Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन to develop Hindi language and skills among the students.

CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 1.
रटंत से क्या अभिप्राय है ? इसे बुरी लत (कुटेव) क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
रटंत से अभिप्राय किसी दूसरे द्वारा तैयार की गई पठनीय सामग्री को ज्यों-का-त्यों दूसरों के सामने प्रस्तुत करना। यह एक बुरी लत (कुटेव) है क्योंकि जिस विद्यार्थी या व्यक्ति को यह लत लग जाती है तो उसके भावों की मौलिकता खत्म हो जाती है। वह किसी विषय को अपने तरीके से सोचने की क्षमता खो देता है। वह सदा दूसरों के लिखे पर ही आश्रित रहने लगता है। लिखना एक कला है और इस कला में निपुणता तभी हासिल की जा सकती है जब लेखक रटंत पर निर्भर न हो। रटंत (कुटेव) के शिकार व्यक्ति को असली अभ्यास का मौका नहीं मिलता। यह भी सर्वमान्य है कि कला को माँजने के लिए अभ्यास सबसे ज़रूरी होता है। इसलिए विद्यार्थी अथवा लेखक को रटंत की बुरी लत से बचना चाहिए।

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प्रश्न 2.
अभिव्यक्ति के अधिकार में निबंधों के नए विषय किस प्रकार सहायक सिद्ध होते हैं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर
निबंध एक विचार होता है। निबंधकार अपने विचारों को निबंध विधा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। विचार अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया निबंधों के पुराने विषयों के साथ पूर्णतः घटित नहीं होती। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पुराने विषयों पर तैयार शुद्ध सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहती है। लेखक कुछ नया सोचने की बजाए उसी सामग्री को उलट-पलट कर लिखता रहता है।

मौलिक प्रयास और अभ्यास को बाधितकरने वाली यह निर्भरता हमारे अंदर लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता को विकसित नहीं होने देती। निबंधकार की सोच आगे नहीं बढ़ पाती। उसके विचार रुक से जाते हैं। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम निबंध के परंपरागत एवं बासी विषयों को छोड़कर नए-नए विषयों पर विचार प्रकट करें और लिखने का प्रयास करें। यही अभ्यास हमें अपने मौलिक अधिकार अभिव्यक्ति के अधिकार का सही प्रयोग कर पाने में सहायक सिद्ध होगा।

प्रश्न 3.
नए तथा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
किसी नए अथवा अप्रत्याशित विषय पर कम समय में अपने विचारों को संकलित कर उन्हें सुंदर ढंग से अभिव्यक्त करना ही अप्रत्याशित विषयों पर लेखन कहलाता है। जिन विचारों को कह देना सरल होता है, उन्हें लिख डालना अत्यंत चुनौती भरा कार्य होता है। इसका कारण यह है कि सामान्य तौर पर व्यक्ति आत्मनिर्भर होकर अपने विचारों को लिखित रूप देने का अभ्यास नहीं करता है।

प्रायः सभी में दूसरों के द्वारा तैयार की गई सामग्री को याद करके ज्यों-का-त्यों पुनः प्रस्तुत करने की आदत होती है। कई बार अपने विचारों को मौखिक ढंग से व्यक्त करना बहुत सरल होता है किंतु उसे लिखित रूप देना बहुत मुश्किल होता है। उदाहरणस्वरूप किसी फ़िल्म को सिनेमाघर में देखने के बाद अपने मित्रों से उसकी चर्चा करना बहुत सरल होता है लेकिन यदि अपने विचारों को लिखने बैठा जाए तो बहुत मुश्किल लगता है।

इसी प्रकार सिनेमाघर में टिकट खिड़की पर टिकट लेना, उस समय होनेवाली धक्का-मुक्की और सिनेमाघर के पास लगे खाने-पीने की चीजों के सुंदर स्टॉल हमारी चर्चा का तो विषय बन जाते हैं परंतु अपने उन अनुभवों को काग़ज़ पर लिखना बहुत कठिनाई भरा होता है। इसी प्रकार के विषय नए और अप्रत्याशित विषयों के अंतर्गत आते हैं।

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प्रश्न 4.
नए तथा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में क्या बाधाएँ आती हैं ?
उत्तर :
भाषा के माध्यम से किसी विषय पर विचार करना और उस विचार को व्याकरणिक शुद्धता के साथ सुसंगठित रूप में अभिव्यक्त करना लेखन कहलाता है। सभी मनुष्यों को संविधान के द्वारा मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अभिव्यक्ति का अधिकार दिया गया है किंतु अधिकतर लोग उसका प्रयोग अपनी लेखन क्षमता के अभाव के कारण नहीं कर पाते हैं। सामान्य तौर पर मनुष्य कुछ भी नया सोचने और लिखने का अभ्यास ही नहीं करता है।

वर्तमान में लगभग सभी विषयों पर तैयार सामग्री सरलता से उपलब्ध हो जाती है। व्यक्ति में मौलिक प्रयास एवं अभ्यास करने की प्रवृत्ति का निरंतर अभाव होता जा रहा है। यही कारण है कि जब किसी नए विषय पर कुछ लिखना पड़ जाए तो बड़ा कठिन लगता है। अप्रत्याशित विषय पर लेखन में आनेवाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए आवश्यक है कि परंपरागत विषयों को छोड़कर नए तरह के विषयों पर लिखने का निरंतर अभ्यास किया जाए।

प्रश्न 5.
नए तथा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन को किस प्रकार सरल बनाया जा सकता है ?
उत्तर :
नए तथा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन को सरल बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान करना चाहिए –

  1. किसी भी विषय पर लिखने से पूर्व अपने मन में उस विषय से संबंधित उठने वाले विचारों के आधार पर एक रूपरेखा तैयार करें। उसके पश्चात ही शानदार ढंग से अपने विषय की शुरुआत करें।
  2. विषय को आरंभ करने के साथ ही उस विषय को किस प्रकार आगे बढ़ाया जाए, यह भी मस्तिष्क में पहले से होना आवश्यक है।
  3. जिस विषय पर लिखा जा रहा है, उस विषय से जुड़े अन्य तथ्यों की जानकारी होना भी बहुत आवश्यक है। सुसंबद्धता किसी भी लेखन का बुनियादी तत्व होता है।
  4. सुसंबद्धता के साथ-साथ विषय से जुड़ी जानकारियों का सुसंगत होना भी जरूरी होता है। अतः किसी भी विषय पर लिखते हुए दो बातों का आपस में जुड़े होने के साथ-साथ उनमें तालमेल होना भी आवश्यक होता है।
  5. नए तथा अप्रत्याशित विषयों के लेखन में आत्मपरक ‘मैं’ शैली का प्रयोग किया जा सकता है। यद्यपि निबंधों और अन्य आलेखों में ‘मैं’ शैली का प्रयोग लगभग वर्जित होता है किंतु नए विषय पर लेखन में ‘मैं’ शैली के प्रयोग से लेखक के विचारों और उसके व्यक्तित्व को झलक प्राप्त होती है।

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प्रश्न 6.
‘अक्ल बड़ी या भैंस’ विषय पर एक लेख लिखिए।
उत्तर :
दुनिया मानती है और जानती है कि महात्मा गांधी जैसे दुबले-पतले महापुरुष ने बिना अस्त्र-शस्त्रों के स्वतंत्रता संग्राम लड़ा था। उनके हथियार तो केवल सत्य और अहिंसा थे। जिस कार्य को शारीरिक बल न कर सका, उसे बुद्धि-बल ने कर दिखाया। इसी कारण यह कहावत प्रसिद्ध है कि अक्ल बड़ी या भैंस। केवल शारीरिक बल होने से कोई लाभ नहीं हुआ करता। महाभारत के युद्ध में भीम और उसके पुत्र घटोत्कच ने अपनी शारीरिक शक्ति के बल पर बहुत-से कौरवों को मार गिराया किंतु उनकी शक्ति को भी दिशा-निर्देश देने वाली श्रीकृष्ण की बुद्धि ही थी।

नेपोलियन, लेनिन तथा मुसोलिनी जैसे महान व्यक्तियों ने भी बुद्धि के बल पर ही सफलताएँ अर्जित की थीं। राजनीति, समाज, धर्म, दर्शन, विज्ञान और साहित्य – आज लगभग हर क्षेत्र में बुद्धि बल का ही महत्व है। पंचतंत्र की एक कहानी से भी इस कथन की पुष्टि हो जाती है कि शारीरिक बल से अधिक महत्व बुद्धि का होता है। इस कहानी में एक छोटा-सा खरगोश शक्तिशाली शेर को एक कुएँ के पास ले जाकर उससे कुएँ में छलाँग लगवाकर उसे मार डालता है। अपनी बुद्धि के बल पर ही उस नन्हे से खरगोश ने खूँखार शेर से केवल अपनी ही नहीं अपितु जंगल के अन्य प्राणियों की भी रक्षा की थी। अतः शारीरिक शक्ति की अपेक्षा हमारे जीवन में बुद्धि का अधिक महत्व है।

पाठ से संवाद –

प्रश्न 1.
अधूरे वाक्यों को अपने शब्दों से पूरा करें –
हम नया सोचने-लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि …………..
लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि ………
हमें विचार-प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि ……….
लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि ………
लेख में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि ………..
उत्तर :
हम नया सोचने-लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि हमें आत्म-निर्भर होकर लिखित रूप में स्वयं को अभिव्यक्त करने का अभ्यास नहीं होता है।
लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि हम कुछ नया सोचने-लिखने का प्रयास करने के स्थान पर किसी विषय पर पहले से उपलब्ध सामग्री पर निर्भर हो जाते हैं।
हमें विचार – प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि विचारों को नियंत्रित करने से ही हम जिस विषय पर लिखने जा रहे हैं उसका विवेचन उचित रूप से कर सकेंगे।
लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि जब तक यह स्पष्ट नहीं होगा कि हमने क्या और कैसे लिखना है हम अपने विषय को सुसंबद्ध और सुसंगत रूप से प्रस्तुत नहीं कर सकते।
“लेख में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने होते हैं और लेख पर लेखक के अपने व्यक्तित्व की छाप होती है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित विषयों पर दो से तीन सौ शब्दों में लेख लिखिए –
झरोखे से बाहर
सावन की पहली झड़ी
इम्तहान के दिन
दीया और तूफ़ान
मेरे मुहल्ले का चौराहा
मेरा प्रिय टाइम पास
एक कामकाज़ी औरत की शाम
उत्तर :

1. झरोखे से बाहर

झरोखा भीतर से बाहर की ओर झाँकने का माध्यम और बाहर से भीतर देखने का रास्ता है – हमारी आँखें भी तो झरोखा ही हैं। ये मन-मस्तिष्क को संसार से और संसार को मन-मस्तिष्क से जोड़ने का माध्यम मन रूपी झरोखे से किसी भक्त को संसार के कण-कण में बसनेवाले ईश्वर के दर्शन होते हैं तो मन रूपी झरोखे से ही किसी डाकू लुटेरे को किसी धनी सेठ की धन-संपत्ति दिखाई देती है जिसे लूटने के प्रयत्न में वह हत्या जैसा जघन्य कार्य करने में तनिक नहीं झिझकता। झरोखा स्वयं कितना छोटा-सा होता है पर उसके पार बसने वाला संसार कितना व्यापक है जिसे देख तन-मन की भूख जाग जाती है और कभी-कभी शांत भी हो जाती है।

किसी पर्वतीय स्थल पर किसी घर के झरोखे से गगन चुंबी पर्वत मालाएँ, ऊँचे-ऊँचे पेड़, गहरी-हरी घाटियाँ, डरावनी खाइयाँ यदि पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं तो दूर-दूर तक घास चरती भेड़-बकरियाँ, बाँसुरी बजाते चरवाहे, पीठ पर लंबे टोकरे बाँधकर इधर-उधर जाते सुंदर पहाड़ी युवक-युवतियाँ मन को मोह लेते हैं। राजस्थानी महलों के झरोखों से दूर-दूर फैले रेत के टीले कुछ अलग ही रंग दिखाते हैं। गाँवों में झोंपड़ों के झरोखों के बाहर यदि हरे-भरे खेत लहलहाते दिखाई देते हैं तो कूड़े के ऊँचे-ऊँचे ढेर भी नाक पर हाथ रखने को मज़बूर कर देते हैं।

झरोखे कमरों को हवा ही नहीं देते बल्कि भीतर से ही बाहर के दर्शन करा देते हैं। सजी-सँवरी दुल्हन झरोखे के पीछे छिप कर यदि अपने होने वाले पति की एक झलक पाने को उतावली रहती है तो कोई विरहनी अपनी नज़रें बिछाए झरोखे पर ही आठों पहर टिकी रहती है। माँ अपने बेटे के आगमन की इंतज़ार झरोखे पर टिककर करती है। झरोखे तो तरह-तरह के होते हैं पर झरोखों के पीछे बैठ प्रतीक्षारत आँखों में सदा एक ही भाव होता है – कुछ देखने का, कुछ पाने का। युद्ध भूमि में मोर्चे पर डटा जवान भी तो खाई के झरोखे से बाहर छिप-छिपकर झाँकता है – अपने शत्रु को गोली से उड़ा देने के लिए। झरोखे तो छोटे-बड़े कई होते हैं पर उनके बाहर के दृश्य तो बहुत बड़े होते हैं जो कभी-कभी आत्मा तक को झकझोर देते हैं।

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2. सावन की पहली झड़ी

पिछले कई दिनों से हवा में घुटन – सी बढ़ गई थी। बाहर तपता सूर्य और सब तरफ़ हवा में नमी की अधिकता जीवन दूभर बना रही थी। बार-बार मन में भाव उठता कि हे भगवान, कुछ तो दया करो। न दिन में चैन और न रात को आँखों में नींद-बस गरमी – ही – गरमी, पसीना – ही पसीना। रात को बिस्तर पर करवटें लेते-लेते पता नहीं कब आँख लग गई। सुबह आँखें खुलीं तो अहसास हुआ कि खिड़कियों से ठंडी हवा भीतर आ रही है। उठकर खिड़की से बाहर झाँका तो मन खुशी से झूम उठा। आकाश तो काले बादलों से भरा हुआ था।

आकाश में कहीं नीले रंग की झलक नहीं। सूर्य देवता बादलों के पीछे पता नहीं कहाँ छिपे हुए थे। पक्षी पेड़ों पर बादलों के स्वागत में चहचहा रहे थे। मुहल्ले से सारे लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल मौसम के बदलते रंग को देख रहे थे। उमड़ते-घुमड़ते मस्त हाथियों से काले-कजरारे बादल मन में मस्ती भर रहे थे। अचानक बादलों में तेज़ बिजली कौंधी ज़ोर से बादल गरजे और मोटी-मोटी कुछ बूँदें टपकीं। कुछ लोग इधर-उधर भागे ताकि अपने-अपने घरों में बाहर पड़ा सामान भीतर रख लें। पलभर में ही बारिश का तेज़ सर्राटा आया और फिर लगातार तेज़ बारिश शुरू हो गई।

महीनों से प्यासी धरती की प्यास बुझ गई। पेड़-पौधों के पत्ते नहा गए। उनका धूल-धूसरित चेहरा धुल गया और हरी-भरी दमक फिर से लौट आई। छोटे-छोटे बच्चे बारिश में नहा रहे थे, खेल रहे थे, एक-दूसरे पर पानी उछाल रहे थे। कुछ ही देर में सड़कें गलियाँ छोटे-छोटे नालों की तरह पानी से भर-भरकर बहने लगी थीं। कल रात तक दहकने वाला दिन आज खुशनुमा हो गया था। तीन-चार घंटे बाद बारिश की गति कुछ कम हुई और फिर पाँच-दस मिनट के लिए बारिश रुक गई। लोग बाहर निकलें इससे पहले फिर से बारिश शुरू हो गई- कभी धीमी तो कभी तेज़।

सुबह से शाम हो गई है पर बादलों का अँधेरा उतना ही है जितना सुबह था। रिमझिम बारिश हो रही है। घरों की छतों से पानी पनालों से बह रहा है। मेरी दादी अभी कह रही थी कि आज शनिवार को बारिश की झड़ी लगी है। यह तो अगले शनिवार तक ऐसे ही रहेगी। भगवान करे ऐसा ही हो। धरती की प्यास बुझ जाए और हमारे खेत लहलहा उठें।

3. इम्तहान के दिन

बड़े-बड़े भी काँपते हैं इम्तिहान के नाम से। इम्तहान छोटों का हो या बड़ों का, पर यह डराता सभी को है। दो वर्ष पहले जब दसवीं की बोर्ड परीक्षा हमें देनी थी तब सारा वर्ष स्कूल में हमें बोर्ड परीक्षा नाम से डराया गया था और घर में भी इसी नाम से धमकाया जाता था। मन ही मन हम इसके नाम से भी डरा करते थे कि पता नहीं, इस बार इम्तहान में क्या होगा। सारा वर्ष अच्छी तरह पढ़ाई की थी, बार-बार टेस्ट दे-देकर तैयारी की थी पर इम्तहान के नाम से भी डर लगता था। जिस दिन इम्तहान का दिन था, उससे पहली रात मुझे तो बिलकुल नींद नहीं आई।

पहला प्रश्न-पत्र हिंदी का था और विषय पर मेरी अच्छी पकड़ थी पर ‘इम्तहान’ का भूत सिर पर इस प्रकार सवार था कि नीचे उतरने का नाम ही नहीं लेता था। सुबह स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ। स्कूल – बस में सवार हुआ तो हर रोज़ हो-हल्ला करने वाले साथियों के हाथों में पकड़ी पुस्तकें और उनकी झुकी हुई आँखों ने मुझे और अधिक डराया। सबके चेहरों पर खौफ़ – सा छाया था। खिलखिलाने वाले चेहरे आज सहमे हुए थे। मैंने भी मन ही मन अपने पाठों को दुहराना चाहा पर ऐसा लगा कि मुझे तो कुछ भी याद ही नहीं। सब कुछ भूलता-सा प्रतीत हो रहा था।

मैंने भी अपनी पुस्तक खोली। पुस्तक देखते ही ऐसा लगा कि मुझे तो यह आती है। खैर, स्कूल पहुँच अपनी जगह पर बैठे। प्रश्न-पत्र मिला, आसान लगा। ठीक समय पर पूरा प्रश्न-पत्र हल हो गया। जब बाहर निकले तो सभी प्रसन्न थे। पर साथ ही चिंता आरंभ हो गई अगले पेपर की। अगला पेपर गणित का था। चाहे दो छुट्टियाँ थीं, पर ऐसा लगता था कि ये तो बहुत कम हैं। वह पेपर भी बीता, पर चिंता समाप्त नहीं हुई। पंद्रह दिन में सभी पेपर खत्म हुए पर ये सारे दिन बहुत व्यस्त रहे थे। इन दिनों न तो भूख लगती थी और न खेलने की इच्छा होती थी। इन दिनों न तो मैं अपने किसी मित्र के घर गया और न ही मेरे किसी मित्र को मेरी सुध आई। इम्तहान के दिन बड़े तनाव भरे थे।

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4. दीया और तूफ़ान

मिट्टी का बना हुआ एक नन्हा सा दीया जब जलता है तो रात्रि के अंधकार से लड़ता हुआ उसे दूर भगा देता है। अपने आस-पास हल्का-सा उजाला फैला देता है। जिस अंधकार में हाथ को हाथ नहीं सूझता उसे भी दीया अपना मंद प्रकाश फैलाकर रास्ता दिखा देता है। हवा का हलका-सा झोंका जब दीये की को कँपा देता है तब ऐसा लगता है कि इसके बुझते ही अंधकार फिर छा जाएगा और फिर हमें उजाला कैसे मिलेगा ? दीया चाहे छोटा-सा होता है पर वह अकेला अंधकार के संसार का सामना कर सकता है तो हम इस इंसान जीवन की राह में आने वाली कठिनाइयों का भी उसी की तरह मुकाबला क्यों नहीं कर सकते ? यदि वह तूफ़ान का सामना करके अपनी टिमटिमाती लौ से प्रकाश फैला सकता है तो हम भी हर कठिनाई में कर्मठ बनकर संकटों के घेरों से निकल सकते हैं।

महाराणा प्रताप ने सब कुछ खोकर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की ठानी थी। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नन्हें-से दीये के समान जीवन की कठोरता का सामना किया था और विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र भारत का प्रधानमंत्री पद प्राप्त कर लिया था। हमारे राष्ट्रपति कलाम ने अपना जीवन टिमटिमाते दीये के समान आरंभ किया था पर आज वही दीया हमारे देश को मिसाइलें प्रदान करने वाला प्रचंड अग्नि- पुंज है। उसने देश को जो शक्ति प्रदान की है वह स्तुत्य है। समुद्र में एक छोटी-सी नौका ऊँची-तूफ़ानी लहरों से टकराती हुई अपना रास्ता बना लेती है और अपनी मंज़िल पा लेती है।

एक छोटा-सा प्रवासी पक्षी साइबेरिया से उड़कर हज़ारों-लाखों मील दूर पहुँच सकता है तो हम इंसान भी कठिन से कठिन मंज़िल प्राप्त कर सकते हैं। अकेले अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में कौरवों जैसे महारथियों का डट कर सामना किया था। कभी-कभी तूफान अपने प्रचंड वेग से दीये की लौ को बुझा देता है पर जब तक दीया जगमगाता है तब तक तो अपना प्रकाश फैलाता है और अपने अस्तित्व को प्रकट करता है। मिटना तो सभी को है एक दिन। मनुष्य को चाहिए कि वह कठिनाइयों से डरकर छिपा न रहे और डट कर उनका मुकाबला करे। श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो दीये के समान जगमगाता हुआ तूफ़ानों की परवाह न करे और अपनी रोशनी से संसार को उजाला प्रदान करता रहे।

5. मेरे मोहल्ले का चौराहा

मोहल्ले की सारी गतिविधियों का केंद्र मेरे घर के पास का चौराहा है। नगर की चार प्रमुख सड़कें यहाँ से गुज़रती हैं इसलिए इस पर हर समय हलचल बनी रहती है। पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाली सड़क रेलवे स्टेशन की ओर से आती है और मुख्य बाज़ार की तरफ़ जाती है जिसके आगे औद्योगिक क्षेत्र हैं। रेलवे स्टेशन से आने वाले यात्री और मालगाड़ियों से उतरा सामान ट्रकों में भर इसी से गुज़रकर अपने – अपने गंतव्य पर पहुँचता है। उत्तर से दक्षिण की तरफ जाने वाली सड़क मॉडल टाउन और बस स्टैंड से गुज़रती है। इस पर दो सिनेमा हॉल तथा अनेक व्यापारिक प्रतिष्ठान बने हैं जहाँ लोगों का आना-जाना लगा रहता है।

चौराहे पर फलों की रेहड़ियाँ, कुछ सब्ज़ी बेचने वाले, खोमचे वाले तो सारा दिन जमे ही रहते हैं। चूँकि चौराहे के आसपास घनी बस्ती है इसलिए लोगों की भीड़ कुछ न कुछ खरीदने के लिए यहाँ आती ही रहती है। सुबह-सवेरे स्कूल जाने वाले बच्चों से भरी रिक्शा और बसें जब गुज़रती हैं तो भीड़ कुछ अधिक बढ़ जाती है। कुछ रिक्शाओं में तो नन्हें-नन्हें बच्चे गला फाड़कर चीखते-चिल्लाते सबका ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। चौराहे पर लगभग हर समय कुछ आवाग मजनूँ छाप भी मँडराते रहते हैं जिन्हें ताक-झाँक करते हुए पता नहीं क्या मिलता है। मैंने कई बार पुलिस के द्वारा उनकी वहाँ की जाने वाली पिटाई भी देखी है पर इसका उन पर कोई विशेष असर नहीं होता। वे तो चिकने घड़े हैं। कुछ तो दिन भर नीम के पेड़ के नीचे घास पर बैठ ताश खेलते रहते हैं। मेरे मुहल्ले का चौराहा नगर में इतना प्रसिद्ध है कि मुहल्ले और आस-पास की कॉलोनियों की पहचान इसी से है।

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6. मेरा प्रिय टाइम-पास

आज के आपाधापी से भरे युग में किस के पास फ़ालतू समय है। फिर भी हम लोग मशीनी मानव तो नहीं हैं। कभी-कभी अपने लिए निर्धारित काम-धंधों के अतिरिक्त हम कुछ और भी करना चाहते हैं। इससे मन सुकून प्राप्त करता है और लगातार काम करने से उत्पन्न बोरियत दूर होती है। हर व्यक्ति की पसंद अलग होती है इसलिए उसका टाइम-पास का तरीका भी अलग होता है। किसी का टाइम-पास सोना है तो किसी का टी० वी० देखना, किसी का सिनेमा देखना तो किसी का उपन्यास पढ़ना, किसी का इधर-उधर घूमना तो किसी का खेती-बाड़ी करना।

मेरा प्रिय टाइम पास विंडो शॉपिंग है। जब कभी काम करते-करते मैं ऊब जाता हूँ और मन कोई काम नहीं करना चाहता तब मैं तैयार होकर घर से बाहर बाज़ार की ओर निकल जाता हूँ – विंडो – शॉपिंग के लिए। जिस नगर में मैं रहता हूँ वह काफ़ी बड़ा है। बड़े-बड़े बाज़ार, शॉपिंग मॉल्ज और डिपार्टमेंटल स्टोर्स की संख्या काफ़ी है। दुकानों की शो- विंडोज़ सुंदर ढंग से सजे-सँवरे सामान से ग्राहकों को लुभाते रहते हैं।

नए-नए उत्पाद, सुंदर कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स का नया सामान, तरह-तरह के खिलौने, सजावटी सामान आदि इनमें भरे रहते हैं। मैं इन सजी-सँवरी दुकानों की शो- विंडोज़ को ध्यान से देखता हूँ, मन ही मन खुश होता हूँ, उनकी सुंदरता और उपयोगिता की सराहना करता हूँ। जिस वस्तु को मैं खरीदने की इच्छा करता हूँ उसके दाम का टैग देखता हूँ और मन में सोच लेता हूँ कि मैं इसे तब खरीद लूँगा जब मेरे पास अतिरिक्त पैसे होंगे। ऐसा करने से मेरी जानकारी बढ़ती है। नए-नए उत्पादों से संबंधित ज्ञान बढ़ता है और मन नए सामान को लेने की तैयारी करता है और इसलिए मस्तिष्क और अधिक परिश्रम करने के लिए तैयार होता है। टाइम-पास की मेरी यह विधि उपयोगी है, और सार्थक है, जो परिश्रम करने की प्रेरणा देती है, ज्ञान बढ़ाती है और किसी का कोई नुकसान भी नहीं करती।

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7. एक कामकाजी औरत की शाम

हमारे देश में मध्यवर्गीय परिवारों के लिए अति आवश्यक हो चुका है कि घर-परिवार को ठीक प्रकार से चलाने के लिए पति-पत्नी दोनों धन कमाने के लिए काम करें और इसीलिए समाज में कामकाजी औरतों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। कामकाजी औरत की जिंदगी पुरुषों की अपेक्षा कठिन है। वह घर- बाहर एक साथ संभालती है। उसकी शाम तभी आरंभ हो जाती है जब वह अपने कार्यस्थल से छुट्टी के बाद बाहर निकलती है। वह घर पहुँचने से पहले ही रास्ते में बाज़ार से फल-सब्ज़ियाँ खरीदती है, छोटा-मोटा किरयाने का सामान लेती है और लदी-फदी घर पहुँचती है।

तब तक पति और बच्चे भी घर पहुँच चुके होते हैं। दिन-भर की थकी- हारी औरत कुछ आराम करना चाहती है पर उससे पहले चाय तैयार करती है। यदि वह औरत संयुक्त परिवार में रहती है तो कुछ और तैयार करने की फरमाइशें भी उसे पूरी करनी पड़ती हैं। चाय पीते-पीते वह बच्चों से, बड़ों से बातचीत करती है। यदि उस समय कोई घर में मिलने-जुलने वाला आ जाता है तो सारी शाम आगंतुकों की सेवा में बीत जाती है।

लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो भी उसे फिर से बाज़ार या कहीं और जाना पड़ता है ताकि घर के लोगों की फरमाइशों को पूरा कर सके। लौटकर बच्चों को होमवर्क करने में सहायता देती है और फिर रात के खाने की तैयारी में लग जाती है। कभी-कभी उसे आस-पड़ोस के घरों में भी औपचारिकतावश जाना पड़ता है। कामकाजी औरत तो चक्करघिन्नी की तरह हर पल चक्कर ही काटती रहती है। उसकी शाम अधिकतर दूसरों की फ़रमाइशों को पूरा करने में बीत जाती है। वह हर पल चाहती है कि उसे भी घर में रहने वाली औरतों के समान कभी शाम अपने लिए मिले पर प्रायः ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि कामकाज़ी औरत का जीवन तो घड़ी की सुइयों से बँधा होता है।

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प्रश्न 3.
घर से स्कूल तक के सफ़र में आज आपने क्या-क्या देखा और अनुभव किया ? लिजिए और अपने लेख को एक अच्छा-सा शीर्षक भी दीजिए।
उत्तर :

संवेदनाओं की मौत

मैं घर से अपने विद्यालय जाने के लिए निकली। आज मैं अकेली ही जा रही थी क्योंकि मेरी सखी नीलम को ज्वर आ गया था। मेरा विद्यालय मेरे घर से लगभग तीन किलोमीटर दूर है। रास्ते में बस स्टैंड भी पड़ता है। वहाँ से निकली तो बसों का आना-जाना जारी था। मैं बचते-बचाते निकल ही रही थी कि मेरे सामने ही एक बस से टकरा कर एक व्यक्ति बीच सड़क पर गिर गया। मैं किनारे पर खड़ी होकर देख रही थी कि उस गिरे हुए व्यक्ति को उठाने कोई भी नहीं आ रहा। मैं साहस करके आगे जा ही रही थी कि एक बुजुर्ग ने मुझे रोक कर कहा, “बेटी ! कहाँ जा रही हो ? वह तो मर गया है। हाथ लगाओगी तो पुलिस के चक्कर में पड़ जाओगी।” मैं घबरा कर पीछे हट गई और सोचते-सोचते विद्यालय पहुँच गई कि हमें क्या हो गया है जो हम किसी के प्रति हमदर्दी भी नहीं दिखा सकते, किसी की सहायता भी नहीं कर सकते ?

प्रश्न 4.
अपने आस-पास की किसी ऐसी चीज़ पर एक लेख लिजिए, जो आप को किसी वजह से वर्णनीय प्रतीत होती हो। वह कोई चाय की दुकान हो सकती है, कोई सैलून हो सकता है, कोई खोमचे वाला हो सकता है या किसी खास दिन पर लगने वाला हाट – बाज़ार हो सकता है। विषय का सही अंदाज़ा देने वाला शीर्षक अवश्य दीजिए।
उत्तर :

पानी के नाम पर बिकता ज़हर

जेठ की तपती दोपहरी। पसीना, उमस और चिपचिपाहट ने लोगों को व्याकुल कर दिया था। गला प्यास से सूखता है तो मन सड़क के किनारे खड़ी ‘रेफ्रीजरेटर कोल्ड वाटर’ की रेहड़ी की ओर चलने को कहता है। प्यास की तलब में पैसे दिए और पानी पिया। पर कभी सोचा नहीं कि इन रेहड़ी की टंकियों की क्या दशा है ? क्या इन्हें कभी साफ़ भी किया जाता है ? क्या इनमें वास्तव में रेफ्रीजरेटर कोल्ड वाटर है या पानी में बर्फ़ डाली हुई है ? कहीं हम पैसे देकर पानी के नाम पर ज़हर तो नहीं पी रहे ? इन कोल्ड वाटर बेचने वालों के ‘वाटर’ की जाँच स्वास्थ्य विभाग का कार्य है परंतु वे तो तब तक नहीं जागते हैं जब तक इनके दूषित पानी पीने से सैकड़ों व्यक्ति दस्त और हैज़े के शिकार नहीं हो जाते। आशा है इन गर्मियों में स्वास्थ्य विभाग जागेगा और पानी के नाम पर ज़हर बेचने वाली इन ‘कोल्ड वाटर’ की रेहड़ियों की जाँच करेगा।

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रिपोर्ट –

घटनाओं से संबंधित तथ्यों को तटस्थ भाव से प्रकट करना समाचार का लक्ष्य होता है और वह सदा किसी रिपोर्ट पर आधारित होता है। किसी स्थान पर घटित किसी भी प्रकार की घटना, जो समाचार बनने की योग्यता रखती है, रिपोर्टर के द्वारा रिपोर्ट की जाती है। इसमें भावात्मकता का अभाव होता है और पूर्ण रूप से तथ्यात्मकता पर टिकी होती है। रिपोर्ट किसी घटना का सत्य वृत्तांत है जो संतुलित समाचार को मूल्यवान बनाता है – Whole truth and nothing but the truth सत्य को ठेस पहुँचाना समाचार की आत्मा को नष्ट करना है। ‘सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्’ उसका मूल मंत्र है।

गूढ़ अध्ययन पर आधारित गंभीर विद्वतापूर्ण प्रामाणिक रचना आलेख कहलाता है। इसका संबंध मस्तिष्क से होता है जबकि फ़ीचर का संबंध हृदय से होता है। आलेख बहु-आयामी, गंभीर, उच्च और व्यंग्यपूर्ण रचना होते हैं। आलेख को अनेक कमरों वाला बहुमंजिला विशाल भवन माना जा सकता है। ‘भारत में दहेज-प्रथा’ पर आलेख लिखते समय दहेज की परिभाषा, विविध कालों में इसके विविध रूप, इसके अभिशप्त आँकड़े, सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा दहेज के निराकरण हेतु उठाए गए विभिन्न कदमों का विवेचन करना होगा। रिपोर्ट की भाषा सपाट, स्पष्ट होनी चाहिए लेकिन आलेख में भावात्मकता का पुट हो सकता है।

रिपोर्ट संक्षिप्त होती है तो आलेख का आकार विषय-वस्तु पर निर्भर करता हुआ बड़ा हो सकता है। रिपोर्ट (प्रतिवेदन) एक ऐसा लिखित विवरण है जिसमें तथ्यात्मकता पर आधारित किसी घटना, संस्था, विभाग में संबंधित सूचना आदि को प्रस्तुत दिया जाता है। इसका मूल कार्य सही, सीधी और सपाट जानकारी देना है। इसके द्वारा किसी कार्य की प्रगति, जाँच – स्तर, कार्य और उनके परिणामों को स्पष्ट रूप में व्यक्त किया जाता है। साहित्यिक गोष्ठियों, सभाओं, कवि सम्मेलनों, संस्थाओं की मासिक / त्रैमासिक / छमाही / वार्षिक प्रगति, व्यावसायिक संस्थानों की स्थिति या प्रगति और जाँच समितियों की रिपोर्ट के साथ-साथ आँखों देखी घटनाओं की रिपोर्ट भी की जाती है।

रिपोर्टों के द्वारा विभिन्न संस्थाओं और संस्थानों की वर्ष भर की गतिविधियों और उनकी प्रगति का विवरण संबंधित लोगों तक पहुँचा कर उसे सार्वजनिक किया जाता है। प्रत्येक स्कूल और कॉलेज की वर्ष भर की गतिविधियों की रिपोर्ट उनके द्वारा आयोजित वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पुरस्कार वितरण समारोह आदि में प्राचार्य / प्राचार्या के द्वारा प्रस्तुत करने का प्रचलन है। व्यवसायों की प्रगति और जाँच समितियों की रिपोर्ट तकनीकी आधार पर रची जाती है। यह रिपोर्ट काफ़ी लंबी होती है और इन्हें छपवा कर प्रत्येक सदस्य को प्रेषित किया जाता है। जाँच समितियों की रिपोर्ट भी बहुत लंबी होती है जो महीनों या वर्षों के परिश्रम का परिणाम होती है।

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रिपोर्ट की विशेषताएँ –

  1. किसी भी रिपोर्ट को तथ्यों पर आधारित होना चाहिए।
  2. उसकी भाषा सरल – सीधी और पूर्ण रूप से स्पष्ट होनी चाहिए जिसमें मुहावरे लोकोक्तियों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। भाषा को अलंकारों और लक्षणा शब्द – शक्ति से रहित होना चाहिए।
  3. किसी भी शब्द या वाक्य से अनेक अर्थ नहीं निकलने चाहिए।
  4. रिपोर्ट में प्रथम पुरुष (मैं या हम) का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  5. सभी तथ्य सत्य पर आधारित और विश्वसनीय होने चाहिए। उनमें कल्पना का पुट नहीं होना चाहिए।
  6. रिपोर्ट में केवल महत्वपूर्ण तथ्यों को ही स्थान दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट संक्षिप्त होनी चाहिए।
  7. सभी तथ्य क्रमानुसार होने चाहिए ताकि उनसे पूरी जानकारी व्यवस्थित सूचनाएँ ही प्राप्त हों।
  8. रिपोर्ट को उचित शीर्षक देना चाहिए जिससे रिपोर्ट की विषय संबंधी जानकारी प्राप्त हो सके।
  9. रिपोर्ट को विषय एवं तथ्यों के आधार पर अनुच्छेदों में बँटा होना चाहिए।
  10. रिपोर्ट के अंत में रिपोर्ट लिखने वाले के हस्ताक्षर होने चाहिए। यदि किसी सभा/संस्था/संस्थान आदि के प्रधान या सचिव ने किसी से रिपोर्ट लिखवाई हो तो उन्हें उस पर हस्ताक्षर करने चाहिए।

रिपोर्ट लिखने से पूर्व आवश्यक तथ्यों की जानकारी –

रिपोर्ट लिखने से पहले जिन तथ्यों की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है, वे हैं –

  1. संस्था/संस्थान /विद्यालय/महाविद्यालय आदि का नाम।
  2. उद्देश्य।
  3. स्थल, दिनांक और समय।
  4. घटना, वक्ता, मंच संचालन, प्रतिभागी, आमंत्रित अतिथि आदि।
  5. प्रगति, निर्णय, दशा-अवस्था आदि जानकारी।
  6. प्रतियोगिता या कलात्मक प्रस्तुति की जानकारी।

रिपोर्ट के कुछ उदाहरण –

1. आपके विद्यालय के कला-विभाग ने ‘बेकार पदार्थों से उपयोगी वस्तुएँ’ विषय पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया है। उसकी रिपोर्ट तैयार कीजिए।

बेकार पदार्थों से उपयोगी वस्तुएँ

हमारे विद्यालय के सभागार में ‘बेकार पदार्थों से उपयोगी वस्तुएँ’ विषय पर तीन दिवसीय प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जो 1 से 3 अगस्त चला। आयोजन किया गया है। इस आयोजन को कला – विभाग के द्वारा पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए डॉ० रमेश अग्रवाल के नेतृत्व में अध्यापक मंडल के अतिरिक्त विभिन्न कक्षाओं के पचास छात्र – छात्राओं का सक्रिय योगदान रहा। उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से स्कूल की प्रत्येक कक्षा को इस प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए प्रेरित ही नहीं किया बल्कि पूरे विद्यालय में कला के प्रति जागृति- सी उत्पन्न कर दी। प्रदर्शनी को दस विभिन्न भागों में बाँटा गया था।

जिस सामान को घर में व्यर्थ और कूड़ा समझकर रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाता है उसे नया रूप देकर अति आकर्षक ढंग से इस प्रकार प्रस्तुत कर दिया गया था कि उसे अब उसी घर में सजाने की इच्छा होती थी। बारहवीं कक्षा के दो छात्रों ने पुराने टायरों से बैठने योग्य सोफा सैट तैयार किया था जो आकर्षक ही नहीं अति उपयोगी भी थे। टूटे कप-प्लेट तथा क्रॉकरी को कल्पनापूर्वक जोड़-जोड़कर अनूठे रूप – आकार दे दिए गए थे। कुछ वर्ष पहले ऐसे रूप- आकार चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में देखे थे। लगता है, कुछ विद्यार्थियों को इन्हें बनाने की उसी से प्रेरणा प्राप्त हुई होगी।

रद्दी अख़बारों, फटे-पुराने कागज़ के टुकड़ों, चीथड़ों आदि से सुंदर खिलौने और कठपुतलियाँ तैयार की गई थी। छोटी कक्षा के बच्चों ने शटल कॉक से सुंदर खिलौने तैयार किए थे। क्रिकेट की पुरानी तथा टेबल टेनिस की टूटी हुई गेंदों से गोल-मटोल मोटे लोगों की सुंदर मुखाकृतियाँ तैयार की गई थीं। नारियल के छिलकों और जूतों के पुराने डिब्बों से आकर्षक कोठियों के प्रारूप तो सभी का मन मोह लेने की योग्यता रखते थे। आधुनिक पेड़ों की टूटी-फूटी शाखाओं को कलात्मक ढंग से नए-नए रूप आकार देकर संभाल कर रखने योग्य बना दिया गया था।

विद्यालय के प्राचार्य ने प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए विद्यार्थियों की कलात्मक दृष्टि की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बताया कि प्रदर्शनी की समाप्ति पर यह सारा सामान बेच दिया जाएगा और प्राप्त धन से निर्धन विद्यार्थियों को सहायता दी जाएगी। इस प्रदर्शनी को देखने के लिए अन्य विद्यालयों के विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में आए थे। जिन छात्र – छात्राओं की कला-कृतियाँ प्रदर्शनी में रखी गई थी, उनके माता-पिता उन्हें वहाँ देख फूले नहीं समा रहे। विद्यालय प्रशासन ने इस प्रदर्शनी की सफलता को देख निर्णय किया, कि अगले वर्ष से ऐसी प्रदर्शनी हर वर्ष आयोजित की जाएगी जिससे नई पीढ़ी की कला प्रतिभा उभर कर सामने आ सके।

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2. आपकी कक्षा के 40 विद्यार्थी एक दिन के लिए कक्षा अध्यापक के साथ हरिद्वार गए थे। कक्षा – मॉनिटर के रूप में आप इस ट्रिप की एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

एक दिवसीय हरिद्वार यात्रा

दो दिन पहले 10 सितंबर को हमारी कक्षा ग्यारहवीं ‘डी’ के इंचार्ज श्री सोमदेव चालीस विद्यार्थियों को स्कूल बस में एक दिन के लिए हरिद्वार की यात्रा पर लेकर गए थे। इस यात्रा की प्राचार्य महोदय से स्वीकृति सोमवार प्राप्त हुई थी।

पच्चीस लड़कों और पंद्रह लड़कियों की यह टोली सुबह छह बजे स्कूल परिसर में इकट्ठी हुई थी। प्रतिदिन स्कूल यूनिफॉर्म में दिखाई देने वाले सारे विद्यार्थियों की रंग-बिरंगी वेशभूषा आज अधिक सुंदर लग रही थी। सबके चेहरे पर रौनक थी। हमारी कक्षा को पढ़ाने वाले अन्य अध्यापक तथा प्राचार्य महोदय हमें विदा करने के लिए वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने हम सब को रास्ते में शरारतें न करने तथा गंगा नदी में सावधानीपूर्वक नहाने की सलाह दी। बस चलते ही सारे विद्यार्थी गप्पें लगाने और अंताक्षरी खेलने में मस्त हो गए। बस सहारनपुर में रुकी। सभी ने वहाँ नाश्ता किया। इसकी व्यवस्था की पूर्व सूचना पहले ही दे दी गई थी।

हम लगभग ग्यारह बजे हरिद्वार पहुँचे। हर की पौड़ी पर बहुत भीड़ थी। सभी ने वहाँ स्नान किया। गरमी में भी गंगा का पानी बहुत ठंडा था। नहाना बहुत अच्छा लगा। लगभग घंटा – भर तो सभी नहाते ही रहे। घाट पर वस्त्र बदल हम बस से ऋषिकेश पहुँचे। रास्ते में जितने भी दर्शनीय मंदिर और स्थल आए उन्हें देखते हुए हम आगे बढ़े थे। लक्ष्मण झूला तो सच ही इधर-उधर झूलता है। मन-ही-मन डर भी लगता रहा कि तारों पर टिका यह झूला यदि यह टूट जाए तो सबका क्या होगा। शाम को छह बजे हम वहाँ से वापिस अपने नगर को चले। चलने से पहले सभी ने बाज़ार से प्रसाद तथा छोटे-छोटे उपहार खरीदे।

लौटती बार बस में उतना शोर नहीं था जितना जाती बार था क्योंकि सब थक चुके थे। रास्ते में हम खाना खाने के लिए एक जगह रुके। रात को दस बजे हम वापिस स्कूल पहुँच गए जहाँ सभी के मम्मी- पापा लेने के लिए पहुँचे हुए थे। हमारा ट्रिप वास्तव में ही यादगार रहा। हम इसे कभी नहीं भूल सकते।।

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3. आपकी कक्षा में अध्यापक की अनुपस्थिति में दो छात्रों ने मॉनीटर की अनदेखी करके और उसके आदेश को न मानते हुए आपस में लड़ाई-झगड़ा किया। इस घटना की लिखित रिपोर्ट कक्षा अध्यापक को दीजिए ताकि दोषी छात्रों के विरुद्ध उचित कार्रवाई की जा सके।

दो उद्दंड छात्रों की कक्षा में अनुशासनहीनता

आज तीसरे पीरियड में हमारे गणित के अध्यापक श्री जतिंद्र आर्य अवकाश पर होने के कारण कक्षा में नहीं आए थे। कक्षा मॉनीटर के रूप में मैं कक्षा को नियंत्रित कर रहा था। मैंने श्यामपट पर एक प्रश्न लिख दिया था ताकि विद्यार्थी उसे तब तक हल करें जब तक आर्य साहब की जगह कोई अन्य अध्यापक कार्यालय के द्वारा वहाँ न भेज दिए जाएँ। जब मेरा मुँह श्यामपट की ओर था तब मुझे नरेश के द्वारा राजन को दी गई गाली की आवाज़ सुनाई दी। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो नरेश ने राजन और राजन ने नरेश की कमीज़ को गले से पकड़ा हुआ था।

जब मैंने उन्हें ऐसा न करने के लिए कहा तो वे दोनों एक साथ बोले कि वह उनके बीच का मामला है, इसलिए मुझे उन दोनों के बीच बोलने का कोई हक नहीं है। फिर भी जब मैंने उनके निकट जाकर उन्हें छुड़वाने का प्रयत्न किया तो उन्होंने मुझे धक्का देकर गिरा दिया। उसके बाद वे गुत्थमगुत्था हो गए और उन्होंने एक-दूसरे को ठोकरें मारीं, मुक्के मारे और गाली-गलौच किया। इससे सारी कक्षा में अव्यवस्था फैल गई। साथ की कक्षा से श्री गुप्ता ने आकर उन दोनों के बीच झगड़े को शांत कराया तथा विद्यार्थियों को उनकी जगह पर बिठाया।

इस घटना से मैंने स्वयं को मॉनीटर के रूप में अपमानित महसूस किया। इन दोनों छात्रों को किसी-न-किसी प्रकार अहसास कराया जाना चाहिए कि उनका कक्षा में यह व्यवहार ठीक नहीं था। कृपया इन दोनों के विरुद्ध उचित कार्रवाई कर कक्षा का पहले के समान अनुशासन और व्यवस्था का प्रबंध करें।

4. आपके घर के बाहर खड़ी आपकी मोटर साइकिल चोरी हो गई है। उसकी रिपोर्ट थाने में लिखित रूप में कीजिए।

मोटर साइकिल की चोरी

आज 25 जून को दोपहर के समय मेरे घर 546 – आदर्श नगर के बाहर खड़ी मोटर साइकिल नंबर एच आर – 51 चोरी हो गई है। मैंने बाज़ार से वापिस लौट कर लगभग 2 बजे इसे बाहर खड़ी की थी। इसे लॉक किया था और इसकी चाबी अब भी मेरे पास है। लगभग पंद्रह मिनट बाद जब मैं अपने मित्र के घर जाने के लिए बाहर निकला तो वह अपने स्थान पर नहीं था। मैंने आसपास सभी से इसके बारे में पूछा पर किसी ने मोटर साइकिल या इसे चुराने वाले को देखने में अनभिज्ञता प्रकट की।

मैंने यह मोटर साइकिल पिछले महीने एकता ऑटोमोबाइल्ज़ से खरीदा था। यह हीरो होंडा कंपनी का बना है और सिल्वर ग्रे रंग का है। इसकी क्रय समय रसीद की फोटो कॉपी साथ संलग्न कर रहा हूँ। कृपया मेरी मोटर साइकिल को शीघ्र अति शीघ्र ढूँढ़वा दें।

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5. आपके विद्यालय प्रबंधन में कुछ ऐसी अव्यवस्थाएँ हैं जिनके कारण छात्र-छात्राओं को परेशानी होती है। स्कूल के हैड ब्वाय के रूप में इससे संबंधित एक रिपोर्ट लिखिए।

छात्र – छात्राओं की परेशानी के कारण

हमारा विद्यालय नगर का अति प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान है। इसका परीक्षा परिणामों की दृष्टि से राज्य भर में नाम है। अच्छी शिक्षा, मेहनती अध्यापकवर्ग, श्रेष्ठ अनुशासन और विद्यार्थियों की बड़ी संख्या के बावजूद इसके प्रबंधन में कुछ ऐसी अव्यवस्थाएँ हैं जो सभी छात्र – छात्राओं को खलती हैं। हमारे विद्यालय में शुद्ध पेयजल और जलनिकासी दोनों का अभाव है। विद्यार्थियों और अध्यापक वर्ग के लिए पीने के जल की व्यवस्था अच्छी नहीं है। यद्यपि विद्यालय में छह कूलर इसके लिए अलग-अलग स्थानों पर लगवाए गए हैं पर उन पर जलशोधन की व्यवस्था नहीं है। टंकी से आने वाला जल ठंडा तो अवश्य होता है पर साफ़ नहीं।

वर्षा ऋतु में वर्षा का जल खेल के मैदानों में भर जाता है। वहाँ से जल निकासी का कोई साधन नहीं है। वे मैदान कई दिन तक तालाबों का रूप लिए रहते हैं। खेल – कूद की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। विद्यालय में शौचालय हैं पर उनमें जल की उचित व्यवस्था न होने के कारण स्वच्छता का पूर्ण अभाव बना ही रहता है। वे अनेक बीमारियों के कारक बन सकते हैं। हमारे विद्यालय की कक्षाओं के कमरों से प्रयोगशालाओं के बीच लगभग 200 मीटर की दूरी है। वर्षा के दिनों में बारिश के कारण इस दूरी को पार करने में समस्या होती है क्योंकि वह रास्ता ऊपर से ढका हुआ नहीं है। यह ढका हुआ होना चाहिए जैसा कि अन्य विद्यालयों में है। हमारा साइकिल स्टैंड कुछ छोटा है जिस कारण अनेक छात्र – छात्राओं को साइकिलें बाहर रखनी पड़ती हैं। असुरक्षित होने के साथ-साथ वे आने-जाने वालों के राह में रुकावट बनती हैं। इन अव्यवस्थाओं के कारण सभी छात्र-छात्राओं के साथ अध्यापक वर्ग को परेशानी होती है।

6. बस स्टैंड पर हुए बम विस्फोट के आप प्रत्यक्षदर्शी हैं। इसकी एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

बस स्टैंड में बम विस्फोट

आज 9 अगस्त को प्रातः 8.00 बजे भीड़-भाड़ से भरे अति व्यस्त बस स्टैंड में बम विस्फोट हो गया। विस्फ़ोट का ज़ोरदार धमाका दूर-दूर तक सुना गया। उसके कारण उत्पन्न काला धुआँ आकाश में देर तक छाया रहा। बम से निकले छर्रों से चार लोग घायल हो गए लेकिन इससे किसी के जीवन की क्षति नहीं हुई। विस्फोट के कारण कुछ खिड़कियों के शीशे टूट गए। वहाँ उपस्थित लोगों में मची भगदड़ से कुछ लोगों को गिरने के कारण हलकी चोटें आईं। पुलिस ने तत्काल विस्फोट स्थल को घेर लिया। वह कारणों की जानकारी प्राप्त कर रही है। विस्फ़ोट एक साइकिल के पीछे रखे थैले में विस्फोटक सामग्री के कारण हुआ। इस विस्फ़ोट के पीछे आतंकवादियों का हाथ हो सकता है।

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7. आपके विद्यालय में संस्थापक दिवस पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया जिसमें अध्यापकों और विद्यार्थियों ने रक्तदान किया। आप इसकी रिपोर्ट तैयार कीजिए।

संस्थापक दिवस पर विद्यालय में रक्तदान शिविर का आयोजन

आज 18 सितंबर को प्रातः दस बजे से दोपहर दो बजे तक रेडक्रॉस सोसायटी के द्वारा विद्यालय के सभागार में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। यह आयोजन विद्यालय की संस्थापक सेठ धन्नामल की पुण्य स्मृति में प्रतिवर्ष की तरह इस बार भी किया गया। प्राचार्या श्री राकेश भारद्वाज ने सबसे पहले स्वयं रक्तदान कर शिविर का शुभारंभ किया। विद्यालय के पंद्रह अध्यापक और अध्यापिकाओं ने रक्तदान कर विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ाया। ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के 150 विद्यार्थियों ने रक्तदान किया।

इस अवसर पर विद्यालय की प्रबंधक समिति के प्रधान ने सभी रक्तदाताओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा बताया कि रक्त की एक-एक बूँद किसी जरूरतमंद की जीवन रक्षा कर सकती है। रक्तदान ही महादान है। रेडक्रॉस के अधिकारियों की ओर से सभी रक्तदाताओं को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए तथा उन्होंने विद्यालय को धन्यवाद दिया।

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8. शिक्षक दिवस पर ‘गुरुवंदन छात्र अभिनंदन’ कार्यक्रम उत्साहपूर्वक आपके विद्यालय के प्रांगण में मनाया गया। इसकी एक रिपोर्ट लिखिए।

गुरुवंदन छात्र अभिनंदन

विद्यालय की प्रबंध समिति की ओर से विद्यालय में शिक्षक दिवस के पवित्र अवसर पर शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इसमें 11 शिक्षिकाओं को सम्मानित किया गया। इस समारोह में छठी से बारहवीं कक्षा के 50 मेधावी छात्र – छात्राओं को भी पुरस्कृत किया गया। समारोह की अध्यक्षता दिल्ली प्रदेश उत्तर के अध्यक्ष एवं पूर्व महापौर श्री महेश चंद्र शर्मा ने की। पुरस्कार वितरण श्री सुरेंद्र वधवा, राष्ट्रीय वित्त मंत्री, श्री सुनील गर्ग, महासचिव, श्री कपूर चंद्र गोयल, सचिव ने किया। श्री सुरेंद्र वधवा ने बताया कि शिक्षक राष्ट्र-निर्माता होता है। इनका सम्मान राष्ट्र का सम्मान। पुरस्कार वितरण भूपेंद्र मोहन भंडारी और श्री अरुण जैन व श्री गुलशन मखीजा द्वारा किया गया श्री कपूर चंद गोयल ने सभी को धन्यवाद दिया।

9. आपके गणित के अध्यापक पिछले सप्ताह सेवानिवृत्त हो गए। उनका विदाई समारोह छात्रों और अध्यापकों ने मिलकर मनाया। इसकी एक रिपोर्ट लिखिए।

श्री आनंदस्वरूप सेवानिवृत्त

गत मास दिसंबर में गणित विभाग के अध्यक्ष श्री आनंद स्वरूप तीस वर्ष की लंबी और सफल सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो गए। वे छात्रों में अति लोकप्रिय थे। गणित जैसे कठिन और शुष्क विषय को उन्होंने कभी किसी के लिए बोझ नहीं बनने दिया था। विदाई समारोह का आयोजन सभागार में किया गया था जिसमें आठवीं से बारहवीं कक्षा के सभी छात्र-छात्राएँ तथा विद्यालय के सभी अध्यापकगण उपस्थित थे। हिंदी के अध्यापक श्री रमेश लाल ने मंच संचालन करते हुए सारे वातावरण को भावुकता से भर दिया था। उन्होंने श्री आनंद स्वरूप के सद्गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उनके जीवन की उन घटनाओं को सुनाया जो छात्र – छात्राओं को पता नहीं थीं। अनेक अध्यापकों और छात्र – छात्राओं ने उनके गुणों पर प्रकाश डाला। मुख्य अध्यापक श्री समीर सक्सेना ने उनकी कर्तव्यनिष्ठा की प्रशंसा की।

अंत में श्री आनंद स्वरूप ने स्वयं सभी का धन्यवाद किया और विद्यालय को अपनी कर्मभूमि बताया जहाँ उन्होंने तीस वर्ष सफलतापूर्वक व्यतीत किए। विद्यालय की ओर से उन्हें प्रशस्ति पत्र, शॉल और एक स्मृति चिह्न भेंट किया गया, जिससे वे अभिभूत हो उठे और उनकी भावुकतावश आँखें छलछला आईं। विद्यालय के लॉन में चाय पार्टी के बाद समारोह संपन्न हो गया।

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10. विद्यालय में ‘हेड ब्वाय’ और ‘हेड गर्ल’ के चुनाव के लिए बुलाई गई सभा की कार्रवाई से संबंधित रिपोर्ट लिखिए।

हेड ब्वाय और हेड गर्ल का चुनाव

आज 10 अप्रैल को विद्यालय के सभागार में दसवीं से बारहवीं कक्षा के सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों की उपस्थिति में इस वर्ष के लिए हेड ब्वाय और हैड गर्ल का चुनाव किया गया। मुख्याध्यापक श्री नरेंद्र कुमार गुप्ता ने ‘हेड ब्वाय’ और ‘हेड गर्ल’ की विद्यालय प्रशासन के लिए उपयोगिता और महत्व बताया। हेड ब्वाय के लिए दो लड़कों के नाम प्रस्तावित किए गए थे। सभी छात्र – छात्राओं से हाथ खड़ा कर राजेश और योगेश में से किसी एक को चुनने के लिए कहा गया था। योगेश के पक्ष में अधिक छात्र – छात्राओं ने हाथ खड़े कर अपना समर्थन दिया था। ‘हेड गर्ल’ के रूप में अनुष्का को निर्विरोध चुन लिया गया। चुने गए हेड ब्वाय और हेड गर्ल ने सभी का धन्यवाद किया।

11. स्कूल के जीव विज्ञान क्लब के द्वारा आयोजित गोष्ठी की रिपोर्ट लिखिए।

पर्यावरण संबंधी गोष्ठी का आयोजन

जीव विज्ञान क्लब के तत्वावधान में पर्यावरण संरक्षण एवं परिस्थिति विषयक गोष्ठी बौद्धिक प्रमुख डॉ० प्रमोद कुमार ‘अनंग’ के सभापतित्व में संपन्न हुई। इस अवसर पर चिंतक डॉ० अवधेश पांडेय ने कहा कि ज्वलंत विषय पर गोष्ठी अत्यंत सराहनीय है। प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले खतरों से आगाह कराते हुए उन्होंने कहा कि हमारे समाज में अपनी छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पेड़-पौधों की कटाई बेखौफ जारी है। इन्हें रोके जाने की ज़रूरत है। स्कूल के उपाचार्य डॉ० वशिष्ठ मति ने कहा कि कंपोस्ट खाद का प्रयोग कर अन्न के उपयोग से तमाम तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है।

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12. ‘भारत को जानो’ अंतर्विद्यालयी क्विज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। उसकी रिपोर्ट लिखिए।

भारत को जानो प्रतियोगिता’ का अंतर्विद्यालय स्तरीय आयोजन 25 सितंबर को आई० एम० ए० भवन में किया गया। प्रथम चरण में 480 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिनमें से चयनित 21 विद्यालयों की वरिष्ठ एवं कनिष्ठ वर्ग की टोलियों ने शाखा स्तरीय प्रतियोगिता में भागीदारी की। चुनी गई चार- चार टोलियों के मध्य हुए मौखिक प्रश्न- मंच से वरिष्ठ वर्ग में मॉडर्न स्कूल और कनिष्ठ वर्ग में डी० ए० वी० स्कूल ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त विद्यालयों को वैजयंती शाखा – अध्यक्ष श्री नरोत्तम दास अग्रवाल के सौजन्य से भेंट की गई।