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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 9 with Solutions

निर्धारित समय : 2 घंटे
अधिकतम अंक : 40

निर्देश :

  • निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए।
  • इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
  • इस प्रश्न पत्र में कुल 07 प्रश्न पूछे गए हैं। आपको 07 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
  • प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।

कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षकों में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों का एक रचनात्मक लेख लिखिए। (5 × 1 = 5)

  • वह सुखद घटना जिसने मुझे नई सीख दी
  • मेरी प्रथम मेट्रो रेल यात्रा
  • आज की बचत कल का सुख

उत्तरः

वह सुखद घटना जिसने मुझे नई सीख दी

मानव का संपूर्ण जीवन उसके जीवन में घटित घटनाओं का समन्वय है। जन्म से मृत्यु तक निरंतर घटनाएँ घटती रहती हैं। व्यक्ति प्रत्येक घटना से कुछ-न-कुछ सीखता है। ये घटनाएँ सुखद एवं दुःखद दोनों रूपों में घटित होती हैं। सुखद घटना जहाँ व्यक्ति के जीवन में उत्साह एवं उल्लास का संचार करती है, वहीं दुःखद घटना उसे उत्साह एवं आत्मविश्वास से विहीन बनाती है। यहाँ मैं अपने जीवन की उस सुखद घटना का वर्णन कर रहा हूँ, जिसने मेरे जीवन को एक नई दिशा दी तथा आत्मविश्वास में वृद्धि करके मेरे जीवन में नए उत्साह का संचार किया।

यह घटना उन दिनों की है, जब मैं आठवीं कक्षा का छात्र था। उन दिनों मेरे मन-मस्तिष्क पर गणित विषय का ऐसा आतंक था कि उस विषय का नाम ही मुझे पसीने-पसीने कर देता था। विद्यालय में गणित की कक्षा में, मैं सबसे पीछे ही बैठता था। इसका एक ही कारण था- विषय के अध्यापक का अत्यंत कठोर स्वभाव। वार्षिक परीक्षा शुरू होने में केवल एक माह का समय शेष था। एक दिन मैं कालांश (पीरियड) के बाद गणित अध्यापक से मिला तथा उन्हें अपनी समस्या बताई। उन्होंने मुझे उसी दिन से अपने घर आकर गणित विषय पढ़ने को कहा। मैं प्रतिदिन नियम से उनके घर पढ़ाई करने के लिए जाने लगा। उन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप मेरे मन से गणित विषय के प्रति यह विचार कि मैं इस विषय में कभी सफल नहीं हो सकता, सदैव के लिए समाप्त हो गया। वर्तमान में, मैं बारहवीं कक्षा का छात्र हूँ। गुरु जी की शिक्षा से प्रभावित होकर ही मैं पीसीएम की पढ़ाई करके आगे गणित विषय में ही कुछ करने की इच्छा रखता हूँ। आज भी मेरा मन उन श्रद्धेय गणित के अध्यापक जी के चरणों में झुक जाता है।

मेरी प्रथम मेट्रो रेल यात्रा

कभी जब हम सुनते थे कि ऐसी ट्रेन चलेगी, जो जमीन के भीतर, जमीन पर और उसके ऊपर दौड़ेगी, तो हमें कौतूहल और आश्चर्य होता था। हम तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगे थे। यह कल्पना तब साकार हुई, जब दिल्ली में मेट्रो के खंभे खड़े होने लगे तथा जगह-जगह स्टेशन बनने लगे एवं कुछ ही समय में मेट्रो रेल दौड़ने लगी। दिल्ली की जनता जिस यातायात की समस्या से जूझ रही थी, उससे काफी हद तक मुक्ति मिली। वास्तव में मेट्रो रेल दिल्ली की यातायात व्यवस्था के लिए किसी वरदान से कम न थी। ‘मेट्रो रेल पूरी तरह से स्वचालित और वातानुकूलित है’ यह जानकर इसकी यात्रा करने की मन में तीव्र लालसा हुई। संयोग से मुझे अपने माता-पिता के साथ तीस हजारी से दिलशाद गार्डन तक की यात्रा करने का अवसर मिल गया। वास्तव में हमें गाजियाबाद जाना था, पर तीव्र उत्सुकता के कारण हमने आधा सफर मेट्रो रेल से करने की योजना बनाई। रविवार को हम सभी तीस हजारी मेट्रो स्टेशन पहुंचे। स्वचालित सीढ़ियों से हम ऊपर गए। सबसे पहले तो स्टेशन की साफ-सफाई देखकर आश्चर्य हुआ।

बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन की तुलना इस स्टेशन की सफाई से नहीं की जा सकती थी। यहाँ अनुशासन व्यवस्था थी। लोग पंक्तिबद्ध खड़े होकर टोकन ले रहे थे। पिताजी ने भी लाइन में लगकर तीन टोकन लिए। लाइन में लगकर हम प्रवेश द्वार की ओर बढ़े। सुरक्षा के लिए नियुक्त जवान ने हमारी चेकिंग की। आगे बढ़ने पर हमने अपने-अपने टोकन नियत स्थान पर स्पर्श कराए। गेट खुला और हम अंदर गए, फिर वहाँ से प्लेटफार्म की ओर बढ़ गए।

प्लेटफार्म की सफाई देखकर मैं दंग रह गया। बोर्ड में ट्रेन आने का समय और उसके डिब्बों की संख्या दर्शायी जा रही थी। तभी एक घोषणा हुई कि मेट्रो को साफ-सुथरा रखने में अपना सहयोग करें, फिर दूसरी घोषणा हुई कि मेट्रो ट्रेन प्लेटफार्म पर आने वाली है। कृपया पीली रेखा से हटकर खड़े हों। कुछ ही क्षणों में चमचमाती मेट्रो हमारे सामने आकर रुकी।

स्वचालित दरवाजे खुले और हम अंदर गए। साफ-सुथरी सीटें और वैसे ही डिब्बे देख सफाई का महत्त्व समझ में आया। महिलाओं और वृद्धों के लिए सीटों का आरक्षण और अन्य सूचनाएँ पढ़ ही रहा था कि मेट्रो रेल के दरवाजे अपने आप बंद हुए और मेट्रो रेल चल पड़ी। थोड़ी ही देर में कश्मीरी गेट स्टेशन आने की घोषणा हुई। दरवाजे खुले। यहाँ बहुत से लोग अंदर आए और खड़े हो गए।

कोई धक्का-मुक्की नहीं, कोई शोर नहीं। इस तरह बिना किसी जाम में फँसे और पसीने में तर-बतर हुए बिना, हम कुछ ही देर में दिलशाद गार्डन आ गए। गंतव्य आने के कारण हमें उतरना पड़ा अन्यथा वातानुकूलित मेट्रो से उतरने का मन न था। मेट्रो यात्रा सुखद, तीव्रगामी और सस्ती है। हमें नियमों का पालन और सफाई का ध्यान रखते हुए इसका आनंद लेना चाहिए।

आज की बचत कल का सुख

वर्तमान आय का वह हिस्सा, जो तत्काल व्यय (खर्च) नहीं किया गया और भविष्य के लिए सुरक्षित कर लिया गया है ‘बचत’ कहलाता है। आज के समय में पैसा कमाना जितना कठिन है, उससे कहीं अधिक कठिन है पैसे को अपने भविष्य के लिए सुरक्षित बचाकर रखना, क्योंकि अनावश्यक और बढ़ती महँगाई के अनुपात में कमाई के स्रोतों में कमी होती जा रही है, इसलिए हमारी आज की बचत ही कल हमारे भविष्य को सुखी और समृद्ध बना सकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

जीवन में अनेक बार ऐसे अवसर आ जाते हैं, जब आकस्मिक दुर्घटनाएं हो जाती हैं तथा रोग या अन्य शारीरिक पीड़ाएँ घेर लेती हैं, तब हमें पैसों की बहुत आवश्यकता होती है। यदि पहले से बचत न की गई, तो विपत्ति के समय हमें दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ सकते हैं।

हमारी आज की छोटी-छोटी बचत या धन निवेश ही भविष्य में आने वाले सभी खर्चों का मुफ्त समाधान कर देते हैं। आज की थोड़ी-सी समझदारी आने वाले भविष्य को सुखद बना सकती है। बचत करना एक अच्छी आदत है, जो हमारे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के लिए भी लाभदायक सिद्ध होती है। किसी आवश्यक या आकस्मिक समस्या के आ जाने पर बचाया गया धन ही हमारे काम आता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि बचत करके हम अपने भविष्य को सँवार सकते हैं।

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 9 with Solutions

प्रश्न 2.
‘कांदबिनी’ पत्रिका का वार्षिक ग्राहक बनने के लिए उसके व्यवस्थापक को पत्र लिखकर स्वयं को ग्राहक बनाने एवं नियमित रूप से पत्रिका भेजने के लिए पत्र लिखिए। (5 × 1 = 5)
अथवा
आप किसी स्थान विशेष की यात्रा करना चाहते हैं, उस स्थान की जानकारी प्राप्त करने के लिए पर्यटन विभाग के अधिकारी को पत्र लिखकर पूछताछ कीजिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 25 अगस्त, 20XX
सेवा में,
व्यवस्थापक महोदय,
कांदबिनी मासिक पत्रिका,
हिंदुस्तान टाइम्स प्रेस,
कस्तूरबा गांधी मार्ग,
नई दिल्ली।

विषय पत्रिका का वार्षिक ग्राहक बनने हेतु।
महोदय,
विगत दो वर्षों से मैं आपकी प्रसिद्ध मासिक ‘कांदबिनी’ को सार्वजनिक पुस्तकालय तथा निजी विक्रेताओं से लेकर पढ़ता रहा हूँ। इस पत्रिका के लेख मुझे विविधतापूर्ण, रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक प्रतीत होते हैं। पत्रिका का प्रत्येक अंक संग्रह करने योग्य लगता है। इस पत्रिका का वार्षिक ग्राहक बनने हेतु अपेक्षित सहयोग राशि मैं आपकी प्रेस के पते पर मनीऑर्डर संख्या 4530471 के माध्यम से भेज रहा हूँ। कृपया सदस्यता संबंधी अनुरोध को स्वीकार करते हुए मुझे उक्त पत्रिका की वार्षिक ग्राहक सदस्यता प्रदान करें और मेरे पते पर डाक द्वारा पत्रिका को भेजने की व्यवस्था सुनिश्चित कराएँ।
सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.

अथवा

परीक्षा भवन,
दिल्ली।
सेवा में,
पर्यटन अधिकारी,
पर्यटन विभाग नालंदा,
बिहार।
दिनांक 15 मार्च, 20XX

विषय नालंदा के प्रमुख स्थलों की जानकारी हेतु पत्र।
महोदय,
मैं और मेरा मित्र सपरिवार आपके शहर नालंदा आने के इच्छुक हैं। हम सब वहाँ के ऐतिहासिक व प्रमुख स्थलों के साथ-साथ विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के भ्रमण के लिए अत्यंत उत्सुक हैं। हम अगले माह की दिनांक 10 को नालंदा पहुँच जाएँगे तथा दिनांक 15 की रात को ही रेल द्वारा वापसी का कार्यक्रम निश्चित है। अत: आपसे विनम्र निवेदन है कि हमें नालंदा के सभी प्रमुख स्थलों की जानकारी प्रदान करें तथा साथ ही वहाँ ठहरने के लिए उचित स्थान व आवागमन के लिए वाहन आदि की व्यवस्था के विषय में भी अवगत कराएँ। मैं इस सहयोग व स्नेह के लिए आपका हार्दिक आभारी रहूँगा।
सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) कहानी लेखन हेतु किन विशेषताओं का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
“नाटक की कहानी बेशक भूतकाल या भविष्यकाल से संबद्ध हो, तब भी उसे वर्तमानकाल में ही घटित होना पड़ता है।” इस धारणा के पीछे क्या कारण हो सकता है?
उत्तरः
कहानी लेखन हेतु निम्नलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक है
(a) कहानी का आरंभ आकर्षक होना चाहिए, ताकि पाठक का मन उसमें रम जाए।
(b) कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार देना चाहिए। किसी प्रसंग को न अत्यंत संक्षिप्त लिखें और न ही अनावश्यक रूप से विस्तृत करें।
(c) कहानी की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रवाहमयी होनी चाहिए। उसमें क्लिष्ट शब्द तथा लंबे वाक्य नहीं होने चाहिए।
(d) कहानी का शीर्षक उपयुक्त तथा आकर्षक होना चाहिए।
(e) कहानी के संवाद पात्रों के स्वभाव एवं पृष्ठभूमि के अनुकूल होने चाहिए।
(f) कहानी का अंत सहज ढंग से होना चाहिए।

अथवा

‘नाटक की कहानी बेशक भूतकाल या भविष्यकाल से संबद्ध हो, तब भी उसे वर्तमान काल में ही घटित होना पड़ता है।’ इस धारणा के पीछे यह कारण हो सकता है कि नाटक एक दृश्यकाव्य है। इसे दर्शकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। प्रत्येक नाटक एक समय-सीमा में समाप्त होना आवश्यक है। नाटककार अपने नाटक का कथ्य भूतकाल से ले या भविष्यकाल से, उसे नाटक को वर्तमानकाल में ही संयोजित करना होता है। नाटक चाहे कैसा भी हो पौराणिक या ऐतिहासिक, उसे वर्तमान में घटित होना ही पड़ता है। तभी दर्शक उसका आनंद ले सकता है। इसलिए नाटक के मंच निर्देश वर्तमानकाल में ही लिखे जाते हैं।

(ii) कहानी लेखन में ‘उद्देश्य’ का क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
नाटक की अभिनेयता में किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तरः
कहानी लेखन में उद्देश्य का बहुत महत्त्व है। यह कहानी का पाँचवाँ प्रमुख तत्त्व है। साहित्य में कोई भी रचना निरुद्देश्य नहीं होती। प्रत्येक रचना का अपना कोई-न-कोई उद्देश्य अवश्य होता है। इस प्रकार कहानी भी एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। कहानी में लेखक अपने पात्रों के माध्यम से अपना उद्देश्य स्पष्ट करता है। जैसे-समाज की समस्याओं का वर्णन करना आदि।

अथवा

नाटक की अभिनेयता में रंगमंच के संकेतों का होना आवश्यक है। कौन-सा संवाद किस प्रकार बोलना है, किस प्रकार से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी है, कैसे हाव-भाव रखने हैं, यह सब रंगमंच के संकेतों के अंतर्गत आता है। रंगमंच की सज्जा, प्रकाश व्यवस्था, ध्वनि व्यवस्था आदि भी रंगमंच अभिनेयता के लिए आवश्यक गुण हैं।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3×1=3)
(i) ‘बस्ते का बढ़ता बोझ विषय पर एक आलेख लिखिए।
अथवा
‘पढ़ाई लिखाई से वंचित बचपन’ विषय पर एक फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
बस्ते का बढ़ता बोझ भारी बस्तों के भार से दो बच्चों का झुंड आपको हर शहर में दिख सकता है। किताबों के बीच सिसकते बचपन ने शिक्षा की बुनियाद को हिलाकर रख दिया है। एक छोटे बच्चे के लिए दस-बारह किताबें रोज़ स्कूल ले जाना और उन्हें पढ़ना कितना कठिन होता है, इसका सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यह पढ़ाई का उचित तरीका नहीं हो सकता। इससे हमारे बच्चों के मानसिक विकास को चोट पहुँचती है जिस कारण उनका मानसिक विकास नहीं हो पाता एवं बस्ते के बढ़ते अनावश्यक बोझ से बच्चा मानसिक रूप से कुंठित हो जाता है। छोटे बच्चों की शिक्षा का माध्यम केवल पुस्तकीय न होकर व्यावहारिक एवं रचनात्मक होना चाहिए। भारी बस्तों के भार से बच्चे दबे जा रहे हैं।

उनको बचपन में ही भारी बस्तों का बोझ उठाना पड़ता है। बच्चे बचपन से ही किताबों के बोझ के कारण ऊब जाते हैं। बचपन में बच्चों को उनकी रुचि के अनुरूप पढ़ाना चाहिए, जिससे पढ़ाई के प्रति बच्चों की रुचि बढ़े न कि घटे। आज ज़रूरत है प्रतिभाओं को निखारने की, उनकी आंतरिक क्षमताओं को जगाने की, लेकिन ‘बस्ते का बढ़ता बोझ’ उन्हें शिक्षा के प्रति असहज बना रहा है। हमें चाहिए कि विद्यालयी शिक्षा की प्रक्रिया में परिवर्तन लाकर बच्चों के बस्तों के बढ़ते बोझ को कम करें। इसके लिए पाठ्यक्रम को सुधारने की आवश्यकता है।

अथवा

पढ़ाई-लिखाई से वंचित बचपन सुबह-सवेरे मंदिर जाते समय भ्रमण या यात्रा के लिए घर से बाहर निकलते समय जब नन्हें हाथों को अपने सामने फैलाए हुए पाते हैं, तो मन संवेदनशील हो उठता है। जब कभी-कभी नन्हें बच्चों को किसी होटल या ढाबे के बर्तन माँजते या भोजन परोसते देखते या मालिक की डाँट या मार खाते हुए देखते हैं, तो अपना बचपन अनायास ही याद आ जाता है। इस उम्र में बच्चा पढ़ता-लिखता है, स्कूल जाता है, अपने शौक पूरे करता है और दुनिया भर के आनंद लेता है। फिर मन में प्रश्न उठता है कि क्या ये सब अपने शौक से ऐसा करते होंगे? लेकिन उनके हालात इस सोच को रोक देते हैं। उनके फटे-पुराने कपड़े, पीठ से चिपके पेट, फैले हुए हाथ देखकर ही पता चलता है कि ये वो किस्मत के मारे हैं, जो शिक्षा जैसी नेमत से वंचित हैं। इनके माता-पिता कैसे बेबस होंगे कि वह अपनी संतति को उज्ज्वल भविष्य दे सकने में असमर्थ हैं।

हालाँकि कुछ माता-पिता अपने स्वार्थ के लिए बच्चों से काम कराते हैं और उनकी शिक्षा की राह में बाधक बनते हैं। ऐसे माता-पिता को दंड देने का प्रावधान होना चाहिए। सरकार ऐसी नीतियाँ बनाए, जिससे सब बच्चों को अनिवार्य शिक्षा मिले। बच्चों से काम कराने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही हो, क्योंकि पढ़ाई-लिखाई से वंचित बचपन समाज के लिए कलंक है।

(ii) समाचार के विभिन्न तत्त्वों में से किन्हीं दो तत्त्वों पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
अथवा
बीट रिर्पोटिंग के लिए पत्रकार को क्या-क्या तैयारी करनी पड़ती है? समझाइए। (2 × 1 = 2)
उत्तरः
समाचार बनना तभी संभव होता है जब उसमें समाचार के तत्त्व सम्मिलित हों। समाचार के तत्त्व निम्नलिखित हैं
(a) नवीनता समाचार में नवीनता का होना अत्यंत आवश्यक होता है। घटना, विचार आदि जितने नए व ताज़ा होंगे उतना ही समाचार बनने की संभावना बढ़ जाएगी। अतः समाचार को समयानुकूल प्रेषित करना आवश्यक है।

(b) निकटता पाठक, श्रोता, दर्शक अपने क्षेत्र की निकटवर्ती घटनाओं, जानकारियों को प्राप्त करना चाहते हैं, अपने आस-पास के क्षेत्र, राज्यों की जानकारी को प्राप्त करने के लिए पाठक, श्रोता अथवा दर्शक उत्सुक रहते हैं। अपने निकट की जानकारी एवं घटनाओं को हम इसलिए प्राप्त करना चाहते हैं, क्योंकि उससे हम सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि रूप से जुड़े होते हैं। अत: समाचार में निकटता का तत्त्व महत्त्वपूर्ण होता है।

अथवा

सामान्यत: बीट रिपोर्टिंग के लिए भी एक पत्रकार को पर्याप्त , तैयारी करनी पड़ती है। उसे किसी भी विशेष विषय से संबंधित रिपोर्ट तैयार करने के लिए उसकी संपूर्ण जानकारी एकत्रित करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी पत्रकार को किसी विशेष राजनीतिक दल के बारे में रिपोर्ट तैयार करनी है, तो उसे उसका इतिहास ज्ञात होना चाहिए। उसे यह पता होना चाहिए कि वह राजनीतिक दल कब उभरा और समय-समय पर उसमें क्या परिवर्तन हुए। वर्तमान में दल की नीतियाँ व सिद्धान्त क्या हैं। मौजूदा समय में राजनीतिक पटल पर उसकी क्या स्थिति है, उसके उच्च पदाधिकारी कौन हैं, वे किस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं आदि। अत: बीट रिपोर्टिंग के लिए पत्रकार को केवल तथ्यों के आधार पर ही रिपोर्ट बनानी नहीं होती. बल्कि उसे पख्ता स्रोतों के आधार पर उस राजनीतिक दल का ब्यौरा देना पड़ता है।

पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 [20 अंक]

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(i) उषा के सम्मोहन (जादू) टूटने का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तरः
उषाकाल में प्रकृति का रंग अपने सौंदर्य को विविध रूपों में प्रदर्शित करता है। आकाश अपने रंग-रूप में प्रतिक्षण नवीन परिवर्तन कर रहा होता है। सूर्योदय के बाद आकाश में सूर्य की तेज़ किरणें छिटक कर अपना प्रकाश बिखेर देती हैं, जिसके प्रभाव से आकाश का नीला रंग मिट जाता है। उसकी आर्द्रता शुष्कता में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार सूर्योदय से पूर्व आकाश मे उभरते हुए रंगों के अद्भुत मेल से आकाश में जादू जैसा वातावरण बन जाता है। सूर्योदय होते ही ये सारे रंग विलीन हो जाते हैं और उषा का सम्मोहन (जादू) टूटने लगता है।

(ii) ‘तुलसी का युग बेकारी से आक्रांत था’ कवितावली के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तरः
तुलसी का युग भी बेकारी से आक्रांत था। यह कथन पूर्णत: सत्य है। उस युग में अकाल के कारण चारों ओर हाहाकार मचा था। किसान को कषि की सविधा नहीं थी. भिखारी को भीख भी नहीं मिलती थी। काम-धंधे सब चौपट हो चुके थे। कर्मचारीगण खाली थे। चारों ओर बेरोज़गारी का आलम था। पेट की आग अर्थात् भूख का प्रभाव सभी व्यक्तियों पर स्पष्ट रूप से नजर आता था। काम न मिलने की विवशता में लोग ऊँच-नीच कर्म कर रहे थे तथा धर्म-अधर्म पर विशेष ध्यान नहीं दे रहे थे। लाचारी इतनी बढ़ गई थी कि लोग अपनी संतान तक को बेचने के लिए विवश हो गए थे। अतः दरिद्रता रूपी रावण ने सबको अपने वश में किया हुआ था।

(iii) फ़िराक गोरखपुरी की गजलों के आधार पर बताइए कि शायर ने राखी के लच्छे को किसके समान माना है? राखी बाँधती बहन का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तरः
शायर ने राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह माना है। राखी के दिन एक नन्ही-सी बच्ची अपने भाई के हाथों पर राखी बाँधती है। वह बच्ची रस की पुतली है, उसकी उमंग
और चपलता देखते ही बनती है। उसके हाथ में जो राखी है, उसके लच्छे से एक चमक निकल रही है, जो आकाश में चमकती बिजली की भंगिमा दे जाती है। दूसरी ओर कवि रक्षाबंधन के दिन आसमान में काले-काले बादलों की छटा को दर्शाता है। ये बादल उस नन्ही बच्ची के हाथों में रखी राखी में बिजली की चमक पैदा करते हैं।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखिए। (3 × 3 = 9)
(i) ‘ढोल की आवाज से लुट्टन सिंह के साथ गांव वालों में भी नई शक्ति का संचार हुआ। पहलवान की ढोलक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
वास्तव में, ढोल की आवाज़ सुनते ही लुट्टन पहलवान में एक नए उत्साह एवं नई शक्ति का संचार हो जाता था। वह इसी शक्ति के बल पर दंगल जीत जाता था। उसका ढोल में एक गुरु के जैसा ही विश्वास था। ढोल के साथ उसकी श्रद्धा जुड़ी थी। वह यह भी मानता था कि ढोल की आवाज़ गाँव वालों में भी उत्साह का संचार कर देगी, जिससे वे महामारी का डटकर सामना कर सकेंगे। मौत के सन्नाटे को चीरने एवं उसके भय को समाप्त करने के लिए ही वह रात में ढोल बजाया करता था। इससे गाँव वालों में एक नई जिजीविषा पैदा होती थी। गाँव वालों में जीने की इसी इच्छा को उत्पन्न करने एवं बनाए रखने के लिए वह अपने बेटों की मृत्यु के उपरांत भी ढोल बजाता रहा। यह गाँव वालों के प्रति उसकी परोपकार की भावना थी। साथ-ही-साथ ढोल बजाकर ही वह अपने बेटों की मृत्यु के सदमे को झेलने की शक्ति भी प्राप्त कर रहा था।

(ii) ‘नमक’ कहानी के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए कि सीमाएं लोगों के दिलों को नहीं बाँट सकती हैं। (3)
उत्तरः
‘नमक’ कहानी भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद सीमा के दोनों तरफ़ के लोगों के दिलों को टटोलती कहानी है। लोगों को सीमा के आधार पर विभाजित कर देने भर से लोगों के मन की भावनाएँ विभाजित नहीं हो जातीं। जनसामान्य का लगाव मूल स्थान से बना ही रहता है। पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी तथा भारतीय कस्टम अधिकारी क्रमश: देहली तथा ढाका को आज भी अपना वतन मानते हैं। आरोपित भेदभाव के विपरीत सिख बीबी एवं सफ़िया तथा सफ़िया एवं कस्टम अधिकारी सुनीलदास गुप्त के व्यवहार में जो स्नेह एवं सम्मान है, उसके माध्यम से लेखिका यही बताना चाहती है कि जनता इस भेदभाव को नहीं मानना चाहती है। ढाका हो या दिल्ली हो या फिर लाहौर, सब के नाम अलग हो सकते हैं, परंतु वहाँ के रहने वालों के दिलों को नहीं बाँटा जा सकता। इस प्रकार स्पष्ट है कि सीमाएँ लोगों के दिलों को नहीं बाँट सकती हैं।

(iii) ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के लेखक के अनुसार समता शब्द काल्पनिक होते हुए भी नियामक सिद्धांत है। इस कथन के संदर्भ में मनुष्य के समता सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
लेखक के अनुसार, “सभी मनुष्य बराबर नहीं होते।” आलोचकों का यह तर्क एक सीमा तक उचित है, परंतु तथ्यात्मक होते हुए भी यह विशेष महत्त्व नहीं रखता। अपने शाब्दिक अर्थ में ‘समता’ काल्पनिक होते हुए भी नियामक सिद्धांत है। मनुष्यों की समता तीन बातों पर निर्भर करती है
(a) शारीरिक वंश-परंपरा।
(b) सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात् सामाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की कल्याण कामना, शिक्षा तथा वैज्ञानिक ज्ञानार्जन आदि; जैसी सभी उपलब्धियाँ, जिनके कारण सभ्य समाज, जंगली लोगों की अपेक्षा विशिष्टता प्राप्त करता है।
(c) मनुष्य के अपने प्रयास। इन तीनों दृष्टियों से मनुष्य समान नहीं होते। तो क्या इन विशेषताओं के कारण, समाज को भी व्यक्तियों के साथ असमान व्यवहार करना चाहिए? समता के विरोधी इस बात को लेकर निरुत्तर हो जाते हैं।

(iv) ‘नमक’ कहानी के आधार पर बताइए कि सफ़िया के मन में क्या द्वन्द्व चल रहा था और इस द्वन्द्व से निकलने के लिए उसने क्या निर्णय लिया? (3)
उत्तरः
सफ़िया के मन में द्वन्द्व इस बात को लेकर चल रहा था कि वह नमक की पुड़िया को चोरी से छिपाकर हिंदुस्तान ले जाए या कस्टम वालों को कहकर व उन्हें दिखाकर ले जाए। पहले वह नमक की पुड़िया अपने दोस्त के द्वारा उपहारस्वरूप दी गई कीनुओं की टोकरी में रख देती है, क्योंकि उसने सोचा था कि इस पर किसी की निगाह नहीं जाएगी, परंतु जब हिंदुस्तान जाने के लिए कस्टम अधिकारी द्वारा उसके सामान की जाँच की जाने लगी, तब इस द्वन्द्व से निकलने के लिए उसने निर्णय लिया कि वह किसी भी कारण से महब्बत का यह उपहार चोरी से नहीं ले जाएगी और वह कस्टम अधिकारी को सही जानकारी देगी। सफ़िया ने ऐसा ही किया। इस बात का पता जब कस्टम अधिकारी को लगा तो उसने सफ़िया को नमक की पुड़िया ले जाने से नहीं रोका।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(i) ‘अतीत के दबे पाँव’ पाठ के आधार पर लिखिए कि मुअनजो-दड़ो में लेखक ने किन-किन स्थलों का वर्णन किया है? (3 × 1 = 3)
अथवा
ऐन के परिवार ने एएसएस के नोटिस पर क्या कदम उठाया? क्या वह कदम उनके लिए उचित सिद्ध हुआ? ‘ऐन की डायरी’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः
मुअनजो-दड़ो में लेखक ने निम्नलिखित स्थलों का वर्णन किया है
(a) बौद्ध स्तूप यह सबसे ऊँचे चबूतरे पर निर्मित बड़ा बौद्ध स्तूप है। वर्ष 1922 में राखलदास बनर्जी ने इसी बौद्ध स्तूप की खुदाई करते हुए सिंधु सभ्यता के बारे में पहली बार जाना था। स्तूप वाले चबूतरे के पीछे वाले हिस्से को विद्वान् ‘गढ़’ कहते हैं। लेखक वहाँ की धूप की विशेषता को रेखांकित करता है।
(b) विशाल स्नानागार और कुंड यहाँ सामूहिक स्नानागार का स्थान महाकुंड के नाम से जाना जाता है। एक पंक्ति में आठ स्नानघर हैं, जिनमें किसी के भी द्वार एक-दूसरे के सामने नहीं खुलते। कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का प्रयोग हुआ है, जिससे कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का अशुद्ध पानी कुंड में न आने पाए।
(c) अजायबघर अजायबघर में काला पड़ गया गेहूँ, बर्तन, मुहरें, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, ताँबे का आइना आदि दिखाई देते हैं। अजायबघर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वहाँ औजार तो हैं, पर हथियार नहीं हैं।

अथवा

ऐन अपने परिवार के साथ हॉलैंड में रहती थी। वहाँ पर जर्मन शासक हिटलर का प्रभाव स्थापित होने के कारण यहूदी परिवारों को हिटलर का क्रूर शासन झेलना पड़ा। कई हज़ार यहूदी, नाजी यातना शिविरों में बंद कर दिए गए थे। ऐन का परिवार भी यहूदी धर्म को मानता था। एक दिन ऐन के पापा को एएसएस से बुलाए जाने का नोटिस मिला। यह बुलावा ऐन और उसके परिवार के लिए दुःखों का कारण था। विशेष रूप से यह बुलावा उसकी 16 वर्ष की बहन मार्गेट के लिए था। ऐन के लिए यह एक बड़ा सदमा था। उसका परिवार इस घटना की गंभीरता को समझता था। इस नोटिस पर ऐन के परिवार ने तुरंत ही छिपने यानी अज्ञातवास में जाना का निर्णय ले लिया। उनके द्वारा उठाया गया। यह कदम एक सीमा तक उचित था, क्योकि ऐसा करके वे स्वयं पर होने वाले अत्याचारों से बच सकते थे। इसके अतिरिक्त उनके पास कोई अन्य रास्ता भी नहीं था।

(ii) ऐन को अपने परिवार के साथ अपने पिता के दफ्तर के कमरों में रहने के लिए क्यों आना पड़ा? स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
अतीत के दबे पाँव’ पाठ में वर्णित कुंड का वर्णन अपने शब्दों मे कीजिए।
उत्तरः
ऐन अपने परिवार के साथ अपने पिता के दफ्तर के कुछ कमरों में रहने आ गई थी, क्योंकि अचानक उसकी बड़ी बहन मार्गेट के लिए बुलावा आ जाने पर फ्रेंक परिवार को तय समय से पहले ही अज्ञातवास के लिए जाना पड गया उनके वहाँ आने से पहले साफ़-सफ़ाई का कोई प्रबंध नहीं हो पाया था। रात को सोने से पहले उन्होंने साफ़-सफ़ाई की तथा सामानों को व्यवस्थित करने का काम किया। इस प्रकार वह पूरे दिन काम में जुटी रही। इन्हीं सब कामों में जुटे रहने के कारण ऐन को प्रारंभिक कुछ दिनों तक अपनी जिंदगी में आए बड़े परिवर्तन के बारे में सोचने का समय नहीं मिला।

अथवा

कुंड की विशेषता यह है कि कुंड लगभग 40 फीट लंबा और 25 फीट चौड़ा है और इसकी गहराई 7 फीट है। इस कुंड की खास बात पक्की ईंटों का जमाव होना है। कुंड का पानी रिस न सके
और बाहर का ‘अशुद्ध’ पानी कुंड में न आए, इसके लिए कुंड के तल में एवं दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का उपयोग हुआ है। कुंड के पानी के बंदोबस्त के लिए एक तरफ कुआँ है, जो दोहरे घेरे वाला एक अकेला कुआँ है। इस कुंड का उपयोग पवित्र या अनुष्ठानिक रूप में किया जाता रहा होगा। इसकी बनावट ही इसके अनुष्ठानिक प्रयोग का प्रमाण माना जाता है।