Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 12 प्रेमघन की छाया-स्मृति to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 12 प्रेमघन की छाया-स्मृति

Class 12 Hindi Chapter 12 Question Answer Antra प्रेमघन की छाया-स्मृति

प्रश्न 1.
लेखक ने अपने पिता जी को किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर :
लेखक ने अपने पिता जी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. लेखक के पिता जी फ़ारसी के श्रेष्ठ विद्वान थे।
  2. वे पुरानी हिंदी-कविता के बड़े प्रेमी थे।
  3. उन्हें फ़ारसी कवियों की उक्तियों को हिंदी कवियों की उक्तियों के साथ मेल करने में बड़ा आनंद आता था।
  4. वे रात को प्राय: घर के सब लोगों को एकत्र करके ‘रामचरितमानस’ और ‘रामचंद्रिका’ को बड़े चित्ताकर्षक ढंग से पढ़ा करते थे।
  5. आधुनिक हिंदी साहित्य में भारतेंदु जी के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे।
  6. वे बहुत मिलनसार कर्तव्यपरायण व्यक्ति थे।

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प्रश्न 2.
बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी ?
उत्तर :
बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंधों में एक अपूर्व मधुर भावना संचरित रहती थी। उनकी बुद्धि ‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र तथा भारतेंदु में कोई भेद नहीं कर पाती थी। वे भारतेंदु जी को सत्य हरिश्चंद्र के समान महान समझते थे इसलिए हरिश्चंद्र शब्द उनके मन में श्रद्धा भाव तथा अपूर्व माधुर्य का संचार करता था।

प्रश्न 3.
उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी ?
उत्तर :
एक दिन लेखक अपनी मित्र-मंडली के साथ डेढ़ मील का सफ़र तय कर ‘प्रेमघन’ जी के मकान के सामने खड़े हो गए। नीचे का बरामदा खाली था, लेकिन ऊपर का बरामदा सघन लताओं से ढका हुआ था। बीच-बीच में खंभे और खाली जगह दिखाई पड़ती थी। उसी ओर मुझसे देखने के लिए कहा गया लेकिन वहाँ कोई दिखाई न दिया। कुछ देर बाद एक लड़के ने उँगली से ऊपर की ओर इशारा किया। वहाँ लताओं के समूह के बीच एक मूर्ति खड़ी दिखाई पड़ी। जिसके दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे। उसका एक हाथ कंधे पर था। इस प्रकार लेखक ने प्रेमघन की पहली झलक देखी।

प्रश्न 4.
लेखक का हिंदी-साहित्य के प्रति झुकाव किस तरह बढ़ता गया ?
उत्तर :
लेखक के पिता बहुत बड़े विद्वान थे। अत: बचपन से ही उनका प्रभाव उनपर पड़ा। उनकी बचपन से ही साहित्य में रुचि हो गई थी। बचपन से ही अपने-अपने पिता के मुख से रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका को चित्ताकर्षक ढंग से सुनते थे। उनके पिता भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक भी उन्हें सुनाया करते थे। जिससे लेखक के मन में उनके प्रति अपूर्व भावना पैदा हो गई थी। उनकी साहित्यकारों के प्रति अटूट श्रद्धा थी। वे प्रेमघन, केदारनाथ पाठक, उमाशंकर द्विवेदी आदि साहित्यकारों से मिला करते थे। धीरे-धीरे वे साहित्य-मंडली के साथ बैठने लग गए। इस प्रकार लेखक का हिंदी-साहित्य के प्रति झुकाव बढ़ता गया।

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प्रश्न 5.
निस्संदह शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का जिक्र किया है ?
उत्तरं :
लेखक की मित्रमंडली में प्रायः बोलचाल की हिंदी में बातें हुआ करती थी, जिसमें ‘निस्संदेह’ शन्द का प्रयोग किया जाता था। जिस स्थान पर वह रहता था वहाँ अधिकतर वकील, मुख्तार तथा कचहरी के अफ़सरों की बस्ती थी। वे लोग उर्दू भाषी थे और मित्रमंडली प्राय: बोलचाल की हिंदी का प्रयोग करती थी । इसलिए उन लोगों के कानों में इनकी बोली कुछ अनोखी लगती थी। इसी से उन लोगों ने इनका नाम ‘निस्संदेह’ रख दिया था।

प्रश्न 6.
पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है। ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर पाठ में अनेक रोचक घटनाओं का उल्लेख है उनमें से कुछ प्रमुख हैं –

(i) एक दिन कई लोग बैठे बातचीत कर रहे थे कि इतने में वहाँ एक पंडित जी आ गए। चौधरी साहब ने पूछा कि उनका क्या हाल है ? पंडित जी बोले-‘कुछ नहीं’ आज एकादशी थी। कुछ जल खाया है और चले आ रहे हैं। उनसे पूछा कि जल ही खाया है कि कुछ फलाहार भी पिया है।

(ii) एक दिन चौधरी साहब के एक पड़ोसी उनके यहाँ आए। उनसे एक प्रश्न किया कि साहब ! एक शब्द मैं प्रायः सुनता हूँ लेकिन उसका ठीक अर्थ समझ नहीं आया। आखिर घनचक्कर का क्या अर्थ है ? उसके क्या लक्षण हैं ? पड़ोसी महाशय बोले ! वाह ! यह क्या मुश्किल बात है। एक दिन रात को सोने से पहले कागज़-कलम लेकर सवेरे से रात तक जो-जो काम किए हों, उन सबको लिखकर, पढ़ जाइए।

(iii) लेखक अपनी लेखक मंडली के साथ बातचीत किया करते थे। बातचीत सामान्य हिंदी में हुआ करती थी, जिसमें निस्संदेह आदि शब्द आया करता था। जिस स्थान पर लेखक रहता था वहाँ अधिकतर वकील, मुख्तार, कचहरी के अफ़सर रहते थे। वे उर्दू भाषी लोग थे। अतः उनके कानों में सामान्य हिंदी अनोखी लगती थी। इसी से उन लोगों ने लेखक मंडली का नाम निस्संदेह रख दिया था।

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प्रश्न 7.
“इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतुहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।” यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यह कथन बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ के संदर्भ में कहा गया है, क्योंकि लेखक उन्हें पुरानी चीज़ के समान पुराने विचारों का आदमी समझा करता था। जब लेखक ने उनको देखा तो उनके विचार बदल गए, क्योंकि चौधरी एक बहुत धनी व्यक्ति थे। वसंतपंचमी, होली आदि अवसरों पर उनके यहाँ खूब नाचरंग तथा उत्सव हुआ करते थे। उनकी प्रत्येक अदा से रियासत और तबीयतदारी झलकती थी।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के किन-किन पहलुओं को उजागर किया है?
उत्तर :
प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पहलुओं को उजागर किया है –

  1. चौधरी साहब लंबे-लंबे बाल रखते थे जो उनके दोनों कंधों पर बिखरे रहते थे।
  2. उन्हें होली, वसंत-पंचमी आदि त्योहार मनाने का खूब शौक था इसीलिए उनके यहाँ प्रत्येक त्योहार पर नाचरंग और उत्सव हुआ करते थे।
  3. उनकी प्रत्येक अदा से रियासत और तबीयतदारी अमीरी झलकती थी।
  4. उनके मुख से निकलने वाली प्रत्येक बात में विलक्षण वक्रता रहती थी।
  5. उनकी बातचीत का ढंग उनके लेखों के ढंग से एकदम निराला था।
  6. उनके संवाद बहुत रोचक और रसीले थे।
  7. वे नौकरों के साथ भी सम्मानजनक व्यवहार करते थे।

प्रश्न 9.
समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में कौन-कौन से लेखक मुख्य थे?
उत्तर :
समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में श्रीमान काशीप्रसाद जायसवाल, बा० भगवानदास हालना, पंडित बड्रीनाथ गौड़, पंडित उमाशंकर द्विवेदी आदि लेखक मुख्य थे।

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प्रश्न 10.
‘भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय परिचय बहुत शीघ्र गहरी मित्रता में परिणत हो गया।’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि मैं ‘लेखक’ एक बार किसी आदमी के साथ काशी आए। वे घूमते-घूमते चौखंभा की ओर जा निकले। वहीं एक घर से उन्हें पंडित केदारनाथ पाठक निकलते दिखाई पड़े। पाठक जी को प्राय: वे पुस्तकालय में देखा करते थे। इसलिए वे लेखक को देखकर वहीं रुक गए। बातचीत से मालूम हुआ कि जिस घर से वे निकले थे वह भारतेंदु जी का घर था। लेखक बड़ी चाह और कुतुहल की दृष्टि से कुछ देर तक उस मकान की ओर अनेक भावनाओं में लीन होकर देखता रहा। पाठक जी इस भावुकता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा दूर तक उनके साथ बातचीत करते चले गए। लेखक तथा पाठक के इस छोटे से सफ़र में ही हार्दिक संबंध बन गए। वहाँ लेखक को ऐसा प्रतीत हुआ कि भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय परिचय बहुत शीघ्र एक मित्रता में परिणत हो गया।

भाषा-शिल्प –

प्रश्न 1.
हिंदी-उर्दू के विषय में लेखक के विचारों को देखिए। आप इन दोनों को एक ही भाषा की दो शैलियाँ मानते हैं या भिन्न भाषाएँ?
उत्तर :
ये दोनों एक ही भाषा की दो शैलियाँ हैं। हिंदी भाषा में ही उर्दू भाषा के शब्द मिश्रित हैं।

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प्रश्न 2.
चौधरी जी के व्यक्तित्व को बताने के लिए पाठ में कुछ मज़ेदार वाक्य आए हैं-उहें छाँटकर उनका संदर्भ लिखिए।
उत्तर :

  1. लता प्रतान के बीच एक मूर्ति दिखाई पड़ी।
  2. दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे।
  3. उनकी हर अदा से रियासत और तबीयतदारी टपकती थी।
  4. एक छोटा-सा लड़का पान की तश्तरी लिए पीछे-पीछे लगा हुआ है।
  5. जो बातें उनके मुँह से निकलती थीं, उनमें एक विलक्षण वक्रता रहती थी।
  6. उनकी बातचीत का ढंग उनके लेखों के ढंग से एकदम निराला था।

प्रश्न 3.
पाठ की शैली की रोचकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
‘र्रेमघन की छाया-स्मृति’ रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित एक संस्मरणात्मक निबंध है। इसमें लेखक ने हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति अपने प्रांभिक रुझानों का बहुत रोचक वर्णन किया है। लेखक ने इस पाठ में अत्यंत रोचक शैली का भावपूर्ण प्रयोग किया है। कहीं-कहीं हास्य एवं व्यंग्य का पुट भी विद्यमान है लेकिन उसमें भी लेखक ने रोचकता का समावेश किया है। उन्होंने लेखक-मंडली एवं प्रेमघन के अनेक ऐसे चित्र उपस्थित किए हैं, जिसमें उन्होंने वर्णनात्मक् तथा चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया है।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
भारतेंदु मंडल के प्रमुख लेखकों के नाम और उनकी प्रमुख रचनाओं की सूची बनाकर स्पष्ट कीजिए कि आधुनिक हिंदी गद्य के विकास में इन लेखकों का क्या योगदान रहा?
उत्तर :

  1. भारतेंदु हरिश्चंद् र- सत्य हरिश्चंद्र, एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न, फूलों का गुच्छा, प्रेम सरोवर, प्रेम माधुरी।
  2. बालकृष्ण भट्ट – चंद्रोदय, आत्मगौरव, काल चक्र का चक्र, एक अनोखा स्वप्न।
  3. प्रेमघन – मन की लहर, जीर्ण जनपद, मयंक महिमा, आनंद अरुणोदय।
  4. मैथिलीशरण गुप्त – काबा और कर्बला, नहुष, सिद्धराज, जयद्रथ वध, भारत-भारती।
  5. प्रताप नारायण मिश्र – तुव्यन्ताम।
  6. अंबिका दत्त व्यास – सुकवि सतसई।
  7. श्रीधर पाठक – भारतगीत, उजड़ग्राम, एकांतवासी भोगी।

हिंदी-गद्य के विकास में योगदान-आधुनिक हिंदी-गद्य के विकास में उपर्युक्त लेखकों का महान योगदान रहा है। भारतेंदु जी आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य के महान लेखक माने जाते हैं। इन्होंने न केवल अपने आप बल्कि अपने साथियों को भी लेखन हेतु प्रेरित किया। इसके साथ-साथ बालकृष्ण भट्ट, प्रेमघन मिश्र, पाठक आदि लेखकों ने भी हिंदी गद्य साहित्य को शीर्ष पर पहुँचाया है। इन्होंने गद्य साहित्य को उत्तरोत्तर विकास की ओर उन्मुख किया।

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प्रश्न 2.
आपको जिस व्यक्ति ने सर्वाधिक प्रभावित किया, उसके व्यक्तित्व की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3.
यदि आपको किसी साहित्यकार से मिलने का अवसर मिले तो आप उनसे क्या-क्या पूछना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर :
यदि किसी साहित्यकार से मिलने का अवसर मिले हम उनसे पूछना चाहेंगे कि आपका शुभ नाम क्या है। आप कहाँ रहते हैं ? आपकी कितनी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और कितनी होने वाली हैं ? आप किन विषयों पर ज़्यादा लेखनी चलाते हो ? आप कौन-सी भाषा में अधिक लिखना पसंद करते हो ? आदि। हम उनसे ये बातें इसलिए पूछना चाहेंगे क्योंकि हम उनके बारे में विस्तृत जानकारी लेना चाहते हैं जिससे हम उसके बारे में सब कुछ जान सकें और फिर साहित्यकार एक सामाजिक प्राणी भी होता है।

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प्रश्न 4.
संस्मरण साहित्य क्या है ? इसके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
संस्मरण शब्द का शाब्दिक अर्थ है-सम् + स्मरण अर्थात सम्यक स्मरण। अत: किसी व्यक्ति के विगत जीवन का सम्यक स्मरण प्रस्तुत करना ही संस्मरण कहलाता है। संस्मरण साहित्य का संबंध भूतकाल से होता है। इसमें जिस व्यक्ति के जीवन की हमें उचित जानकारी होती है। उसी का लेखा-ज़ोखा प्रस्तुत किया जाता है। इसमें संस्मरण लेखक व्यक्ति विशेष से जुड़ा होता है। उसे उस व्यक्ति के जीवन की यथार्थपूर्ण जानकारी होती है।

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प्रश्न 1.
‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ निबंध का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित एक संस्मरणात्मक निबंध है। इसमें लेखक ने हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति अपने जीवन के प्रारंभिक रुझानों का बहुत रोचक वर्णन किया है। उनका बचपन साहित्यिक परिवेश से भरापूरा था। इसलिए साहित्य के प्रति उनकी बचपन से ही रुचि थी। बाल्यावस्था में ही किस प्रकार भारतेंदु एवं उनके लेखक मंडल के अन्य रचनाकारों विशेषत: प्रेमघन के सान्निध्य में शुक्ल जी के अंदर साहित्यकार रूप जागृत होता है। यहाँ उसकी अत्यंत मनोहर झाँकी झलकती है। इसमें इस बात का वर्णन भी है कि प्रेमघन के व्यक्तित्व ने शुक्ल तथा उनकी समवयस्क मंडली को किस तरह प्रभावित किया तथा हिंदी के प्रति किस प्रकार आकर्षित किया। इसके साथ ही किसी रचनाकार के व्यक्तित्व-निर्माण से संबंधित पहलुओं का चित्ताकर्षक चित्रण हुआ है।

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प्रश्न 2.
रामचंद्र शुक्ल की कीर्ति का अक्षय-स्रोत ग्रंथ कौन-सा है और क्यों ? वह पहले किस रूप में लिखा गया था ?
उत्तर :
रामचंद्र शुक्ल की कीर्ति का अक्षय स्रोत ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ है। इसे हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास ग्रंथ माना जाता है। इस रूप में शुक्ल की यह हिंदी साहित्य को अनुपम देन है। इसे उन्होंने पहले ‘हिंदी शब्द सागर’ की भूमिका के रूप में लिखा जो बाद में परिष्कृत और संशोधित होकर पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ।

प्रश्न 3.
उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन नागरी को क्या मानते थे ? उन्होंने नागरी की कौन-सी परिभाषा दी है ?
उत्तर :
उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ नागरी को भाषा मानते थे। नागरी के बारे में उनका विचार था कि नागर अपभ्रंश से जो शिष्ट लोगों की भाषा विकसित हुई, वही नागरी कहलाई। इसीलिए वे मिर्ज़ापुर न लिखकर मीरज़ापुर लिखा करते थे।

प्रश्न 4.
प्रेमघन के स्वभाव का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
प्रेमघन एक बहुत धनी व्यक्ति थे। वे पुराने विचारों के पक्षधर नहीं थे, बल्कि उनकी प्रत्येक अदा से अमीरी झलकती थी। वे अत्यंत मिलनसार, स्पष्ट वक्ता, हास्य-व्यंग्यकार थे। उनकी प्रत्येक बात में विलक्षण वक्रता होती थी। उनकी बातचीत का ढंग बहुत अनोखा था। वे अपने नौकरों के साथ भी हास्यपूर्ण ढंग से संवाद किया करते थे।

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प्रश्न 5.
लेखक को सोलह वर्ष की आयु में किनकी मंडली मिली ? उनके नाम बताएँ।
उत्तर :
लेखक को सोलह वर्ष की आयु में लेखकों की मंडली मिल गई थी। इन लेखकों में काशी प्रसाद, भगवानदास, बब्रीनाथ गौड़, उमाशंकर द्विवेदी प्रमुख थे।

प्रश्न 6.
मिर्ज़ापुर आने पर शुक्ल जी को क्या सूचना मिली ?
उत्तर :
मिर्ज़ापुर आने पर शुक्ल जी को सूचना मिली कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के एक मित्र यहाँ रहते हैं। वे हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि हैं। उनका नाम उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी है।

प्रश्न 7.
शुक्ल जी के पिता किसके ज्ञाता थे? वे रात को प्रायः क्या पढ़ा करते थे ?
उत्तर :
शुक्ल जी के पिता फ़ारसी के अच्छे ज्ञाता थे। वे रात को घर में पुन: ‘रामचरितमानस’ और ‘रामचंद्रिका’ चित्ताकर्षक ढंग से पढ़ा करते थे। – घर के सभी लोग एकत्रित होकर उनकी वाणी को सुना करते थे।

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प्रश्न 8.
लेखक की बाल-बुद्धि किनमें कोई भेद नहीं कर पाती ? क्यों ?
उत्तर :
लेखक की बाल-बुद्धि ‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक के नायक हरिश्चंद्र तथा कवि हरिश्चंद्र में कोई भेद नहीं कर पाती क्योंकि जिस प्रकार ‘सत्य हरिश्चंद्र’ के नायक हरिश्चंद्र सत्यनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार व्यक्ति थे। कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र को भी कवि सत्यनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार मानते हैं।

प्रश्न 9.
सब-जज ने शुक्ल को प्रथम बार मिलने पर कैसे पहचाना ? टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
शुक्ल के मुहल्ले में एक मुसलमान सब-जज आए। एक दिन शुक्ल के पिता जी उनके साथ खड़े-खड़े बातचीत कर रहे थे। इसी बीच शुक्ल जी वहाँ से गुज़रे तो उनके पिता जी ने उनका परिचय देते हुए कहा कि इन्हें हिंदी पढ़ने-लिखने का बड़ा शौक है। यह सुनकर जज साहब बोले कि वह तो इन्हें सूरत देखते ही पहचान गया। इस प्रकार जज साहब शुक्ल को पहली बार सूरत देखकर ही पहचान गए थे।

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प्रश्न 10.
चौधरी साहब एक अच्छे हिंदुस्तानी रईस थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
चौधरी साहब के घर पर वसंत-पंचमी, होली इत्यादि अवसरों पर खूब नाच-रंग और उत्सव हुआ करते थे। उनकी हर एक अदा से रईसी झलकती थी। उनके बाल कंधों तक लटकते रहते थे। जब वे इधर-उधर टहलते थे तो एक छोटा-सा लड़का पान की तश्तरी लेकर उनके पीछे-पीछे चलता था। उनके मुख से निकली बातों में विलक्षण वक्रता होती थी। उनकी बातचीत का ढंग एकदम निराला था। वे अपने नौकरों से भी अद्भुत संवाद करते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि चौधरी साहब एक अच्छे हिंदुस्तानी रईस थे।

प्रश्न 11.
‘उर्दू बेगम’ के रचयिता कौन थे ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘उर्दू बेगम ‘ पुस्तक के रचयिता पं० लक्ष्मीनारायण चौबे, बा० भगवानदास हालना, भगवानदास मास्टर थे। यह एक बड़ी ही हास्य-विनोदपूर्ण पुस्तक थी। इसमें उर्दू की उत्पत्ति, प्रचार-प्रसार आदि का वृत्तांत एक कहानी के ढंग से चित्रित किया गया था।

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प्रश्न 12.
उपाध्याय किस भाषा के पक्षधर थे ?
उत्तर :
उपाध्याय नागरी को भाषा मानते थे। वे बराबर नागरी भाषा ही लिखते थे। इस संबंध में उनका विचार था, “नागर अपभ्रंश से जो शिष्ट लोगों की भाषा विकसित हुई वह नागरी कहलाई।”

प्रश्न 13.
शुक्ल जी ने की शैली अत्यंत विलक्षण एवं अनूषी थी। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
शुक्ल जी ने विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसमें विचारशीलता, सूक्षता, सहृदयता का अनूठा समन्वय है। उन्होंने अपने निबंधों के अनुरूप समास-शैली, व्यास-शैली, चित्रात्मक शैली आदि का प्रयोग भी किया है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग के कारण इनकी शैली में रोचकता एवं प्रवाहमयता का गुण विद्यमान है। इनकी शैली में हास्य-व्यंग्य के साथ-साथ दार्शनिकता का पुट भी विद्यमान है। इनकी शैली में विचारों की दृढ़ता, निर्भीकता, निडरता, आत्मविश्वास का अदुभुत सामंजस्य दृष्टिगोचर होता है। संभवतः शुक्ल जी की शैली अत्यंत विलक्षण एवं अनूठी थी।

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प्रश्न 14
रामचंद्र शुक्ल की मित्रमंडली का नाम निस्संदेह किन्होंने रखा और क्यों ? इस संदर्भ में हिंदी-उर्दू के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
लेखक की मित्रमंडली में प्राय: बोलचाल की हिंदी में बातें हुआ करती थी, जिसमें ‘निस्संदेह’ शब्द का प्रयोग किया जाता था। जिस स्थान वह रहता था वहाँ अधिकतर वकील, मुख्तार तथा कचहरी के अफ़सरों की बस्ती थी। वे लोग उर्दू-भाषी थे और उनकी मित्रमंडली प्राय: बोलचाल की हिंदी का प्रयोग करती थी। इसलिए उन लोगों के कानों में इनकी बोली कुछ अनोखी लगती थी। इसी से उन लोगों ने इनका नाम निस्संदेह रख दिया था।

हिंदी हमारी मातृभाषा है और उर्दू एक विदेशी भाषा है लेकिन हिंदी में उर्दू की पर्याप शब्दावली का प्रयोग होता है। हमारा देश बहुत लंबे समय तक मुस्लिम बादशाहों के अधीन रहा और उसी कारण हिंदी में उर्दू शब्दावली का सहज रूप से मिल जाना स्वाभाविक ही है।