Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 1 देवसेना का गीत, कार्नेलिया का गीत to develop Hindi language and comprehension skills among the students.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 1 देवसेना का गीत, कार्नेलिया का गीत

Class 12 Hindi Chapter 1 Question Answer Antra देवसेना का गीत, कार्नेलिया का गीत

(क) देवसेना का गीत :

प्रश्न 1.
“मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई ” – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से देवसेना अपने अतीत पर दृष्टिपात करते हुए कह रही है कि वह आजीवन अपने हृदय में कोमल भावनाओं को सँजोती रही है। उसका यह कार्य भ्रमवश किया हुआ ही था क्योंकि जिसे उसने अपने द्वार पर आने पर ही लौटा दिया था उसके लिए कोमल कल्पनाएँ करना व्यर्थ ही है। इसलिए उसे अंत में उन संचित भावनाओं को भीख में ही लुटाना पड़ रहा है। वह अपनी जीवनभर संचित कोमल भावनाओं की पूँजी को सुरक्षित नहीं रख सकी।

प्रश्न 2.
कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने आशा को बावली इसलिए कहा है क्योंकि मनुष्य जीवन में अनेक प्रकार की आशाएँ लगाए रहता है कि वह यह करेगा, ऐसा करेगा, वैसा करेगा परंतु उससे कुछ हो नहीं पाता। उसकी अधिकांश आशाएँ अधूरी रह जाती हैं अथवा पूरी हो नहीं हो पातीं। वह बार-बार आशाएँ पूरी न होने पर भी आशा लगाकर बैठा रहता है कि अब नहीं तो कल तो उसकी आशा पूरी हो ही जाएगी। इस प्रकार निरंतर आशा के सहारे जीना देखकर ही कवि ने आशा को बावली कहा है। देवसेना ने भी अनेक आशाएँ लगाई थीं परंतु उसकी भी कोई आशा पूरी नहीं हुई थी।

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प्रश्न 3.
“मैंने निज दुर्बल ‘मैंने निज दुर्बल ……. होड़ लगाई” इन पंक्तियों में ‘दुर्बल पद बल’ और ‘हारी होड़’ में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
अथवा
इस गीत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
देवसेना जीवनभर अनेक विसंगतियों का सामना करती रही है। उसके भाई का सारा परिवार हूणों द्वारा मार दिया गया। वह अकेली ही राष्ट्र सेवा में लगी रही। इसके लिए उसने अपने प्यार को भी त्याग दिया। उसका सांसारिक विपत्तियों का अकेले सामना करना ऐसा है जैसे वह प्रलयकालीन स्थितियों का अपने दुर्बल पैरों से मुकाबला कर रही हो। उसने प्रलयकालीन परिस्थितियों में जूझने की जो शर्त लगाई उसे पूरा करने का उसने पूरा प्रयत्न किया परंतु इस शर्त में उसे पराजित ही होना पड़ा। वह संसार की कुटिल चालों का सामना नहीं कर सकी।

प्रश्न 4.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
(क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया ………. तान उठाई।
(ख) लौटा लो ………… लाज गँवाई।
उत्तर :
(क) देवसेना मानती है कि स्वप्न थक गए हैं परंतु आसक्ति अभी भी मिटी नहीं है। उसके कानों में विहाग का गीत गूँजता रहता है। तत्सम-प्रधान शब्दावली है। ‘श्रमित स्वप्न’ उनींदी श्रुति में लाक्षणिक सौंदर्य दृष्टव्य है। अनुप्रास अलंकार है। शृंगार रस के वियोग पक्ष का मार्मिक चित्रण किया गया है। माधुर्यगुण तथा गेयता विद्यमान है। स्थिति विशेष का चित्रात्मक निरूपण किया गया है।

(ख) देवसेना को लगता है कि वह अब और अधिक संताप सहन नहीं कर सकेगी। इसलिए वह निष्ठुर संसार को कहती है कि उसने उसे जो कुछ दिया है उसे वह लौटा ले। वह तो अपने मन की लज्जा की भी रक्षा न कर सकने के कारण उसे भी खो बैठी है। तत्सम- प्रधान लाक्षणिक शब्दावली है। देवसेना के हृदय की वेदना व्यक्त हुई है। शृंगार के वियोग पक्ष का मार्मिक चित्रण किया गया है। मानवीकरण अलंकार के द्वारा भावों का मानवीकरण किया गया है।

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प्रश्न 5.
देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं?
उत्तर :
देवसेना के भाई बंधुवर्मा और उसके सारे परिवार को हूणों ने मार दिया था। भाई की मृत्यु के बाद देवसेना अकेली ही भाई के स्वप्नों को पूरा करने के लिए राष्ट्र सेवा में लग जाती है। वह स्कंदगुप्त को प्रेम करती है परंतु स्कंदगुप्त विजया की ओर आकर्षित है। इसलिए उसे प्रेम में निराशा ही मिलती है। बाद में स्कंदगुप्त उससे प्रणय निवेदन करता है तो वह उसे स्वीकार नहीं करती। इस प्रकार दोनों ही बार वह प्रेम में निराश ही रहती है। राष्ट्र की सेवा करने में भी वह आक्रमणकारियों का सामना नहीं कर पाती। वह आजीवन विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते-करते हार जाती है। उसके दुर्बल पग प्रलय को पराजित नहीं कर पाते।

(ख) कार्नेलिया का गीत :

प्रश्न 1.
‘कार्नेलिया का गीत ‘ कविता में प्रसाद ने भारत की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर :
‘कार्नेलिया का गीत’ कविता जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक ‘चंद्रगुप्त’ से अवतरित है। इस गीत में यूनान के सम्राट सिकंदर के महान उत्तराधिकारी सेल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया भारत-भूमि के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो जाती है और उसके मुख से यह गीत प्रस्फुटित हो जाता है। वास्तव में यह देश मधुमय है। हमारा देश राग एवं प्रेम की भूमि है। भारत वह देश है जहाँ अपरिचित व्यक्ति को भी आश्रय मिलता है।

भारत देश के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कार्नेलिया कहती है कि हमारा देश वह स्थान है जहाँ लालिमामयी आभा से सुंदर तरु शिखाएँ नाचती हुई दिखाई पड़ती हैं। प्रातः काल सर्वत्र सूर्य की किरणें छा जाने से वृक्षों की सुंदर शाखाएँ लहलहाती दिखाई पड़ती हैं। कमल के फूलों के परागकोश सूर्य की किरणों के कारण जगमगा उठते हैं। हरियाली पर मंगलमय कुमकुम बिखरा हुआ है जिसमें जीवन का संचार दिखाई देता है। समस्त प्रकृति सचेतन दिखाई पड़ती है। यहाँ के पक्षी इंद्रधनुष की भाँति रंग-बिरंगे पंखों को पसारे हुए शीतल पवन के सहारे इसे अपना प्यारा नीड़ समझकर इसी ओर मुख करके उड़ते हैं अर्थात ठंडी-ठंडी हवा में अपना प्रिय नीड़ समझकर रंग-बिरंगे पक्षी उड़ते हैं।

कार्नेलिया आगे कहती है कि यहाँ के लोगों की आँखों में वर्षा ऋतु के बादलों की तरह करुणा का जल भरा रहता है अर्थात यहाँ के जन-जन के नेत्रों में दूसरे के प्रति करुणा और स्नेह के भाव रहते हैं। यहाँ पर असीम आकाश में बहती हुई वायु की तरंगें किनारा पाकर टकराती हैं अर्थात जहाँ चारों ओर शीतल वायु बहती रहती है। प्रातः काल के समय रातभर जागते रहने के कारण तारे जब कुछ खुमारी में मस्त हुए से ऊँघने लगते हैं तो यह उषा सुंदरी सूर्य रूपी स्वर्ण से जन-जीवन पर सुख-सौंदर्य और उत्साह बरसाने लगती है। तात्पर्य यह है कि उषा देवी प्रातःकाल सूर्य रूपी स्वर्णिम घट लेकर पश्चिमी सागर में से भरकर उड़ेलती है और चारों ओर सुख एवं प्रकाश का प्रसार करती है।

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प्रश्न 2.
‘उड़ते खग’ और ‘बरसाती आँखों के बादल’ में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है ?
उत्तर :
‘उड़ते खग’ के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि भारतवर्ष में सबको विचरण करने की स्वतंत्रता है। इसलिए यहाँ प्रत्येक प्राणी को अपने घर जैसी सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। सब आनंद और सुख से रहते हैं।
‘बरसाती आँखों के बादल’ के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करता है कि यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति के नेत्रों में दूसरे के प्रति करुणा और स्नेह के भाव भरे रहते हैं। इसलिए यहाँ के लोगों की आँखों में वर्षा ऋतु के बादलों की तरह करुणा का जल भरा रहता है।

प्रश्न 3.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
‘हेम कुंभ ले उषा सवेरे – भरती दुलकाती सुख मेरे
मंदिर ऊँघते रहते जब – जगकर रजनी भर तारे।’ में निहित प्राकृतिक सौंदर्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
इन पंक्तियों में कवि ने प्रभातकालीन प्राकृतिक वातावरण का आकर्षक वर्णन किया है। कवि को ऐसा लगता है मानो उषा रूपी सुंदरी स्वर्णिम कलश से सुबह – सुबह मेरे समस्त सुख उड़ेल देती है जबकि सारी रात जागने के कारण तारे मस्ती में ऊँघने लगते हैं। उषा और तारों का मानवीकरण किया गया है। रूपक, अनुप्रास अलंकार है। भाषा तत्सम प्रधान, लाक्षणिक तथा प्रतीकात्मक है। संगीतात्मक का गुण विद्यमान है। प्रभातकालीन वातावरण का आलंकारिक एवं आकर्षक वर्णन अत्यंत सजीवता के साथ चित्रित किया गया है। उषा स्वर्णिम घट प्रभातकालीन लालिमा से बिखेर रही है।

प्रश्न 4.
‘जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि भारतवर्ष राग, माधुर्य और प्रेम से युक्त देश है। यहाँ आने पर सर्वथा अनजान एवं अपरिचित व्यक्ति को भी यहाँ के लोगों से पूर्ण स्नेह और आश्रय प्राप्त होता है। यहाँ के लोग सेवाभाव से युक्त हैं तथा अपरिचितों को भी पूरा आदर, सम्मान तथा प्रेम देते हैं।

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प्रश्न 5.
प्रसाद शब्दों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति को मार्मिक बनाने में कैसे कुशल हैं? कविता से उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
प्रसाद शब्दों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति को मार्मिक बनाने में बहुत कुशल हैं। ‘कार्नेलिया का गीत’ कविता में कवि के इस रूप के सर्वत्र दर्शन होते हैं। कवि ने भारतवर्ष को ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ कहकर भारतवर्ष को प्रेम से परिपूर्ण देश बताया है। ‘अनजान क्षितिज’ को सहारा मिलने के माध्यम से कवि यह कह रहा है कि इस देश में अपरिचितों को भी आश्रय प्राप्त हो जाता है। यहाँ के लोगों के मन में जो सबके प्रति करुणा का भाव है उसे कवि ने ‘बरसाती आँखों के बादल’ कहकर व्यक्त किया है। इसी प्रकार से प्रभातकालीन सौंदर्य की लालिमा कवि इन शब्दों के द्वारा व्यक्त करता है ‘हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे।’ इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रसाद जी अपने शब्द चयन से भावाभिव्यक्ति को मार्मिक बनाने में कुशल हैं।

प्रश्न 6.
कार्नेलिया के गीत कविता में वर्णित भारत के प्राकृतिक दृश्यों को अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर :
कवि के अनुसार भारत असीम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। कवि ने इस कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया है। उषा सुंदरी सूर्य रूपी कुंभ से धरती पर नवजीवन का संचार कर देती है। इस प्रकार प्राकृतिक दृष्टि से भारतवर्ष अत्यंत ही समृद्ध देश है। यहाँ का सूर्योदय सर्वत्र आनंद का संचार कर देता है। इसलिए कवि कहता है कि – ‘छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुमकुम सारा।’ यहाँ सदा शीतल वायु बहती रहती है। वर्षा ऋतु में बरसते हुए बादल यहाँ के लोगों के मन में निहित स्नेह भाव के प्रतीक हैं। इस देश की प्राकृतिक सुषमा से प्रभावित होकर सागर भी इसके चरणों को पखारता है। ‘लहरें टकराती अनंत की पाकर जहाँ किनारा।’ कवि ने रूपक, उपमा, अनुप्रास, मानवीकरण आदि अलंकारों के माध्यम से भारत की प्राकृतिक सुंदरता का आकर्षक वर्णन किया है।

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
कविता में आए प्रकृति-चित्रों वाले अंश छाँटिए और अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
उत्तर के लिए ‘कार्नेलिया का गीत’ के प्रश्न संख्या 6 का उत्तर देखिए।

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प्रश्न 2.
भोर के दृश्य को देखकर अपने अनुभव काव्यात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर :
भोर हुई
चिड़िया चहचहाई
उनींदी-सी जागी मैं
अरुण-विभा से स्नात
कक्ष था सुवासित
पुष्प – परागों से
मैं भी उठकर चली
मंथर-मंथर गति से

प्रश्न 3.
जयशंकर की काव्य-रचना ‘आँसू’ पढ़िए।
उत्तर :
अपने स्कूल के पुस्तकालय से इस रचना को लेकर पढ़िए।

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प्रश्न 4.
जयशंकर की कविता ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ तथा रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘हिमालय के प्रति’ का कक्षा में वाचन कीजिए।
उत्तर :
‘हिमालय के प्रति’ (रामधारी सिंह ‘ दिनकर’)
मेरे नगपति मेरे विशाल।
तू मौन त्याग, कर सिंहनाद,
रे तपी ! आज तप का न काल।
कितनी मणियाँ लुट गई ? मिटा
कितना मेरे वैभव अशेष!
तू ध्यान-मग्न ही रहा, इधर
वीर हुआ प्यारा स्वदेश।
× × ×
किन द्रौपदियों के बाल खुले ?
किन-किन कलियों का अंत हुआ ?
कह हृदय खोल चित्तोर! यहाँ
कितने दिल ज्वाल वसंत हुआ ?
पूछे सिकताकण से हिमपति!
तेरा वह राजस्थान कहाँ ?
वन-वन स्वतंत्रता दीप लिए
फिरने वाला बलवान कहाँ ?
तू पूछ अवध से, राम कहाँ ?
वंदा ! बोलो, घनश्याम कहाँ ?
औ मगध ! कहाँ मेरे अशोक?
वह चंद्रगुप्त बलधान कहाँ ?

हमारा प्यारा भारतवर्ष (जयशंकर प्रसाद)

हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार। उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार। जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक। व्योम, तम-पुंज तब नष्ट, अखिल संसृति हो विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत। सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम- संगीत। बचाकर बीच रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत। अरुण केतन लेकर निज हाथ वरुण पथ में हम बढ़े सुना है दधीचि का वह त्याग हमारी जातीयता विकास।

पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरे इतिहास। सिंधु- सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह। दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकार में वह राह ॥ धर्म का ले-लेकर जो नाम हुआ करती बलि, कर दी बंद हमीं ने दिया शांति संदेश, सुखी होते देकर आनंद। विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम। भिक्षु होकर रहते सम्राट दया दिखलाते घर-घर घूम। जातियों का उत्थान पतन, आँधियाँ, झड़ी प्रचंड समीर। खड़े देखा, फैला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर। चरित के पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न। हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।

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कथ्य पर आधारित प्रश्न-

प्रश्न 1.
‘देवसेना का गीत’ कविता का मूलभाव अथवा प्रतिपादय स्पष्ट कीजिए।
अथवा
देवसेना की वेदना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के स्कंदगुप्त नाटक से अवतरित है। देवसेना मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन है। हूणों के आक्रमण से बंधुवर्मा का सारा परिवार मारा गया था किंतु देवसेना बच गई थी। इस कविता में देवसेना अपने जीवन के वेदनामय क्षणों को याद कर रही है। जीवन संध्या की बेला में वह अपने यौवन के क्रियाकलापों को याद कर रही है।

वह अपने यौवन में नादानी तथा भ्रम में किए गए कार्यों के लिए पश्चात्ताप की ग्लानि में जल रही है और उसकी आँखों में निरंतर आँसू बह रहे हैं। वह अपने जीवन की पूँजी को बचा नहीं सकी। यही उसके जीवन की विडंबना है। प्रलय स्वयं देवसेना के जीवन रथ पर सवार है। देवसेना अपनी दुर्बलताओं और पराजय के बावजूद प्रलय से लोहा लेती रही। यह कविता वेदना के क्षणों में मनुष्य और प्रकृति के संबंधों को भी अभिव्यक्त करती है।

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प्रश्न 2.
देवसेना किसकी बहन थी ? वह किससे प्रेम करती थी ?
उत्तर :
देवसेना मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन थी। वह स्कंदगुप्त से प्रेम करती थी।

प्रश्न 3.
देवसेना ने किसका व्रत लिया था ?
उत्तर :
जब हूणों ने मालवा पर आक्रमण किया तो उस आक्रमण में राजा सहित उसके सभी परिवारवाले वीरगति को प्राप्त हो गए। केवल देवसेना ही बची। उस समय आर्यावर्त संकट में था। तब देवसेना ने अपने भाइयों के सपनों को साकार करने के लिए राष्ट्र-सेवा का व्रत लिया।

प्रश्न 4.
सेल्यूकस किससे प्रभावित हुआ और क्यों ?
उत्तर :
सेल्यूकस चंद्रगुप्त सम्राट से प्रभावित हुआ क्योंकि चंद्रगुप्त अत्यंत प्रतापी और बलशाली राजा था। वह अत्यंत शक्तिशाली था। वह श्रेष्ठ युद्धवीर और युद्ध में निपुण राजा था।

प्रश्न 5.
अरुण यह मधुमय देश हमारा’ गीत में किस देश की ओर संकेत है ?
उत्तर :
इस गीत में भारतवर्ष की ओर संकेत है। इसमें भारतवर्ष की गौरवगाथा तथा प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत चित्रण है।

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प्रश्न 6.
भारतवर्ष की अनूठी पहचान क्या है ?
उत्तर :
भारतवर्ष वह देश है जहाँ पक्षी भी अपने प्यारे घोंसले की कल्पना करके उसकी ओर उड़ते हैं। जहाँ पहुँचकर अनजान को भी सहारा मिलता है। जहाँ लहरों को भी किनारा मिलता है। भारतवर्ष की यही अनूठी पहचान है।

प्रश्न 7.
‘जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’ पंक्ति के माध्यम से भारतवर्ष की किस अनूठी विशेषता का बोध होता है?
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने भारतवर्ष की विशेषता का बोध कराते हुए कहा है कि भारतवर्ष वह देश है जहाँ अनजान व्यक्ति को भी आदर एवं सम्मान मिलता है। भारतीय संस्कृति में ‘अतिथि देवोभव, अतिथि को देवता के समान पूजा जाता है। यहाँ विश्व के कोने से कोई भी आए उसे भारतीय संस्कृति सादर ग्रहण कर उसका आतिथ्य सत्कार करती है।

प्रश्न 8.
भारतीयों की आँखों में करुणा का जल भरा रहता है। क्यों ?
उत्तर :
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात संपूर्ण विश्व एक परिवार के समान है। यह भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है। विश्व के अन्य लोगों की अपेक्षा भारतीय अधिक भावुक, संवेदनशील, सहृदयी होते हैं। वे अपने हृदय में दूसरों के प्रति गहन संवेदनाएँ एवं भावनाएँ रखते हैं। दूसरों के दुखों में भागीदार बनकर आंतरिक सहानुभूति व्यक्त करते हैं। दूसरों की पीड़ा, वेदना को देखकर भारतीय भावुक होकर रोने लगते हैं। उनकी आँखों में करुणा के भाव निहित हैं इसलिए भारतीयों की आँखों में करुणा का जल भरा रहता है।

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प्रश्न 9.
‘हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती दुलकाती सुख मेरे’ पंक्ति का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में प्रसाद जी उषा का मानवीकरण करते हुए कह रहे हैं कि उषा रूप सुंदरी स्वर्ण-कुंभ से जनजीवन पर सुख, सौंदर्य और उत्साह बरसाने लगती है। तत्सम-प्रधान शब्दावली से भाषा का प्रयोग हुआ है। लाक्षणिकता का समवेश है। मानवीकरण, अनुप्रास, पदमैत्री अंलकारों का प्रयोग हुआ है। शृंगारिकता का समावेश है। हेम कुंभ में रूपक अलंकार की छटा है।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
देवसेना का परिचय दीजिए।
उत्तर :
देवसेना जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक ‘स्कंदगुप्त’ की प्रमुख पात्र है। वह मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन है, जिसे हूणों ने मार दिया था। देवसेना भाई के स्वप्नों को पूरा करने के लिए राष्ट्र-सेवा का व्रत ले लेती है। वह स्कंदगुप्त से प्रेम भी करती है परंतु उससे विवाह नहीं करती। वह अपनी साधना का फल अपने प्रियतम के चरणों में समर्पित कर जीवन के भावी सुखों, आशाओं, आकांक्षाओं आदि से विदा लेकर विरहासंतप्त होकर ही सबसे विदा लेती है। वह वीरता, धीरता, त्याग, संयम आदि गुणों से युक्त है। देश-सेवा के लिए उसे भिक्षावृत्ति अपनाने में भी संकोच नहीं है।

प्रश्न 2.
कवि ने मधुमय देश किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर :
कविवर प्रसाद ने भारत-भूमि को ‘मधुमय देश’ कहा है। वास्तव में यह देश मधुमय है क्योंकि यह राग, प्रेम एवं माधुर्य से परिपूर्ण है। भारत वह देश है जहाँ पहुँचकर अनजान क्षितिज अर्थात सर्वथा अज्ञात एवं अपरिचित व्यक्ति को भी आश्रय मिलता है। यह देश वह स्थान है, जहाँ सरल एवं लालिमामयी आभा पर सुंदर तरु शिखाएँ नाचती हुई दिखाई पड़ती हैं। अपने रंग-बिरंगे पंखों को पसार कर पक्षी भी इस देश को प्यारा नीड़ समझकर इसी ओर मुख करके उड़ते हैं। यहाँ के लोगों की आँखों में वर्षा ऋतु के बादलों की तरह करुणा का जल भरा रहता है।

यहाँ उषा देवी प्रातः काल सूर्य रूपी स्वर्णिम घट के सागर में से भरकर निकाल कर उड़ेलती है तो चारों ओर सुख एवं प्रकाश का प्रसार करती है। तात्पर्य यह है कि भारत वह देश है जहाँ प्रकृति का असीम सौंदर्य फैला हुआ है तथा यहाँ के रहने वाले लोगों की आँखों में सदैव करुणा जल भरा रहता है। इस देश में हर समय प्रकृति देवी का निखरा हुआ सौंदर्य दृष्टिगोचर होता है। वस्तुतः यहां के निवासियों में करुणा एवं प्रेम की सांस्कृतिक भावनाएँ अपने उत्कृष्ट रूप में विद्यमान हैं।

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प्रश्न 3.
‘कार्नेलिया का गीत’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता जयशंकर प्रसाद के सुप्रसिद्ध नाटक ‘चंद्रगुप्त’ से अवतरित है। यह कविता देश-प्रेम और राष्ट्रीय भावनाओं से ओत- प्रोत है। यूनान के सम्राट सिकंदर महान के उत्तराधिकारी सेनापति सेल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया भारत-भूमि के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो जाती है तथा उसके मुख से बरबस यह गीत निकल पड़ता है। यह देश (भारत) सचमुच मधुमय है। यह भारत-भूमि आश्रयदायिनी है।

इसमें क्षितिज को भी मानो ठहरने के लिए एक आधार मिल जाता है। यह देश रंगीन कल्पनाओं से भरपूर है। पीली-पीली केसर की पंखुड़ियों के समान पक्षी वृक्ष की सुंदर शाखाओं पर नृत्य करते रहते हैं। समस्त पक्षी इंद्रधनुषी रंग-बिरंगे पंख पसारे चहचहाते हुए शीतल-मंद-सुगंध समीर के सहारे उड़ते हुए इस देश को अपना प्यारा ‘रैन बसेरा’ जानकर इसी ओर चले आते हैं।

प्रस्तुत कविता में भारत के प्राकृतिक सौंदर्य एवं उसके सांस्कृतिक पक्ष का बड़ा सुंदर एवं स्पष्ट चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस देश पर प्रकृति देवी की सदैव असीम कृपा रहती है। प्रातःकाल सूर्योदय के समय ऐसा लगता है कि मानो उषा देवी से अपने घट को भरकर उसे भूतल पर उड़ेलकर समस्त भूमंडल को प्रकाश के जल से आप्लावित कर देती है।

यहाँ के निवासी अपने प्रेम और करुणा की परंपरागत सांस्कृतिक भावनाओं को भी क्रियात्मक रूप देने की यथाशक्ति चेष्टा करते हैं। उनके नेत्रों में दूसरों के लिए करुणा का जल छलकता रहता है। कवि ने भारतीय जीवन के इस पहलू को निम्नलिखित पंक्तियों के माध्यम से प्रस्तुत किया है –

बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।’

संक्षेप में कहा जा सकता है कि देश-प्रेम और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत इस गीत में हमारे देश के प्राकृतिक, सांस्कृतिक एवं भावनात्मक सौंदर्य का मार्मिक अंकन हुआ है।

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प्रश्न 4.
जयशंकर प्रसाद की भाषा-शैली पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
प्रसाद जी की भाषा – शैली परिष्कृत, स्वाभाविक, तत्सम शब्दावली प्रधान एवं सरल है। छोटे-छोटे पदों में गंभीर भाव भर देना और उनमें संगीत लय का विधान करना उनकी शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं। देश-प्रेम की रचनाओं में ओज गुण प्रधान शब्दावली, शृंगार रस प्रधान रचनाओं में माधुर्य-गुण से युक्त शब्दावली तथा सामान्यतः प्रसाद गुणयुक्त शब्दावली का प्रयोग किया गया है। शब्द – चित्रों की सुंदर योजना प्रसाद जी की रचनाओं में रहती है।

रसवादी होने के कारण उनकी रचनाओं में सभी रसों का पूर्ण परिपाक देखा जा सकता है। प्रसाद जी की रचनाओं में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रामाणिक रूप उनकी कविता में मिलता है। उनकी काव्य-भाषा कहीं पर सरल तथा कहीं पर क्लिष्ट, तत्सम शब्दावली प्रधान है। स्वाभाविकता एवं प्रवाह उनकी भाषा की विशेषता है। भाषा भावानुकूल है इसलिए तत्सम शब्द भी स्वाभाविक लगते हैं।

उनकी भाषा में गूढ़ वाक्य प्राय: सूत्रों के समान प्रतीत होते हैं। मुहावरे उनकी रचनाओं में बहुत कम हैं। प्रसाद जी की रचनाओं में एक अद्भुत, उन्माद, तल्लीनता एवं मस्ती है। प्रसाद जी निश्चय ही आधुनिक हिंदी कविता के श्रेष्ठ कवि हैं।