CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Outside Delhi Term 2

CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Outside Delhi Term 2 Set – I

खण्ड ‘क’

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए    [1 × 5 = 5]
लोकतन्त्र के मूलभूत तत्व को समझा नहीं गया है और इसलिए लोग समझते हैं कि सब कुछ सरकार कर देगी, हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। लोगों में अपनी पहल से जिम्मेदारी उठाने और निभाने का संस्कार विकसित नहीं हो पाया है। फलस्वरूप देश की विशाल मानव-शक्ति अभी खर्राटे लेती पड़ी है और देश की पूँजी उपयोगी बनाने के बदले आज बोझरूप बन बैठी है। लेकिन उसे नींद से झकझोर कर जागृत करना है। किसी भी देश को महान बनाते हैं उसमें रहने वाले लोग। लेकिन अभी हमारे देश के नागरिक अपनी जिम्मेदारी से बचते रहे हैं। चाहे सड़क पर चलने की बात हो अथवा साफ-सफाई की बाते हो, जहाँ-तहाँ हम लोगों को गन्दगी फैलाते और बेतरतीब ढंग से वाहन चलाते देख सकते हैं। फिर चाहते हैं कि सब कुछ सरकार ठीक कर दे।

सरकार ने बहुत सारे कार्य किए हैं, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ खोली हैं, विशाल बाँध बनवाए हैं, फौलाद के कारखाने खोले हैं आदि-आदि बहुत सारे काम सरकार के द्वारा हुए हैं। पर अभी करोड़ों लोगों को कार्य में प्रेरित नहीं किया जा सका है।

वास्तव में होना तो यह चाहिए कि लोग अपनी सूझ-बूझ के साथ अपनी आन्तरिक शक्ति के बल पर खड़े हों और अपने पास जो कुछ साधन-सामग्री हो उसे लेकर कुछ करना शुरू कर दें। और फिर सरकार उसमें आवश्यक मदद करे। उदाहरण के लिए, गाँव वाले बड़ी-बड़ी पंचवर्षीय योजनाएँ नहीं समझ सकेंगे, पर वे लोग यह बात जरूर समझ सकेंगे कि अपने गाँव में कहाँ कुआँ चाहिए, कहाँ सिंचाई की जरूरत है, कहाँ पुल की आवश्यकता है। बाहर के लोग इन सब बातों से अनभिज्ञ होते
(क) लोकतन्त्र का मूलभूत तत्व है–
(i) कर्तव्य-पालन
(ii) लोगों का राज्य
(iii) चुनाव
(iv) जनमत

(ख) किसी देश की महानता निर्भर करती है–
(i) वहाँ की सरकार पर
(ii) वहाँ के निवासियों पर
(iii) वहाँ के इतिहास पर
(iv) वहाँ की पूँजी पर

(ग) सरकार के कामों के बारे में कौन-सा कथन सही नहीं है?
(i) वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ बनवाई हैं।
(ii) विशाल बाँध बनवाए हैं।
(iii) वाहन चालकों को सुधारा है।
(iv) फौलाद के कारखाने खोले हैं।

(घ) सरकारी व्यवस्था में किस कमी की ओर लेखक ने संकेत किया के
(i) गाँव से जुड़ी समस्याओं के निदान में ग्रामीणों की भूमिका को नकारना
(ii) योजनाएँ ठीक से न बनाना
(iii) आधुनिक जानकारी का अभाव
(iv) जमीन से जुड़ी समस्याओं की ओर ध्यान न देना

(ङ) “झकझोर कर जागृत करना” का भाव गद्यांश के अनुसार होगा
(i) नींद से जगाना
(ii) सोने न देना
(iii) जिम्मेदारी निभाना
(iv) जिम्मेदारियों के प्रति सचेत करना
उत्तर:
(क) (i) कर्त्तव्यपालन
(ख) (ii) वहाँ के निवासियों पर
(ग) (ii) वाहन चालकों को सुधारा है।
(घ) (i) गाँव से जुड़ी समस्याओं के निदान में ग्रामीणों की भूमिका को नकारना
(ङ) (iv) जिम्मेदारियों के प्रति सचेत करना

प्रश्न 2.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए [1 × 5 = 5]
हरियाणा के पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए अब तक के शोध और खुदाई के अनुसार लगभग 5500 हेक्टेयर में फैली यह राजधानी ई.सा. से लगभग 3300 वर्ष पूर्व मौजूद थी। इन प्रमाणों के आधार पर यह तो तय हो ही गया है कि राखीगढ़ी . की स्थापना उससे भी सैकड़ों वर्ष पूर्व हो चुकी थी।

अब तक यही माना जाता रहा है कि इस समय पाकिस्तान में स्थित हड़प्पा और मोहनजोदड़ो ही सिन्धुकालीन सभ्यता के मुख्य नगर थे। राखीगढ़ी गाँव में खुदाई और शोध का काम रुक-रुक कर चल रहा है। हिसार का यह गाँव दिल्ली से मात्र एक सौ पचास किलोमीटर की दूरी पर है। पहली बार यहाँ 1963 में खुदाई हुई थी और तब इसे सिन्धु–सरस्वती सभ्यता का सबसे बड़ा नगर माना गया। उस समय के शोधार्थियों ने सप्रमाण घोषणाएँ की थीं कि यहाँ दबे नगर, कभी मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से भी बड़ा रहा होगा।

अब सभी शोध विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि राखीगढ़ी, भारत-पाकिस्तान और अफगानिस्तान का आकार और आबादी की दृष्टि से सबसे बड़ा शहर था। प्राप्त विवरणों के अनुसार समुचित रूप से नियोजित इस शहर की सभी सड़कें 1.92 मीटर चौड़ी थीं। यह चौड़ाई कालीबंगन की सड़कों से भी ज्यादा है। एक ऐसा बर्तन भी मिला है, जो सोने और चाँदी की परतों से ढका है। इसी स्थल पर एक ‘फाउंड्री’ के भी चिन्ह मिले हैं, जहाँ सम्भवतः सोना ढाला जाता होगा। इसके अलावा टैराकोटा से बनी असंख्य प्रतिमाएँ, ताँबे के बर्तन और कुछ प्रतिमाएँ और एक भट्ठी के अवशेष भी मिले हैं।

मई 2012 में ‘ग्लोबले हैरिटेज फण्ड’ ने इसे एशिया के दस ऐसे ‘विरासत-स्थलों की सूची में शामिल किया है, जिनके नष्ट हो जाने का खतरा है।

राखंगिढ़ी का पुरातात्विक महत्व विशिष्ट है। इस समय यह क्षेत्र पूरे विश्व के पुरातत्व विशेषज्ञों की दिलचस्पी और जिज्ञासा का केन्द्र बना हुआ है। यहाँ बहुत से काम बकाया हैं; जो अवशेष मिले हैं, उनका समुचित अध्ययन अभी शेष है। उत्खनन का काम अब भी अधूरा है।
(क) अब सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का सबसे बड़ा नगर किसे मानने की सम्भावनाएँ हैं?
(i) मोहनजोदड़ो
(ii) राखीगढ़ी
(iii) हड़प्पा
(iv) कालीबंगा

(ख) चौड़ी सड़कों से स्पष्ट होता है कि
(i) यातायात के साधन थे
(ii) अधिक आबादी थी
(iii) शहर नियोजित था
(iv) बड़ा शहर था

(ग) इसे एशिया के ‘विरासत स्थलों में स्थान मिला, क्योंकि
(i) नष्ट हो जाने का खतरा है।
(ii) सबसे विकसित सभ्यता है।
(iii) इतिहास में इसका नाम सर्वोपरि है।
(iv) यहाँ विकास की तीन परतें मिली हैं।

(घ) पुरातत्व विशेषज्ञ राखीगढ़ी में विशेष रुचि ले रहे हैं, क्योंकि
(i) काफी प्राचीन और बड़ी सभ्यता हो सकती है।
(i) इसका समुचित अध्ययन शेष है।
(iii) उत्खनन का कार्य अभी अधूरा है।
(iv) इसके बारे में अभी-अभी पता लगा है।

(ङ) उपर्युक्त शीर्षक होगा
(i) राखीगढ़ी : एक सभ्यता की सम्भावना
(ii) सिन्धु घाटी सभ्यता
(iii) विलुप्त सरस्वती की तलाश
(iv) एक विस्तृत शहर राखीगढ़ी
उत्तर:
(क) (ii) राखीगढ़ी।
(ख) (iii) शहर नियोजित था।
(ग) (i) नष्ट हो जाने का खतरा है
(घ) (ii) उत्खनन का कार्य अभी अधूरा है।
(ङ) (i) राखीगढ़ीः एक सभ्यता की सम्भावना ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए [1 × 5 = 5]
एक दिन तने ने भी कहा था,
जड़? जड़ तो जड़ ही है;
जीवन से सदा डरी रही है,
और यही है उसका सारा इतिहास
कि जमीन में मुँह गड़ाए पड़ी रही है;
लेकिन मैं जमीन से ऊपर उठा,
बाहर निकला, बढ़ा हूँ,
मजबूत बना हूँ, इसी से तो तना हूँ,
एक दिन डालों ने भी कहा था,
तना? किस बात पर है तना?
जहाँ बिठाल दिया गया था वहीं पर है बना;
प्रगतिशील जगती में तिल–भर नहीं डोला है।
खाया है, मोटाया है, सहलाया चोला है;
लेकिन हम तने से फूटीं, दिशा-दिशा में गयीं
ऊपर उठीं, नीचे आयीं
हर हवा के लिए दोल बनीं, लहराईं,
इसी से तो डाल कहलाईं।
(पत्तियों ने भी ऐसी ही कुछ कहा, तो)
एक दिन फूलों ने भी कहा था, पत्तियाँ?
पत्तियों ने क्या किया?
संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया,
डालों के बल पर ही चल-चपल रही हैं,
हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं;
लेकिन हम अपने से खुले, खिले, फूले हैं।
रंग लिए, रस लिए, पराग लिए
हमारी यश–गन्ध दूर-दूर-दूर फैली है,
भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं,
हम पर बौराए हैं।
सब की सुन पाई है, जड़ मुसकराई है।
(क) तने का जड़ को जड़ कहने से क्या अभिप्राय है?
(i) मजबूत है।
(ii) समझदार है।
(iii) मूर्ख है।
(iv) उदास है।

(ख) डालियों ने तने के अहंकार को क्या कहकर चूर-चूर कर दिया?
(i) जड़ नीचे है तो यह ऊपर है।
(ii) यों ही तना रहता है।
(iii) उसको मोटापा हास्यास्पद है।
(iv) प्रगति के पथ पर एक कदम भी नहीं बढ़ा

(ग) पत्तियों के बारे में क्या नहीं कहा गया है?
(i) संख्या के बल से बलवान हैं।
(ii) हवाओं के बल पर डोलती हैं।
(iii) डालों के कारण चंचल हैं।
(iv) सबसे बलशाली हैं।

(घ) फूलों ने अपने लिए क्या नहीं कहा?
(i) हमारे गुणों का प्रचार-प्रसार होता है।
(ii) दूर-दूर तक हमारी प्रशंसा होती है।
(iii) हम हवाओं के बल पर झूमते हैं।
(iv) हमने अपना रूप-स्वरूप खुद ही सँवारा है।

(ङ) जड़ क्यों मुसकराई?
(i) सबने अपने अहंकार में उसे भुला दिया
(ii) फूलों ने पत्तियों को भुला दिया
(iii) पत्तियों ने डालियों को भुला दिया
(iv) डालियों ने तने को भुला दिया
उत्तर:
(क) (iv) उदास है।
(ख) (iv) प्रगति के पथ पर एक कदम भी नहीं बढ़ा
(ग) (iv) सबसे बलशाली हैं।
(घ) (ii) हम हवाओं के बल पर झूमते हैं।
(ङ) (i) सबने अपने अहंकार में उसे भुला दिया

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए [1 × 5 = 5]
ओ देशवासियों बैठ न जाओ पत्थर से,
ओ देशवासियों रोओ मत तुम यों निर्झर से,
दरख्वास्त करें, आओ, कुछ अपने ईश्वर से
वह सुनता है।
गमजदों और
रंजीदों की।
जब सार सरकता-सा लगता जग–जीवन से
अभिषिक्त करें, आओ, अपने को इस प्रण से
हम कभी न मिटने देंगे भारत के मन से
दुनिया ऊँचे आदर्शो की,
उम्मीदों की
साधना एक युग-युग अन्तर में ठनी रहे।
यह भूमि बुद्ध-बापू से सुत की जनी रहे;
प्रार्थना एक युग-युग पृथ्वी पर बनी रहे।
यह जाति योगियों, सन्तों
और शहीदों की।
(क) कवि देशवासियों को क्या कहना चाहता है?
(i) निराशा और जड़ता छोड़ो
(ii) जागो, आगे बढ़ो।
(iii) पढ़ो, लिखो, कुछ करो
(iv) डरो मत, ऊँचे चढ़ो

(ख) कवि किसकी और किससे प्रार्थना की बात कर रहा है?
(i) भगवान और जनता ‘
(ii) दुखी लोग और ईश्वर
(iii) देशवासी और सरकार
(iv) युवा वर्ग और ब्रिटिश सत्ता

(ग) कवि भारतीयों को कौन-सा संकल्प लेने को कहता है?
(i) हम भारत को कभी न मिटने देंगे।
(ii) जीवन में सार–तत्व को बनाए रखेंगे
(iii) उच्च आदर्श और आशा के महत्व को बनाए रखेंगे।
(iv) जग-जीवन को समरसता से अभिषिक्त करेंगे।

(घ) ‘यह भूमि बुद्ध-बापू से सुत की जनी रहे – का भाव है
(i) इस भूमि पर बुद्ध और बापू ने जन्म लिया
(ii) इस भूमि पर बुद्ध और बापू जैसे लोग जन्म लेते रहें।
(iii) यह धरती बुद्ध और बापू जैसी है।
(iv) यह धरती बुद्ध और बापू को हमेशा याद रखेगी

(ङ) कवि क्या प्रार्थना करता है?
(i) योगी, सन्त और शहीदों का हम सब सम्मान करें
(ii) युगों-युगों तक यह धरती बनी रहे।
(ii) धरती माँ का वन्दन करते रहें
(iv) भारतीयों में योगी, सन्त और शहीद अवतार लेते रहेंगे।
उत्तर:
(क) (i) निराशा और जड़ता छोड़ो
(ख) (i) दुखी लोग और ईश्वर
(ग) (i) हम भारत को कभी न मिटने देंगे।
(घ) (ii) इस भूमि पर बुद्ध और बापू जैसे लोग जन्म लेते रहें।
(ङ) (iv) भारतीयों में योगी, सन्त और शहीद अवतार लेते रहेंगे

खण्ड ‘ख’

प्रश्न 5.
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए [1 × 3 = 3]
(क) वे उन सब लोगों से मिले, जो मुझे जानते थे। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ख) पंख वाले चींटे या दीमक वर्षा के दिनों में निकलते हैं। (वाक्य का भेद लिखिए)
(ग) आषाढ़ की एक सुबह एक मोर ने मल्हार के मियाऊ-मियाऊ को सुर दिया था। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(क) सरल वाक्य- वह मुझे जानने वाले सभी लोगों से मिले।
(ख) सरल वाक्य
(ग) संयुक्त वाक्य-आषाढ़ की एक सुबह थी और उस दिन एक मोर ने मल्हार के मियाऊ-मियाऊ को सुर दिया था।

प्रश्न 6.
निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तित कीजिए [1 × 4 = 4]
(क) फुरसत में मैना खूब रियाज़ करती है। (कर्मवाच्य में)
(ख) फाख्ताओं द्वारा गीतों को सुर दिया जाता है। (कर्तृवाच्य में)
(ग) बच्चा साँस नहीं ले पा रहा था। (भाववाच्य में)
(घ) दो-तीन पक्षियों द्वारा अपनी-अपनी लय में एक साथ कूदा जा रहा था। (कर्तृवाच्य में)
उत्तर:
(क) कर्मवाच्य–फुरसत में मैना के द्वारा खूब रियाज किया जाता हैं।
(ख) कर्तृवाच्य-फाख्ताएँ गीतों को सुर देती हैं।
(ग) भाववाच्य-बच्चे से साँस नहीं ली जा रही थी।
(घ) कर्तृवाच्य-दो-तीन पक्षी अपनी-अपनी लय में एक साथ कूदे जा रहे थे।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित रेखांकित पदों का पद-परिचय दीजिए- [1 × 4 = 4]
मनुष्य केवल भोजन करने के लिए जीवित नहीं रहता है, बल्कि
वह अपने भीतर की सुक्ष्म इच्छाओं की तृप्ति भी चाहता है।
उत्तर:
मनुष्य- जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग कर्ताकारक।
वह– सर्वनाम, एकवचन, पुरूषवाचक, पुल्लिंग, कर्ताकारक
सूक्ष्म -विशेषण, पुल्लिंग, एकवचन, गुणवाचक।
चाहता– क्रिया, सकर्मक, पुल्लिंग, एकवचन, वर्तमान काल ।

प्रश्न 8.
(क) निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर उनमें निहित रस पहचानकर लिखिए. [1 × 2 = 2]
(i) उपयुक्त उस खल को यद्यपि मृत्यु का भी दण्ड है, पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचण्ड है। अतएव कल उस नीच को रण-मध्य जो मारूँ न मैं, तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं।
(ii) वह आता
दो टूके कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक
(ख) (i) श्रृंगार रस का स्थायी भाव लिखिए।
(ii) निम्नलिखित काव्यांश में स्थायी भाव क्या है?
कब द्वै दाँत दूध के देखौं, कब तोतें, मुखे बचन झरें ।
कब नंदहिं बाबा कहि बोले, कब जननी कहि मोहिं ररै।
उत्तर:
(क) (i) वीर
(ii) करुण
(ख) (i) रति
(ii) वात्सल्य।

खण्ड ‘ग’

प्रश्न 9.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- [2 + 2 + 1 = 5]
पुराने जमाने में स्त्रियों के लिए कोई विश्वविद्यालय न था। फिर नियमब प्रणाली का उल्लेख आदि पुराणों में न मिले तो क्या आश्चर्य? और, उल्लेख उसका कहीं रहा हो, पर नष्ट हो गया हो तो? पुराने जमाने में विमान उड़ते थे। बताइए उनके बनाने की विद्या “खाने वाला कोई शास्त्र! बड़े-बड़े जहाजों पर सवार होकर लोग द्वीपांतरों को जाते थे। दिखाइए, जहाज बनाने की नियमब प्रणाली के दर्शक ग्रन्थ! पुराणादि में विमानों और जहाजों द्वारा की गई यात्राओं के हवाले देखकर उनका अस्तित्व तो हम बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं, परन्तु पुराने ग्रन्थों में अनेक प्रगल्भ पण्डिताओं के नामोल्लेख देखकर भी कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख, अपढ़ और अङ्कवार बताते हैं।
(क) पुराणों में नियमबे शिक्षा-प्रणाली न मिलने पर लेखक आश्चर्य क्यों नहीं मानता ?
(ख) जहाज बनाने के कोई ग्रन्थ न होने या न मिलने पर लेखक क्या बताना चाहता है?
(ग) शिक्षा की नियमावली का न मिलना, स्त्रियों की अपढ़ता का सबूत क्यों नहीं है?

प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए- [2 × 5 = 10]
(क) मन्नू भण्डारी ने अपनी माँ के बारे में क्या कहा है?
(ख) अन्तिम दिनों में मन्नू भण्डारी के पिता का स्वभाव शक्की हो गया था, लेखिका ने इसके क्या कारण दिए?
(ग) बिस्मिल्ला खाँ को खुद के प्रति क्या विश्वास है?
(घ) काशी में अभी भी क्या शेष बचा हुआ है?
उत्तर:
(क) मन्नू भण्डारी ने अपनी माँ के बारे में बताया कि वह सुबह से शाम तक बच्चों की इच्छा और पिताजी की आज्ञाओं का पालन करती रहती थी। वह धैर्य और धरती से अधिक सहनशीलता की प्रतिमा थी। वह बेपड़ी-लिखी होने के बाद भी सबकी उचित अनुचित फरमाइशों को पूरा करने में लगी रहती थी। वह एक तरफ परम्परागत पत्नी थी तो दूसरी तरफ ममत्व एवं स्नेह से लबालब भरी माँ थी।

(ख) अन्तिम दिनों में मन्नू भण्डारी के पिता का स्वभाव शक्की हो गया था। लेखिका ने इसके कई कारण बताए उन्हें अपनों के हाथों विश्वासघात मिला, गिरती आर्थिक स्थिति के कारण तथा अधूरी महत्वाकांक्षाओं के कारण वे स्वाभावगत शक्की हो गए।

(ग) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ नमाज के पश्चात् सजदे में गिड़गिड़ाते हुए प्रार्थना करते थे कि मालिक उन्हें एक सुर दे तथा उनके सुर में वह तासीर पैदा करे कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ उनको विश्वास था कि कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा, अपनी झोली से सुर का फल देकर उनकी सच्चे सुर की मुराद पूरी करेगा।

(घ) बिस्मिल्ला खाँ को काशी की बदली हुई परम्पराएँ और लुप्त होती चीजें कचोटती थीं। बहुत कुछ इतिहास बन गया तथा बहुत कुछ नया आ जाएगा। हिन्दू-मुस्लिम की जो गंगा-जमुनी संस्कृति थी, संगीत, साहित्य एवं अदब, तहजीब की जो परम्पराएँ थीं, वे सब बदलती जा रही हैं, जिनका अस्तित्व प्रायः समाप्त हो रहा है। काशी में अब उनके समय का आपसी सौहार्द और साम्प्रदायिक भाईचारा नहीं है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए [2 + 2 + 1 = 5]
तार सप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाढ़स बँधाता
कहीं से चला जाता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसको साथ
(क) बैठने लगता है उसका गला’ का क्या आशय है?
(ख) मुख्य गायक को ढाढ़स कौन बँधाता है और क्यों?
(ग) तार सप्तक क्या है?
उत्तर:
(क) गायक जब अपने स्वर को ऊपर ले जाता है तथा गला साथ नहीं देता है आवाज भर्राने लगती है। जिसके कारण गायक का गला बैठ जाता है।
(ख) मुख्य गायक का जब गला बैठने लगता है तो संगतकार उसे ढाँढ़स बँधाता है, इंसानियत के कारण, मुख्य गायक का साथ देता है।
(ग) संगीत के सात स्वर होते हैं उसमें आवाज को ऊँचा एवं नीचा करके गाया जाता है। आवाज के आधार पर स्वरों को तीन सप्तकों में बाँटा गया है मन्द सप्तक, मध्य सप्तक एवं तार सप्तक।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए। [2 × 5 = 10]
(क) ‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को अपने चेहरे पर न रीझने की सलाह क्यों दी है?
(ख) माँ का कौन-सा दुःख प्रामाणिक था, कैसे?
(ग) जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण कथन में कवि की वेदना और चेतना कैसे व्यक्त हो रही है?
(घ) धनुष को तोड़ने वाला कोई तुम्हारा दास होगा के आधार पर राम के स्वभाव पर टिप्पणी कीजिए।
(ङ) काव्यांश के आधार पर परशुराम के स्वभाव की दो विशेषताओं पर सोदाहरण टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
(क) अधिकांशतः स्त्रियाँ अपनी सुन्दरता के मोह में फँस जाती हैं जिसके कारण उनको प्रशंसा के बन्धन में बँधकर, कमजोर बनकर रहना पड़ता है जिसके कारण समाज के शोषण का शिकार बनती हैं। इसे ही अपना सर्वस्व मान घर की चारदीवारी में ही सीमित रह जाती हैं। परम्पराओं के निर्वाह तक सीमित रहना ही जीवन की सार्थकता समझ ली जाती है और वे अपने वास्तविक एवं आंतरिक गुणों से अनभिज्ञ रहती है।

(ख) विवाह के अवसर पर कन्यादान करते समय माँ जो दुःख | अनुभव करती थी वह दुख प्रामाणिक था, क्योंकि बेटी को कन्यादान स्वरूप वर पक्ष के हाथों सौंपते समय माँ के हृदय की पीड़ा स्वाभाविक होती है उसमें किंचित भी कृत्रिमता नहीं होती है।

(ग) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि की अपनी ही वेदना है कि वह जिस अभीष्ट की प्राप्ति की कामना कर रहा था, वह अपूर्ण रही जिसके कारण उसके जीवन में कई परेशानियाँ उत्पन्न हो रही हैं। समय पश्चात् उसे चेतना होती है। अथवा समझ आता है कि पूर्ण न होने वाली कामनाओं को लेकर जीवन को संत्रस्त करना अनुचित है। अतः अब अप्राप्त अभीष्ट की न सोचकर उज्ज्वल भविष्य हेतु करणीय उपाय करना ही श्रेयस्कर है।

(घ) ‘धनुष को तोड़ने वाला कोई तुम्हारा दास होगा’ के आधार पर राम की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं। राम अत्यन्त ही विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं, वे निडर, साहसी, धैर्यवान तथा मृदुभाषी थे, वे बड़ों की आज्ञा का पालन करने वाले थे। उन्हें लक्ष्मण की भाँति क्रोध नहीं आया करता था। ‘

(ङ) काव्यांश के आधार पर परशुराम के स्वभाव की विशेषताएँ
(i) मुनिराज परशुराम स्वभाव से अत्यंत क्रोधी थे।
उदाहरण- बालक बोलि बधौ नहि तोही।
केवल मुनि जड़ जानहि मोही।
(ii) परशुराम बाल ब्रह्मचारी व क्षत्रियों के प्रबल विरोधी थे।
उदाहरण- बाल ब्रह्मचारी अति कोही।।
बिस्वबिदित क्षत्रिय कुल द्रोही।

प्रश्न 13.
“आप चैन की नींद सो सकें इसीलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं’-एक फौजी के इस कथन पर जीवन-मूल्यों की दृष्टि से चर्चा कीजिए। [5]
उत्तर:
“आप चैन की नींद सो सकें इसीलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं। देश की सीमा पर बैठे फौजी कड़कड़ाती ठण्ड में, जब वहाँ का तापमान -15 डिग्री सेल्सियस पर हो जाता है, पौष और माघ के महीने में पेट्रोल को छोड़कर सब कुछ जम जाता है, उस समय भी ये फौजी जी-जान से देश की रक्षा में लगे रहते हैं। वहाँ का मौसम और परिस्थितियाँ विषम होती हैं। हमें देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिकों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, क्योंकि वह ऐसी उक्त परिस्थितियों में रहते हैं, जिससे हम अपने घरों में चैन की नींद सो सकें तथा देश की एकता एवं शान्ति को कोई भंग न कर सके। अगर ये लोग न हों, तो आपराधिक तत्वों को बढ़ावा मिल जाएगा। जिसके परिणामस्वरूप हमारा प्रत्येक क्षण भययुक्त होगा।

खण्ड “घ”

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए। [10]
(क) विज्ञापन की दुनिया

  • विज्ञापन का युग
  • भ्रमजाल और जानकारी
  • सामाजिक दायित्व ।।

(ख) अष्टाचार-मुक्त समाज

  • भ्रष्टाचार क्या है?
  • सामाजिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार
  • कारण और निवारण

(ग) पी.वी. सिन्धु : मेरी प्रिय खिलाड़ी

  • अभ्यास और परिश्रम
  • जुझारूपन और आत्मविश्वास
  • धैर्य और जीत का सेहरा

उत्तर:
(क) विज्ञापन की दुनिया
विज्ञापन शब्द ‘वि’ और ‘ज्ञापन के योग से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है विशेष रूप से कुछ बताना अर्थात् किसी वस्तु के गुणों का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन का दूसरा नाम विज्ञापन है। विज्ञापन समाज एवं व्यापार जगत् में होने वाले परिवर्तन को प्रदर्शित करने वाला उद्योग है, जो बदलते समय के साँचे में तेजी से ढल जाता है।

आज हमारे चारों ओर संचार तन्त्र का जाल-सा बिछा है। एक ओर हमारे जीवन में पुस्तकें, पत्रिकाएँ, समाचार-पत्र जैसे प्रिन्ट-मीडिया के साधनों की भरमार है, तो दूसरी ओर हम घर से बाहर तक रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, कम्प्यूटर, मोबाइल जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अत्याधुनिक साधनों से घिरे हुए हैं। किन्तु यदि हम कहें कि मीडिया के इन सारे साधनों पर सर्वाधिक आधिपत्य विज्ञापन का है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि न केवल इनकी आय का मुख्य स्रोत है वरन् पूरे संचार तन्त्र पर अपना गहरा प्रभाव भी छोड़ता है। विज्ञापन, उपभोक्ताओं को शिक्षित एवं प्रभावित करने के दृष्टिकोण से निर्माताओं, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं की ओर से विचारों, उत्पादों एवं सेवाओं से सम्बन्धित सन्देशों का अव्यक्तिगत संचार है। इसके प्रसारण के लिए समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन एवं फिल्मों को माध्यम बनाया जाता है।

विज्ञापन से कई लाभ होते हैं। यह उत्पादों, मूल्यों एवं गुणवत्ता, बिक्री सम्बन्धी जानकारियों इत्यादि के बारे में उपयोगी सूचनाएँ प्राप्त करने में उपभोक्ताओं की मदद करता है। यह नए उत्पादों के प्रस्तुतीकरण वर्तमान उत्पादों के उपभोक्ताओं को बनाये रखने और नए उपभोक्ताओं को आकर्षित कर अपनी बिक्री बढ़ाने में निर्माताओं की मदद करता है। यह लोगों को अधिक सुविधा, आराम, बेहतर जीवन पद्धति उपलब्ध कराने में सहायक होता है।

विज्ञापन से यदि कई लाभ हैं, तो इससे हानियाँ भी कम नहीं हैं। विज्ञापन पर किए गए व्यय के कारण उत्पाद के मूल्य में वृद्धि होती है। उदाहरण के तौर पर ठण्डे पेय पदार्थों को ही लीजिए। जो ठण्डा पेय पदार्थ बाजार में दस रुपये में उपलब्ध होता है, उसका लागत मूल्य मुश्किल से 5 से 7 रुपये के आस-पास होता है, किन्तु इसके विज्ञापन पर करोड़ों रुपये व्यय किए जाते हैं।

इसलिए इनकी कीमत में अनावश्यक वृद्धि होती है। कभी-कभी विज्ञापन हमारे सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों को क्षति पहुँचाता है। भारत में पश्चिम संस्कृति के प्रभाव एवं उपभोक्तावादी संस्कृति के विकास में विज्ञापनों का भी हाथ है। वैलेण्टाइन डे हो या न्यू ईयर ईव’ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ इनका लाभ उठाने के लिए विज्ञापनों का सहारा लेती हैं।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि विज्ञापन बहुपयोगी है, परन्तु इस पर आँख बन्द कर भरोसा नहीं करना चाहिए। कुछ कम्पनियों द्वारा इसका गलत उपयोग भोले-भाले लोगों और युवाओं को ठगने के लिए किया जाने लगा है। आज विज्ञापन का युग है और इसकी महत्ता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

(ख) भ्रष्टाचार मुक्त समाज
भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट और आचार के मेल से बना है। ‘भ्रष्ट’ शब्द के कई अर्थ होते हैं ‘मार्ग से विचलित, ‘ध्वस्त एवं बुरे आचरण वाला तथा ‘आचरण का अर्थ है ‘चरित्र’, ‘व्यवहार या ‘चाल-चलन।। इस प्रकार भ्रष्टाचार का अर्थ हुआ-अनुचित व्यवहार एवं चाल-चलन|

विस्तृत अर्थों में इसका तात्पर्य व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले ऐसे अनुचित कार्य से है, जिसे वह अपने पद का लाभ उठाते हुए आर्थिक या अन्य लाभों को प्राप्त करने के लिए स्वार्थपूर्ण ढंग से करता है।

रिश्वत लेना-देना, खाद्य पदार्थों में मिलावट, मुनाफाखोरी, कानूनों की अवहेलना करके अपना उल्लू सीधा करना आदि। भ्रष्टाचार के ऐसे रूप हैं, जो भारत ही नहीं दुनियाभर में व्याप्त हैं।

कवि रघुवीर सहाय ने देश के भ्रष्ट नेताओं पर व्यंग्य करते हुए लिखा है
‘निर्धन जनता का शोषण है।
कहकर आप हँसे
लोकतन्त्र का अन्तिम क्षण है।
कहकर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कहकर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कहकर आप हँसे।”
आज हमारे देश में धर्म, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन इत्यादि सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार ने अपने पाँव फैला दिए हैं। व्यापारी वर्ग सोचता है कि जाने कब घाटे की स्थिति आ जाए, इसलिए जैसे भी हो उचित-अनुचित तरीके से अधिक-से-अधिक धन कमा लिया जाए।

इन सबके अतिरिक्त गरीबी, बेरोजगारी सरकारी कार्यों का विस्तृत क्षेत्र, अल्प-वेतन इत्यादि कारणों से भी भारत में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है। हमारी पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने एक बार कहा था-उन मन्त्रियों से सावधान रहना चाहिए, जो बिना पैसों के कुछ नहीं कर सकते और उनसे भी, जो पैसे लेकर कुछ भी करने की इच्छा रखते है।”

भ्रष्टाचारियों के लिए भारतीय दण्ड संहिता में दण्ड का प्रावधान है तथा समय-समय पर भ्रष्टाचार के निवारण के लिए समितियाँ भी गठित हुई हैं। इस समस्या के समाधान हेतु निम्नलिखित बातों का पालन किया जाना आवश्यक है।

सबसे पहले इसके कारणों, जैसे—गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन आदि को दूर किया जाना चाहिए।
भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए ताकि भ्रष्ट लोगों को उच्च पदों पर आसीन होने से रोका जा सके।
देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए अन्ना हजारे द्वारा किए गए प्रयासों का काफी अच्छा परिणाम सामने आया है। उन्होंने राष्ट्रव्यापी आन्दोलन चलाकर भारतीय युवाओं में देश की छवि को स्वस्थ बनाने का नया जोश भर दिया है। यदि देश का युवा वर्ग अपना कर्तव्य समझकर भ्रष्टाचार का विरोध करने लगे, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत से भ्रष्टाचार रूपी दानव का अन्त हो जाएगा।

हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम ने कहा है-‘यदि किसी देश को भ्रष्टाचार मुक्त और सुन्दर मन वाले लोगों का देश बनाना है, तो मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य माता-पिता और गुरु यह कार्य कर सकते हैं।”

(ग) पी.वी. सिन्धु : मेरी प्रिय खिलाड़ी
पुसल वेंकट सिन्धु का जन्म 5 जुलाई, 1995 को हुआ, उनके पिता का नाम पी.वी. रमण है और उनकी माता पी. विजया है उनके माता और पिता दोनों ही हमारे देश के पूर्व वॉलीबाल खिलाड़ी रह चुके हैं उनकी एक बहन भी है, जिसका नाम पी.वी. दिव्या है।

सिन्धु ने मात्र 8 वर्ष की उम्र से ही बैडमिंटन खेलना प्रारम्भ कर दिया। सिन्धु ने बैंडमिंटन सीखने की शुरुआत सिकन्दराबाद में इण्डियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ सिग्नल इंजीनियरिंग एण्ड टेलीकम्यूनिकेशन में मेहबूब अली की देख-रेख में की।

अपनी छोटी-सी उम्र में ही सिन्धु ने बड़ी सफलता हासिल की है। वर्ष 2009 में कोलंबो में आयोजित सब जूनियर एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में सिन्धु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य मेडलिस्ट रही। 2016 में मलेशिया मास्टर्स ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड वुमेन्स सिंगल जीता। दुनिया की नम्बर 2 खिलाड़ी बांग यिहान के खिलाफ पी.वी. सिन्धु ने 22-20, 21-19 की संघर्षपूर्ण जीत दर्ज की और ओलम्पिक के सेमी फाइनल में जगह बनाई। उनकी इस जीत के बाद से भारत की रियो ओलम्पिक में पदक की उम्मीद बरकरार है। पी. सिन्धु हैदराबाद में गोपीचन्द बैडमिंटन एकेडमी में ट्रेनिंग लेती है और उन्हें ‘ओलम्पिक गोल्ड क्वेस्ट’ नाम की एक नॉन-प्रोफिट संस्था सपोर्ट करती है।

2013 में सिन्धु ऐसी पहली भारतीय महिला बनी जिसने वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीता था। 2015 में सिन्धु को भारत के चौथे उच्चतम नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

पी.वी. सिन्धु के पिता रमण स्वयं अर्जुन अवार्ड विजेता हैं। रमण भारतीय वॉलीबॉल का हिस्सा रह चुके हैं। सिन्धु ने अपने पिता के खेल वॉलीबॉल के बजाय, बैडमिंटन इसलिए चुना, क्योंकि वे पुलेला गोपीचन्द को अपना आदर्श मानती है।

गूगल ने एक बयान जारी कर कहा था, ‘ओलम्पिक सेमीफाइनल में विश्व की नम्बर छह खिलाड़ी नेजोमी ओकुहारा को हराने के बाद सिन्धु सबसे अधिक खोजे जाने वाली भारतीय खिलाड़ी है।

प्रश्न 15.
अपनी दादी की चित्र-प्रदर्शनी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखते हुए उन्हें बधाई-पत्र लिखिए।
अथवा
अपनी योग्यताओं का विवरण देते हुए प्राथमिक शिक्षक के पद के लिए अपने जिले के शिक्षा अधिकारी को आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर:
67-ए, मोहन नगर,
नई दिल्ली।
दिनांक 10 जुलाई, 20XX
पूजनीय दादी जी,
सादर चरण स्पर्श
आशा करती हूँ कि आप स्वस्थ होंगी। आपके द्वारा जो प्रदर्शनी लगाई गई थी, वो मुझे बहुत पसन्द आई है। आपने जिन चित्रों का प्रयोग प्रदर्शनी में किया था, वे बहुत ही आकर्षक एवं मनमोहक थे। दर्शकों द्वारा उनकी बहुत प्रशंसा की गयी थी। परिवार के सभी सदस्यों द्वारा भी उसकी सराहना की गई।

सभी लोगों ने आपकी प्रदर्शनी के सफल आयोजन के लिए आपको बधाई दी है। साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ऐसे ही आपका भविष्य और उज्ज्वल हो।
आपको तथा अन्य सभी को मेरा सादर चरण स्पर्श|
आपकी प्यारी पोती
अनीता

अथवा
शिक्षा अधिकारी को पत्र

सेवा में,
ज़िला शिक्षा
अधिकारी,
जोधपुरे, (राज.)
दिनांक 5 जुलाई, 20XX
विषय-प्राथमिक शिक्षक के पद के लिए आवेदन-पत्र।
मान्यवर,
रोजगार समाचार दिनांक 16/4/2017 के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि आपके अधीन प्राथमिक शिक्षकों के कुछ स्थान रिक्त हैं तथा उनके लिए आवेदन-पत्र आमन्त्रित किए गए हैं। मैं भी इसी पद के लिए अपना आवेदन-पत्र आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रही हूँ। मेरी शैक्षणिक योग्यताएँ, अनुभवे तथा अन्य विवरण निम्नलिखित हैं।

मैंने जोधपुर विश्वविद्यालय में स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की है।
मैंने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से 1997 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा भी द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की है।
मैंने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से ही वर्ष 1995 में हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है।
मैंने राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र जोधपुर (राज.) से बेसिक टीचर कोर्स वर्ष 2002 में सफलतापूर्वक पूरा किया है। (STC) इस परीक्षा में भी अच्छे अंक प्राप्त किए।
मैं जुलाई 2008 से डी.ए.वी. हायर सैकेण्डरी स्कूल, जोधपुर में प्राथमिक शिक्षिका के पद पर कार्यरत हूँ।
मैंने अपने विद्यार्थी जीवन में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर कई पुरस्कार प्राप्त किए। मैं 36 वर्षीय स्वस्थ महिला हूँ।

आशा है कि आप मुझे सेवा का एक अवसर अवश्य प्रदान करेंगे। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि मैं चयन किये जाने के पश्चात् अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा के साथ पालन करूँगी तथा अपने कार्य एवं व्यवहार से अधिकारियों को सदा संतुष्ट रखने का प्रयास करूंगी। आवेदन पत्र के साथ प्रमाण-पत्रों के प्रतिरूप संलग्न है।
धन्यवाद
प्रार्थी
अनिता कुमारी

प्रश्न 16.
निम्नलिखित गद्यांश का शीर्षक लिखकरे एक-तिहाई शब्दों में सार लिखिए :  [5]
ऐसा कोई दिन आ सकता है, जबकि मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा। प्राणिशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि मनुष्य का यह अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा, जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गई है। उस दिन मनुष्य की पशुता भी लुप्त हो जाएगी। शायद उस दिन वह मारणास्त्रों का प्रयोग भी बंद कर देगा। तब इस बात से छोटे बच्चों को परिचित करा देना वांछनीय जान पड़ता है कि नाखून का बढ़ना मनुष्य के भीतर की पशुता की निशानी है और उसे नहीं बढ़ने देना मनुष्य की अपनी इच्छा है, अपना आदर्श है। बृहत्तर जीवन में अस्त्र-शस्त्रों को बढ़ने देना मनुष्य की पशुतो की निशानी है और उनकी बाढ़ को रोकना मनुष्यत्व का तकाजा। मनुष्य में जो घृणा है, जो अनायास–बिना सिखाए–आ जाती है, वह पशुत्व का द्योतक है और अपने को संयत रखना, दूसरों के मनोभावों का आदर करना मनुष्य का स्वधर्म है। बच्चे यह जानें तो अच्छा हो कि अभ्यास और तप से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य की महिमा को सूचित करती हैं।

CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Outside Delhi Term 2 Set – II

Note : Except for the following questions all the remaining questions have been asked in previous set.

खण्ड ख

प्रश्न 5.
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए [1 ×3 = 3]
(क) जब सावन-भादों आते हैं तब दर्जिन की आवाज पूरे इलाके में गूंजती है। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ख) भुजंगा शाम को तार पर बैठकर पतिंगों को पकड़ता रहता है। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(ग) अँधेरा होते-होते चौदह घण्टों बाद कूजन-कुंज का दिन खत्म हो जाता है। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(क) सरल वाक्य-सावन-भादों में दर्जिन की आवाजें पूरे इलाके में गूंजती है।
(ख) मिश्र वाक्य-भुजंगा जब शाम को तार पर बैठता है तब पतिंगों को पकड़ता है।
(ग) संयुक्त वाक्य-चौदह घण्टे के बाद अँधेरा होने लगता है – और कूजन-कुंज का दिन खत्म हो जाता है।

प्रश्न 6.
निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तित कीजिए : [1 × 4 = 4]
(क) श्यामा सुबह-शाम के राग बखूबी गाती है। (कर्मवाच्य में)
(ख) पक्षियों द्वारा संगीत का अभ्यास किया जाता है। (कर्तृवाच्य में)
(ग) दर्द के कारण उससे चला नहीं जाता। (कर्तृवाच्य में)
(घ) चोट के कारण वह बैठ नहीं सकती। (भाववाच्य में)
उत्तर:
(क) कर्मवाच्य-श्यामा के द्वारा सुबह-शाम का राग बखूबी गाए जाते हैं।
(ख) कर्तृवाच्य-पक्षी संगीत का अभ्यास करते हैं।
(ग) कर्तृवाच्य-दर्द के कारण वह चल नहीं पाता।
(घ) भाववाच्य-चोट के कारण उससे बैठा नहीं जा सकता।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित रेखांकित पदों का पद-परिचय दीजिए- [1 × 4= 4]
आज विज्ञान व परमाणु-युग में सबसे नाजुक प्रश्न शान्ति ही है।
उत्तर:
आज- क्रियाविशेषण, कालवाचक, है क्रिया का विशेषण।
विज्ञान- संज्ञा, एकवचन, पुल्लिग, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग
नाजुक–विशेषण, एकवचन, स्त्रीलिंग
शान्ति- भाववाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन

प्रश्न 8.
(ख) (i) निम्नलिखित काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है? [1]
सुत मुख देखि जसोदा फूली
हरषति देखि दूध की बँतिया, प्रेम मगन तन की सुधि भूली।
(ii) करुण रस का स्थायी भाव लिखिए।
उत्तर:
(ख) (i) वात्सल्य रस
(ii) शोक रस

खण्ड “घ”

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए : [10]
(क) अनुशासित दिनचर्या ।

  • जीवन में अनुशासन की अपेक्षा
  • अनुशासित क्रियाकलाप का लाभ
  • काम करें।

(ख) प्राकृतिक आपदा-भूकम्प

  • प्राकृतिक आपदाएँ
  • भूकम्प से नुकसान
  • बचाव के उपाय

(ग) ओलम्पिक और भारत

  • ओलम्पिक खेल
  • भारतीय खिलाड़ियों की प्रदर्शन
  • सुधार के कदम

उत्तर:
(क) अनुशासित दिनचर्या
“उत्तम स्वास्थ्य का आनन्द पाने के लिए, परिवार में खुशी लाने के लिए और सबको शान्ति प्रदान करने के लिए सबसे पहले अनुशासित बनने और अपने मस्तिष्क पर नियन्त्रण प्राप्त करने की आवश्यकता है।” ‘अनुशासन शब्द ‘शासन’ में ‘अनु’ उपसर्ग के जुड़ने से बना है, इस तरह अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है शासन के पीछे चलना। प्रायः माता-पिता एवं गुरुजनों के आदेशानुसार चलना ही अनुशासन कहलाता है, किन्तु यह अनुशासन के अर्थ को सीमित करने जैसा है। व्यापक रूप से देखा जाए, तो स्वशासन अर्थात् आवश्यकतानुरूप स्वयं को नियन्त्रण में रखना भी अनुशासन ही है। अनुशासन के व्यापक अर्थ में, शासकीय कानून के पालन से लेकर सामाजिक मान्यताओं का सम्मान करना ही नहीं, बल्कि स्वस्थ रहने के लिए, स्वास्थ्य, नियमों का पालन करना भी सम्मिलित है।

इस तरह, सामान्य एवं व्यावहारिक रूप में व्यक्ति जहाँ रहता है। वहाँ के नियम, कानून एवं सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करना ही अनुशासन कहलाता है।

माइकल जे. फॉल्स ने कहा, इसे इस अर्थ से देखा जाए, तो जैसा शासन होगा, वैसा ही अनुशासन होगा। इस प्रकार यदि कहीं अनुशासनहीनता व्याप्त है। तो कहीं-न-कहीं इसमें अच्छे शासन सही नहीं है। तो परिवार में अव्यवस्था व्याप्त रहेगी ही। यदि किसी स्थान का प्रशासन सही नहीं है तो वहाँ अपराध का ग्राफ स्वाभाविक रूप से ऊपर ही रहेगा। यदि राजनेता कानून का पालन नहीं करेंगे, तो जनता से इसके पालन की उम्मीद नहीं की जा सकती। यदि खेल के मैदान में कैप्टन अनुशासित नहीं रहेगा तो टीम के अन्य सदस्यों से अनुशासन की आशा करना व्यर्थ है और यदि टीम अनुशासित नहीं है, तो उसकी पराजय से उसे कोई नहीं बचा सकता है। इसी तरह, यदि देश की सीमा पर तैनात सैनिकों का कैप्टन ही अनुशासित न हो। तो उसकी पराजय से उसे कोई नहीं बचा सकता। इसी तरह, यदि देश की सीमा पर तैनात सैनिकों का कैप्टन ही अनुशासित न हो, तो उसकी सैन्य टुकड़ी कभी अनुशासित नहीं रह सकती। परिणामस्वरूप देश की सुरक्षा निश्चित रूप से खतरे में पड़ जाएगी। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के शब्दों में, “अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है और न संस्था ने राष्ट्र ही सचमुच यदि कर्मचारीगण अनुशासित न हो, तो वहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता। अनुशासन के अभाव में किसी भी समाज में अराजकती व्याप्त हो जाती है। अतः अनुशासन किसी भी समाज की मूलभूत आवश्यकता है। अनुशासन न केवल व्यक्तिगत हित बल्कि सामाजिक हित के दृष्टिकोण से भी अनिवार्य है।

(ख) प्राकृतिक आपदा-भूकम्प
प्राकृतिक आपदा जब भी गुस्सा दिखाती है तो कहर ढहाए बिना नहीं मानती है। आकाश के तारों को छू लेने वाला विज्ञान प्राकृतिक आपदाओं के सामने घुटने टेक देता है। अनेक प्राकृतिक आपदाओं में कई आपदाएँ मनुष्य की अपनी देन हैं। कुछ वर्षों में प्रकृति के गुस्से के जो रूप देखे गए हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि प्रकृति के क्षेत्र में मनुष्य जब हस्तक्षेप करता है, तो उसका ऐसा ही परिणाम होता है, जो सुनामी के रूप में और गुजरात के भूकम्प के रूप में देखने में और सुनने में आया।

वैज्ञानिक इसका सटीक कारण नहीं बता सके हैं। हाँ, भूकम्प की तीव्रता को नापने का यन्त्र तो जैसे-तैसे बना लिया गया है। वर्षों के प्रयास के बावजूद भी इससे निजात पाने की बात तो दूर उसके रहस्यों को भी नहीं जान पाया गया है। यह उनके लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है।

वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार पृथ्वी की बहुत गहराई में तीव्रतम आग है। जहाँ आग है, वहाँ तरल पदार्थ है। आग के कारण इस तरल पदार्थ में हलचल होती रहती है। जब यह उथल-पुथल अधिक बढ़ जाती है तब झटके के साथ पृथ्वी की सतह की ओर फूट पड़ती है। इस तरह उसकी तीव्रता के अनुसार पृथ्वी हिलने लगती है।

गुजरात में तीव्रगति से भूकम्पन हुआ। इस भूकम्प ने दिन चुना गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी। सम्पूर्ण देश गणतन्त्र के राष्ट्रीय उत्सव में मग्न थी। गुजरात के लोग दूरदर्शन पर गणतन्त्र दिवस का कार्यक्रम देख रहे थे। तभी यकायक/एकाएक/अचानक झटका लगा धरती हिली। लोग सोच भी न पाए कि क्या हुआ और इतनी ही देर में गगनचुंबी अट्टालिकाएँ, अस्पताल, विद्यालय, फैक्टरी और टेलीविजन के सामने बैठी भीड़ को थोड़ी देर में भूकम्प निगल गया और शेष रह गई उन लोगों की चीत्कार, और जो उसकी चपेट में आने से बच गए।

भूकम्प से उत्पन्न हृदय विदारक दृश्य को देखकर भी कुछ लोग मानवता के स्थान पर अमानवीय कृत्य करने में संकोच नहीं करते हैं। एक ओर तो देश के कोने-कोने से और दूसरे देशों से सहायता पहुँचती है और व्यवस्था के ठेकेदार उसमें भी कंजूसी करते हैं और अपनी व्यवस्था पहले करने लगते हैं। ऐसे लोग ऐसे समय में मानवता को ही कलंकित करते हैं। इस तरह प्राकृतिक आपदा कहर ढहाकर मानवता का परिचय करा देती है।

ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्य को सन्देश देती हैं कि जब-तक जिओ, तब-तक परस्पर प्रेम से जिओ। यह प्राकृतिक आपदा मनुष्य को सचेत करती है और सन्देश देती है कि मैं मौत बनकर सामने खड़ी हैं, जब तक जी। रहे हो तब तक मानवता की सीमा में रहो और जीवन को आनन्दित करो और प्रेम से रहो।

(ग) ओलम्पिक और भारत
प्राचीनकाल में यदा-कदा खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था और सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले सैनिकों को सम्राट पुरस्कृत करते थे। प्रारम्भ में इसी प्रकार योद्धा-खिलाड़ियों के मध्य प्राचीन ओलम्पिक खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। विश्व में प्रथम ओलम्पिक खेलों का विधिवत् आयोजन 776 ई. पूर्व यूनान (ग्रीस) के ओलम्पिया नामक नगर में हुआ था। इसी कारण इसका नाम ओलम्पिक पड़ा। प्रथम ओलम्पिक के आयोजन के पश्चात् प्रत्येक चार वर्ष की अवधि पर ओलम्पिक खेलों का आयोजन किया जाने लगा, जिसमें हजारों संख्या में लोग एकत्र होकर खेलों का आनन्द लेते थे।

आधुनिक ओलम्पिक खेलों का आयोजन प्रारम्भ करने का श्रेय फ्रांस के विद्वान खेल प्रेमी पियरे डि कुबर्तन को जाता है। 1894 ई. में उनके प्रयासों से ‘अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति का गठन किया गया, जिसके प्रथम अध्यक्ष स्वयं ‘पियरे डि कुबर्तिन’ ही बनाए गए। प्राचीन ओलम्पिक खेलों में महिलाओं को भाग नहीं लेने दिया जाता था। लेकिन 1900 ई. में दूसरे ओलम्पिक खेलों में महिलाओं ने पहली बार भाग लिया। ओलम्पिक खेलों में किसी स्पर्धा में प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान प्राप्त करने वालों को एक प्रमाण-पत्र के साथ क्रमशः स्वर्ण, रजत तथा काँस्य पदक से सम्मानित किया जाता है। चतुर्थ से अष्टम् स्थान प्राप्त करने वालों को केवल प्रमाण-पत्र से सम्मानित किया जाता है।

वर्ष 1900 में पेरिस ओलम्पिक में ब्रिटिश भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कोलकाता निवासी एंग्लो-इण्डियन सर नॉर्मन प्रिचार्ड ने हिस्सा लिया था, लेकिन सन् 1920 से इसमें भारत ने भाग लेना प्रारम्भ किया था। तब से लेकर सन् 2016 में आयोजित रियो ओलम्पिक तक भारत कुल मिलाकर 26 पदक जीत पाया है। इनमें से 11 पदक भारत ने हॉकी में जीते हैं, जिनमें से 8 स्वर्ण 1 रजत एवं 2 काँस्य पदक थे। वर्ष 1952 में हेलसिंकी
ओलम्पिक में के.डी. जाधव के काँस्य पदक के रूप में किसी व्यक्तिगत स्पर्धा (कुश्ती) में प्रथम ओलम्पिक पदक जीतने का गौरव प्राप्त किया। इसके पश्चात् वर्ष 1996 में अटलांटा ओलम्पिक में लिएण्डर पेस ने टेनिस में एक कांस्य पदक तथा वर्ष 2000 में सिडनी ओलम्पिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में काँस्य पदक जीता।

वर्ष 2004 में एथेंस ओलम्पिक में मेजर राज्यवर्द्धन सिंह राठौर ने निशानेबाजी में एक रजत पदक प्राप्त किया। सन् 2008 में ओलम्पिक में अभिनव बिन्द्रा ने किसी व्यक्तिगत स्पर्धा में पहली बार भारत के लिए स्वर्णपदक जीतने का गौरव प्राप्त किया। इसी आयोजन में सुशील कुमार ने कुश्ती में एवं विजेन्दर कुमार ने मुक्केबाजी में एक-एक कांस्य हासिल किया। वर्ष 2012 में हुए लन्दन ओलम्पिक में भारत के खिलाड़ियों ने दो रजत, चार कांस्य पदक जीतकर ओलम्पिक इतिहास का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। इसी आयोजन में निशानेबाजी में भारत का गगन नारंग एवं विजय कुमार, बैडमिंटन में साइना नेहवाल, महिला मुक्केबाजी में मैरीकॉम, 60 किग्रा पुरुष वर्ग कुश्ती में योगेश्वर दत्त एवं 66 किग्रा कुश्ती में सुशील कुमार ने पदक जीते।।

भारत का आज तक का ओलम्पिक में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। भारत की कुल जनसंख्या में से लगभग 45 करोड़ युवाओं की संख्या होगी, इतनी आशा की जा सकती है। कि उनका नाम ओलम्पिक खेल की पदक तालिका में यथासम्भव ऊपर हो, किन्तु खेलों में अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप, ग्रामीण प्रतिभाओं को बढ़ावा न देना, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की आधुनिक खेल सामग्री का अभाव इत्यादि कारणों से भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन आज तक निराशाजनक ही रहा है। लेकिन वर्ष 2012 में अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन कर अन्य खिलाड़ियों को भी प्रेरित किया है, जिसके परिणामस्वरूप वे निरन्तर अभ्यास द्वारा अपनी योग्यता का बेहतर प्रदर्शन कर सकें।

प्रश्न 15.
हाल में देखे हुए किसी नाटक की समीक्षा करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए। [5]
अथवा
विद्यालय में एक संगीत-सम्मेलन करने की अनुमति देने हेतु अपने प्रधानाचार्य से अनुरोध कीजिए।
उत्तर:
परीक्षा भवन,
नई दिल्ली।
दिनांक-5 अक्टूबर, 20XX
प्रिय मित्र,
कैसे हो? आशा करता/करती हूँ कि कुशलतापूर्वक होंगे। मैं भी अच्छा हूँ। बहुत दिनों से तुम्हारे कोई समाचार प्राप्त नहीं हुए। मैंने अभी हाल ही में कन्या भ्रूण हत्या पर आधारित एक नाटक देखा, जिसकी कहानी मेरे हृदय को अन्दर तक झकझोर गई कि कैसे संकीर्ण मानसिकता वाले व्यक्ति एक केन्या का जन्म होना। अभिशाप मानते हैं। उसके दुनिया में आने से पूर्व ही उसकी हत्या कर देते हैं। अगर सभी इस प्रकार करने लग जायेंगे तो लड़का लड़की का अनुपात बिगड़ जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो आने वाले समय में विवाह के लिए लड़कियों की संख्या कम होगी बजाय लड़कों के। वो लोग ये कैसे भूल जाते हैं, कि हमें जन्म देने वाली भी एक स्त्री है। मुझे इस तरह की सोच रखने वालों पर बहुत तरस आता है, साथ ही गुस्सा भी बहुत आता है। हमें अपने आस-पास कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य कुकृत्यों को रोकना होगा तथा उनकी इस सोच को भी बदलना होगा कि बेटे के बराबर आजकल बेटियाँ भी हैं। उनको बताना होगा कि प्रत्येक क्षेत्र में बेटी बेटे से आगे है।
अंकल, आंटी को मेरा प्रणाम कहना।
तुम्हारा प्रिय मित्र
निखिल

अथवा
अपना पता

सेवा में,
प्रधानाचार्य,
सर्वोदय बाल विद्यालय,
जनकपुरी, दिल्ली।
दिनांक 5 अक्टूबर, 20XX
विषय-संगीत-सम्मेलन करने की अनुमति हेतु पत्र।
महोदय, सविनय निवेदन है कि हम 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के अवसर पर एक संगीत सम्मेलन का आयोजन करना चाहते हैं। इसमें विद्यार्थी एवं अध्यापक-अध्यापिकाएँ अपनी-अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। इस अवसर पर अन्य ख्यातिप्राप्त संगीतकारों को भी आमन्त्रित किया जाएगा।

कृपया आप हमें अनुमति प्रदान करें कि हम अपने संगीत सम्मेलन के लिए संगीतकारों को आमन्त्रित करें।
इस संगीत सम्मेलन में विद्यालय के संगीत के शिक्षक एवं शिक्षिका भी अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करेंगे।
आपको आज्ञाकारी
शिष्य धन्यवाद!
राजीव
विद्यालय छात्र प्रमुख

CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Outside Delhi Term 2 Set – III

Note: Except for the following questions all the remaining questions have been asked in previous sets.

खण्ड ‘ख’

प्रश्न 5.
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए : [1 × 3 = 3]
(क) डलिया में आम हैं, दूसरे फलों के साथ आम रखे हैं। (सरल वाक्य बनाइए)
(ख) शर्मीला पीलक पेड़ के पत्तों में छुपकर बोलता है। (संयुक्त वाक्य बनाइए)
(ग) पीलक जितना शर्मीला होता है उतनी ही इसकी आवाज भी शर्मीली है। (वाक्य-भेद लिखिए)
उत्तर:
(क) सरल वाक्य-डलिया में आम दूसरे फलों के साथ रखे हैं।
(ख) संयुक्त वाक्य-पीलक शर्मीला है और पेड़ के पत्तों में छिपकर बोलता है।
(ग) मिश्रवाक्य

प्रश्न 6.
निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तित कीजिए : [1 × 4 = 4]
(क) कुछ छोटे भूरे पक्षी मंच सँभाल लेते हैं। (कर्मवाच्य में)
(ख) बुलबुले द्वारारात्रि विश्रामअमरूद की डाल पर किया जाता है। (कर्तृवाच्य में)
(ग) तुम दिनभर कैसे बैठोगे? (भाववाच्य में)
(घ) सात सुरों को यह गजब की विविधता के साथ प्रस्तुत करती है। (कर्मवाच्य)
उत्तर:
(क) कर्मवाच्य- कुछ छोटे भूरे पक्षियों के द्वारा मंच सँभाल लिया गया जाता था।
(ख) कर्तृवाच्य- बुलबुल रात्रि विश्राम अमरूद की डाल पर करती है।
(ग) भाववाच्य- तुम से दिन भर कैसे बैठा जायेगा?
(घ) कर्मवाच्य– सात सुरों को इसके द्वारा गजब की विविधता के साथ प्रस्तुत किया गया।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित रेखांकित पदों को पद-परिचय दीजिए : [1 × 4 = 4]
मानवे को इंसान बनाना अत्यन्त ही कठिन कार्य है लेकिन असम्भव नहीं।
उत्तर:
मानव को– जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग, कर्मकारक
कठिन- गुणवाचक विशेषण, एकवचन, पुल्लिंग
कार्य- क्रिया, एकवचन, पुल्लिंग, भाववाचक
लेकिन– समुच्चयबोधक अव्यय

प्रश्न 8.
(ख) (i) निम्नलिखित काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है? [1]
बाहर तें तब नन्द बुलाए देखौ धौं सुन्दर सुखदाई।।
तनक-तनके सी दूध दंतुलिया देखौ, नैन सफल करौ आई।
(ii) हास्य रस का स्थायी भाव लिखिए।
उत्तर:
(ख) (i) वात्सल्य रस
(ii) हास

खण्ड “घ”

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए : [10]
(क) स्वच्छता की ओर बढ़े कदम

  • स्वच्छता की आवश्यकता
  • स्वच्छता के प्रति जागरूकता
  • नियम, कानून।

(ख) आतंकवाद

  • बढ़ता आतंकवाद
  • भारत में आतंकवाद,
  • विश्व स्तर पर आतंकवाद,

(ग) एक मुलाकात महिला चैंपियन साक्षी मलिक से

  • कैसे हुई भेंट .
  • हिम्मत और मेहनत,
  • आपकी राय,

उत्तर:
(क) स्वच्छता की ओर बढ़े कदम
यह सर्वविदित है कि 2 अक्टूबर को हमारे देश में प्रति वर्ष गाँधीजी का जन्म दिवस को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। 2 अक्टूबर, 2014 को ससम्मान राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी को याद किया गया, लेकिन ‘स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के कारण इस बार यह और भी विशिष्ट दिन हो गयी। ‘स्वच्छ भारत अभियान एक राष्ट्रीय स्तर अभियान है। गाँधीजी की 145वीं जयन्ती के अवसर पर माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस अभियान के आरम्भ की घोषणा की।

साफ-सफाई को लेकर दुनियाभर में भारत की छवि बदलने के लिए प्रधानमन्त्री जी बहुत गम्भीर हैं। हमारे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2 अक्टूबर के दिन सर्वप्रथम गाँधीजी को राजघाट पर श्रद्धांजलि अर्पित की तथा फिर नई दिल्ली स्थित वाल्मीकि बस्ती में जाकर झाडू लगाई, कहा जाता है कि वाल्मीकि बस्ती दिल्ली में गाँधीजी का सबसे प्रिय स्थान था। वे अक्सर वहाँ जाकर ठहरते थे।

प्रधानमन्त्री जी ने पाँच साल में देश को साफ-सुथरा बनाने के लिए लोगों को शपथ दिलाई कि न मैं गन्दगी करूंगा और न ही गन्दगी करने दूंगा। अपने अतिरिक्त मैं सौ अन्य लोगों को साफ-सफाई के प्रति जागरूक करूंगा। और उन्हें सफाई की शपथ दिलवाऊँगा। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति साल में 100 घण्टे का श्रमदान करने की शपथ ले और सप्ताह में कम-से-कम दो घण्टे सफाई के लिए निकले। अपने भाषण में उन्होंने स्कूलों और गाँवों में शौचालय निर्माण की आवश्यकता पर भी बल दिया। केन्द्र सरकार और प्रधानमन्त्री की ‘गन्दगी मुक्त भारत’ की संकल्पना अच्छी है तथा इस दिशा में उनकी ओर से किए गए आरम्भिक प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आखिर क्या कारण है कि साफ-सफाई हम भारतवासियों के लिए कभी महत्व का विषय नहीं रहा? आखिर क्या तमाम प्रयासों के पश्चात् भी हम साफ-सुथरे नहीं रहते हैं? आज पूरी दुनिया में भारत की छवि एक गन्दे देश की है। पिछले ही वर्ष हमारे पड़ोसी देश चीन के कई ब्लागों पर गंगा में तैरती लाशों और भारतीय सड़कों पर पड़े कूड़े के ढेर वाली तस्वीरें छाई रहीं।

यह सही है कि चरित्र की शुद्धि और पवित्रता बहुत आवश्यक है, परन्तु बाहर की सफाई भी उतनी ही आवश्यक है। यदि हमारा आस-पास का परिवेश ही स्वच्छ नहीं होगी, तो मन भलो किस प्रकार शुद्ध रह सकेगा। अस्वच्छ परिवेश को प्रतिकूल प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता है। जिस प्रकार एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। उसी प्रकार एक स्वस्थ और शुद्ध व्यक्तित्व का विकास भी स्वच्छ और पवित्र परिवेश में ही सम्भव है। अतः अन्तःकरण की शुद्धि का मार्ग बाहरी जगत की शुद्धि और स्वच्छता से होकर ही गुजरता है। साफ-सफाई के अभाव में हमारा आध्यात्मिक लक्ष्य भी प्रभावित होता है। साथ ही आर्थिक प्रगति भी बाधित होती है। हम स्वच्छ रहकर आर्थिक नुकसान से भी बच सकते हैं।

अतः हमें अपने दैनिक जीवन में भी सफाई को एक मुहिम की भाँति शामिल करने की आवश्यकता है, साथ ही हमें इसे एक बड़े स्तर पर भी देखने की जरूरत है, ताकि हमारा
पर्यावरण भी स्वच्छ रहे।

(ख) आतंकवाद
वर्तमान समय में आतंकवाद एक वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुका है जिसकी आग में सम्पूर्ण विश्व जल रहा है। कोई भी देश ये नहीं कह सकता कि हम आतंकवाद से पूर्णतया मुक्त हैं। वास्तविकता तो यह है कि कोई भी नहीं जानता कि आतंकवाद का अगला निशाना कौन तथा किस रूप में होगा।

हिंसा के द्वारा जनमानस में भय अथवा आतंक पैदा कर अपने उद्देश्यों को पूरा करना ही आतंकवाद है। यह उद्देश्य किसी भी प्रकार से हो सकता है।

आतंकवादी हमेशा आतंक फैलाने के नए-नए तरीके आजमाते रहे हैं। भीड़ भरे स्थानों, रेल–बसों इत्यादि में बम विस्फोट करना, रेलवे दुर्घटना करवाने के लिए रेलवे लाइनों की पटरियाँ उखाड़ देना, वायुयानों का अपहरण कर लेना, बैंक डकैतियाँ, निर्दोष लोगों को बन्दी बनाकर इत्यादि कुछ ऐसी आतंकवादी गतिविधियाँ हैं, जिनसे पूरा विश्व पिछले कुछ दशकों से त्रस्त है।

आज पूरा विश्व किसी-न-किसी रूप में आतंकवाद की चपेट में है। पिछले एक दशक से आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर और 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में हुआ आतंकवादी हमला आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव को चित्रित करता है।

हाल ही में पाकिस्तान के पेशावर जिले में स्थित एक आर्मी स्कूल में लगभग 150 मासूम बच्चों को निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया गया।

सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि जिन ताकतों या देशों ने अपने स्वार्थ के कारण किसी-न-किसी रूप में आतंकवाद को प्रोत्साहित किया है।

आज वे भी आतंकवाद से लड़ने में कमजोर पड़ गए हैं, अर्थात् आतंकवादी संगठनों की ताकत लगातार बढ़ती जा रही है। भारत दुनियाभर में आतंकवाद से सर्वाधिक त्रस्त देशों में से एक है। इसका प्रमुख कारण उसका पड़ोसी देश पाकिस्तान है। भारत और पाकिस्तान में आरम्भ से ही जम्मू-कश्मीर राज्य विवाद का मुद्दा है एवं दोनों ही देश इस पर अपना अधिकार करना चाहते हैं। पाकिस्तान भारत को आन्तरिक रूप से नुकसान पहुँचाने के लिए आतंकवाद का सहारा लेना शुरू कर दिया।

वैसे तो आतंकवाद के प्रमुख कारण राजनैतिक स्वार्थ, सत्ता लोलुपता एवं धार्मिक कट्टरता हैं, किन्तु नक्सलवाद जैसी विद्रोही गतिविधियों के सामाजिक कारण भी हैं, जिनमें बेरोजगारी एवं गरीबी प्रमुख है। विश्व के अधिकतर आतंकवादी संगठन युवाओं की गरीबी एवं बेरोजगारी का उठाकर ही उन्हें आतंकवाद के अन्धे कुए में कूदने के लिए उकसाने में सफल रहते हैं।

आतंकवाद जैसी समस्या का सही समाधान यही हो सकता है कि जिन कारणों से आतंकवाद में निरन्तर वृद्धि हो रही, उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाए। इसमें पिछड़े इलाकों के युवक-युवतियों को रोजगार मुहैया करवाये जाएँ। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार को बड़े कदम उठाने होंगे तथा पाकिस्तानी घुसपैठ को रोकने के लिए राज्य पर अपनी प्रशासनिक पकड़ मजबूत करनी होगी तथा आवश्यकता पड़ने पर पाकिस्तान से द्विपक्षीय वार्ता के अतिरिक्त उसके प्रति कठोर कदम उठाये जा सकें। हाल ही में भारत ने पुलवामा हमले के बदले में पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट किया। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए पूरे विश्व को मिलकर एक व्यापक रणनीति बनानी ही समय की माँग है।

(ग) एक मुलाकात महिला चैंपियन साक्षी मलिक से साक्षी मलिक एक फ्री स्टाइल रेसलर है। 2016 के रिओ ओलम्पिक में साक्षी 58 किलो की वजन श्रेणी में कांस्य पदक जीतने वाली पहली महिला रेसलर बनी और साथ ही देश की तरफ से ओलम्पिक्स में पदक जीतने वाली चौथी महिला बनी।

साक्षी मलिक वर्तमान में भारतीय रेलवे के दिल्ली डिवीजन के उत्तरी रेलवे जोन में कॉमर्शियल डिपार्टमेंट में कार्यरत है। रिओ ओलम्पिक्स में कांस्य मेडल जीतने के बाद उनकी पदोन्नति कर दी गई। रोहतक के महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी से उन्होंने शारीरिक शिक्षा प्राप्त की।

साक्षी मलिक का जन्म 3 सितम्बर 1992 को हरियाणा रोहतक ज़िले में हुआ था। उनके पिता के अनुसार दादा बदलूराम से उन्हें रेसलिंग की प्रेरणा मिली। उनके दादाजी एक रेसलर थे। 12 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने एक कोच के साथ रेसलिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। उनके कोच और उन्हें दोनों को ही स्थानीय लोगों की आलोचनाओं का काफी सामना करना पड़ा था। प्रशिक्षुक रेसलर के रूप में मलिक को पहली बार सफलता 2010 में जूनियर वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मिली उसमें उन्होंने 58 किलो की वजन श्रेणी में कांस्य पदक जीता था। 2014 में 60 किलो वजन की श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता था। साक्षी मलिक ने 2014 के कॉमनवेल्थ में कैमरून की एडवीग न्गोनो एशिया को हराकर क्वार्टर फाइनल मैच जीता था।

2015 में दोहा में हुए एशियन चैम्पियनशिप में 60 किलो वजन की श्रेणी में भी तीसरा स्थान प्राप्त किया था। मई 2016 में ओलम्पिक्स वर्ल्ड क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में 58 किलो की वजन श्रेणी में उन्होंने सेमिनल में चाइना की जहाँ लं को हराकर 2016 में रिओ ओलम्पिक्स के लिए क्वालीफाई किया ओलम्पिक्स में उन्होंने अपने 32 बाउट का राउण्ड स्वीडन की जोहना मत्तास्सों और 16 बाउट का राउण्ड माल्डोवा मरिआना चेर्दिवारा को पराजित कर दिया था। एक के बाद एक प्रतिद्वन्दियों को हराते हुए ओलम्पिक्स में मेडल जीतने वाली पहली महिला रेसलर बनी थी। मेडल जीतने के बाद भारतीय रेलवे ने उनका प्रमोशन भी किया साथ ही अपनी तरफ से 5 करोड़ का नकद इनाम भी दिया था।

इसके साथ ही उन्होंने भारतीय ओलम्पिक्स एसोसिएशन दी मिनिस्ट्री ऑफ यूथ अफेयर्स एण्ड स्पोर्ट, दी गवर्नमेंट ऑफ दिल्ली राज्य सरकार (हरियाणा, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश) की तरफ से भी पुरस्कार दिए। अपने अन्तिम मैच में साक्षी मलिक ने आखिरी 6 मिनट में यह जीत की नई कहानी लिखी, जिस खेल को देखकर यह कह पाना मुश्किल था, कि वो उसे जीत सकेगी, उसे आखिरी पलों में बदलकर रख दिया साक्षी ने। रेसलिंग आमतौर पर लड़कों का खेल कहा जाता है। ऐसे में इस खेल को चुनना और 12 साल लगन से सीखना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होता, क्योंकि ऐसे में आपको एक लड़ाई खुद से लड़नी होती है तथा दूसरी लड़ाई समाज से लड़नी पड़ती है। वर्तमान में आश्चर्यचकित कर देने वाली बात यह है कि जो लोग इस बात का विरोध करते थे आज वही लोग आगे बढ़कर उसकी सहायता कर रहे हैं। उसे प्रोत्साहित कर रहे हैं। साक्षी से उसके सुखद पल के बारे में पूछा तो उसने जवाब दिया कि मेडल मिलने के बाद तिरंगा लहरा रहा था तब ही उनका सबसे सुखद खुशनुमा पल था।

23 वर्षीय महिला रेसलर ने आज पूरे विश्व में अपने भारत देश का नाम रोशन किया है। साक्षी मलिक के मेडल जीतने के बाद रिओ ओलम्पिकं में मेडल जीतने का इंतजार कर रहे भारतीय खेल प्रेमियों के चेहरे पर वो मुस्कान आ गयी थी, जिसका उन्हें इन्तजार था। जिन व्यक्तियों की यह संकीर्ण मानसिकता होती है कि लड़कियों को नहीं पढ़ाना है, वे पढ़कर क्या करेंगी, तो उनके समक्ष साक्षी मलिक जैसी लड़कियाँ का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि वे भी अपनी ऐसी सोच को त्याग कर अपनी बेटियों के उज्ज्वल भविष्य में पथ-प्रदर्शन के रूप में खरे उतरें।

प्रश्न 15.
अपने विद्यालय में हुए संगीत समारोह पर टिप्पणी करते हुए माँ को पत्र लिखिए। [5]
अथवा
विद्यालयों में योग-शिक्षा का महत्त्व बताते हुए किसी समाचार-पत्र के सम्पादक को पत्र लिखिए।
उत्तर:
परीक्षा भवन,
सेंट जॉन्स स्कूल,
आगरा।
दिनांक 20 जनवरी, 20XX
आदरणीय माता जी,
सादर प्रणाम,
मैं पिछले कई दिनों से स्कूल में संगीत समारोह की तैयारी में व्यस्त थी। इस कारण आपको पत्र न लिख सकी। संगीत समारोह के लिए विद्यालय को अच्छी तरह सजाया गया। समारोह विद्यालय प्रांगण में हुआ। इस अवसर पर प्रसिद्ध संगीतकार ए.आर. रहमान जी मुख्य अतिथि थे। वे जैसे ही विद्यालय के प्रवेश द्वारा पर आए उन पर फूलों की वर्षा होने लगी तथा विद्यालय प्राचार्य ने उनका माल्यार्पण कर स्वागत किया। हमारे विद्यालय की छात्राओं द्वार सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। इसके पश्चात् एक के बाद एक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झाँकियाँ प्रस्तुत की गई। राजस्थानी नृत्य एवं गीत ने तो आगंतुकों को मन्त्र-मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के अन्त में विद्यालय प्राचार्य ने उपस्थित मुख्य अतिथि एवं उपस्थित अभिभावकों को सहर्ष धन्यवाद दिया। साथ ही बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना भी की। अपने शुभाशीष के पश्चात् कार्यक्रम का समापन किया।

मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है। मीनाक्षी कैसी है? आपका और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक ही होगा। उनको मेरा प्रणाम कहना।
आपकी पुत्री
शालिनी

अथवा
सम्पादक को पत्र

सेवा में,
सम्पादक महोदय,
दैनिक जागरण,
सेक्टर 20,
नोएडा, गौतमबुद्ध नगर
दिनांक 5 जनवरी, 20XX
विषय-योग-शिक्षा का महत्त्व।
महोदय,
जन-जन की आवाज, जन-जन तक पहुँचाने के लिए कटिबद्ध आपके पत्र के माध्यम से मैं विद्यालय में योग-शिक्षा के महत्त्व को बताना चाहती हूँ।

योग शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होंगे। योग शिक्षा उनके स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।

योग के माध्यम से वे अपने शरीर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकाल सकते हैं। जिससे सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर, वह स्वयं को ऊर्जावान महसूस कर सकते हैं। योग के द्वारा कई । लाइलाज बीमारियों को भी जड़ से समाप्त किया जा सकता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए जीवनदायिनी औषधि की भाँति है।

आप अपने समाचार-पत्र के माध्यम से पाठकों को योग-शिक्षा ग्रहण करने के लिए आग्रह करें।
सधन्यवाद!
भवदीया
नीतू
आगरा।

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