Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 13 सुमिरिनी के मनके to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 13 सुमिरिनी के मनके

Class 12 Hindi Chapter 13 Question Answer Antra सुमिरिनी के मनके

(क) बालक बच गया – 

प्रश्न 1.
बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के कौन-कौन से प्रश्न पूछे गए ?
उत्तर :
बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के निम्नलिखित प्रश्न पूछे गए-

  1. धर्म के कौन-कौन से दस लक्षण हैं ?
  2. नौ रसों के उदाहरण दीजिए।
  3. चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान बताइए।
  4. तू आजीवन क्या करेगा ?
  5. इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम बताएँ ?

प्रश्न 2.
बालक ने क्यों कहा कि मैं यावर्ज्जन्म लोकसेवा करूँगा ?
उत्तर :
मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा, बालक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसको पहले से यही सिखाया गया था कि जब भी यह प्रश्न पूछा जाए तो उसका यही उत्तर देना। बालक ने अपनी बुद्धि से यह उत्तर नहीं दिया बल्कि उसने तो अपने स्वभाव के विपरीत रटा-रटाया उत्तर देते हुए ऐसा कहा।

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प्रश्न 3.
बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने पर लेखक ने सुख की साँस क्यों भरी ?
उत्तर :
बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने पर लेखक ने सुख की साँस ली क्योंकि बालक के उत्तर को सुनकर लेखक को यह तसल्ली मिली कि बालक की स्वाभाविक वृत्ति दम घुटने से बच गई। उसकी इच्छाओं का खून होने से बच गया। लेखक को लग रहा था कि बालक के मुख पर विलक्षण रंगों का परिवर्तन हो रहा था। उसके हृदय में कृत्रिम तथा स्वाभाविक भावों की लड़ाई चल रही थी। वह कृत्रिम एवं स्वाभाविक वृत्ति के मध्य घुट रहा था।

प्रश्न 4.
बालक की प्रवृत्तियों का गला घोटना अनुचित है? पाठ में ऐसा आभास किन स्थलों पर होता है कि उसकी प्रवृत्तियों का गला घोटा जाता है ?
उत्तर :
बालक की प्रवृत्तियों का गला घोटने का आभास अनेक स्थलों पर होता है। जब पाठशाला के वार्षिकोत्सव में उसके धर्म के लक्षण क्या हैं? नौ रसों के विषय में, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान आदि प्रश्न पूछे जाते हैं। उसकी इच्छा के बारे में पूछा जता है तो वह पहले से -ही रटा-रटाया उत्तर देता है कि मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा तो सारी भीड़ वाह-वाह करने लग गई। बालक के लड्डू माँगने पर सभी अध्यापक तथा उसका पिता निराश हो गए।

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प्रश्न 5.
‘बालक बच गया’। उसके बचने की आशा है क्योंकि “लड्डू की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मेरे काठ की अलमारी की सिर दुखानेवाली खड़खड़ाहट नहीं” कथन के आधार पर बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. बालक बहुत मासूम तथा निडर था।
  2. बालक ने निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी।
  3. वह स्पष्ट वक्ता था।
  4. उसका हृदय बहुत कोमल था।

(ख) घड़ी के पुर्ज़े – 

प्रश्न 1.
लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए ‘घड़ी के पुर्ज़े’ का दृष्टांत क्यों दिया है?
उत्तर :
लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए ‘ घड़ी के पुर्ज़’ का दृष्टांत दिया है क्योंकि घड़ी के पुर्जों को जैसे एक घड़ीसाज़ ही खोलकर, देखकर ठीक कर सकता है उन पुर्जों को कोई सामान्य व्यक्ति शायद ठीक न कर सके। घड़ीसाज़ को ही पुर्जों के बारे में उचित एवं पूरी जानकारी है। वह प्रत्येक पुर्जे का सूक्ष्म से सूक्ष्मतम निरीक्षण कर सकता है।

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प्रश्न 2.
धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज धर्माचार्यों का ही काम है, आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं ? धर्म संबंधी अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
हम इस कथन से पूर्णतः सहमत हैं कि धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्र्ज धर्माचायों का ही काम है। धर्म ही नहीं किसी भी विषय की पूर्ण जानकारी उस विषय का ज्ञाता, विद्वान ही दे पाता है। धर्माचार्य भी धर्म का विज्ञान होता है अतः वह ही उसका रहस्य जान सकता है। धर्म एक ऐसी संस्था है जिसकी आधारशिला पर समाज का भवन खड़ा होता है। धर्म ही हमें जीना सिखाता है, धर्म ही हमें प्रेम, प्यार, सहयोग, सद्भावना आदि गुण प्रदान करता है। धर्म मनुष्य को जोड़ता है, तोड़ता नहीं। जो धर्म समाज को सुसंगठित न कर ईष्य्या, द्वेष, वैर- भावनाएँ फैलाता है उसे धर्म नहीं कहा जा सकता। धर्म तो वही है जो समाज से ईष्ष्या-द्वेष आदि दुर्भावनाओं को दूर कर मनुष्य को जीना सिखाए। सर्वत्र सत्य प्रेम, सद्भावना की त्रिवेणी प्रवाहित कर दे।

प्रश्न 3.
घड़ी समय का ज्ञान कराती है। क्या धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध नहीं कराते?
उत्तर :
घड़ी जिस प्रकार समय का बोध कराती है, उसी प्रकार धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार भी अपने समय का बोध कराते हैं। घड़ी दिन-रात के प्रतिक्षण का बोध कराती है ठीक वैसे ही धार्मिक मान्यताएँ या विचार भी अपने समय की पूर्ण जानकारी देती हैं। मान्यताओं के आधार पर ही हमें समकालीन समय के सत्य, असत्य, पाप-पुण्य आदि का बोध होता है।

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प्रश्न 4.
घड़ीसाज़ी का इम्तिहान पास करने से लेखक का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
घड़ीसाज़ी का इम्तिहान पास करने से लेखक का तात्पर्य यह है कि वह व्यक्ति अपने कार्य का पूर्ण ज्ञाता हो गया है। अब वह अपने विषय के बारे में पूर्ण जानकारी रखता है। अतः वह घड़ी के प्रत्येक पुर्ज़े को खोलकर उसका अच्छी तरह से निरीक्षण-परीक्षण कर सकता है तथा घड़ी को ठीक भी कर सकता है। उसे अब घड़ी के पुर्ज़ों का ज्ञान है।

प्रश्न 5.
धर्म अगर कुछ विशेष लोगों वेदशास्त्रज, धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे-पुजारियों की मुट्ठी में है तो आम आदमी और समाज का उससे क्या संबंध होगा ? अपनी राय लिखिए।
उत्तर :
आम आदमी का सीधा संबंध समाज से है और वे एक-दूसरे को गहरा प्रभावित करते है। धर्म आम आदमी को मानसिक सहारा देता है, उसे जीने की राह दिखाता है और आपसी संबंधों को दृढ़ता का आधार प्रदान करता है। धर्म की प्राप्ति उसे संस्कारों के रूप में होती है जो पीढ़ियों से पक कर अपने भीतर न जाने कितने गुणों को समेटे होते हैं। हर धर्म इनसान को इनसानियत का पाठ पढ़ाता है। कोई भी धर्म मानव को पशु बनने के लिए प्रवृत्त नहीं करता। वह लालच और हिंसा से कोसों दूर रहता है।

यदि धर्म कुछ विशेष लोगों की मुट्ठी में हो तो उनके एकाधिकार के कारण धर्म की व्यापकता संकुचित हो जाएगी। आम आदमी की निकटता से धर्म का आधार बढ़ता है और धर्म की निकटता से आम आदमी के स्वरूप में विशालता आती है। दो-चार धर्म के ठेकेदारों के हाथ में धर्म की पताका समाज के लिए कदापि हितकर नहीं हो सकती। धर्म की परिभाषा है-धारणाद् धर्मम इत्याहुः अर्थात जिसको धारण करते हैं, वह धर्म है। धर्म को अपनी इच्छा से धारण किया जाता है न कि दूसरों के बहकावे, लालच या भय के धारण। वर्तमान में धर्म का स्वरूप बदलता जा रहा है। इसका संबंध आम आदमी और समाज में ही रहना चाहिए न कि स्वयं को धर्माचार्य समझने वाले इसे कुछ विशेष लोगों के हाथ में।

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प्रश्न 6.
जहाँ धर्म पर कुछ मुट्ठीभर लोगों का एकाधिकार धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है वहीं धर्म का आम आदमी से संबंध उसके विकास एवं विस्तार का द्योतक है। तर्कसहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
धर्म एक व्यापक विषय है जिसके रहस्य को कोई नहीं जान पाया। धर्म पर कुछ लोगों का एकाधिकार होगा तो वह धर्म के अर्थ को संकुचित कर देता है लेकिन आम आदमी से उसका संबंध होने पर उसका अर्थ अत्यंत विस्तृत हो जाता है। जिस प्रकार बल्ब का प्रकाश जितने सीमित दायरे में बंद होता है तो वह उसमें ही रोशनी करता है लेकिन यदि उसी बल्ब को एक विशाल कक्ष या खुले आकाश में जलाया जाए तो उसका प्रकाश विस्तृत क्षेत्र में फैल जाएगा। उसी प्रकार दो-चार लोगों के हाथ की कठपुतली बनकर धर्म का अर्थ संकुचित होगा लेकिन जब वही धर्म का सामान्य व्यक्ति से संबंध हो जाएगा तो उसका अर्थ अत्यंत व्यापक बन जाएगा।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वेदशास्त्रश धर्माचार्यों का ही भाव है कि घड़ी के पुर्ज्ते जानें, तुम्हें इससे क्या ?
(ख) ‘अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर जो घड़ीसाज़ी का इम्तिहान पास कर आया है, उसे तो देखने दो।’
(ग) ‘हमें तो धोखा देता है कि परदादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्ज्रें सुधारना, तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।’
उत्तर :
(क) प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि वेदशास्त्रों को जानने वाले धर्म के आचायों का कार्य है कि वे घड़ी के पुर्ज़ं के बारे में जानकारी प्राप्त करें, तुम्हें इससे क्या अभिप्राय, लेखक का कहने का अभिप्राय है कि धर्म के रहस्य को जानने का कार्य केवल धर्म के आचायों का है उससे सामान्य व्यक्ति का कोई मतलब नहीं है।

(ख) इस पंक्ति का आशय है कि धर्म के रहस्य जानने पर प्रतिबंध लगाने वाले धर्माचार्यों को संबोधन कर लेखक कहता है कि धर्माचार्यों । तुम अनाड़ी व्यक्ति के हाथ में चाहे घड़ी मत दो लेकिन जो घड़ीसाज़, घड़ी को ठीक करने की परीक्षा पास कर आया है उसे तो इस घड़ी को देखने दो, उसे तो इजाज़त दो कि वह घड़ी को देख सके। धर्म के रहस्य को जान सके।

(ग) प्रस्तुत पंक्ति में लेखक अज्ञानी मनुष्यों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि हमें तो प्राय: यह धोखा होता है कि तुम अपने परदादा की घड़ी जेब में डालकर फिरते हो, वह जेब में पड़े-पड़े बंद हो गई है लेकिन ‘न तुम्हें उसमें चाबी देना आता है और न ही तुम उसके पुर्ज्रे सुधार सकते हो। तुम्हारे अंदर इतनी शक्ति या बुद्धि नहीं कि तुम स्वयं इस घड़ी को ठीक कर सको लेकिन फिर भी तुम उसे दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।

(ग) ढेले चुन लो – 

प्रश्न 1.
वैदिक काल में हिंदुओं में कैसी लॉटरी चलती थी जिसका ज़िक्र लेखक ने किया है ?
उत्तर :
वैदिक काल में हिंदुओं में नर पहेली पूछता था और नारी को उसका रहस्य जानना पड़ता था। स्नातक पढ़कर स्नान करके तथा माला पहनकर नर किसी बेटी के बाप के घर पहुँच जाता था वह उसे गौ भेंट करता था पीछे वह कन्या के सामने कहीं सात, कहीं कम या ज्यादा कुछ मिट्टी के ढेले रख देता था। जिनमें से एक लड़की को उठाने हेतु कहा जाता था। नर इस मिट्टी के बारे में जानता था कि वह कहाँ और किस जगह की मिट्टी है कन्या नहीं। यही लाटरी की पहेली थी।

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प्रश्न 2.
‘दुर्लभ बंधु’ की पेटियों की कथा लिखिए।
उत्तर :
‘दुर्लभ बंधु’ बाबू हरिश्चंद्र द्वारा रचित नाटक है। इसकी नायिका पुरश्री है। इसमें पुरश्री के सामने सोने, चाँदी और लोहे की तीन पेटियाँ हैं। तीनों पेटियों में से एक में उस नायिका की प्रतिमूर्ति है। स्वयंवर के लिए शर्त है कि जो भी आए वह उनमें से एक को चुने। अकड़बाज़ सोने को चुनता है और उलटे पाँव दौड़ जाता है, लोभी को चाँदी की पिटारी अँगूठा दिखाती है। सच्चा प्रेमी लोहे को छूता है और घुड़दौड़ का पहला इनाम प्राप्त करता है।

प्रश्न 3.
‘जीवन साथी’ का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं ?
उत्तर :
”जीवन साथी’ का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के निम्नलिखित फल प्राप्त होंगे-

  1. वेदि/मिट्टी का ढेला उठाने पर संतान वैदिक पंडित होगी।
  2. गौ-शाला की मिट्टी का ढेला चुनने पर संतान पशुओं की धनी होगी।
  3. खेत की मिट्टी छूने पर संतान ज़मींदार होगी।
  4. मसान की मिट्टी चुनने पर बहुत बड़ा अशुभ होगा। यदि वह नारी विवाहित हो जाए तो घर मशान हो जाए तथा वह जन्मभर जलाती रहेगी।
  5. यदि एक नर के सामने मसान की मिट्टी छू ले तो उस कन्या का कभी विवाह न होगा।
  6. किसी दूसरे नर के सामने वह वेदि का ढेला उठा ले तो विवाह हो जाए।

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प्रश्न 4.
मिट्टी के ढेलों के संदर्भ में कबीर की साखी की व्याख्या कीजिए –
पत्थर पूजे हरि मिलें तो मैं पूजू पहार।
इससे तो चक्की भली, पीस खाय संसार॥
उत्तर :
कबीर जी बाह्याडंबरों तथा अंध-विश्वासों का खंडन करते हुए कहते हैं कि हे मनुष्यो ! यदि पत्थर की पूजा करने से प्रभु की प्राप्ति होती है तो मैं विशाल पर्वत की पूजा कर लेता हूँ। शायद इससे अति शीघ्र प्रभु मिल जाएँ। अरे मूर्खो ! इस पत्थर पूजा से तो चक्की अच्छी है तुम उसकी पूजा करो जो संसार को अनाज पीसकर भोजन खिलाती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ‘अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों करोड़ों कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।’
(ख) ‘आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से, आज का पैसा अच्छा है कल की मोहर से। आँखों देखा बेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।’
उत्तर :
(क) प्रस्तुत गद्यांश का आशय है कि अपनी आँखों से जगह को देखकर तथा अपने ही हाथ से चुने हुए मिट्टी के ढेलों पर विश्वास करना क्यों बुरा है तथा लाखों-करोड़ों मीलों की दूरी पर बैठे हुए बड़े-बड़े मिट्टी के ढेलों पर मंगल, शनि और बृहस्पति ग्रह की कल्पना करना तथा उसके हिसाब का विश्वास करना क्यों अच्छा है अर्थात हम इन मिट्टी के ढेलों पर इस प्रकार की कल्पना क्यों करते हैं ?
(ख) उपर्युक्त गद्यांश का आशय है कि कल के मोर से आज का कबूतर अच्छा है, आनेवाले कल के अति महान विद्वान से आज का कम ज्ञानी अधिक अच्छा है। लेखक कहता है कि कल की मोहरों से आज का कम पैसा श्रेष्ठ है। फिर लाखों मीलों के तेजस्वी पिंड से आँखों देखा मिट्टी का ढेला श्रेष्ठ ही होना चाहिए।

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योग्यता-विस्तार –

(क) बालक बच गया :

प्रश्न 1.
बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों के विकास में ‘रटना’ बाधक है-कक्षा में संवाद कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी / अपने कक्षा अध्यापक / अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
ज्ञान के क्षेत्र में ‘रटने’ का निबंध है किंतु क्या आप रटने में विश्वास करते हैं। अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
हम ‘रटने’ में विश्वास नहीं करते। ज्ञान एक सागर है जिसकी शान को पाया नहीं जा सकता। अतः रटने से कभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि रटना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका फल केवल अल्प अवधि तक ही मिल सकता है। दूसरा इससे बच्चे की बुद्धि का विकास भी रुक जाता है। रटने की वृत्ति के कारण वह कभी अन्य सामग्री को देखना भी न चाहेगा। अत: बच्चों को चाहिए कि वे रटने की प्रक्रिया को पूर्ण रूप से त्याग कर अपनी बुद्धि के सहज प्रयोग से ज्ञान अर्जित करें ताकि वह ज्ञान कुछ समय के लिए नहीं बल्कि आजीवन काम आए और सुरक्षित रहे।

(ख) घड़ी के पुर्ज़े – 

प्रश्न 1.
कक्षा में धर्म संसद का आयोजन कीजिए।
उत्तर :
कक्षाध्यापक / अध्यापिका की सहायता से बच्चे स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
धर्म संबंधी अपनी मान्यता पर लेख / निबंध लिखिए।
उत्तर :
धर्म एक ऐसी संस्था है जो समाज को सुशिक्षित, सुसंस्कृत बनाती है। समाज को जीना सिखाती है। वह समाज में बुरी परंपराओं, कुविचारों, दुर्भावनाओं का खंडन करके सद्विचारों को फैलाती है। धर्म वह है जो समाज को जोड़ता है, तोड़ता नहीं। जो धर्म समाज को तोड़ने का कार्य करता है, समाज में ईर्था, द्वेष, घृणा आदि बुरी भावनाएँ फैलाता है उसे धर्म की संजा नहीं दी जा सकती है।

धर्म तो वही है जो संपूर्ण सुष्टि का हित-चिंतन करता है; जो सारी मानव जाति की भलाई करता है; जो किसी प्रकार की संकुचित विचारधारा या परिधि में नहीं आता। धर्म का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। अनादिकाल से अनेक ऋषि-मुनि, धर्माचार्य इसके रहस्य को जानने के लिए तत्पर हैं लेकिन कोई भी इसके रहस्य को नहीं जान पाया। वस्तुत: धर्म एक ऐसी विचारधारा है जो मानव-मात्र का हित करती है जो प्राणी-मात्र को जीने का ढंग सिखलाती है।

प्रश्न 3.
धर्म का रहस्य जानना सिर्फ़ धर्माचार्यों का काम नहीं, कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जानने की कोशिश कर सकता है। अपनी राय दे सकता है-टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
यह सत्य है कि धर्म का रहस्य जानना सिर्फ धर्माचार्यों का काम नहीं बल्कि समाज को कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जान सकता है तथा अपनी व्यक्तिगत राय भी दे सकता है। धर्म किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है बल्कि उस पर समाज के प्रत्येक व्यक्ति का बराबर हक है। केवल धर्म के आचार्यों तक ही इस रहस्य को जानने की सीमा नहीं है बल्कि समाज का कोई भी व्यक्ति इसके रहस्य को जान सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह धर्म के बारे में अपने विचार, अपनी राय प्रस्तुत करे। वह जब चाहे धर्म संबंधी राय पेश करता है।

(ग) ढेले चुन लो –

प्रश्न 1.
समाज में धर्म संबंधी अंध-विश्वास पूरी तरह व्याप्त है। वैज्ञानिक प्रगति के संदर्भ में धर्म, विश्वास, और आस्था पर निबंध लिखिए।
उत्तर :
आज का युग विज्ञान का युग है लेकिन इस वैज्ञानिक युग में भी अंध-विश्वास, बाहयाडंबर पूरी तरह व्याप्त हैं। वर्तमान युग में धर्म के ठेकेदारों ने धर्म को संकुचित कर उसकी परिधि को सीमित कर दिया है। जहाँ धर्म को मानवता और समाज-कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए वहीं धर्म आज अंध-विश्वासों, ढकोसलों में बँधकर रह गया है। स्वार्थ सिद्धि के लिए अनेक लोगों ने धर्म को नवीन रूप प्रदान कर दिया है। आज समाज की लहर जिस अंधविश्वास की ओर दौड़ रही है वही उसकी अटूट आस्था और विश्वास बन गया है। आस्था और विश्वास के कारण समाज का अंध-विश्वास दृष्टिगोचर नहीं होता। पत्थर की मूर्ति का दूध पीना, मूर्ति का रंग बदलना, मूर्ति की आँख से आँसू बहना, पेड़ों में से दूध निकलना, समुद्र का मीठा हो जाना आदि अंधविश्वास समाज में आम हो गए हैं।

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प्रश्न 2.
अपने घर में या आस-पास दिखाई देनेवाले किसी रिवाज या अंध-विश्वास पर एक लेख लिखिए।
उत्तर :
प्रतिदिन हमारे समाज में कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है। प्रायः देखा जाता है कि जब भी कोई विशेष त्योहार या अवसर आते हैं तो मंदिरों, गुरुद्वारों, मसजिदों को सजाया-सँवारा जाता है। बड़े-बड़े रेडियो, लाउड-स्पीकर दूर-दूर तक लगा दिए जाते हैं। लाखों की संख्या में भीड़ एकत्रित होती है भगवान को भोग लगाया जाता है। बहुत मात्रा में प्रभु को भोग लगाया जाता है लेकिन जो भोग प्रभु को लगाया जाता है वह वहीं पड़ा-पड़ा सड़ जाता है, किसी के कोई काम नहीं आता।

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प्रश्न 1.
‘बालक बच्च गया’ निबंध का मुख्य प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘बालक बच गया’ निबंध के माध्यम से लेखक ने बालक की शिक्षा ग्रहण करने की सही उम्र का बोध कराया है। वे कहते हैं कि हमें व्यक्ति के मानस के विकास के लिए शिक्षा को प्रस्तुत करना चाहिए शिक्षा के लिए मनुष्य को नहीं। हमारा लक्ष्य है-मनुष्य और मनुष्यता को बचाए रखना। यदि मनुष्य बचा रहेगा तो वह समय आने पर शिक्षित किया जा सकता है। लेखक ने यहाँ पर बताने का प्रयास किया है कि शिक्षा हमें बच्चे पर लादनी नहीं चाहिए बल्कि उसके मन में शिक्षा के प्रति रुचि जागृत करनी चाहिए।

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प्रश्न 2.
‘दुर्लभ बंधु’ नामक नाटक के माध्यम से लेखक ने कौन-कौन सी पेटियों की चर्चा की है तथा किस पेटी में पुरश्री की तसवीर थी ?
उत्तर :
‘दुर्लभ बंधु’ नामक नाटक बाबू हरिश्चंद्र द्वारा रचित है। इसके माध्यम से लेखक ने सोने, चाँदी तथा लोहे की कुल तीन पेटियों की चर्चा की है। इन तीनों पेटियों में से ‘पुरश्री’ की तसवीर लोहे की पेटी में होती है।

प्रश्न 3.
‘ढेले चुन लो’ निबंध के माध्यम से लेखक ने किन लोक-विश्वासों में प्रचलित मान्यताओं का चित्रण है?
उत्तर :
‘ढेले चुन लो’ निबंध के माध्यम से लेखक ने निम्नांकित लोक-विश्वासों में प्रचलित मान्यताओं का चित्रण किया है।
(i) वैदिक काल में हिंदुओं में चलनेवाली लाटरी का वर्णन किया है जिसमें नर-नारी को पहेली पूछता था तथा नारी को उसका रहस्य बताना पड़ता था। वर बेटी के बाप के पास पहुँच जाता है। वह उसे गौ भेंट करता है। कन्या के पीछे मिट्टी के ढेले रखकर कन्या से यह पूछा जाता है कि इन ढेलों में कहाँ-कहाँ की मिट्टी है।
(ii) प्राचीनकाल में राजपूत घरानों में लड़कियाँ रूप देखकर तथा यश-गाथा सुनकर ही स्वयंवर करती थीं।
(iii) वैदिक काल में हिंदू ढेले छुपाकर स्वयं पत्नीवरण करते थे।

प्रश्न 4.
‘बालक बच गया’ लघु निबंध के माध्यम से लेखक ने क्या प्रेरणा दी है ?
उत्तर :
‘बालक बच गया’ लघु निबंध के माध्यम से लेखक ने यह प्रेरणा दी है कि हमें मनुष्य के मानस विकास के लिए शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। मनुष्य का लक्ष्य मनुष्य और मुुष्यता को बचाए रखना है, इसलिए हमें सदैव मानवता को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

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प्रश्न 5.
मनुष्य का वास्तविक लक्ष्य क्या है? क्यों ?
उत्तर :
मनुष्य का वास्तविक लक्ष्य मनुष्यता की रक्षा करना है क्योंकि मानवता की सुरक्षा में ही मानव का अस्तित्व निहित है। मानवता ही मानवीय जीवन का मूलाधार है, तो आधार के बिना हम मानवीय जीवन की कल्पना कैसे कर सकते हैं।

प्रश्न 6.
प्रधानाध्यापक के पुत्र की क्या इच्छा थी ?
उत्तर :
प्रधानाध्यापक के पुत्र की इच्छा आजीवन लोक-सेवा करने की थी।

प्रश्न 7.
‘घड़ी के पुर्ज़े’ का मूलाभाव अथवा प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘घड़ी के पुर्ज़े’ चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ द्वारा रचित एक लघु निबंध है। इसमें लेखक ने धर्म के रहस्यों की जानकारी होने पर धर्म उपदेशकों द्वारा लगाए प्रतिबंधों को घड़ी के दृष्टांत द्वारा अत्यंत रोचकतापूर्ण भाव से प्रस्तुत किया है। यदि घड़ी के पुर्ज़ों के बारे में किसी एक व्यक्ति को जानकारी नहीं होती तो दूसरा व्यक्ति उसे अवश्य ठीक कर देता है। वैसे ही धर्म के रहस्यों को कोई धर्म का जानकार तो अवश्य ही बता सकता है।

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प्रश्न 8.
वैदिक काल में वर-कन्या के भविष्य का फ़ैसला कैसे होता था ?
उत्तर :
वैदिक काल में विवाह के लिए एक ऐसी लॉटरी चलती थी जिसमें अनेक स्थानों की मिट्टी के ढेलों में चुनना पड़ता था। यह मिट्टी वेदी, गौशाला, खेत, मकान आदि स्थानों की होती थी। इसी मिट्टी के आधार पर ही वर-कन्या के भविष्य का फ़ैसला होता था।

प्रश्न 9.
‘आज का कबूतर अच्छा है, कल के मोर से, आज का पैसा अच्छा है कल के मोहर से’ पंक्ति में निहित व्यंग्यार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने अतीत की अपेक्षा वर्तमान को अधिक श्रेष्ठ एवं महान बताया है। उनका मानना है कि वर्तमान समय का कम ज्ञानी, बुद्धिमान मनुष्य भी कल के विद्वान तथा बुद्धिमान मनुष्य से श्रेष्ठ एवं महान है।

प्रश्न 10.
‘दुर्लभ बंधु’ के लेखक कौन हैं ? इसकी नायिका का क्या नाम है ?
उत्तर :
‘दुर्लभ बंधु’ के लेखक बाबू हरिश्चंद्र है। इसकी नायिका का नाम पुरश्री है।

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प्रश्न 11.
पुरश्री के सामने कितनी पेटियाँ थीं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पुरश्री के सामने तीन पेटियाँ थीं। उनमें से एक सोने की, दूसरी चाँदी की तथा तीसरी लोहे की थी। इन तीनों पेटियों में से किसी एक में पुरश्री की प्रतिमूर्ति थी।

प्रश्न 12.
स्नातक बेटी के बाप के यहाँ क्या-क्या कार्य करके पहुँचा ?
उत्तर :
स्नातक विद्या पढ़कर, नहा-धोकर, माला पहनकर तथा सेज पर जोग होकर बेटी के बाप के यहाँ पहुँचा।

प्रश्न 13.
पुरश्री के स्वयंवर में तीनों पेटियों का चयन कौन, कैसे करता है ?
उत्तर :
पुरश्री के स्वयंवर में अभिमानी और अकड़बाज़ पुरुष सोने को चुनता है और उलटे पैरों लौट जाता है। लोभी की पेटी को चाँदी की पिटारी उसे अँगूठा दिखाती है। सच्चा प्रेमी लोहे को चुनता है और वही घुड़दौड़ का पहला इनाम पाता है।

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प्रश्न 14.
मनचाहा इनाम पाने की बात को सुनकर बालक किस प्रकार खुश हुआ ? और उसने क्या माँगा ?
उत्तर :
मनचाहा इनाम पाने की बात सुनकर बालक अत्यंत आनंदित हो उठा। उसके मुख पर विलक्षण रंगों का प्रदर्शन हो रहा था। उसके हृदय में कृत्रिम और स्वाभाविक संघर्ष चल रहा था जो उसकी आँखों में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। अंततः उसको नकली अर्थात कृत्रिम स्वभाव की अपेक्षा स्वाभाविकता की विजय हुई और उसने विस्मित आँख से लड्डू माँगा।

प्रश्न 15.
‘बालक बच गया’ शीर्षक मनके में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करते हुए बताइए कि ऐसी शिक्षा-पद्धति से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर
‘बालक बच गया’ निबंध के माध्यम से लेखक ने बालक की शिक्षा-ग्रहण करने की सही उम्र का बोध कराया है। वे कहते हैं कि हमें व्यक्ति के मानस के विकास के लिए शिक्षा को प्रस्तुत करना चाहिए शिक्षा के लिए मनुष्य को नहीं। हमारा लक्ष्य है, मनुष्य और मनुष्यता को बचाए रखना। यदि मनुष्य बचा रहेगा तो वह समय आने पर शिक्षित किया जा सकता है। लेखक ने यहाँ पर बताने का प्रयास किया है कि शिक्षा हमें बच्चे पर लादनी नहीं चाहिए बल्कि उसके मानस में शिक्षा की रूचि जागृत करनी चाहिए।

Class 12 Hindi Antra Chapter 13 Question Answer सुमिरिनी के मनके

प्रश्न 16.
‘ढेले चुन लो’ शीर्षक मनके में उल्लेखित विवाह प्रथाओं पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
‘ढेले चुन लो’ निबंध के माध्यम से लेखक ने लोक विश्वासों में निहित अंधविश्वासी मान्यताओं पर चोट की है। शेक्सपीयर के प्रसिद्ध नाटक ‘मर्चेंट ऑफ़ वेनिस’ में पोर्शिया ने अपने वर को बहुत सुंदर रीति से चुना है। हरिश्चंद्र के ‘दुर्लभ बंधु’ में पुरश्री के सामने सोने, चाँदी और लोहे की तीन पेटियों में हर कोई स्वयंवर के लिए अपनी इच्छा से पेटी चुनता था लेकिन सच्चे प्रेमी ने ही लोहे को चुना था। उसे ही पहला इनाम मिला।

वैदिक काल के हिंदुओं में ऐसी ही लॉटरी चलती थी जिसमें अनेक स्थानों की मिट्टी के ढेलों में से चुनना पड़ता था। वेदि, गौशाला, खेत, मचान आदि स्थानों की मिट्टी होती थी। इसी मिट्टी को चुनने के आधार पर ही वर-कन्या के भविष्य का फ़ैसला होता था। राजपूतों की लड़कियों के समान वैदिक काल के हिंदू वर ढेले छूकर स्वयं पत्नीवरण करते थे। वात्स्यायन जी का मानना है कि आज का कबूतर कल के मोर से अच्छा है। संत कबीर जी ने भी बाहय आडंबरों का खुलकर खंडन किया।