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सुमिरिनी के मनके Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 13 Summary

सुमिरिनी के मनके – पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी – कवि परिचय

जीवन-परिचय-पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी साहित्य के प्रमुख रचनाकार माने जाते हैं। उनका जन्म सन 1883 ई० को पुरानी बस्ती जयपुर में हुआ था। गुलेरी जी अनेक भाषाओं के विद्वान थे। वे संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभंश, ब्रज, अवधी, मराठी, राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, अंग्रेज़ी, लैटिन, फ्रेंच आदि भाषाओं को जानते थे। वे संस्कृत के पंडित थे। प्राचीन इतिहास और पुरातत्व उनका प्रिय विषय था। विज्ञान में उनकी गहन रुचि थी।

उन्होंने सन 1904 से 1922 तक अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों में प्राध्यापक के पद पर कार्य किया। उनकी उपलब्धियों तथा साहित्य को देखकर उन्हें इतिहास दिवाकर की उपाधि से सम्मानित किया गया। 11 फरवरी, सन 1922 ई० को पं० मदन मोहन मालवीय के आग्रह पर वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राच्य विभाग के प्राचार्य बने। तत्पश्चात सन 1922 ई० में ही उनका देहांत हो गया।

रचनाएँ-गुलेरी जी अनेक भाषाओं के श्रेष्ठ विद्वान थे। उन्होंने अनेक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। उनकी सृजनशीलता के चार मुख्य पड़ाव समालोचक, मर्यादा, प्रतिभा और नागरी प्रचारिणी पत्रिका हैं। इनके साथ-साथ उन्होंने अनेक उत्कृष्ट निबंध तथा प्रमुख कहानियाँ भी लिखी हैं। इनकी तीन प्रमुख कहानियाँ ‘सुखमय जीवन’, ‘बुद्धू का काँटा’ और ‘उसने कहा था’ है। ‘उसने कहा था’ भारतीय साहित्य में ही नहीं बल्कि विश्व-साहित्य में प्रसिद्ध कहानी है। इस रचना को लिखकर ही गुलेरी जी अमर बन गए थे। साहित्यिक विशेषताएँ-गुलेरी जी हिंदी साहित्य के सर्वप्रमुख कथाकार माने जाते हैं।

उनके उत्कृष्ट साहित्य से ही उनके व्यक्तित्व की छाप उभरकर सामने आती है। अनेक भाषा के ज्ञाता होने के कारण उनकी संवेदना अत्यंत व्यापक थी। उन्होंने अपने साहित्य में समकालीन समाज की विडंबनाओं, अंधविश्वासों, रुढ़ियों, झूठी परंपराओं का यथार्थ चित्रण किया है। समाज में फैले अंधविश्वासों का उन्होंने सदा खंडन किया है। ‘उसने कहा था’ एक विश्वविख्यात कहानी है जिसमें उन्होंने प्रथम महायुद्ध के एक सैनिक लहना सिंह की करुणा मिश्रित प्रेमकथा का चित्रण किया है। यह प्रेमकथा अत्यंत अनूठी है।

जिसमें प्रेम एवं करुणा का सजीव वर्णन किया गया है। इस कहानी के पढ़ने मात्र से न जाने कितनी देर ‘उसने कहा था’ की प्रतिध्वनि मन-मस्तिष्क में गूँजती रहती है। ‘बालक बच गया’ निबंध के माध्यम से लेखक ने बच्चे की शिक्षा ग्रहण की। सही उम्र का बखान किया है। उन्होंने बताया कि व्यक्ति के मानस के विकास के लिए शिक्षा को प्रस्तुत करना चाहिए। शिक्षा के लिए मनुष्य को नहीं।

उन्होंने उदाहरण के माध्यम से यह भी बताया है कि हमें बच्चे पर शिक्षा को लादना नहीं चाहिए बल्कि उसके मन में शिक्षा के प्रति इच्छा जागृत करनी चाहिए। ‘ घड़ी के पुर्जें’ निबंध में धर्म के रहस्य को जानने पर धर्म उपदेशकों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को घड़ी के दृष्टांत द्वारा बहुत रोचक बंग से प्रस्तुत किया है। ‘ढेले चुन लो’ में लोक विश्वासों में निहित अंधविश्वासों में डूबी मान्यताओं पर कटाक्ष किए हैं।

लेखक ने अत्यंत सरल, सरस बोलचाल की भाषा-शैली का प्रयोग किया है। इनका वाक्य-विन्यास, दृश्य चित्रण-शैली की सजीवता सर्वत्र रोचकता प्रदान करते हैं। इन्होंने वर्णनात्मक, चित्रात्मक, विवरणात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया है।

इनके साहित्य में तत्सम, तद्भव, गुजराती, पंजाबी, अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी भाषाओं के शब्दों का मिश्रण हुआ है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में सजीवता एवं रोचकता उत्पन्न हो गई है। वस्तुतः पं० चंद्रधर गुलेरी हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार थे। उनका हिंदी-साहित्य में महान योगदान है।

Sumirini Ke Manke Class 12 Hindi Summary

सुमिरिनी के मनके पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा लिखित निबंध है जिसमें लेखक ने ‘बालक बच गया’, घड़ी के पुर्जें’ और ‘ढेले चुन लो’ नामक तीन लघु निबंध संकलित किए हैं।

(क) बालक बच गया –

‘बालक बच गया’ निबंध के माध्यम से लेखक ने शिका-प्रहण करने की सही उम्र का बखान किया है। उन्होंने बताया है कि हमें व्यक्ति के मानस के विकास के लिए शिक्षा को प्रस्तुत करना चाहिए, शिक्षा के लिए मनुष्य को नहीं। मनुष्य का लक्ष्य है मनुष्य और मनुष्यता को बचाए रखना। एक पाठशाला के वार्षिक उत्सव में प्रधानाध्यापक का इकलौता पुत्र बड़े प्यार से दिखाया जा रहा था।

उससे अनेक धर्म के लक्षण, रसों के नाम आदि अनेक प्रश्न पूछ्छे जा रहे थे। जिनका वह रटा-राया उत्तर देता जा रहा था। उसकी इच्छा पूछ्छे पर उसने बताया कि वह आजीवन लोक-सेवा करता रहेगा। उसके उत्तरों को सुनकर सारी सभा तथा उसके पिता खुश हो रहे थे। बालक से कुछ माँगने की बात कही तो उसने सोचकर लड्ड्र देने को कहा। जिसे सुनकर सब निराश हो गए लेकिन बालक की इच्छा बच गई।

Class 12 Hindi Antra Chapter 13 Summary - Sumirini Ke Manke Summary Vyakhya

(ख) घड़ी के पुर्जों –

‘घड़ी के पुर्जे’ निबंध के माध्यम से लेखक ने धर्म के रहस्यों को जानने पर धर्म उपदेशकों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को घड़ी के दृष्टांत द्वारा अत्यंत रोचक ढंग प्रस्तुत किया है। घड़ी के पुर्ज्रों के बारे में यदि किसी को जानकारी नहीं है तो दूसरा जानकार तो अवश्य उसे ठीक कर देता है। वैसे ही धर्म के रहस्यों को कोई धर्म का जानकार तो अवश्य बता सकता है।

(ग) ढेले चुन लो –

‘हेले चुन लो’ निबंध के माध्यम से लेखक ने लोक विश्वासों में निहित अंधविश्वासी मान्यताओं पर चोट की है। शेक्सपीयर के प्रसिद्ध नाटक ‘मचंंट ऑफ़ वेनिस’ में पोर्शिया ने अपने वर को बहुत सुंदर रीति से चुना है। हरिश्चंड्र के ‘दुर्लभ बंधु’ में पुरश्री के सामने सोने, चांदी और लोहे की तीन पेटियों में हर कोई स्वयंवर के लिए अपनी इच्छा से पेटी चुनता था लेकिन सच्चे प्रेमी ने ही लोहे को चुना था। उसे ही पहला इनाम मिला।

वैदिक काल के हिंदुओं में ऐसी ही लॉटरी चलती थी जिसमें अनेक स्थानों की मिट्टी के बेलों में चुनना पड़ता था। वेदि, गौशाला, खेत, मसान आदि स्थानों की मिट्टी होती थी। इसी मिट्टी को चुनने के आधार पर ही वर-कन्या के भविष्य का फ़ैसला होता था। राजपूतों की लड़कियों के समान वैदिक काल के हिंदू छेले छ्कर स्वयं पत्नी वरण करते थे। वात्स्यायन जी का मानना है कि आज का कबूतर कल के मोर से अच्छा है। संत कबीर जी ने भी बाह्य आडंबरों का खुलकर खंडन किया।

Class 12 Hindi Antra Chapter 13 Summary - Sumirini Ke Manke Summary Vyakhya

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • वार्षिकोत्सव – सालाना जलसा, वर्ष में एक बार होनेवाला उत्सव
  • कोल्हू – तेल निकालने की मशीन
  • उल्लास – हर्ष, खुशी
  • अवस्था – आयु, दशा
  • समाधान – हल
  • दृष्टांत – उदाहरण
  • घड़ीसाज्ती – घड़ी बनाने की कला, मुरम्मत का हुनर
  • मरेंट ऑफ़ बेनिस – शेक्सपियर का प्रसिद्ध नाटक
  • पोर्शिया – शेक्सपियर के नाटक ‘मर्चेंट ऑफ़ वेनिस’ की नायिका
  • अकड़बाज्ञ – अकड़ दिखाने वाला, अपने आगे किसी अन्य की न मानने वाला
  • मिट्टी के डगले – मिट्टी के छेले।
  • नुमाइश – प्रदर्शनी, दिखावा
  • यावज्जन्म – जीवन भर, जब तक जन्म हो
  • कुर्सीनामा – राज की अवधि
  • लक्ष्ण – विशेषता, गुण
  • कान छलकाकर – कान खोलकर
  • टंटा – झंझट, संकट
  • प्रतिमूर्ति – प्रतिमा, उसके ही जैसा
  • जास – यशा, कीर्त

सुमिरिनी के मनके सप्रसंग व्याख्या

1. एक पाठशाला का वार्षिकोत्सव था। मैं भी वहाँ बुलाया गया था। वहाँ के प्रधान अध्यापक का एकमात्र पुत्र, जिसकी अवस्था आठ वर्ष की थी, बड़े लाड़ से नुमाइश में मिस्टर हादी के कोल्हू की तरह दिखाया जा रहा था। उसका मुँह पीला था, आँखें सफ़ेद थीं, दृष्टि भूमि से उठती नहीं थी।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित ‘सुमिरिनी के मनके’ निबंध के ‘बालक बच गया’ प्रसंग से अवतरित है। इसके लेखक पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी हैं। इसमें लेखक ने पाठशाला के वार्षिक उत्सव पर प्रधानाध्यापक के पुत्र के नुमाइश का चित्रांकन किया है।

व्याख्या : लेखक कहता है कि एक विद्यालय का वार्षिक उत्सव था। मुझे भी उस उत्सव में जाने का निर्म्रण मिला था। उस पाठशाला के प्रधानाचार्य का आठ वर्ष का इकलौता बेटा था। जिसको बड़े प्यार से प्रदर्शनी में श्रीमान हादी के कोलूू के समान दिखाया जा रहा था। उस बच्चे के मुँह का रंग पीला था, आँखें सफ़ेद थीं और उसकी नज़रें भूमि पर थी, उसका चेहरा झुका हुआ था।

Class 12 Hindi Antra Chapter 13 Summary - Sumirini Ke Manke Summary Vyakhya

विशेष :

  1. लेखक ने बच्चे की झूटी नुमाइश पर व्यंग्य किया है।
  2. भाषा सहज और सरल है।
  3. भावपूर्ण शैली का प्रयोग है।
  4. तत्सम, तद्भव तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग हुआ है।

2. बालक के मुख पर विलक्षण रंगों का परिवर्तन हो रहा था, हादय में कृत्रिम और स्वाभाविक भावों की लड़ाई की झलक आँखों में दिख रही थी। कुछ खाँसकर, गला साफ़ कर नकली परदे के हट जाने पर स्वयं विस्मित होकर बालक ने धीरे से कहा, ‘लड्डू’।

प्रसंग : यह गद्यांश पं० चंद्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा रचित ‘सुमिरिनी के मनके’ निबंध के ‘बालक बच गया’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें लेखक ने बच्चे की स्वाभाविक प्रवृत्ति का चित्रण किया है।

व्याख्या : लेखक का कथन है कि बालक के मुख पर अनूठे रंगों का परिवर्तन हो रहा था, उसके मुख पर अनेक हाव-भाव उभर रहे थे। उसके ब्ददय में बनावटी तथा स्वाभाविक भावों की लड़ाई की झलक आँखों में स्पष्ट दिखाई दे रही थीं अर्थात उसके मन में अपने स्वभाव और दिखावे को लेकर द्वंद्व हो रहा था। वह मन-ही-मन सोच रहा होगा कि बनावट तथा स्वाभाविक वृत्ति में से किसे अपनाए। लेखक कहता है कि बालक ने कुछ देर बाद थोड़ा-सा खाँसकर, गला साफ़ करते हुए नकली परदे के हट जाने पर अपने आप हैरान होकर धीरे से कहा कि ‘लड्डू’ अर्थात मुझे कुछ अन्य वस्तु नहीं बल्कि लड्डू चाहिए।

विशेष :

  1. बालक की स्वाभाविक एवं कृत्रिम वृत्ति के मध्य चल रहे द्वंद्व का वर्णन है।
  2. भाषा सहज, साधारण एवं खड़ी बोली है।
  3. तत्सम शब्दावली की प्रचुरता है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 13 Summary - Sumirini Ke Manke Summary Vyakhya

3. यह तो वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है कि घड़ी के पुर्जें जाने, तुम्हें इससे क्या ? क्या इस उपमा से जिज्ञासा बंद हो जाती है? इसी दृष्टांत को बढ़ाया जाए तो जो उपदेशक जी कह रहे हैं उसके विरुद्ध कई बातें निकल आवें। घड़ी देखना तो सिखा दो, उसमें तो जन्म और कर्म की पख न लगाओ, फिर दूसरे से पूछने का टंटा क्यों ? गिनती हम जानते हैं, अंक पहचानते हैं, सूइयों की चाल भी देख सकते हैं, फिर आँखें भी हैं तो हमें ही न देखने दो, पड़ोस की घड़ियों में दोपहर के बाहर बजे हैं।

प्रसंग ; प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित तथा पंडित चंद्रधर शर्मा द्वारा लिखित ‘सुमिरिनी के मनके’ निबंध के ‘ घड़ी के पुर्जे’ प्रसंग से अवतरित हैं। इनमें लेखक ने धर्म के रहस्यों को जानने के लिए धर्म-उपदेशकों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को घड़ी के दृष्टांत द्वारा प्रस्तुत किया है।

व्याख्या : लेखक कहता है कि यह तो बड़े-बड़े वेद-शास्त्रों के ज्ञाताओं तथा धर्माचायों का ही कार्य है कि घड़ी के पुर्जों के विषय में जानें, तुम्हें इससे क्या अभिप्राय है, धर्म के रहस्यों को जानने का अर्ध बड़े-बड़े धर्माचार्य केवल अपने तक सीमित रखते हैं। इसी दृष्टांत को आगे बढ़ाया जाए तो उपदेशक जी कह रहे हैं कि उसके खिलाफ़ अनेक बातें निकल आएँ। लेखक की आशा है कि हे विद्वानो।

आदमी को घड़ी देखना तो सिखा दो, उसे धर्म को जानने का ज्ञान तो दो। उसके लिए तुम जन्म और कर्म को आधार मत बनाओ। फिर दूसरों से पूछ्छने का ही दिखावा क्यों। लेखक कहता है कि गिनती हम जानते हैं, अंकों की पहचान हमें है। घड़ी की सूइयों की चाल भी देख सकते हैं। फिर धर्माचायों। हमारे पास आँखें भी हैं तो हमें ही न देखने दो। पड़ोस की घड़ियों में बारह बजे का समय हुआ है। हम सामान्य मनुष्यों के पास भी ज्ञान है, बुद्धि है फिर आप हमें भी धर्म के विषय में जानने, उसे पहचानने की छूट क्यों नहीं देते ?

विशेष :

  1. धर्म पर प्रतिबंध लगानेवाले धर्माचायों पर व्यंग्य किया है।
  2. भाषा-शैली सरल एवं सहज है।
  3. तत्सम, तद्भव, देशज एवं विदेशज शब्दों का प्रयोग है।

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4. जैसे राजपूतों की लड़कियाँ पिछले समय में रूप देखकर, जस सुनकर स्वयंवर करती थीं, वैसे वैदिक काल के हिंदू बेले छुआकर स्वयं पत्नीवरण करते थे। आप कह सकते हैं कि जन्मभर के साथी की चुनावट मट्टी के ढेलों पर छोड़ना कैसी बुद्धिमानी है ! अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों-करोड़ों कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मद्टी और आग के ढेलों-मंगल और शनैश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है, यह में क्या कह सकता हूँ? बकौल वात्य्यायन के, आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से, आज का पैसा अच्छा है कल के मोहर से।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित ‘सुमरिनी के मनके’ निबंध के ‘डेले चुन लो’ प्रसंग से अवतरित है। इसके लेखक पं० चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी हैं, जो हिंदी कथा-साहित्य के प्रमुख साहित्यकार हैं। इस गद्यांश में लेखक ने भारत में प्रचलित अंधविश्वासों का वर्णन किया है।

व्याख्या : लेखक का कहना है कि जैसे प्राचीन काल में राजपूत घरानों की लड़कियाँ रूप-साँद्य देखकर तथा यशगाथा सुनकर ही स्वयंवर करती थी वैसे वैदिक काल में हिंदू मिट्टी के ढेले हुआकर अपने-आप पत्नी को चुनते थे। इस व्यवस्था को देखकर आप कह सकते है कि जन्मजन्मांतर के साथी का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ना कैसी बुद्धिमानी है।

अपनी आँखों से जगह देखकर तथा अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के ढेलों पर विश्वास करना क्यों बुरा है और लाखों-करोड़ों दूर बैठे बड़े-बड़े मिट्टी और आग के ढेलों जिनमें मंगल, शनि और बृहस्पति की चाल की कल्पना का हिसाब करना क्यों अच्छा है ? लेखक कहता है कि इस बात को वेत्स्यायन के अनुसार कह सकते हैं कि आज का कबूतर कल के मोर से अच्छा है, आज का कम ज्ञानी कल के विद्वान से अच्छा हैं तथा आज का पैसा कल की मोहर से अच्छा है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 13 Summary - Sumirini Ke Manke Summary Vyakhya

विशेष :

  1. बाह्याडंबर तथा अंधविश्वासों का खंडन किया है।
  2. भाषा सरल, साधारण एवं खड़ी बोली है।
  3. व्यंग्य प्रधान शैली का समायोजन है।
  4. तत्सम, तद्भव, देशज एवं विदेशज शब्दावली का प्रयोग हुआ है।