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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 3 with Solutions

निर्धारित समय : 2 घंटे
अधिकतम अंक : 40

निर्देश :

  • निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए।
  • इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
  • इस प्रश्न पत्र में कुल 07 प्रश्न पूछे गए हैं। आपको 07 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
  • प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।

कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षकों में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों का एक रचनात्मक लेख लिखिए। (5 × 1 = 5)

  • भीड़ भरी बस का अनुभव
  • काश! मैं प्रधानमंत्री होता
  • परीक्षा से पूर्व मेरी मनोदशा

उत्तरः

भीड़ भरी बस का अनुभव

बस में यात्रा करना एक कठिन कार्य है। दिल्ली जैसे महानगरों में यातायात के लिए स्थानीय बस ही सस्ता और सुलभ साधन है। हजारों लोग प्रतिदिन बसों से यात्रा करते हैं। एक दिन मैं बस अड्डे से सराय काले खाँ जाने वाली बस में यात्रा करने के लिए चढ़ा था। जब मैं बस में चढ़ रहा था, उस समय बस में कोई सीट खाली नहीं थी। जैसे ही बस अगले स्टॉप पर पहुँची वैसे ही मुझे भी एक सीट मिल गई। धीरे-धीरे बस की अन्य सीटें भी भर गई लेकिन कुछ यात्री खड़े थे। कंडक्टर बस भरी होने के बाद भी और यात्रियों को चढ़ाए जा रहा था। दो-तीन स्टॉप के बाद बस इतनी भर गई थी कि यात्रियों के खडे होने की भी जगह नहीं बची। लोग एक-दूसरे से सट कर खड़े थे। भीड़ के कारण बच्चे चिल्ला रहे थे। इस दृश्य को देखकर मुझे बहुत बुरा लग रहा था। मैं सोच रहा था कि दिल्ली जैसे महानगर में यदि यह हाल है, तो अन्य राज्यों में तो न जाने क्या होता होगा? इतने में पीछे की ओर से आवाज आई कि किसी की जेब कट गई है। इतनी भीड़ में न जाने कितने लोगों की जेब कटती रहती होगी। थोड़ी देर बाद एक महिला क्रोधित होकर एक आदमी पर चिल्ला रही थी। शोर सुनकर लग रहा था कि उस आदमी ने महिला से छेड़छाड़ कर दी। इसलिए वह गुस्से से लाल हुई उसे भला-बुरा कह रही थी। कंडक्टर टिकट काटने में इतना व्यस्त था कि उसे किसी की जेब कट जाने या अन्य गतिविधि से कोई मतलब नहीं था। मुझे डर था कि कहीं कोई मेरी जेब साफ न कर दे, क्योंकि भीड़ में ही चोर छिपे रहते हैं। वे मौके की तलाश में होते हैं और अवसर मिलते ही अपना स्वार्थ सिद्ध कर चलते बनते हैं। मैं सतर्क रहकर अपने स्टॉप आने का इंतजार कर रहा था।

भीड़ की अधिकता के कारण मैं एक स्टॉप पहले ही अपनी सीट से उठ गया, ताकि अपना स्टॉप आने से पहले बस के गेट पर पहुँच जाऊँ। थोड़ी देर में ही मेरा स्टॉप आ गया और मैं धक्का-मुक्की के बीच बस से उतर गया। बस से उतरते ही मैंने राहत की साँस ली। इस प्रकार भीड़ भरी बस का मेरा यह अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा।

काश! मैं प्रधानमंत्री होता

भारत में प्रधानमंत्री का पद अति महत्त्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री के पद पर सुशोभित होना निश्चय ही गौरव का विषय है। यह पद जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही अधिक ज़िम्मेदारी भरा भी है। मेरा मन भी इस पद के लिए लालायित रहता है। प्राथमिकताएँ यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता, तो अपनी इन आशाओं पर बिलकुल खरा उतरने की पूरी कोशिश करता। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में मेरी प्राथमिकताएँ निम्न होती शिक्षा का प्रसार शिक्षित नागरिक ही राष्ट्र की सच्ची पूँजी होते हैं। इसलिए सर्वप्रथम मैं शिक्षा के उचित प्रसार पर ध्यान देता तथा इस बात का भी ध्यान रखता कि शिक्षा में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यावसायिकता आदि के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का भी समावेश हो, जिससे सही अर्थों में शिक्षित नागरिक तैयार हो सकें। आतंकवाद की समाप्ति आतंकवाद से जहाँ एक ओर नागरिकों में असुरक्षा की भावना जन्म लेती है, वहीं दूसरी ओर इसका देश की आर्थिक गतिविधियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है और राष्ट्र का विकास बाधित होता है। इसके लिए मैं जल, थल और वायु तीनों सेनाओं की सामरिक शक्ति में बढ़ोतरी करता, जिससे कोई भी हमारे देश की ओर आँख उठाकर देखने की चेष्टा न कर सके।

भ्रष्टाचार उन्मूलन भ्रष्टाचार से राष्ट्र को आर्थिक क्षति के साथ-साथ, नैतिक तथा चारित्रिक आघात भी सहना पड़ता है, इसलिए मैं अपने चरित्र को भी शुद्ध रखता तथा दूसरों के चरित्र को भी शुद्ध रखने के लिए कठोर नियमों को लागू करता। आर्थिक चुनौतियों का समाधान वर्तमान समय में आर्थिक विषमता, महँगाई, गरीबी, बेरोज़गारी, औद्योगीकरण की मंद प्रक्रिया आदि भारत के आर्थिक विकास की कुछ मुख्य चुनौतियाँ हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मैं इन चुनौतियों का समाधान करने की कोशिश करता। इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता, तो देश एवं देश की जनता को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं शैक्षिक स्तर पर सुदृढ़ कर भारत को पूर्णत: विकसित ही नहीं, बल्कि खुशहाल देश बनाने का अपना सपना साकार करता।

परीक्षा से पहले मेरी मनोदशा

विद्यार्थी जीवन में परीक्षा का विशेष महत्त्व है। अधिकांशतः सभी विद्यार्थी परीक्षा से घबराते हैं। परीक्षा वह शब्द है, जिसके नाम मात्र से ही प्रत्येक विद्यार्थी घबरा जाता है। विद्यार्थी होने के नाते मैं भी परीक्षा के नाम से भयभीत हो उठा। जैसे-जैसे परीक्षा का समय निकट आता जा रहा था, वैसे-वैसे मेरा भय और घबराहट दोनों बढ़ती जा रही थी। खान-पान पर भी विशेष ध्यान नहीं दे पा रहा था। प्रत्येक क्षण परीक्षा का भय ही मन में रहता था। माँ के बहुत समझाने पर मैं धीरे-धीरे परीक्षा के भय को भूलकर पाठ्यक्रम की तैयारी में लग गया। यदि किसी प्रश्न को लेकर कोई जिज्ञासा या आशंका होती तो अगले दिन शिक्षक से उसका समाधान करवा लेता था। इस प्रकार मैंने परीक्षा की पर्याप्त तैयारी कर ली थी और ।

धीरे-धीरे मन से परीक्षा का भय भी कुछ कम हो गया था। आखिरकार परीक्षा का दिन आ ही गया। परीक्षा का भय और घबराहट लिए मैंने परीक्षा भवन में प्रवेश किया। कुछ समय बाद प्रश्न-पत्र मिला, मैंने प्रश्न-पत्र पढ़ना शुरू किया। प्रश्न-पत्र को पढ़ते ही मेरे मन का भय समाप्त हो गया, क्योंकि लगभग सभी प्रश्नों के उत्तर मुझे आते थे। मैंने सभी प्रश्नों के उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैं लिखने में इतना व्यस्त हो गया कि कब मैंने सभी प्रश्नों के उत्तर लिख दिए, मुझे पता ही नहीं चला। अब धीरे-धीरे मेरे मन का भय प्रसन्नता में परिवर्तित हो गया था। परीक्षा भवन से निकलते समय मेरे चेहरे पर भय के स्थान पर प्रसन्नता के भाव देखकर मेरे पिताजी बहुत प्रसन्न हुए।

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प्रश्न 2.
अपने पसंदीदा कार्यक्रम की चर्चा करते हुए उस टी.वी. चैनल के निदेशक को पत्र लिखकर कार्यक्रम को और अधिक आकर्षक बनाने हेतु दो सुझाव दीजिए। (5 × 1 = 5)
अथवा
प्राथमिक कक्षाओं में प्रवेश दिलाने में अभिभावकों को विशेष समस्या का सामना करना पड़ता है। राज्य के शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर इस समस्या के निदान के लिए आग्रह कीजिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 25 अक्टूबर, 20XX
सेवा में,
निदेशक महोदय,
दूरदर्शन केंद्र,
दिल्ली।

विषय टी.वी. चैनल पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम को आकर्षक बनाने हेतु सुझाव। महोदय, मैं एक दर्शक होने के नाते अत्यंत प्रसन्नता के साथ यह लिख रहा हूँ कि मुझे आपके चैनल द्वारा प्रसारित होने वाले अनेक कार्यक्रम पसंद हैं। उन कार्यक्रमों में से ‘विज्ञान-प्रश्नोत्तरी’ (साइंस-क्विज़) मुझे विशेष रूप से पसंद है। यह कार्यक्रम जहाँ ज्ञानवर्द्धक एवं जिज्ञासावर्द्धक है, वहीं भरपूर रोचक भी है। विभिन्न संस्थाओं के छात्र-छात्राओं का भाग लेना, जनता द्वारा कार्यक्रम में हिस्सा लेना, योग्य प्रोफेसरों द्वारा मार्गदर्शन देना आदि अत्यंत प्रभावित करता है। इस प्रकार के कार्यक्रमों को देखकर मेरी तथा मेरे जैसे अनेक विद्यार्थियों की विज्ञान में रुचि बढ़ी है। इससे हमारी अनेक समस्याओं का समाधान भी निकला है। अतः मेरी आपसे प्रार्थना है कि इस कार्यक्रम को न केवल जारी रखें, अपितु और अधिक रोचक बनाने का भी प्रयास करें।

इस विषय में मेरे दो सुझाव हैं

  • यह कार्यक्रम साप्ताहिक के स्थान पर दैनिक होना चाहिए।
  • स्कूलों में आयोजित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं के अंश भी दिखाए जाने से कार्यक्रम अधिक रुचिकर बन सकता है।

धन्यवाद।
भवदीय क.ख.ग.

अथवा

परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 12 सितंबर, 20XX
सेवा में,
शिक्षा निदेशक,
लखनऊ।

विषय प्राथमिक कक्षाओं में प्रवेश की समस्या हेतु।
महोदय,
निवेदन यह है कि मैं लखनऊ के अशोक विहार क्षेत्र का निवासी हूँ और मुझे अपने सुपुत्र का प्राथमिक कक्षा में प्रवेश करवाना है। मेरे घर के पास ही जिंदल पब्लिक स्कूल है, जिसमें मैं उसे प्रवेश दिलाना चाहता हूँ, परंतु स्कूल के प्रबंधक प्रवेश के लिए अत्यधिक दान-राशि माँगते हैं, जिसे देना मेरे परिवार के लिए कठिन है। मेरा आपसे निवेदन है कि स्कूल के संचालकों को निर्देश दें कि वे अपने आस-पास के निवासियों को प्रवेश के लिए प्राथमिकता दें। यदि दान-राशि देने का कोई नियम हो, तो मुझे बताइए। यदि नहीं है, तो इस मामले की जाँच करें या कोई अन्य कार्यवाही करें, जिससे मुझे और मेरे जैसे अन्य लोगों को न्याय मिल सके। आशा है कि आप इस दिशा में शीघ्र ही कदम उठाएँगे।
धन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) कहानी लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? स्पष्ट कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
नाटक का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि नाटक साहित्य की अन्य विधाओं से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तरः
कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(a) कहानी का आरंभ आकर्षक होना चाहिए जिससे पाठक का मन उसमें रम जाए।
(b) कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार देना चाहिए। किसी प्रसंग को न तो अत्यंत संक्षिप्त लिखें और न ही अनावश्यक रूप से विस्तृत करें।
(c) कहानी की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रभावमयी होनी चाहिए। उसमें क्लिष्ट शब्द तथा लंबे वाक्य नहीं होने चाहिए।

अथवा

नाटक साहित्य की वह सर्वोत्तम विधा है, जिसे पढ़ने, सुनने के साथ देखा भी जा सकता है। नाटक शब्द की उत्पत्ति ‘नट्’ धातु से मानी जाती है। ‘नट्’ शब्द का अर्थ अभिनय है, जो अभिनेता से जुड़ा हुआ है। इसे रूपक भी कहा जाता है। भारतीय परंपरा में नाटक को काव्य की संज्ञा दी गई है। नाटक और अन्य विधाओं में अंतर साहित्य की अन्य विधाएँ अपने लिखित रूप में ही निश्चित और अंतिम रूप को प्राप्त कर लेती हैं, किंतु नाटक लिखित रूप में एक आयामी होता है। मंचन के पश्चात् ही उसमें संपूर्णता आती है। अत: साहित्य की अन्य विधाएँ पढ़ने या सुनने तक की यात्रा तय करती हैं, परंतु नाटक पढ़ने, सुनने के साथ-साथ देखने के तत्त्व को भी अपने में समेटे हुए हैं।

(ii) किसी भी कहानी का नाट्य रूपान्तरण करते समय क्या-क्या जानकारी रखनी चाहिए? स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
संवाद का अर्थ बताते हुए उसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले यह जानकारी होना आवश्यक है कि वर्तमान रंगमंच में क्या संभावनाएँ हैं और यह तभी संभव है जब अच्छे नाटक देखे जाएँ। इसके अतिरिक्त कहानी को नाटक में रूपांतिरत करने के लिए कहानी की विषय-वस्तु को, कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर दृश्यों में विभाजित किया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई घटना एक स्थान और एक समय में ही घट रही है, तो वह एक दृश्य होगा।

अथवा

कहानी के पात्रों के द्वारा किए गए उनके विचारों की अभिव्यक्ति को संवाद या कथोपकथन कहते हैं। कहानी में संवाद का विशेष महत्त्व होता है। संवाद ही कहानी तथा पात्र को स्थापित एवं विकसित करते हैं और साथ ही कहानी को गति देकर आगे भी बढ़ाते हैं। जो घटना या प्रतिक्रिया कहानीकार होती हुई नहीं दिखा सकता, उन्हें वह संवादों के माध्यम से सामने लाता है। इस प्रकार कहानी में संवादों का अत्यंत महत्त्व है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) फीचर लेखन के प्रकारों का वर्णन कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
‘युवाओं में बढ़ती नशेकी प्रवृत्ति’ विषय पर एक आलेख लिखिए।
उत्तरः
फीचर लेखन के विषय अनंत एवं किसी भी प्रकार की सीमाओं से मुक्त हैं। इसके बावजूद, फीचर लेखन के विषयों को ऊपरी तौर पर निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है
(a) सामाजिक-सांस्कृतिक फीचर इसमें व्यक्ति-विशेष, सामाजिक रीति-रिवाज, रहन-सहन, मेलों, त्योहारों, कला, खेल, सांस्कृतिक विरासत, तीर्थ स्थल आदि से संबंधित विषय सम्मिलित किए जाते हैं।
(b) घटनापरक फीचर इसमें आंदोलन, युद्ध, अकाल, दुर्घटना, दंगा, धरना आदि से संबंधित विषय शामिल किए जाते हैं।
(c) प्राकृतिक फीचर या लोकाभिरुचि फीचर इसमें विभिन्न प्राकृतिक अवयवों, अंतरिक्ष, खगोल, पृथ्वी आदि से संबंधित फीचरों के अतिरिक्त लोगों के बीच प्राकृतिक या नैसर्गिक रूप से विद्यमान रुचिपूर्ण विषयों । से संबंधित विषयों को शामिल किया जाता है।
(d) साहित्यिक फीचर इसके अंतर्गत साहित्यिक गतिविधियाँ, साहित्यकारों या रचनाकारों, लोक साहित्य आदि से जुड़े विषयों को शामिल किया जाता है।
(e) राजनीतिक फीचर इसके अंतर्गत राजनीतिक घटनाओं, राजनीतिक विचारों, राजनीतिज्ञों आदि से संबंधित विषयों को सम्मिलित किया जाता है।

अथवा

युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति जीवन विधाता का वरदान है, परंतु युवा पीढ़ी इस वरदान को अभिशाप बनाने की ओर अग्रसर है। आज की युवा पीढ़ी सही दिशा-निर्देश के अभाव में तेज़ी से नशे की प्रवृत्ति का शिकार होती जा रही है। युवा अपने कर्म से विमुख होकर नशे के गर्त में डूबकर अपना जीवन व्यर्थ गँवा रहे हैं। शिक्षा के मंदिरों में भी नशे का व्यापार चरम-सीमा पर चलता है। नशे के व्यापारी कमज़ोर मानसिकता वाले युवाओं को अपने जाल में फंसाने का कार्य स्कूल, कॉलेजों आदि में भली प्रकार से कर लेते हैं। जो एक बार नशे की लत का शिकार हो गया, वह आसानी से छूट नहीं पाता। तनाव, असमंजसता, अकेलापन, घुटन आदि के चलते युवा पीढ़ी नशे का शिकार बनती जा रही है। बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि तो नशे के पुराने साधन हो गए हैं, आज की पीढ़ी तो चरस, स्मैक, ब्राउन शुगर, हेरोइन, अफीम आदि के नशे का शिकार हो रही है। आज आवश्यकता इस बात की है कि युवा वर्ग अपनी शक्ति और दायित्व दोनों को समझे। स्वस्थ वातावरण में रहे, अच्छी पुस्तकें पढ़े, काम में व्यस्त रहे और मौत के व्यापारियों को चिह्नित कर उन्हें सजा दिलवाए। युवाओं के कंधों पर देश की ज़िम्मेदारी टिकी होती है। यदि ये कंधे ही कमज़ोर हो गए तो देश की प्रगति लड़खड़ा जाएगी। अतः युवा वर्ग को अपनी भूमिका समझनी होगी तथा माता-पिता को भी देखना चाहिए कि उनके द्वारा दी गई सुविधा का उनके बच्चे किस प्रकार उपयोग कर रहे हैं, तब ही इस नशे की प्रवृत्ति से मुक्ति मिल सकती है।

(ii) समाचार लेखन में इंट्रो किसे कहते हैं? इंट्रो लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? (2 × 1 = 2)
अथवा
समाचार लेखन में कैसे और क्यों का स्थान कहाँ होता है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
इंट्रो (प्रस्तावना) समाचार का पहला अनुच्छेद होता है, जिसमें क्या हुआ?’ के प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है। यह मुख्य समाचार होता है, जो थोड़े शब्दों में पाठक को बताता है कि ‘क्या घटना घटित हुई है?’ इंट्रो को ‘आमुख’, ‘मुखड़ा’ तथा ‘लीड’ भी कहा जाता है। इंट्रो लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए
(a) इंट्रो सारगर्भित, संक्षिप्त तथा ठोस होना चाहिए।
(b) समीक्षकों के अनुसार आमुख (इंट्रो) 30-35 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए।
(c) इसमें किंतु, परंतु, लेकिन जैसे शब्दों से बचना चाहिए, क्योंकि ये शब्द इंट्रो को अव्यवस्थित तथा अयथार्थपरक बना देते हैं।

अथवा

समाचार-लेखन में ‘कैसे’ का स्थान “क्या’, ‘कब’, ‘कहाँ’ और ‘कौन’ के पश्चात् होता है। समाचार के मुखड़े के बाद जहाँ समाचार का विस्तृत वर्णन या विवरण आता है, वहाँ कैसे’ को स्थान दिया जाता है। ‘क्यों’ अर्थात् घटना घटने के कारणों का विश्लेषण कैसे के भी बाद आता है। इस क्रम निर्धारण के पीछे मूल कारण यह है कि पाठकों की रुचि सबसे पहले घटना के तथ्यों की जानकारी में होती है। बाद में वह उसका विस्तृत विवरण जानना चाहता है। अंत में उसके कारणों पर मनन करना चाहता है।

पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 [20 अंक]

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(i) ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप कविता में लक्ष्मण के प्रति राम के प्रेम की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति हुई है। स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
“लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ कविता में लक्ष्मण के प्रति श्रीराम के प्रेम की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति हुई है। यहाँ श्रीराम का मानवीय रूप दृष्टिगत होता है। वे साधारण मानव की तरह अधीर होते हैं तथा कहते हैं कि उन्हें यदि ज्ञात होता कि वन में भाई का बिछोह होगा, तो वे पिता को दिए गए वचन का भी पालन नहीं करते। वे कहते हैं कि संसार में पुत्र, स्त्री आदि तो एकाधिक बार मिल जाते हैं, परंतु सहोदर (सगा) भाई पुन: नहीं मिलता। वे कहते हैं कि लक्ष्मण के बिना वे कौन-सा मुँह लेकर अयोध्या जाएँगे? इन पंक्तियों में श्रीराम की आंतरिक व्यथा का मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है।

(ii) माँ द्वारा बच्चे पर किस प्रकार प्रेम न्योछावर किया जा रहा है? फ़िराक गोरखपुरी की ‘रुबाईयों’ के आधार पर बताइए। (3)
उत्तरः
माँ द्वारा बालक पर अत्यंत प्रेम न्योछावर किया जा रहा है। माँ अपने बच्चे को गोद में लेकर आँगन में खड़ी है। कभी वह उसे हाथों पर झुलाती है, तो कभी हवा में उछाल-उछाल कर प्रसन्न होती है। बच्चा भी माँ के हाथों के झूले में झलता हुआ खिलखिलाकर हँस रहा है। माँ वात्सल्य भाव के साथ बच्चे को स्वच्छ जल से नहलाती है, उसके उलझे बालों में कंघी कर उसे सुंदर बनाती है। माँ बच्चे को अपनी घुटनियों में लेकर कपड़े पहनाती है। बच्चा माता की गोद में प्रसन्न रहता है।

(iii) “सूर्योदय से पूर्व आकाश की छवि की गतिशीलता को पकड़ने के लिए कवि ने विविध प्रतीकों तथा बिंबों का सहारा लिया है। उषा कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तरः
सूर्योदय से पहले आकाश की छवि गतिशीलता को पकड़ने के लिए कवि ने विविध प्रतीकों तथा बिंबों का सहारा लिया है। प्रात:काल में अंधकार के हटने तथा प्रकाश के फैलने की प्रक्रिया को ग्रामीण जन-जीवन की गतिविधियों से जोड़ा गया है। उषाकाल के दौरान आकाश में नमी मौजूद होती है। कवि ने इसे ‘राख से लीपा हुआ चौका’ जैसे बिंब के माध्यम से दर्शाया है। भोर के नभ का नीला रंग तथा राख से लीपे हुए चौके में दृश्य-साम्य है। कवि ने सूर्योदय से पहले आकाश को काले सिल तथा स्लेट के रूप में भी चित्रित किया है। सूर्य की छिटकती लालिमा, काले सिल को लाल केसर से धुल जाने तथा स्लेट पर लाल खड़िया या चाक मल देने का बिंब, परिवेश में हो रहे परिवर्तन को चित्रित करते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखिए। (3 × 3 = 9)
(i) पाकिस्तान से भारत में नमक लाने पर प्रतिबंध क्यों था? सफ़िया को सीमा पार करने के लिए किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता?
उत्तरः
भारत और पाकिस्तान की सीमाओं का विभाजन हो चुका था इसलिए पाकिस्तान से भारत में नमक लाने पर प्रतिबंध था। यदि नमक लाया जाता, तो यह कार्य गैर-कानूनी होता। सफ़िया को सीमा पार आने के लिए अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता। इसके लिए पहले उसे कस्टम से गुजरना पड़ता और कस्टम वाले सारे सामान की जाँच करते हैं। यदि कस्टम वालों ने नमक देख लिया होता, तो सफ़िया के साथ-साथ उसके भाइयों की भी बदनामी होती। इस आशंका के चलते ही पुलिस में काम करने वाले सफ़िया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने के लिए सफ़िया को साफ़ मना कर दिया।

(ii) दंगल जीतने के बाद लुट्टन सिंह पहलवान का जीवन कैसे बदल गया? ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः
दंगल जीतने के बाद लुट्टन सिंह पहलवान का जीवन बहुत बदल गया था। अब वह राज पहलवान हो गया तथा राज दरबार का दर्शनीय जीव बन गया था। मेलों में वह घुटने तक लंबा चोला पहने. मतवाले हाथी की तरह झूमता हुआ घूमता था। दुकानदार उससे चुहलबाजी करते रहते थे। उसकी बुद्धि बच्चों जैसी थी। सीटी बजाता, आँखों. पर रंगीन चश्मा लगाए और खिलौने से खेलता हुआ वह राज दरबार में आता। राजा साहब उसका बहुत ध्यान रखते थे और किसी को भी उससे लड़ने की आज्ञा नहीं देते थे।

(iii) ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के लेखक के अनुसार “दासता केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता। क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
लेखक के अनुसार, ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता, क्योंकि दासता में वह स्थिति भी सम्मिलित है, जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। अपनी इच्छा के विरुद्ध व्यवसायों को अपनाना ‘दासता’ का सशक्त उदाहरण है। लेखक के अनुसार, जब तक समाज में समता, समानता स्थापित नहीं हो जाती, तब तक हम स्वतंत्र नहीं हो सकते अर्थात् जब तक स्वतंत्रता कुछ ही लोगों तक सीमित रहेगी, तब तक दासता से मुक्ति पाना संभव नहीं हो सकता। इस तथ्य को देखकर लगता है कि विदेशी ताकतों को देश से भगाना अधूरी स्वतंत्रता की ही प्राप्ति है।

(iv) ‘पहलवान की ढोलक पाठ में राजा के द्वारा ‘लुट्टन सिंह पुकारे जाने पर किस-किसने आपत्ति की और क्यों? तब राजा ने क्या कहकर उनका प्रतिकार किया?
उत्तरः
श्यामनगर के दंगल में जब लुट्टन ने उस क्षेत्र के प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को परास्त कर दिया, तब राजा ने उसे सम्मान देते हुए लुट्टन सिंह कहकर पुकारा। इस पर राज-पंडितों ने आपत्ति व्यक्त की, क्योकि लुट्टन उच्च जाति कुल का सदस्य न था, जिसे क्षत्रियों की उपाधि ‘सिंह’ उपनाम से पुकारा जाए। मैनेजर साहब, जो स्वयं क्षत्रिय थे, ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह तो सरासर अन्याय है। राजा ने यह कहकर उनका प्रतिकार किया कि उसने (लुट्टन ने) क्षत्रिय का काम किया है।

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 3 with Solutions

प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(i) ‘अतीत के दबे पाँव’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि सिंधु सभ्यता राजा पर आश्रित न होकर समाज पर आश्रित थी। (3 × 1 = 3)
अथवा
‘डायरी के पन्ने पाठ के आधार पर बताइए कि उस समय समाज में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी? वर्तमान समय में उसमें क्या परिवर्तन हुआ है?
उत्तरः
मुअनजो-दड़ो की सभ्यता साधन संपन्न थी। यहाँ के लोगों की रुचि कला से जुड़ी होती थी। यहाँ पर पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्भांड, पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, खिलौने, केश विन्यास, आभूषण इत्यादि सिंधु सभ्यता को तकनीकी रूप से अधिक सिद्ध होने की अपेक्षा उसके कला प्रेम को अधिक दर्शाते हैं। यह सभ्यता धर्मतंत्र या राजतंत्र की शक्ति का प्रदर्शन करने वाले महलों, उपासना स्थलों आदि का निर्माण नहीं करती थी। सिंधु सभ्यता समाज पोषित संस्था का समर्थन करती थी। सभ्यता में आडंबर को स्थान नहीं दिया गया था, अपितु चारों ओर से सुंदरता ही दिखाई देती थी। समाज में सौंदर्य बोध था, न कि कोई राजनीतिक या धार्मिक आडंबर। सभ्यता के केंद्र में समाज को प्रथम स्थान दिया गया है। इसमें न किसी राजा का प्रभाव था और न ही किसी धर्म विशेष का। इतना अवश्य है कि कोई-न-कोई राजा अवश्य रहा होगा, लेकिन यह सभ्यता राजा पर आश्रित नहीं थी। इन्हीं बातों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ‘सिंधु सभ्यता राजा पर आश्रित न होकर पूरी तरह से समाज पर आश्रित थी।

अथवा

‘डायरी के पन्ने’ पाठ के अंतर्गत ऐन फ्रेंक ने समाज में स्त्रियों की दशा को बहुत दयनीय बताया है। वह मानती है कि पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों की शारीरिक अक्षमता का सहारा लेकर उन्हें अपने से नीचे रखता है. पर आधनिक समाज में अब स्त्रियों की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। ऐन को ऐसा लगता है कि पुरुष स्त्रियों को घर तक ही सीमित रखना चाहते हैं, जिससे वे उन पर अपनी हुकूमत चला सकें। ऐन के विचारों के अनुरूप स्त्रियों को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। वह स्त्री जीवन को महत्त्वपूर्ण स्थान देते हुए स्त्री जीवन के अनुभव को अतुलनीय बताती है। वस्तुतः ऐन के उपरोक्त विचार वर्तमान जीवन-मूल्यों के अनुसार अत्यधिक प्रासंगिक हैं। वर्तमान समय में स्त्रियों की स्थिति में बहुत परिवर्तन आ चुका है। उन्हें समाज में पुरुषों के समकक्ष माना जाने लगा है, पुरुषों के बराबर ही उन्हें अधिकार एवं सम्मान प्राप्त हैं। वे पुरुषों के साथ प्रत्येक क्षेत्र में कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने लगी हैं।

(ii) सिंधु घाटी सभ्यता के जीर्ण-शीर्ण अवशेष अपने इतिहास का परिचय देते हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
“समाज को ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए स्त्रियों को साथ रखना अपरिहार्य है।” ‘डायरी के पन्ने पाठ के आधार पर इस कथन के आलोक में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तरः
लेखक के अनुसार, मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा जैसे सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों के अवशेष जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं, परंतु वे अपने इतिहास का परिचय अवश्य देते हैं। इतनी ऊँची छत पर स्वयं चढ़कर इतिहास का अनुभव करना आनंददायक लगता है। खुदाई के आस-पास मिले बर्तनों, सिक्कों, नगरीय ढाँचों, सड़कों, गलियों को ही साक्ष्य माना गया है। इन वस्तुओं को इन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर ही देख सकते हैं, क्योंकि ये अधूरे पायदान ही संसार की सबसे पुरानी सभ्यता को दर्शाते हैं।

अथवा

समाज को ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए स्त्रियों को साथ रखना अपरिहार्य है। अन्यथा समाज स्त्रियों के योगदान के बिना यथावत् ही बना रहेगा। ऐन फ्रेंक के विचारों के अनुरूप नारी को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, क्योंकि नारी ने पूर्व समय में बहुत बलिदान दिए हैं लेकिन फिर भी समाज में उसको इस बलिदान के बदले न तो सम्मान ही मिला है और न ही अधिकार। परन्तु अब आधुनिक युग में स्त्रियों ने घर से बाहर निकलकर काम करना शुरू कर दिया है। अब वह शिक्षा, नौकरी व व्यवसाय में अपना स्थान पुरुषों से भी आगे बना रही है।