Students can access the CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core with Solutions and marking scheme Term 2 Set 11 will help students in understanding the difficulty level of the exam.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 11 with Solutions
निर्धारित समय : 2 घंटे
अधिकतम अंक : 40
निर्देश :
- निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए।
- इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- इस प्रश्न पत्र में कुल 07 प्रश्न पूछे गए हैं। आपको 07 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।
कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]
प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षकों में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों का एक रचनात्मक लेख लिखिए। (5 × 1 = 5)
- बसंत ऋतु के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन
- मेरी कल्पना का विद्यालय
- मेरा पड़ोसी, मेरा मित्र
उत्तरः
बसंत ऋतु के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन
प्रकृति ने हमारे देश को अनेक वरदान दिए हैं। यहाँ पाई जाने वाली ऋतुएँ उन्हीं सुंदर वरदानों में से एक हैं। यहाँ ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, शिशिर, हेमंत और वसंत ऋतुएँ बारी-बारी से आती हैं और अपने सौंदर्य की अमिट छाप छोड़ जाती हैं। वसंत ऋतु का सौंदर्य अन्य सभी ऋतुओं से बढ़कर होता है, इसलिए वसंत ऋतु को ‘ऋतुराज’ और ‘कामदेव का पुत्र’ आदि कहा जाता है।
वसंत ऋतु का आगमन फागुन महीने के साथ होता है। इसका स्वागत करने के लिए पेड़-पौधे अपने पुराने पत्ते त्यागकर नए पत्ते धारण कर लेते हैं। लता-वनस्पतियाँ, कलियाँ और फूलों से सज उठती हैं। खेतों में फसलें लहराने लगती हैं। इससे चारों ओर फैली हरियाली को देखकर लगता है, जैसे वसंत का स्वागत करने के लिए पृथ्वी ने हरी चादर ओढ़ ली हो। फूलों के खिलने से वातावरण सुंदर एवं मादक बन जाता है। वसंती हवा तन-मन को महकाते हुए वसंत आने की सूचना देती-फिरती है। आम के बागों में कोयल और अन्य पक्षी कलरव करते हैं। ऐसा लगता है जैसे वे वसंत का गुणगान कर रहे हों। इस समय मनुष्य और प्रकृति दोनों ही उल्लास से भर उठते हैं। वसंत ऋतु स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम ऋतु है। इस समय न अधिक सर्दी होती है और न अधिक गर्मी। प्रात:काल भ्रमण के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है। लोग प्रसन्नचित रहते हैं। इससे उनका रक्त संचार बढ़ जाता है। इस समय फल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। खेतों में तरह-तरह की सब्जियाँ तथा फसलें पकने वाली होती हैं। इन्हें देखकर हमारे अन्नदाता का मन खुशी से झूम उठता है।
वसंत ऋतु में होली और वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। वसंत पंचमी को ही देवी सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। रंगों और मस्ती का त्योहार होली तथा बैशाखी का पर्व वसंत ऋतु की शान बढ़ाते हैं। वसंत ऋतु की ऐसी ही अद्भुत शोभा को देखकर इसे ऋतुराज कहा गया है। यह प्रकृति एवं प्राणियों में उल्लास भरने वाली ऋतु है। हमें ऋतुराज वसंत के स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए।
मेरी कल्पना का विद्यालय
विद्यालय एक ऐसा स्थान है, जहाँ लोग बहुत कुछ सीखते हैं और पढ़ते हैं। इसे ज्ञान का मंदिर भी कहा जाता है। अपने विद्यालय या पाठशाला में हम सब जीवन का सबसे ज्यादा समय व्यतीत करते हैं, जिससे हम अनेक विषयों में शिक्षा लेते हैं। विद्यालय में विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास होना चाहिए इसलिए विद्यार्थी स्कूल में प्रवेश लेते हैं। न केवल शिक्षा प्राप्त करना अपितु सर्वांगीण विकास भी बच्चे की वास्तविक शिक्षा है। इसलिए मेरी कल्पना का विद्यालय धार्मिक असहिष्णुता, फीस बढ़ोतरी, बच्चों को पीटा जाना आदि अनावश्यक चीजों से मुक्त होगा। सभी विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने विद्यालय आते हैं इसलिए उन्हें किसी धार्मिक दृष्टि से नहीं बाँटना चाहिए। विद्यालय में पुस्तकालय का होना आवश्यक है, जिससे बच्चों के ज्ञान में वृद्धि हो सके। निर्धन बच्चों को प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति का मिलना भी आवश्यक है जिससे उनकी पढ़ाई में कोई रुकावट पैदा न हो।
मेरी कल्पना के विद्यालय में विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ खेल-कूद, रहन-सहन, विज्ञान-कला के क्षेत्र में भी ज्ञान प्रदान किया जाए। सभी विषयों के उच्च शिक्षित एवं जानकार शिक्षकों का भी विद्यालय में होना आवश्यक है। विद्यालय में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग जैसी सुविधाओं का उपयोग करते हुए चुनिन्दा जानकारी शिक्षकों के द्वारा दी जानी चाहिए जिससे ज्ञान प्राप्त किया जा सके। विद्यार्थियों के लिए आवश्यक सभी सुविधाएँ; जैसे- पुस्तकालय. इंटरनेट. कंप्यटर. प्रोजेक्टर आदि की सुविधा उपलब्ध हो। यदि विद्यार्थी किसी कारणवश विद्यालय आने में असमर्थ हो, तो वह इंटरनेट के माध्यम से अपने घर पर भी विद्यालय की कक्षा में उपस्थित हो सकता है। इस प्रकार ये सभी आवश्यक चीजें हैं, जो विद्यालय में होनी आवश्यक हैं। विद्यालय का परिवेश बच्चे के अधिगम को प्रभावित करता है। विद्यालय का स्वच्छ, सुंदर भवन तथा उसका परिवेश बच्चों को आकर्षित करता है। इसलिए मेरी कल्पना के विद्यालय में एक कोना बच्चों का होगा, जहाँ वह प्रतिदिन अपनी मनचाही चित्रकारी कर सकें। दीवारों पर आकर्षक चार्ट लगाएँ। कुछ चार्ट व चित्र बच्चों द्वारा निर्मित भी हो, जिससे वह कक्षा-कक्ष से अपना जुड़ाव अनुभव कर सकें। विद्यालय के भौतिक परिवेश से ही शिक्षक की क्रियाशीलता का परिचय मिल जाता है। विद्यालय के भौतिक परिवेश में सुधार के लिए बच्चों का सहयोग अत्यंत आवश्यक है। बच्चों की टोलियाँ बनाकर उन्हें उत्तरदायित्व सौंपा जा सकता है। हर बच्चे को अवसर प्राप्त हो इसका भी ध्यान रखें। विद्यालय के आकर्षक होने से न केवल बच्चे विद्यालय आने को प्रेरित होंगे, बल्कि सीखने को भी उत्सुक होंगे। इस प्रकार मेरी कल्पना का विद्यालय एक आदर्श विद्यालय होगा, जहाँ विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाएगा।
मेरा पड़ोसी, मेरा मित्र
पड़ोसी का अर्थ होता है-अपने पड़ोस (आस-पास) में रहने वाला। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में उसके सबसे समीप रहने वाला यदि कोई है, तो वह है उसका पड़ोसी। पड़ोसी परस्पर एक-दूसरे को अपने व्यक्तित्व, स्वभाव, व्यवहार एवं कार्य से प्रभावित करते हैं। एक उत्तम आचरण वाला पड़ोसी, जहाँ वरदान साबित होता है और प्रत्येक सुख-दुःख में सहारा देता है, वहीं कुविचार तथा बुरे स्वभाव वाला पड़ोसी हमारा सुख-चैन छीन लेता है। व्यक्ति जब भी अपने रहने हेतु घर के विषय में सोचता है, तो उसे सबसे पहले अच्छे पड़ोसी मिलें यही चिंतन करता है, क्योंकि विपत्ति के समय जो सबसे पहले काम आता है, वह पड़ोसी ही होता है। कहते हैं कि मुसीबत में रिश्तेदार बाद में आते हैं, पहले पड़ोसी ही काम आते हैं। हमारे पड़ोसी मुकेश गुप्ता जी का पूरा परिवार सामाजिक प्रवृत्ति का है। हम उन्हें चाचा जी कहकर बुलाते हैं। वे हँसमुख स्वभाव के व्यक्ति हैं। सभी से मधुर वाणी में बात करते हैं तथा हमारे
परिवार के साथ उनके मधुर संबंध हैं। वे सदैव पड़ोसियों की सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। एक रात बहुत तेज बारिश हो रही थी। सभी लोग अपने घरों में सो रहे थे। मैं भी सो रहा था, कि अचानक मुझे कुछ सन-सन की आवाज सुनाई दी, उसी समय मैंने टॉर्च जलाकर देखा, तो वहाँ साँप था। मैं जोर से चिल्लाया, तभी माँ जाग गई। माँ ने पैर नीचे रखा ही था कि साँप की पूँछ माँ के पैर से दब गई और माँ को साँप ने काट लिया। मेरे शोर मचाने की आवाज सुनकर मेरे पड़ोस में रहने वाले चाचा और चाची दोनों आए और मेरी माँ के पैर पर चाची ने तुरंत ही अपना दुपट्टा बाँध दिया। चाचा ने ब्लेड से साँप के द्वारा काटी हुई जगह पर चीरा लगा दिया और अपनी गाड़ी निकालकर मेरी माँ को चिकित्सालय ले गए। वहाँ मेरी माँ का इलाज हुआ। वह स्वस्थ हुईं तथा घर आईं। मेरे पिताजी जब दूसरे दिन ऑफिस के काम से वापस आए, तो हमने सारी बात उन्हें बताई, उन्होंने कहा अच्छे पड़ोसी का यही लाभ है। पिताजी ने मुकेश चाचा तथा राधा चाची को धन्यवाद दिया। एक अच्छा पड़ोसी वही होता है, जो सुख-दुःख और विपत्ति के समय हमारी सहायता करे और हमेशा मिल-जुल कर रहे।
प्रश्न 2.
आपके घर के पास एक अनधिकृत कारखाना है, जिसके शोर एवं प्रदूषण का आपके परिवार एवं मोहल्ले पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इस कारखाने को स्थानांतरित करने की प्रार्थना करते हुए तथा इस संबंध में शीघ्र कार्रवाई की मांग करते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखिए। (5 × 1 = 5)
अथवा
किसी प्रतिष्ठित दैनिक समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखकर चनाव के दिनों में कार्यकर्ताओं द्वारा घरों, विद्यालयों और मार्गदर्शक चित्रों आदि पर अत्यधिक पोस्टर लगाने के कारण इससे लोगों को होने वाली असुविधा की ओर ध्यान आकृष्ट कीजिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 17 मार्च, 20xx
सेवा में, सचिव,
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय,
नई दिल्ली।
विषय प्रदूषण फैलाने वाले अनधिकृत कारखाने को स्थानांतरित करने संबंधी अनुरोध।
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से अपने मोहल्ले के प्रदूषित पर्यावरण की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहती हूँ। हमारे मोहल्ले में मेरे ही घर के पास लौह-इस्पात से संबंधित एक कारखाना है, जो गैर-कानूनी है। इस कारखाने के कारण मोहल्ले के लोगों का जीना दूभर हो गया है। इसकी चिमनियों की ऊँचाई कम होने के कारण इसका विषैला धुआँ वायु को प्रदूषित करता है। इसके उत्सर्जित कण हमारे घरों में घुसते हैं। इसके कारण घर के बाहर निकलना और छतों पर बैठना मुश्किल हो गया है। इसके अतिरिक्त इस कारखाने से निकलने वाली विषैली गंदगी हमारे घरों के आस-पास फेंक दी जाती है। साथ ही, सुबह से लेकर देर रात तक होने वाली मशीनों की गड़गड़ाहट एवं शोर मोहल्ले के लोगों की नींद में व्यवधान उत्पन्न करता है। इस ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में सुनने संबंधी बीमारियाँ भी उत्पन्न हो रही हैं। अतः मंत्रालय से मेरा अनुरोध है कि शीघ्र ही इस दिशा में कोई ठोस कार्यवाही की जाए तथा इस कारखाने को किसी औद्योगिक क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाए।
सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.
अथवा
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 15 फरवरी, 20XX
सेवा में,
संपादक महोदय,
दैनिक जागरण,
मेरठ।
विषय पोस्टर लगाने के कारण होने वाली असुविधा हेतु।
मान्यवर,
मैं आपके लोकप्रिय दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से चुनाव के दिनों में पोस्टरों से उत्पन्न होने वाली समस्या की ओर प्रशासनिक अधिकारियों, राजनीतिक दलों तथा जनता का ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ। चुनाव के दिनों में विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवार के पक्ष में जनमत तैयार करने के लिए तरह-तरह के पोस्टरों, होर्डिंग्स आदि को घरों की दीवारों, दरवाज़ों, खिड़कियों, विद्यालयों, चौराहों, विज्ञापन बोर्डों, सार्वजनिक अस्पतालों के मुख्य द्वारों तथा मार्गदर्शक चित्रों पर चिपका देते हैं, जिसके कारण घरों, दीवारों, विद्यालयों आदि की शोभा खराब होती है और पूरे देश की सुंदरता खराब होती है। कभी-कभी तो चौराहों तथा मागदर्शक चिह्नों के ऊपर इस प्रकार पोस्टर लगा दिए जाते हैं जिससे कि उचित दिशा-निर्देश छिप जाते हैं, इस कारण आम जनता को बहुत अधिक असुविधा का सामना करना पड़ता है। चुनाव आयोग, पुलिस विभाग तथा संबंधित नगर निगम के अधिकारियों से मेरी यह अपील है कि सभी को मिल-जुलकर इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए। पोस्टर चिपकाने के स्थान पर छोटे-छोटे पैंप्लेट्स बाँट सकते हैं, जिससे आवश्यक दिशा-निर्देश नहीं छिपेगें।
मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि आम जनता के हित में सभी राजनीतिक दल, चुनाव आयोग तथा नगर निगम अपने कर्तव्यों का सावधानीपूर्वक निर्वाह करेंगे तथा ऐसा कोई भी कार्य नहीं करेंगे, जो जनता के लिए असुविधाजनक हो।
सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) “कहानी लेखन हेतु पात्र एवं चरित्र-चित्रण अत्यंत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।” स्पष्ट कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
“नाटक के संवाद एवं भाषा-शैली उसके प्राणतत्त्व हैं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है। पात्रों के गुण-दोष को उनका चरित्र-चित्रण कहा जाता है। प्रत्येक पात्र का अपना स्वरूप, स्वभाव और उद्देश्य होता है। पात्रों का अध्ययन कहानी की एक बहुत महत्त्वपूर्ण और बुनियादी शर्त है। कहानीकार के सामने पात्रों का स्वरूप जितना स्पष्ट होगा, उतनी ही आसानी उसे पात्रों का चरित्र-चित्रण करने और उसके संवाद लिखने में होगी। पात्रों का चरित्र-चित्रण कहानीकार द्वारा पात्रों के गुणों का बखान तथा दूसरे पात्रों के संवाद के माध्यम से किया जा सकता है। अत: कहा जा सकता है कि कहानी लेखन हेतु पात्र एवं चरित्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।
अथवा
नाटक के संवाद एवं भाषा-शैली उसके प्राणतत्त्व हैं। यह कथन सत्य है। नाटक का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व एवं सशक्त माध्यम उसके संवाद हैं। संवाद ही वह तत्त्व है, जो एक सशक्त नाटक को अन्य कमजोर नाटकों से अलग करता है। संवाद जितने सहज, स्वाभाविक एवं जीवंत होंगे, उतना ही वह पाठक के मर्म को छुएँगे। एक अच्छा नाटककार अत्यंत संक्षिप्त तथा सांकेतिक भाषा का प्रयोग करता है। नाटक वर्णित न होकर क्रियात्मक अधिक होना चाहिए। भाषा नाटक को क्रियात्मक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भाषा की सजीवता के कारण ही नाटक जीवंत हो उठता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि संवाद एवं भाषा-शैली दोनों ही नाटक को सजीव बनाते हैं।
(ii) प्रत्येक कहानी के लिए कथावस्तु का होना अनिवार्य क्यों है? स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
रेडियो नाटक में पात्र सम्बन्धी समस्त जानकारी किसके माध्यम से मिलती है?
उत्तरः
प्रत्येक कहानी के लिए कथावस्तु का होना अनिवार्य है, क्योंकि इसके अभाव में किसी कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती! कथानक को कहानी का प्रारंभिक नक्शा भी माना जा सकता है। कहानी, कथानक कहानीकार के मन में किसी घटना, जानकारी, अनुभव या कल्पना के कारण आती है। कहानीकार कल्पना का विकास करते हुए एक परिवेश, पात्र और समस्या को आकार देता है। इस प्रकार वह एक ऐसा काल्पनिक ढाँचा तैयार करता है, जो कोरी कल्पना न होकर संभावित हो तथा लेखक के उद्देश्य से मेल खाता हो।
अथवा
रेडियो नाटक में पात्र सम्बन्धी समस्त जानकारी हमें संवादों के माध्यम से मिलती हैं। उनके नाम, आपसी सम्बन्ध, चारित्रिक विशेषताएँ, ये सभी संवादों द्वारा ही उजागर करना होता है क्योंकि यह संवाद प्रधान माध्यम है। इसमें भाषा का भी ध्यान रखता पड़ता है, क्योंकि भाषा से ही पता चलता है कि वो पढ़ा लिखा है या अनपढ़, शहर का है या गाँव का, प्रान्त का है या कस्बे का तथा उसकी आयु क्या है आदि।
प्रश्न 4.
(i) ‘हताशा में आशा की किरण, युवा’ विषय पर एक आलेख लिखिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
‘भोजन पर सबका अधिकार’ विषय पर एक फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
हताशा में आशा की किरण, युवा वर्तमान समाज अन्याय, असमानता, ईर्ष्या, जातिभेद, वर्गभेद, वर्णभेद, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार तथा नारी के विरुद्ध हिंसा आदि ऐसी अनेक बुराइयों से ग्रस्त है। चारों ओर अव्यवस्था एवं अराजकता का माहौल व्याप्त है। समाज में शिक्षा एवं रोज़गार संबंधी इतनी विषम समस्याएँ मौजूद हैं कि चारों तरफ़ निराशा का वातावरण दिखाई देता है। लोग अपने जीवन एवं भविष्य को लेकर आशंकित हैं। समाज में भ्रष्टाचार, अशिक्षा, निर्धनता, असमानता, शोषण, सांप्रदायिकता आदि अनेक ऐसी चुनौतियाँ उपस्थित हैं, जिनका सक्षम तरीके से सामना किए बिना एक स्वस्थ नव-समाज की रचना संभव नहीं है। इस नव-निर्माण की ज़िम्मेदारी सिर्फ युवा वर्ग ही उठा सकता है। सामाजिक मूल्यों को बनाए रखना तथा समाज में सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करना युवा वर्ग द्वारा ही संभव है। शिक्षित युवा वर्ग ही संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर समाज को एक ऐसी दिशा प्रदान कर सकता है, जो सभी वर्गों के लोगों के लिए राहत पहुँचाने वाली हो। समाज के नव-निर्माण के कार्य में साहस एवं त्याग की आवश्यकता होगी, पग-पग पर भूलें होने की आशंका मौजूद रहेगी। अत: युवा वर्ग को साहसी, त्याग के लिए तैयार, विवेकी, धैर्यवान् एवं दूरद्रष्टा होना पड़ेगा। यदि अपने लक्ष्य पर अपनी नज़रें जमाकर युवा वर्ग ने अपने समुचित कर्त्तव्यों को निभाया, तो दुनिया की कोई भी शक्ति समाज के नव-निर्माण को नहीं रोक सकती। वर्तमान समय में व्याप्त हताशा के माहौल में वही एकमात्र आशा की किरण है।
अथवा
भोजन पर सबका अधिकार भारत विकसित देश के रूप में विश्व के अग्रणी देशों की श्रेणी में शामिल होने की अपेक्षा कर रहा है, लेकिन क्या विश्व के अग्रणी देशों में लोगों की एक बड़ी संख्या भूखे पेट सोने के लिए विवश होती है? भारतीय कृषि एवं विकास से संबंधित आँकड़े तो यही बयान करते हैं कि आज भी देश के बड़े हिस्से को भरपेट खाना नसीब नहीं हो पाता। इस समस्या का हल निकालने हेतु राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान की शुरूआत की गई और अंतत: ‘खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ पारित किया गया, ताकि भारत का कोई भी व्यक्ति भूखा न रह सके। मनुष्य को जिंदा रहने का अधिकार तो मिलना ही चाहिए और ज़िंदा रहने के लिए भोजन अति आवश्यक है, इससे किसी को मतभेद नहीं हो सकता। जीवन की बुनियादी सुविधाएँ रोटी, कपड़ा एवं मकान हैं, तो इन बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति करने की ज़िम्मेदारी किसकी है? हमारी सभ्य लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली में सरकार को एक जनकल्याणकारी संस्था माना गया है। सरकार का कर्तव्य है कि वह जनसामान्य के कल्याण के लिए, उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कार्य करे। अत: यह सरकार की और अंततः समाज की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह समाज के सभी लोगों की भोजन संबंधी आवश्यकता की पूर्ति करे। जीवित रहने के लिए हवा, पानी के साथ ही भोजन भी अत्यावश्यक है, जिसकी पूर्ति करना सरकार एवं समाज का कर्तव्य है।
(ii) विशेष लेखन में बीट तथा डेस्क का क्या अभिप्राय होता है?
अथवा
समाचार लेखन के ककार किन्हें कहा जाता है? संक्षेप में बताइए। (2 × 1 = 2)
उत्तरः
संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन साधारण तथा उनकी रुचि व संबंधित क्षेत्र में ज्ञान को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे बीट कहा जाता है। एक संवाददाता की बीट यदि अपराध है तो इसका अर्थ है कि वह अपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए जिम्मेदार होगा।
विशेष लेखन के लिए समाचार पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो व टी.वी. में अलग डेस्क होता है। इस अलग डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों का समूह भी अलग होता है, जैसे समाचार पत्रों और अन्य माध्यमों में कारोबार और व्यापार का अलग डेस्क होता है। इसी तरह खेल की खबरों के लिए और फीचर के लिए खेल डेस्क अलग होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले उप-संपादकों तथा संवाददाताओं की संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता होने की अपेक्षा की जाती है।
अथवा
किसी भी समाचार के छः आभारभूत सवाल होते हैं, जिन्हें हिंदी में छः ककार कहा जाता है तथा अंग्रेजी में पाँच डब्ल्यू (w) एवं एक एच (H) कहा जाता है। किसी भी समाचार में इन छ: ककारों का होना सामान्यतया आवश्यक माना जाता है। ये ककार निम्न हैं
- क्या (What) अर्थात् क्या घटित हुआ?
- कब (Where) अर्थात् घटना कब घटी?
- कहाँ (Where) अर्थात् घटना किस स्थान पर घटी यानि किस स्थान से संबंधित है?
- कौन (Who) अर्थात् घटना किससे संबंधित है?
- क्यों (Why) अर्थात् घटना क्यों घटी?
- कैसे (How) अर्थात् घटना कैसे घटित हुई?
पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 [20 अंक]
प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(i) फ़िराक गोरखपुरी की रुबाईयों के आधार पर बताइए कि दीवाली की शाम की क्या विशेषता है? शायर ने दीवाली की शाम का वर्णन किस प्रकार किया है? (3)
उत्तरः
दीवाली की शाम की यह विशेषता है कि इस शाम को चारों तरफ स्वच्छता का वातावरण होता है। घर आंगन रंग-रोगन किए तथा सजे हुए होते हैं। शायर दीवाली की शाम का वर्णन करते हुए कहता है कि दीवाली की शाम है। घर का आँगन साफ़-सुथरा और सजा-सँवरा है। माँ अपने बच्चे के लिए चीनी-मिट्टी के खिलौने सजाती है और उसके बनाए घरौंदे में दीया भी जलाती है। उस समय उसके चेहरे पर ममता, कोमलता और वात्सल्य के जो रंग बिखरे हैं, वे बड़े सार्थक बिंब बनकर कविता में उभरे हैं।
(ii) ‘उषा’ कविता में कवि ने आकाश के लिए जिन उपमानों का प्रयोग किया है, वे नवीन एवं मौलिक हैं। स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
भोर के नभ को कवि ने ‘राख से लीपा हुआ चौका’, ‘नीला शंख’, ‘बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’ तथा ‘स्लेट पर लाल खड़िया या चाक मल दी हो’ जैसे उपमानों के माध्यम से चित्रित करने का प्रयास किया गया है। इन बिंबों के माध्यम से अंधकार के समाप्त होते ही प्रकृति में पल-पल आ रहे परिवर्तनों को दृष्टिगत किया गया है। इस प्रकार आकाश के लिए इन उपमानों में जल तथा रंग को महत्त्व दिया गया है। ये उपमान नवीन तथा मौलिक हैं।
(iii) लक्ष्मण के मूछित होने पर राम शोकग्रस्त हो विलाप करने लगे। उनके शोक को हर्ष में किसने और कैसे परिवर्तित कर दिया? समझाइए। (3)
उत्तरः
लक्ष्मण के मूछित होने पर राम शोकग्रस्त होकर विलाप करने लगे। उन्हें भाई का बिछोह संतप्त कर रहा था। वे जीवन के अतीत की घटनाओं पर विचार करते हुए, विलाप कर रहे थे। उनका विलाप उनकी सेना को दु:खी कर रहा था। सभी लोग अत्यंत दु:खी तथा शोकग्रस्त थे। चारों ओर करुण रस का प्रवाह हो रहा था। उसी समय हनुमान द्रोण पर्वत के साथ लंका पहुँच गए। उनके पहुँचते ही वानर और भालुओं में हर्ष का संचार हो गया। करुण रस की जगह वीर रस का प्रवाह हुआ। हनुमान के इस कार्य से सेना में उत्साह तथा शक्ति का संचार हुआ। इस प्रकार हनुमान ने संजीवनी बूटी लाकर उनके शोक को हर्ष में परिवर्तित कर दिया।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखिए। (3 × 3 = 9)
(i) डॉ. आंबेडकर ने जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का एक रूप क्यों नहीं माना है? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
डॉ. आंबेडकर ने जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप नहीं माना, क्योंकि
(a) जाति-प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन भी कराती है। सभ्य समाज में श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में विभाजन अस्वाभाविक है। इसे कभी भी नहीं माना जा सकता।
(b) जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि मनुष्य के प्रशिक्षण एवं उसकी निजी क्षमता पर विचार किए बिना किसी दूसरे के द्वारा उसके लिए व्यवसाय निर्धारित कर दिया जाए।
(c) जाति-प्रथा मनुष्य को जीवनभर के लिए एक व्यवसाय में बाँध देती है। भले ही वह व्यवसाय उसके लिए अनुपयुक्त या अपर्याप्त क्यों न हो? भले ही इससे उसके भूख से मरने की नौबत आ जाए।
(ii) ‘नमक’ कहानी के अनुसार सफ़िया के लिए नमक महत्त्वपूर्ण किस कारण हो गया? कस्टम अधिकारियों ने नमक लाने में किस प्रकार सहयोग दिया? (3)
उत्तरः
‘नमक’ कहानी में मौजूद नमक की पुड़िया में भारत एवं पाकिस्तान के बीच आरोपित भेदभाव के बावजूद मुहब्बत का नमकीन स्वाद व्याप्त है। नमक की पुड़िया मानवीय भाईचारे एवं प्रेम की प्रतीक बन गई। नमक की पुड़िया का सफ़र दोनों तरफ़ के लोगों के बीच की मुहब्बत को प्रमाणित करता है। इसी कारण सफ़िया के लिए नमक इतना महत्त्वपूर्ण हो गया था। नमक लाने में दोनों देशों के कस्टम अधिकारियों ने अपना पूर्ण सहयोग दिया। भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों के कस्टम अधिकारियों ने सफ़िया की सोच का सम्मान किया। उन्होंने भाईचारे एवं प्रेम की ऊँची मान्यताओं को बनाए रखने के लिए कानून का उल्लंघन किया। पाकिस्तान के कस्टम अधिकारी ने दिल्ली को अपना वतन (जन्मस्थली) माना, तो भारत के कस्टम अधिकारी ने ढाका को। दोनों ओर के लोगों के दिलों में राजनीतिक सीमा अपना अर्थ खो चुकी थी।
(iii) हमारी प्राचीन कलाएँ लुप्त होने का क्या कारण है? उन्हें पुनर्जीवित करने के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कीजिए। (3)
उत्तरः
हमारी प्राचीन लोककलाएँ अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं, क्योंकि औद्योगीकरण के कारण बढ़ते शहरीकरण में इन लोक- कलाओं की प्रासंगिकता समाप्त हो रही है। जो प्रासंगिक नहीं रह जाता, उसे समाप्त होना ही पड़ता है। आधुनिक समय में लोगों के मूल्य एवं जीवन-शैली अत्यधिक परिवर्तित हो गई है। अब कुश्ती जैसी कलाओं का अधिक महत्त्व नहीं रह गया है। आज के नए दौर में क्रिकेट, फुटबॉल, तैराकी, हॉकी, जिमनास्टिक जैसे अन्य खेल अधिक लोकप्रिय हो गए हैं। कुश्ती जैसी कलाओं के पुनर्जीवन के लिए सरकार के निवेश से ही शहरी एवं ग्रामीण नवयुवकों को विद्यालय एवं राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे प्रशिक्षक के अंतर्गत उचित प्रशिक्षण एवं सम्मान आदि मिलना आवश्यक है। अत: ढोल बजाने के इस उत्साहपूर्ण तरीके के आधार पर यह कहना उचित ही है कि इस पाठ में लोक-कलाओं को संरक्षण दिए जाने का संदेश दिया गया है।
(iv) लुट्टन सिंह तथा गाँव वालों के लिए ढोलक किसी वरदान से कम नहीं थी। कैसे? समझाइए। (3)
उत्तरः
ढोल की आवाज़ सुनते ही लुट्टन पहलवान में एक नए उत्साह एवं नई शक्ति का संचार हो जाता था। वह इसी शक्ति के बल पर दंगल जीत जाता था। उसका ढोल में एक गुरु के जैसा ही विश्वास था। ढोल के साथ उसकी श्रद्धा जुड़ी थी। वह यह भी मानता था कि ढोल की आवाज़ गाँव वालों में भी उत्साह का संचार कर देगी, जिससे वे महामारी का डटकर सामना कर सकेंगे। मौत के सन्नाटे को चीरने एवं उसके भय को समाप्त करने के लिए ही वह रात में ढोल बजाया करता था। इससे गाँव वालों में एक नई जिजीविषा पैदा होती थी। गाँव वालों में जीने की इसी इच्छा को उत्पन्न करने एवं बनाए रखने के लिए वह अपने बेटों की मृत्यु के उपरांत भी ढोल बजाता रहा। यह गाँव वालों के प्रति उसकी परोपकार की भावना थी। साथ-ही-साथ ढोल बजाकर ही वह अपने बेटों की मृत्यु के सदमे को झेलने की शक्ति भी प्राप्त कर रहा था। अतः कह सकते हैं कि लुट्टन सिंह तथा गाँव वालों के लिए ढोलक किसी वरदान से कम नहीं थी।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक वातावरण अनुशासित था, यह आप कैसे कह सकते हैं? स्पष्ट कीजिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
“ऐन अपने जीवन में पोशाकों की तुलना में डायरी को उल्लेखनीय रूप से प्राथमिक स्थान देती है” ‘ऐन की डायरी’ के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तरः
सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सिंधु सभ्यता के सामाजिक वातावरण को बहुत अनुशासित होने का अनुमान लगाया गया है। वहाँ का अनुशासन ताकत के बल पर नहीं था। नगर योजना, वास्तुशिल्प, मुहर, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक व्यवस्था में एकरूपता से यह अनुशासन प्रकट होता है। सिंधु सभ्यता में सुनियोजित नगर थे, पानी की निकासी की व्यवस्था अच्छी थी। सड़कें लंबी व चौड़ी थी, कृषि भी की जाती थी, यातायात के साधन के रूप में बैलगाड़ी भी थी। हर नगर में मुद्रा, अनाज भंडार, स्नानगृह आदि थे तथा पक्की ईंटों का प्रयोग होता था। सिंधु सभ्यता में प्रदर्शन या दिखावे की प्रवृत्ति नहीं है। यही विशेषता इसको अलग सांस्कृतिक धरातल पर खड़ा करती है। यह धरातल संसार की दूसरी सभी सभ्यताओं से पृथक् है।
अथवा
लेखिका अपने इन शब्दों द्वारा डायरी लेखन को महत्त्वपूर्ण स्थान देना चाहती है। ऐन को अब तक कोई ऐसा व्यक्ति मिला ही नहीं, जो उसके मन की बातों को गहराई तक समझ सके। इसलिए वह अपने मन की इच्छा, तर्कों और भावनाओं को डायरी के पन्नों पर उतार देती है। वह सरकार, समाज और परिवार के बारे में भी अपने विचार डायरी में लिखती है। ऐन मानती है कि जब उसे अपने परिवार के साथ अज्ञातवास के लिए जाना पड़ा, तो उसने सबसे पहले अपनी डायरी को साथ ले जाने के लिए चुना। उसके बाद उसने अपने कर्लर, रुमाल, किताबें, कंघी और कुछ पुरानी चिट्ठियाँ थैले में रखीं। उसने दूसरों की तरह जूते, ड्रेस, जैकेट आदि सामान साथ ले जाने के लिए नहीं रखा था। अत: वह एक संवेदनशील लड़की है, इसलिए वह अपने जीवन में पोशाकों की तुलना में डायरी को उल्लेखनीय रूप से प्राथमिक स्थान देती है।
(ii) ऐन की डायरी के आधार पर ऐन के निजी जीवन का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
“सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों में उत्कृष्ट कलात्मक अभिरुचि थी। स्पष्ट कीजिए। (3 + 2 = 5)
उत्तरः
ऐन की डायरी एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज़ है। इसमें ऐन ने अपनी निजी समस्याओं और दु:खों का भरपूर वर्णन किया है। ऐन को उसके परिवार के सदस्य भी समझ नहीं पाते और उसे घमंडी व अकडू मानते हैं। अपनी ऐसी सामाजिक परिस्थितियों एवं उनका अपने जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का प्रभावशाली वर्णन भी ऐन ने ‘किट्टी’ को संबोधित अपनी डायरी में किया है।
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों में उत्कृष्ट कलात्मक अभिरुचि थी। यहाँ के लोगों के दैनिक प्रयोग की वस्तुओं में भी कलात्मकता दिखाई देती है। यहाँ की वास्तुकला तथा नियोजन, धातु व पत्थर की मूर्तियाँ, केश-विन्यास, आभूषण, बर्तनों पर उभारे गए चित्र, मुहरों पर उत्कीर्ण आकृतियाँ आदि सिंधु घाटी के लोगों के सौंदर्यबोध और कलात्मक रुचि को प्रकट करती हैं।