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गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात – भीष्म साहनी – कवि परिचय

जीवन-सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० भीष्म साहनी का जन्म सन 1915 ई० में रावलपिंडी में हुआ था। इन्होंने एम॰ ए० (अंग्रेज्जी) तथा पी० एच० डी० की उपाधियाँ प्राप्त कीं। इन्होंने दिल्ली के ज्ञाकिर हुसैन कोलेज में अंग्रेज़ी प्राध्यापक के रूप में अध्यापन का कार्य किया तथा कुछ वर्षों तक विदेशी भाषा प्रकाशन गृह, मास्को में भी कार्य किया। सेवा-निवृत्त होने के बाद से वे स्वतंत्र लेखन कार्य करते रहे। इन्होंने कहानी, उपन्यास और नाटक लिखे हैं। इन्हें तमस उपन्यास पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। साहित्य अकादमी ने सन 2002 में इन्हें फेलोशिप प्रदान की थी।

इनकी रचनाओं में जीवन की विभिन्न विसंगतियों को यधार्थ के धरातल पर उजागर किया गया है। पात्रों की मानसिक स्थितियों को ये मनोविज्ञान के धरातल पर उजागर करते हैं। सन 2003 ई० में इनका निधन हो गया।
रचनाएँ – इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
कहानी संग्रह – भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरियाँ, वाइच्च, झरोखे।
उपन्यास – कड़ियाँ, बसंती और तमस।
नाटक – मुआवजे, कबीरा खड़ा बाजार में।
भाषा-शैली – भीष्म साहनी की कहानियों में जीवन के विविध अंगों के दर्शन होते हैं। मुख्य रूप से उनकी कहानियाँ मध्यवर्गीय जीवन तथा परिवेश को चित्रित करती हैं। उनकी ऐसी कहानियों में मध्यवर्गीय परिवारों के चित्र मिलते हैं। उनकी अनेक कहानियों में वर्तमान जीवन की विसंगतियों को उभारा गया है। आधुनिक जीवन की विसंगतियों को उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से सशक्त ढंग से उभारा है। उनकी कहानियों में व्यक्ति एवं समाज के साथ के संबंधों को भी अभिव्यक्ति मिली है। पात्रों की मनोवैज्ञानिकता एवं यथार्थ की पैनी पकड़ उनकी कहानियों की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं।

भीष्म साहनी की रचनाओं में जीवन की विविधता के दर्शन होते हैं। इस कारण उनकी कहानियों में मानवीय संवेदना से जुड़ी हुई भाषा का प्रयोग होता है। गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात पाठ में भी लेखक ने दिन-प्रतिदिन प्रयोग की जाने वाली भाषा को ही सजा-सँवार कर प्रस्त्तुत किया है। भाषा की प्रवाहमयता प्रदान करने के लिए लेखक ने बोल-चाल के उर्दू एवं अंग्रेज़ी शब्दों का पर्याप्त प्रयोग किया है।

भाषा-प्रयोग में लेखक ने पात्रों की मानसिक एवं सामाजिक स्थिति का भी विशेष ध्यान रखा है। साहनी जी छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करके विषय को प्रभावी एवं रोचक बना देते हैं। जैसे-मैं देर रात सेवाग्राम पहूँचा। एक तो सड़क कच्ची थी, इस पर घुप्प अँधेरा था। बलराज अभी भी बेसुध सो रहे थे। में उतावला हो रहा था आदि छोटे-छोटे वाक्य उनकी वाक्य-रचना को प्रभावशाली बनाते हैं।

भीष्म साहनी संवादात्मक शैली का प्रयोग करके वर्णन में ताज्जगी ला देते हैं। जैसे- “मेरा भाई है, कल ही रात पहूँचा है।”
“अच्छा। इसे भी घेर लिया,” गांधी जी ने हँसकर कहा।
“नहीं बापू, यह केवल कुछ दिन के लिए मेरे पास आया है।”
पाठ में कई स्थानों पर भीष्म साहनी ने शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन शब्द-चित्रों से यह संस्मरण अत्यंत रोचक, सरस एवं सजीव बन पड़ा है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary - Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Summary Vyakhya

Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Class 12 Hindi Summary

‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात’ ‘भीष्म साहनी’ द्वारा लिखित एक संस्मरण है। यह संस्मरण उनकी आत्मकथा ‘आज के अतीत’ का एक अंश है। इस संस्मरण के माध्यम से लेखक ने गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात के साथ व्यतीत किए चंद क्षणों को प्रस्तुत किया है। इस पाठ में लेखक के व्यक्तित्व के साथ-साथ राष्ट्रीयता, देश-प्रेम और अंतर्राष्ट्रीय मैत्री जैसे मुद्दों का भी वर्णन किया गया है।

सन 1938 में लेखक अपने भाई बलराज के पास सेवाग्राम गया। बलराज उस समय ‘नयी तालीम’ पत्रिका के सह-संपादक धे। लेखक वहाँ कुछ दिन रुककर गांधी जी से मिलना चाहता था। गांधी नियम और समय के बहुत पाबंद थे। वे प्रतिदिन सुबह सात बजे सैर करने के लिए जाते थे। लेखक उस समय गांधीजी से मिलना चाह रहा था, परंतु अकेले मिलने जाने में संकोच हो रहा था। इसलिए जब सुबह गांधी उनके घर के आगे से निकले, उन्होंने अपने भाई को जगाया। उस समय तक गांधीजी काफ़ी आगे निकल चुके थे।

दोनों भाई ज़ल्दी-जल्दी चलकर गांधी जी तक पहुँचे। लेखक ने गांधी का व्यक्तित्व वैसा ही अनुभव किया, जैसा उसने पत्रिकाओं में देखा था। उसने गांधी जी से बातचीत शुरू करने के लिए गांधी जी को याद दिलाया कि बे एक बार रावलपिंडी आए थे। गांधी जी रावलपिंडी का नाम सुनकर वहाँ की यादों में खो गए। उन्होंने सबको रावलपिंडी की कई बातें सुनाई। लेखक जब तक सेवाग्राम में रहा, वह प्रतिदिन सुबह-शाम प्रार्थना में जाता था। कस्तूरबा गांधी में लेखक को अपनी माँ दिखाई देती थी।

गांधीजी के आश्रम में एक जपानी भिक्षु अपना बाजा बजाते हुए आश्रम की परिक्रमा करता था। वह अपनी परिक्रमा प्रार्थना के वक्त समाप्त करता था। लेखक को सेवाग्राम में रहते हुए अनेक देशभक्त देखने को मिले। पृथ्वीसिंह आज्काद, मीरा बेन, खान अब्दुल गफ़क्फार खान तथा राजेंद्र बाबू लोगों से लेखक सेवाग्राम में रहते हुए मिला। एक दिन लेखक को आश्रम के पीछे बने एक खोखे में से एक लड़के के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। वह दर्द से कराहते हुए गांधी जी को बुलाने के लिए लोगों से आय्रह कर रहा था।

बापू जी उस समय एक मीटिंग में बैठे थे, इसीलिए आश्रम के सेवक गांधी जी को बुलाने में असमर्थ थे। उसी समय लेखक ने देखा कि गांधी भरी दोपहरी में चले आ रहे हैं। बापू जी ने आते ही लड़के के पेट पर हाथ फेरा। उन्होंने लड़के से कहा कि वह मुँह में हाथ डालकर उल्टी कर दे जिससे पेट हल्का हो जाएगा। लड़के ने वैसा ही किया और उसका पेट हल्का हो गया। गांधी जी ने पास खड़े सेवक से कुछ कहा और हँसते हुए वहाँ से चले गए। गांधी जी प्रतिदिन घूमते हुए एक कुटिया में जाते थे जिसमें तपेदिक का रोगी रहता था। गांधी जी वहाँ उसके इलाज और स्वास्थ्य के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त करते थे।

नेहरू जी जब कश्मीर गए, उस समय उनका बड़ा भव्य स्वागत हुआ था। शेख अब्दुल्ला के नेतुत्व में पूरे कश्मीर को सजाया गया था। वह दृश्य बहुत अद्धुत था। नेहरू जी को लेखक के फुफेरे भाई के बँगले में ठहराया गया था। लेखक के भाई ने उन्हें भी अपने साथ नेहरू जी की देखरेख के लिए रोक लिया था। नेहरू जी दिनभर बहुत व्यस्त रहते थे। शाम के समय जब वे खाने के लिए बैठते तो उस समय लेखक भी उनके पास बैठ जाता था, जिससे उसे नेहरू जी को पास से देखने को अवसर मिले। खाने की मेज पर उनके साथ बड़े-बड़े लोग होते थे।

शेख अब्दुल्ला, खान अब्दुल गफ़्फार खान, श्रीमती रामेश्वरी नेहरू, उनके पति आदि लोग होते थे। एक दिन रामेश्वरी नेहरू और जवाहरलाल नेहरू में धर्म को लेकर बहस हो गई। नेहरू जी ने वहाँ उपस्थित लोगों को फ्रांस के विख्यात लेखक अनातोले फ्रांस द्वारा लिखित एक किस्सा सुनाया। एक गरीब बाज़ीगर की जवानी तरह-तरह के करतब दिखाने में निकल गई। अब वह वृद्ध हो गया था। क्रिसमस के दिन पेरिस के गिरजाघर में स्थानीय निवासी बहुत सज-धजकर गए थे। वे माता मरियम के लिए तरह-तरह के उपहार तथा फूलों के गुच्छे लेकर गए थे।

गरीब बाजीगर अपनी मजबूरी के कारण गिरजे से बाहर खड़ा रहा था। जब सब लोग गिरजे से चले गए, उस समय बाजीगर ने अपने बाजीगरी के करतब माता मरियम को उपहार के रूप में दिखाने का फैसला किया। बाज़ीगर गिरजाषर के अंदर गया। अपनी कला के करतब माता मरियम की मूति के सामने दिखाने लगा। गिरजाषर के बड़े पादरी को अनुभव हुआ कि कोई आदमी गिरजाघर के अंदर है। उस समय बाजीीगर सिर के बल खड़ा था। पादरी ने उसे इस स्थिति में देखा तो उन्हें लगा कि बाज़ीगर माता मरियम का अपमान कर रहा है। वे गुस्से से बाज़ीगर की ओर बढ़े।

इससे पहले कि वह कुछ कर सकते, माता मरियम की मूत्ति अपनी जगह से हिली और धीरे-धीरे बाज़ीगर के पास पहुँच गई। माता मरियम ने बाजीगर का सिर सहलाया और उसके माधे का पसीना पोंछने लगी। नेहरू जी की यह कहानी सबने बड़े ध्यान से सुनी। नेहरू जी का कमरा ऊपर था। उनके बराबर वाला कमरा लेखक तथा उसके फुफेरे भाई का था। नेहरू जी सुबह उठकर चरखा काता करते थे। सुबह लेखक ने नेहरू जी को चरखा कातते देखा तो वह चुपचाप नीचे आ गया। नीचे आकर वह अखबार पढ़ने लगा।

कुछ देर बाद नेहरू जी नीचे आए। लेखक ने उन्हें अनदेखा कर दिया। इसके पीछे लेखक की सोच थी कि नेहरू जी उससे अखबार माँगेंगे। इस तरह उसको नेहरू जी से वार्तालाप करने का अवसर मिलेगा। वह उनसे अनजान बना अखबार पढ़ने का नाटक करता रहा। थोड़ी देर बाद नेहरू जी ने लेखक से कहा कि यदि उसने अखबार पढ़ लिया हो तो वह उनको भी अखबार पढ़ने के लिए दे दें। यह सुनकर लेखक बहुत शर्मिंदा हुआ।

लेखक अफ्रो-एशियाई लेखक संघ में कार्यकारी महामंत्री पद पर थे। ट्यूनीसिया की राजधानी ट्यूनिस में अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का सम्मेलन था। वह कार्यकारी महामंत्री होने के कारण कुछ दिन पहले ही वहाँ पहुँच गया। ट्यूनिस में लेखक संघ की पत्रिका ‘लोटस’ का संपादकीय कार्यालय था। पत्रिका के प्रधान संपादक ‘फैज़’ अहमद फैज़ का देहांत हो गया था। यास्सेर अराफ़ात के नेतृत्व में फ़िलिस्तीनी अस्थायी सरकार का काम ट्यूनिस से चल रहा था। लेखक संघ की गतिविधि में फिलिस्तीनी लेखकों, बुद्धिजीवियों तथा अस्थायी सरकार का बड़ा योगदान था।

एक दिन ‘लोटस’ पत्रिका के तत्कालीन संपादक ने लेखक को बारह बजे सदरमुकाम चलने का निमंत्रण दिया। वहाँ लेखक तथा उनकी पत्नी का स्वागत यास्सेर अराफ़्रत ने अपने साथियों के साथ किया। वहाँ उन लोगों को भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था। सदरमुकाम के उच्चस्तरीय अधिकारी और फ़िलिस्तीनी लेखक भी वहाँ उपस्थित थे। सब लोग लेखक से गर्मजोशी से मिले। बड़े से हॉल कमरे में खाने की लंबी मेज्र लगी थी जिस पर एक बड़ा-सा भुना हुआ बकरा रखा था। लेखक और उसकी पत्नी और यास्सेर अराफ़ात उस ओर चले गए जहाँ पर चाय का प्रबंध किया गया था।

उन लोगों में बातचीत का सिलसिला फ़िलिस्तीन की राजनीतिक उठा-पटक को लेकर तथा भारत का फिलिस्तीनी सरकार के प्रति सहयोगात्मक व्यवहार को लेकर होने लगा। यास्सेर अराफात गांधी जी और अन्य नेताओं को भारत के ही नहीं, अपने देश के लिए भी आदरणीय नेता मानते थे। यास्सेर अराफ़ात वार्तालाप के मध्य लेखक और उनकी पत्नी के लिए स्वयं फल छील-छीलकर खिला रहे थे। उन्होंने उन लोगों को शहद की चाय बनाकर पिलाई। भोजन के समय सब लोग अपनी जगह से उठे। लेखक की गुसलखाना जाने की इच्छा हुई। उन्होंने अपने अनुमान से गुसलखाना ढूँढ़ लिया। जब वे गुसलखाने से बाहर आए, उस समय यास्सेर अराफ़ात लेखक के लिए तौलिया लिए खड़े थे।

Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary - Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Summary Vyakhya

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • गाँडा – बाजू और गले में पहना जाने वाला ताबीज़ या काला धागा
  • फ़ासला – अंतर, दूरी
  • उतावला – बेचैन
  • तड़के – सुबह
  • चीवर – वस्त्र, पहनावा, बौद्ध भिक्षुओं का ऊपरी पहनावा
  • बेसुध – जिसे अपना कोई होश न हो
  • विचार-विनिमय – विचारों का आदान-प्रदान
  • पुलक – प्रसन्न
  • अभ्यर्थना – प्रार्थना, निवेदन
  • दत्तचित – जिसका मन किसी कार्य में अच्छी तरह लगा हो, एकाग्र
  • निरुद्देश्य – बिना उद्देश्य
  • सदरमुकाम – राजधानी
  • आँखों में चमक आना – प्रसन्न होना
  • कै – उल्टी करना
  • क्षोभ – क्रोध
  • आँखें गाड़ना – एक जगह नज़र टिकाना
  • पुलक उठना – प्रसन्न हो जाना
  • मौका – अवसर
  • विख्यात – प्रसिद्ध
  • चल बसना – दिवंगत होना
  • आतिध्य – मेहमानवाज़ी
  • हिदायत – सलाह
  • प्रदक्षिणा – परिकमा
  • घुप्प – गहरा, घोर
  • झिंझोड़कर – पकड़कर जोर से हिलाना
  • पालथी – बैठने का एक आसन जिसमें दाहिने और बाएँ पैरों के पंजे क्रम से बाईं और दाई जाँघ के नीचे दबे रहते हैं
  • क्षोभ – रोषयुक्त, असंतोष
  • रुग्ण – बीमार, अस्वस्थ
  • दिक् – तपेदिक
  • लब्ध-प्रतिष्ठा – प्रसिद्धि प्राप्त, यश अर्जित करना
  • तन्मयता – लगन के साथ
  • लरजना – काँपना, हिलना-डुलना
  • नज़रसानी – पुनर्विचार, पुनर्निरीक्षण, नज़र डालना
  • टलना – घूमना
  • हाथ पैर पटकना – बेचैन होना, तड़पना
  • पेट पालना – गुज़ारा करना
  • पानी-पानी होना – शर्मिंदा होना
  • अदम्य – बहुत अधिक
  • तिलमिला उठना – कष्ट या पीड़ा से विकल हो जाना
  • तोहफ़ा – उपहार
  • हताश – निराश

Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary - Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Summary Vyakhya

गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात सप्रसंग व्याख्या

1. ऐन सात बजे, आश्रम का फाटक लाँघकर गांधी जी अपने साथियों के साथ सड़क पर आ गए थे। उन पर नज़र पड़ते ही मैं पुलक उठा। गांधी जी हू-बहू वैसे ही लग रहे थे जैसा उन्हें चित्रों में देखा था, यहाँ तक कि कमर के नीचे से लटकती घड़ी भी परिचित-सी लगी।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश ‘भीष्म साहनी’ लिखित पाठ ‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात’ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने गांधी जी, नेहरू जी और यास्सेर अराफ़ात के साथ व्यतीत किए गए चंद क्षणों को प्रभावशाली शब्द-चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में लेखक ने गांधी जी को पहली बार देखने के अनुभव का वर्णन किया है। लेखक सेवाग्राम में अपने भाई से मिलने गया था। उसके भाई ने बताया कि गांधी प्रतिदिन सुबह सात बजे उनके घर के आगे से घूमने निकलते हैं, इसलिए लेखक सुबह जल्दी उठकर अपने घर के आगे खड़ा होकर गांधी जी का इंतज्ञार करने लगा। गांधी जी अपने आश्रम से पूरे सात बजे निकले। गांधी जी के साथ उनके साथी भी थे। वे सभी लोग आश्रम का फाटक लाँघकर सड़क पर आ गए थे।

लेखक की निगाहे उसी तरफ़ थीं जिधर से गांधी जी ने आना था। सामने से गांधी जी को आता देखकर वह प्रसन्न हो उठा। उसे गांधी जी ठीक वैसे ही लगे जैसे उसने तस्वीरों में देख रखे थे। गांधी जी के वास्तविक रूप और तसवीरों में लेखक को कोई अंतर दिखाई नहीं दिया। वह गांधी जी को पहली बार देख रहा था, फिर भी वे उसे परिचित लग रहे थे। गांधी जी की कमर पर लटकती घड़ी भी लेखक को जानी-पहचानी-सी लगी।

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विशेष :

  1. गांधी जी के व्यक्तित्व की सरलता और सादगी से लेखक को यह लगा कि वह गांधी जी से पहले से ही परिचित हो।
  2. भाषा सहज, सरल और स्पष्ट है।
  3. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है।

2. मैं साथ चलने लगा। गांधी जी के साथ चलने वाले लोगों में से मैंने दो-एक को पहचान लिया। डॉ० सुशीला नख्यर थीं और गांधी जी के निजी सचिव महादेव देसाई थे। मम कभी आसपास देखता, कभी नज्ञर नीची किए ज्ञमीन की ओर, गांधी जी की धूलभरी चप्पलों की ओर देखने लगता। मैं गांधी जी से बात करना चाहता था पर समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। फिर सहसा ही मुझे सूझ गया।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ ‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात ‘पाठ में से उद्धृत हैं। इस पाठ के लेखक ‘भीष्म साहनी’ हैं। लेखक ने इस पाठ में गाधी जी, नेहरू जी और यास्सेर अराफ़ात के साथ व्यतीत चंद क्षणों को प्रभावशाली शब्द-चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में लेखक गांधी जी से बात करना चाह रहा है। लेखक का भाई लेखक का परिचय गांधी जी से करवाता है। गांधी जी उसे मुस्कुराकर देखते हैं। लेखक गांधी जी के साथ-साथ चलने लगता है। उसने गांधी जी के साथ चलने वाले लोगों में से एक-दो को पहचान लिया था। उनमें से एक डॉं० सुशीला नय्यर थी; दूसरे गांधी जी के सचिव महादेव देसाई थे। उसे गांधी जी के सरल व्यक्तित्व के कारण संकोच हो रहा था।

वह कभी आसपास देखने लगता था या फिर नज़रें झुकाकर धरती की ओर देखते चल रहा था। वह गांधी जी के साधारण पहनावे से प्रभावित था। उसने देखा कि गांधी जी की चप्पलें धूल से भरी हुई हैं। वह गांधी जी से बात करना चाह रहा था परंतु उसे इतने बड़े आदमी से बात करने में संकोच हो रहा था। संकोच के कारण ही उसे वार्तालाप आरंभ करने के लिए कोई बात सूझ नहीं रही थी। अचानक उसे गांधी जी से बात आरंभ करने का माध्यम सूझ गया।

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विशेष :

  1. लेखक को गांधी जी के सरल और सहज व्यक्तित्व के प्रभाव के कारण उनसे वार्तालाप करने में संकोच हो रहा था।
  2. भाषा सजीव है।
  3. वर्णनात्मक शैली का सुंदर वर्णन है।

3. अरे, मैं उन दिनों कितना काम कर लेता था। कभी थकता ही नहीं था। …. “हमसे थोड़ा ही पीछे, महादेव देसाई, मोटा-सा लट्ठ उठाए चले आ रहे थे। कोहाट और रावलपिंडी का नाम सुनते ही आगे खक् आए और उस दौरे से जुड़ी अपनी यादे सुनाने लगे। और एक बार तो सुनाना शुरू किया तो आश्रम के फाटक तक सुनाते चले गए।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात’ पाठ में से अवतरित है। इस पाठ के लेखक ‘भीष्म साहनी’ हैं। उन्होंने इस पाठ में गांधी जी, नेहरू जी और यास्सेर अराफात के साथ व्यतीत किए चंद क्षणों को प्रभावशाली शब्द-चित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है। व्याख्या इन पंक्तियों में गांधी जी और महादेव देसाई रावलपिंडी और कोहाट में व्यतीत किए क्षणों को याद करते हैं। लेखक गांधी जी से वार्तालाप आरंभ करने के लिए उन्हें याद दिलाता है कि वे बहुत साल पहले रावलपिंडी आए थे।

रावलपिंडी का नाम सुनते ही गांधी जी के चेहरे पर चमक आ जाती है। वे उन दिनों को याद करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि उन दिनों वे बिना थके बहुत ज्यादा काम कर लेते थे, परंतु अब उनसे उतना काम नहीं होता। रावलपिंडी और कोहाट का नाम सुनते ही गांधी जी के सचिव जो मोटा-सा डंडा लिए पीछे चल रहे थे, आगे उन लोगों के साथ चलने लगते हैं। वे भी रावलर्पिड़ी दौरे से जुड़ी यादों को याद करने लगते है।

उन्होंने अपनी यादों को एक बार जो सुनाना आरंभ किया, वह आश्रम के फाटक तक सुनाते ही चले गए। गाधी जी भी बीच-बीच में महादेव देसाई जी की बातों में अपनी यादों को ताज़ा करते थे। वे उन दिनों को याद करते हुए हैंस रहे थे। गांधी जी बहुत धीरे-धीरे ब्बात करते थे। उनकी बात करते हुए देख ऐसा लगता था जैसे वे स्वयं से बात कर रहे हों, अपने-आप से ही विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हों। गांधी जी भी उन दिनों को याद कर रहे थे।

Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary - Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Summary Vyakhya

विशेष :

  1. पुराने दिनों को याद करना सबको अच्छा लगता है। पुराने दिनों की यादें व्यक्ति को ताज़ी प्रदान करती हैं।
  2. भाषा में देसी शब्द का प्रयोग रोचकता प्रदान करते हैं।
  3. शैली वर्णनात्मक है।

4. उन्हीं दिनों सेवाग्राम में अनेक जाने-माने देशभक्त देखने को मिले। पृथ्वी सिंह आज्ञाद आए हुए थे, जिनके मुँह से वह सारा किस्सा सुनने को मिला कि कैसे उन्होंने हथकड़ियों समेत, भागती रेलगाड़ी में से छलाँग लगाई और निकल भागने में सफल हुए और फिर गुमनाम रहकर बरसों तक एक जगह अध्यापन कार्य करते रहे। उन्हीं दिनों वहाँ पर मीरा बेन थी, खान अब्दुल गफ़्फार खान आए हुए थे। कुछ दिन के लिए राजेंद्र बायू भी आए थे। उनके रहते यह नहीं लगता था कि सेवाग्राम दूर पार का कस्बा हो।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश ‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात’ पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक भीष्म साहनी हैं। लेखक ने गांधी जी, नेहरू जी और यास्सेर अराफ़ात के साथ बिताए चंद क्षणों का प्रभावशाली ढंग से शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है।

व्याखया : इन पंक्तियों में लेखक ने सेवाग्राम में गांधी जी के आश्रम में कई देशभक्त देखने और उनके किस्से सुनने को मिलने का वर्णन किया है। लेखक लगभग तीन सप्ताह तक सेवाग्राम में रहा। वहाँ रहते हुए वह कई देशभक्तों से मिला। वह आश्रम में पृथ्वी सिंद आज्ञाद से मिला। उसने पृथ्वी सिंह आजाद से वह सारा किस्सा सुना कि वह कैसे अंग्रेज्रों की कैंद से भागे थे। एक जब अंग्रेज़ उन्हें रेलगाड़ी से ले जा रहे थे, उस समय उन्होंने हथकड़ियाँ पहन रखी थी। उन्होंने हथकड़ियाँ पहने हुए ही रेलगाड़ी में से छलाँग लगा दी।

इस तरह वह अंग्रेजों की कैद से भागने में सफल हो गए थे। वहाँ से भागने के बाद उन्होंने कई वर्ष गुमनाम रहकर व्यतीत किए। गुमनाम रहते हुए उन्होंने एक जगह अध्यापन कार्य किया। पृथ्वी सिंह आज़ाद के साथ-साथ लेखक को वहाँ मीरा बेन, खान अब्दुल गफ़कार खान जैसे देशभक्त देखने को मिले। वहाँ राजेंद्र बाबू भी कुछ दिनों के लिए रहने आए थे। उनके वहाँ रहते हुए ऐसा भी नहीं लगता था कि सेवाग्राम बहुत दूरी पर स्थित कोई कस्बा हो।

Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary - Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Summary Vyakhya

विशेष :

  1. बहुत-से देशभक्तों ने अपने अस्तित्व को गुमनाम रख कर देश की आज़ादी में भाग लिया। उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों का डटकर मुकाबला किया। यदि सच्चे देशभक्त निर्जन जगह पर चार दिन के लिए भी आ जाएँ, वहाँ चारों ओर भरा-भरा सा दिखाई देने लगता है।
  2. भाषा सजीव एवं प्रवाहमय है।
  3. वर्णनात्मक शैली का सुंदर वर्णन है।

5. “यह भी लगभग उस समय की बात रही होगी। पंडित नेहरु कश्मीर यात्रा पर आए थे। जहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ था। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में झेलम नदी पर, शहर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, सातवें पुल से अभीराकदल तक, नावों में उनकी शोभायात्रा देखने को मिली थी जब नदी के दोनों ओर हज़ारो-हज्तार कश्मीरी निवासी अदम्य उत्साह के साथ उनका स्वागत कर रहे थे। अद्भुत दूश्य था।”

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात’ पाठ से अवतरित है। इस पाठ के लेखक ‘भीष्म साहनी’ है। लेखक ने इस पाठ में गांधी जी, नेहरू जी और यास्सेर अराफ़ात के साथ व्यतीत किए गए चंद क्षणों का प्रभावशाली शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है।

व्याखया : इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन है जब नेहूू जी कश्मीर यात्रा पर गए थे। लेखक उस समय अपने फुफेरे भाई के निमंत्रण पर वहाँ गया था। नेहरू जी जब अपनी कश्मीर यात्रा पर आए थे, इस समय उनका शानदार स्वागत हुआ था। उनके स्वागत की सभी तैयारियाँ शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में संपन्न हुई थीं। नेहरू जी के स्वागत में पूरा कश्मीर अच्छी तरह सजाया गया था। शेख अब्दुल्ला ने झेलम नदी पर से शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक, सातवीं पुल से अभीराकदल तक नावों की शोभायात्रा की व्यवस्था की थी। नदी के दोनों ओर हज्ञारों कश्मीरी निवासियों ने बड़े उत्साह से उनका स्वागत किया था। नावों में शोभायात्रा और किनारे पर हज्तारों स्थानीय नियासी का दृश्य बहुत अद्भुत था।

Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary - Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Summary Vyakhya

विशेष :

  1. नेहरू जी जब अपनी कश्मीर यात्रा पर आए थे, उस समय उनका बहुत शानदार और ज़ोरदार स्वागत हुआ था।
  2. तत्सम शब्दावली के साथ उद्दू भाषा के शब्दों का सुंदर प्रयास किया गया है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।

6. द्यूनिस में ही उन दिनों फ़िलिस्तीन अस्थायी सरकार का सदरमुकाम हुआ करता था। उस समय तक फिलिस्तीन का मसला हल नहीं हुआ था और ट्यूनिस में ही, यास्सेर अराफ़ात के नेतृत्व में यह अस्थायी सरकार काम कर रही थी। लेखक संघ की गतिविधि में भी फ़िलिस्तीन लेखकों, बुद्धिजीवियों तधा अस्थायी सरकार का बड़ा योगदान था।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ ‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात ‘ पाठ से उद्धृत की गई हैं। इस पाट के लेखक ‘ भीष्म साहनी’ हैं। लेखक ने गांधी जी, नेहरु जी और अराफ़ात के साथ व्यतीत क्षणों का प्रभावशाली शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में लेखक ने उन दिनों का वर्णन किया है जब फ़िलिस्तीन सरकार अस्थायी रूप से ट्यूनिस से अपने देश का संचालन कर रही थी। लेखक उन दिनों अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का कार्यकारी महामंत्री था। इसलिए वह और उसकी पत्नी ट्यूनीसिया की राजधानी ट्यूनिस में अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत के लेखकों के प्रतिनिधिमंडल से पहले पहुँच गया था।

उन दिनों ट्यूनिस में फ़िलिस्तीन अस्थायी सरकार का मुख्यालय था। फ़िलिस्तीन में साम्राज्यवादी शक्तियों का प्रभाव था, इसलिए जब तक फिलिस्तीन का मसला सुलझ नहीं जाता तब तक यास्सेर अराफ़ात के नेतृत्व में अस्थायी सरकार ट्यूनिस में रहकर अपना काम कर रही थी। अफ्रो-एशियाई लेखक संघ की गतिविधियों में फिलिस्तिी लेखकों, बुद्धिजीवियों तथा अस्थायी सरकार का बहुत योगदान रहा था।

Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary - Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Summary Vyakhya

विशेष :

  1. फ़िलिस्तीन सरकार अस्थायी रूप से ट्यूनिस में रहकर अपना मुख्यालय चला रही थी। उस स्थिति में भी फ़िलिस्तीन सरकार, लेखक और बुद्धिजीवियों की साहित्यिक अभिरुचि में कोई कमी नहीं आई थी।
  2. तब्सम शब्दावली के साथ उर्दू शब्दों का सुंदर एर्व सफल प्रयोग किया गया है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।