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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 1 with Solutions

निर्धारित समय : 2 घंटे
अधिकतम अंक : 40

निर्देश :

  • निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए।
  • इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
  • इस प्रश्न पत्र में कुल 07 प्रश्न पूछे गए हैं। आपको 07 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
  • प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।

कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षकों में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों का एक रचनात्मक लेख लिखिए। (5 × 1 = 5)

  • प्रातः काल योग करते लोग
  • दुर्घटना से देर भली
  • जिन्हें जल्दी थी, वे चले गए

उत्तर:

प्रातः काल योग करते लोग।

प्रात:काल का समय बहुत सुहावना होता है। उगते हुए सूर्य की लालिमा के साथ-साथ चिड़ियों की चहचहाहट और धीमी-धीमी बहती हवा शरीर को एक अद्भुत आनंद से भर देती है। उस समय चारों ओर का वातावरण शांत होता है। प्रकृति अपने सुंदरतम रूप में होती है। ऐसा समय योग करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है।

एक दिन मैं प्रात:काल के समय पार्क में घूमने गया। मैंने वहाँ देखा कि बहुत से लोग घास के मैदान में अपना आसन बिछाकर योग कर रहे थे। योग करते समय वे बहुत प्रसन्न नजर आ रहे थे। उनमें केवल वृद्ध व्यक्ति ही नहीं, बल्कि सभी आयु वर्ग के लोग थे। जब उनका योग पूरा हो गया तब मैंने एक व्यक्ति से योग के विषय में पूछा कि प्रात:काल योग करने से क्या लाभ होता है तो उस व्यक्ति ने बताया कि योग हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग हमारे शरीर, मन एवं आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह मन को शांत एवं स्थिर रखता है, तनाव दूर कर सोचने की क्षमता तथा आत्मविश्वास और एकाग्रता को बढ़ाता है। नियमित रूप से योग करने से हमारा शरीर तो स्वस्थ रहता ही है साथ ही यदि कोई रोग है तो इसके द्वारा उसका उपचार भी किया जा सकता है। वर्तमान परिवेश में योग न केवल हमारे लिए लाभकारी है, बल्कि विश्व में बढ़ते प्रदूषण एवं मानवीय व्यस्तताओं से उपजी समस्याओं के निवारण में इसकी सार्थकता
और भी बढ़ गई है। इस प्रकार प्रात:काल योग करते लोगों को देखकर तथा योग से होने वाले लाभों के विषय में जानकर मुझे भी योग करने की प्रेरणा मिली। हम सभी लोगों को प्रातः काल योग करना चाहिए।

दुर्घटना से देर भली

‘दुर्घटना से देर भली’ का अर्थ है कि दुर्घटना का शिकार होने की तुलना में किसी भी समय देर से पहुँचना बेहतर होता है। मनुष्य आज अपने जीवन में इतना अधिक व्यस्त हो गया है कि वह शीघ्र-से-शीघ्र अपने कार्य पूर्ण कर लेना चाहता है। देश में वाहनों की संख्या में प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। सड़कों पर ट्रैफिक इतना अधिक हो गया है कि कभी-कभी 15 मिनट की दूरी के लिए 45 मिनट या उससे भी अधिक समय लग जाता है। घंटों जाम में फँसकर व्यक्ति तीव्र गति से वाहनों को चलाते हैं, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि मनुष्य कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य कर लेना चाहता है। अत्यधिक ट्रैफिक होने के साथ-साथ लोग लापरवाह भी होते जा रहे हैं। सड़क पर चलते समय हमें ट्रैफिक नियमों का पालन करना चाहिए। यदि हम नियमों का पालन नहीं करेंगे तो दुर्घटना का शिकार हो जाएँगे। एक बार मैं सड़क से जा रहा था तो मैंने देखा कि सड़क पर काफी भीड़-भाड़ थी। कुछ छोटे बच्चे टोली बनाकर बातें करते हुए मस्ती में जा रहे थे। उन्हें देखकर लग रहा था कि वे अत्यंत उत्साहित थे। उन्हें किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं थी। वे न तो सड़क पर चलने वाले वाहनों की परवाह कर रहे थे और न ही ट्रैफिक नियमों का पालन कर रहे थे। वाहन अत्यंत तीव्र गति से आ-जा रहे थे। मैंने देखा कि एक ट्रक बहुत तेजी से

उनकी ओर बढ़ रहा था, किंतु वे अपनी ही मस्ती में चले जा रहे थे। मैं दौड़कर उनके पास पहुँचा तथा दुर्घटनाग्रस्त होने से उन्हें बचा पाने में सफल हो गया। यदि कुछ सेकण्ड और हो जाते तो कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती थी। मैंने उन बच्चों को समझाया कि सड़क पर इस तरह लापरवाह होकर नहीं चलना चाहिए तथा ट्रैफ़िक नियमों का पालन करना चाहिए। आजकल लोग सड़क पर चलते हुए कोई सावधानी नहीं बरतते हैं। इसी का परिणाम होता है कि आए दिन कोई-न-कोई दुर्घटना घटित होती रहती है, इसलिए कहते हैं कि दुर्घटना से देर भली।

जिन्हें जल्दी थी, वे चले गए

‘जिन्हें जल्दी थी, वे चले गए’ कथन का अर्थ है कि जो लोग जीवन में जल्दबाजी को अपनाते हैं, वे अधिक समय तक जीवित नहीं रहते हैं अर्थात् उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है। मनुष्य को बड़ी ही मुश्किल से यह जीवन प्राप्त होता है। प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपने जीवन को अनमोल समझते हुए कुछ अच्छा कार्य करे। संसार का कोई भी मनुष्य कमजोर नहीं है वह सर्वशक्तिमान है। बस कमी यही है कि हम सभी लोग अपने जीवन का मोल नहीं समझते और जीवन की भागदौड़ में ही उलझकर रह जाते हैं। वर्तमान समय में मनुष्य समय से पहले ही चीजों को प्राप्त कर लेना चाहता है इसलिए वह प्रत्येक कार्य जल्दबाजी में करता है। लोग जल्दबाजी में ही सड़क पार करते हैं। कुछ दिन पूर्व ही सड़क पर रोड पार करने में पाँच लोग काल के ग्रास बन गए। यह घटना उस वक्त की है जब वे लोग जल्दबाजी में लाल बत्ती का ध्यान किए बिना ही सड़क के दूसरी ओर जाने के लिए भागकर सड़क के उस पार जाने लगे। तभी तीव्र गति से आते ट्रक से वे टकरा गए और मौके पर ही उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना से यह बात सिद्ध होती है कि जिन्हें जल्दी थी, वे चले गए। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में कभी भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जल्दबाजी का परिणाम कभी-कभी अच्छा नहीं होता है। ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस जीवन का हमें उचित प्रकार से प्रयोग करना चाहिए ताकि यह जीवन किसी के काम आ सके।

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प्रश्न 2.
अपने क्षेत्र के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, उनके चिकित्सकों और सहायक कर्मचारियों को कोरोना काल में उनके द्वारा किए गए कार्यों की प्रशंसा और सरहाना करते हुए एक पत्र लिखिए। (5 × 1 = 5)
अथवा
बस चालकों की असावधानी से हो रही दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए किसी समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर:
परीक्षा भवन,
दिल्ली। दिनांक 18 जनवरी, 20XX
सेवा में,
मुख्य चिकित्सा अधिकारी,
नगर निगम दिल्ली।

विषय कोरोना काल में कर्मचारियों के कार्यों की प्रशंसा एवं सराहना हेतु पत्र।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मैं अंकित द्विवेदी, उत्तरी दिल्ली का निवासी हूँ। इस पत्र के माध्यम से मैं आपके तथा आपके चिकित्सकों और सहायक कर्मचारियों के द्वारा कोरोना काल में किए गए कार्यों की प्रशंसा और सराहना करना चाहता हूँ। कोरोना काल के समय देश में आपदाग्रस्त स्थिति थी। ऐसे में जब कोरोना ग्रस्त मरीज से अपने ही परिवार के सदस्य स्वयं उससे दूर रहना चाहते थे तब डॉक्टरों और सहायक कर्मचारियों ने साहसपूर्ण कार्य किया। उन्होंने कोरोना ग्रस्त मरीजों का विशेष ध्यान रखा। अस्पताल के चिकित्सकों द्वारा मरीजों को उचित चिकित्सा प्रदान की गई और साथ ही सहायक कर्मचारियों द्वारा मरीजों को समय पर भोजन तथा दवाइयाँ दी गईं तथा साथ ही मरीजों का उत्साहवर्द्धन भी किया गया। यह कार्य वास्तव में सराहनीय रहा।

मैं पूरे क्षेत्र की ओर से मुख्य चिकित्सा अधिकारी, उनके चिकित्सकों और सहायक कर्मचारियों के कार्यों की प्रशंसा तथा सराहना करता हूँ। साथ ही उन्हें पुरस्कृत करने का निवेदन भी करता हूँ ताकि सभी को उनसे प्रेरणा मिल सके। इस कार्य के लिए एक बार फिर से आपको बधाई।
धन्यवाद।
भवदीया
अंकित द्विवेदी
निवासी
(उत्तर दिल्ली)

अथवा

परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 19 जनवरी, 20XX
सेवा में,
मुख्य संपादक महोदय,
दैनिक जागरण,
दिल्ली।

विषय बस चालकों की असावधानी से हो रही दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए पत्र।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मैं ओजस शर्मा आपके समाचार-पत्र का नियमित पाठक हूँ। इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान बस चालकों की असावधानी से हो रही दुर्घटनाओं की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। आशा करता हूँ कि आप इस पत्र को अपने समाचार-पत्र में अवश्य स्थान देंगे। यह बहुत ही दुःखद एवं चिंता का विषय है कि बस चालकों की असावधानी के कारण प्रतिदिन दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। बस चालक चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो चाहे निजी क्षेत्र से संबंधित हो, कोई भी यातायात के नियमों का पालन नहीं करता है। वे बसों की निर्धारित गति-सीमा से बहुत तेज बसें चलाते हैं जिसके कारण वे किसी अन्य वाहन से टकरा जाते हैं और दुर्घटनाएं हो जाती हैं। इतनी तेज गति से बस चलाते चालक लाल बत्ती भी पार कर जाते हैं जिसके कारण सड़क दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। बस चालकों की मनमानी के कारण आम जनता को परेशानी झेलनी पड़ती है। कहीं पर तो ये सड़क दुर्घटनाएँ इतनी भीषण होती हैं कि कई लोगों की मृत्यु तक हो जाती है। अत: सरकार तथा संबंधित अधिकारी से निवेदन है कि शीघ्र ही बस चालकों के प्रति कोई ठोस कदम उठाएँ ताकि भविष्य में इस प्रकार की दुर्घटनाओं को कम किया जा सके।
धन्यवाद।
भवदीया
ओजस शर्मा

प्रश्न 3.
(i) कहानी की परिभाषा बताते हुए इसके तत्त्वों के नाम लिखिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
नाटक में अभिनय और संवाद योजना के महत्त्व को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
किसी घटना, पात्र या समस्या की क्रमबद्ध जानकारी जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास हो, चरम उत्कर्ष का बिंदु हो, उसे कहानी कहा जाता है। परिभाषा “कहानी वह विधा है जो लेखक के किसी उद्देश्य, किसी एक मनोभाव; जैसे-उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास सब कुछ उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं।

कहानी के कुछ विशेष तत्त्व होते हैं जो कहानी में रस भरते हैं। कहानी लेखक के छ: तत्त्व निम्नलिखित हैं

  1. कथावस्तु
  2. चरित्र-चित्रण
  3. कथोपकथन या संवाद
  4. देशकाल
  5. भाषा-शैली
  6. उद्देश्य

अथवा

नाटक में अभिनय और संवाद योजना का महत्त्व नाटक में अभिनय सबसे प्रभावशाली तत्त्व है। अभिनय को रंगमंच भी कहा जाता है। नाटक अभिनय के लिए ही लिखे जाते हैं। सफल नाटक वही माना जाता है जिसका अभिनय या मंचन किया जा सके। अभिनय के माध्यम से ही नाटक दर्शकों तक सरल रूप में पहुँचता है। अत: अभिनय नाटक का प्राण तत्त्व है। नाटक में इसका बहुत अधिक महत्त्व होता है।

संवाद नाटक का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सबसे सशक्त माध्यम उसके संवाद हैं। संवाद ही वह तत्त्व है जो एक सशक्त नाटक को अन्य कमजोर नाटकों से अलग करता है। संवाद जितने सहज और स्वाभाविक होंगे उतना ही दर्शक के मर्म को छुएँगे। संवादों के माध्यम से ही कथा आगे बढ़ती है। नाटक के संवाद सरल, सहज, स्वाभाविक एवं पत्रानुकूल होने चाहिए।

(ii) रेडियो नाटक की अवधि छोटी क्यों रखी जाती है? (2 × 1 = 2)
अथवा
कहानी में क्लाइमेक्स का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रेडियो नाटक की अवधि छोटी इसलिए रखी जाती है, क्योंकि रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है। रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न तथा मुश्किल भी होता है। इसमें संवादों को ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। यहाँ न तो मंज सज्जा, वस्त्र सज्जा होती है और न ही अभिनेता के चेहरे की भाव भंगिमा। केवल आवाज के माध्यम से ही नाटक को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें मनुष्य की एकाग्रता सीमित होती है।

अथवा

कहानी में क्लाइमेक्स अर्थात् चरमोत्कर्ष का बहुत महत्त्व होता है। कहानी का चरमोत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लेखकीय पक्षधर की ओर आने के लिए प्रेरित करता है। इसमें कहानी के उद्देश्य की अभिव्यक्ति होती है। कहानी के चरमोत्कर्ष का चित्रण अत्यंत सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि भावों या पात्रों के अतिरिक्त अभिव्यक्ति चरम उत्कर्ष के प्रभाव को कम कर सकती है।

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प्रश्न 4.
(i) समाचार लेखन की रचना प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
फ़ीचर कैसे लिखा जाता है?
उत्तर:
समाचार लेखन की प्रक्रिया समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के अंतर्गत लिखे गए समाचारों को सुविधा की दृष्टि से निम्न तीन भागों में विभाजित किया जाता है

  1. इंट्रो या मुखड़ा समाचार के इस काल में सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्यों, सूचनाओं एवं जानकारी को लिखा जाता है। इस प्रकार प्रथम पैराग्राफ में दी जा रही जानकारी को इंट्रो या मुखड़ा कहा जाता है। इंट्रो में समाचार के संबंध में क्या, कहाँ, कब और कौन इन चार प्रश्नों के उत्तर देना आवश्यक होता है।
  2. बॉडी या क्लेवर इसे बॉडी या समाचार का क्लेवर (Body of the Story) कहा जाता है। समाचार के इस भाग में छ: ककारों में से दो ककारों क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है।
  3.  समापन समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि न केवल उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गए हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारत्म्यता भी होनी चाहिए। समाचार में तथ्यों तथा उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिए कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायता मिले।

अथवा

फीचर लिखते समय फीचर के क्रम व तत्त्वों को ध्यान में रखा जाता है जिनका वर्णन निम्न प्रकार है फीचर लेखन का क्रम फीचर लेखन का क्रम निम्नलिखित है

  • शीर्षक
  • आमुख या भूमिका
  • विषय का विस्तार या विवेचन
  • निष्कर्ष या समापन

फीचर लेखन के तत्त्व किसी भी फीचर लेखन के निम्नलिखित तत्त्व होते हैं

  • कल्पना विषय का निर्धारण कर लेने के पश्चात् फ़ीचर लेखक विषयानुरूप कल्पनाएँ करता है। कल्पना के द्वारा कुछ नया एवं मौलिक प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है।
  • तथ्य चूँकि तथ्यों के आधार पर ही बात कही जाती है, इसलिए तथ्यों की प्रस्तुति मनोरंजक, सरस एवं रोचक होनी चाहिए। फ़ीचर में सत्य एवं तथ्य के साथ रचनात्मकता का विशिष्ट समावेश होता है।
  • लेखन कला वास्तव में, फ़ीचर चिंतन का तथ्यात्मक एवं रचनात्मक प्रस्तुतीकरण है। इसमें सरल, संक्षिप्त, सरस एवं रोचक शब्दों का प्रभावी ढंग से प्रयोग किया जाता है। अपनापन लिए हुए इसकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों एवं सूक्तियों का सही एवं सार्थक प्रयोग किया जाना चाहिए।

(ii) समाचार और फ़ीचर में मुख्य अंतर क्या होता है? (2 × 1 = 2)
अथवा
समाचार लेखन के छ: ककार कौन-से हैं?
उत्तर:
समाचार और फ़ीचर लेखन में अंतर समाचार और फ़ीचर लेखन में प्रमुख प्रस्तुतीकरण की शैली और विषय-वस्तु के आकार का है। समाचार उल्टा पिरामिड शैली के आधार पर लिखा जाता है जिसमें किसी विषय या घटना को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है जबकि फ़ीचर उल्टा पिरामिड शैली के आधार पर नहीं लिखा जाता है। साथ ही इसमें घटना या विषय का विस्तार से वर्णन किया जाता है।

अथवा

किसी भी समाचार के छ: आधारभूत सवाल होते हैं, जिन्हें हिंदी में छः ‘ककार’ कहा जाता है तथा अंग्रेजी में पाँच (5) डब्ल्यू (w) एवं एक एच (H) कहा जाता है। किसी भी समाचार में इन छ: ककारों का होना सामान्यतया आवश्यक माना जाता है। ये ककार निम्न हैं
(a) क्या (What) अर्थात् क्या घटित हुआ?
(b) कब (When) अर्थात् घटना कब घटी?
(c) कहाँ (Where) अर्थात् घटना किस स्थान पर घटी यानि किस स्थान से संबंधित है?
(d) कौन (Who) अर्थात् घटना किससे संबंधित है?
(e) क्यों (Why) अर्थात् घटना क्यों घटी?
(f) कैसे (How) अर्थात् घटना कैसे घटित हुई?

पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 [20 अंक]

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(i) शमशेर की कविता ‘उषा’ गाँव के जीवन का जीवांत चित्रण है। पुष्टि कीजिए। (3)
उत्तर:
शमशेर की कविता ‘उषा’ गाँव के जीवन का जीवंत चित्रण है। इस कविता में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने ग्रामीण उपमानों का प्रयोग कर गाँव की सुबह को गतिशील शब्द चित्र के माध्यम से सामने लाने का प्रयास किया है। कविता में नीले रंग के प्रात:कालीन आकाश को ‘राख से लीपा हुआ चौका’ कहा गया है। ग्रामीण परिवेश में ही गहिणी भोजन बनाने के बाद चौके (चल्हे) को राख से लीपती है, जो प्रायः काफ़ी समय तक गीला ही रहता है। दूसरा बिंब काले सिल का है। काला सिल अर्थात् पत्थर के काले टुकड़े पर केसर पीसने का काम भी गाँव की महिलाएँ ही करती हैं। तीसरा बिंब काले स्लेट पर लाल खड़िया या चॉक मलने की क्रिया नन्हे ग्रामीण बालकों द्वारा होती है। इस बिंबात्मक चेतना में गतिशील शब्द चित्र भी मौजूद हैं। यहाँ सवेरे अपने-अपने कार्यों में लगे ग्रामीण वर्ग तथा जनजीवन की गतिशीलता को स्पष्ट करने वाले प्रतिमान हैं। यहाँ स्थिरता का नामोनिशान नहीं है।

(ii) ‘कवितावली’ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास को अपने समय की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की समझ थी। (3)
उत्तर:
कवितावली में उद्धृत पदों के अंतर्गत यह स्पष्ट हो जाता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की अच्छी समझ थी। तुलसीदास मानवीय संवेदना के कवि थे। उन्होंने युगीन चेतना का सुंदर समावेश काव्य में किया है। वे संत होते हुए भी जनता की पीड़ा से वाकिफ़ थे। उन्हें समाज में व्याप्त गरीबी, बेकारी तथा भुखमरी का ज्ञान था। किसान, मजदूर, बनिक (बनिया) इत्यादि वर्गों की जीविका के ह्रास को कवि ने देखा था। इसमें भयंकर बेकारी तथा भूख का चित्रण सामने आया है। ‘पेट की आग’ का असर सभी व्यक्तियों पर स्पष्ट रूप से नज़र आता था। काम न मिलने की विवशता में लोग ऊँच-नीच कर्म कर रहे थे तथा धर्म-अधर्म पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा था। इस प्रकार, तुलसीदास ने अपने युग की आर्थिक-सामाजिक विषमता को ठीक से समझा था।

(iii) फ़िराक की गज़ल में अपना परदा खोलने से क्या आशय है? (3)
उत्तर:
शायर ऐसे लोगों की चर्चा करता है, जो दूसरों को बदनाम करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। वह मानता है कि ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि वे जो कर रहे हैं, उसका क्या प्रभाव हो रहा है? जो दूसरों की निंदा करते हैं, उनका ओछा व्यक्तित्व भी लोगों के सामने आ जाता है अर्थात् उनके स्वयं के परदे का अनावरण हो जाता है। लोग निंदा करने वाले लोगों से दूरी बनाने लगते हैं। शायर मानता है कि दूसरों की बदनामी करने से पहले निंदा करने वाले को इस पर विचार करना चाहिए।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 3 = 9)
(i) जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक अंग न मानने के पीछे डॉ. आंबेडकर के क्या तर्क थे? (3)
उत्तर:
जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप मानने से डॉ. आंबेडकर इनकार करते हैं। उनके अनुसार यह विभाजन अस्वाभाविक है, क्योंकि
(a) यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।
(b) इसमें व्यक्ति की क्षमता की उपेक्षा की जाती है।
(c) यह केवल माता-पिता के सामाजिक स्तर का ध्यान रखती है।
(d) व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसका श्रम विभाजन होना अनुचित है।
(e) जाति-प्रथा व्यक्ति को जीवनभर के लिए एक ही व्यवसाय से बाँध देती है। व्यवसाय उपयुक्त हो या अनुपयुक्त, व्यक्ति को उसे ही अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है।
(f) विपरीत परिस्थितियों में भी पेशा बदलने की अनुमति नहीं दी जाती, भले ही भूखा क्यों न मरना पड़े?

(ii) नमक कहानी में नमक की पुड़िया इतनी महत्त्वपूर्ण क्यों हो गई थी? कस्टम अधिकारी उसे लौटाते हुए भावुक क्यों हो । उठा था? (3)
उत्तर:
‘नमक’ कहानी में नमक की पुड़िया का विशेष महत्त्व था, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच आरोपित भेदभाव के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद व्याप्त है। कहानी में सीमा के दोनों तरफ़ के विस्थापित पुनर्वासित जनों की मार्मिक व्यथा है। नमक जैसी छोटी-सी चीज़ का प्रतीकार्थ दोनों तरफ़ के लोगों के बीच की मुहब्बत को प्रमाणित करता है। नमक प्रेम-मुहब्बत का प्रतीक है, क्योंकि नमक के स्वाद में अपनापन है। यहाँ नमकीन स्वाद से प्रेम, मुहब्बत का तात्पर्य है। कस्टम अधिकारी एक संवेदनशील व्यक्ति था। अतः वह लेखिका को नमक की पुड़िया लौटाते हुए भावुक हो उठा। वह यह जानता था कि अपनों से मिलना-बिछुड़ना वही महसूस कर सकता है, जो मिलता और बिछुड़ता रहता है, अन्य कोई नहीं।

(iii) बाबा भीमराव आंबेडकर के अनुसार उनकी कल्पना का आदर्श समाज कैसा होना चाहिए? अपने शब्दों में अभिव्यक्त कीजिए। (3)
उत्तर:
डॉ. आंबेडकर के अनुसार उनकी कल्पना का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता और भ्रातृता अर्थात् भाईचारे पर आधारित है। उनके अनुसार, ऐसे समाज में सभी के लिए एक जैसा मापदंड तथा उनकी रुचि के अनुसार कार्यों की उपलब्धता होनी चाहिए। सभी व्यक्तियों को समान अवसर एवं समान व्यवहार उपलब्ध होना चाहिए। उनके आदर्श समाज में जातीय भेदभाव का तो नामोनिशान ही नहीं है। इस समाज में करनी पर बल दिया गया है, कथनी पर नहीं।

(iv) ‘ढोल में तो जैसे पहलवान की जान बसी थी।’ ‘पहलवान की ढोलक पाठ के आधार पर तर्क सहित पंक्ति को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
वास्तव में, ढोल में तो पहलवान की जान बसी थी, क्योंकि ढोल की आवाज़ सुनते ही लुट्टन पहलवान में एक नए उत्साह एवं नई शक्ति का संचार हो जाता था। वह इसी शक्ति के बल पर दंगल जीत जाता था। उसका ढोल में एक गुरु के जैसा ही विश्वास था। ढोल के साथ उसकी श्रद्धा जुड़ी थी। वह यह भी मानता था कि ढोल की आवाज़ गाँव वालों में भी उत्साह का संचार कर देगी, जिससे वे महामारी का डटकर सामना कर सकेंगे। मौत के सन्नाटे को चीरने एवं उसके भय को समाप्त करने के लिए ही वह रात में ढोल बजाया करता था। इससे गाँव वालों में एक नई जिजीविषा पैदा होती थी। गाँव वालों में जीने की इसी इच्छा को उत्पन्न करने एवं बनाए रखने के लिए वह अपने बेटों की मृत्यु के उपरांत भी ढोल बजाता रहा। यह गाँव वालों के प्रति उसकी परोपकार की भावना थी। साथ-ही-साथ ढोल बजाकर ही वह अपने बेटों की मृत्यु के सदमे को झेलने की शक्ति भी प्राप्त कर रहा था।

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 1 with Solutions

प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(i) ऐन फ्रैंक की डायरी किट्टी को ही संबोधित करके क्यों लिखी गई है? यह डायरी किसी अपने को भी संबोधित कर सकती थी। तर्क सहित उत्तर दीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
मोहनजोदड़ो की सभ्यता को लो-प्रोफाइल सभ्यता क्यों माना गया है?
उत्तर:
ऐन फ्रैंक की डायरी किट्टी को संबोधित करके लिखी गई, क्योंकि ऐन एक संवेदनशील लड़की है। 13 वर्ष की उम्र में ही उसे दुःख बाँटने के लिए किसी साथी की आवश्यकता पड़ने लगी, परंतु अपने मन की बात किससे कहे? अब तक उसे ऐसा कोई मिला ही नहीं, जिससे वह अपने मन की बात कह सके। इसलिए उसने एक सुंदर तरीका ढूँढ निकाला। वह था अपनी प्यारी निर्जीव गुड़िया ‘किट्टी’ को संबोधित कर डायरी लिखना। लोग ऐन को घमंडी और अक्खड़ समझते थे और सब लोग ऐन के प्रति उपदेशात्मक व्यवहार ही रखते थे। पीटर को ऐन अच्छा दोस्त समझती थी तथा उसे प्यार भी करती थी, लेकिन पीटर ने कभी उसके मन में झाँकने की कोशिश ही नहीं की। सभी सवालों का हल ऐन ने डायरी लिखकर खोज निकाला। इससे ऐन का एकाकीपन भी दूर हो गया। यदि कोई ऐसा होता जो ऐन को उसके मन की गहराइयों तक समझ पाता. तो शायद ऐन को कभी डायरी लिखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, परंतु ऐसा न हो सका। इसलिए ऐन ने अपनी निर्जीव गुड़िया ‘किट्टी’ को ही अपना सहारा बनाकर अपनी भावनाओं को डायरी में व्यक्त कर दिया।

अथवा

कला की दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता अत्यंत समृद्ध थी। इस सभ्यता के लोगों में कला के प्रति समृद्ध दृष्टि तत्कालीन मनुष्यों की दैनिक प्रयोग की वस्तुओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है; जैसे-वहाँ की वास्तुकला तथा नियोजन, धातु एवं पत्थर की मूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन एवं उन पर बने चित्र, वनस्पति एवं पशु-पक्षियों की छवियाँ, मुहरें, उन पर उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण, सुघड़ लिपि आदि तत्कालीन समय में विद्यमान हड़प्पा सभ्यता के सौंदर्यबोध को व्यक्त करती हैं। वहाँ भव्य राजमहल, मंदिरों या समाधियों के अवशेष नहीं मिलते। भवनों में आकार की विशालता एवं भव्यता मौजूद नहीं है। कोई भी ऐसी मूर्ति या चित्र उपलब्ध नहीं हुआ है, जिसमें प्रभुत्व या दिखावे के तेवर व्याप्त हों। कहने का आशय यह है कि हड़प्पा सभ्यता कला की दृष्टि से अत्यधिक समृद्ध तो थी, लेकिन यह कला-सौंदर्य राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाज पोषित थी अर्थात् कहा जा सकता है कि मोहनजोदड़ो की सभ्यता लो प्रोफाइल सभ्यता थी।

(ii) “काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफसोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला।” ऐन फ्रैंक की इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
सिंधु सभ्यता के केंद्र में समाज था, राजा या धर्म नहीं ! सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
ऐन की डायरी से पता चलता है कि ऐन एक साधारण लड़की थी। वह अपने आपसे ही बातें किया करती है, क्योंकि उसकी भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं है। वह अपने मन की बात करने के लिए अपनी गुड़िया किट्टी को चुनती है। यदि उसकी बात समझने वाला कोई व्यक्ति होता, तो शायद ऐन को डायरी लिखने की आवश्यकता ही न पड़ती। हर विषय के लिए वह अपने ही मन में तर्क करके अपनी धारणा बनाती है। फिर चाहे वह नारी की स्थिति हो या फिर मिस्टर डसेल का व्यक्तित्व, उसकी अपनी सोच है, उसका अपना विश्लेषण है, जिसे वह किसी से कह नहीं पाती और उसे व्यक्त करने के लिए अपनी डायरी का सहारा लेती है। इसलिए यह कहना उचित ही है कि यदि कोई उसकी बातों को सुनने या समझने वाला होता, तो शायद ऐन को डायरी लिखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।

अथवा

मुअनजो-दड़ो की सभ्यता साधन संपन्न थी। यहाँ के लोगों की रुचि कला से जुड़ी होती थी। यहाँ पर पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्भांड, पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, खिलौने, केश विन्यास, आभूषण इत्यादि सिंधु सभ्यता को तकनीकी रूप से अधिक सिद्ध होने की अपेक्षा उसके कला प्रेम को अधिक दर्शाते हैं। यह सभ्यता धर्म तंत्र या राज तंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महलों, उपासना स्थलों आदि का निर्माण नहीं करती थी। सिंधु सभ्यता समाज पोषित संस्था का समर्थन करती थी। सभ्यता में आडंबर को स्थान नहीं दिया गया था, अपितु चारों ओर से सुंदरता ही दिखाई देती थी। समाज में सौंदर्य बोध था, न कि कोई राजनीतिक या धार्मिक आडंबर। सभ्यता के केंद्र में समाज को प्रथम स्थान दिया गया है। इसमें न किसी राजा का प्रभाव था और न ही किसी धर्म विशेष का। इतना अवश्य है कि कोई-न-कोई राजा अवश्य रहा होगा, लेकिन यह सभ्यता राजा पर आश्रित नहीं थी। इन्हीं बातों के आधार पर हम कह सकते हैं कि “सिंधु सभ्यता राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर पूरी तरह से समाज-पोषित थी।