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संवदिया Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 15 Summary

संवदिया – फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ – कवि परिचय

जीवन-परिचय – फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ हिंदी साहित्य के आंचलिक कथाकार माने जाते हैं। इनका जन्म सन 1921 में बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने सन 1942 के ‘भारत छोड़ो’ स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। वे राजनीति में प्रगतिशील विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। सन 1953 में वे साहित्य-सुजन के क्षेत्र में आए। सन 1977 में यह महान साहित्यकार अपना साहित्य साँपकर स्वर्ग सिधार गया।

प्रमुख रचनाएँ – रेणु जी बहुमुखी प्रतिभावान साहित्यकार थे। उन्होंने कहानी, उपन्यास, निबंध आदि विविध साहित्यिक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नांकित हैं –

उपन्यास – मैला आँचल, परती-परिकथा।
कहानी संग्रह – टुमरी, अग्निखोर, आदिम रात्रि की महक, तीसरी कसम उर्फ़ मारे गए गुलफाम।
इनकी तीसरी कसम उर्फ़ ‘मारे गए गुलफाम’ कहानी पर फिल्म भी बन चुकी है।

साहित्यिक विशेषताएँ – रेणुजी आंचलिक कथाकार हैं। उन्होंने अंचल-विशेष को अपनी रचनाओं का आधार बनाकर साहित्य सृजन किया है। उन्होंने आंचलिक वातावरण तथा वहाँ के जीवन का सजीव चित्रण किया है। रेणु जी मानवीय संवेदनाओं के कथाकार हैं, अतः उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं का अत्यंत सजीव एवं मार्मिक अंकन हुआ है। वे अभावग्रस्त जनता की बेबसी एवं पीड़ा को स्वयं भोगते-से लगते हैं।

रेणु जी ने समकालीन समाज की समस्याओं, विडंबनाओं तथा विसंगतियों का यथार्थ वर्णन किया है। उन्होंने समाज में फैले अंधविश्वास, हुआछूत, जाति-पाँति, धर्म-संप्रदाय आदि का खंडन किया है। समाज में फैले शोषण और शोषक के विरद्ध उन्होंने क्रांति का आह्वान किया है।

रेणु की कहानियों में आंचलिक शब्दावली से युक्त भाषा का प्रयोग हुआ है। उनके कथा-साहित्य में आंचलिक शब्दों के प्रयोग से लोकजीवन के मार्मिक स्थलों की पहचान हुई है। उनकी भाषा संवेदनशील, भाव-संप्रेषण से युक्त भाव-प्रधान है। मार्मिक एवं सजीव पीड़ा तथा भावनाओं को उभारने में लेखक की भाषा हदयय को छू लेती है।

इनके साहित्य में तत्सम, तद्भव, साधारण बोलचाल के साथ-साथ विदेशज शब्दावली का भी भरपूर प्रयोग हुआ है। इन्होंने चित्रात्मक, वर्णनात्मक, संवाद तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता तथा सजीवता उत्पन्न हो गई है। वस्तुत: रेणु जी हिंदी साहित्य के महान कथाकार हैं, इनका आंचलिक साहित्य में सर्वप्रमुख स्थान है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 15 Summary - Samvadiya Summary Vyakhya

Samvadiya Class 12 Hindi Summary

‘संवदिया’ कहानी फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित एक संवेदनात्मक कहानी है। इस कहानी में मानवीय संवेदना की गहन एवं विलक्षण पहचान का चित्रण हुआ है। लेखक ने असहाय और सहनशील नारी मन के कोमल तंतु, उसके दुख, करुणा, पीड़ा तथा यातना की सूक्ष्म एवं सजीव अभिव्यक्ति की है। वर्तमान युग संचार का युग है, जिसमें गाँव-गाँव में डाकघर तथा अन्य सुविधाएँ पहुँच चुकी हैं। हरगोबिन को आश्चर्य हुआ कि आज भी किसी को संवदिया की आवश्यकता हो सकती है। हरगोबिन संवदिया अपने जलालगढ़ गाँव की बड़ी हवेली में बड़ी बहूरानी के पास गया।

उसने वातावरण सूँघकर ही अंदाज्ता लगा लिया कि कोई गुप्त समाचार ले जाना है। बहूरानी के पास बैठ हरगोबिन सोचने लगा कि आज ये हवेली नाममात्र की ही बड़ी है, अन्यथा इसमें कुछ भी बड़ा नहीं है। बड़े भैया के मरते ही सब कुछ खत्म हो गया। निर्दयी भाइयों ने बड़ी बहू के जेवर यहाँ तक कि बनारसी साड़ी को तीन टुकड़ों में काटकर बँटवारा कर लिया था। जिस हवेली में पहले नौकर-चाकर थे, ऐशो-आराम था, आज वहाँ बड़ी बहू के पास खाने तक को भोजन नहीं है। मोदिआाइन काकी भी बार-बार अपना उधार माँगे आती थी, लेकिन बड़ी बहू उसे कुछ न दे पाती थी।

बड़ी बहू ने हरगोबिन को अपनी माँ के पास संवाद देकर भेजा। संवाद को सुन हरगोबिन की आँखें भी भर आई। उन्होंने कहा कि माँ से कहना कि में भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन अब यहाँ नहीं रहूँगी। संवाद सुनते ही हरगोबिन उसके देवर-देवरानियों को कोसने लगा। बड़ी बहू ने पाँच का नोट देकर बाकी का माँ से लेने के लिए कहा। गाड़ी में जाते हुए हरगोबिन को संवाद का प्रत्येक शब्द काँटे की तरह चुभ रहा था।

हरगोबिन डाकगाड़ी में थाना बिंहपुर स्टेशन पहुँचा। इससे पहले भी वह कई अच्छे-बुरे संवाद लेकर इस गाँव में आया था। वह सोचने लगा कि गाँव की लक्ष्मी के गाँव छोड़ने पर वहाँ क्या रह जाएगा। लक्ष्मी जैसी बहू उसके गाँव में दुख भोग रही है। यह सुनकर लोग उसके गाँव पर थूरेंगे। लोगों ने हरगोबिन को पहचान लिया। सब उससे कुशल समाचार पूछने लगे। वह बहू के घर पहुँचा तो बूढ़ी माँ ने उससे अपनी बेटी का समाचार पूछा, लेकिन उसने बड़ी बहू का संवाद नहीं बताया और झूठ बोल दिया कि वह कोई संवाद लेकर नही आया। माता के अपनी बेटी के अकेली कहने पर उसने कहा कि बड़ी बहू का परिवार सारा गाँव ही है।

वह हमारे गाँव की लक्ष्मी है। जलपान करते हुए फिर हरगोबिन बड़ी बहू के बारे में सोचने लगा कि वह बेचारी भूखी-प्यासी उसकी राह देख रही होगी। उसे याद हो आया कि वह तो बेचारी बधुआ साग उबालकर खाती है। रात भर हरगोबिन को बड़ी बहू का संबाद ही याद आता रहा। वह सो नहीं पाया। उसके मन में अनेक प्रश्न पैदा हुए। सुबह होते ही वह वहाँ से अपने गाँव को रवाना हुआ। उसके पास अपने गाँव तक का किराया नहीं था। वह बहुत चिंता में था। एक सूरदास के गीत सुनकर ही उसका दुखी मन स्थिर हुआ।

तत्पश्चात उसके मन में बड़ी बहू रोने लगी। वह कटिहार स्टेशन पहुँचकर जलालगढ़ जाने के लिए चिंता-मग्न था। पैसे की कमी के कारण वह कटिहार से बीस मील की दूरी पर अपने गाँव के लिए पैदल ही चल दिया। वह थका-हारा अपने मन में अनेक दूवंद्व लेकर अपने गाँव पहुँचा। एक बार तो अपने गाँव को ही पहचान नहीं पाया। बड़ी बहू ने हरगोबिन को दूध पिलाया। वह माफ़ी माँगते हुए बड़ी बहू से कहने लगा कि वह उनका संवाद उनके घरवालों को नहीं सुना सका। वह भाव-विभोर होकर कह उठा कि तुम मेरी माँ हो और मैं तुप्हारा बेटा हूँ। उसके साथ-साथ वह सारे गाँव की माँ है तथा अब वह विश्वास दिलाता है कि खाली न बैठकर कार्य करेगा। बड़ी बहुरिया भी अपने संबाद भेजने पर पश्चाताप कर रही थी।

Class 12 Hindi Antra Chapter 15 Summary - Samvadiya Summary Vyakhya

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • संवदिया – संवाद ले जाने वाला, संदेशवाहक
  • परेवा – कबूतर, कोई तेज़ उड़ने वाला पक्षी
  • रैयत – प्रज्ञा
  • अफरना – पेट भरकर खाना
  • बहुरिया – पुत्रवधु, बहू
  • आगे नाथ न पीछे पगहा – कोई जिम्मेदारी न होना
  • खोज-खबर न लेना – जानकारी प्राप्त न करना, पूछताछ न करना
  • खून सूख जाना – बहुत अधिक डर जाना, घबरा जाना
  • अंदाज्ञ – अंदाज़ा, अनुमान
  • सूरदास – अंधा व्यक्ति
  • मारफ़त – माध्यम, ज्रारिया
  • सूपा – छाछ, सूप
  • हिकर – बेचैन होकर पुकारना
  • चूड़ा – चिड़वा
  • द्रल – हस्तक्षेप, अधिकार मागना
  • कलेजा धड़कना – घबरा जाना
  • संवाद् – संदेशा, बातचीत
  • अनिच्छापूर्वक – बिना इच्छा के

संवदिया सप्रसंग व्याख्या

1. हरगोबिन को अचरज हुआ-तो आज भी किसी को संवदिया की ज़रूरत पड़ सकती है। इस ज़माने में जबकि गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मारफ़त संवाद क्यों भेजेगा कोई ? आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ का कुशल संवाद मँगा सकता है। फिर उसकी बुलाइट क्यों हुई ?
हरगोबिन बड़ी हवेली की दूटी ड्योढ़ी पारकर अंदर ग

या। सदा की भाँति उसने वातावरण को सूँघकर संवाद का अंदाज़्ता लगाया। ….. निश्चय ही कोई गुप्त समाचार ले जाना है। चाँद-सूरज को भी नहीं मालूम हो। परेवा-पंछी तक न जाने।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित कहानी ‘संवदिया’ में से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने हरगोबिन संदेशवाहक के माध्यम से असहाय और सहनशील नारी के मन की करुणा का यथार्थ चित्रण किया है।

व्याख्या : लेखक कहता है कि हरगोबिन को यह आश्चर्य हुआ कि आज के युग में भी किसी को संदेशवाहक की आवश्यकता पड़ सकवी है जबकि इस युग में प्रत्येक गाँव में डाकघर खुल गए हैं। फिर एक संदेशवाहक के माध्यम से कोई संवाद या संदेश क्यों भेजना चाहेगा। आज के युग में तो आदमी अपने घर बँठे ही श्रीलंका तक संदेश भेज सकता है और वहाँ का कुशल संदेश मँगवा सकता है।

फिर हरगोबिन सोचता है कि मुझे क्यों बुलाया गया। हरगोबिन अपने गाँव की बड़ी हवेली की टूटी हुई ड्योढ़ी को पार कर अंदर गया। सदा की तरह उसने वातावरण सूँघकर ही संदेश का अंदाज़ा लगा लिया था। वह जान गया था कि निश्चित रूप से कोई गुप्त समाचार ले जाना है। वह मन-ही-मन सोचने लगा कि ऐसा गुप्त संदेश कि शायद चाँद-सूर्य को भी मालूम न हो। कबूतर-पक्षी तक भी उसको न जाने।

Class 12 Hindi Antra Chapter 15 Summary - Samvadiya Summary Vyakhya

विशेष :

  1. प्राचीन संदेशवाहक संस्कृति का चित्रण हुआ है।
  2. भाषा सरल, साधारण एवं आँचलिक है।
  3. तत्सम, तद्भव आँचलिक विदेशज शब्दों का प्रयोग है।

2. बड़े भैया के मरने के बाद ही जैसे सब खेल खत्म हो गया। तीनों भाइयों ने आपस में लड़ाई-झगड़ा शुरू किया। रैयतों ने उमीन पर दावे करके दखल किया, फिर तीनों भाई गाँव छोड़कर शहर में जा बसे, रह गई बड़ी बहुरिया-कहों जाती बेचारी ! भगवान भले आदमी को ही कष्ट देते हैं। नर्हीं तो एक घंटे की बीमारी में बड़े भैया क्यों मरते ?.. बड़ी वहुरिया की देह से ज्ञेवर खर्जि-छीनकर बँटवारे की लीला हुई थी। हरगोबिन ने देखी है अपनी औँखों से औ्रैपदी चीर-हरण लीला 1 बनारसी साड़ी को तीन टुकड़े करके बँंटवारा किया था, निर्दय भाइयों ने। बेचारी बड़ी बहुरिया!

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश ‘अंतरा भाग – में संकलित तथा फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित संवद्यिया’ नामक कहानी से अवतारित है। इसमें लेखक ने हरगोबिन के गाँव की बड़ी बहूरानी के परिवार के बिखरने का मार्मिक वर्णन किया है।

व्याख्या : लेखक बड़ी बहू की दुर्दशा का वर्णन करते हुए कहता है कि बड़े भैया की मृत्यु के बाद ही जैसे सारा खेल खत्म हो गया अर्थात बड़ी हवेली की जो रौनक थी, वह शायद उसी समय समाप्त हो गई। बड़े भैया के तीनों छोटे भाइयों ने धन को लेकर आपस में लड़ाई-झगड़ा शुरू किया। प्रजा के लोगों की ज्रमीन पर दावे करके दखल दिया। उसके बाद तीनों भाई गाँव को छोड़कर शहर में जाकर बस गए।

बेचारी। बड़ी बहूरानी यहीं इसी गाँव में रह गई। वह अकेली जाती भी कहाँ ? लेखक कहता है कि भगवान इस दुनिया में अच्छे आदमी को हमेशा कष्ट देता है। वरना एक घंटे की बीमारी में बड़े भैया क्यों मरते ? बड़ी बहू के शरीर से जेवर छीन-छीनकर बँटवारे की भयानक लीला हुई थी। लेखक कहता है कि हरगोबिन ने द्रौपदी चीर-हरण के समान इस लीला को अपनी आँखों से देखा है। बड़े भैया के निर्दयी भाइयों ने बनारसी साड़ी के तीन टुकड़े करके उसको भी बाँट लिया था। बेचारी बड़ी बहूरानी।

Class 12 Hindi Antra Chapter 15 Summary - Samvadiya Summary Vyakhya

विशेष :

  1. बड़ी बहू की दुर्दशा का मार्मिक वर्णन है।
  2. भाषा-शैली सरल एवं साधारण है।

3. बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसके मन में काँटे की तरह चुभ रहा है-किसके भरोसे यहाँ रहूँगी ? एक नौकर था, वह भी कल भाग गया। गाय खूँटे से बँधी भूखी-प्यासी हिकर रही है। मैं किसके लिए इतना दु:ख झेलूँ ?

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित ‘संवदिया’ कहानी से अवतरित की गई है। इसमें लेखक ने बताया है कि बड़ी बहू के मार्मिक संवाद का वर्णन है।

व्याख्या : लेखक का कहना है कि बड़ी बहू के संदेश का प्रत्येक शब्द उसके मन में काँटे की तरह चुभ रहा था। वह मन ही मन दुखी थी कि अब वह यहाँ किसके भरोसे रहेगी। पहले तो एक नौकर था, लेकिन वह भी कल भाग गया। गाय भी बेचारी खूँटे से बँधी हुई भूखी-प्यासी रैंभा हो रही है। वह मन-ही-मन मंधन करती है कि फिर वह किसके लिए इतना दुख झेले।

विशेष :

  1. लेखक ने बड़ी बहू की मनोव्यथा का सजीव अंकन किया है।
  2. तत्सम, तद्भव तथा आँचलिक शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
  3. भावात्मकता का प्रयोग है।

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4. “नहीं मायजी ! ज्ञमीन-जायदाद अभी भी कुछ कम नहीं। जो है, वही बहुत है। टूट भी गई है, है तो आखिर बड़ी हवेली ही। ‘सवांग’ नहीं है, यह बात ठीक है! मगर, बड़ी बहुरिया का तो सारा गाँव ही परिवार है। हमारे गाँव की लक्मी है बड़ी बहुरिया। ……. गाँव की लक्ष्मी गाँव को छोड़कर शहर कैसे जाएगी ? यों, देवर लोग हर बार आकर ले जाने की चिदि करते है।”

प्रसंग : यह गद्यांश फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित ‘ संवद्यिया’ नामक कहानी से अवतरित है। इसमें लेखक ने हरगोबिन के बड़ी बहू की माँ के सामने संवाद का वर्णन किया है।

व्याख्या : हरगोबिन बड़ी बहू की माता जी की बातें सुनकर कहता है माता जी नहीं ! आपकी बेटी के पास ज्ञमीन-जायदाद अभी भी कुछ कम नहीं अभी भी बहुत ज़्यादा है। जो उसके पास है वह बहुत है। आखिर बड़ी हवेली टूट गई है। यह हँसी-मज़ाक नहीं बलिक सत्य बात है। लेकिन माता जी । बड़ी बहू का तो सारा गाँव ही एक परिवार है। बड़ी बहू तो हमारे गाँव की लक्मी है, अतः गाँव की लक्ष्मी गाँव छोड़कर शहर में कैसे जाएगी। वैसे तो उसके देवर हर बार आकर ले जाने की जिद्द करते हैं।

विशेष :

  1. हरगोबिन के बड़ी बहू के प्रति सम्मान भावना का अनूठा वर्णन है।
  2. भाषा-शैली सरल और साधारण है।
  3. देशज शब्दावली की प्रचुरता है।

5. जलपान करते समय हरगोबिन को लगा, बड़ी बहुरिया दालान पर बैठी उसकी राह देख रही है-भूखी-प्यासी…। रात में भोजन करते समय भी बड़ी बहुरिया मानों सामने आकर बैठ गई… कर्ज उधार अब कोई देते नही …. एक पेट तो कुत्ता भी पालता है, लेकिन मैं ?… माँ से कहना…।
हरगोबिन ने थाली की ओर देखा-दाल-भात, तीन किस्म की भाजी, घी, पापड़, अचार .. बड़ी बहुरिया बथुआ-साग उबालकर खा रही होगी।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित ‘संवदिया’ कहानी से ली गई है। इनमें जलपान करते हुए हरगोबिन बड़ी बहू की दुर्दशा को सोच रहा है।

व्याख्या : लेखक का कथन है कि बड़ी बहू के मायके में आकर उसके घर में जलपान करते हुए हरगोबिन को ऐसा लगा कि बड़ी बहूरानी दालान पर बैठी हुई भूखी-प्यासी उसकी राह देख रही होगी। रात को भोजन करते समय भी मानो बड़ी बहू उसके सामने आकर बैठ गई। बड़ी बहू ने कहा था कि कर्ज्जा या उधार तो अब कोई नहीं देता। एक पेट तो कुत्ता भी पालता है लेकिन मैं ? माँ से जाकर कहना। हरगोबिन ने अपनी थाली की ओर देखा कि दाल-भात, तीन प्रकार की सब्ज़ी, घी, पापड़, अचार आदि लगा हुआ है, लेकिन बेचारी बड़ी बहू बथुआ का साग उबालकर खा रही होगी।

Class 12 Hindi Antra Chapter 15 Summary - Samvadiya Summary Vyakhya

विशेष :

  1. लेखक ने बड़ी बहू की मार्मिक व्यथा का चित्रण किया है।
  2. भाषा सरल तथा साधारण बोलचाल है।
  3. औचचलिक शब्दावली का प्रयोग हुआ है।

6. हरगोबिन होश में आया ….. बड़ी बहुरिया का पैर पकड़ लिया, “बड़ी बहुरिया। मुझे माफ़ करो। मैं तुम्हारा संवाद नहीं कह सका। ……. तुम गाँव छोड़कर मत जाओ। तुमको कोई कष्ट नहीं होने दूँगा। में तुम्हारा बेटा । बड़ी बहुरिया, तुम मेरी माँ, सारे गाँव की माँ हो। मैं अब निठल्ला बैठा नहीं रहूँगा। तुम्हारा सब काम करूँगा ….. बोलो, बड़ी माँ, तुम …… तुम गाँव छोड़क चली तो नहीं जाओगी? बोलो …!”

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित तथा फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित ‘संवदिया’ कहानी से अवतरित है। इसमें लेखक ने हरगोबिन के कर्तव्य-बोध का चित्रण किया है।

व्याख्या : लेखक कहता है कि हरगोबिन होश में आया। उसने होश में आते ही बड़ी बहू के पैर पकड़ लिए। वह उसके पैर पकड़कर माफ़ी माँगने लगा कि वह उसे माफ़ कर दें। वह बड़ी बहू से कहने लगा कि में तुम्हारा संदेश नहीं कह सका। तुम गाँव छोड़कर मत जाओ। मैं तम्हें यहाँ कोई कष्ट नहीं होने दूँगा। हे बड़ी बहू । मैं तुम्हारा बेटा हूँ और तुम मेरी माँ हो। मेरी ही नही बल्कि सारे गाँव की माँ हो। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि अब मैं बेकार नहीं बैढूँगा। तुम्हारा सारा कार्य करूँगा। बोलो बड़ी माँ। तुम गाँव छोड़कर तो नहीं चली जाओगी, हरगोबिन बड़ी बहू से प्रार्थना करता है कि तुम गाँव छोड़कर मत जाना।

Class 12 Hindi Antra Chapter 15 Summary - Samvadiya Summary Vyakhya

विशेष :

  1. हरगोबिन के हुदय में बड़ी बहू के प्रति सम्मानजनक भावना का वर्णन है।
  2. आँचलिक शब्दों से युक्त भाषा का प्रयोग है।