Students can access the CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core with Solutions and marking scheme Term 2 Set 10 will help students in understanding the difficulty level of the exam.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 10 with Solutions
निर्धारित समय : 2 घंटे
अधिकतम अंक : 40
निर्देश :
- निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए।
- इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- इस प्रश्न पत्र में कुल 07 प्रश्न पूछे गए हैं। आपको 07 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।
कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]
प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षकों में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों का एक रचनात्मक लेख लिखिए। (5 × 1 = 5)
- भारतीय संस्कृति में अतिथि का स्थान
- सत्संगति का मानव जीवन में महत्त्व
- आजादी के 74 वर्षों बाद भारत की स्थिति
उत्तरः
भारतीय संस्कृति में अतिथि का स्थान:
भारतीय संस्कृति अपने उच्च एवं उदात्त मूल्यों के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। ‘अतिथि देवो भवः’ अर्थात् अतिथि को देवता के समान मानना भारतीय संस्कृति का एक ऐसा ही मूल्य है, जो इसकी महानता को प्रदर्शित करता है। हमारे यहाँ प्राचीनकाल से ही अतिथि को आदरणीय मानते हुए उसे देवता तुल्य समझा गया है। भारतीय संस्कृति में सेवा करने को बहुत महत्त्व दिया गया है। अतिथि को देवता मानना इसी सेवा-भाव का विस्तारित रूप है। अतिथि का उचित आदर-सत्कार करने से न केवल अतिथि प्रसन्नता एवं अपनेपन का अनुभव करता है, बल्कि हमें स्वयं भी अच्छा लगता है और मन में संतुष्टि का भाव आता है। अतिथि को सम्मान देने वाले व्यक्ति के यश में वृद्धि होती है, उसके घर में सुख-समृद्धि का वास रहता है और वह सज्जनों के आशीर्वाद का पात्र बनता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता मानकर उसकी सेवा करने की सीख दी गई है।
वर्तमान समय में बहुत-सी प्राचीन मान्यताएँ और आदर्श बदल रहे हैं। ‘अतिथि देवो भव:’ का आदर्श भी अब धीरे-धीरे परिवर्तित हो रहा है। आजकल प्राय: सभी व्यक्तियों की जीवन शैली बहुत व्यस्त हो गई है। बढ़ती महँगाई के कारण अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना एवं जीवन के एक निर्दिष्ट-स्तर को बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में लोगों के पास दूसरों के लिए तो क्या स्वयं के लिए भी समय नहीं है। अत: आज लोगों के पास अतिथि के सेवा-सत्कार के लिए पर्याप्त समय ही नहीं है, लेकिन फिर भी लोग अपने अतिथियों का ध्यान रखने की कोशिश करते हैं। अतिथि बनने वाले व्यक्ति के लिए घर के सभी सदस्यों को उसकी सेवा में तत्पर रहना पड़ता है, जो सदैव संभव नहीं हो पाता। अतः अतिथि की भी एक मर्यादा होनी चाहिए। आज के समय में अतिथि बनने वाले व्यक्ति को अपने संबंधी की व्यावहारिक कठिनाइयों को समझना चाहिए।
सत्संगति का मानव जीवन में महत्त्व:
समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए मानव को नैतिक शिक्षा व सत्संगति की आवश्यकता पड़ती है। मानव को बाल्यावस्था से ही माता-पिता द्वारा अच्छे संस्कार प्राप्त होने चाहिए, क्योंकि बचपन के संस्कारों पर ही मानव का संपूर्ण जीवन निर्भर रहता है। सत्संगति मानव को ही नहीं अपितु पशु-पक्षी एवं निरीह जानवरों को भी दुष्प्रवृत्ति छोड़कर सवृत्ति के लिए प्रेरित करती है। मानव को बुरे लोगों की संगति से बचना चाहिए तथा सत्संगति अपनानी चाहिए, क्योंकि सत्संगति ही मनुष्य को अच्छे संस्कार, उचित व्यवहार तथा उच्च विचार प्रदान करती है। यदि वह कुसंगति में पड़ गया, तो उसका संपूर्ण जीवन विनष्ट हो जाएगा।
अत: सत्संगति की महती आवश्यकता है। सत्संगति से मानव के आचार-विचार में परिवर्तन आता है और वह बुराई के मार्ग का त्याग कर सच्चे और अच्छे कर्मों में प्रवृत्त हो जाता है। सत्संगति ही उसके सच्चे मार्ग को प्रदर्शित करती है। उस पर चलता हुआ मानव देवताओं की श्रेणी में पहुँच जाता है। इस मार्ग पर चलने वालों के सामने धर्म रोड़ा बनकर नहीं आता है। अत: उसे किसी प्रकार के प्रलोभनों से विचलित नहीं होना चाहिए।
सत्संगति की भाँति कुसंगति का भी मानव पर विशेष प्रभाव पड़ता है, क्योंकि कुसंगति तो काम, क्रोध, लोभ, मोह और बुद्धि भ्रष्ट करने वालों की जननी है। महाबली भीष्म और धनुर्धर कर्ण जैसे महापुरुष भी इसके मोह जाल में फँसकर अपने पथ से विचलित हो गए थे। उनके आदर्शों का तुरंत ही हनन हो गया था। कुसंगति मानव के संपूर्ण जीवन को विनष्ट कर देती है। इसलिए प्रत्येक मानव को बुरे लोगों के संपर्क से बचना चाहिए। सत्संगति कुंदन है जिसके मिलने से काँच के समान मानव हीरे के समान चमक उठता है अर्थात् उन्नति का एकमात्र सोपान सत्संगति ही है। अत: मानव को सज्जन पुरुषों के सत्संग में ही रहकर अपनी जीवनरूपी नौका समाज रूपी सागर से पार लगानी चाहिए तभी वह आदर को प्राप्त कर सकता है तथा समस्त ऐश्वर्यों के सुख का उपभोग कर सकता है। इसलिए कहा भी गया है “जहाँ सुमति तहँ संपत्ति नाना”।
आजादी के 74 वर्षों बाद भारत की स्थिति:
स्वतंत्रता से पूर्व भारत ब्रिटिश सरकार के आधिपत्य में था। कठिन संघर्षों तथा बलिदानों के खून से सींची गई 74 वर्ष पहले मिली आजादी, प्रत्येक भारतीय को स्वतंत्रता का रोमांचित अनुभव कराती है।
आज आजादी के 74 वर्ष बाद भारत विश्व आर्थिक जगत की एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बन चुका है। इतना ही नहीं, आज का भारत परमाणु शक्ति के साथ-साथ जन शक्ति का भी विशाल सागर बन चुका है। गुलामी की बेड़ियों में अनेक वर्षों तक जकडे होने के बाद भी भारतवर्ष ने विश्वास के साथ उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए तथा विकसित देशों से टक्कर लेते हुए आज विश्व पटल पर अपना तिरंगा लहरा दिया है। विश्व के चीन, जापान, अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैण्ड, साउथ अफ्रीका आदि शक्तिशाली देश सभी क्षेत्रों में भारत के साथ व्यापारिक आर्थिक, सामाजिक, नैतिक आदि सभी प्रकार के संबंध बनाने में लगे हुए हैं।
भारत आज विश्व की छठी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थान बना चुका है। आज भारत सरकार ‘मेक इन इंडिया’, स्मार्ट इंडिया, सर्वशिक्षा अभियान, स्वच्छता अभियान, नारी सशक्तीकरण, सुकन्या समृद्धि योजना, वृद्धावस्था पेंशन योजना, स्वरोजगार योजना जैसी असंख्य योजनाओं के क्रियान्वयन के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को उनके अधिकार दिलाने तथा उनके जीवन को खुशहाल बनाने में लगी हुई है। आज भारत लगभग सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर चुका है। आगामी 15-20 वर्षों में भारत विश्व की प्रथम अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होते हुए प्रथम स्थान पर पहुँच जाएगा। भारत विश्व शांति का अग्रदूत है और हमेशा बना रहेगा तथा निरंतर प्रगति करते हुए एक दिन विश्व सभ्यता की प्रथम और विशालतम अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
प्रश्न 2.
खाद्य पदार्थों में मिलावट की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए किसी प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखिए। इसके निराकरण के उपाय भी सुझाइए। (5 × 1 = 5)
अथवा
अस्पताल के प्रबंधन पर असंतोष व्यक्त करते हुए अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को पत्र लिखिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 15 मार्च, 20XX
सेवा में,
संपादक महोदय,
नवभारत टाइम्स,
नई दिल्ली।
विषय खाद्य पदार्थों में मिलावट की बढ़ती प्रवृत्ति के संबंध में।
महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से सरकार का ध्यान खाद्य पदार्थों में मिलावट की बढ़ती प्रवृत्ति की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। आशा है कि आप जनहित में मेरा पत्र अवश्य प्रकाशित करेंगे। इन दिनों खाद्य पदार्थों में मिलावट का व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है। दूध में पानी की मिलावट तो आम बात है, परंतु अब अन्य खाद्य पदार्थों; जैसे—मावा, पनीर, घी, मक्खन, मसालों आदि में भी अत्यधिक मिलावट की जा रही है और इन्हें कोई रोकने वाला नहीं है। यदि कभी शिकायत की भी जाती है, तो झूठी कार्यवाही करके दोषियों को छोड़ दिया जाता है, क्योंकि इनकी पहुँच उच्च अधिकारियों तक होती है।
इनके इस अनैतिक कार्य का आम जनता के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अब तो फल और सब्जियाँ भी इनके दुष्प्रभाव से नहीं बची हैं। सरकार को इस दुष्प्रवृत्ति पर तुरंत अंकुश लगाने के लिए कठोर कदम उठाना चाहिए। इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं
• खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियों के उत्पादों की समय-समय पर जाँच की जानी चाहिए।
• जाँच में दोषी पाए जाने वाले लोगों को सख़्त-से-सख्त सज़ा दी जानी चाहिए।
सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.
अथवा
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
सेवा में,
चिकित्सा अधीक्षक
लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल
नई दिल्ली।
दिनांक 15 मार्च, 20XX
विषय अस्पताल के प्रबंधन को और अधिक सुधारने की आवश्यकता के संदर्भ में।
महोदय,
अत्यंत दु:ख के साथ कहना पड़ रहा है कि आपके नियंत्रण एवं निगरानी में चलने वाले लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के प्रबंधन में अभी और भी सुधार करने की आवश्यकता है, क्योंकि मौजदा प्रबंधन व्यवस्था जनसामान्य के हितों की ठीक प्रकार से पूर्ति कर पाने में असक्षम है। मैं अपने चाचाजी को बीमारी की अत्यंत गंभीर अवस्था में उपचार के लिए यहाँ लाया था। उन्हें दिल की बीमारी है और साँस लेने में अत्यधिक कठिनाई महसूस हो रही थी। यहाँ पर भर्ती करने के लिए प्रबंधन ने इतनी औपचारिकताएँ पूरी करवाईं और इतना अधिक समय लिया कि उनकी स्थिति और बिगड़ने लगी। उनके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का प्रबंध होते-होते शाम हो गई। यदि इतने लंबे समय तक कोई अन्य रोगी इसे सहन नहीं कर पाया, तो उसकी मृत्यु तो निश्चित ही है। क्या यह उचित है कि अस्पताल में रोगी को सबसे अधिक जिस चीज़ या उपकरण की आवश्यकता हो, वही उसे समय पर न मिल सके? अतः आपसे निवेदन है कि अस्पताल के प्रबंधन को और चुस्त एवं सक्रिय बनाया जाए तथा उसे अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए प्रेरित किया जाए। मैं आशा करता हूँ कि आप इस पर उचित ध्यान देंगे और अस्पताल प्रबंधन को अधिक उत्तरदायी एवं मरीजों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करेंगे।
सधन्यवाद।
भवदीय
क. ख. ग.
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) रेडियो नाटक में समय के अनुसार पात्रों की संख्या पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
कहानी के संदर्भ में द्वंद्व की परिभाषा बताते हुए इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
रेडियो नाटक में समय के अनुसार पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए। 15 मिनट की अवधि वाले रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या 5-6 हो सकती है। 30-40 मिनट की अवधि वाले नाटक में पात्रों की संख्या 8-12 हो सकती है। यदि एक घंटे या उससे अधिक की अवधि का रेडियो नाटक लिखना ही पड़ जाए तो उसमें 15-20 भूमिकाएँ गढ़ी जा सकती हैं। एक महत्त्वपूर्ण तथ्य जब हम इन संख्याओं की बात कर रहे हैं तो ये प्रमुख और सहायक किरदारों की भूमिकाओं की संख्या है। छोटे-मोटे किरदारों की गिनती इसमें नहीं की जाती।
अथवा
कहानी में द्वंद्व के तत्त्व का होना आवश्यक है। द्वंद्व कथानक को आगे बढ़ाता है तथा कहानी में रोचकता बनाए रखता है। दो विरोधी तत्त्वों के परस्पर टकराव की स्थिति को द्वंद्व कहा जाता है। कहानी में द्वंद्व दो विरोधी तत्त्वों का टकराव या किसी की खोज में आने वाली बाधाओं या अंतद्वंद्व के कारण पैदा होता है। कहानी की शर्त यह है कि वह नाटकीय ढंग से अपने उद्देश्य को पूर्ण करते हुए समाप्त हो जाए, जो द्वंद्व के कारण ही पूर्ण होता है। कहानीकार अपने कथानक में द्वंद्व के बिंदुओं को जितना स्पष्ट रखेगा, कहानी भी उतनी ही सफलता से आगे बढ़ेगी। अत: कहानी में द्वंद्व का अत्यधिक महत्त्व है।
(ii) नाटक लेखन का प्रथम अंग किसे माना गया है? स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
कहानी लेखन में चरमोत्कर्ष के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
नाटक का प्रथम अंग समय का बंधन है। समय का यह बंधन नाटक की रचना पर अपना पूरा प्रभाव डालता है, इसलिए शुरुआत से लेकर अंत तक एक निश्चित समय-सीमा के भीतर ही नाटक पूरा होना होता है। नाटक का विषय भूतकाल हो या भविष्यकाल इन दोनों ही स्थितियों में वर्तमानकाल में संयोजित होता है। यही कारण है कि नाटक के मंच निर्देश हमेशा वर्तमानकाल में लिखे जाते हैं। चाहे काल कोई भी हो उसे एक समय में, एक स्थान विशेष पर वर्तमानकाल में ही घटित होना होता है।
अथवा
जब कहानी पढ़ते-पढ़ते पाठक कौतूहल (जिज्ञासा) की पराकाष्ठा (चरम सीमा) पर पहुँच जाए, तब उसे कहानी का चरमोत्कर्ष या चरम स्थिति कहते हैं। कथानक के अनुसार कहानी चरमोत्कर्ष (क्लाइमेक्स) की ओर बढ़ती है। कहानी का चरमोत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लेखकीय पक्षधर की ओर आने के लिए प्रेरित करता है। पाठक को यह भी लगता है कि उसे स्वतंत्रता दी गई है और उसने जो निष्कर्ष निकाले हैं, वह उसके अपने हैं।
प्रश्न 4.
(i) ‘बाघों की घटती संख्या’ विषय पर आलेख लिखिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
‘कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार’ विषय पर फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
बाघ हमारे देश की राष्ट्रीय संपत्ति है तथा भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। 20वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में हज़ारों की संख्या में बाघ मौजूद थे, जोकि वर्तमान में लगातार कम होते जा रहे हैं। बाघों की गिरती संख्या को रोकने तथा पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने एवं बाघों की जनसंख्या में वृद्धि करने के उद्देश्य से 1 अप्रैल, 1973 को भारत में बाघ परियोजना का शुभारंभ किया गया। वैश्विक रूप से बाघों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ के अनसार हमने एक शताब्दी में बाघ संरक्षित क्षेत्र में बाघों की लगभग 97% संख्या गँवा दी है। बाघ को संकटापन्न एवं विलुप्त जीव की श्रेणी में रखा गया है।
वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ के अनुसार, विश्व में लगभग 3900 बाघ ही बचे हैं। भारत में विश्व के सर्वाधिक 2968 बाघों का निवास है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ के अनुसार, बाघों की संख्या घटने का मुख्य कारण मानवीय हस्तक्षेप है, न कि प्राकृतिक क्रियाकलाप। अब प्रश्न उठता है कि क्या मनुष्य की आर्थिक लालसा की पूर्ति हेतु बाघों के शिकार एवं अवैध व्यापार आदि को सही ठहराया जा सकता है? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि प्रकृति ने सभी को जीवन जीने का अधिकार दिया है तथा इस धरती पर सर्वाधिक विवेकशील प्राणी होने के कारण मनुष्य का नैतिक दायित्व समाज तथा पर्यावरण के प्रति बढ़ जाता है। अत: पर्यावरणीय अस्थिरता को रोकने के लिए बाघों का उचित संरक्षण आवश्यक है। यद्यपि वैश्विक रूप से बाघों के संरक्षण हेतु प्रयास किए जा रहे हैं, जिसकी झलक हमें पीट्सबर्ग में आयोजित विश्व बाघ सम्मेलन में मिली थी तथापि इसके लिए वैश्विक रूप से एक समन्वित कार्यरूप और प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
अथवा
कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार:
भ्रष्टाचार से तात्पर्य, व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले ऐसे अनुचित कार्य से है, जिसे वह अपने पद का लाभ उठाते हुए आर्थिक या अन्य लाभों को प्राप्त करने के लिए स्वार्थपूर्ण ढंग से करता है। आज हमारे देश में धर्म, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, कला, मनोरंजन. खेल-कद इत्यादि सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार ने अपने पैर पसार दिए हैं। रिश्वत लेना-देना, खाद्य पदार्थों में मिलावट, मुनाफाखोरी, अनैतिक ढंग से धन-संग्रह, कानूनों की अवहेलना करके अपना उल्लू सीधा करना आदि भ्रष्टाचार के ऐसे रूप हैं, जो भारत में ही नहीं, अपितु विश्वभर में व्याप्त हैं। धन की लिप्सा ने आज आर्थिक क्षेत्र में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, रिश्वतखोरी आदि को बढ़ावा दिया है। इसके अतिरिक्त गरीबी, बेरोज़गारी, महँगाई, लालफीताशाही, अशिक्षा, सरकारी कार्यों का विस्तृत क्षेत्र, अत्यधिक प्रतिस्पर्धा आदि सकारणों से भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है।
भ्रष्टाचार जहाँ लोगों के नैतिक व चारित्रिक पतन का कारण है वहीं दूसरी ओर इसके कारण देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ती है। भ्रष्टाचार के फलस्वरूप ही अधिकारी और व्यापारी वर्ग के पास काला धन अत्यधिक मात्रा में इकट्ठा हो गया है। आज यदि देश का प्रत्येक युवा अपना कर्त्तव्य समझकर भ्रष्टाचार का विरोध करने लगे तो देश से भ्रष्टाचार रूपी दानव का अंत हो जाएगा।
(ii) समाचार लेखन में टकराव या संघर्ष की क्या भूमिका होती है? अपने शब्दों में लिखिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
समाचार लेखन के कितने प्रकार हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
किसी घटना में टकराव व संघर्ष का पहलू होने पर उसके समाचार के रूप में चयन की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि लोगो में टकराव या संघर्ष के बारे में जानने की स्वाभाविक रुचि होती है। टकराव या संघर्ष से तात्पर्य मार-पीट आदि से नहीं है। लोगों की रुचि खेलों में मुकाबला कर रही टीमों के बीच में होने वाले टकराव या संघर्ष को जानने से होती है। इसके अतिरिक्त राजनीति में विभिन्न दलों के बीच में होने वाले टकराव या संघर्ष को जानने की इच्छा भी लोगों को होती है। इन समाचारों का सीधा प्रभाव लोगों के जीवन पर पड़ता है। वे उससे बचना चाहते हैं और इसलिए उसके बारे में जानना चाहते हैं। यही कारण है कि युद्ध और सैनिक टकराव के बारे में जानने की लोगों में सर्वाधिक रुचि होती है।
अथवा
‘समाचार लेखन’ समाचारों को लिखकर प्रस्तुत करने का ढंग है। समाचार लेखन एक विशिष्ट कला है। समाचार सूचनात्मक एवं तथ्यात्मक होते हैं। चूँकि इनका सीधा संबंध जनमत से है, इसलिए इनकी प्रस्तुति का ढंग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
समाचार लेखन के प्रकार
समाचार सामान्यत: दो प्रकार से लिखा जाता है
(a) विलोम स्तूपी पद्धति (b) उर्ध्वस्तूपी पद्धति
(a) विलोम स्तूपी पद्धति: (उल्टा पिरामिड शैली) इस पद्धति में समाचार लिखते हुए उसका चरमोत्कर्ष प्रारंभ में दिया जाता है तथा घटनाक्रम की व्याख्या करते हुए अंत किया जाता है।
(b) उर्ध्वस्तूपी पद्धति प्रायः समाचार विलोम स्तूपी पद्धति के अनुसार ही लिखे जाते हैं, क्योंकि उर्ध्वस्तूपी पद्धति में कम महत्त्वपूर्ण से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण के क्रम में तथ्यों का संकेत किया जाता है। चूंकि पाठक घटना के बारे में शीघ्र सूचना प्राप्त करना चाहता है, इसलिए वह पूरे ब्यौरे को पढ़ने में रुचि नहीं लेता।
पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 (20 अंक)
प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(i) ‘उषा’ कविता में अनेक ऐसे उपमान हैं, जो गांव की सुबह के गतिशील चित्र को प्रतिबिंबित करते हैं। स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
कविता में अनेक ऐसे उपमानों का प्रयोग किया गया, जो स्पष्ट करता है कि ‘उषा’ गाँव की सुबह के गतिशील चित्र को प्रतिबिंबित करती है। राख से लीपा हुआ चौका, केसर के रंग से युक्त काली सिल, तालाब में किसी गौर झिलमिल देह का हिलना आदि उपमानों को देखकर निश्चय ही कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील चित्र है।
(ii) “फ़िराक गोरखपुरी ने अपनी गजलों में व्यक्तिगत प्रेम का वर्णन किया है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। (3)
उत्तरः
फ़िराक गोरखपुरी की गज़ल में व्यक्तिगत प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। फूलों की कलियों से नवरस छलकने लगा है, रात के अंधेरे में तारे आँखें झपका रहे हैं, ऐसे में कवि की प्रेमिका उसके साथ नहीं है। प्रेम के कारण कवि दीवानगी की हद तक चला गया है। कवि विरह से पीड़ित है। प्रेम में प्रकृति भी महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में विद्यमान रहती है। प्रेम का एक अघोषित नियम है कि जो अपने प्रेम में जितना अधिक स्वयं को खो देता है, वह उतना ही अधिक प्रेम को प्राप्त करता है।
(iii) तुलसीदास ने जिस मानवीय संवेदना को कविता में उकेरा है, वह मनुष्य की स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है। इस कथन के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तरः
कवि ने जिस मानवीय संवेदना को कविता में उकेरा है, वह मनुष्य की स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है। भाई लक्ष्मण के मूछित होने पर राम को विलाप करते दिखाते हैं। राम अपने भाई के प्रेम में विह्वल होकर सभी प्रकार की सामाजिक मर्यादाओं के बंधन को तोड़ते प्रतीत होते हैं। वे पिता की बात नहीं मानने तथा नारी की हानि को कमतर बताने वाली बातें भी करते हैं। यह किसी नरलीला के लिए संभव नहीं है। राम द्वारा शोक की स्थिति में कही गई बातें सच्ची मानवीय अनुभूति की अभिव्यक्ति हैं। यह एक सामान्य मनुष्य की वेदना का प्रस्फुटन है, जिसे नरलीला कहना उचित नहीं है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखिए। (3 × 3 = 9)
(i) “भारत-पाकिस्तान की जनता के आरोपित भेदभावों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ है,” इस भाव को ‘नमक’ कहानी किस प्रकार दर्शाती है? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
प्रस्तुत कहानी में भारत-पाकिस्तान की जनता के आरोपित भेदभावों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला है। इस भाव को यह कहानी स्पष्ट रूप से दर्शाती है। जब सफ़िया अपने भाई से, जो पाकिस्तान का निवासी है, नमक ले जाने की बात करती है, तो भाई का उत्तर उसे एक गहरी सोच में डाल देता है। इस आरोपित भेदभाव के विपरीत सिख बीबी व सफ़िया तथा सफ़िया व कस्टम अधिकारी सुनीलदास गुप्त के व्यवहार में जो स्नेह व सम्मान है, उससे लेखिका यह बताना चाहती है कि जनता इस भेदभाव को नहीं चाहती है। ढाका हो, दिल्ली हो या फिर लाहौर हो, सभी के नाम अलग हो सकते हैं, परंतु वहाँ के रहने वाले लोगों के दिल नहीं बाँटे जा सकते हैं।
(ii) गाँव में फैली बीमारी ने जब महामारी का रूप ले लिया तब उसका गाँव पर क्या प्रभाव पड़ा? समझाकर लिखिए। (3)
उत्तरः
गाँव में फैली बीमारी ने जब महामारी का रूप ले लिया था। तब उसका गाँव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इसने इस प्रकार गाँव में हाहाकार मचा दिया था कि सभी के चेहरे पर रुदन के अलावा अन्य कोई भी चिह्न यदा-कदा ही दृष्टिगोचर होता था। सूर्य निकलने के साथ ही लोग काँपते-कराहते घरों से निकलकर अपने आत्मीयजनों तथा मित्रों को समय बलवान होना समझाकर ढाँढस बँधाते थे और कहते थे कि समय परिवर्तित होता रहता है, बुरा समय भी जल्दी समाप्त हो जाएगा। लोग सूर्य के अस्त होने के साथ ही अपनी-अपनी झोंपड़ियों में चले जाते और उनकी चूँ तक की आवाज़ भी नहीं आती। उनकी बोलने की शक्ति भी बिल्कुल समाप्त हो जाती। केवल रुग्ण गाँववासियों के रोने-कराहने और बच्चों की माँ-माँ करने की आवाजें ही आतीं।
(iii) ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक के अनुसार दासता की क्या परिभाषा है?’ दासता को केवल कानूनी पराधीनता न मानने के पीछे क्या तर्क दिया गया है? (3)
उत्तरः
लेखक के अनुसार, ‘दासता’ की परिभाषा वह है जिसमें किसी को किसी प्रकार की स्वतंत्रता न हो। यहाँ तक कि वह अपना व्यवसाय भी स्वयं न चुन सके। इसका सीधा अर्थ निकलता है कि उसे ‘दासता’ की जकड़ में रखा जाता है। ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जाता, बल्कि दासता में वह स्थिति भी विद्यमान होती है, जिसमें कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्य का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। कानूनी पराधीनता न होने पर भी यह स्थिति पाई जा सकती है। इस प्रकार की स्थिति में भी व्यक्ति को अपना जीवन विवश होकर जीना पड़ता है, जिसके फलस्वरूप वह मानसिक रूप से स्वस्थ एवं संतुष्टि का जीवन व्यतीत नहीं कर पाता।
(iv) भारत-पाकिस्तान विभाजन का वहाँ के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा? ‘नमक’ कहानी के आधार पर अपने शब्दों में लिखिए। (3)
उत्तरः
भारत-पाकिस्तान विभाजन का वहाँ के लोगों के संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनके मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम पहले के समान ही बना रहा। कहानी से स्पष्ट होता है कि राजनीतिक सीमा एवं सत्ता लोलुपता व मजहबी दुराग्रहों में बँटे होने के बावजूद भारत एवं पाकिस्तान के लोगों के दिलों की धड़कन एक जैसी है। सिख बीबी भारत में रहते हुए भी लाहौर को अपना वतन मानती हैं, तो पाकिस्तान का कस्टम अधिकारी दिल्ली को अपना वतन मानता है। सफ़िया का लाहौर के मित्रों एवं परिचितों ने इतना तहेदिल से स्वागत-सत्कार किया कि उसे पता ही नहीं चला कि समय कैसे निकल गया? सफ़िया के दोस्त ने उपहार में कीनू की टोकरी देते समय कहा कि “यह हिंदुस्तान-पाकिस्तान की एकता का मेवा है।” अतः राजनीतिक दृष्टि से अलग-अलग देश होने के बावजूद भारत एवं पाकिस्तान के लोगों में एक ही दिल के टुकड़े धड़क रहे हैं, जो आपस में मिलने के लिए अत्यंत व्यग्र हैं।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3+ 2 = 5)
(i) ‘मुअनजो-दड़ो की सड़कों और गलियों का विस्तार खंडहरों को देखकर किया जा सकता है।’ इस कथन की पुष्टि करते हुए बताइए कि वह आज की सेक्टर-मार्का कॉलोनियों से अधिक रचनात्मक कैसे हैं? (3 × 1 = 3)
अथवा
ऐन को अज्ञातवास में रहते हुए कष्टदायी परिस्थितियों के साथ-साथ सेंधमारों से किस प्रकार संघर्ष करना पड़ा? विस्तार से बताइए।
उत्तरः
मुअनजो-दड़ो की सड़कों और गलियों का विस्तार खंडहरों को देखकर किया जा सकता है। यहाँ हर सड़क सीधी है या फिर आड़ी है, जिसे वास्तुकार ‘ग्रिड प्लान’ कहते हैं। चबूतरे के पीछे ‘गढ़ उच्च वर्ग की बस्ती, महाकुंड, स्नानागार, ढकी नालियाँ, अन्न का कोठार.सभा भवन, घरों की बनावट, भव्य राजप्रासाद, समाधियाँ आदि संरचनाएँ ऐसे सुव्यवस्थित हैं कि कहा जा सकता है कि शहर नियोजन से लेकर सामाजिक संबंधों तक में इसकी कोई तुलना नहीं है। हम कह सकते हैं कि वर्तमान की सेक्टर-मार्का कॉलोनियों के नियोजन इनके सामने बिल्कुल फीके हैं, जिसकी कॉलोनियों में आड़ा-सीधा ‘नियोजन’ अधिक देखने को मिलता है। पहले की अपेक्षा आज के शहरों के नियोजन के नाम पर भी हमें अराजकता अधिक दिखाई पड़ती है। इसी कारण सेक्टर-मार्का कॉलोनियों का रहन-सहन नीरस बना रहता है। अत: मुअनजो-दड़ो की साक्षर सभ्यता एक सुसंस्कृत समाज का प्रमाणित उदाहरण है।
अथवा
ऐन अपनी डायरी में बताती है कि उसे अज्ञातवास में रहते हुए कष्टदायी परिस्थितियों के साथ-साथ सेंधमारों से भी संघर्ष करना पड़ा। सेंधमारों ने जब उसे परेशान करना शुरू किया, तब ऐन के पिता, मिस्टर वानदान और पीटर जल्दी से नीचे गए। ऐन, मार्गेट, उनकी माँ और मिसेज वानदान ऊपर सहमे हुए इंतजार कर रहे थे। एक तेज़ धमाके से इन लोगों के होश उड़ गए। नीचे सन्नाटा था और पुरुष लोग वहीं सेंधमारों के साथ जूझ रहे थे। डर से काँपने के बाद भी सभी लोग शांति से बैठे रहे। लगभग 15 मिनट के बाद ऐन के पिता ने ऊपर आकर कहा कि तुम सब यहाँ की बत्तियाँ बंद करके छत पर चले जाओ। सीढ़ियों के बीच वाले दरवाज़े पर ताला लगा दिया गया। पीटर अभी सीढ़ियों पर ही था कि दूसरे धमाके की आवाज़ सुनाई दी।
उसने नीचे जाकर देखा तो गोदाम की तरफ़ का आधा भाग नहीं था। वह जल्दी से होमगार्ड को सचेत करने के लिए भागा। मिस्टर वान ने ज़ोर-ज़ोर से ‘पुलिस! पुलिस!’ शोर मचाया तो सेंधमार डर के कारण भाग गए और गोदाम के फट्टे फिर से लगा दिए गए, परंतु कुछ ही देर बाद वे फिर से वापस आकर तोड़-फोड़ करने लगे। उस भयानक रात को पुरुषों ने संघर्ष करके बड़ी मुश्किल से सभी की जान बचाई।
(ii) सिंधु सभ्यता के सामाजिक परिवेश के बारे में वर्णन कीजिए। (2 × 1= 2)
अथवा
“ऐन फ्रेंक की प्रतिभा, समझदारी और धैर्यता उसकी डायरी पढ़कर ऑकी जा सकती है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तरः
सिंधु सभ्यता के सामाजिक वातावरण को बहुत अनुशासित होने का अनुमान लगाया गया है। वहाँ का अनुशासन ताकत के बल पर नहीं था। नगर योजना, वास्तुशिल्प, मुहर, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक व्यवस्था में एकरूपता से यह अनुशासन प्रकट होता है। सिंधु सभ्यता में सुनियोजित नगर थे, पानी की निकासी व्यवस्था अच्छी थी। सड़कें लंबी व चौड़ी थीं, कृषि भी की जाती थी, यातायात के साधन के रूप में बैलगाड़ी भी थी।
अथवा
ऐन फ्रैंक की प्रतिभा, समझदारी और धैर्यता उसकी डायरी पढ़कर ही आँकी जा सकती है। ऐन की सहज शालीनता उसकी उम्र की अपेक्षा अधिक थी। ऐन ने अपने स्वभाव और अवस्था पर काबू पा लिया था। उसमें सहनशक्ति की अद्भुत क्षमता थी। वह एक अच्छी सोच तथा सुलझे हुए विचारों के साथ जीवन में आगे बढ़ना चाहती है। जो बातें उसे बुरी लगती हैं, उन्हें वह शालीनता से बड़ों का सम्मान करते हुए सहन कर लेती थी। यदि ऐन में ये प्रतिभा और परिपक्वता न होती, तो युद्ध काल की ऐसी दर्द भरी दास्तान हमें पढ़ने के लिए कभी भी नहीं मिल पाती।