CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2018
समय :3 घण्टे
अधिकतम अंक : 80
खण्ड ‘क’
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
महात्मा गांधी ने कोई 12 साल पहले कहा थामैं बुराई करने वालों को सजा देने का उपाय ढूँढ़ने लगूं तो मेरा काम होगा उनसे प्यार करना और धैर्य तथा नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्ते पर ले आना। इसलिए असहयोग या सत्याग्रह घृणा का गीत नहीं है। असहयोग का मतलब बुराई करने वाले से नहीं, बल्कि बुराई से असहयोग करना है।
आपके असहयोग का उद्देश्य बुराई को बढ़ावा देना नहीं है। अगर दुनिया बुराई को बढ़ावा देना बंद कर दे तो बुराई अपने लिए आवश्यक पोषण के अभाव में अपने-आप मर जाए । अगर हम यह देखने की कोशिश करें कि आज समाज में जो बुराई है, उसके लिए खुद हम कितने जिम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कि समाज से बुराई कितनी जल्दी दूर हो जाती हैं। लेकिन हम प्रेम की एक झूठी भावना में पड़कर इसे सहन करते हैं। मैं उस प्रेम की बात नहीं करता, जिसे पिता अपने गलत रास्ते पर चल रहे पुत्र पर मोहांध होकर बरसाता चला जाता है, उसकी पीठ थपथपाता है; और न मैं उस पुत्र की बात कर रहा हूँ जो झूठी पितृभक्ति के कारण अपने पिता के दोषों को सहन करता है। मैं उस प्रेम की चर्चा नहीं कर रहा हूँ। मैं तो उस प्रेम की बात कर रहा हूँ, जो विवेकयुक्त है और जो बुद्धियुक्त है और जो एक भी गलती की ओर से आँख बंद नहीं करता। यह सुधारने वाला प्रेम है। (क) गांधीजी बुराई करने वालों को किस प्रकार सुधारना चाहते| [2]
(ख) बुराई को कैसे समाप्त किया जा सकता है? [2]
(ग) ‘प्रेम’ के बारे में गांधीजी के विचार स्पष्ट कीजिए। [2]
(घ) असहयोग से क्या तात्पर्य है? [1]
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपर्युक्त शीर्षक दीजिए। [1]
उत्तर:
(क) गांधीजी बुराई करने वाले को उनसे प्यार करके, धैर्य, नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्ते पर लाना चाहते
(ख) बुराई को असहयोग से समाप्त किया जा सकता है। असहयोग का मतलब बुराई करने वाले से नहीं, बल्कि बुराई का साथ न देना है।
(ग) प्रेम के बारे में गांधीजी के विचार यह हैं कि जो विवेकयुक्त, बुद्धियुक्त और जो एक भी गलती की ओर से अपनी आँखें बंद नहीं करें पुत्र के प्रति पिता का अंधा मोह और पिता के प्रति पुत्र की झूठी पितृभक्ति प्रेम नहीं है।
(घ) “असहयोग” का अर्थ है साथ न देना। यहाँ पर गांधीजी का असहयोग से अर्थ है ‘बुराई में साथ न देना।
(ङ) उपयुक्त शीर्षक समाज से बुराइयों का अंत
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
तुम्हारी निश्चल आँखें
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में प्रेम
पिता का दिखाई नहीं देता है।
जरूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया भर के पिताओं की लंबी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नंबर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बगीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली कतार में मेरे लिए
मुझे माफ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझता था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो।
मैं खुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई।
(क) बच्चे माता-पिता की उदासी में उजाला भर देते हैं-यह भाव किन पंक्तियों में आया हैं? [1]
(ख) प्रायः बच्चों को पिता की सीख कैसी लगती है? [1]
(ग) माता-पिता के लिए अपना बच्चा सर्वश्रेष्ठ क्यों होता है? [1]
(घ) कवि ने किस बात को अपनी मूर्खता माना है और क्यों? [2]
(ङ) भाव स्पष्ट कीजिए : ‘प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता। [2]
उत्तर:
(क) तुम्हारी निश्चल आँखें तारों-सी चमकती हैं।
मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में।
(ख) प्रायः बच्चों को पिता की सीख नुकीले पत्थरों की तरह लगती है।
(ग) बच्चे से अत्यधिक प्रेम के कारण माता-पिता को अपना बच्चा सर्वश्रेष्ठ लगता है।
(घ) कवि ने इस बात को अपनी मूर्खता माना है कि एक बच्चा अपने माता-पिता की छाया के नीचे भली-भाँति फल-फूल सकता है और खुश रह सकता है।
(ङ) पिता बच्चे के प्रेम में यदि सही मार्ग दिखाने के लिए उसे नसीहत देता है, तो बच्चों को वे नसीहतें नुकीले पत्थरों की तरह चुभने लगती हैं। बच्चा उन नसीहतों के पीछे पिता के छिपे हुए प्रेम को नहीं देखता।
खण्ड ‘ख’
प्रश्न 3.
निर्देशानुसार उत्तर लिखिए। [1 × 3 = 3]
(क) बालगोबिन जानते हैं कि अब बुढ़ापा आ गया। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए।)
(ख) मॉरीशस की स्वच्छता देखकर मन प्रसन्न हो गया। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(ग) गुरुदेव आराम कुर्सी पर लेटे हुए थे और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहे थे। (सरल वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(क) आश्रित उपवाक्य : अब बुढ़ापा आ गया है। भेद : संज्ञा उपवाक्य
(ख) मिश्र वाक्य : जब मॉरीशस की स्वच्छता देखी तब मन प्रसन्न हो गया।
(ग) सरल वाक्य : गुरुदेव आराम कुर्सी पर लेटकर प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द ले रहे थे।
प्रश्न 4.
निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए : [1 × 4 = 4)
(क) मई महीने में शीला अग्रवाल को कॉलेज वालों ने नोटिस थमा दिया। (कर्मवाच्य में)
(ख) देशभक्तों की शहादत को आज भी याद किया जाता है। (कर्तृवाच्य में)
(ग) खबर सुनकर वह चल भी नहीं पा रही थी। (भाववाच्य में)
(घ) जिस आदमी ने पहले-पहल आग का आविष्कार किया होगा, वह कितना बड़ा आविष्कर्ता होगा। (कर्तृवाच्य में)
उत्तर:
(क) कर्मवाच्य : कॉलेज वालों के द्वारा मई महीने में शीला अग्रवाल को नोटिस थमा दिया गया।
(ख) कर्तृवाच्य : देश भक्तों की शहादत को आज भी याद करते हैं।
(ग) भाववाच्य : खबर सुनकर उससे चला भी नहीं जा रहा था।
(घ) कर्तृवाच्य : जिस आदमी ने पहले-पहल आग का आविष्कार किया, वह कितना बड़ा आविष्कर्ता होगा।
प्रश्न 5.
रेखांकित पदों का पद-परिचय लिखिए। [1 × 4 = 4]
अपने गाँव की मिट्टी छूने के लिए मैं तरस गया
उत्तर:
पद परिचय
गांव की – संज्ञा पद, सम्बन्ध कारक, जातिवाचक संज्ञा, एकवचन
मिट्टी- संज्ञा पद, जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, कर्मकारक
मैं- सर्वनाम, पुरुषवाचक, उत्तम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, वर्ताकारक
तरस गया— क्रिया पदबंध अकर्मकद्ध, भूतकाल, पुल्लिंग, एकवचन
प्रश्न 6.
(क) “रति’ किस रस का स्थायी भाव है? [1]
(ख) ‘करुण रस का स्थायी भाव क्या है? [1]
(ग) “हास्य रस का एक उदाहरण लिखिए। [1]
(घ) निम्नलिखित पंक्तियों में रस पहचान कर लिखिए : [1]
मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध को प्रस्तुत सदा मानो मुझे।
उत्तर:
(क) रति-श्रृंगार रस
(ख) करुण रस का स्थायी भाव-शोक,
(ग) हास्य रस का स्थायी भाव-होस
(घ) उल्लेखित पंक्तियाँ–वीर रस
खण्ड ‘ग’
प्रश्न 7.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
जीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी होलदार साहब इस मूर्ति के बारे में ही सोचते रहे, और अंत में निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जाना चाहिए। महत्त्व मूर्ति के रंग या कद का नहीं, उस भावना का है; वरना तो देशभक्ति भी आजकल मज़ाक की चीज़ होती जा रही है।
दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्हें मूर्ति में कुछ अंतर दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है।
(क) हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों का कौन-सा प्रयास सराहनीय लगा और क्यों? [2]
(ख) ‘देशभक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है।’ इस पंक्ति में देश और लोगों की किन स्थितियों की ओर संकेत किया गया है? [2]
(ग) दूसरी बार मूर्ति देखने पर हालदार साहब को उसमें क्या परिवर्तन दिखाई दिया? [1]
उत्तर:
(क) हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों के द्वारा नेताजी की मूर्ति का लगाना सराहनीय लगा, क्योंकि इसमें कस्बे वालों की देशभक्ति की भावना दिखाई दे रही थी।
(ख) हालदार साहब को लगा कि कैप्टन जो मूर्ति का चश्मा बदलता रहता था, पान वाले ने उसका मजाक उड़ाया था। नेता जी की प्रतिमा देशभक्ति की परिचायक थी। हालदार साहब को यह कतई पसन्द नहीं था कि प्रतिमा से संबंधित किसी चीज का कोई मजाक उड़ाए। वे बार-बार सोचते कि उस कौम का क्या होगा जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-जिन्दगी सब कुछ देश पर न्योछावर करने वालों पर हँसती है। उन्हें बहुत खराब लगा कि देश भक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है।
(ग) दूसरी बार मूर्ति देखने पर हालदार साहब ने देखा कि मूर्ति का चश्मा बदल गया था। साईकिल पर चश्मे बेचने वाला मूर्ति का चश्मा बदल दिया करता था। मोटे फ्रेम वाले चश्मे की जगह तार के फ्रेम वाले चश्मे ने ले ली थी।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : [2 × 4 = 8]
(क) ‘बालगोबिन भगत’ पाठ में किन सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है?
(ख) महावीर प्रसार द्विवेदी शिक्षा-प्रणाली में संशोधन की बात क्यों करते हैं?**
(ग) ‘काशी में बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक हैं – कथन का क्या आशय है?
(घ) वर्तमान समाज को संस्कृत कहा जा सकता है या ‘सभ्य ? तर्क सहित उत्तर दीजिए ।**
उत्तर:
(क) बालगोबिन भगत पाठ में दर्शाई गई सामाजिक रूढ़ियाँ
- समाज में स्त्री द्वारा मृतक को आग देने का नियम नहीं था, पर बालगोबिन ने पुत्र के क्रिया कर्म के समय पतोहू द्वारा आग दिलाई। यह उस समय के नियम के विरुद्ध था।
- उन्होंने पतोहू के भाई को बुलाकर पतोहू के पुनर्विवाह पर जोर दिया।
(ग) काशी में बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक हैं। काशी आज भी बिस्मिल्ला खाँ के सुर पर सोती और जागती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि काशी के पास बिस्मिल्ला खाँ जैसा हीरा रहा है जो दो कौमों को एक होने की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : [5]
हमारें हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।
(क) ‘हारिल की लकरी’ किसे कहा गया है और क्यों? [2]
(ख) तिनहिं लै सौंपौ’ में किसकी ओर क्या संकेत किया गया है? [2]
(ग) गोपियों को योग कैसा लगता है? क्यों? [1]
उत्तर:
(क) गोपियाँ “हारिल की लकरी’ श्रीकृष्ण के लिए कहती हैं। क्योंकि जैसे हारिल पक्षी लकड़ी के आश्रय को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण के आश्रय को नहीं छोड़ सकतीं। उन्होंने मन-क्रम-वचन पूरी तरह से श्रीकृष्ण को पकड़ रखा है।
(ख) गोपियाँ उद्धव को कहती हैं कि हम तो पूरी तरह कृष्णमय हो गई हैं और हमें योग की जरूरत नहीं है। हमारा मन भ्रमित नहीं है। इस योग की आवश्यकता तो उनको है। जिनका मन चकरी के समान घूमता रहता है, एक जगह नहीं लगता, इसलिए इस योग को ऐसे लोगों को सौंप दो।
(ग) गोपियाँ कहती हैं कि योग उन्हें कड़वी ककड़ी की तरह लगता है जिसे खाया या निगला नहीं जा सकता है। गोपियाँ यह भी कहती हैं कि वे पूरी तरह कृष्णमय हो गई
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : [2 × 4 = 8]
(क) जयशंकर प्रसाद के जीवन के कौन-से अनुभव उन्हें आत्मकथा लिखने से रोकते हैं ?**
(ख) बादलों की गर्जना का आह्वान कवि क्यों करना चाहता है? ‘उत्साह कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘कन्यादान’ कविता में व्यक्त किन्हीं दो सामाजिक कुरीतियों को उल्लेख कीजिए।
(घ) संगतकार की हिचकती आवाज उसकी विफलता क्यों नहीं
उत्तर:
(ख) बादलों की गर्जना” से तात्पर्य क्रांतिकारी स्वर भरना है। कविता के माध्यम से कवि क्रांति की आवश्यकता को चिन्हित करता है। बादल क्रांति के प्रतीक हैं। यह क्रांति रूपी बादल पीड़ित प्यासे जन की आकांक्षाओं को पूरी करेगा और दूसरी तरफ वही बादल नई कल्पना और नए अंकुर उगाएगा।
(ग) कन्यादान कविता में उल्लेखित कुरीतियाँ
- बाल विवाह-लड़कियों की शादी उनके सयानी होने से पहले (18 वर्ष की आयु से पहले) कर दी जाती थी।
- समाज में लड़कियाँ केवल घर की चारदीवारी तक सीमित रहती थीं। उन्हें अपने वेश-भूषा, रूप-सौन्दर्य पर ध्यान न देकर केवल घर के चूल्हे-चौके पर ध्यान देना होता था।
(घ) यद्यपि संगतकार की आवाज कमजोर और काँपती हुई थी, परन्तु वह आवाज की कमी उसकी विफलता नहीं थी। वह प्रयास करता था कि गायक के रूप में उसकी आवाज मुख्य गायक से अधिक महत्त्वपूर्ण न हो जाए। इसलिए यह उसकी विफलता नहीं, मनुष्यता का सूचक है। वह दूसरों को आगे बढ़ाता और स्वयं को पीछे रखता है।
प्रश्न 11.
“आज आपकी रिपोर्ट छाप हूँ तो कल ही अखबार बंद हो जाए” -स्वतंत्रता संग्राम के दौर में समाचार-पत्रों के इस रवैये पर ‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ के आधार पर जीवन-मूल्यों की दृष्टि से लगभग १५० शब्दों में चर्चा कीजिए।” [4]
अथवा
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के आधार पर बताइए कि विज्ञान के दुरुपयोग से किन मानवीय मूल्यों की क्षति होती हैं ? इसके लिए हम क्या कर सकते हैं ?**
खण्ड “घ”
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं
के आधार पर 200 से 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए। .[10]
(क) महानगरीय जीवन
- विकास की अंधी दौड़
- संबंधों का ह्रास
- दिखावा
(ख) पर्वो का बदलता स्वरूप
- तात्पर्य
- परंपरागत तरीके
- बाजार का बढ़ता प्रभाव
(ग) बीता समय फिर लौटता नहीं
- समय का महत्त्व
- समय नियोजन
- समय आँवाने की हानियाँ
उत्तर:
(क) महानगरीय जीवन
वर्तमान समय में भारत के अनेक प्रमुख नगर महानगरों में परिवर्तित होते जा रहे हैं। एक नई महानगरीय सभ्यता पनपती जा रही है। आज के दौर में विकास की अंधी दौड़ में हर एक इन्सान उसका हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा है। जबकि असलियत यह है कि यह विकास की दौड़ बाहर से देखने पर जितनी लुभावनी लगती है, लोगों को इसमें नौकरी और व्यापार के अवसर दिखाई देते हैं। जिससे उनकी आय उन्हें मोह लेने वाली लगती है। परन्तु जब उन्हें वास्तविकता का सामना करना पड़ता है। तो उनके सारे सपने बिखर जाते हैं, असलियत में जिन्दगी बहुत कठिनाइयों भरी होती है। महानगरों में रहने की समस्या बहुत ज्यादा है। अच्छे घरों के लिए बहुत किराया देना पड़ता है। झुग्गी-झोंपड़ी पहले तो रहने वाली नहीं होती बल्कि साथ में गन्दगी, स्वच्छता की कमी रहती है। महानगरों में पहुँचकर जिन्दगी की कठिनाइयों को झेलते-झेलते आपसी संबंधों का ह्मस शुरू हो जाता है। रिश्ते चाहे माता-पिता के साथ हों, पति-पत्नी के बीच हों, बच्चों के साथ, रिश्तेदारियों में दोस्ती, आदि में किसी के पास भी वक्त नहीं होता और उनके सम्बन्ध के बीच खटास आने लगती है। इसमें कुछ कारण तो आदमी के रहने की जगह से काम करने की जगह के बीच दूरियों और उसमें लगता समय जो कभी-कभी 12 से 14 घण्टे रोजाना का होता है, बहुत बड़ा हाथ है।
पर इन सबके बावजूद महानगरों की चमक-दमक का आकर्षण गांवों के लोगों को अपनी तरफ खींचता है। महानगरों में खाने-पीने की कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है। बढ़ते हुए ट्रांसपोर्ट की वजह से वहाँ का वातावरण बहुत प्रदूषित रहने लगा है। इसलिए न वहाँ शुद्ध हवा मिलती है और न ही शुद्ध जल । महानगरों में मध्यम वर्गीय नौकरी-पेशा लोगों को एक और समस्या का सामना करना पड़ता है, वह है दिखावा या दूसरे शब्दों में आन-बान-शान का दिखावा । घर में, आस-पड़ोस में कोई समारोह हो तो ब्यूटी पार्लर, पहनने वाले एक-एक कपड़े और आभूषण का नया होना एक अनिवार्य अंग बन गया है और अगर घर में या रिश्तेदारी में शादी समारोह हो तो लेन-देन का दिखावा अपने चरम पर पहुँच जातो है। इन सब बातों को सामने रखें तो महानगरीय जिन्दगी ‘ में आराम कम और कठिनाइयाँ ज्यादा हैं।
(ख) पर्वो का बदलता स्वरूप समय के साथ-साथ हमारे सभी पर्व और त्योहारों का स्वरूप बदलता जा रहा है। पहले किसी भी पर्व में लोग पूरे उत्साह से भाग लिया करते थे, मंदिरों में पूरी श्रद्धा से पूजा-पाठ चला करता था। प्रत्येक घर में किसी न किसी रूप में एक मंदिर भी हुआ करता था। परन्तु आधुनिक युग में लोगों के पास समय को अभाव रहने लगा। जो लोग किसी पर्व को मनाते भी हैं उनमें ज्यादातर सिर्फ औपचारिकता दिखाने लग गए हैं। भारत में कई पर्व ऐसे भी हुआ करते थे जिसमें आदमी और औरतें दिन-भर का उपवास रखते थे, परन्तु अब इसमें किसी की कोई रुचि नहीं बची।
पर्वो व त्योहारों के परंपरागत तरीके को हम अगर याद करें, तो त्योहार किसी राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के मुख्य अंग, स्वरूप एवं प्रतीक हुआ करते हैं। उनसे यह जाना जाता है कि कोई राष्ट्र, वहाँ रहने । वाली जातियों, उनकी सभ्यता और संस्कृति कितनी अपनत्वपूर्ण, जीवंत और प्राणवान है। पुराने वक्त में त्योहारों और पर्यों के अवसर पर ये घर-परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्यों को समीप आने, मिल बैठने, एक-दूसरे के सुख-आनंद को साझा बनाने के अवसर होते थे।
पर्वो और त्योहारों के बदलते स्वरूप के लिए आज बाजार का बढ़ता प्रभाव है। किसी भी पर्व को लोकप्रिय बनाने के लिए उससे सम्बन्धित गानों की सीडी छोटे बड़े नये-नये स्टाइल के कपड़े, चुन्नियाँ आदि पहले से मिलनी शुरू हो जाती हैं। बाजार के बदलते और बढ़ते प्रभाव के कारण दिवाली चाइनीज पटाख़ों से भर जाती है।
(ग) बीता समय फिर लौटता नहीं समय यानी वक्त एक ऐसी चीज़ है कि एक बार वो बीत जाये तो फिर नहीं आता और इस बात का मलाल रहता है। कि वह काम समय पर क्यों नहीं किया। विशेषतः आफिस में, समय पर काम न होने से कई बार आर्थिक नुकसान तक हो जाता है। इसलिए सभी को समय के महत्व को समझना जरूरी है। समय वह धन है जिसका सदुपयोग न करने से वह व्यर्थ चला जाता है। हमें समय का महत्त्व तब पता लगता है जब दो मिनट के विलंब के कारण गाड़ी छूट जाती है। जीवन में वही व्यक्ति सफल हो पाते हैं। जो समय का पालन करते हैं। लोगों को अपने समय को नियोजित करने की कला भी आनी चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को एक मीटिंग में जाना है, एक अफसर से अलग मीटिंग है, और शाम को अपनी शादी की सालगिरह की पार्टी भी देनी है, तो इसमें हर एक काम के लिए समय निकालना पड़ेगा।
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बेकार की बातों में समय को आँवा देते हैं। मनोरंजन के नाम पर भी बहुत समय आँवाया जाता है। बहुत से व्यक्ति समय गॅवाने में जैसे-मोबाईल पर गेम खेलने, बेकार की व्हाट्स ऐप पर बातें लिखने में आनंद का अनुभव करते हैं, परन्तु यह प्रवृत्ति हानिकारक है। समय के ऊपर तुलसीदास ने ठीक ही कहा है
“समय चूकि पुनि का पछताने, का वर्षा जब कृषि सुखाने”
प्रश्न 13.
आपके क्षेत्र के पार्क को कूड़ेदान बना दिया गया था। अब पुलिस की पहल और मदद से पुनः बच्चों के लिए खेल का मैदान बन गया है। अतः आप पुलिस आयुक्त को धन्यवाद पत्र लिखिए। [5]
अथवा
पटाखों से होने वाले प्रदूषण के प्रति ध्यान आकर्षित करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।
उत्तर:
अपनी पता
परीक्षा भवन
क. ख. ग.,
नई दिल्ली-1100XX
सेवा में,
पुलिस आयुक्त
पश्चिमी दिल्ली
दिनांक-18 मई, 20XX
(3) विषय-आभार व्यक्त करने हेतु।
महोदय, हम मदनपुर निवासी इस क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों और आपको धन्यवाद देना चाहते हैं। हम दिल से आभारी रहेंगे। इस क्षेत्र के पार्क में पिछले कुछ वर्षों में कूड़ा फेंक–फेंक कर उसे कूड़ाघर में तब्दील कर दिया था।
परन्तु पुलिस से मीटिंग के बाद, पार्क के पास एक बोर्ड लगवाया गया कि उस क्षेत्र में कूड़ा फेंकना मना है। पुलिस विभाग के एक सब-इंस्पेक्टर की नियुक्ति ने कूड़ा डालने वालों को वहाँ आने से मना कर दिया। फिर आसपास के रिहायशी इलाकों वाले लोगों के साथ पार्क में एक फुटपाथ का निर्माण कर पार्क को एक नया रूप मिला। अब सुबह और शाम को लोग पार्क में घूमने आने लगे हैं और इसका श्रेय पुलिस विभाग को मिलना चाहिए।
एक बार फिर से इस क्षेत्र के लोग आपको धन्यवाद देते हैं।
मदनपुर क्षेत्र के निवासी
(सेक्रेटरी)
अथवा
58, पंकज लेन
वसंत कुंज,
नई दिल्ली।
दिनांक-25 अगस्त, 20XX
प्रिय मित्र,
तुम्हारा पत्र मिला। जानकर खुशी हुई कि तुम्हारे माताजी–पिताजी इन दिनों यूरोप घूमने गए हुए हैं और वे सभी प्रमुख जगहों पर जाएँगे। यूरोप घूमकर वापस आने वाले लोग वहाँ के वातावरण जो पूर्णतया प्रदूषण रहित है, का वर्णन करते हैं।
हमारे देश में अब अगले महीने दीपावली का पर्व आ रहा है। जहाँ तक दियों या बल्ब से शहर का रोशन होना बहुत अच्छा । लगता है वहीं दिवाली और दिवाली से पूर्व पटाखे चलाने से। होने वाले प्रदूषण से वातावरण इतना खराब हो जाता है कि पटाखों से निकलने वाले सल्फर के कणों के कारण सांस लेना। दूभर हो जाता है और यह कई बीमारियों की जड़ है। इसलिए मैं तो तुमसे यही कहना चाहूँगा कि खुद भी पटाखे चलाने से परहेज करो और अपने आसपास के लोगों को भी पटाखों से। होने वाले प्रदूषण के बारे में बताओ।
तुम्हारा मित्र
क.ख.ग.
प्रश्न 14.
पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए लगभग 50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए। [5]
अथवा
विद्यालय के वार्षिकोत्सव के अवसर पर विद्यार्थियों द्वारा निर्मित हस्तकला की वस्तुओं की प्रदर्शनी के प्रचार हेतु लगभग 50 शब्दों में एक ‘ विज्ञापन लिखिए।
उत्तर:
पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए लगाये गए विज्ञापन
पर्यावरण जागरूकता दौड़ दिनांक 16 अगस्त 20XX को इण्डिया गेट से शुरू होगी।
पर्यावरण यानी पौधों का वृक्षारोपण को बढ़ावा देने हेतु निम्न वर्गों में दौड़ों का आयोजन किया जा रहा है।
• 10 किमी की दौड़-भारतीय व अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों द्वारा
• 5 किमी की दौड़-महिलाओं के लिए
• 1 किमी की दौड़-वरिष्ठ नागरिकों के लिए
आप अपना पंजीकरण 10 अगस्त, 20XX तक करवा सकते हैं। भाग लेने वाले प्रतिभागियों को एक-एक टी शर्ट दौड़ शुरू होने से पहले मिलेगी।
संयोजक–दिल्ली संघ
फोन नं. FGHXXXXYZ
अथवा
विद्यालय के वार्षिकोत्सव पर हस्तकला प्रदर्शनी
सूचना
विद्यालय वार्षिकोत्सव कमेटी
भारती स्कूल, आगरा
20 अगस्त, 20XX
हमारे विद्यालय में 25 अगस्त, 20XX को वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। उसी दिन विद्यालय के क्रीड़ांगन में विद्यार्थियों द्वारा निर्मित हस्तकला की वस्तुओं की प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया है। जो लोग प्रदर्शित वस्तुओं को खरीदने के इच्छुक होंगे वो सीधे उस स्टाल से खरीद सकते हैं।
सभी विद्यार्थियों के परिवारीजन वार्षिकोत्सव व प्रदर्शनी में आमन्त्रित हैं।
सेक्रेटरी
विद्यालय वार्षिकोत्सव कमेटी
भारती स्कूल, आगरा