Students can access the CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core with Solutions and marking scheme Term 2 Set 6 will help students in understanding the difficulty level of the exam.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 6 with Solutions
निर्धारित समय : 2 घंटे
अधिकतम अंक : 40
निर्देश :
- निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए।
- इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- इस प्रश्न पत्र में कुल 07 प्रश्न पूछे गए हैं। आपको 07 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।
कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]
प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षकों में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों का एक रचनात्मक लेख लिखिए। (5 × 1 = 5)
- रेलवे स्टेशन पर एक रात का वर्णन
- जीवन संघर्ष है, स्वप्न नहीं
- जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे
उत्तरः
रेलवे स्टेशन पर एक रात का वर्णन:
मैं और मेरे कुछ मित्रों ने एक दिन वैष्णोदेवी जाने का निर्णय किया। वहाँ जाने के लिए हमने अपनी ऑनलाइन टिकट आरक्षित की। हमारी ट्रेन रात 12 बजे की थी। हम सभी मित्र पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँचे। ट्रेन छूट न जाए, इसलिए हम 8 बजे ही स्टेशन पहुँच गए थे। हम सभी बहुत प्रसन्न थे। एक-एक मिनट का इंतज़ार हमें सदियों की भाँति लग रहा था। हम सभी को बस 12 बजने का इंतज़ार था। स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। अनेक प्रकार की खाद्य-सामग्री व स्टेशनरी (पत्र-पत्रिका इत्यादि) की दुकानें व पट्टियाँ लगी हुई थीं। हम सभी ने वहाँ खाद्य-सामग्री व घर से लाए भोजन को मिलकर खाया। 11 : 45 बजे अचानक प्लेटफॉर्म अधिकारी ने लाउडस्पीकर द्वारा सूचना दी कि श्री शक्ति एक्सप्रेस 12 बजे नहीं आ पाएगी। कुछ तकनीकी असुविधा के कारण यह ट्रेन प्रात:काल 5 बजे आएगी। हम सभी परेशान हो गए कि हम यहाँ स्टेशन पर एक रात कैसे व्यतीत करेंगे। फिर हम सोचने लगे कि किस प्रकार और कैसे परी रात व्यतीत की जाएगी? हमने देखा कि सभी यात्री अपनी-अपनी सुविधानुसार सोने के लिए स्थान घेरने लगे। हमने भी एक बेंच को घेर लिया जिस पर हमने अपने-अपने सामान को इकट्ठा कर रख दिया तथा नीचे एक चादर बिछाकर उस पर लेट गए। सभी लोग धीरे-धीरे सोने लगे, परंतु हमें नींद ही नहीं आ रही थी। तभी हमने अंत्याक्षरी खेलने का सोचा। अंत्याक्षरी खेलते-खेलते कब सुबह हो गई? हमें पता भी न चला। हम सभी ने हाथ-मुँह धोए और चाय पी। तभी लाउडस्पीकर से कहा गया कि श्री शक्ति एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म नं. 4 पर आने वाली है। यह सुनते ही हमने अपना-अपना सामान लिया और प्लेटफॉर्म नं. 4 पर पहुँचे और ट्रेन आ गई। हम सभी उसमें चढ़ गए और अपने गंतव्य स्थान के लिए रवाना हुए। इस प्रकार, स्टेशन पर बिताई गई यह रात हमारे जीवन में अविस्मरणीय बन गई।
जीवन संघर्ष है, स्वप्न नहीं:
मनुष्य का जीवन वास्तव में सुख-दुःख, आशा-निराशा, उत्थान-पतन आदि का मिश्रण है। जीवन एक निरंतर चलने वाले संघर्ष का नाम है। जीवन की गति अविरल है। समय के साथ-साथ आगे बढ़ते रहने की प्रबल मानवीय लालसा ही जीवन है। जीवन में अनेक ऊँचे-नीचे रास्ते एवं अनेक बाधाएँ आती रहती हैं। इन्हीं बाधाओं से संघर्ष करते हुए जीवन आगे बढ़ता रहता है। यही कर्म है तथा यही सत्य है। जीवन में आने वाली बाधाओं से घबराकर रुक जाने वाला या पीछे हट जाने वाला व्यक्ति कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। निरंतर उत्साह, उमंग, विश्वास, प्रेम एवं साहस के साथ जीवन को जीना ही जीवन का सार है।
जीवन सत्य है, जबकि स्वप्न असत्य। स्वप्न काल्पनिक व अयथार्थ (अवास्तविक) है। स्वप्न का महत्त्व केवल वहीं तक है, जहाँ तक वह मनुष्य के जीवन को आगे बढ़ाने में प्रेरक होता है। मनुष्य स्वप्न के माध्यम से ही ऐसी कल्पनाएँ करता है, जो अवास्तविक होती हैं, लेकिन उस काल्पनिक लोक को वह अपने परिश्रम, उमंग एवं दृढ़ इच्छाशक्ति से यथार्थ एवं वास्तविकता में परिवर्तित कर देता है। वास्तविक जीवन एक कर्तव्य पथ है, जिसके मार्ग में अनेक शूल बिखरे पड़े हैं, लेकिन मनुष्य की इच्छाशक्ति एवं दृढ़ संकल्प उन बाधाओं व काँटों की परवाह नहीं करता और उन्हें रौंदकर आगे निकल जाता है।
जीवन संघर्ष की लंबी साधना है। यह संघर्ष तब तक बना रहता है, जब तक मनुष्य के शरीर में साँस चलती रहती है। आदिम अवस्था में अंधकारमय गुफा में निवास करने वाला मनुष्य जीवन के संघर्ष के मार्ग से गुजरकर ही सभ्यता के ऊँचे दुर्गों का निर्माण कर सकता है। संघर्ष के मार्ग में ही हमें जीत की ऊँची चोटियाँ मिलती हैं। प्रकृति एवं प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए ही मनुष्य ने समाज एवं परिवार के विकास की लम्बी गाथाएँ लिखीं हैं। मनुष्य जीवन का सबसे महान् आदर्श है-अंधकार से प्रकाश की ओर चलना व अज्ञान के भय एवं आशंका के अंधकार से ज्ञान की अमरता की ओर बढ़ना, इस प्रक्रिया में उसे निरंतर संघर्ष से गुजरना पड़ता है। संघर्ष है, इसलिए गति है और गति है, तो जीवन है। जीवन में बिना परिश्रम किए और बिना मूल्य चुकाए कुछ भी प्राप्त नहीं होता। अत: कहा जा सकता है कि जीवन स्वप्न तथा अयथार्थ या काल्पनिक नहीं, बल्कि वास्तविकता का कटु यथार्थ है, जहाँ कदम-कदम पर कुछ भी प्राप्त करने के लिए संघर्ष से होकर गुजरना ही पड़ता है।
जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे:
क्रिकेट एक अंतर्राष्ट्रीय खेल है। यह खेल मुझे बहुत पसंद है। पिछले दिनों हमारे विद्यालय की क्रिकेट टीम का अन्य विद्यालय की क्रिकेट टीम के साथ मैच हुआ था। यह मैच अत्यंत रोमांचित करने वाला रहा। इंदिरा गांधी स्टेडियम में मैच का आयोजन किया गया था। अपने विद्यालय की क्रिकेट टीम का कैप्टन मैं था। कैप्टन होने के नाते मैच आरंभ होने से पहले मैंने अपनी टीम का हौसला बढ़ाया तथा डटकर खेलने का संदेश दिया। मैच आरंभ हुआ अन्य विद्यालय की टीम ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाजी की तथा 265 रन का स्कोर बनाया। जब हमारी टीम ने खेलना आरंभ किया तो शुरुआत में हमारा प्रदर्शन शानदार रहा, किंतु मैच के बीच में थोड़ा अच्छा प्रदर्शन नहीं हो पाया। इस कारण अंत आते-आते हमारे पास केवल कुछ ही बॉल खेलने का अवसर रहा और रन अधिक बनाने थे। इस समय खिलाड़ियों की मनोदशा अत्यंत गंभीर थी कि यदि हम अच्छा न खेले तो मैच हार जाएँगे। दर्शक वर्ग में भी विशेष उत्साह था। वे हमारी टीम को जीतते हुए देखना चाहते थे। मैच एक गंभीर रूप ले चुका था। अंतिम एक बॉल पर चार रनों की आवश्यकता थी।
मेरे दिमाग में मेरे कोच की बातें गूंज रही थी-“खेल को खेल की तरह मत खेलो, दिमाग से खेलो। खेल के क्षणों को जी लो। महसूस करो कि यह मेरे जीवन का सबसे यादगार लम्हा है।” इन बातों ने मेरे दिमाग की गति को शांत कर दिया। मैच जीतने के लिए मैंने भरसक प्रयास किया और अंतिम बॉल पर चौका लगा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि हमारी टीम मैच जीत गई। मेरी टीम के खिलाड़ियों ने मुझे अपने कंधों पर बैठा लिया और सभी खुशी से झूमने लगे। स्टेडियम तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा। फिर टीम के कोच ने भावक होकर मेरी पीठ थपथपाई और मैं खुशी से नाचने लगा। इस प्रकार यह पल मेरे लिए यादगार बन गया।
प्रश्न 2.
आपके क्षेत्र में एक विज्ञान कार्यशाला का आयोजन होने जा रहा है। आप भी इसमें सम्मिलित होना चाहते हैं। इस संबंध में कार्यशाला के संयोजक को पत्र लिखिए। (5 × 1 = 5)
अथवा
आवश्यक एवं भ्रामक प्रचार करने वाले विज्ञापनों से ग्राहकों एवं उपभोक्ताओं को होने वाली परेशानी का उल्लेख करते हुए किसी समाचार-पत्र के संपादक को इस संबंध में कोई दो सुझाव देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
सेवा में,
संयोजक महोदय,
मंगल विज्ञान केंद्र,
दिल्ली।
दिनांक 11 अगस्त, 20XX
विषय विज्ञान कार्यशाला में सम्मिलित होने हेतु निवेदन पत्र।
माननीय महोदय, आज के समाचार-पत्र के माध्यम से मुझे ज्ञात हुआ है कि आपके संयोजन व मार्गदर्शन में शहर में विज्ञान कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। मुझे विज्ञान में अत्यंत रुचि है तथा भविष्य में विज्ञान के क्षेत्र में ही उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता हूँ। इसी कारण मैं इस कार्यशाला का नियमित सदस्य बनना चाहता हूँ तथा भविष्य में भी होने वाली सभी कार्यशालाओं में सम्मिलित होना चाहता हूँ। महोदय, आपसे विनम्र अनुरोध है कि मुझे इस विज्ञान कार्यशाला में शामिल होने का अवसर देकर कृतार्थ करें, जिससे मैं विज्ञान क्षेत्र से संबंधित नए तथ्यों, उपकरणों आदि की जानकारी प्राप्त कर सकूँ। मैं इस कार्यशाला में शामिल होने की सभी औपचारिकताएं पूरी करने एवं निर्धारित शुल्क देने के लिए तैयार हूँ। मुझे पूर्ण आशा है कि आप मुझे इस कार्यशाला में सम्मिलित करके कृतार्थ करेंगे। आपके इस सहयोग व स्नेह के लिए मैं आपका अत्यंत आभारी रहूँगा।
सधन्यवाद।
भवदीय क. ख. ग.
अंबेडकर नगर, दिल्ली।
अथवा
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 16 अगस्त, 20XX
सेवा में,
संपादक महोदय,
दैनिक जागरण,
गाजियाबाद।
विषय भ्रामक विज्ञापन के संबंध में।
महोदय,
विनम्र निवेदन है कि आजकल भ्रामक विज्ञापनों के कारण आम जनता परेशान है। इस विषय में मेरे विचार प्रकाशित करने की कृपा करें। नि:संदेह आज विज्ञापनों का बोलबाला है। अख़बार, टीवी, रेडियो, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, दीवारें, गलियाँ, बाज़ार सब विज्ञापनों से भरे पड़े हैं। विज्ञापनों की इस भीड़ में सत्य को
सैंपल प्रश्न-पत्र माल को जितना आकर्षक बनाकर दिखाता है, वह उतना ही अधिक बिकता है। इस तथ्य को जानने के बाद उत्पादकों का सारा बल अपने माल को उत्तम बनाने में नहीं, बल्कि उसके झूठे-सच्चे प्रचार-प्रसार में लगने लगा है। यही कारण है कि आज का उपभोक्ता परेशान है। वह सोचता है कि अमुक साबुन या पाउडर से उसके दाग-धब्बे बिलकुल धुल जाएँगे, किंतु जब मोटी राशि खर्च करके उसे उपयोग करता है, तो निराशा ही हाथ लगती है।
विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को धोखा देना ऐसा अपराध है, जिसे आसानी से एक व्यक्ति सिद्ध नहीं कर सकता और न ही यह लड़ाई अकेले लड़ी जा सकती है। इसे रोकने के लिए या तो सरकारें अपने अधिकारियों की सहायता से अथवा सामाजिक संस्थाएँ मिलकर मोर्चा खोल सकती हैं। मेरा सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं से आग्रह है कि भ्रष्टाचार की इस खुली लूट को रोकने के लिए वे सार्थक प्रयास करें, ताकि आम जनता को लूटा न जा सके।
सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.
प्रश्न 3.
(i) “पात्रों का चरित्र-चित्रण कहानीकार की सफलता का परिचायक होता है।” स्पष्ट कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
रेडियो नाटक की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तरः
कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है। पात्रों के गुण-दोष को उनका चरित्र-चित्रण कहा जाता है। प्रत्येक पात्र का अपना स्वरूप, स्वभाव और उद्देश्य होता है। पात्रों का अध्ययन कहानी की एक बहुत महत्त्वपूर्ण और बुनियादी शर्त है। कहानीकार के सामने पात्रों का स्वरूप जितना स्पष्ट होगा, उसे पात्रों का चरित्र-चित्रण करने और उसके संवाद लिखने में उतनी ही आसानी होगी। पात्रों का चरित्र-चित्रण, कहानीकार द्वारा, पात्रों के गुणों का वर्णन तथा दूसरे पात्रों के संवाद के माध्यम से किया जा सकता है। कहानी के पात्रों में सजीवता, हृदय के सुख-दुःख आदि भावों का समावेश होना अत्यंत आवश्यक है। पात्रों का चरित्र-चित्रण कहानीकार की सफलता का परिचायक होता है। वह स्वयं पात्रों के माध्यम से अपने मनोभावों, कार्यों और उद्देश्यों को व्यक्त करता है। इसलिए कहानीकार को लोकजीवन और प्रवृत्ति तथा मानवीय आचरण का समुचित ज्ञान होना चाहिए।
अथवा
रेडियो नाटक की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- सिनेमा व रंगमंच की तरह रेडियो एक दृश्य माध्यम नहीं श्रव्य माध्यम है।
- रेडियो की प्रस्तुति संवादों व ध्वनि प्रभावों के माध्यम से होती है।
- रेडियो नाटक में एक्शन की कोई गुजाइश नहीं होती है।
- रेडियो नाटक की अवधि सीमित होती है, इसलिए पात्रों की संख्या भी सीमित होती है।
- पात्र सम्बन्धी विविध जानकारी संवाद एवं ध्वनि संकेतों के माध्यम से उजागर होती है।
- नाट्य आन्दोलन के विकास में रेडियो नाटक की अहम भूमिका होती है।
(ii) संवाद किसे कहते हैं? कहानी लेखन में संवाद का क्या योगदान होता है? (2 × 1= 2)
अथवा
“नाटक के लिए उसका कथ्य जरूरी होता है।” इस कथन के आलोक में कथ्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
कहानी के पात्रों के द्वारा किए गए उनके विचारों को अभिव्यक्ति को संवाद या कथोपकथन कहते हैं। कहानी में संवाद का विशेष महत्त्व होता है। संवाद ही कहानी तथा पात्र को स्थापित एवं विकसित करके कहानी को गति देकर आगे बढ़ाते हैं, जो घटना या प्रतिक्रिया कहानीकार होती हुई नहीं दिखा सकता, उन्हें वह संवादों के माध्यम से सामने लाता है।
अथवा
नाटक के लिए उसका कथ्य जरूरी होता है। नाटक में किसी कहानी के रूप को किसी शिल्प या संरचना के अंदर उसे पिरोना होता है। इसके लिए नाटककार को शिल्प या संरचना की पूरी समझ, जानकारी व अनुभव होना चाहिए। इसके लिए पहले घटनाओं, स्थितियों या दृश्यों का चुनाव कर उन्हें क्रम में रखें ताकि कथा का विकास शून्य से शिखर की ओर हो सके।
प्रश्न 4.
(i) आलेख लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? स्पष्ट कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
‘मीडिया की विश्वसनीयता पर लगते प्रश्न चिह्न’ विषय पर फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
आलेख लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(a) आलेख लिखने वाले व्यक्ति का संबंधित विषय पर सम्यक् चिंतन होना चाहिए।
(b) आलेख से जुड़े तथ्यों एवं आँकड़ों आदि का उल्लेख पूर्ण स्पष्टता के साथ करना चाहिए।
(c) आलेख लिखने हेतु एक वैचारिक एवं तकनीकी कुशलतायुक्त भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
(d) आलेख की भाषा सहज, सरल एवं रोचक होनी चाहिए।
(e) आलेख के प्रस्तुतीकरण में भ्रामक एवं संदिग्ध जानकारियों का उल्लेख नहीं करना चाहिए।
(f) आलेख का आमुख (प्रस्तावना) वाला अंश तथा समाप्ति वाला अंश रोचक एवं निष्कर्षपरक होना चाहिए।
अथवा
मीडिया की विश्वसनीयता पर लगते प्रश्न चिह्न:
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। अर्थ और विज्ञान के इस दौर की यह कड़वी सच्चाई है कि आज पत्रकारिता, सेवा से अधिक व्यवसाय बन गई है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ग्लैमर और पीत पत्रकारिता में वृद्धि होने से मीडिया का स्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है। इधर कुछ वर्षों से धन देकर समाचार प्रकाशित करवाने एवं व्यावसायिक लाभ के अनुसार समाचारों को प्राथमिकता देने की घटनाओं में भी तेज़ी से वृद्धि हुई है। फलस्वरूप इनकी विश्वसनीयता पर भी प्रश्न उठने शुरू हो गए हैं। इसका कारण यह है कि भारत के अधिकतर समाचार-पत्रों एवं न्यूज़ चैनलों का स्वामित्व किसी-न-किसी स्थापित उद्यमी घराने के पास है।
जनहित एवं देशहित से अधिक इन्हें अपने उद्यमों के हित की चिंता रहती है, इसलिए ये अपने हितों को प्राथमिकता देते हैं। सरकार एवं विज्ञापनदाताओं का प्रभाव भी समाचार-पत्रों एवं अपने विज्ञापनदाताओं के विरुद्ध कुछ छापने से बचते हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता किसी भी देश के लिए घातक है। पत्रकारिता, व्यवसाय से कहीं अधिक सेवारत् है। व्यावसायिक प्रतिबद्धता पत्रकारिता के मूल्यों को नष्ट करती है। आज पत्रकारिता के माध्यम से आर्थिक हितों को साधने वाले लोग जिम मॉरिसन की इस पंक्ति को गलत अर्थों में प्रयोग कर रहे हैं-“जनसंचार माध्यम पर नियंत्रण करना बुद्धि पर नियंत्रण करना है।” आज आवश्यकता है स्वतंत्रता सेनानी, कवि व पत्रकार श्री माखनलाल चतुर्वेदी की कही गई उस बात को व्यवहार में अंतिम वाक्य के रूप में लिखा था- “प्रभु करे कि सेवा के इस पथ में मुझे अपने दोषों का पता रहे और आडंबर, अभिमान एवं आकर्षण मुझे पथ से भटका न सके।” सचमुच यदि मीडिया के क्षेत्र में इस आदर्श का सभी लोग अनुसरण करने लगें, तो वह दिन दूर नहीं जब इसे समाज में फिर से पहले की तरह विश्वसनीयता प्राप्त होने लगेगी।
(ii) विशेष लेखन के किसी भी विषय में विशेषज्ञता प्राप्त कैसे की जा सकती है? (2 × 1 = 2)
अथवा
समाचार का अर्थ बताते हुए उसकी परिभाषा लिखिए।
उत्तरः
संवाददाता को जिस विषय या क्षेत्र में विशेष लेखन करना है, उसमें उसकी वास्तविक रुचि होनी चाहिए। स्नातक स्तर अथवा उच्च माध्यमिक स्तर तक उस विषय की पढ़ाई करनी चाहिए उस विषय से संबंधित पुस्तकें पढ़नी चाहिए। संबंधित क्षेत्रों व विषय से जुड़ी खबरों व रिपोर्टों की कटिंग फाइल करके रखनी चाहिए। विषय से संबंधित संदर्भ सामग्री को एकत्र कर अपने पास रखना चाहिए। संबंधित विषय विशेषज्ञों व प्रोफेशनल्स के लेख, उनके विश्लेषण की कटिंग भी सँभाल कर रखनी चाहिए। शब्द कोष व एनसाइक्लोपीडिया भी संबंधित विषय का स्वयं के पास होना चाहिए। विषय से जुड़े सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों व संस्थाओं की सूची, उनकी वेबसाइट का पता, टेलीफोन नंबर और उसमें काम करने वाले विशेषज्ञों के नाम व फोन नंबर अपनी डायरी में रखने चाहिए।
अथवा
हिंदी में प्रचलित ‘समाचार’ शब्द अंग्रेज़ी के NEWS का पर्याय है। NEWS (न्यूज) शब्द चारों दिशाओं (North, East, West, South) के नामों का संक्षिप्त रूप है। इस तरह समाचार का संबंध चारों दिशाओं से है। समाचार को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि वह सब कुछ जिससे हम कल तक अनभिज्ञ थे, जिसके बारे में हमें नहीं पता था, हमारे लिए समाचार है। समाचार की परिभाषा देते हुए अंबिका प्रसाद वाजपेयी ने लिखा है “हर घटना समाचार नहीं है. सिर्फ वही घटना समाचार बन सकती है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक हित हो। अस्पताल में लोग भर्ती होते रहते हैं, कुछ स्वस्थ होते हैं और कुछ मरते भी हैं, लेकिन यह समाचार नहीं है, परंतु यदि कोई मरीज इसलिए मर जाए कि अस्पताल पहुंचने पर कोई उसे देखने वाला नहीं था या डॉक्टर की गैर-हाज़िरी में उसका गलत इलाज कर दिया गया, नर्स ने एक मरीज की दवा दूसरे को दे दी या ऑपरेशन करते समय कोई औजार पेट में ही रह गया और पेट सिल दिया गया, तो ये सब समाचार हो सकते हैं।”
पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 (20 अंक)
प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(i) “फ़िराक गोरखपुरी की गज़ल मानवीय भावों का प्रतिबिंब है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। (3)
उत्तरः
फिराक गोरखपुरी की गज़ल मानवीय भावों का प्रतिबिंब है। यह मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियों को सामने रखने का माध्यम है। इसमें प्रेम, दर्द, विरह-वेदना तथा दुनियादारी को महत्त्व मिला है। शायर प्रकृति के सौंदर्य को मानवीय चेतना से एकाकार करता है। शायर कलियों की पंखुड़ियों में से निकलती गंध को शब्दों में समेटता है। प्रकृति के इस अद्भुत रूप को वह एक नया आयाम देता है। शायर प्रेम में समर्पण को महत्त्व देता है। वह अपने दर्द को दुनिया के सामने प्रकट नहीं होने देना चाहता। वह जानता है कि दुनिया उसके दर्द का मजाक बना देगी। इस प्रकार फिराक की गज़लें मनुष्य की आंतरिक भाव चेतना को शब्दों में ढालने की सफल कोशिश है।
(ii) कवि के अनुसार पेट की आग का शमन किसके माध्यम से किया जा सकता है? क्या वह वर्तमान युग के अनुरूप है? ‘कवितावली’ के आधार पर बताइए। (3)
उत्तरः
तुलसीदास ने ‘कवितावली’ के एक पद में माना है कि ‘पेट की आग’ का शमन रामभक्ति रूपी मेघ के माध्यम से किया जा सकता है। कवि का मानना है कि कर्म-फल ईश्वर के अधीन है। बिना कर्म के किसी फल की प्राप्ति संभव नहीं है। ईश्वर को ‘पेट की आग’ का शमन करने वाला बताना सिर्फ आस्था का विषय है। ईश्वर को पेट की आग बुझाने वाला मानना न तो तुलसी का युग-सत्य था और न ही आज का युग सत्य है। जो मनुष्य परिश्रम करता है, वह आगे बढ़ता है। वर्तमान आर्थिक युग में ईश्वर कृपा की जगह श्रम की महत्ता को स्थान दिया जाता है। ईश्वर के भरोसे रह जाने वाला जीवन, जगत में पीछे छूट जाता है।
(iii) ‘उषा’ कविता में कवि द्वारा भोर के नभ को किस प्रकार के बिंबों एवं प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
‘उषा’ कविता में कवि द्वारा भोर के नभ को पवित्रता, निर्मलता तथा उज्ज्वलता के विविध बिंबों एवं प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है। ‘राख से लीपा हुआ चौका’ पवित्रता का प्रतीक है। ‘नील जल में किसी की गौर झिलमिल देह’ में निर्मलता तथा ‘काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’ में उज्ज्वलता का प्रतिबिंब है। कवि ने विविध बिंबों के माध्यम से भोर के वातावरण का चित्रण करने में सफलता पाई है। भोर के नभ के बदलते सौंदर्य को कवि ने जन-जीवन की गतिशीलता तथा मानवीय गतिविधियों में हो रहे परिवर्तन के रूप में रखा है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखिए। (3 × 3 = 9)
(i) ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर बताइए कि डॉ. आंबेडकर का आदर्श समाज किस पर आधारित है तथा उससे समाज में क्या परिवर्तन आएगा? (3)
उत्तरः
डॉ. आंबेडकर का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता तथा भ्रातृत्व पर आधारित होगा। इससे समाज में यह परिवर्तन आएगा कि लोगों में आपसी प्रेम एवं भाईचारे की वृद्धि होगी। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता रहेगी और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने का पूर्ण अवसर उपलब्ध होगा। उनके मतानुसार, एक संतुलित एवं आदर्श समाज के प्रत्येक व्यक्ति को प्रारंभ से ही समान अवसर और समान व्यवहार उपलब्ध होना चाहिए। आदर्श समाज में जातीय भेदभाव नहीं होगा तथा लोगों की करनी पर बल दिया जाएगा। अत: समाज में स्वस्थ वातावरण का निर्माण होगा।
(ii) ‘नमक’ कहानी की मुख्य पात्र सफ़िया के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (3)
उत्तरः
‘नमक’ कहानी की मुख्य पात्र सफिया के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(a) सफ़िया सर्वधर्म प्रेमी, दृढ़ संकल्पी, स्पष्टवादिनी और साहसी महिला है। वह सिख बीबी की अंतर्मन की इच्छा को पूरा करने के लिए अपने भाई तक से कानून के विषय में बहस कर बैठती है। उसमें कस्टम अधिकारी से बात करने का साहस है। उसे विश्वास है कि वह अपनी नमक की बात को स्पष्ट रूप से अधिकारी को बता कर, उनकी इंसानियत को झकझोर कर सीमा पार कर लेगी।
(b) वह कोमल हृदय वाली, प्रेममयी, भावुक महिला है।
(c) वह जाति-धर्म आदि को महत्त्व नहीं देती, बल्कि प्यार और इंसानियत को महत्त्व देती है। इसलिए वह कस्टम अधिकारी से अपनी मानव के प्रति प्रेम की शक्ति व बुद्धिचातुर्य के कारण ही सब कुछ स्पष्ट रूप से कह सकी।
(iii) गाँव में फैली बीमारी ने किसका रूप ले लिया था तथा उसका गाँव के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा? ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लिखिए। (3)
उत्तरः
गाँव में फैली बीमारी ने अब महामारी का रूप ले लिया था। इसने इस तरह गाँव में हाहाकार मचा दिया था कि सभी के चेहरे पर रुदन के अतिरिक्त अन्य कोई भी चिह्न यदा-कदा ही दृष्टिगोचर होता था। सूर्य निकलने के साथ ही लोग काँपते-कराहते घरों से निकलकर अपने आत्मीयजनों तथा मित्रों को समय बलवान होना समझाकर ढाँढस बँधाते थे और कहते थे कि समय परिवर्तित होता रहता है, बुरा समय भी जल्दी समाप्त हो जाएगा। लोग सूर्य के अस्त होने के साथ ही अपनी-अपनी झोंपड़ियों में चले जाते और उनकी चूँ तक की आवाज़ भी नहीं आती तथा उनकी बोलने की शक्ति भी बिलकुल समाप्त हो जाती। केवल रुग्ण गाँववासियों के रोने-कराहने और बच्चों की माँ-माँ करने की आवाजें ही आती थी।
(iv) पहलवान संक्रामक रोग से जूझते ग्रामीणों के लिए आदर्श कैसे बन गया? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः
पहलवान की ढोलक ग्रामीणों को एक आंतरिक शक्ति देती है। पहलवान के दोनों पुत्र अन्य ग्रामीणों की भाँति गाँव में फैले संक्रामक रोग की चपेट में आकर भगवान को प्यारे हो चुके थे, परंतु फिर भी वह ढोलक बजाता रहता है। उसका मनोबल नहीं टूटता, क्योंकि वह अपनी ढोलक के माध्यम से समूचे गाँव वालों को जीने की शक्ति देता है। ग्रामीणों को उससे यह संदेश मिला कि हँसते-हँसते भी मृत्यु को गले लगाया जा सकता है। इस प्रकार पहलवान संक्रामक रोग से जूझते ग्रामीणों के लिए एक आदर्श बन गया।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(i) ‘मुअनजो-दड़ो की नगर योजना वास्तव में आज की सेक्टर-मार्का कॉलोनियों के नियोजन से अधिक बेहतर थी’ कैसे? स्पष्ट कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
“ऐन फ्रेंक की डायरी में जहाँ एक ओर तत्कालीन परिस्थितियों का चित्रण है वहीं दूसरी ओर ऐन के निजी जीवन और भावात्मक उथल-पुथल का का भी वर्णन है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
मुअनजो-दड़ो की नगर योजना वास्तव में आज की सेक्टर-मार्का कॉलोनियों के नियोजन से अधिक बेहतर थी। मुअनजो-दड़ो छोटे-मोटे टीलों पर आबाद था। ये टीले प्राकृतिक नहीं थे। कच्ची और पक्की दोनों तरह की ईंटों से धरती की सतह को ऊँचा उठाया गया था, ताकि सिंधु नदी का पानी बाहर फैल जाए, तो उससे बचा जा सके। मुअनजो-दड़ो की सड़कें चौड़ी थीं। यहाँ की सड़कें सीधी या आड़ी थीं। मुअनजो-दड़ो की जल-निकासी का प्रबंध इतना उन्नत था कि आज के वास्तुकार भी उसे देखकर सोच में पड़ जाते हैं। नगर की योजना अत्यंत सुव्यवस्थित एवं वैज्ञानिक रूप से तार्किक थी। घरों की बनावट हो या सार्वजनिक स्थानों की योजना, सभी में तार्किक सुव्यवस्था थी। इस शहर में उच्चवर्ग की बस्ती, स्नानागार, ढकी नालियाँ, पानी की निकासी की व्यवस्था, सभा भवन, घरों की बनावट आदि देखकर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यहाँ की नगर-योजना बेमिसाल थी।
अथवा
फ्रैंक परिवार की सबसे छोटी लड़की 13 वर्षीया ऐन फ्रैंक नीदरलैंड में अपने परिवार के साथ रह रही थी, यह परिवार यहूदी था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नीदरलैंड पर जर्मनी का अधिकार हो जाने के बाद फ्रैंक परिवार अज्ञातवास में चला गया। ऐन फ्रैंक की डायरी अपने समय का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। यह डायरी यहूदियों पर किए गए अत्याचारों का एक प्रामाणिक दस्तावेज़ है। नाजी दमन के दस्तावेज़ के रूप में इस डायरी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह डायरी इतिहास के सबसे आतंकप्रद, भयावह और दर्दनाक अध्याय के साक्षात् अनुभव को प्रतिबिंबित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि जहाँ एक ओर ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में तत्कालीन परिस्थितियों एवं सामाजिक-आर्थिक परिदृश्यों का जीवंत चित्रण किया है। वहीं दूसरी ओर इसमें उसके निजी सुख-दुःख तथा भावात्मक उथल-पुथल का भी वर्णन है।
(ii) “यदि ऐन की भावनाओं को समझने वाला कोई होता तो शायद उसे डायरी लिखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।” इस कथन के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
मुअनजो-दड़ो की खुदाई के दौरान मिली वस्तुओं तथा वहाँ की बस्तियों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तरः
ऐन की डायरी से पता चलता है कि ऐन एक साधारण लड़की थी। वह अपने आपसे ही बातें किया करती थी, क्योंकि उसकी भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं था। वह अपने मन की बातों को बताने के लिए अपनी डायरी चुनती है। अपनी डायरी में किसी भी बात को बताने के लिए वह किट्टी को सम्बोधित करती है जिसका नाम वह किट्टी रखती है। इसलिए यह कहना उचित ही है कि यदि कोई उसकी बातों को सुनने या समझने वाला होता, तो शायद ऐन को डायरी लिखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
अथवा
मुअनजो-दड़ो की खुदाई में विभिन्न प्रकार की चीजें मिली हैं; जिनमें-मुहरें, ताँबे का शीशा, गेहूँ , ताँबे और काँसे के बर्तन, वाद्य-यंत्र, चाक पर बने मिट्टी के मटके, माप-तोल के पत्थर इत्यादि प्रमुख हैं। मुअनजो-दड़ो की बस्ती का आकार बड़ा है। इन घरों के आँगन खुले और दीवारें ऊँची एवं मोटी होती थीं। सभी घरों में पक्की ईंटें और एक ही आकार की ईंटें लगाई गई हैं।