाता जा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव कर रहा है कि इस दमघोटू वातावरण में उसका जीना असंभव हो गया है। उसका जीवन दुखमय हो गया है, निराशा में डूब गया है।

ऐसे में कवि उसे निराशा और दुख से निकालने के लिए गीत गाना चाहता है। वह अपने गीतों से सद्भावनाओं का प्रचार करते हुए मनुष्य को दुख और निराशा से लड़ने की शक्ति प्रदान करना चाहता है। वह चाहता है कि जीवन की जो ज्योति मंद हो रही है उसे वह अपने गीतों की ऊर्जा से निरंतर जलते रहने की शक्ति प्रदान करे। इस प्रकार इस कविता के माध्यम से कवि ने निरंतर जीवन संघर्ष करते रहने की प्रेरणा दी है।

(ख) सरोज स्मृति :

प्रश्न 1.
सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
नव-वधू के रूप में सरोज के ऊपर सबसे पहले कलश का पवित्र जल छिड़का गया था। वह मंद-मंद स्वर से हँसती हुई अपने पिता की ओर देख रही थी। उसके सुंदर मुख पर भावी दांपत्य जीवन की सुखद अनुभूतियाँ मुखरित हो रही थीं। वह एक खिली हुई कली के समान आकर्षक लग रही थी। उसके अंग-अंग से प्रसन्नता व्यक्त हो रही थी। उसके नेत्र झुके हुए थे तथा होंठ थर-थर काँप रहे थे। वह शृंगार की साक्षात मूर्ति प्रतीत हो रही थी।

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प्रश्न 2.
कवि को अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद क्यों आई ?
उत्तर :
कवि ने जब अपनी पुत्री सरोज को दुल्हन के रूप में सजा देखा तो उसे अपने यौवन के दिन याद आ गए। उसे उसमें उस शृंगार के दर्शन हो रहे थे जो उसके काव्य में रसधारा बनकर उमड़ रहा था। उस समय उसे वही संगीत उमड़ता दिखाई दे रहा था जो उसने अपनी स्वर्गीय पत्नी के साथ गाया था। समस्त वातावरण दांपत्य भाव से भर गया था। इस कारण कवि को अपनी पत्नी की याद आ गई थी।

प्रश्न 3.
‘आकाश बदलकर बना मही’ में ‘आकाश’ और ‘मही’ किनकी ओर संकेत करते हैं?
उत्तर :
इस पंक्ति में कवि ने ‘आकाश’ को नायक और ‘मही’ को नायिका के रूप में चित्रित किया है। कवि को ऐसा प्रतीत होता है मानो वातावरण में सर्वत्र दांपत्य भाव व्याप्त गया है। इसलिए आकाश भी ऊपर रहने के भाव को त्याग कर अपनी प्रियतमा धरती से मिलने नीचे आकर उसके साथ एकाकार हो गया है।

प्रश्न 4.
सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर :
सरोज का विवाह अन्य विवाहों से भिन्न था। उसके विवाह में उसके पिता ने कोई दान-दहेज नहीं दिया था। इस विवाह में उनका कोई सगा – संबंधी भी नहीं आया था। सरोज के पिता ने किसी को निमंत्रण-पत्र भी नहीं भेजा था। इस विवाह में विवाह के गीत, रात्रि – जागरण आदि भी नहीं किया गया था। इस विवाह में कुछ सामान्य जनता के लोग, साहित्यकार आदि ही आए थे। विदाई के समय कन्या को दी जानेवाली शिक्षा भी कवि ने सरोज को स्वयं दी थी।

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प्रश्न 5.
शकुंतला के प्रसंग के माध्यम से कवि क्या संकेत करना चाहता है?
उत्तर :
शकुंतला के प्रसंग के माध्यम से कवि इस ओर संकेत करना चाहता है कि जिस प्रकार पति के पास जाने से पहले कण्व ऋषि ने शकुंतला को सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करने से संबंधी शिक्षा दी थी उसी प्रकार से कवि ने भी विवाह के बाद सरोज को वे सभी शिक्षाएँ दीं जो नववधू को उसकी माता देती है। कवि को शिक्षा देने का कार्य स्वयं इसलिए करना पड़ा था क्योंकि सरोज की माता की मृत्यु तो सरोज के जन्म के बाद ही हो गई थी। कवि के सगे-संबंधियों में से कोई भी सरोज के विवाह पर नहीं आया था। इसलिए माता का कर्तव्य भी कवि को स्वयं निभाना पड़ा था।

प्रश्न 6.
‘वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है ?
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि सरोज की माता उस परिवार की थी जिस ननिहाल में सरोज कुछ दिन ससुराल में रहने के बाद गई थी। सरोज उसी लता रूपी माता में कली के रूप में खिली थी। यहाँ ‘लता’ सरोज की माता को और ‘कली’ सरोज को बताया गया है। दोनों को ही कवि की ससुराल से भरपूर स्नेह मिला है। सरोज की माता का तो वह मायका ही था। सरोज को भी अपनी माता की मृत्यु के बाद ननिहाल से ही स्नेह प्राप्त हुआ था। वहीं उसका पालन-पोषण हुआ था।

प्रश्न 7.
कवि ने अपनी पुत्री का तर्पण किस प्रकार किया ?
उत्तर :
कवि ने समस्त सामाजिक-धार्मिक परंपराओं को नकारते हुए अपनी पुत्री सरोज का तर्पण स्वयं किया था। इस संबंध में कवि का कहना है कि चाहे उसे अपने सत्कर्मों से कोई यश न मिले। उसे इसका कभी भी दुख नहीं होगा। वह आज अपने पिछले तथा अन्य जन्मों के अपने सभी पुण्य कर्मों के फल अपनी पुत्री सरोज को सौंपकर उसका तर्पण करता है। कवि ने अपने सभी सत्कर्मों को अपनी पुत्री के प्रति समर्पित करके उसका तर्पण किया था।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए –
(क) नत नयनों से आलोक उतर
(ख) शृंगार रहा जो निराकार
(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला
(घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ।
उत्तर :
(क) विवाह के समय सजी-धजी सरोज इतनी अधिक सुंदर तथा आकर्षक प्रतीत हो रही थी कि उसके झुके हुए नेत्रों से भी मानो एक अलौकिक प्रकाश प्रस्फुटित हो रहा था। दांपत्य जीवन की सुखद कल्पनाओं से ही उसके नेत्र प्रसन्नता से जगमगा रहे थे।

(ख) दुल्हन के रूप में सजी हुई अपनी पुत्री को देखकर कवि को अपने यौवन के दिन स्मरण हो आए। उसे उसके इस श्रृंगार में उस शृंगार के दर्शन हो रहे थे जो आकारहीन होकर भी उसके काव्य में रस की धारा बहाता रहता है।

(ग) कवि विदाई के समय अपनी पुत्री को शिक्षा देते हुए सोचता है कि वह भी सरोज को वैसे ही शिक्षा दे रहा है जैसे कण्व ऋषि ने शकुंतला को दी थी। तभी उसे स्मरण हो आता है कि वह तो अपनी पुत्री को शकुंतला से भिन्न शिक्षा दे रहा है क्योंकि उसकी पुत्री सरोज शकुंतला से भिन्न स्थिति में है। इसलिए उसने सरोज को भिन्न प्रकार की शिक्षा दी।

(घ) कवि अपनी पुत्री का तर्पण स्वयं करता है। इसलिए वह कहता है कि यदि मेरा धर्म बना रहेगा तथा मेरे सभी कर्मों पर भले ही बिजली गिर पड़े तो भी मैं अपने झुके सिर से उसे स्वीकार करूँगा। कवि अपनी पुत्री का तर्पण करने के लिए सब प्रकार की विपत्तियाँ सहन करने को तैयार है।

योग्यता- विस्तार :

प्रश्न 1.
निराला के जीवन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए रामविलास शर्मा का ‘महाकवि निराला’ पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें। यहाँ ‘सरोज स्मृति’ कविता का सार दिया जा रहा है।

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प्रश्न 2.
अपने बचपन की स्मृतियों को आधार बनाकर एक छोटी-सी कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें। यहाँ ‘सरोज स्मृति’ कविता का सार दिया जा रहा है।

प्रश्न 3.
‘सरोज स्मृति’ पूरी पढ़कर आम आदमी के जीवन-संघर्षों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें। यहाँ ‘सरोज स्मृति’ कविता का सार दिया जा रहा है।

कविता के इस सार से निराला के जीवन संघर्षों का पता चलता है। इसी आधार पर एक आम आदमी के जीवन-संघर्षों का अनुमान लगाकर उसपर चर्चा कर सकते हैं। ‘सरोज स्मृति’ निराला द्वारा रचित एक शोकगीत है जो कवि ने अपनी पुत्री सरोज की अचानक मृत्यु हो जाने पर उसकी याद में लिखा था। कवि सोचता है कि सरोज शायद इसलिए उससे पहले स्वर्ग चली गई कि वह वहाँ भी उसे सहायता दे सके।

कवि अपने जीवन को निरर्थक मानते हुए स्वीकार करता है कि जब तक उसकी पुत्री सरोज जीवित रही, वह उसके लिए जीवन की सुख-सुविधाएँ नहीं जुटा सका था। कवि सरोज के बचपन को याद करता है। माँ से प्यार पाकर वह घर को आनंद से भर देती थी, पर उसकी माँ की मृत्यु शीघ्र हो गई। कवि उस समय अपने जीवन में संघर्ष कर रहा था। संपादक उसकी रचनाओं को लौटा देते थे। सरोज का पालन-पोषण नानी के घर होने लगा। बाल्यकाल बीतने पर वह लावण्यमयी युवती बन गई। उसे उसकी माँ के समान मधुर कंठ मिला था। वह गायन में कुशल थी। एक दिन कवि की सास ने सरोज को उसे सौंपते हुए उसके विवाह के लिए योग्य वर तलाशने को कहा।

कवि पुत्री को अपने घर ले आया। सौभाग्यवश एक सुयोग्य वर मिल गया और बिना दहेज दिए अत्यंत साधारण रीति से कवि ने उसका विवाह संपन्न कर दिया। कवि ने पिता के साथ-साथ माता का दायित्व भी निभाया था। ससुराल में कुछ दिन सुखपूर्वक बिताकर सरोज अपनी नानी के घर चली गई वहीं उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार कवि इस कविता के माध्यम से अपने समस्त पुण्य कर्मों को अर्पित कर सरोज के प्रति अपनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत करता है।

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कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘गीत गाने दो मुझे’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि किन परिस्थितियों में कविता करना चाहता है और क्यों ?
उत्तर :
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि संसार में सद्भावना एवं सहनशीलता समाप्त हो गई है। सर्वत्र स्वार्थ का राज्य है। लोग लूट-पाट मचाने में लगे हुए हैं। किसी को किसी की कोई परवाह नहीं है। लोग मिलते हैं, साथ रहते हैं परंतु फिर भी अपरिचित बने रहते हैं। किसी को किसी के सुख-दुख की कोई चिंता नहीं है। कवि चाहता है कि आज के इस भौतिकवादी युग में हम अपने सुबुद्ध कवित्व को जगाकर संसार में मानवीय गुणों का प्रसार करनेवाले गीत गाएँ।

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प्रश्न 2.
सिद्ध कीजिए कि ‘सरोज स्मृति’ एक शोक गीत है।
उत्तर :
‘शोक गीत’ ऐसी कविता होती है जो अपने किसी प्रियजन की मृत्यु से उत्पन्न संताप के कारण लिखी जाती है। इस प्रकार की रचना में मुख्य रूप से शोक, निराशा, दुख, पीड़ा, क्षोभ आदि भावों की अभिव्यक्ति होती है। ‘सरोज स्मृति’ कविता कवि सूर्यकांत ‘निराला’ ने अपनी पुत्री सरोज की उन्नीसवें वर्ष में मृत्यु हो जाने पर उसकी याद में लिखी थी। कवि ने अपनी पुत्री के जीवनयापन के लिए न्यूनतम आवश्यक सुविधाएँ न जुटा पाने में स्वयं को असमर्थ बताते हुए ग्लानि व्यक्त की है और खुद को कोसा है।

इस गीत में कवि ने अपनी भावनाओं को इतने मार्मिक रूप से व्यक्त किया है कि पाठक उसके भावों से प्रभावित होकर शोकमग्न हो जाता है। उसकी सहानुभूति सरोज के प्रति हो जाती है। इस प्रकार ‘सरोज स्मृति’ एक सफल शोक गीत है जिसमें हृदय पक्ष की प्रधानता है। इसकी मार्मिकता, सहजता एवं स्वाभाविकता पाठकों के हृदय को छू जाती है।

प्रश्न 3.
दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही! के आलोक में कवि हृदय की पीड़ा का वर्णन कीजिए।
अथवा
‘कन्ये, गत कर्मों का अर्पण कर, करता मैं तेरा तर्पण!’ उक्त कथन के पीछे छिपी वेदना और विवशता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
अथवा
‘दुख ही जीवन की कथा रही’- पंक्ति में निहित ‘निराला’ की वेदना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘सरोज स्मृति’ कविता कवि निराला की अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद की रचित कविता है। कवि का हृदय अपनी पुत्री की मृत्यु से अत्यंत संतृप्त है। कवि का समस्त जीवन दुखों से परिपूर्ण संघर्षमय था और अब पुत्री के आकस्मिक निधन ने उसे और भी अधिक दुखी कर दिया है। इसलिए वह चाहकर भी अपनी व्यथा का और अधिक वर्णन नहीं कर पाता, केवल यही कहता है कि उसके समस्त जीवन की कथा यही है कि वह सदा दुखों में पलता रहा। वह अपने जीवन के सभी सत्कार्यों का भी त्याग देता है।

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प्रश्न 4.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता के माध्यम से कवि ने क्या प्रेरणा दी है ?
उत्तर :
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को निरंतर संघर्षरत रहने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को कभी भी मार्ग में आने वाली बाधाओं, रुकावटों को देखकर घबराना नहीं चाहिए बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए। स्वयं जलकर धरा की बुझी ज्योति को प्रज् वलित करना चाहिए।

प्रश्न 5.
कवि ने ‘सरोज स्मृति’ गीत किसकी स्मृति में लिखा है तथा किसको समर्पित किया है?
उत्तर
कवि निराला ने सरोज स्मृति गीत अपनी इकलौती पुत्री सरोज की स्मृति में लिखा है जो अचानक मृत्यु के मुख में समा गई थी। उसकी मृत्यु के पश्चात कवि बिलकुल अकेले रह गए। यह संपूर्ण गीत कवि ने अपनी पुत्री सरोज को समर्पित किया है।