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प्रेमघन की छाया-स्मृति Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 12 Summary

प्रेमघन की छाया-स्मृति – रामचंद्र शुक्ल – कवि परिचय

जीवन-परिचय – रामचंद्र शुक्ल हिंदी के महान आलोचक, इतिहासकार और साहित्य चिंतक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले के अंगोना नामक गाँव में सन 1884 ईं० को हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा मिर्ज्जापुर के जुबली स्कूल में हुई थी। उन्होंने हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, बांग्ला, संस्कृत भाषाओं का गहन अध्ययन किया। सन 1901 ई० में उन्होंने मिशन हाई स्कूल से फाइनल की परीक्षा पास की।

उन्होंने प्राचीन तथा नवीन साहित्य का गंभीर अध्ययन किया। कुछ समय तक वे मिर्जापुर के मिशन हाई स्कूल में चित्रकला के अध्यापक रहे। सन 1905 में कारी नागरी प्रचारिणी सभा में ‘हिंदी शब्द सागर’ के सहायक संपादक के पद पर नियुक्त हुए। कुछ समय तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रहे। सन 1937 ई० में हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए और इसी पद पर कार्य करते हुए सन 1941 ई० को उस महान आत्मा का देहांत हो गया।

रचनाएँ – रामचंं शुक्ल बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार माने जाते हैं। उन्होंने कविता,

अनुवाद, निबंध, आलोचना, इतिहास आदि पर अपनी सफल लेखनी चलाई है। इनकी सर्वाधिक ख्याति निबंध-लेखक तथा आलोचक के रूप में हुई है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैंहिंदी साहित्य का इतिहास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, चितामणि (चार खंड), रस मीमांसा, जायसी ग्रंथावली, भ्रमरगीत सार आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के महान रचनाकार माने जाते हैं। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

i. मौलिकता – विषय की मॉलिकता शुक्ल जी के निबंधों की प्रमुख विशेषता है। उन्होंने विज्ञान, दर्शन, इतिहास, भाषा, साहित्य और समाज आदि विषयों का प्रतिपादन मौलिक रूप में किया है। बुद्धि और हदय का जैसा अद्भुत सामंजस्य इनमें दिखाई देता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।

ii. गंभीर विवेचना – गंभीर विवेचना शुक्ल के गद्य-साहित्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। शुक्ल जी ने प्रत्येक विषय का गंभीर विवेचन किया है। इस विशेषता के कारण ही इनका साहित्य प्रभावपूर्ण, मनोरंजक और आकर्षक बन गया है। उनके निबंधों में गहन अनुभूति है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 12 Summary - Premghan Ki Chhaya Smriti Summary Vyakhya

iii. कथन का चमत्कारपूर्ण प्रयोग – शुक्ल किसी भी बात को अत्यंत चमत्कारपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करते हैं। इससे उनके द्वारा कही बात पाठक को अपनी ओर अनायास ही प्रभावित कर लेती है। वे एक अध्यापक की तरह उदाहरण देकर अपनी बात प्रकट करते हैं। इसी चमत्कारपूर्ण योजना के कारण ही उनके साहित्य को रास की अनुभूति होती है।

iv. व्यंग्य-विनोद – शुक्ल जी ने अपने गद्य साहित्य को रोचक एवं मनोरंजकपूर्ण बनाने के लिए व्यंग्य-विनोद का प्रयोग किया है। उन्होंने हास्य-व्यंग्य प्रधान शैली में सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक जीवन तथा अन्य क्षेत्रों में फैली बुराइयों पर करारा प्रहार किया है।

v. भाषा – रामचंद्र शुक्ल ने साहित्यिक खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने अपने निबंधों में हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्द्ध फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है। उनका शब्द-चयन अत्यंत व्यापक है। उनका वाक्य-विन्यास अत्यंत सुंदर है। उन्होंने अपनी भाषा को भावों के अनुकूल ढालने का सफल प्रयास किया है।

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vi. शैली – शुक्ल जी की गद्य शैली विवेचनात्मक है। जिसमें विचारशीलता, सूक्म तर्क-योजना तथा सहदयता का योग है। इसके साथ-साथ उन्होंने अपने निबंधों के अनुरूप समास-शैली, व्यास-शैली, चित्रात्मक-शैली आदि का प्रयोग भी किया है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता और प्रवाहमयता उत्पन्न हो गई है। हास्य-व्यंग्य के साथ-साथ दार्शनिकता का पुट भी विद्यमान है। उनके लेखन में विचारों की दृढ़ता, निर्भीकता और आत्मविश्वास का अद्भुत सामंजस्य दिखाई देता है। वस्तुत: रामचंद्र शुक्ल जी हिंदी साहित्य की अनुपम निधि हैं। अनुभूति और अभिव्यंजना की दृष्टि से उसका साहित्य उच्चकोटि का है। उनका हिंदी साहित्य में अनूठा स्थान है।

Premghan Ki Chhaya Smriti Class 12 Hindi Summary

‘प्रेमघन की छाया स्मृति’ एक संस्मरणात्मक निबंध है, जिसमें रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रति अपने प्रारंभिक रुझानों का बहुत रोचक वर्णन किया है। बाल्यावस्था में ही शुक्ल जी ने भारतेंदु एवं उनके मंडल के रचनाकारों विशेषकर प्रेमघन के सानिध्य में साहित्यकार के रूप में आकार ग्रहण किया, उसकी मनोहारी झाँकी यहाँ प्रस्तुत की है। लेखक के पिता जी पुरानी हिंदी के प्रमुख प्रेमी तथा फ़ारसी के श्रेष्ठ विद्वान थे। फ़ारसी का हिंदी के साथ मेल करने में उन्हें बहुत आनंद मिला करता था।

घर में रात को प्राय: रामचरितमानस तथा रामचंंद्रिका को पढ़ा करते थे। आधुनिक हिंदी साहित्य में भारतेंदु के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे। जब उनका तबादला मिर्ज्ञापुर हुआ तब लेखक की आयु केवल आठ वर्ष की थी। लेखक की भारतेंदु के प्रति विशेष आदर भावना थी। वे उनके ‘सत्यहरिश्चंद्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र तथा भारतेंदु में कोई भेद नहीं मानते थे। मिर्जापुर में ही भारतेंदु जी के मित्र उपाध्याय बड्रीनारायण चौधरी भी रहते थे। एक दिन मित्र मंडली के साथ लेखक चौधरी जी से मिलने उनके आवास की ओर गए। उनके घर का बरामदा सघन लताओं से बका हुआ था।

एक मित्र के संकेत से लताओं के मध्य कंधे पर बिखरे बालों से युक्त एक मूर्ति दिखाई पड़ी। लेखक पं० केदारनाथ के पुस्तकालय से पुस्तक लेकर पढ़ा करते थे। एक बार लेखक को उनके पिता ने किसी व्यक्ति के साथ काशी बारात में भेजा। वही घूमते हुए उनकी भेंट पं० केदारनाथ पाठक से हुई जो भारतेंदु जी के घर से निकलकर आए थे। पाठक जी लेखक की भावुकता से अत्यंत प्रसन्न हुए। 16 वर्ष की अवस्था में लेखक को हिंदी-प्रेमियों की अच्छी मंडली मिल गई थी, जिनमें काशीप्रसाद, भगवानदास, बद्रीनाथ गौड़, उमाशंकर द्विवेदी मुख्य थे। मंडली में प्रायः हिंदी के नए-पुराने लेखकों की चर्चा होती रहती थी।

मंडली की बातचीत में प्रायः ‘निस्संदेह’ शब्द आया करता था। लेखक के आस-पास वकील, छोटे वकील, एजेंद, अफ़सर आदि रहते थे। लेखक ने अपने पिता को एक मुसलमान जज की सूरत देखते ही बता दिया था कि उन्हें हिंदी का अच्छा शौक है। चौधरी साहब एक अच्छे रईस थे। उनसे लेखक का परिचय अच्छी तरह से हो गया था। बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ के यहाँ वसंत-पंचमी, होली आदि अवसरों पर समारोह होते थे। उनके कंधे तक बाल लटकते रहते थे और एक बच्चा उनके पीछे-पीछे पान की तश्तरी लिए घूमता रहता था।

उनके मुख से निकलनेवाली प्रत्येक बात में एक विलक्षण वक्रता होती थी। बातचीत का ढंग निराला होता था। नौकरों के साथ उनके संवाद सुनने लायक होते थे। वे एक मिलनसार व्यक्ति थे। वे सड़क पर चलते-चलते कविता बनाते चला करते थे। वे हास्य-व्यंग्यपूर्ण बातें किया करते थे। अपने नौकरों के साथ भी सहज भाव से हास्य-प्यंग्य भाव उन्हें प्रिय थे। उपाध्याय जी नागरी को भाषा मानते थे और यही लिखा करते थे। उनका मानना था कि नागरी अपभ्रंश से जो शिष्ट लोगों की भाषा विकसित हुई, वही नागरी कहलाई।

Class 12 Hindi Antra Chapter 12 Summary - Premghan Ki Chhaya Smriti Summary Vyakhya

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • ज्ञाता – विद्वान, जानकार
  • चित्ताकर्षक ढंग से – हुदय को आकर्षित करने वाले ढंग से
  • अपूर्व – अनूठी, अनोखी
  • अगुआ हुए – आगे चले
  • लताओं के जाल से आवृत्त – बेलों के समूह से ढका हुआ
  • लता-प्रतान – बेल का फैलाव या विस्तार
  • नूतन – नए, आधुनिक
  • मैत्री – मित्रता, दोस्ती
  • परिणत हो गया – बदल गया
  • मुख्तार – छोटे वकील, एजेंट
  • वाकिफ़ – जानना
  • तश्तरी – एक प्रकार का पात्र, थाली, प्लेट
  • संवाद – बातचीत, वार्तालाप
  • फलाहार – फलों का भोजन
  • परिपाटी – रीति, परंपरा
  • एकत्र – इकट्ठा, जमा
  • अवस्था – आयु
  • संचार होना – पैदा होना
  • इशारा – संकेत
  • ओझल – अदृश्य
  • कुतूहल – जिज्ञासा
  • समवयस्क – समान आयु के
  • अमलों की – अफ़सरों का समूह
  • सूरत – दशा, परिस्थिति
  • रईस – धनी, अमीर
  • कवित्त – एक प्रकार का छंद
  • वक्रता – टेढ़ापन
  • अपश्रंश – प्राकृत भाषाओं के बाद का रूप, जिनसे उत्तर भारत की आधुनिक आर्य भाषाओं की उत्पत्ति हुई।

प्रेमघन की छाया-स्मृति सप्रसंग व्याख्या

1. उसके पहिले ही से भारतेंदु के संबंध में एक अपूर्व मधुर भावना मेरे मन में जगी रहती थी। ‘सत्य हरिश्वंड्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंड्र और कवि हरिश्चंड्र में मेरी बाल-बुद्धि कोई भेद नहीं कर पाती थी। ‘हरिश्चंड्र’ शब्द से दोनों की एक मिली-जुली भावना एक अपूर्व माधुर्य का संचार मेरे मन में करती थी।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ नामक पाठ से अवतरित है। इसमें लेखक ने हिंदी के साहित्यकार भारतेंदु ‘हरिश्चंद्र’ के प्रति मन की अपूर्व भावना एवं श्रद्धा का चित्रण किया है।

व्याख्या : लेखक का कथन है कि बचपन से ही भारतेंदु जी के प्रति उसके मन में एक सम्मानजनक एवं अनोखी मधुर भावना विराजमान रहती थी। उनके द्वारा रचित ‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र और कवि हरिश्चंद्र में उसकी बालक-बुद्धि कोई अंतर नहीं कर पाती थी। लेखक को बचपन से ही भारतेंदु हरिश्चंद्र राजा हरिश्चंद्र के समान महान लगते थे। ‘हरिश्चंद्र’ शब्द से कवि तथा राजा दोनों की मिली-जुली भावना उसके मन में अनूठी मधुरता का संचार करती थी।

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विशेष :

  1. लेखक ने भारतेंदु हरिश्चंंद्र जी के प्रति श्रद्धा-भाव प्रकट किए हैं।
  2. भाषा खड़ी बोली सरल तथा बोधगम्य है।
  3. संस्कृत के तत्सम-तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है।

2. ऊपर का बरामदा सघन लताओं के जाल से आवृत था। बीच-बीच में खंभे और खुली जगए दिखाई पड़ती थी। उसी ओर देखने के लिए मुझसे कहा गया। कोई दिखाई न पड़ा। सड़क पर कई चक्कर लगे। कुछ देर पीछे एक लड़के ने उँगली से ऊपर की ओर इशारा किया। लता-प्रतान के बीच एक मूर्ति खड़ी दिखाई पड़ी। दोनों कंधों पर बाल बिखरे तुए ब्ये। एक हाथ खंभे पर था। देखते-ही-देखते यह मूर्ति दृष्टि से ओझल हो गई। बस यही पहली झाँकी धी।

प्रसंग : यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक ने प्रेमघन के घर के बरामदे में सजी लताओं तथा उनके मध्य खड़े प्रेमषन का मनोहारी चित्रण किया है।

व्याख्या : शुक्ल जी कहते हैं कि प्रेमघन के घर का ऊपर का बरामदा घनी बेलों के समूह से ढका हुआ था। इन बेलों के बीच-बीच में बरामदे में खड़े खंभे तथा खुली जगह दिखाई पड़ती थी। लेखक कहता हैं कि उनके मित्रों ने उनसे उसी तरक देखने के लिए कहा। उनके देखने पर वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया। सड़क पर लेखक और उनके मित्रों ने कई चक्कर लगाए। कुछ देर बाद एक लड़के ने उँगली से दूसरी ओर संकेत किया। बेलों के फैलाव के बीच एक मूर्ति दिखाई पड़ी। उसके दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे उसका हाथ खंभे पर था। देखते-ही-देखते यह मूर्ति आँखों से ओझल हो गई। बस यही उनकी सबसे पहली झाँकी थी अर्थात यही उनका पहला साक्षात्कार था।

Class 12 Hindi Antra Chapter 12 Summary - Premghan Ki Chhaya Smriti Summary Vyakhya

विशेष :

  1. लेखक ने प्रेमघन जी के प्रथम साक्षात्कार के आकर्षक चित्र प्रस्तुत किए हैं।
  2. सहज सरल खड़ी बोली का प्रयोग है।
  3. चित्रत्मक शैली का वर्णन है।
  4. तत्सम, तद्भव शब्दावली का प्रचुर प्रयोग हुआ है।

3. मैं बड़ी चाह और कुतूहल की दृष्टि से कुछ देर तक उस मकान की ओर न जाने किन-किन भावनाओं में लीन होकर देखता रहा। पाठक जी मेरी यह भायुकता देख बड़े प्रसन्न हुए और बहुत दूर मेरे साथ बातचीत करते हुए गए। भारतुंदु जी के मकान के नीचे का यह हादय-परिचय बहुत शीच्र गहरी मैत्री में परिणत हो गया।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित ‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ में से अवतरित है। इसमें लेखक ने पं० केदारनाथ पाठक जी के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों का वर्णन किया है।

Class 12 Hindi Antra Chapter 12 Summary - Premghan Ki Chhaya Smriti Summary Vyakhya

व्याख्या : लेखक का कहना है कि वे बड़ी इच्छा और जिजासा की दुष्टि से कुछ समय तक उस मकान की ओर न जाने किन-किन भावनाओं में लीन होकर देखते रहे। अर्थात लेखक पाठक जी के मकान की ओर बड़ी इच्छा और जिज्ञासापूर्ण दृष्टि से देख रहे थे। उस समय उसके मन में अनेक भावनाएँ पैदा हो रही थीं।

लेखक कहता है कि पाठक जी उसकी यह भावुकता देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा बहुत दूर तक उनके साथ बातचीत करते हुए गए। भारवेंदु जी के मकान के नीचे का यह हार्दिक परिचय बहुत जल्दी ही घनिष्ठ मित्रता में बदल गया। लेखक का तात्पर्य है कि प्रथम मुलाकात में ही केदारनाथ जी मेरे मित्र बन गए।