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शेर, पहचान, चार हाथ, साझा Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 17 Summary
शेर, पहचान, चार हाथ, साझा – भीष्म साहनी – कवि परिचय
जीवन-परिचय – असगर वजाहत हिंदी-साहित्य के प्रमुख कथाकार माने जाते हैं। इनका जन्म सन 1946 ई० को उत्तर प्रदेश के फ्लेहपुर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा फलेहपुर में हुई तथा विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की। सन 1955-56 ई० में उन्होंने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया। प्रारंभ में उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य किया। बाद में वे दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे।
प्रमुख रचनाएँ – असगर वजाहत बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा लघुकथाएँ आदि विधाओं पर लेखनी चलाई है। इन्होंने फ़िल्मों और धारावाहिकों के लिए पटकथा लेखन का काम भी किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
उपन्यास – रात में जागने वाले, पहर दोपहर तथा सात आसमान, कैसी आगि लगाई।
कहानी-संग्रह – दिस्ली पहुँचना है, स्विमिंग पूल, सब कहाँ कुछ, आधी बानी, मैं हिंदू हूं।
नाटक – फिरंगी लौट आए, इन्ना की आवाज्ज, वीरगति, जिस लाहौर नई देख्या, अकी।
नुक्कड़ नाटक – सबसे सस्ता गोश्त।
साहित्यिक विशेषताएँ – असगर वजाहत प्रमुख लघु कथाकार हैं। इन्होंने अपने साहित्य के द्वारा वर्तमान युग की ज्वलंत समस्याओं का उद्घाटन किया है। इनकी कहानियों में प्रगतिवादी चेतना के दर्शन होते हैं। इनकी चारों लघुकथाएँ पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों के शोषण को उजागर करती हैं। साझा में इन्होंने पूँजीपतियों के प्रति अनेक कटु व्यंग्य किए गए हैं। स्वतंत्रता के बाद निरंतर बदहाल होती हुई किसानों की दयनीय दशा का आर्थिक अंकन किया है। इनके साहित्य में समाज में फैले शोषण, अत्याचार और अन्य विसंगतियों का यथार्थ चित्रण किया है।
असगर वजाहत की भापा में गंभीरता, सबलता एवं व्यंग्यात्मकता है। उन्हहंने सहलज एवं बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया है, जिसमें तत्सम, तद्भव, उद्दू, फ़ारसी तथा अंग्रेज्जी भापाओं के शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, चित्रात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया है। मुह्हावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से उसकी भाषा में सहजता, सजीवता एवं सादगी आ गई है।
Sher Pehchan Char Hath Sajha Class 12 Hindi Summary
शेर –
शेर ‘असगर वजाहत’ द्वारा लिखित एक प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक लघुकथा है। यहाँ शेर व्यवस्था का प्रतीक है जिसके पेट में जंगल के जानवर किसी-न-किसी लालच के कारण समाते चले जा रहे हैं। लेखक कसाई की नज़र से बचने के लिए शहर या आदमियों से जंगल चला गया था। वहाँ उन्होंने एक वृक्ष के नीचे एक शेर को बैठे देखा, जिसका मुँह खुला हुआ था। वह शेर डरकर झाड़ी के पीछे हुप गया। उन्होंने वहाँ जंगल के जानवरों को एक पंक्तिबद्ध होकर शेर के मुँह में घुसते हुए देखा।
शेर उनको मस्ती में गटकता जा रहा था। लेखक ने अनेक जानवरों से शेर के मुँह में जाने का कारण पूछ्छा तो गधे ने बताया कि वहाँ एक पास में मैदान है जहाँ वह आराम से रहेगा। लोमड़ी ने कहा कि वह शेर के मुँह में स्थित रोज़गार दफ़तर में दरखास्त देगी जिससे उसे नौकरी मिलेगी। उल्लू ने बताया कि शेर के मुँह में स्वर्ग है जो निर्वाण का एकमात्र रास्ता है। कुत्तों का समूह भी लेखक की बात बिना सुने ही शेर के मुँह में प्रवेश कर गया। लेखक को आभास हुआ कि शेर अहिंसा और सह-अस्तित्ववाद का बड़ा समर्थक है इसीलिए वह जंगली जानवरों का शिकार नहीं करता।
शेर साहब के स्टॉफ़ से पूछने पर पता लगा कि उसके पेट में वे सारी चीज़ें हैं जिनके लिए जानवर वहाँ जाते हैं। प्रमाण माँगने पर उन्होंने प्रमाण से अधिक विश्वास को महत्वपूर्ण बताया। लेकिन लेखक को रोज़गार के दफ़्तर तथा शेर के मुँह के दफ़्तर का अंतर पता था, इसलिए वह वहाँ नहीं गया। पहचान ‘पहचान’ असगर वजाहत की लघुकथा है, जिसमें उन्होंने बताया है कि राजा को बहरी, गूँगी और अंधी प्रजा अच्छी लगती है जो बिना कुछ बोले, सुने तथा देखे उसकी आज्ञा पालन करती रहे। राजा के हुक्म से जनता अपनी आँखें, कान और होंठ बंद किए कार्य करती थी। बहुत दिनों के बाद खैराती, रामू और छिद्दू ने आँखें खोलकर देखा तो उन्हें सामने राजा ही दिखाई दिया। उन्होंने एक-दूसरे की ओर भी न देखा।
चार हाथ –
‘चार हाथ’ में लेखक ने पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों के शोषण को उजागर किया है। एक मिल-मालिक के मन में अजीब यह ख्याल आया करता था कि एक दिन सारा संसार मिल हो जाएगा; सब लोग मज्रदूर तथा वह उनका मालिक। मिल में अन्य वस्तुओं की तरह आदमी भी बनने लगे, जिससे मज़दूरी न देनी पड़े। एक दिन उसे यह ख्याल आया कि मज़दूरों के चार हाथ होने पर तेज़ी से काम होगा। यह सोच उसने अनेक वैज्ञानिकों को नौकरी पर रख लिया। लेकिन अनेक वर्षों के शोध के बाद भी यह संभव नहीं हो पाया। लाला ने फिर स्वयं मज़दूरों को लकड़ी के हाथ लगवाने चाहे, लेकिन वह भी संभव नहीं हुआ। लोहे के हाथ लगाने पर मज़दूर मर गए। अंत में उसने मज़दूरी आधी कर दुगने मज़दूर रख लिए।
साझा –
‘साझा’ लघुकथा के माध्यम से लेखक ने उन पूँजीपतियों पर व्यंग्य किया है जिनकी नज़र किसानों की ज़मीन तथा जायदाद पर लगी है। इस कहानी में लेखक ने आज़ादी के पश्चात किसानों की दयनीय स्थिति का कारुणिक चित्रण किया है। किसान को खेती का अच्छा ज्ञान था लेकिन वह अकेली खेती करने का साहस नहीं कर पाता था। उसने हाथी के साथ मिलकर साझे की खेती कर ली।
हाथी ने उससे कहा कि इस खेती से लाभ भी होगा तथा रखवाली भी अच्छी होगी। उन्होंने मिलकर गन्ना बोया। हाथ ने जंगल में खेती को नुकसान न पहुँचाने का ऐलान कर दिया। फ़सल होने पर किसान ने हाथी को आधी फसल बाँटने को कहा। हाथी और किसान फ़सल का बँटवारा न करके मिलकर गन्ने खाने लगे। गन्ने के साथ किसान के खिंचने पर हाथी ने गन्ना छोड़कर कहा कि हमने एक गन्ना खा लिया है। इस तरह असमान रूप से दोनों साझे की खेती बँट गई।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- ज़रूर – अवश्य
- दफ़्तर – आफ़िस, कार्यालय
- हुक्म – आदेश
- समर्थन – साथ देना, पक्ष लेना
- मिथ्या – झूठ, असत्य
- राज – राज्य में
शेर, पहचान, चार हाथ, साझा सप्रसंग व्याख्या
1. कुछ दिनों के बाद मैंने सुना कि शेर अहिंसा और सह-अस्तित्ववाद का बड़ा ज़बरदस्त समर्थक है इसलिए जंगली जानवरों का शिकार नहीं करता। मैं सोचने लगा, शायद शेर के पेट में वे सारी चीज़ें हैं जिनके लिए लोग वहाँ जाते हैं और मैं भी एक दिन शेर के पास गया। शेर आँखें बंद किए पड़ा था और उसका स्टाफ़ ऑफ़िस का काम निपटा रहा था। मैंने वहाँ पूछा, “क्या यह सच है कि शेर साहब के पेट के अंदर, रोज़तार का दफ़्तर है ?”
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित लेखक असगर वजाहत द्वारा लिखित ‘शेर’ नामक लघुकथा से अवतरित है। इसमें लेखक ने व्यवस्था के प्रतीक शेर की कार्यप्रणाली पर व्यंग्य किया है।
व्याख्या : लेखक ने सुना कि शेर अहिंसा और सह-अस्तित्ववाद का बहुत अच्छा समर्थक है, इसलिए वह जंगली जानवरों का शिकार नहीं करता। लेखक कहता है कि यह सुनकर मैं सोचने लगा कि शायद शेर के पेट में वे सारी वस्तुएँ हैं जिनके लिए लोग वहाँ जाते हैं और में भी एक दिन शेर के पास गया। उस समय शेर अपनी आँखें बंद किए पड़ा था। लेखक का अभिप्राय है कि आज देश की व्यवस्था अहिंसा और सह-अस्तित्ववाद में विश्वास करने का ढोंग करती है और समाज के लोग भी इसी व्यवस्था के वशीभूत होकर उसकी ओर खींचे चले जाते हैं। लेखक कहता है कि जब मैं व्यवस्था को देखने गया तो वहाँ उसका स्टाफ उसके कार्यालय का कार्य पूरा कर रहा था। मैंने उनको पूछा कि क्या यह सत्य है कि शेर साहब के पेट के अंदर रोज़गार का कार्यालय है।
विशेष :
- लेखक ने वर्तमान समाज की भ्रष्ट व्यवस्था का कटु व्यंग्य किया है।
- प्रतीकात्मक भाषा शैली का प्रयोग हुआ है।
- तत्सम, तद्भव, उर्दु, फ़ारसी तथा अंग्रेज्जी भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है।
2. राजा ने हुक्म दिया कि उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे। लोगों ने ऐसा ही किया क्योंकि राजा की आज्ञा मानना जनता के लिए अनिवार्य है। जनता आँखें बंद किए-किए सारा काम करती थी और आश्चर्य की बात यह कि काम पहले की तुलना में बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। फिर हुक्म निकला कि लोग अपने-अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें क्योंकि सुनना जीवित रहने के लिए बिल्कुल ज्तरूरी नही है। लोगों ने ऐसा ही किया और उत्पादन आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ गया।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश अंतरा भाग-2 में संकलित ‘पहचान’ नामक लघुकथा से अवतरित है, जिसके रचयिता असगर वजाहत हैं। इसमें लेखक ने राजसी व्यवस्था की तानाशाही का चित्रांकन किया है।
व्याख्या : लेखक कहता है कि राजा ने आदेश जारी करते हुए प्रजा को कहा कि उसके राज में सब लोग आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे। राजा के इस आदेश को सुन लोगों ने ऐसा ही किया, क्योंकि राजा की आजा मानना जनता के लिए अनिवार्य है। जनता आँखें बंद किए सारा काम करती थी और आश्चर्य की बात यह रही कि काम पहले की अपेक्षा बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। राजा ने फिर आदेश दिया कि लोग अपने-अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें क्योंकि सुनना जीवित रहने के लिए बिलकुल आवशयक नहीं है। अर्थात राजा के आदेश के अनुसार अपने कान बंद रखें। लोगों ने ऐसा ही किया और उत्पादन आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ गया।
विशेष :
- तानाशाही राजा तथा गुलाम प्रजा का चित्रण हुआ है।
- भाषा सहज और सरल है।
- तद्भव तथा उर्दू, फ़ारसी भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है।
3. एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब ख्याल आया करते थे जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा, सारे लोग मज्रदूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीज्ञों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे, तब मज्ञदूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, वगैरा-खगैरा। एक दिन उसके दिमाग में ख्याल आया कि अगर मज्वदूरों के चार हाथ हो तो काम कितनी तेज्जी से हो और मुनाफ़ा कितना ज्यादा। लेकिन यह काम करेगा कौन ? उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये हैं किस मर्ज़ की दवा?
प्रसंग : यह गद्य अंतरा भाग-2 में ‘चार हाथ’ नामक लघु कथा से लिया गया है। यह ‘असगर वजाहत’ लेखक के द्वारा रचित है। इस गद्य में लेखक ने एक मिल मालिक के अजीब विचारों का वर्णन किया है।
व्याख्या : लेखक का कथन है कि एक मिल मालिक के दिमाग में बहुत अनोखे विचार आया करते थे, जैसे सारा संसार एक मिल बन जाएगा। संसार के सब लोग मज़दूर बन जाएँगे और वह उनका मालिक होगा या फिर उसके मिल में अन्य वस्तुओं के उत्पादन की तरह आदमी भी बनने लगेंगे, तब मज़दूरी भी नहीं देनी पड़ेगी। लेखक कहता है कि एक दिन उस मिल मालिक के दिमाग में एक विचार आया कि अगर मज्रदूरों के चार हाथ हों तो कार्य कितनी शीघ्रता से हो सकता है और लाभ भी अधिक होगा। वह मालिक सोचता है कि यह कार्य कौन करेगा ? उसने सोचा कि इस कार्य को वैज्ञानिक करेंगे, आखिर वे किस मर्ज्त की दवा हैं अर्थात वे किस दिन काम आएँगे।
विशेष :
- मिल-मालिक के अनोखे विचार का वर्णन हुआ है।
- तत्सम तथा विदेशज शब्दावली की प्रचुरता है।
- भाषा-शैली सरल तथा भावपूर्ण है।
4. हालांकि उसे खेती की हर बारीकी के बारे में मालूम था, लेकिन फिर भी छरा दिए जाने के कारण वह अकेला खेती करने का साहस न जुटा पाता था। इससे पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती कर चुका था। अध उससे हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे। किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुप्तारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता, इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पद्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानबर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी।
प्रसंग : यह अवतरण भाग-2 नामक पुस्तक में संकलित ‘साझा लघुकथा’ से अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने किसानों के उत्पादों को हड़पने बाले पूँजीपतियों पर व्यंग्य किया है।
व्याख्या : लेखक कहता है कि वास्तव में किसान को खेती करने के सभी नियमों के बारे में पता था। उसे अच्छी प्रकार से खेती करनी आती थी, लेकिन फिर भी डरा दिए जाने के कारण वह अकेला खेती करने का साहस नहीं जुटा पाता था। इससे पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती भी कर चुका था। अब उस किसान को हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ इकट्ठी साझे की खेती करे।
किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुज्तारा नहीं होता और अकेले वह खेती नहीं कर सकता। इसलिए अब वह खेती ही नहीं करेगा। लेखक कहता है कि हाथी ने उसे बहुत देर तक अपनी बातों में लगाए रखा और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को हानि नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की रखवाली अच्छी हो जाएगी।
विशेष :
- पूँजीपतियों के द्वारा किसानों को लालच देकर उनके शोषण करने का वर्णन है।
- भाषा-शैली बोधगम्य है।