In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 18 Summary, Jahan Koi Wapsi Nahi Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.

जहाँ कोई वापसी नहीं Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 18 Summary

जहाँ कोई वापसी नहीं – निर्मल वर्मा – कवि परिचय

जीवन-परिचय – निर्मल वर्मा हिंदी-साहित्य के विशिष्ट कथाकार माने जाते हैं। वे नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे। उनका नाम सन 1929 ई० को शिमला हिमाचल प्रदेश में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में हुई। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में एम० ए० की परीक्षा पास की। इसके बाद वे अध्यापन कार्य करने लगे। सन 1959 ई० में चेकोस्लोवाकिया के ‘प्राच्य विद्या संस्थान’ प्राग के निमंत्रण पर वहाँ गए तथा चेक उपन्यासों तथा कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया।

निर्मल वर्मा को हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का भी विशेष ज्ञान था। वे अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी लिखते रहे। उन्होंने ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ तथा ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के लिए यूरोप की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर अनेक लेख और रिपोर्ताज लिखे हैं, जो उनके निबंध संग्रहों में संकलित हैं। सन 1970 में वे विदेश से भारत लौट आए और स्वतंत्र लेखन करने लगे। सन 1985 ई० में ‘कब्बे और काला पानी’ पर उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त उन्हें उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। सन 2005 ई० में निर्मल वर्मा का देहांत हो गया।

प्रमुख रचनाएँ – निर्मल वर्मा का प्रमुख योगदान कथा-साहित्य के क्षेत्र में है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैंउपन्यास-वे दिन, लाल टीन की छत, एक चिथड़ा सुख, अंतिम अरण्य।

कहानी संग्रह – परिंदे, जलती झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गरमियों में, कव्चे और काला पानी, बीच बहस में, सूखा तथा अन्य कहानियाँ। यात्रा-संस्मरण-हर बारिश में, चीड़ों पर चाँदनी, धुंध से उठती धुन।

निबंध संग्रह – शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, बलान से उतरते हुए।

साहित्यिक विशेषताएँ – निर्मल वर्मा आधुनिक हिंदी कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने कथा-साहित्य के द्वारा समकालीन समाज की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परिस्थितियों पर लेखनी चलाई है। वर्मा ने अपनी कहानियों तथा उपन्यासों के द्वारा समाज की ज्वलंत समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया है। उन्होंने समकालीन विडंबनाओं, समस्याओं, विसंगतियों आदि को बखूबी स्पष्ट किया है। समाज में बढ़ रही चोरी, डकैती, भ्रष्टाचारी, घूसखोरी आदि समस्याओं की ओर पाठक का ध्यान आकर्षित किया है।

उन्होंने समाज में बढ़ रही समस्याओं का विरोध करके एक स्वस्थ समाज की कल्पना की है। लेखक का यात्रा साहित्य अत्यंत अनूठा है, जिसमें उन्होंने प्राकृतिक साँदर्य का अनोखा दृश्य प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही औद्योगिक विकास के कारण नष्ट होते प्राकृतिक साँदर्य के प्रति उन्होंने गहन चिंता व्यक्त की है। ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ यात्रा वृत्तांत में लेखक ने पर्यावरण संबंधी सरोकारों को ही नहीं बल्कि विकास के नाम पर पर्यावरण-विनाश से उपजी विस्थापन संबंधी मनुष्य की यातना को भी चित्रित किया है। उन्होंने आधुनिक आँधी के दौर में प्रकृति पर हो रहे अत्याचारों के प्रति गहन चिंता प्रकट की है।

निर्मल वर्मा की भाषा – शैली सरल, सरस और भावानुकूल है। उनकी भाषा-शैली की अनूठी विशेषता है। वह विचार-सूत्र की गहनता को अनेक उदाहरणों से रोचक बनाती हुई विषय का विस्तार करती है। उन्होंने वर्णनात्मक, चित्रात्मक, संवादात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया है। उनका शब्द-चयन अत्यंत व्यापक है। उन्होंने अपनी भाषा में तत्सम, तद्भव, उद्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है। शब्दचयन में जटिलता होते हुए भी उनकी वाक्य-रचना में संयुक्त एवं मिश्र वाक्यों की प्रधानता है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से उनकी भाषा में रोचकता का सृजन हुआ है। उनकी भाषा-शैली में अनेक नवीन प्रयोगों की झलक दिखाई देती है।

वस्तुत: निर्मल वर्मा हिंदी कथा साहित्य के अनूठे साहित्यकार थे। उसका कथा साहित्य में अपूर्व योगदान है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 18 Summary - Jahan Koi Wapsi Nahi Summary Vyakhya

Jahan Koi Wapsi Nahi Class 12 Hindi Summary

‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ यात्रा-वृत्तांत में निर्मल वर्मा ने पर्यावरण संखेंधी सरोकारों के साथ-साथ विकास के नाम पर पर्यावरण-विनाश से उपजी विस्थापन संबंधी मनुष्य की यातना को भी रेखांकित किया है। लेखक सन 1983 ई० में दिल्ली में स्थित ‘लोकायन’ संस्था की ओर से ‘सिंगरौली’ के विकास का जायजा लेने हेतु गया था। यहाँ उसी यात्रा का मार्मिक चित्रण हुआ है। सिंगरौली में जुलाई का अंत धान रोपाई का महीना था। लेखक अपनी मंडली के साथ सिंगरौली के नवा गाँच क्षेत्र में गया, जिसकी आबादी 50 हज्षार से ऊपर की। इसी क्षेत्र में एक गाँव था ‘अमझर’ जो आम के पेड़ों से घिरा हुआ था।

लेकिन पिछले दो-तीन वर्षो से सरकारी घोषणा के कारण कि अमरौली प्रोजेक्ट से नवागाँब के अनेक गाँव उजाड़ दिए गए, जिस कारण वहाँ सूनापन छा गया है। न इन पर कोई फल पकता है न कोई झरता है। ये आम के पेड़ सूखने लगे हैं। टिहरी गढ़वाल में पेड़ों को बचाने के लिए आदमी के संघर्ष की कहानियौँ सुनी थीं, लेकिन मनुष्य के विस्थापन के विरोध में पेड़ भी एक साथ मिलकर मूक सत्याग्रह कर रहे थे।

यह एक विचित्र अनुभव था। विस्थापित होकर लोग कैसे बुरा जीवन बिताते हैं, लेखक ने ऐसा अब तक शहरों की गंदी बस्तियों में ही देखा था। लेकिन विस्थापन से पहले वे कैसे स्वच्छ पवित्र परिवेश में रहकर स्वच्छ ज़िंदगी बिताते होंगे, यह पहली बार अमझर गाँव में देखा। चारों ओर इस गाँव में औरतें पानी से भरे खेतों में धान की रोपाई कर रही थी। वे जरा-सी आहट पाकर हिरणियों के समान देखती थीं। यह स्वच्छ सुंदर शाश्वत दृश्य देखकर विश्वास नहीं होता था कि एक दिन्न औद्योगिक विकास के कारण सब नष्ट हो जाएगा।

इसके बाद शायद इस गाँव के लोगों की स्मृतियों में गाँव की तस्वीर एक स्वप्न की तरह आती रहेगी। किंतु उनके छोटे-छोटे बच्चों को कभी मालूम भी न होगा कि बहुत पहले उनके पूर्वजों का गाँव था जहाँ आम झरा करते थे। ये लोग औद्योगीकरण की आँधी से निर्वासित हुए आधुनिक भारत के शरणार्थी हैं। बाढ़ या भूर्कप के बाद तो लोग कुछ समय बाद अपने परिवेश में लौट आते हैं लेकिन विकास के नाम पर जब इतिहास लोगों को उखाड़ता है तो वे कभी वापस घर नहीं लॉटते। उनका परिवेश सदा के लिए नष्ट हो जाता है।

सन 1926 से पूर्व यहाँ खँरवार जाति के आदिवासी राजा शासन करते थे किंतु बाद में रीवां राज्य में शामिल कर लिया गया है। एक जमाने में सिंगरौली अपने असीम प्राकृतिक साँदर्य के कारण काला पानी माना जाता था। आज के लोलुप युग में कोई भी प्रदेश अपने अलगाव में सुरक्षित नहीं रहा। कभी-न-कभी उसकी संपदा ही उसका अभिशाप बन जाएगी। सत्ताधारी लोगों की योजनाओं से ही रिहंद बाँध के बनने से हज्ञारों गाँव उजड़ गए।

इसी कारण सेंट्रल कोल फ़ील्ड और नेशनल सुपर थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन का निर्माण हुआ। वैसे ही सिंगरौली की क्यारी और अंगलों पर ठेकेदारों, वन अधिकारियों तथा सरकारी कारिदों का आक्रमण हुआ। यह विकास के नाम पर विनाश का व्यापक अँधेरा था। भौतिक सुखों की लिप्सा के कारण यह विनाश लीला औद्योगीकरण के रूप में चारों तरफ़ चली। लेकिन इस विनाश लीला को रोका जा सकता था।

भारत की सांस्कृतिक विरासत यूरोप की तरह संग्रहालयों और म्यूजियमों में जमा नही है, बल्कि वह उन रिश्तों से जीवित है जो आदमी को उसकी धरती, जंगलों, नदियों आदि समूचे परिवेश से जोड़ती है। ग्वातंत्योत्तर भारत की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि शासक वर्ग ने औद्योगीकरण का मार्ग चुना, बस्कि यह है कि पश्चिम की देखा-देखी भें हमने प्रकृति, मनुष्य और सांस्कृतिक संतुलन की ओर ध्यान नहीं दिया।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

  • विस्थापन – एक जगह से दूसरी जगह उजड़कर जाना या बसना तिरना – अलग-थलग पड़ना
  • झंझावात – आधधी, तूफ्फान, मुसीबत
  • चक्का – चक्र, गाड़ी का पहिया, मिट्टी का ढेला
  • समूचा – समस्त, सारा
  • रोपाई – पौधा लगाना या रोपना
  • भयावह – भय से युक्त, डरावना
  • डाँगर – पशु
  • भ्रम – संदेह, संकोच, धोखा
  • खंड – क्षेत्र
  • लिप्सा – इच्छा, आकांक्षा
  • उन्मूलित – उसड़ना, अपने मूल से कहना
  • शाश्वत – कभी न मिटने वाला, सदैव रहने वाला
  • लोलुप – लालची अतीत – भूतकाल
  • मिथक – सत्य और झूठ का मिश्रण
  • अमझर – आम का झड़ना
  • स्लम्स – गंदी बस्तियाँ अंतहीन
  • सरोवर – वह सरोवर जिसका कोई अंत नहीं
  • किश्तीनुमा हैट – किश्ती के समान टोपी
  • झुंड – समूह

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जहाँ कोई वापसी नहीं सप्रसंग व्याख्या

1. इन्हीं गाँवों में एक का नाम है-अमझर-आम के पेड़ों से घिरा गाँव-जहाँ आम झरते हैं। किंतु पिछले दो-तीन वर्षों से पेड़ों पर सूनापन है, न कोई फल पकता है, न कुछ नीचे झरता है। कारण पूछने पर पता चला कि जब से सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएँगे, तब से न जाने कैसे, आम के पेड़ सूखने लगे। आदमी उजड़ेगा, तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे ?

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित तथा निर्मल वर्मा द्वारा लिखित ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ नामक यात्रा-संस्मरण से अवतरित है। इसमें लेखक ने सिंगरौली क्षेत्र में अमझर नामक गाँव के सूनेपन का चित्रण किया है।

व्याख्या : लेखक का मत है कि सिंगरौली में नवागाँव क्षेत्र के गाँवों में एक गाँव का नाम अमझर है। यह गौव आम के वृक्षों से घिरा हुआ है। यहाँ आम के पेड़ों से सदा आम झड़ते रहते थे, लेकिन पिछले दो-तीन महीनों से पेड़ों पर बिलकुल सूनापन है। इन पर न कोई फल पकता है, न नीचे झड़ता है। लेखक कहता है कि जब हमने इसका लोगों से कारण पूछा तो पता लगा कि जब से यह सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएँगे तब से न जाने कैसे ये आम के पेड़ सूखने लगे हैं और न इनसे कोई आम झरता है। जब आदमी यहाँ से उजड़ जाएँगे तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे। लेखक का अभिप्राय यह है कि यहाँ के लोगों के उजड़ने की बात सुनकर शायद आम के वृक्ष भी चिंतित हो उठे हैं।

विशेष :

  1. लेखक ने आम के वृक्षों के सूनेपन का चित्रण किया है।
  2. भाषा, सरल और सरस है।
  3. वर्णनात्मक शैली का भावपूर्ण प्रयोग हुआ है।
  4. तत्सम, तद्भव तथा अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग हुआ है।

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2. टिहरी गढ़वाल में पेड़ों को बचाने के लिए आदमी के संघर्ष की कहानियाँ सुनी थीं, किंतु मनुष्य के विस्थापन के विरोध में पेड़ भी एक साथ मिलकर मूक सत्याग्रह कर सकते हैं, इसका विचित्र अनुभव सिर्फ़ सिंगरौली में हुआ।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्य ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित तथा निर्मल वर्मां द्वारा रचित ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक ने सिंगरौली में मनुष्यों के विस्थापन से त्रस्त पेड़ों के मूक सत्याग्रह का चित्रण किया है।

व्याख्या : लेखक कहता है कि टिहरी गढ़वाल में पेड़ों को बचाने के लिए आदमी के संघर्ष की कहानियाँ तो सुनी थीं अर्थात हमने सुना था कि वृक्षों को उजड़ने से बचाने हेतु लोग एकजुट होकर संघर्ष करते हैं, लेकिन मनुष्य के विस्थापन के विरोध में पेड़ भी एक साथ मिलकर मूक सत्याग्रह कर सकते हैं, इसका अनोखा अनुभव केवल सिंगौली में आकर हुआ। अभिग्राय यह है कि सिंगरौली में आम के वृक्षों को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो मनुष्यों के उजड़ने के कारण वे भी सुनसान होकर विरोध जता रहे हों।

विशेष :

  1. पेड़ों पर मानवीय भावनाओं का आरोप किया गया है।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज खड़ी बोली है।
  3. तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।

3. ये लोग आधुनिक भारत के नए ‘ शरणार्थी’ हैं, जिन्हें औद्योगीकरण के झंझावात ने अपनी घर-ज़मीन से उखाड़कर हमेशा के लिए निर्वासित कर दिया है। प्रकृति और इतिहास के बीच यह गहरा अंतर है। बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घरबार छोड़कर कुछ अरसे के लिए ज़रूर बाहर चले जाते हैं, किंतु आफ़त टलते ही वे दोबारा अपने जाने-पहचाने परिवेश में लौट भी आते हैं। किंतु विकास और प्रगति के नाम पर जब इतिहास लोगों को उन्मूलित करता है, तो वे फिर कभी अपने घर वापस नहीं लौट सकते। आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में सिर्फ़ मनुष्य ही नहीं उखड़ता, बल्कि उसका परिवेश और आवास-स्थल भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।

प्रसंग : यह गद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित तथा निर्मल वर्मा द्वारा रचित है। यह ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ नाटक यात्रा वृत्तांत में से लिया गया है। इसमें लेखक ने औद्योगीकरण के कारण मनुष्य तथा उसके परिवेश के उजड़ने का वर्णन किया है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 18 Summary - Jahan Koi Wapsi Nahi Summary Vyakhya

व्याख्या : लेखक कहता है कि ये लोग आधुनिक भारत के नए शरणार्थी हैं जिन्हें औद्योगीकरण के तूफान ने अपने घर तथा जमीन से उजाड़कर सदा के लिए विस्थापित दिया है। यह प्रकृति और इतिहास के मध्य गहन अंतर है। जब बाढ़ या भूकंप आता है तो लोग उसके कारण घबराकर कुछ समय के लिए अपना घरबार छोड़कर बाहर चले जाते हैं लेकिन जैसे ही विपत्ति खत्म हो जाती है, वे दोबारा अपने जाने-पहचाने परिवेश में लौट भी आते हैं।

लेकिन विकास और प्रगति के नाम पर जब इतिहास लोगों को उजाड़ता है तो फिर वे कभी भी अपने घर लौटकर नहीं आते। वे तो सदा के लिए अपने घर तथा परिवेश से उजड़कर कहीं चले जाते हैं। लेखक का कहना है कि आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में केवल मनुष्य ही नहीं उजड़ता, बल्कि उसका परिवेश और प्यार भी सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं।

विशेष :

  1. लेखक ने विस्थापित लोगों की स्थिति का मार्मिक वर्णन किया है।
  2. भाषा-शैली सरस, खड़ी बोली है।
  3. तत्सम तथा विदेशज शब्दों का प्रयोग है।

4. कितु कोई भी प्रदेश आज के लोलुप युग में अपने अलगाय में सुरक्षित नहीं रह सकता । कभी-कभी किसी इलाके की संपदा ही उसका अभिशाप बन जाती है। दिल्ली के सत्ताधारियों और उद्योगपतियों की आँखों से सिंगरौली की अपार खनिज संपदा हिपी नहीं रही। विस्थापन की एक लहर रिंदद बाँध बनने से आई थी, जिसके कारण हचारों गाँव उजाड़ दिए गए थे।

प्रसंग : ये पंक्तियाँ निर्मल वर्मां द्वारा रचित ‘जहाँ कोई वापसी नही’ नामक यात्रा-संस्मरण से ली गई है। इनमें लेखक ने सिंगरौली की अपार संपदा के विस्थापन के कारण के रूप में चित्रित किया है।

व्याख्या : लेखक का मंतव्य है कि कोई भी प्रदेश आज के लालची युग में अपने अलगाव में सुरक्षित नहीं रह सकता अर्थात आज का युग लालच का युग है, इसमें कोई भी प्रदेश दूसरों से कटकर भी सुरक्षित नहीं है। कभी-कभी किसी प्रदेश की अच्छी संपदा ही उसके लिए अभिशाप का कारण बन जाती है। दिल्ली के सत्ताधारियों तथा उद्योगपतियों की आँखों से सिंगरौली की अपार खनिज संपदा भी छिपी नहीं रही। उनके लालच ने इस प्रदेश की अपार संपदा को भी ढूँढ़ निकाला। विस्थापन की एक लहर रिहंद बाँध बनने से आई थी जिसके कारण हजारों गाँव उजाड़ दिए गए थे अर्थात रिहंद बाँध की परियोजना हज्ञारों गॉंवों के विस्थापन का कारण बना था।

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विशेष :

  1. रिहंद बॉध से विस्थापन की समस्या का मार्मिक अंकन है।
  2. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
  3. भाषा-शैली सरल, सहज, खड़ी बोली है।

5. स्वातंत्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यह नहीं है कि शासक-वर्ग ने औद्योगीकरण का मार्ग चुना, ट्रेजेडी यह रही है कि पशिचम की देखादेखी और नकल में योजनाएँ बनाते समय-प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाजुक संतुलन किस तरह नष्ट होने से बचाया जा सकता है-इस ओर हमारे पश्चि-शिक्षित सत्ताधारियों का ध्यान कभी नहीं गया। हम बिना पश्चिम को मॉडल बनाए, अपनी शतों और मयादाओं के आधार पर, औद्योगिक विकास का भारतीय स्वर्वप निधारित कर सकते हैं, कभी इसका खयाल भी हमारे शासकों को आया हो, ऐसा नही जान पड़ता।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग- 2 ‘ में संकलित लेखक निर्मल वर्मा द्वारा रचित ‘जहाँ कोई वापसी नही’ नामक पाठ से ली गई हैं। इनमें लेखक ने स्वातंत्र्योत्तर भारत वर्षा की सबसे बड़ी ट्रेजेडी का वर्णन किया है।

व्याख्या : लेखक का मत है कि स्वरंत्रता के बाद भारत की सबसे बड़ी दुखद बात यह नही है कि शासक-वर्ग ने औद्योगीकरण का रास्ता चुना, बलिक ट्रेजेडी यह रही है कि पश्चिम की देखादेखी और नकल में योजनाएँ बनाते समय उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाजुक संतुलन किस तरह नष्ट होने से बचाया जा सकता है।

लेखक का अभिप्राय यह है कि औद्योगीकरण भारत की विडंबना नहीं है, बल्कि विडंबना तो यह है कि हमने पश्चिम की नकल करके वो योजनाएँ बनाई तो उनमें प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति में परस्पर संबंध को नहीं देखा। इस ओर हमारे पश्चिम के पढ़े-लिखे सत्तासीन लोगों का ध्यान भी कभी नहीं गया। लेखक कहता है कि हम पश्चिम को मॉडल बनाए बिना अपनी शत्तौ और मयादाओं के आधार पर औद्योगीकरण के विकास का भारतीय स्वरूप निर्धारित कर सकते हैं। शायद हमारे देश के शासकों को इसका भी ख्याल नहीं आया अर्थात शासकों ने इस विषय के बारे में कभी नहीं सोचा।

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विशेष :

  1. लेखक ने पश्चिम के अंधानुकरण के कारण शासकों पर व्यंग्य किया है।
  2. तत्सम, तद्भव तथा अंग्रेज्री शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
  3. भाषा-शैली सरल, सरस एवं खड़ी बोली है।

6. भारत की सांस्कृतिक विरासत यूरोप की तरह म्यूज्ञियम और संग्रहालयों में जमा नहीं थी-वह उन रिश्तों से जीवित थी, जो आदमी को उसकी धरती, उसके जंगलों, नदियों-एक शब्द में कहें-उसके समूचे परिवेश के साथ जोड़ते थे। अतीत का समूचा मिथक-संसार पोधियों में नहीं, इन रिश्तों की अदृश्य लिपि में मौजूद रहता था। यूरोप में पर्यांवरण का प्रश्न मनुष्य और भूगोल के बीच संतुलन बनाए रखने का है-भारत में यही प्रश्न मनुष्य और संस्कृति के बीच पारंपरिक संबंध बनाए रखने का हो जाता है। स्वातंत्रोत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यह नहीं है कि शासक-वर्ग ने औद्योगीकरण का मार्ग चुना। ट्रेजेडी यह रही है कि पश्चिम की देखा-देखी और

नकल में योजनाएँ बनाते समय-प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाज्डुक संतुलन किस तरह नष्ट होने से बचाया जा सकता है-इस ओर हमारे पश्चिम शिक्षित सत्ताधारियों का ध्यान नहीं गया।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित लेखक निर्मल वर्मा द्वारा रचित ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ नामक पाठ से ली गई हैं। इनमें लेखक ने स्वातंत्योत्तर भारतवर्ष की सबसे बड़ी ट्रेजेडी का वर्णन किया है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में लेखक भारतीय संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखता है कि भारतीय संस्कृति मात्र संग्रहालयों में बंद नहीं है, अपितु वह तो उन मानवीय संबंधों में जीवित है जो मनुष्य को उसकी धरती, जंगलों, नदियों यहाँ तक कि संपूर्ण वातावरण से जोड़ते हैं। भारतीय संस्कृति पुस्तकों में बंद न होकर इन्हीं रिश्तों में विद्यमान है। यूरोपीय देशों में पर्यावरण का प्रश्न मानव और भूगोल में संबंध बनाए रखने का होता है, जबकि भारत में यह मानव और मानवीय संस्कृति के मध्य पारस्परिक संबंध बनाए रखने का है।

इसलिए लेखक का मत है कि स्वतंत्रता के बाद भारत की सबसे बड़ी दुखद बात यह नहीं है कि शासक-वर्ग ने औद्योगीकरण का रास्ता चुना, बल्कि ट्रेजेडी यह रही है कि पश्चिम की देखादेखी और नकल में योजनाएँ बनाते समय प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाजुक संतुलन किस तरह नष्ट होने से बचाया जा सकता है-इस ओर उनका ध्यान नहीं गया।

लेखक का अभिग्राय यह है कि औद्योगीकरण भारत की विडंबना नहीं है बल्कि विडंबना तो यह है कि हमने पश्चिम की नकल करके वो योजनाएँ बनाई तो उनमें प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति में परस्पर संबंध को नहीं देखा। इस ओर हमारे पश्चिम के पढ़े-लिखे सत्तासीन लोगों का ध्यान भी कभी नहीं गया। लेखक कहता है कि हम पश्चिम को मॉडल बनाए बिना अपनी शतों और मर्यादाओं के आधार पर औद्योगीकरण विकास का भारतीय स्वरूप निर्धारित कर सकते हैं। शायद हमारे देश के शासकों को इसका भी ख्याल नहीं आया अर्थात शासकों ने इस विषय के बारे में कभी नहीं सोचा।

Class 12 Hindi Antra Chapter 18 Summary - Jahan Koi Wapsi Nahi Summary Vyakhya

विशेष :

  1. लेखक ने पश्चिम के अंधानुकरण के कारण शासकों पर व्यंग्य किया है।
  2. तत्सम, तद्भव तथा अंग्रेज़ी शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
  3. भाषा-शैली सरल, सरस एवं खड़ी बोली है।

7. ज़रा-सी आहट पाते ही वे एक साथ सिर उठाकर चाँकी हुई निगाहों से हमें देखती हैं-बिलकुल उन युवा हिरणियों की तरह, जिन्हें मैंने एक बार कान्हा के वन्य स्थल में देखा था। किंतु वे डरती नहीं, भागती नहीं, सिर्फ विस्मय से मुसकुराती हैं और फिर सिर झुका कर अपने काम में डूब जाती हैं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ निर्मल वर्मा द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखक ने विकास के नाम पर पर्यावरण-विनाश से उत्पन्न विस्थापन की समस्या पर विचार किया है।
व्याख्या इन पंक्तियों में लेखक बताता है कि अमझ्झर गाँव के पानी में डूबे खेतों में स्त्रियाँ धान के पौधे रोप रही हैं। वे जरा-सी आहट होते ही सिर उठाकर चौँकी हुई निगाहों से इन्हें देखती हैं जैसे कोई युवा हिरणियाँ देख रही हों और फिर से अपने काम में लग जाती हैं। उसने हिरणियों को कान्हा के वन में देखा था, जो डरकर भाग जाती थी, मगर ये न तो डरती थीं और न ही भागती हैं, केवल विस्मय से देखकर अपने काम में लग जाती हैं।

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विशेष :

  1. लेखक स्पष्ट करता है कि खेतों में पानी भर जाने पर भी औरतें किस प्रकार धान की रोपाई करती हैं।
  2. भाषा सरल तथा सहज है और शैली वर्णनात्मक है।

8. जहाँ बाहर का आदमी फटकता न था, वहाँ केंद्रीय और राग्य सरकारों के अफ़सरों, इंजीनियरों और विशेषज्ञों की कतार लग गई। जिस तरह उमीन पर पड़े शिकार को देखकर आकाश में गिद्धों और चीलों का झुंड मैंडराने लगता है, वैसे ही सिंगरौली की घाटी और जंगलों में ठेकेदारों, वन अधिकारियों और सरकारी कारिदों का आक्रमण शुरू हुआ।

प्रसंग : इस गद्यांश ‘अंतरा भाग-दो’ में संकलित निर्मल वरा द्वारा रचित ‘जहाँ कोई वापसी नही’ नामक निबंध से लिया गया है, जिसमें लेखक ने सिंगरौली क्षेत्र की अपार खनिज संपदा के प्रति लोगों के आकर्षण पर कटाक्ष किया है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में लेखक लिखता है कि जिस सिंगरौली की घाटी को कालापानी माना जाता था, आज वहाँ की संपदा को देखकर लोग इधर आने लगे हैं। यहाँ कभी बाहर के लोग आते ही नहीं थे परंतु अब यहा केंद्रीय और राज्य सरकारों के अधिकारियों, इंजीनियरों और विशेषजों की भीड़ जुटने लगी है। लेखक के अनुसार जैसे ज्ञमीन पर मरे हुए शिकार को देखकर आकाश में चील और गिद्धों के अुंड मँडराने लगते हैं, वैसे ही सिंगरौली की घाटी की समृद्धि, जंगलों आदि पर ठेकेदारों, वन अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों का मँडराना प्रारंभ हो गया है।

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विशेष : सिंगरौली घाटी की समृद्ध वन एवं खनिज संपदा ने उसका दोहन करने के लिए लोगों को आकर्षित किया है। भाषा सहज, सरल तथा शैली व्यंग्यात्मक है।