Refer to the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 6 वसंत आया, तोड़ो to develop Hindi language and comprehension skills among the students.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 6 वसंत आया, तोड़ो
Class 12 Hindi Chapter 6 Question Answer Antra वसंत आया, तोड़ो
(क) वसंत आया
प्रश्न 1.
वसंत आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली ?
उत्तर :
वसंत के आने की सूचना कवि को कैलेंडर से मिली थी, जिसमें यह लिखा था कि किस महीने के किस दिन वसंत-पंचमी होगी। इस दिन कवि के कार्यालय में अवकाश भी था। इससे भी उसे पता चला कि वसंत आ गया है।
प्रश्न 2.
‘कोई छह बजे सुबह …….. फिरकी सी आई, चली गई’ पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि वसंत ऋतु के आने पर प्रात:काल की हवा अत्यंत स्वच्छ, शीतल और सुरंधित होती है। उसके मंद-मंद झोंके मन को बहुत सुखद प्रतीत होते हैं। वह देर तक नहीं रहती है। सूर्य के तेज़ होने के साथ ही उसकी शीतलता भी कम हो जाती है। इसलिए कवि ने वसंत की प्रात:कालीन स्वच्छ, शीतल और सुरंधित वायु का आना फिरकी के समान माना, है जो आकर शीघ्र ही चली जाती है।
प्रश्न 3.
वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों ?
अथवा
वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने के प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों? वसंत कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर :
वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने दफ्पर में उस दिन छुट्टी होने का बताया है। दफ्कर में छुट्टी वसंत-पंचमी के अवसर पर हुई थी। इसलिए कवि को लगा कि अब वसंत आ गया है। कवि के कैलेंडर में भी उस दिन वसंत-पंचमी लिखी हुई थी। प्रकृति के परिवर्तनों को स्वयं नहीं परख सकने के कारण दफ़तर में हुई छुट्टी को ही वह वसंत के आगमन का प्रमाण मानता है।
प्रश्न 4.
‘और कविताएँ पढ़ते रहने से ………आम बौर आवेंगे – में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि कहता है कि आधुनिक जीवन-शैली में हमें ऋतु-परिवर्तन के कारण प्रकृति में आए बदलाव को देखने का समय ही नहीं है। हमें कविताएँ पढ़कर ही पता चलता है कि वसंत में ढाक के जंगल कैसे दहकते हैं तथा आम पर बौर कैसे आते हैं। इस प्रकार कवि ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो प्रकृति के परिवर्तनों को अनदेखा करते हैं तथा शब्दजाल बुनकर प्रकृति का गुणगान करते हैं।
प्रश्न 5.
अलंकार बताइए –
(क) बड़े-बड़े पियराए पत्ते
(ख) कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो
(ग ) खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई
(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
उत्तर :
(क) पुनरुक्तिप्रकाश और अनुप्रास अलंकार।
(ख) उत्प्रेक्षा और मानवीकरण अलंकार।
(ग) मानवीकरण और उपमा अलंकार।
(घ) पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार।
प्रश्न 6.
किन पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक साँदर्य की अनुभूति से वंचित है ?
उत्तर :
‘और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम और आवेंगे।’
प्रश्न 7.
‘प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आदिकाल से ही प्रकृति के साथ मनुष्य का गहरा संबंध रहा है। मनुष्य ने प्रकृति की गोद में जन्म लिया और उसी से उसने अपने भरण-पोषण की सामग्री भी प्राप्त की। प्रकृति ने मानव-जीवन को संरक्षण प्रदान किया। हिंसक पशुओं से बचने के लिए वह ऊँचे-ऊँचे वृक्षों का सहारा लेता था और वृक्षों के मीठे-रसीले फल खाकर अपनी भूख मिटाता था। सूर्य की तीव्र गर्मी से वृक्षों की शीतल छाया ही उसे बचाती थी। आज भी वर्षा प्राणी जगत में नव-जीवन का संचार करती है तो वसंत की मादकता उसे मदमस्त कर देती है।
इस प्रकार प्रकृति सदा मनुष्य की सहचरी बनी रही है। परंतु आज के इस भौतिकतावादी युग में मनुष्य ने औद्योगिक विकास की धुन में प्रकृति के साथ अपना सामंजस्य समाप्त कर दिया है। जंगलों की अंधारुंध कटाई ने सारा ॠतु-चक्र ही बदल दिया है। पेट्रोलियम पदार्थों के अधिक प्रयोग ने वातावरण को इतना अधिक प्रदूषित कर दिया है कि साँस लेना भी कठिन हो गया है। इन सब कारणों से बाढ़, भूकंप, सूखा आदि की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
प्रश्न 8.
‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है ? उसका प्रतिपाद्य लिखिए।
अथवा
‘वसंत आया’ कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘वसंत आया’ शीर्षक कविता के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि कवि ने मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली पर व्यंग्य किया है ?
उत्तर :
‘वसंत आया’ कविता में कवि की मुख्य चिंता यह है कि मनुष्य का प्रकृति से नाता टूटता जा रहा है। उसे ॠतु-परिवर्तन का ज्ञान प्राकृतिक परिवर्तनों से न होकर कैलेंडर से देखकर होता है कि अमुक दिन, तिथि, माह में कौन-सी ऋतु चल रही है। प्रकृति में अब भी निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं जैसे वसंत के आगमन पर पत्तों का झड़ना, नई कोंपलों का फूटना, सुगंधित मंद-समीर का बहना, ढाक के जंगलों का दहकना, कोयल की कूक, भँवरे की गुंजार आदि, परंतु आज के मनुष्य की दृष्टि इन प्राकृतिक परिवर्तनों को नहीं देख पाती और वह कैलेंडर देखकर ही जान पाता है कि आज वसंत-पंचमी है।
(ख) तोड़ो
प्रश्न 1.
‘पत्थर’ और ‘ चट्टान’ शब्द किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर :
कवि ने ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्दों का प्रयोग उन बाधाओं के लिए किया है जो सुजन के मार्ग में बाधक बन जाती हैं। इन्हें नष्ट करके तथा तोड़कर ही नव-निर्माण किया जा सकता है। खेत से पत्थर, कंकड़ आदि निकालने पर ही खेत उपजाक बनता है। इसी प्रकार से साहित्यकार रूढ़ियों के बंधनों से मुक्त होकर ही श्रेष्ठ साहित्य की रचना कर सकता है।
प्रश्न 2.
कवि को धरती और मन की भूमि में क्या-क्या समानताएँ दिखाई पड़ती हैं ?
उत्तर :
कवि ने धरती को उपजाऊ बनाने के लिए चट्टानों और पत्थरों को तोड़ने व ऊसर और बंजर को समतल करने की आवश्यकता बताई है। परती को खेत में बदलने के लिए इन सबको तोड़ना आवश्यक है। इसके बाद ही खेत की मिट्टी रस-युक्त होकर बीज को अंकुरित करने में सहायक सिद्ध होती है। इसी प्रकार से कवि मन की ऊब तथा खीज से मुक्त करने की बात कहता है, क्योंकि इससे सृजन में बाधा उत्पन्न होती है। इन्हें दूर करने से ही मन रस-सिक्त होकर सृजन में लीन हो जाता है।
प्रश्न 3.
भाव-साँदर्य स्पष्ट कीजिए –
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डलें इस अपने मन की खीज को ?
गोड़ा गोड़ो गोड़े।
उत्तर :
कवि कहता है कि जिस प्रकार मिट्टी को अच्छी प्रकार से जोतने से उसमें रस आ जाता है और वह बीज के अंकुरित होने में सहायक हो जाती है, उसी प्रकार से जब हम अपने मन में व्याप्त खीज को नष्ट कर देंगे तो निर्मल मन में श्रेष्ठ सृज़न हो सकेगा। व्यर्थ की काट-छाँटकर नष्ट कर देने से ही नव-निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो सकती है।
प्रश्न 4.
कविता का आरंभ ‘ तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया।
उत्तर :
कवि ने ऐसा इसलिए किया है कि पहले वह चाहता है कि नवनिर्माण करने से पूर्व जो निरर्थक, व्यर्थ तथा बाधक तत्व हैं उन्हें नष्ट कर दिया जाए। प्रत्येक नवनिर्माण से पूर्व पुराने को तोड़ना ही पड़ता है, इसलिए कवि ने कविता के प्रारंभ में ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ शब्दों का प्रयोग किया है। जब तोड़ने का कार्य पूरा हो जाता है तो नव-निर्माण प्रारंभ हो जाता है। इसी सृजन को महत्वपूर्ण तथा सफल बनाने के लिए कवि ने ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ शब्दों का प्रयोग किया है।
प्रश्न 5.
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें
यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जब तक धरती कंकड़, पत्थर, चट्टानों आदि से ढकी रहती है, उसकी रसीली शक्ति को हम पहचान नहीं सकते हैं। इन सबके टूटने से ही परती भूमि खेत में बदल जाती है। उसकी मिट्टी का रसीलापन बीज को पोषण देकर उसे अंकुरित होने में सहायता देता है। इसलिए जब तक धरती अपने इन बाह्य आवरणों से मुक्त नहीं होगी तभी उसकी आंतरिक शक्ति को हम पहचान नहीं सकते।
प्रश्न 6.
‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जब कवि का मन ऊब और खीज से ग्रस्त होता है तो वह सार्थक साहित्य की रचना भी नहीं कर सकता। उसके गीत आधे-अधूरे निष्प्राण से प्रतीत होते हैं। मन की ऊब और खीज को मिटाकर ही वह सार्थक रचना कर सकता है।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
वसंत ॠतु पर किन्हीं दो कवियों की कविताएँ खोजिए और इस कविता से उनका मिलान कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
भारत में ऋतुओं का चक्र बताइए और उनके लक्षण लिखिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 3.
मिट्टी और बीज से संबंधित और भी कविताएँ हैं, जैसे सुमित्रानंदन पंत की ‘बीज’। अन्य कवियों की ऐसी कविताओं का संकलन कीजिए और भित्ति पत्रिका में उनका उपयोग कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 6 वसंत आया, तोड़ो
कथ्य पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न 1.
रघुवीर सहाय की कविता का वैचारिक-पक्ष स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रघुवीर सहाय की कविताओं में वैचारिक दृष्टि से सहज विकास दिखाई पड़ता है। रघुवीर सहाय की प्रारंभिक रचनाएँ में सहज भावना, विस्मय, उत्साह, उत्सुकता से भरपूर थीं। प्रकृति, प्रेम और जीने की तीव्र इच्छा के साथ-साथ मनुष्य होने का हर्ष, सुख और तनाव भी इसकी कविता में अंकित है। इनकी कविताएँ कुछ आदिम से लगते संबंधों और उनके विकल होकर बदलने की सुंदरता को भी अंकित करती है। समय के साथ-साथ उनकी सामाजिक, राजनीतिक समझ विकसित होती गई और उन्होंने यह जान लिया कि मानव की नियति बदलने के लिए तंत्र को बदलना होगा। उनकी परवर्ती कविताओं में राजनीतिक सरोकार बढ़ता चला गया। रघुवीर सहाय की विशेषता यह है कि वे राजनीतिक कथ्य को भी संवेदनात्मक स्तर पर पहुँचा देते हैं।
प्रश्न 2.
कवि मन में व्याप्त ऊब तथा खीझ को तोड़ने की बात क्यों कहता है ?
उत्तर :
कवि सृजन के लिए मन में व्याप्त ऊब तथा खीझ को तोड़ने की बात कहता है क्योंकि ऊब तथा खीझ सृजन के मार्ग में बाधक होती हैं। इनसे मन की भावनाएँ एकाग्र नहीं होतीं तथा विपरीत दिशाओं में भटकती रहती हैं।
प्रश्न 3.
वसंत आगमन से प्रकृति में क्या परिवर्तन दृष्टिगोचर हुआ ?
उत्तर :
वसंत के आगमन से अशोक के वृक्षों पर चिड़िया कुहुकने लगी। ऊँचे-ऊँचे वृक्षों के पत्ते झड़ने लगे। हवा शुद्ध, स्वच्छ और सुगंधित हो गई। ढाक के जंगल दहकने लगे। आम के वृक्षों पर बौर आने लगा। इंद्रलोक का नंदन वन भी विभिन्न रंगों के फूलों के रस और गंध से महक उठा। भँवरे मस्त होकर फूलों पर गुँजार करने लगे और कोयल कूकने लगी।
प्रश्न 4.
वसंत वातावरण को मदमस्त कैसे बना देता है ?
उत्तर :
वसंत के आने से चहुँ ओर फूल खिलने लगते हैं। आम पर बौर आने लगता है। मंद-मंद सुगंधित हवा चलने लगती है। फूलों की भीनी-भीनी सुगंध सारे वातावरण में फैल जाती है। भँवरे मदमस्त होकर फूलों पर गुँजार करते हुए उनका रसपान करने लगते हैं। कोयल मस्त होकर मधुर-मधुर कूकने लगती है। इस प्रकार वसंत वातावरण को मदमस्त बना देता है।
प्रश्न 5.
कवि के मतानुसार दूब किस कारण उगती है ?
उत्तर :
कवि के मतानुसार मिट्टी में अनूठा रस होता है उसी रस के कारण मिट्टी में दूब उगती है।
प्रश्न 6.
‘तोड़ो’ कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर :
तोड़ो कविता से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें सृजन के मार्ग में आने वाली पत्थर, चट्टानों अर्थात् बाधाओं को नष्ट कर देना चाहिए। साथ ही झूठे बंधनों और रूढ़ियों को तोड़ देना चाहिए। नवनिर्माण के लिए संपूर्ण बाधाओं और कठिनाइयों का मुकाबला करना चाहिए। व्यर्थ और बेकार को छोड़ देना चाहिए और श्रेष्ठ को ग्रहण करना चाहिए।
काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न 1.
रघुवीर सहाय का काव्य-शिल्प स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रघुवीर सहाय का काव्य-शिल्प सहज होते हुए भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। इनकी कविताओं की भाषा आम बोलचाल की है और उसमें खिलवाड़ की प्रवृत्ति है। आंतरिक तुकों का प्रयोग करके वह अभिव्यक्ति को व्यंजक और प्रभावशाली बनाते हैं; जैसे –
‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें
रघुवीर सहाय का काव्य-शिल्प सहज संप्रेष्य भी है और पाठक को चमत्कृत भी करता है। रघुवीर सहाय अपनी काव्य-भाषा को अधिकाधिक संप्रेषणीय बनाने के लिए कहीं-कहीं उर्दू की गति की बैधी शैली का सहारा लेते हैं और कहीं भाषा का अपव्यय भी करते हैं। विचार-वस्तु और भाषा का संबंध सदा बना रहता है। कवि के अनुसार, “विचार-वस्तु का कविता से खून की तरह दौड़ते रहना कविता को जीवन और शक्ति देता है; और यह तभी संभव है जब हमारी कविता की जड़ें यथार्थ में हों।”
प्रश्न 2.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये ऊसर बंजर तोड़ो
ये चरती परती तोड़ो
ये खेत बनाकर छोड़ो
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को ?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो।
उत्तर :
इन पंक्तियों में कवि नव-निर्माण की प्रेरणा देते हुए लिखता है कि अनुपजाऊ, बंजर, ऊसर और परती पड़ी हुई धरती को खोदकर खेती के योग्य बना लो। जब सब बंजर धरती खेत बन जाएगी तो उसकी रस-युक्त मिट्टी उसके अंदर डाले गए बीजों का पोषण करेगी। इससे फसलें लहलहा उठेंगी। कवि कहता है कि इसी प्रकार से हमारा मन जो व्यर्थ में ही ऊब और खीज से भरा हुआ है उसे नष्ट करके मन को सृजनात्मक क्रियाओं की ओर मोड़ो जिससे वह अच्छे साहित्य की रचना कर सके। कवि ने नवनिर्माण की प्रेरणा देते हुए रूढ़ियों को नष्ट करने का आह्वान किया है। भाषा सहज, सरल, देशज शब्दों से युक्त और भावपूर्ण है। पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास तथा प्रश्न अलंकार है। मुक्त छंद की रचना है। उद्बोधनात्मक शैली है।
प्रश्न 3.
‘ऊँचे तरूवर से गिरे बड़े-बड़े पियराए पत्ते
कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो –
खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।’ – अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
- प्रस्तुत अवतरण में कवि रघुवीर सहाय ने वसंत आगमन से प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का चित्रण किया है। मंद, सुगंधित, स्वच्छ और निर्मल हवा का मानवीकरण भी किया है।
- भाषा सहज, सरल, सरस, खड़ी बोली है।
- देशज व तत्सम शब्दावली है।
- कोमलकांत पदावली है।
- मुक्त छंद की अवतारणा है।
- दृश्य-बिंब की योजना हुई है।
- पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास, मानवीकरण, उपमा अलंकारों का सहज एवं सुंदर प्रयोग है।
- माधुर्य गुण एवं शृंगार रस है।
प्रश्न 4.
“तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये ऊसर बंजर तोड़ो
ये चरती परती छोड़ो
सब खेत बनाकर छोड़ो।” अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
- इस अवतरण में रघुवीर सहाय ने मानव को नवनिर्माण की प्रेरणा देते हुए कहा है कि अनुपजाऊ और बंजर भूमि को खोदकर खेती योग्य बना लो।
- भाषा सहज, सरल एवं भावपूर्ण है।
- देशज शब्दावली का प्रयोग है।
- प्रवाहमयता एवं चित्रात्मकता का समावेश है।
- ध्वन्यात्मकता की सृष्टि है।
- उद्बोधनात्मक शैली है।
- मुक्त छंद है।
- पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास की छटा है।