Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 19 यथास्मै रोचते विश्वम् to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 19 यथास्मै रोचते विश्वम्

Class 12 Hindi Chapter 19 Question Answer Antra यथास्मै रोचते विश्वम्

प्रश्न 1.
लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से क्यों की है?
उत्तर :
लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से इसलिए की है क्योंकि जिस प्रकार प्रजापति को जैसे अच्छा लगता है वैसे ही संसार को निर्मित कर देता है। ठीक उसी प्रकार कवि को जैसे अच्छा लगता है वैसे ही वह संसार को बदल देता है तथा उसी की तरह नई सृष्टि कर लेता है।

प्रश्न 2.
साहित्य समाज का दर्पण है-इस प्रचलित धारणा के विरोध में लेखक ने क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर :
साहित्य समाज का दर्पण है-इस प्रचलित धारणा के विरोध में लेखक ने निम्नांकित तर्क दिए हैं-

  1. यदि साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात न उठती।
  2. कवि का कार्य यथार्थ जीवन को प्रतिबिंबित करना ही होता तो वह प्रजापति का दर्जा न पाता।
  3. कवि की सृष्टि निराधार नहीं होती।

Class 12 Hindi Antra Chapter 19 Question Answer यथास्मै रोचते विश्वम्

प्रश्न 3.
दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे कवि का क्या उद्देश्य है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि सोच-समझकर ही किसी एक पात्र में दुर्लभ गुणों को दिखाता है, ताकि समाज उस व्यक्ति-विशेष से प्रभावित होकर वैसा ही बनने का प्रयत्न करे जिससे समाज का हित प्रतिपादन संभव हो सके। वाल्मीकि ने ‘रामायण’ में राम के चरित्र एक साथ शीलशक्ति-साँदर्य का समन्वय कर प्रजापति की भूमिका निभाई है। उन्होंने राम के चरित्र में वे सभी दुर्लभ गुण समाविष्ट कर दिए हैं जिससे वे मानव और महामानव से ईश्वरीय पद पर विराजमान हुए।

इसके पीछे मूल उद्देश्य यही था कि समाज के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया जाए। गुणवान, धैर्यवान, वीर, कृतज्ञ, सत्यवादी, दृढ्ढ, चरित्रवान, समर्थ, प्रियदर्शन और शूरवीरता के गुणों से संपन्न श्रीराम के गुणों को सबके सामने उभारने के लिए ही रावण का चरित्र अलग ढंग से गढ़ा गया। कवि अपने में ही प्रजापति बनकर समाज का हित साधन करता है।

प्रश्न 4.
साहित्य थके हुए मनुष्य के लिए विश्रांति ही नहीं है, वह उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
साहित्य मानव-कल्याण के लिए रचा जाता है। उत्तम साहित्य वही होता है जिसमें मानव कल्याण की भावना निहित हो। जब मनुष्य विपरीत परिस्थितियों तथा दुखों को देखकर जीवन से हार जाता है तब साहित्य उसे शांति प्रदान करता है। साहित्य केवल जीवन के पथ में थके हुए मनुष्य को शांति ही प्रदान नहीं करता, बल्कि उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है। वह निरंतर मानव को जीवन संग्राम में साहस से डटने की प्रेरणा देता है। जीवन के राग-विराग, सुख-दुख, आशा-निराशा आदि में समभाव रहने का संदेश देता है। जीवन-पथ से भटके हुए को प्रकाश देता है।

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प्रश्न 5.
‘मानव संबंधों से परे साहित्य नहीं है’-कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
मानव और साहित्य का अटूट संबंध है। मानव समाज ही साहित्य की परिधि है। मानव-संबंध साहित्य की रीढ़ हैं। साहित्यकार मानव संबंधों से प्रेरित होकर ही साहित्य की रचना करता है। जब साहित्यकार को मानवीय संबंध झकझोर देते हैं तभी वह उन्हें साहित्यिक माध्यम से प्रकट करता है। मानवीय संर्बंधों के राग-विराग, सुख-दुख, आशा-निराशा से प्रेरित होकर ही कवि साहित्य सृजन करता है। साहित्य में इन्हीं मानव-संबंधी भावों का चित्रांकन होता है। कवि विधाता पर साहित्य रचना करते हुए भी उसे मानव-संबंधों की परिधि में खींच लाता है। इन्हीं मानव संबंधों की दीवार से हैमलेट की कवि-सुलभ सहानुभूति संघर्ष करती है। वस्तुतः मानव-संबंधों से परे साहित्य नहीं है।

प्रश्न 6.
पंद्रहरीं-सोलहवी सदी में हिदी साहित्य ने मानव-जीवन के विकास में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर :
पंद्रहवी-सोलहवीं (15वीं-16वीं) सदी में हिंदी साहित्य ने मानव-जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने सदियों से सामंती पिंजरे में बंद मानव-जीवन की मुकित के लिए वर्ण और धर्म की जंज्रीरों पर प्रहार किए। हिंदी साहित्य के संत कबीर, नानक, तुलसी, सूर, मीरा, कश्मीरी ललद्यद, बंगाली चंडीदास, तमिल तिरुवल्लुवर आदि साहित्यकारों ने संपूर्ण भारतवर्ष में जीर्ण मानव-संबंधों के पिंजरे को झकझोर दिया। इन्होंने अपनी अमूल्य वाणी के द्वारा पीड़ित जनता के मर्म को स्पर्श कर संघर्ष के लिए एकत्रित किया। इस काल के साहित्य ने मानव-समाज को नवजीवन की आशा प्रदान की। मानव-करल्थाण के लिए सदियों से सोई आत्मा को इस साहित्य ने जागृत किया तथा मानव-समाज को संगठित करके उसका जीवन बदलने के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

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प्रश्न 7.
साहित्य के पांचजन्य से लेखक का क्या तात्पर्य है? साहित्य का पांचजन्य मनुष्य को क्या प्रेरणा देता है?
उत्तर :
साहित्य के पांचजन्य से लेखक का तात्पर्य है-वह शंख ध्वानि, जो समाज को जगा दे। पांचजन्य श्रीकृष्ण के शंख का नाम है। जिस प्रकार महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण के शंख पांचजन्य ने अर्जुन को कर्म के प्रति प्रेरित किया था, उसी प्रकार साहित्य भी मानव को कर्म के प्रति सचेत करता है। साहित्य का यह पांचजन्य भाग्य के सहारे बैठने वाले तथा पिंजरे में बंद मनुष्यों को स्वतंत्र होने की प्रेरणा देता है। साथ ही भाग्य के सहारे बैठने तथा पिंजरे में बंद बैठकर पंख फड़ड़ाने वालों पर भी व्यंग्य करता है। वह कायरों और हारे हुए प्रेमियों को ललकारता हुआ उन्हें युद्ध-भूमि में उतरने का संदेश देता है। वह समाज में मानव कल्याण तथा मानव मुक्ति के गीत सुनाता है।

प्रश्न 8.
‘साहित्यकार के लिए सुष्टा और ड्रष्टा होना अत्यंत अनिवार्य है’ -क्यों और कैसे ?
उत्तर ;
सृष्टा से तात्पर्य है-निर्मांता अर्थात स्वस्थ समाज का निर्माण करने वाला और द्रष्टा से अभिप्राय है-देखने वाला अर्थात भविष्य की ओर उन्मुख। एक साहित्यकार के लिए इन दोनों गुणों का होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि साहित्य समाज को परिवर्तित और प्रेरित करता है। साहित्यकार कल्याणकारी तथा प्रेरणादायक साहित्य रचना कर सके, इसलिए उसमें सृष्टा और द्रष्टा दोनों का गुण अनिवार्य हैं। जिस साहित्यकार में सृष्टा और द्रष्टा के गुण नहीं होते वे समाज को पराधीनता और पराभव का पाठ पढ़ाते हैं। उनकी आँखें अतीत की और होती हैं। इनके दर्पण में इनको ही अहं भावना दिखाई देती है। लेकिन जिनमें ये गुण होते हैं वे साहित्यकार जनता के रोष और क्रोध को प्रकट कर उसे आत्मविश्वास प्रदान करते हैं। उनकी रुचि जनता की रुचि से मेल खाती है। उनका उद्देश्य विश्व को किसी दिशा में प्रेरित और परिवर्तित करना होता है।

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प्रश्न 9.
‘कृि पुरोहित’ के रूप में साहित्यकार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
साहित्यकार का व्यक्तित्व पूर्ण रूप से तभी निखरता है जब वह समर्थ रूप से परिवर्तन चाहने वाली जनता के साथ कवि-पुरोहित के समान बढ़ता है। जो साहित्यकार इस परंपरा को अपना लेता है वही साहित्य को उन्नत और समृद्ध बनाकर हमारे जातीय सम्मान की रक्षा कर सकता है। वही समाज को नवीन जीवन दृष्टि प्रदान कर सकता है। उसका साहित्य ही लोक मंगलकारी हो सकता है।

प्रश्न 10.
सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
(क) ‘कवि की यह सृष्टि निराधार नहीं होती। हम उसमें अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें पर ऐसी आकृति जरूर देखते हैं जैसी हमें प्रिय है, जैसी आकृति हम बनाना चाहते है।’
(ख) ‘प्रजापति-कवि गंभीर यथार्थवादी होता है, ऐसा यथार्थवादी जिसके पाँव वर्तमान की धरती पर हैं और औंखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई है।’
(ग) ‘इसके सामने निरुद्देश्य कला, विकृत काम-वासनाएँ, अहंकार और व्यक्तिवाद, निराशा और पराजय के ‘ सिद्धांत’ वैसे ही नहीं ठहरते जैसे सूर्य के सामने अधकार।’
उत्तर
(क) प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित तथा रामविलास शर्मा द्वारा राचित ‘यथास्मै रोचते विश्वम्’ नामक पाठ से अवतरित हैं। इनमें लेखक ने व्यक्ति को समाज की प्रिय आकृति देखने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या-लेखक का मत है कि कवि की यह रचना निराधार नहीं होती। हम उस साहित्य रचना में अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें लेकिन हमें ऐसी आकृति अवश्य देखनी चाहिए जो हमें प्रिय हो, तथा जैसी आकृति हम बनाना चाहते हैं जिसका हम निर्माण करना चाहते हैं तथा जो हमें प्रिय लगती हो, ऐसी आकृति को अवश्य देखना चाहिए।

विशेष – (i) लेखक ने साहित्य सृजन में प्रिय आकृति देखने की प्रेरणा दी है।
(ii) भाषा सरल, सहज है।

(ख) प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण ‘अंतरा भाग- 2 ‘ में संकलित लेखक रामविलास शर्मा द्वारा रचित ‘यथास्मै रोचते विश्वम्’ पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक ने प्रजापति-कवि की विशेषता का चित्रण किया है।

व्याख्या – लेखक का मत है कि प्रजापति-कवि गंभीर यथार्थवादी होता है। अर्थांत प्रजापति-कवि सदैव यथार्थ का चित्रण गंभीरता से करता है। वह ऐसा यथार्थवादी होता है जिसके पाँव वर्तमान काल की धरती पर होते हैं और आँखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई होती हैं। ऐसा कवि सदैव वर्तमान को देखता हुआ भविष्य के प्रति सचेत होकर साहित्य सृजन करता है।

विशेष – (i) लेखक ने प्रजापति कवि को यथार्थवादी बताया है।
(ii) भाषा खड़ी शैली है।
(iii) तत्सम शब्दावली की प्रचुरता है।

(ग) प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश रामविलास शर्मा द्वारा लिखित ‘यथास्मै रोचते विश्वम्’ नामक पाठ से अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने पांचजन्य साहित्य का महत्व बताया है।

व्याख्या – लेखक का कहना है कि पांचजन्य साहित्य के सामने उद्देश्यहीन कला, बुरी कामवासनाएँ, अहंकार और व्यक्तिगत भावनाएँ, निराशा और पराजय का सिद्धांत उसी प्रकार ही नहीं ठहरते, जिस प्रकार सूर्य के सामने अंधकार नहीं ठहर सकता। जैसे सूर्य के प्रकाश के सामने अंधकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार पांचजन्य साहित्य के सामने सामाजिक बुराइयों से युक्त कलाएँ और विचार नष्ट हो जाते हैं।

विशेष – (i) पांचजन्य साहित्य के महत्व का प्रतिपादन हुआ है।
(ii) भाषा सरल, सरस खड़ी बोली है।

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भावा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
पाठ में प्रतिबिंब-प्रतिबिबित जैसे शब्दों पर ध्यान दीजिए। इस तरह के दस शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :

  1. प्रतिर्बिंब – प्रतिबिबित
  2. परिवर्तन – परिवर्तित
  3. प्रकाशन – प्रकाशित
  4. संगठन – संगठित
  5. नियमन – नियमित
  6. आमंत्रण – आमंत्रित
  7. संचरण – संचरित
  8. आयोजन – आयोजित
  9. सम्मान – सम्मानित
  10. उत्साह – उत्साहित
  11. गुंजन – गुंजरित

प्रश्न 2.
पाठ में ‘साहित्य के स्वरूप’ पर आए वाक्यों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर :

  1. यदि साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात न होती।
  2. कवि का काम यथार्थ जीवन को प्रतिबिंबित करना होता तो वह प्रजापति का दर्ज्जा न पाता।
  3. कवि को जैसे अच्छा लगता है वैसे ही संसार को बदल देता है।

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प्रश्न 3.
इन पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(क) कवि की सृष्टि निराधार नहीं होती।
(ख) कवि गंभीर यथार्थवादी होता है।
(ग) धिक्कार है उन्हें जो तीलियाँ तोड़ने के बदले उन्हें मज्जबूत कर रहे हैं।
उत्तर :
(क) प्रस्तुत पंक्ति से अभिग्राय यह है कि एक कवि का सहित्य-सृजन निराधार नहीं होता अर्थात उसका कोई-न-कोई आधार अवश्य रहता है जिसके बल पर कवि अपनी रचना का सृजन करता है। कहने का आशय यह है कि कोई भी सृजन बिना आधार के हो ही नहीं सकता।

(ख) इस पंक्ति का तात्पर्य है कि कवि समाज का यथार्थ-चित्रण करता है। उसका यह यथार्थ-चित्रण भी अत्यंत गंभीर होता है, इसीलिए कवि को गंभीर यथार्थवादी कहा गया है।

(ग) प्रस्तुत पंक्ति से आशय है कि लेखक ऐसे साहित्यकारों पर व्यंग्य करते हैं जो समाज को तोड़ने का कार्य करते हैं। लेखक कहता है कि वे लोग धिक्कार के योग्य हैं जो पिंजरे की जंज़ीरों को तोड़ने की अपेक्षा उन्हें मजबूत कर रहे हैं। लेखक के अनुसार ऐसे लोग धिक्कार के अधिकारी हैं।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
साहित्य और समाज पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
साहित्य और समाज का अटूट संबंध है। साहित्य समाज का दर्पण होता है। वैसे साहित्यकार भी एक सामाजिक प्राणी है। अतः वह समाज में जीते हुए, समाज को निरख-परखकर ही साहित्य सामग्री इकट्टी करता है। साहित्यकार समाज के सुख-दुख, आशानिराशा, राग-विराग आदि भावनाओं को अपनी वाणी प्रदान कर साहित्य के माध्यम से समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है। कोई भी साहित्य समाज से अलग रहकर जीवित नहीं रह सकता। समाज से अलग साहित्य निरर्थक है। साहित्य समाज की विसंगतियों, बुराइयों आदि का वर्णन कर समाज को जागृत करने का प्रयास करता है। साहित्य ही समाज की दिशा-निर्देश प्रस्तुत करता है तथा समाज को प्रेरणा प्रदान करता है।

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प्रश्न 2.
‘साहित्य मात्र समाज का दर्पण नहीं है’ विषय पर कक्षा में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उत्तर :
कक्षा अध्यापक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 1.
साहित्य समाज को बदलने की शक्ति रखता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
साहित्य में अद्भुत शक्ति है। वह केवल समाज का यथार्थ चित्रण ही नहीं करता, बल्कि समाज में फैली रूढ़ियों, बुराइयों, अंधविश्वासों, धर्म-संप्रदाय संबंधी भेदभावों का खंडन करके एक स्वस्थ समाज का निर्माण भी करता है। एक तरफ़ वह थके-हारे मनुष्य को शांति देता है तो दूसरी ओर उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है। अनादिकाल से साहित्य सामंती पिंजरों में बंद मनुष्य रूपी पक्षी के चीवन-मुक्ति के लिए संघर्ष करता रहा है।

कबीर, नानक, सूर, तुलसी, मीरा आदि गायकों ने अपने साहित्य के माध्यम से विकट परिस्थितियों को दूर करते हुए समाज को जीने की प्रेरणा प्रदान की है। इन साहित्यकारों की वाणी ने त्रस्त मानव के मर्म को स्पर्श कर उनमें नवजीवन की आशा का संधार किया। इतिहास इस बात का साक्षी हैं कि आदिकाल से आज तक सहित्य ने अपनी दिव्य शक्ति के बल पर समाज को नवीन दिशा-निर्देश देकर बदलने का सराहनीय प्रयास किया है। संभवत: साहित्य समाज को बदलने की शक्ति रखता है।

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प्रश्न 2.
15वीं-16वीं सदी में किन-किन साहित्यकारों ने मानवता को झकझोर दिया था ?
उत्तर :
15 वीं-16वीं सदी में हिंदी साहित्य संत कबीरदास, गुरु नानक देव, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, कश्मीरी ललद्यद, बंगाली चंडीदास, तमिल तिरुवल्लुवर आदि साहित्यकारों ने अपनी वाणी के द्वारा मानवता को झकझोर दिया था। इन्होंने मानवीय संबंधों को झकझोर कर उन्हें नबीन जीवन-दृष्टि प्रदान की।

प्रश्न 3.
17 वीं और 20 रीं सदी में किन-किन साहित्यकारों का समाज में योगदान रहा है? उन्होंने समाज को क्या योगदान दिया ?
उत्तर :
17 वीं और 20 वीं सदी में बंगाली में रवींद्रनाथ टैगोर, हिंदी में भारतेंदु हरिश्चंद्र, तेलगु में वीरेश लिंगम, तमिल में भारती और मलयाली में वह्लतोल आदि साहित्यकारों का समाज में योगदान रहा है। इन साहित्यकारों ने अंग्रेज्जी राज और सामंती अवशेषों के पिंजरों पर कठोर प्रहार किए। उन्होंने पुन: भारत की दुखी पराधीन जनता को झकझोर कर संगठित किया। भारतीय जनता की मनोवृत्ति को बदला तथा उसे सुखी स्वाधीन जीवन की प्रेरणा देकर संंर्ष करने के लिए उत्साहित किया।

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प्रश्न 4.
‘यथास्पै रोचते विश्वम्’ निबंध का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘यथास्मै रोचते विश्वम्’ निबंध रामविलास शर्मा द्वारा रचित निबंध संग्रह ‘विराम-चिह्न’ से संकलित हैं। इसमें लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से की है तथा उसे उसके कर्म के प्रति सचेत किया है। साहित्य जहाँ एक तरफ मानव को मानसिक शांति प्रदान करता है, वहीं दूसरी तरफ़ उसे उन्नति के मार्ग पर भी अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। सामाजिक प्रतिबद्धता साहित्य की कसौटी है।

प्रश्न 5.
‘साहित्य समाज का दर्पण है’ कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर :
साहित्य समकालीन समाज से प्रेरित होता है। वैसे भी साहित्यकार एक सामाजिक प्राणी होता है। वह समाज में रहकर ही साहित्य का सृजन करता है। वह समाज में चारों तरफ जो भी घटित होता है अर्थात सामाजिक जन-जीवन के सुख-दुख, आशा-निराशा, धर्म, राजनीति, संस्कृति, रीति-रिवाज, रहन-सहन आदि सभी का चित्रण करता है। यही कारण है कि साहित्य को पढ़कर हमारे सामने समकालीन समाज की यथार्थ झाँकी प्रकट हो जाती है। वैसे भी सामाजिक प्रतिबद्धता साहित्य की कसौटी है। साहित्य समाज से प्रेरित होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं साहित्य समाज का दर्पण है।

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प्रश्न 6.
साहित्य से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर :
साहित्य से हमें उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है। साहित्य हमें मानसिक शांति प्रदान करते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देता है। साहित्य से प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य को प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए निरंतर उन्नति की आर उन्मुख रहना चाहिए। बाधाओं, कठिनाइयों से कभी डरकर अपना लक्ष्य नहीं भूलना चाहिए।

प्रश्न 7.
‘यथास्मै रोचते विश्वम्’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
प्रापापि से कवि की तुलना करते हुए किसी ने कहा है-‘ यथास्मै रोचते विश्वम् तथेदे परिवर्तते’ अर्थात कवि को जैसा रचता है वैसे ही संसार को बदल देता है। प्रजापति को जैसा अच्छा लगता है वह वैसे ही संसार का निर्माण कर देता है। ठीक इसी प्रकार एक कवि जैसे संसार की कल्पना करता है, जैसा उसे अच्छा लगता है, वह भी वैसे संसार का सृजन कर देता है। एक कवि में अपने मतानुरूप संसार को परिवर्तित करने की पूर्ण क्षमता होती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि कबीर, सूर, तुलसी, गुरूनानक आदि कवियों ने अपने अनुसार संसार को बदला है। उन्होंने जैसे संसार की कल्पना की वैसे ही संसार को बदल दिया। कवि निरंतर संसार के जन-जीवन को उन्नति की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। इस प्रकार यह सच है कि कवि को जैसा अच्छा लगता है वह वैसे ही संसार को बदल देता है।

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प्रश्न 8.
कवि संसार को परिवर्तित करने के साथ-साथ और क्या बताता है ?
उत्तर :
कवि संसार को परिवर्तित करने के साथ-साथ हमें यह भी बताता है कि विश्व से उसे असंतोष क्यों है। संसार में उसे क्या अच्छा लगता है जिसे वह फलता-फूलता देखना चाहता है। कवि असत्य, अन्याय, अनीति का निराकरण कर समाज के लिए सत्य, न्याय और नीति का मार्ग प्रशस्त करता है और इसी मार्ग पर निरंतर बढ़ने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 9.
साहित्य आशावादी चेतना का प्रतीक होता है। क्यों ?
उत्तर :
साहित्य समाज का दर्पण है। इसमें समाज का यथार्थ चित्रण होता है। इसमें मनुष्य के सुख-दुख का ही चित्रण नही होता, बल्कि आशा-निराशा आदि का भी चित्रांकन होता है। साहित्य सत्य, न्याय और नीति का पक्षधर होता है और सदैव असत्य, अन्याय और अनीति का विरोध करता है। यह असत्य, अन्याय, अनीति का शमन कर मानव-समाज के लिए सत्य, न्याय और नीति का मार्ग प्रशस्त करता है। साहित्य मानव को जीवन जीने की प्रेरणा देता है। जहाँ यह मनुष्य को मानसिक जांति प्रदान करता है, वहीं उसे उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। साहित्य मनुष्य को रोना नहीं, हैसना सिखाता है। भागना नही, जीवन मार्ग में डटकर सामना करना सिखाता है। यह निराश, हताशा को दूर कर आशा का संचार करता है। इसलिए साहित्य आशावादी चेतना का प्रतीक है।

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प्रश्न 10.
सत्रहीर्वी और बीसर्वी सदी में किसने अंग्रेज़ी राज और सामंती प्रथा पर प्रहार किया ?
उत्तर :
सत्रहवी और बीसर्वी शताब्दी में कविवर रवींद्रनाथ टैगोर, भारतेंदु हरिश्चंद्र, तेलुगु के वीरेश लिंगम, तमिल के भारती, मलयाली के चल्लटोल आदि कबियों ने अंग्रेज़ी राज तथा सामंती प्रथा पर प्रहार किया।

प्रश्न 11.
लेखक के अनुसार कैसा कवि साहित्य को उन्नत एवं समृद्ध बनाकर हमारे सजातीय सम्मान की रक्षा कर सकता है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार जो कवि प्रजापति की भूमिका का निर्वाह करता है, जो साष्टा एवे द्रष्टा होता है; जो परिवर्तन चाहने वाली जनता के आगे पुरोहित की तरह बढ़ता हैं; जो सामाजिक प्रतिबद्धता की कसौटी पर खरा उतरता है, वही कवि हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाकर हमारे जातीय सम्मान की रक्षा कर सकता है।

प्रश्न 12.
आदि कवि कौन हैं ? उनकी प्रजापति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी हैं। रामायण उनकी कीर्ति का आधार स्तंभ है। यह सुप्रसिद्ध ग्रंथ है। इसमें आदि कवि ने श्रीरामचंद्र को नायक बनाया है। उन्होंने अपनी बुद्धि एवं प्रतिभा के बल पर अपने नायक श्रीराम में दुर्लभ गुणों का समावेश कर चित्रित किया है। उन्होंने श्रीराम के दुर्लभ गुण समाज के सामने प्रतिबिंबित ही नहीं किए, अपितु प्रजापति की तरह एक नई सृष्टि की। समाज के सामने श्रीराम को आदर्श स्थापित कर समाज को प्रेरणा दी। एक आदर्श समाज की कल्पना कर आदर्श समाज का निर्माण किया, इसलिए महर्षि वाल्मीकि सच्चे अर्थों में प्रजापति हैं।

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प्रश्न 13.
कविता का जन्मसिद्ध अधिकार क्या है?
उत्तर :
प्रजापति जिस समाज का निर्माण करता है उससे असंतुष्ट होकर एक नवीन समाज का निर्माण करना ही कविता का जन्मसिद्ध अधिकार है।

प्रश्न 14.
यूनानी विद्वानों के संबंध में क्या विचार है ?
उत्तर :
यूनानी विद्वानों ने कला को जीवन की नकल कहा है। अफलातून ने असार संसार को असल की नकल बताकर कला को नकल की नकल बताया है। अरस्तू ने ट्रेजेडी के विषय में कहा था कि इसमें मनुष्य जैसे हैं, उससे बढ़कर दिखाए जाते हैं।

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प्रश्न 15.
लेखक के अनुसार राम के क्या-क्या गुण हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार राम के निम्नलिखित गुण हैं –

  1. राम चरित्रवान और दयावान हैं।
  2. वे एक श्रेष्ठ विद्वान हैं।
  3. वे सत्यनिष्ठ और दृढ़व्रतधारी हैं।
  4. वे वीर और कृतज़ हैं।
  5. वे समर्थ एवं प्रियदर्शन हैं।