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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 7 with Solutions

निर्धारित समय : 2 घंटे
अधिकतम अंक : 40

निर्देश :

  • निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए।
  • इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
  • इस प्रश्न पत्र में कुल 07 प्रश्न पूछे गए हैं। आपको 07 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
  • प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।

कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षकों में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों का एक रचनात्मक लेख लिखिए। (5 × 1 = 5)

  • मेरे बचपन की मधुर स्मृतियाँ
  • ट्रैफिक जाम में फंसा मैं
  • मेरे जीवन को प्रभावित करने वाला सदस्य

उत्तरः

मेरे बचपन की मधुर स्मृतियाँ

“जीवन अनेक अवस्थाओं से गुजरता है, परंतु बचपन मानव जीवन की सर्वाधिक आनंदमयी अवस्था मानी जाती है। संसार के छल-कपट. अच्छाई-बराई से परे अपनी मासमियत और भोलेपन से भरपूर बचपन अपना अलग ही महत्त्व रखता है। बचपन में, सच्चाई और ईमानदारी की मूर्ति ‘बच्चा’ संसार की मलिनता से अछूता रहता है। वह अपने मन का राजा होता है, जहाँ बच्चा किसी भी गलती पर छोटी-सी डाँट पड़ते ही आँसुओं की झड़ी लगा देता है, वहीं वह माँ की गोद में आकर आनंद से भर जाता है। यही स्मृतियाँ मनुष्य के हृदय पर अंकित हो जाती हैं।

सभी बच्चों की तरह मेरा बचपन भी बहुत मधुर था। मुझे माता-पिता के साथ-साथ, दादी-दादा का भी भरपूर प्यार मिला। मैं दादी जी के जिगर का टुकड़ा था। उन दिनों सुबह जब दादा जी पूजा करते थे, तो उनके शंख की आवाज सुनकर मैं पूजा स्थल पर पहुँच जाता था। वहाँ पहुँचते ही दादा जी चंदन का टीका लगाकर काजू, किशमिश तथा मिश्री के साथ एक तुलसी का पत्ता प्रसादस्वरूप दे देते थे। मैं रोज दादी जी के साथ बगीचे में घूमने जाता था। वहाँ मैं बड़े बच्चों के साथ बगीचे के चारों ओर चौकड़ी लगाकर तीन-चार चक्कर लगाता था, पीछे-पीछे दादी भी दौड़ती रहती थीं, जब बड़े बच्चे दूर तक चले जाते थे, तब दादी जी रुक जाती थीं और मैं रोते हुए घर चला आता था। दादी जी हँसती थीं और मुझे समझाती थी कि ऐसे रोते नहीं है। वे मुझे अच्छी-अच्छी स्वादिष्ट चीजें खाने को देती थी। रात के समय दादाजी हमें बहुत-सी कहानियाँ सुनाती थे जिन्हें सुनकर बड़ा आनंद आता था। इस प्रकार बचपन की मधुर स्मृतियाँ याद करके मैं यह कहने से खुद को रोक नहीं पाता कि “काश! वे दिन फिर से लौट आते।”

ट्रैफिक जाम में फंसा मैं यातायात के साधन विज्ञान का ऐसा आविष्कार है, जिनसे मनुष्य वर्षों, महीनों के स्थान पर कुछ ही घंटों या मिनटों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुँच जाता है। आज मनुष्य इतनी प्रगति कर चुका है कि अधिकांश लोग अपने निजी साधन; जैसे—कार, मोटरसाइकिल, स्कूटर आदि खरीदने में सक्षम हैं। इसी कारण सड़कों पर अत्यंत भीषण जाम की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज स्कूल से आते समय मैंने देखा कि अनेक वाहन अपनी लाइन में न चलकर हमारी बस लाइन में ओवर टेक कर रहे थे। लोगों की इस जल्दबाज़ी के कारण दो वाहनों की भिड़त हो गई। जिससे पूरे रोड (सड़क) पर भीषण जाम लग गया। ये सब हमारी भ्रष्ट कानून-व्यवस्था और हमारी नियमों का पालन न करने की आदत के कारण हुआ, वहाँ कोई ट्रैफिक पुलिस नहीं थी, जो इस ट्रैफिक को नियंत्रित करती। बस में बैठे हुए सभी विद्यार्थी परेशान हो गए। गर्मी के कारण सब की हालत खराब हो रही थी और जाम कम होने के नाम ही नहीं ले रहा था। मुझे घर जाकर अपना एक जरूरी काम भी निपटाना था लेकिन जाम में फँस जाने के कारण वह भी पूरा नहीं हो सकेगा।

मैं इसी सोच में डूबा था कि अचानक जाम से हमारी बस निकलने लगी और सभी छात्रों ने राहत की साँस ली। अत: कहा जा सकता है कि ट्रैफिक जाम की समस्या एक बड़ी समस्या है। इस समस्या के सुधार के लिए हमारी कानून-व्यवस्था में कठोर नियम बनने चाहिए तथा इसके साथ-साथ लोगों को भी ट्रैफिक नियमों का पालन भली-भाँति करना चाहिए, तभी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। आज के अनुभव से सीख लेते हुए मैंने यह संकल्प लिया है कि मैं यातायात के नियमों का पालन करूँगा और इसके लिए सभी को प्रेरित करूँगा, ताकि ट्रैफिक जाम की स्थिति उत्पन्न न हो।

मेरे जीवन को प्रभावित करने वाला सदस्य

परिवार में माता का स्थान सर्वोपरि है। पुत्र, माता के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकता। कहा गया है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, परंतु माता कभी कुमाता नहीं होती। माँ एवं मातृभूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ बताते हुए श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं“हे लक्ष्मण! मुझे स्वर्णयुक्त लंका में जरा भी रुचि नहीं है। यह लंका मुझे आकर्षित नहीं करती। मुझे तो जन्म देने वाली माँ तथा जन्मभूमि के चरणों में ही स्वर्ग प्राप्त होता है।” मैं अपने परिवार के सदस्यों में से अपनी माँ से सबसे अधिक प्रभावित हूँ, क्योंकि माँ अपने पुत्र के लिए स्वयं कष्ट सहती है, उसकी रक्षा करतो है, उचित पालन-पोषण करती है, उसे चलना सिखाती है और जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, तब तक वह उसका सही मार्गदर्शन करते हुए उसकी प्रथम गुरु होती है। मेरे जीवन में तो मेरी माता का प्रमुख स्थान है। उन्होंने मेरी हर ज़रूरत को समझा तथा उसे पूरा किया है। मेरे स्कूल जाने के समय मुझे तैयार करने से लेकर गृहकार्य करने तक में मेरी सहायता की। मेरी माँ कहती हैं कि स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में ही रहता है। अत: वह मुझे शाम के समय खेलने के लिए अवश्य भेजती थीं। उन्होंने मुझे संत-महापुरुषों के जीवन की कथाएँ सुनाकर मेरे चरित्र का निर्माण किया। मेरी माँ ने मुझे सत्य, न्यायप्रियता, ईमानदारी, परोपकार एवं गुरुजनों की आज्ञा का पालन करना सिखाया।

ईश्वर की प्रार्थना करने का भाव भी मेरे हृदय में तब ही जागा, जब मैं छुट्टी के दिनों में माँ के साथ मंदिर जाने लगा। माँ ने न केवल मेरे गुणों को निखारा, बल्कि मेरे अवगुणों को दूर करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जैसे शिवाजी का पालन-पोषण करते हुए, उचित संस्कार एवं मार्गदर्शन से उन्हें मराठा साम्राज्य का सम्राट, उनकी माँ जीजाबाई ने ही बनाया, वैसे ही मुझे भी इस समाज सेवा की ऊँचाई तक मेरी माँ ने ही पहुँचाया। मेरे विचार से हमारे प्रत्यक्ष (सामने) कोई ईश्वर है, तो वह माँ ही है।

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 7 with Solutions

प्रश्न 2.
जल वितरण की अनियमितता और अपर्याप्तता की शिकायत करते हुए अपने क्षेत्र के जल बोर्ड के मुख्य अभियंता को पत्र लिखिए। (5×1-5)
अथवा
आपके मोहल्ले में बच्चों के खेलने के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है। नगर निगम के अध्यक्ष को पत्र लिखकर बाल-उद्यान बनवाने की प्रार्थना कीजिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 24 सितंबर, 20XX
सेवा में,
मुख्य अभियंता,
दिल्ली जल बोर्ड,
नई दिल्ली।

विषय जल वितरण की अनियमितता एवं अपर्याप्तता संबंधी।
महोदय,
मैं आपका ध्यान पालम क्षेत्र में जल वितरण की समस्या की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। इस क्षेत्र में केवल 15-20 मिनट ही नलों में पानी आता है। उसके आने का भी कोई निश्चित समय नहीं है। पानी की यह आपूर्ति अपर्याप्त रहती है। महाशय, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले सात दिनों से हमारे क्षेत्र में प्रतिदिन नियमित रूप से जलापूर्ति नहीं की जा रही है। प्रायः एक दिन के अंतराल पर जल की आपूर्ति की जा रही है। कभी-कभी तो दो दिन तक नलों में पानी ही नहीं आता। इसी कारण यहाँ के निवासी पेयजल के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं। पानी के टैंकरों पर माफ़ियाओं का कब्जा रहता है। जैसे ही कोई पानी का टैंकर आता है, वैसे ही लोगों की इतनी अधिक भीड़ जमा हो जाती है कि कई बार तो मारपीट तक की स्थिति बन जाती है। यह सारी समस्या जल की अपर्याप्त और अनियमित आपूर्ति के कारण उत्पन्न हो रही है। अतः आपसे विनम्र अनुरोध है कि इस क्षेत्र में जल वितरण को नियमित किया जाए तथा पर्याप्त जल आपूर्ति की व्यवस्था की जाए। सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.

अथवा

परीक्षा भवन,
दिल्ली।
सेवा में,
अध्यक्ष महोदय,
नगर निगम,
दिल्ली।
दिनांक 03 फरवरी, 20XX

विषय बच्चों के खेलने हेतु पार्क की व्यवस्था करने के संबंध माननीय
महोदय,
हम सब कमला नगर, दरियागंज के स्थायी निवासी हैं। हम आपका ध्यान बच्चों के लिए पार्क न होने की समस्या की ओर आकर्षित करना चाहते हैं। हमारे यहाँ 10 हज़ार से अधिक आबादी है, इसके बावजूद बच्चों के खेलने हेतु मोहल्ले में एक भी बाल-उद्यान नहीं है, जिसके अभाव में बच्चे घर में ही रहते हैं। इस कारण उनका शारीरिक व मानसिक विकास अवरुद्ध हो रहा है। इसके अतिरिक्त, पर्यावरण व अन्य नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए भी उद्यान की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

अत: हम सब निवासी आपसे विनम्र अनुरोध करते हैं कि इस समस्या का समाधान किया जाए तथा बाल-उद्यान की व्यवस्था की जाए। हम सब हार्दिक रूप से आपके अत्यंत आभारी रहेंगे।
सधन्यवाद। भवदीय समस्त निवासीगण
कमला नगर,
दिल्ली।

प्रश्न 3.
(i) नाटक लेखन के आवश्यक तत्त्वों पर प्रकाश डालिए तथा किन्हीं तीन तत्त्वों पर विचार व्यक्त कीजिए। (3×1 = 3)
अथवा
“कहानी लेखन हेतु कथानक प्रमुख तत्त्व होता है”- इस कथन के आलोक में कहानी के कथानक पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
नाटक लेखन में कथानक, संवाद, भाषा, चरित्र एवं रंगमंचीयता आदि तत्त्वों का होना अनिवार्य है। नाटक लेखन के तीन प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं कथ्य या कथानक नाटक के लिए उसका कथ्य आवश्यक होता है। नाटक में किसी कहानी के रूप को शिल्प या संरचना के भीतर उसे पिरोना होता है। इसके लिए नाटककार को शिल्प या संरचना की पूरी समझ, जानकारी व अनुभव होना चाहिए। इसके लिए पहले घटनाओं, स्थितियों या दृश्यों का चुनाव कर उन्हें क्रम में रखें ताकि कथा का विकास शून्य से शिखर की ओर हो। संवाद नाटक का सबसे महत्त्वपूर्ण और सशक्त माध्यम उसके संवाद हैं।

संवाद ही वह तत्त्व है, जो एक सशक्त नाटक को अन्य कमजोर नाटकों से अलग करता है। संवाद जितने सहज और स्वाभाविक होंगे, उतना ही दर्शक के मर्म को छुएँगे। भाषा भाषा नाटक का प्राणतत्त्व है। एक अच्छा नाटककार अत्यंत संक्षिप्त तथा सांकेतिक भाषा का प्रयोग करता है। नाटक वर्णित न होकर क्रियात्मक अधिक होना चाहिए। एक अच्छा नाटक वही होता है, जो लिखे गए शब्दों से अधिक, वह ध्वनित करे जो लिखा नहीं गया है।

अथवा

कथानक कहानी का वह तत्त्व है जो निश्चित समय में क्रमबद्ध तरीके से घटित घटनाओं का आधार बनकर उन्हें सहयोग देता है तथा कथा की समस्त घटनाएँ जिनके चारों ओर ताने-बाने की तरह बुनी जाकर, बढ़ती और विकसित होती है। यह कहानी का केंद्रबिंदु होता है, जिसमें प्रारंभ से अंत तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख होता है। सरल शब्दों में, कहानी के ढाँचे को कथानक कहा जाता है। प्रत्येक कहानी के लिए कथावस्तु का होना अनिवार्य है, क्योंकि इसके अभाव में किसी कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कथानक को कहानी का प्रारंभिक नक्शा भी माना जा सकता है। कहानी का कथानक कहानीकार के मन में किसी घटना, जानकारी, अनुभव या कल्पना के कारण आता है। कहानीकार कल्पना का विकास करते हुए एक परिवेश, पात्र और समस्या को आकार देता है। इस प्रकार वह एक ऐसा काल्पनिक ढाँचा तैयार करता है, जो कोरी कल्पना न होकर संभावित हो तथा लेखक के उद्देश्य से मेल खाती हो।

(ii) नाटक की रंगमंचीयता के महत्त्व पर प्रकाश डालिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
कहानी की संवाद योजना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
नाटक का सबसे प्रभावशाली तत्त्व रंगमंचीयता है। नाटक रंगमंच के लिए ही लिखे जाते हैं। वही नाटक सफल माना जाता है, जिसका मंचन किया जा सके। रंगमंच नाटक की वास्तविक कसौटी होता है। यही नाट्य तत्त्व का वह गुण है जो दर्शक को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। इस संबंध में नाटककार को नाटकों के रूप, आकार, दृश्यों की सजावट और उसके उचित संतुलन, परिधान, व्यवस्था, प्रकाश व्यवस्था आदि का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

अथवा

कहानी की संवाद योजना में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए

  • कहानी में संवाद योजना सरल तथा सहज होनी चाहिए।
  • संवाद योजना पात्रानुकूल होनी चाहिए।
  • संवाद योजना विषयानुकूल तथा स्वाभाविक होनी चाहिए।
  • उसमें रोचकता का गुण होना चाहिए।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) ‘भोजन पर सबका अधिकार’ विषय पर फ़ीचर लिखिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
‘बाल श्रमिकों की समस्या’ विषय पर एक आलेख लिखिए।
उत्तरः
भोजन पर सबका अधिकार भारतीय कृषि एवं विकास से संबंधित आँकड़े सिद्ध करते हैं कि आज भी भारत देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को भरपेट भोजन नहीं मिलता, इसलिए इस समस्या का हल निकालने हेतु ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान’ की शुरुआत की गई और अंततः ‘खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ पारित किया गया, ताकि भारत का कोई भी व्यक्ति भूखा न रह सके। सतही तौर पर देखा जाए, तो भोजन पर उसी का अधिकार होना चाहिए, जो उसे अर्जित कर सके, लेकिन यह तर्क निजी पूँजीवाद को बढ़ावा देने वाले तथा मानवीय मूल्यों में कम विश्वास करने वाले अगंभीर प्रवृत्ति के लोगों का हो सकता है। समाज एवं सामाजिकता का अर्थ क्या है? यदि एक व्यक्ति खा-खाकर मरता है और दूसरा व्यक्ति भूख से, तो यहाँ प्रतिस्पर्धा की बात कहाँ आती है? यहाँ तो सामाजिक मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि रखना चाहिए।

सामाजिकता का अर्थ ही है एक-दूसरे की सहायता करना, कठिन समय में साथ देना। समग्र देश एवं समूची मानव जाति का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह ऐसे लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करे, जो इससे वंचित हैं। मनुष्य को जीवित रहने का अधिकार तो मिलना ही चाहिए और जीवित रहने के लिए भोजन अति आवश्यक है, इससे किसी को मतभेद नहीं हो सकता। अत: सरकार और समाज का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह समाज के सभी लोगों की भोजन संबंधी आवश्यकता की पूर्ति करे।

अथवा

बाल श्रमिकों की समस्या बच्चे देश का भविष्य होते हैं। जब यही भविष्य कच्ची उम्र में सड़कों पर काम करता नज़र आए तो आँखें शर्म से झुकने लगती हैं। भारत सरकार द्वारा ‘बाल श्रम’ को अपराध घोषित किया गया है। इस संबंध में यह कानूनी प्रावधान है कि चौदह वर्ष से कम आयु के बालक को कोई नियोक्ता अपने संस्थान या उद्योग में कार्य करने हेतु नियुक्त नहीं कर सकता। परंतु यह दुर्भाग्य है कि कानून-नियम की धज्जियाँ उड़ाते हुए नियोक्ता बालकों को अनेक प्रकार के क्रियाकलापों में संलग्न करके उनसे कार्य करवा रहे हैं, तो दूसरी ओर भूख और गरीबी से बिलबिलाता बचपन काम करने को मजबूर है। पेट पालने के लिए उसे मजबूरी में श्रमिक बनना पड़ता है। बाल श्रमिक का बचपन उससे छिन जाता है, सपने मर जाते हैं, जीवन बोझ बन जाता है। भूख के आगे कानून बेबस रह जाता है। सरकार के पास न तो कोई ऐसा खज़ाना है, न कोई ऐसी योजना, जो बाल श्रमिकों को घर बैठाकर उनके पेट भरने की व्यवस्था कर सके, उन्हें शिक्षित कर सके। अनाथ या अशक्त माता-पिता की संतानें जीविका हेतु काम करने के लिए मजबूर हैं। उनसे आजीविका कैसे छीनें? ऐसे अनेक अनुत्तरित प्रश्न हमें झकझोरते हैं, परंतु कोई ठोस हल नहीं मिलता।

(ii) समाचार मुख्य रूप से कितने प्रकार के होते हैं? संक्षेप में बताइए। (2 × 1 = 2)
अथवा
किस घटना के समाचार बनने की अधिक संभावना होती है तथा क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
मुख्य रूप से समाचार चार प्रकार के होते हैं
(a) राष्ट्रीय
(b) अंतर्राष्ट्रीय
(c) प्रादेशिक
(d) स्थानीय

विदेशों से प्राप्त होने वाले समाचार ‘अंतर्राष्ट्रीय समाचार’ कहलाते हैं, जबकि ‘राष्ट्रीय समाचारों का संबंध अपने देश के समाचारों से है। देश के विभिन्न प्रदेशों से प्राप्त होने वाले समाचारों को ‘प्रादेशिक समाचार’ की श्रेणी में रखा जाता है। स्थानीय समाचार समाचार-पत्र के प्रकाशन स्थान या उसके आस-पास के क्षेत्र से संबंधित ख़बरों के समूह होते हैं। स्थानीय समाचारों से समाचार-पत्रों की गतिशीलता बढ़ती है।

अथवा

जिस घटना का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर सीधा पड़ता है, उस घटना के समाचार बनने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि जो घटना अथवा समस्या पाठक, दर्शक, श्रोता के आस-पास के क्षेत्र एवं जीवन से संबंध रखती है तथा उसके जीवन पर सीधा प्रभाव डालती हो, उससे संबंधित जानकारी को प्राप्त करने की उसकी स्वाभाविक इच्छा होती है। सरकार का कोई निर्णय यदि सीमित लोगों को प्रभावित एवं लाभान्वित करता है, तो यह बड़ा समाचार नहीं होगा।

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 7 with Solutions

पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 [20 अंक]

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(i) कवि शमशेर बहादुर सिंह ने ‘उषा’ कविता में प्रात:काल के सौंदर्य का वर्णन किया है। उनके अतिरिक्त अन्य किन प्रसिद्ध कवियों के प्रातःकाल के सौंदर्य को अपनी कविता में अभिव्यक्त किया गया है? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
कवि शमशेर बहादुर सिंह ने ‘उषा’ कविता में प्रात:काल के सौंदर्य को स्पष्ट किया है। उनके अतिरिक्त जयशंकर प्रसाद तथा अज्ञेय ने भी प्रात:काल की गतिविधियों तथा परिवर्तनों को स्पष्ट करने वाली कविताएँ लिखी हैं। जयशंकर प्रसाद ने प्रसिद्ध कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ में उषाकाल का मानवीकरण कर इसे एक नया रूप दिया है। प्रसाद के उपमान भी ग्रामीण परिवेश से जुड़े हुए हैं। अज्ञेय ने सूर्य को ‘बावरा अहेरी’ कह प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति दी है। यह आलोक का प्रतीक है। यहाँ आलोक की लाल-लाल किरणें नवीन ज्ञान-विज्ञान की प्रतीक हैं। इस प्रकार शमशेर, प्रसाद तथा अज्ञेय की कविताएँ प्रात:काल के सौंदर्य को प्रतीक एवं बिंबों के साथ स्पष्ट करती हैं।

(ii) “तुलसीदास विषादग्रस्त समाज से संघर्ष करते दृष्टिगत होते हैं” कवितावली के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए। (3)
उत्तरः
तुलसीदास विषादग्रस्त समाज से संघर्ष करते दृष्टिगत होते हैं। वे हर प्रकार की विभाजनकारी शक्तियों से टकराते हैं। तुलसी सही अर्थ में समन्वयकारी तथा मानवतावादी रचनाकार हैं। वे धूत-अवधूत, राजपूत-जुलाहा जैसे सामाजिक विभाजन को अनर्थकारी मानते हैं। उन्होंने समाज में अपनी स्थिति देखी थी। एक ब्राह्मण होते हुए भी उन्हें सामाजिक अपवादों से दो-चार होना पड़ा था। सामाजिक यथार्थ यही था कि समाज का विभाजन प्रायः आर्थिक आधार पर निर्धारित हो गया है। धन तथा प्रभुत्व रखने वाले लोग ही सामाजिक मान्यताओं के निर्माता तथा नियंत्रक होते हैं। ऐसे में तुलसी ‘माँग कर खाने’ और ‘मस्जिद में सोने’ जैसी बात कर उक्त सामाजिक व्यवस्था को दो टूक जवाब देते हैं, किंतु अंतत: तुलसी भक्त शिरोमणि हैं। वे राम के प्रति दास्य भाव स्वीकार करते हैं। तुलसी की भक्ति ही उनकी अंत:चेतना को ‘सर्वजन हिताय’ बनाती है।

(iii) फ़िराक गोरखपुरी की गज़लों में वर्णित वियोग श्रृंगार का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (3)
उत्तरः
‘गज़ल’ उर्दू शायरी (कविता) की एक महत्त्वपूर्ण विधा है। इसमें प्रेग्ः तथा श्रृंगार को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। श्रृंगार दो प्रकार के होते हैं-वियोग तथा संयोग। वियोग श्रृंगार को ‘विरह’ भी कहते हैं। फिराक गोरखपुरी की इस गज़ल में वियोग श्रृंगार को महत्त्व मिला है। यह वियोग प्रेमिका के दूर होने तथा प्रेम में दुनिया का अपवाद सहने के कारण सामने आया है। कवि का विरह अपनी प्रेमिका को याद करने से बढ़ता है, किंतु वह ऐसा समर्पित प्रेमी है जो हर क्षण उसे याद करता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखिए। (3 × 3 = 9)
(i) लुट्टन सिंह पहलवान ने अपना गुरु किसे माना तथा क्यों? बताइए। (3)
उत्तरः
लुट्टन सिंह पहलवान ने अपना गुरु ढोल को माना, क्योंकि बचपन से ही लुट्टन सिंह ने कसरत करनी शुरू कर दी थी। उसने किसी भी गुरु से पहलवानी या कसरत की शिक्षा नहीं ली थी। अत: उसने किसी को भी अपना गुरु नहीं माना था और न ही किसी से कुश्ती के दाँव-पेंच सीखे थे। वह अपनी शक्ति और दाँव-पेंच की परीक्षा ढोलक की आवाज़ के आधार पर करता था। ढोल की आवाज़ उसके शरीर में उमंग व स्फूर्ति भर देती थी। वह अखाड़े में उतरने से पहले ढोल को प्रणाम करता था, क्योंकि उसने गुरु का स्थान ढोल को दे दिया था।

(ii) डॉ. आंबेडकर के आदर्श समाज की कल्पना के मुख्य तत्त्व क्या हैं? किसी एक तत्त्व के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
आंबेडकर के आदर्श समाज की कल्पना के मुख्य तीन तत्त्व हैं-स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता। आदर्श समाज में तीन तत्त्वों में से एक भ्रातृता को रखकर लेखक ने आदर्श समाज में स्त्रियों को सम्मिलित नहीं किया है, किंतु वह जिस समाज की बात कर रहा है, उस समाज की संरचना स्त्री तथा पुरुष दोनों से मिलकर निर्मित होती है। इसके अभाव में आदर्श समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। ‘भ्रातृता’ शब्द व्यवहार में नहीं है। इसके लिए भाईचारा या सामाजिकता शब्द ही उचित माना जा सकता है।

(iii) राजनीतिज्ञों के लिए समाज का विभाजन करना कठिन कार्य क्यों है? ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए। (3)
उत्तरः
राजनीतिज्ञों के पास समाज के सभी वर्गों के लोग आते हैं। वह उनकी जाति के अनुसार व्यवहार नहीं कर सकता, क्योंकि उसके पास न तो इतना समय होता है और न ही हर विषय की जानकारी होती है। राजनीतिज्ञों को व्यवहार्य सिद्धांत की ज़रूरत होती है, क्योंकि वह समाज के हर व्यक्ति के लिए अलग व्यवहार नहीं अपना सकता। उनके पास परिस्थितियों के अनुसार समता अपनाने का रास्ता ही बचता है। अत: समाज का विभाजन करना उनके लिए कठिन कार्य होगा।

(iv) लुट्टन सिंह का अपने बेटों की दिनचर्या में क्या योगदान होता है? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
लुट्टन सिंह पहलवान के दो पुत्र थे, जिनको वह प्रात:काल ही उठाकर ढोलक की ताल पर उनकी शक्ति को बढ़ाने के लिए कसरत करवाता और दाँव पेचों की जानकारी देता। उन्हें वह सांसारिक ज्ञान के साथ-साथ यह भी समझाता कि उनका कोई गुरु नहीं है। वे केवल ढोलक को ही अपना गुरु समझें तथा दंगल में उतरने से पहले ढोलक को अवश्य प्रणाम करें। इसके अतिरिक्त कब, कैसे और क्या व्यवहार करके मालिक को खुश रखा जाता है, वह इन सबकी भी शिक्षा देता था।

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 7 with Solutions

प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(i) “सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान अवशेष मिले हैं। माना जाता है कि इन अवशेषों के आधार पर ही सभ्यता का निर्माण हुआ है। इस कथन के आधार पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
ऐन की डायरी पाठ के आधार पर हॉलैंड की तत्कालीन दशा के बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तरः
सिंधु सभ्यता की खुदाई के दौरान बहुत से अवशेष मिले हैं। माना जाता है कि इन अवशेषों के आधार पर ही सभ्यता का निर्माण हुआ है और इनके आधार पर ही इसकी नगर योजना, कृषि, संस्कृति और कला आदि के बारे में बताया गया है। अवशेषों के कोई लिखित प्रमाण नहीं मिले हैं, क्योंकि इतनी पुरानी सभ्यताओं के लिखित प्रमाण मिलने संभव नहीं होते। जो चित्रलिपि यहाँ से मिली है, उसका अध्ययन भी नहीं किया जा सकता है। इसलिए इस आधार पर केवल अवशेषों को ही प्रमाण माना जाता है। मनुष्यों द्वारा ये अवशेष बनाए गए हैं, जो इतने समय के बाद भी अभी तक उपलब्ध हैं। सिंधु घाटी में ईंटों, मूर्तियों, भवनों इत्यादि के अवशेष मिलते हैं। यहाँ बड़ी संख्या में खुदाई के समय इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजो-सामान और खिलौने आदि मिले हैं। इन्हीं अवशेषों के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता का अध्ययन संभव हुआ और इन्हीं के कारण संपूर्ण सभ्यता व संस्कृति की सुंदर कल्पना की गई है। सिंधु घाटी सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्यबोध है। जो वस्तु जिस प्रकार सुंदर लग सकती थी, उसका उसी प्रकार से उपयोग किया गया था। सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी। यहाँ पर साधनों की कोई कमी नहीं थी।

अथवा

ऐन की डायरी पाठ के अनुसार हॉलैंड की तत्कालीन दशा बहुत ही खराब हो चुकी थी। ऐन अपनी डायरी में बताती है कि वहाँ के लोगों को सब्जियाँ और सामान लेने के लिए लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता है। डॉक्टर भी अपने मरीज़ों को ढंग से नहीं देख पाते थे, क्योंकि जैसे ही वे मरीजों को देखने के लिए मड़ते वैसे ही उनकी कार और मोटरसाइकिल चोरी हो जाती। चोरी के डर से डच लोगों ने अँगूठी तक पहनना छोड़ दिया था। लोग 5 मिनट के लिए भी घरों को नहीं छोड़ते थे, क्योंकि छोटे-छोटे बच्चे भी घर का सामान चुरा कर ले जाते थे। अखबारों में चोरी का सामान लौटाए जाने के विज्ञापन प्रत्येक दिन पढ़ने को मिलते थे। चोर गलियों में लगने वाली बिजली की घड़ियों को भी उतारकर ले जाते थे। सार्वजनिक टेलीफ़ोन की भी चोरी हो जाती थी। चारों तरफ़ सिर्फ चोरी का वातावरण ही फल-फूल रहा था। पुरुषों को जर्मनी भेजा जा रहा था। सरकारी कर्मचारियों पर हमलों की घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थीं। इस प्रकार कुल मिलाकर हॉलैंड की तत्कालीन दशा बहुत ही दयनीय थी।

(ii) “मुअनजो-दड़ो में जल निकासी का सुव्यवस्थित प्रबंध बहुत प्रशंसनीय है।” अतीत के दबे पाँव पाठ के आधार पर अपने इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
“ऐन की डायरी’ के संदर्भ में बताइए कि भारतीय नारी जीवन के संदर्भ में कैसे जीवन मूल्य लक्षित होते हैं?
उत्तरः
मुअनजो-दड़ो में पानी की निकासी का सुव्यवस्थित प्रबंध बहुत ही प्रशंसनीय है। घरों की नालियों में पक्की ईंटें होती थीं। ढकी हुई नालियाँ मुख्य सड़क के दोनों ओर समांतर दिखाई देती हैं। बस्ती के भीतर भी इनका यही रूप है। प्रत्येक घर में एक स्नानघर है। घरों के भीतर से पानी या मैल की नालियाँ बाहर हौदी तक आती हैं और फिर नालियों के जाल से जुड़ जाती हैं। कहीं-कहीं वे खुली हैं, पर ज्यादातर बंद हैं। स्वास्थ्य के प्रति मुअनजो-दड़ो के बाशिंदों के सरोकार का यह बेहतर उदाहरण है। इसलिए वहाँ की जल निकासी व्यवस्था अत्यधिक सुदृढ़ है।

अथवा

‘ऐन की डायरी’ के अनुसार भारतीय नारी जीवन के संदर्भ में अनेक जीवन मूल्य लक्षित होते हैं। प्राचीन काल में अनेक नारियाँ शिक्षित थीं तथा वे वेद मंत्रों की रचना भी करती थीं। उनका दार्शनिक ज्ञान काफी बढ़ा-चढ़ा था। मध्यकाल में नारी को दासी बनाकर रखा गया, परंतु आधुनिक युग में नारी ने समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति की है तथा वह पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर समाज की उन्नति में पर्याप्त योगदान दे रही हैं।