Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन to develop Hindi language and skills among the students.

CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

प्रश्न 1.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूप कौन-से हैं ? इनके लिए लेखन के कौन-कौन से तरीके हैं ?
उत्तर :
विभिन्न जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूप निम्नलिखित हैं –
1. प्रिंट माध्यम – समाचार – पत्र, पत्रिकाएँ।
2. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम – रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा, इंटरनेट।

इनके लिए लेखन अलग-अलग तरीकों द्वारा किया जाता है। समाचार पत्र और पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की शैली अलग होती है जबकि रेडियो और टेलीविज़न के लिए अलग शैली होती है। माध्यम अलग-अलग होने के कारण उनकी आवश्यकताएँ भी अलग-अलग होती हैं। विभिन्न जनसंचार माध्यमों के लेखन के अलग-अलग तरीकों को जानना एवं समझना अत्यंत आवश्यक है। इन माध्यमों के लेखन के समय बोलने, लिखने के साथ-साथ पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है।

हम रोज़ाना समाचार – पत्र पढ़कर टी० वी० देखकर और रेडियो सुनकर तथा साथ ही कभी – कभी इंटरनेट पर समाचार पढ़कर अथवा देखकर ही इस बात पर विचार कर सकते हैं कि जनसंचार के इन सभी प्रमुख माध्यमों में समाचार लेखन और प्रस्तुति में क्या अंतर है। अवश्य ही, इन सभी माध्यमों में समाचारों की लेखन शैली, भाषा और प्रस्तुति में कई अंतर हैं। इंटरनेट पर पढ़ने, सुनने और देखने तीनों की सुविधा होती है। समाचार पत्र केवल छपे हुए शब्दों का माध्यम है, रेडियो बोले हुए शब्दों का माध्यम है। टी० वी० पर आप देख भी सकते हैं।

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प्रश्न 2.
जनसंचार माध्यमों में प्रिंट माध्यम का क्या महत्व है ?
उत्तर :
प्रिंट अर्थात मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे प्राचीन है। वास्तव में आधुनिक युग का आरंभ ही मुद्रण अर्थात छपाई के आविष्कार से हुआ। वैसे तो मुद्रण का आरंभ चीन से हुआ लेकिन इसके आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को जाता है। छापाखाना अर्थात प्रेस के आविष्कार से जनता को काफ़ी लाभ हुआ। यूरोप में पुनर्जागरण के ‘रेनेसां’ के आरंभ में छापेखाने की महत्वपूर्ण भूमिका थी। भारत में प्रथम छापाखाना सन 1556 में गोवा में स्थापित हुआ। इसकी स्थापना मिशनरियों ने धर्मप्रचार की पुस्तकें छापने के लिए की थी। इसके पश्चात मुद्रण तकनीक में ज़्यादा बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का विस्तार व्यापक रूप से हुआ है।

मुद्रित माध्यमों के अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आते हैं, जिनका हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्व है। मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता उसमें छपे हुए शब्दों के स्थायित्व में है, जिसे आराम से धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। समझ में न आने पर उसे दोबारा तब तक पढ़ सकते हैं, जब तक वह हमारी समझ में न आए।

समाचार-पत्र अथवा पत्रिका पढ़ते समय यह आवश्यक नहीं कि उसे पहले पृष्ठ और पहली खबर से ही पढ़ना शुरू किया जाए। मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह है कि इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

मुद्रित माध्यमों की दूसरी बड़ी विशेषता लिखित भाषा का विस्तार है। लिखित समाचार में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों का उपयुक्त प्रयोग किया जाता है। लिखे हुए को प्रकाशित करने तथा ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए प्रचलित लिखित भाषा का होना आवश्यक है, जिससे उसे अधिक लोग समझ सकें।

मुद्रित माध्यम की तीसरी विशेषता इसका चिंतन-विचार और विश्लेषण है, जिसके द्वारा गूढ़ एवं गंभीर बातें लिखी जा सकती हैं। साक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम बहुत महत्वपूर्ण होते हैं किंतु निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम व्यर्थ हैं। मुद्रित माध्यमों के लेखकों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ शैक्षिक ज्ञान एवं योग्यता का ध्यान रखना पड़ता है। मुद्रित माध्यम रेडियो, टेलीविज़न एवं इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित समय पर प्रकाशित होती हैं। जिस प्रकार समाचार-पत्र 24 घंटे में एक बार या साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है। कुछ अपवादों को छोड़कर समय-सीमा समाप्त होने के पश्चात कोई भी सामग्री प्रकाशन के लिए स्वीकार नहीं की जाती। अतः मुद्रित माध्यमों के लेखकों एवं पत्रकारों को प्रकाशन की सीमा का ध्यान रखना पड़ता है।

मुद्रित माध्यम के अंतर्गत छपनेवाले आलेख में सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करके प्रकाशित किया जाता है। समाचार-पत्र अथवा पत्रिका में यह प्रयास किया जाता है कि कोई गलती या अशुद्धि प्रकाशित न हो जाए। इसके लिए समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में संपादक के साथ एक पूरी संपादकीय टीम होती है, जिसका मुख्य उत्तरदायित्व प्रकाशन के लिए जा रही सामग्री को गलतियों और अशुद्धियों से रहित प्रकाशित करने योग्य बनाना है।

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प्रश्न 3.
मुद्रित माध्यम की अपेक्षा रेडियो पर समाचार सुनने में क्या अंतर है ?
उत्तर :
रेडियो श्रव्य माध्यम है। ध्वनि, स्वर और शब्दों के मेल के कारण रेडियो को श्रोताओं द्वारा संचालित माध्यम माना जाता है। इस कारण रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि समाचार-पत्रों के पाठकों को अपनी पसंद से अपनी इच्छा से कभी भी और कहीं भी समाचार पढ़ने को मिल सकते हैं। लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा प्राप्त नहीं होती। वह समाचार पत्रों की तरह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता।

उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करने के पश्चात शुरू से लेकर अंत तक सभी समाचारों को सुनना पड़ेगा। इस दौरान न तो वह इधर-उधर आ-जा सकता है और न ही वह शब्दकोश में अर्थ ढूँढ़ सकता है क्योंकि ऐसा करने पर बुलेटिन आगे निकल जाएगा। अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि रेडियो में समाचार-पत्रों की तरह पिछले समाचार दोबारा सुनने की सुविधा नहीं होती। रेडियो एक रेखीय (लीनियर) माध्यम है। रेडियो की तरह दूरदर्शन भी एक रेखीय माध्यम है, जिसमें शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों एवं तसवीरों का अधिक महत्व है।

प्रश्न 4.
रेडियो समाचार की संरचना किस पर आधारित होती है ?
उत्तर :
रेडियो के लिए समाचार लेखन समाचार-पत्रों से भिन्न होते हैं। दोनों की प्रकृति अलग-अलग होती है। रेडियो समाचार की संरचना समाचार-पत्रों या टेलीविज़न की तरह उलटा पिरामिड (इन्वर्टेड पिरामिड) शैली पर आधारित होती है। समाचार लेखन की सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण शैली उलटा पिरामिड शैली है। लगभग 90 प्रतिशत समाचार या कहानियाँ इस शैली में लिखी जाती हैं।

उलटा पिरामिड-शैली में ख़बर के अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है। तत्पश्चात कम महत्वपूर्ण तथ्यों या खबरों को लिखा जाता है। इस शैली में कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत की जगह खबर के आरंभ में आ जाता है। इस शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता है।

उलटा पिरामिड शैली के अंतर्गत समाचार को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है — इंट्रो, बॉडी और समापन। समाचार में इंट्रो या लीड को हिंदी में मुखड़ा कहा जाता है। इसमें समाचार के मूल तत्व को आरंभ की दो-तीन पंक्तियों में लिखा जाता है। यह समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। तत्पश्चात बॉडी में समाचार के विस्तृत तत्वों को घटते हुए क्रम में लिखते हैं। उलटा पिरामिड – शैली में कोई अंतर नहीं होता। आवश्यकता पड़ने पर समय और जगह की कमी को देखते हुए अंतिम पंक्तियों या अनुच्छेद को काटकर छोटा किया जा सकता है और समाचार को समाप्त किया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
रेडियो के लिए समाचार-लेखन की बुनियादी बातों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
रेडियो के लिए समाचार लिखते समय कुछ बातें सदा मन में रखी जानी चाहिए। यह एक ऐसा माध्यम है जो केवल श्रव्यता पर आधारित है और समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए है। इसका प्रयोग शिक्षित-अशिक्षित भी करते हैं।
(क) साफ़-सुथरी और टंकित कॉपी – रेडियो समाचार पढ़ने वाले वाचक या वाचिका को जो समाचार कॉपी दी जाती है, वह बिलकुल साफ़-साफ़ टंकित (typed) होनी चाहिए ताकि वाचक/वाचिका को उसे पढ़ने में कोई दिक्कत न हो। यदि समाचार कॉपी टंकित और साफ़-सुथरी नहीं है तो उसे पढ़ने के दौरान वाचक / वाचिका के अटकने या ग़लत पढ़ने का खतरा रहता है। इससे श्रोता का ध्यान बँटता है और वह भ्रमित होता है। प्रसारण के लिए तैयार की गई कॉपी कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए। कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोड़ा जाना चाहिए।

एक पंक्ति में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए। पंक्ति के आखिर में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए और पृष्ठ के आखिर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए। समाचार कॉपी में कठिन और लंबे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। उच्चारण में कठिन, संक्षिप्ताक्षर, अंक आदि नहीं लिखे जाने चाहिए। एक से दस तक के अंकों को शब्दों में तथा 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए लेकिन 4912340 लिखने की बजाए उन्चास लाख बारह हज़ार तीन सौ चालीस लिखा जाना चाहिए। ऐसा करने से वाचक/वाचिका को पढ़ने में कठिनाई नहीं आती।

समाचार लिखने वाले को न ₹ और जैसे संकेतों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसे इनके लिए प्रतिशत, रुपया और डॉलर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। उसे दशमलव को उसके नज़दीकी पूर्णांक में लिखना चाहिए। वित्तीय संख्याओं को उनके नज़दीकी पूर्णांक के साथ लिखना चाहिए। वैसे रेडियो समाचारों में आँकड़ों और संख्याओं का प्रयोग कम-से-कम करना चाहिए। रेडियो समाचार कभी भी संख्या से शुरू नहीं होना चाहिए। तिथियों को उसी प्रकार लिखना चाहिए जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं।

(ख) डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग – रेडियो समाचार में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं होनी चाहिए बल्कि वह समाचार में ही गुँथी होनी चाहिए। उसमें आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम, बैठक कल होगी, कल हुई बैठक, इसी सप्ताह, अगले सप्ताह, पिछले सप्ताह, इस महीने, अगले महीने, इस साल, अगले साल, अगले सोमवार, पिछले रविवार आदि का इस्तेमाल करना चाहिए। संक्षिप्तकारों से सदा बचना चाहिए। बहुत प्रचलित संक्षिप्त अक्षरों का प्रयोग थोड़ा-बहुत किया जा सकता है जैसे – यू० एन० ओ०, सार्क, यूनिसेफ़, डब्ल्यू० टी० ओ० एच० डी० एफ० सी० आई० सी० आई० सी० आई० बैंक आदि।

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प्रश्न 6.
टेलीविज़न का जनसंचार माध्यम में क्या महत्व है ?
उत्तर :
टेलीविज़न जनसंचार माध्यमों में देखने और सुनने का माध्यम है। टेलीविज़न के लिए खबर या स्क्रिप्ट लिखते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शब्द परदे पर दिखाई देने वाले दृश्य के अनुकूल हों। दूरदर्शन स्क्रिप्ट लेखन प्रिंट और रेडियो माध्यम से भिन्न है। इसके द्वारा कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक समाचार बताया जाता दूरदर्शन के लिए समाचार दृश्यों के आधार पर लिखे जाते हैं।

कैमरे से लिए गए शॉट्स को आधार बनाकर समाचार तैयार किए जाते हैं। दूरदर्शन पर समाचार दो तरह से पेश किए जाते हैं। इसका प्रारंभिक हिस्सा, जिसमें मुख्य समाचार होते हैं, रीडर या एंकर दृश्यों के बिना समाचार पढ़ता है। दूसरे हिस्से में पर्दे पर एंकर के स्थान पर समाचार से संबंधित दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं। अतः दूरदर्शन पर समाचार दो हिस्सों में विभाजित होते हैं। समाचार के साथ-साथ दृश्य प्रस्तुत होने के कारण दूरदर्शन (टेलीविज़न) का जनसंचार माध्यमों में महत्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 7.
दूरदर्शन (टी०वी०) पर प्रसारित होने वाली खबरों के विभिन्न चरण कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
किसी भी दूरदर्शन चैनल पर समाचार देने का मूल आधार लगभग वैसा ही होता है जैसा प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में होता है। वह आधार होता है सबसे पहले सूचना देना। दूरदर्शन में ये सूचनाएँ कई चरणों से होती हुई दर्शकों तक पहुँचती हैं, ये चरण निम्न हैं –
फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज – सर्वप्रथम कोई बड़ी ख़बर महत्वपूर्ण फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में उसी क्षण दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महत्वपूर्ण समाचार दिया जाता है।
ड्राई एंकर- इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को कहाँ, क्या, कब और कैसे घटित दृश्यों को सीधे-सीधे बताता है। खबर के दृश्य नजर न आने तक एंकर दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारी पर आधारित सूचनाएँ पहुँचाता है।

फोन-इन-तत्पश्चात समाचार विस्तृत होते हैं और एंकर रिपोर्टर से फ़ोन के माध्यम से सूचनाएँ एकत्र करके दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। रिपोर्टर घटना वाली जगह पर उपस्थित होता है और वहाँ से ज्यादा-से-ज्यादा जानकारियाँ लेकर दर्शकों को बताता है।

एंकर विजुअल-घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाने पर खबर लिखी जाती है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में इन विषयों पर प्राप्त दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं।

एंकर-बाइट-बाइट अर्थात कथन। दूरदर्शन पत्रकारिता में इसका बहुत महत्व है। दूरदर्शन में किसी भी समाचार को पुष्ट करने के लिए उससे संबंधित बाइट दिखाए जाते हैं। किसी घटना की सूचना और दृश्य से संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर समाचार को प्रामाणिकता प्राप्त होती है।

लाइव -लाइव अर्थात किसी समाचार का घटना स्थल से सीधा प्रसारण। सभी चैनल इसी कोशिश में रहते हैं कि किसी भी घटित बड़ी घटना के दृश्य उसी समय दर्शकों तक सीधे प्रसारित किए जाएँ। इसके बारे में उस स्थान पर उपस्थित रिपोर्टर और कैमरामैन ओ० बी० वैन के माध्यम से घटना के बारे में सीधे दर्शकों को दिखाते और बताते हैं।

एंकर पैकेज – पैकेज किसी भी समाचार को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक माध्यम है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक्स के जरिए जरूरी सूचनाएँ आदि आते हैं।
टेलीविज़न समाचार लेखन इन सभी चरणों को ध्यान में रखकर किया जाता है। आवश्यकता के अनुसार वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। शब्द दृश्यों को जोड़ने का काम करते हैं और निहित अर्थों को सामने लाते हैं, जिससे खबर के सारे आशय प्रकट हो सकें।

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प्रश्न 8.
रेडियो और टेलीविजन समाचार की भाषा और शैली के लिए अनिवार्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
रेडियो और टेलीविजन का संबंध देश के हर स्तर के व्यक्ति से है। इनके श्रोता और दर्शक पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मजदूर तक सभी हैं। रेडियो और टी० वी० को इन सभी की आवश्यकताओं को पूरा करना होता है इसलिए इनकी भाषा-शैली ऐसी होनी चाहिए जो सभी वर्गों और सभी स्तरों को सरलता से समझ आ सकती हो। साथ ही साथ भाषा के स्तर और गरिमा के साथ भी कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। रेडियो और टेलीविज़न के समाचारों में भाषा और शैली संबंधी अग्रलिखित विशेषताएँ अनिवार्य रूप से होनी चाहिए –

  1. भाषा अति सरल होनी चाहिए।
  2. वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाने चाहिए।
  3. भाषा में प्रवाहमयता होनी चाहिए।
  4. भ्रामक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  5. तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। इनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
  6. गैरजरूरी विशेषणों, समासिक और तत्सम शब्दों, उपमाओं आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  7. मुहावरों का अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  8. एक वाक्य में एक ही बात कहनी चाहिए।
  9. वाक्यों में कुछ टूटता या छूटता हुआ प्रभाव नहीं होना चाहिए।
  10. प्रचलित और सहज शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 9.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों में इंटरनेट की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता आदि नामों से भी जाना जाता है। जिन लोगों को चौबीसों घंटे इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है या जो लोग इंटरनेट के अभ्यासी हैं उन्हें अब कागज़ पर छपे हुए अखबार ताज़े नहीं लगते। भारत में कंप्यूटर साक्षरता की दर दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। प्रत्येक वर्ष 50-55 फ़ीसदी की रफ़्तार से इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ती जा रही है। इंटरनेट पर एक ही क्षण में हम एक साथ कई खबरें पढ़ सकते हैं।

इंटरनेट एक प्रकार का औज़ार है। इसे हम सूचना, मनोरंजन, ज्ञान, व्यक्तिगत और सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए प्रयोग कर सकते हैं। इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का साधन है वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी माध्यम है। इंटरनेट पर पत्रकारिता का रूप प्रचलित हो चुका है। यह रूप औज़ार के तौर पर इस्तेमाल होता है अर्थात खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग होता है।

रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह ई-मेल के जरिए भेजता है। वह इसका प्रयोग समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण के लिए भी करता है। इंटरनेट के माध्यम से चंद मिनटों में विश्वव्यापी जाल के भीतर से कोई भी पिछली पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है। समय के साथ-साथ इसके शब्दकोश में वृद्धि होती जा रही है। पहले एक मिनट में 80 शब्द एक जगह से दूसरी जगह भेजे जा सकते थे परंतु आज एक सेकिंड में 56 किलोबाइट अर्थात लगभग 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।

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प्रश्न 10.
इंटरनेट पत्रकारिता क्या है ? इसके स्वरूप और इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
इंटरनेट पर समाचार-पत्रों को प्रकाशित करना एवं समाचारों का आदान-प्रदान करना ही इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट पर किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चाओं, परिचर्चाओं, वाद-विवादों, फ़ीचर, झलकियों, डायरियों के माध्यम से अपने समय की धड़कनों को महसूस करना और दर्ज करना ही इंटरनेट पत्रकारिता है। प्रकाशन समूह और निजी कंपनियाँ इंटरनेट पत्रकारिता से जुड़ी हुई हैं। इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है। विश्व स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता इस समय तीसरे दौर में है। पहला दौर 1982 से 1992 तक तथा दूसरा दौर सन 1993 से सन 2001 तक चला। तीसरा दौर 2002 से अब तक है। प्रारंभ में इंटरनेट का प्रयोग धरातल पर था। बड़े प्रकाशन समूह समाचार-पत्रों की उपस्थिति सुपर इन्फार्मेशन हाइवे पर चाहते थे।

इस दौरान कुछ चर्चित कंपनियाँ जैसे ए० ओ० एल० यानी अमेरिका ऑन लाइन सामने आई। यह दौर प्रयोगों का दौर था। वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता की शुरुआत 1983 से 2002 के बीच हुई। इस समय में तकनीकी स्तर पर इंटरनेट का बहुत विकास हुआ। इसी बीच नई वेब भाषा एच० टी० एम० एल० (हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज) आई, इंटरनेट ई-मेल आया, इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नाम से ब्राउजर ने इंटरनेट को सुविधा संपन्न और तेज़ रफ़्तार बना दिया। न्यू मीडिया के नाम पर डॉटकॉम कंपनियाँ संपर्क में आईं।

इंटरनेट और डॉटकॉम चर्चा का विषय बन गए। इससे जनता रातों-रात अमीर बनने के सपने देखने लगी। जितनी तेज़ी के साथ ये कंपनियाँ उभरीं उतनी ही तेज़ी के साथ ये कंपनियाँ गिरीं भी। सन 1996 से 2002 के बीच अमेरिका के पाँच लाख लोगों को डॉटकॉम की नौकरियों से धक्का लगा| विषय – सामग्री और पर्याप्त आर्थिक आधार की कमी के कारण लगभग डॉटकॉम कंपनियाँ बंद हो गईं। बड़े प्रकाशन समूहों ने इस दौरान स्वयं को नहीं गिरने दिया। जनसंचार के क्षेत्र में चाहे परिस्थितियाँ जैसी भी हों, सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में इंटरनेट किसी से कम नहीं इसका महत्व हमेशा बना ही रहेगा। वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता का सन 2002 से शुरू हुआ तीसरा दौर ही वास्तविक अर्थों में टिकाऊ हो सकता है।

प्रश्न 11.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता विषय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भारत में इंटरनेट का आरंभ 1993 माना जा सकता है जब यहाँ इस क्षेत्र में अनेक प्रयोग किए गए। सन 2003 में इसका दूसरा दौर शुरू हुआ। डॉटकॉम का तूफ़ान आया पर जल्दी ही निकल गया। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘इंडिया टुडे’, ‘आई० बी० एन०’, ‘जी न्यूज़, ‘ ‘आज तक’, आज तक’, ‘आउटलुक’ आदि साइटें भी अच्छी हैं। ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडिया इंफोला इन’, ‘सिफ़ी’ जैसी कुछ साइटें भी हैं। ‘रीडिफ़ कुछ गंभीरता से काम कर रही है इसलिए इसे अच्छा कहा जा सकता है। वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता आरंभ करने का श्रेय तहलका डॉटकॉम को जाता है।

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प्रश्न 12.
हिंदी नेट संसार पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
हिंदी में नेट पत्रकारिता का आरंभ ‘वेब दुनिया’ के साथ हुआ था। इंदौर के नई दुनिया समूह से प्रारंभ पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। हिंदी के समाचार पत्र – ‘हिंदुस्तान’, ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’ ‘नई दुनिया’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’, ‘राष्ट्रीय सहारा’ आदि ने वेब संस्करण आरंभ किए हैं, पर इस क्षेत्र में ‘बी० बी० सी० ‘ हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट है।

हिंदी वेब जगत में अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं, अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि प्रशंसनीय काम कर रही हैं। सभी मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और बैंकों ने हिंदी अनुभाग आरंभ किए हैं। इससे हिंदी की ऑन लाइन पत्रकारिता का मार्ग तैयार हो रहा है। वास्तव में हिंदी की वेब पत्रकारिता अभी अपने शैशव काल में ही है। इसमें सबसे बड़ी समस्या हिंदी के फ़ॉन्ट की है। हमारे पास कोई ‘की – बोर्ड’ नहीं है। डायनमिक फ़ॉन्ट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की अधिकतर साइट्स खुलती ही नहीं हैं। इस समस्या से निपटने के लिए की-बोर्ड का मानकीकरण और बेलगाम फ़ॉन्ट पर नियंत्रण आवश्यक है।

पाठ से संवाद :

1. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर (✓) का निशान लगाइए –
(क) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि –

  • इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है। [ ]
  • इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं। [ ]
  • इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है। [ ]
  • इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। [ ✓]

(ख) टी० वी० पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्वपूर्ण है –

  • विजुअल [ ]
  • बाइट [ ]
  • नेट [ ]
  • उपर्युक्त सभी। [✓]

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(ग) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो –

  • जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो [✓ ]
  • जो समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके [ ]
  • जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो [ ]
  • जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो। [ ]

2. विभिन्न जनसंचार माध्यमों-प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट से जुड़ी पाँच-पाँच खूबियों और खामियों को लिखते हुए एक तालिका तैयार करें।
उत्तर :
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प्रश्न 3.
इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इंटरनेट आज की पत्रकारिता का मुख्य आधार बन चुका है पर वह समाज के सारे वर्गों को अनेक आधारों पर विकृत भी कर रहा है। इसमें दुनिया भर के सभी अच्छे-बुरे कार्य साफ़-स्पष्ट और विस्तारपूर्वक देखे – सुने जा सकते हैं। इसके कारण कच्ची बुद्धि का युवा वर्ग तेज़ी से अश्लीलता और नग्नता की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उसके संस्कार विकृत होने लगे हैं। इससे अपराध जगत को नई दिशा प्राप्त हो रही है। अपराधी और आतंकवादी सरलता से सलाह-मशवरा कर दुनिया के किसी भी कोने में आतंक फैलाने का कार्य कर रहे हैं। काले धन का लेन-देन सरल हो गया है, पुस्तकीय ज्ञान की चोरी होने लगी है।

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प्रश्न 4.
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी० वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन है ? पक्ष- विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर :
प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी० वी० में से सबसे सशक्त माध्यम टी० वी० है। इसके लिए साक्षर होने की भी आवश्यकता नहीं है। यह दृश्य – श्रव्य आधार पर टिका हुआ है। मानव मन पर जितना प्रभाव देखने से पड़ता है, उतना प्रभाव सुनने या पढ़ने से नहीं पड़ता। यह पल-पल की घटना को दिखा देता है। यह मानव को वैसा ही करने को उकसाता है जैसा यह स्क्रीन पर दिखाता है। इसके लिए किसी शब्दकोश या विचार-विमर्श की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। इसका संप्रेषण अधिक प्रभावी होता है।

प्रश्न 5.
पाठ में दिए गए चित्रों को ध्यान से देखें और इसके आधार पर टी० वी० के लिए तीन अर्थपूर्ण संक्षिप्त स्क्रिप्ट लिखें।
उत्तर :
(i) पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटकों की भीड़ तो लगी ही रहती है। वे वहाँ की झीलों को निहारते हैं। झीलों में नौका विहार करते हैं। वे घंटों घूमते-फिरते हैं पर जिस वातावरण में रहकर आनंद प्राप्त करते हैं, उसकी स्वच्छता का ज़रा भी ध्यान नहीं रखते। वे नौका में झील की सैर करते हुए पानी में ही गंदगी फेंकते रहते हैं। वे कागज़ के टुकड़े, पॉलीथीन, खाने के टुकड़े आदि इधर-उधर बिखराते रहते हैं। वे यह भी नहीं सोचते कि यदि वे स्वयं साफ़-स्वच्छ झील के जल में नौका विहार करना चाहते हैं तो औरों के लिए गंदगी क्यों फैलाते हैं।

(ii) जल हमारा जीवन है। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। पर हम हैं कि जब तक यह हमें आसानी से मिलता रहता है हम इसकी परवाह नहीं करते। घर, गली, मुहल्ले, स्कूल, कॉलेज आदि में व्यर्थ बहता पानी अकसर दिखाई दे जाता है। लोग जल प्राप्त करने के लिए नल खोलते हैं पर जल ले लेने के बाद उसे बंद करना भूल जाते हैं। वे सोच लेते हैं कि उनका इसमें क्या नुकसान है। हमें सदा याद रखना चाहिए कि जल राष्ट्रीय संपत्ति से भी बढ़कर है। यह हमें जीवन प्रदान करता है। इसके बिना हम जी नहीं सकते। इसे व्यर्थ बहने से रोकना चाहिए। ऐसा करना अति आवश्यक है।

(iii) कितना बोझ है पुस्तकों का इन छोटे-छोटे बच्चों के कंधों पर। किसी भी स्कूल के पास पल-भर खड़े होकर देखो। जितना भार बच्चे का अपना नहीं होता, शायद उससे अधिक बोझ उनकी पीठ पर लदा होता है – पुस्तकों के रूप में। बच्चों की पढ़ाई का आरंभ तो खेल-कूद से होना चाहिए, न कि भारी-भरकम पुस्तकों के बोझ से। अनेक विकसित देश तो उनकी पढ़ाई खिलौनों, नाचने गाने और खेलने-कूदने से आरंभ करते हैं पर हमारे देश में स्कूल की शिक्षा के नाम पर उन्हें पुस्तकें ही परोसी जाती हैं। इससे उनके मन में भय उत्पन्न होता है। उनके शारीरिक विकास की राह में रुकावट पैदा होती है। सरकार को ऐसी शिक्षा नीति बनानी चाहिए कि छोटे बच्चों के कंधे पर टँगा बस्ता कुछ हलका हो।

CBSE Class 12 Hindi Elective रचना विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

प्रश्न 6.
माना जाता है कि पत्रकारिता जल्दी में लिखा गया साहित्य है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? इस संदर्भ में अपने विचार तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
ऐसा माना जाता है कि पत्रकारिता जल्दी में लिखा गया साहित्य है परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। पत्रकारिता और साहित्य लेखन में अंतर है। पत्रकारीय लेखन अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों को ध्यान में रखकर लिखा जाने वाला लेखन है। इसके विपरीत साहित्यिक रचनात्मक लेखन में लेखक को काफ़ी छूट होती है। कविता, कहानी, उपन्यास साहित्यिक लेखन है। पत्रकारीय लेखन में अलंकारिक – संस्कृतनिष्ठ भाषा-शैली के बजाय आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया जाता है। पत्रकारीय लेखन की भाषा सरल, सहज और रोचक होती है।