Students can access the CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core with Solutions and marking scheme Term 2 Set 8 will help students in understanding the difficulty level of the exam.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Core Term 2 Set 8 with Solutions
निर्धारित समय : 2 घंटे
अधिकतम अंक : 40
निर्देश :
- निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए।
- इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- इस प्रश्न पत्र में कुल 07 प्रश्न पूछे गए हैं। आपको 07 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।
कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]
प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षकों में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों का एक रचनात्मक लेख लिखिए। (5 × 1 = 5)
- प्रातःकालीन भ्रमण और मनोरम दृश्य
- ऑनलाइन शिक्षा से मुझे मिला नया अनुभव
- बरसात की एक रात
उत्तरः
प्रात:कालीन भ्रमण और मनोरम दृश्य:
प्रात:काल घूमते हुए उगते सूर्य की लालिमा के साथ-साथ, चिड़ियों की चहचहाहट और धीमी-धीमी बहती हवा शरीर को एक अद्भुत आनंद से भर देती है। उस समय चारों ओर का वातावरण शांत होता है। प्रकृति अपने सुंदरतम रूप में होती है। पशु-पक्षी उल्लास भरे वातावरण में इधर से उधर फुदकते एवं कुलाँचे (छलांग) मारते दिखाई देते हैं, जिसे देखकर बहुत खुशी होती है। पेड़-पौधों के पत्तों पर पड़ी हुई ओस की बूंदें मन को मोह लेती हैं, जो लोग प्रात:काल सैर करने जाते हैं, उनका पूरा दिन ताज़गी से भरा रहता है। मेरे लिए तो प्रात:कालीन भ्रमण का अर्थ है-पूरे दिन के लिए तरोताजा महसूस करना, जिससे मैं अपना प्रत्येक कार्य फुर्ती के साथ समाप्त करता हूँ।. सुबह-सुबह की ताज़ी हवा फेफड़ों में जाकर पूरे शरीर को ताज़गी से भर देती है, जिसका प्रभाव पूरे दिन रहता है। सुबह-सुबह प्रकृति के मनोरम दृश्य देखकर मन प्रसन्न हो जाता है, जिससे पूरा दिन प्रसन्नता में व्यतीत होता है। घूमते समय व्यक्ति को सुंदर-सुंदर विचार आते हैं, जो निराशा को भगाकर आशा का संदेश देते हैं।
विद्यार्थियों का मन प्रसन्न होने के कारण उन्हें पढ़ाई करने की प्रेरणा मिलती है, जो लोग प्रात:काल की सैर नहीं करते, उनका शरीर आलस्य से भरा रहता है। वे दिनभर उदास रहते हैं और काम करने में उनका मन नहीं लगता। वे बात-बात पर क्रोध करते हैं और समाज में लोकप्रिय नहीं हो पाते। उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। वे डॉक्टरों के चक्कर काटते रहते हैं और दवाइयाँ उनकी मित्र बन जाती हैं। अत: हम कह सकते हैं कि प्रात:कालीन भ्रमण का हमारे जीवन में अत्यंत महत्त्व है, इससे हमारे शरीर मे नई स्फूर्ति, नई चेतना व नए उत्साह का संचार होता है। यह प्रत्येक आयु वर्ग के लोगों के लिए लाभदायक है। अत: हमें प्रात:कालीन भ्रमण करने की आदत डालनी चाहिए।
ऑनलाइन शिक्षा से मुझे मिला नया अनुभव:
‘ऑनलाइन शिक्षा’ शिक्षण का एक ऐसा आधुनिक माध्यम है, जिसके द्वारा शिक्षक तथा विद्यार्थी घर बैठे ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं। इसके अंतर्गत शिक्षक इंटरनेट के माध्यम से देश के किसी भी कोने से विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। कुछ समय पूर्व भारत में ऑनलाइन शिक्षा का प्रचलन बहुत कम था, परन्तु वर्तमान में विशेषकर कोरोना महामारी के दौरान विद्यालय तथा विश्वविद्यालय, कोचिंग संस्थान बंद होने से विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने का कार्य किया जाने लगा। विद्यार्थियों की शिक्षा को निर्बाध रूप से चालू रखने के लिए अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहन दिया गया।
मेरे विद्यालय में भी ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था शुरू की गई। आरंभ में मुझे थोड़ी परेशानी हुई किन्तु धीरे-धीरे सभी कठिनाइयाँ दूर हो गईं। मैने अपनी दीदी के मोबाइल फोन के माध्यम से ऑनलाइन कक्षा लेना आरंभ किया। अध्यापक ने सभी बच्चों को अनुशासन में रखते हुए क्लास आरंभ की। सर्वप्रथम अध्यापक ने सभी बच्चों की हाजिरी ली तथा उसके बाद पढ़ाए जाने वाले विषय के बारे में जानकारी दी। कुछ विषय तो आसानी से समझ आ गए, परन्तु कुछ विषयों को समझने में कठिनाई का अनुभव हुआ। इस संबंध में अध्यापक ने प्रमुख भूमिका निभाते हुए मेरी समस्याओं का समाधान किया।
उन्होंने प्रश्न पूछने का अवसर दिया तथा सभी विद्यार्थियों की विषय सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करते हुए गृहकार्य दिया। लगभग 35 मिनट की कक्षा हुई।
इस कक्षा से मुझे एक नया अनुभव प्राप्त हुआ। मैने कभी भी ऑनलाइन क्लास नहीं ली थी। क्लास लेने के बाद मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने कक्षा के विषय में अपनी माता तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने अनुभव साझा किए। ऑनलाइन शिक्षा से समय की बचत होती है तथा विद्यार्थियों की एकाग्र क्षमता में भी वृद्धि होती है। अत: मेरे लिए ऑनलाइन शिक्षा का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा।
बरसात की एक रात: बरसात की वह अँधेरी रात, जो आज भी मुझे एक विचित्र रोमांच से भर देती है, उसे भूल सकना मेरे लिए शायद ही संभव हो। घनघोर वर्षा के बीच चमकती बिजली और कड़कड़ाती तेज़ रहेगी। जुलाई का महीना था। आकाश में काले घने बादल उमड़-घुमड़ रहे थे। मैं और मेरा दोस्त सौरभ बिना इन बादलों की परवाह किए घर से 5 किमी दर थियेटर (सिनेमा हॉल) में लगी फ़िल्म ‘उरी’ देखने गए थे। मेरी माँ ने मुझे बहुत रोका था, किंतु मैं अपनी ज़िद पर अड़ा था। अंत में माँ को इजाजत देनी पड़ी।
रात्रि का शो समाप्त होते-होते 9:30 बज गए थे। एक बेहतरीन फ़िल्म देखने से मन प्रफुल्लित था, लेकिन हॉल से बाहर निकलते ही सारा मज़ा किरकिरा हो गया। सौरभ और मैं अभी कुछ ही दूर गए थे कि बिजली की तेज़ चमक और कड़कड़ाहट की आवाज़ से कलेजा काँप गया। तेज़ हवा के झोंकों के बीच वर्षा की बूंदें टपकने लगीं। बाज़ार की सारी दुकानें बंद हो चुकी थीं। बिजली भी गल थी। हवा के तेज़ झोंकों से बडे-बडे पेडों की टहनियाँ टूट-टूट कर गिर रही थीं। वातावरण भयानक लग रहा था। वर्षा कम होने का नाम नहीं ले रही थी। हम दोनों बुरी तरह भीग कर काँप रहे थे। हमारे सिवा इस तूफानी रात में और कोई नहीं दिखाई दिया। किसी तरह हम अपने घर के निकट आए। घर के सामने मेरी माँ तथा पिताजी चिंतित मुद्रा में खड़े थे। मैं माँ से लिपटकर। रोने लगा। पिताजी ने मुझे बहुत समझाया कि ऐसे मौसम में घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। मैंने भी आगे ऐसा नहीं करने की कसम खाई, किंतु बरसात की यह रात तो अविस्मरणीय बन चुकी थी।
प्रश्न 2.
आप विद्यालय के वार्षिकोत्सव में एक नाटक प्रस्तुत कर रहे हैं। पूर्वाभ्यास के बीच आपने पाया कि दो विद्यार्थी बाहर धूम्रपान कर रहे हैं, आपको यह देखकर अच्छा नहीं लगा। इस समस्या से अवगत कराने तथा इसे रोकने हेतु अपने प्रधानाचार्य को पत्र लिखिए। (5 × 1 = 5)
अथवा
आजकल टेलीविज़न द्वारा विभिन्न चैनलों पर अंधविश्वास तथा तंत्र-मंत्र से संबंधित कार्यक्रम दिखाकर जनता को भ्रमित किया जा रहा है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री को उसकी जानकारी देते हुए तथा ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 15 जून, 20XX
सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य,
केंद्रीय विद्यालय,
समस्तीपुर।
विषय विद्यार्थियों को धूम्रपान की समस्या से अवगत कराने हेतु। महोदय,
मैं आपके विद्यालय की कक्षा बारहवीं का छात्र हूँ। जुलाई में आयोजित होने वाले वार्षिकोत्सव की संध्या पर इस बार विद्यालय विकास समिति ने नाटक प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है, जिसकी स्वीकृति आप पहले ही दे चुके हैं। कल संध्या के समय जब नाटक का पूर्वाभ्यास चल रहा था, तब मैंने दो विद्यार्थियों, सौरभ तथा सुमित को प्रेक्षागृह के बाहर धूम्रपान करते देखा। यह देखकर मुझे अत्यधिक चिंता हुई कि हमारे आदर्श विद्यालय में इस प्रकार के लड़के भी मौजूद हैं। यदि इन लड़कों पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की गई, तो इनका प्रभाव अन्य विद्यार्थियों पर भी पड़ सकता है।
यदि अभी उन्हें कुछ सांकेतिक दंड मिल जाए, तो उनके सुधरने की संभावना है, अन्यथा उनका भविष्य तथा स्वास्थ्य दोनों के नष्ट होने की आशंका है। अत: आपसे अनुरोध है कि छात्रावास में रहने वाले इन छात्रों पर आवश्यक निगरानी रखते हुए उचित कार्रवाई का निर्देश दें।
सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.
अथवा
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 15 अप्रैल, 20XX
सेवा में,
सूचना एवं प्रसारण मंत्री
भारत सरकार,
नई दिल्ली।
विषय अंधविश्वास तथा तंत्र-मंत्र से संबंधित कार्यक्रम दिखाने के संबंध में।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि आजकल टेलीविज़न पर अंधविश्वास तथा तंत्र-मंत्र बढ़ाने वाले अनेक कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं, जो समाज के लिए अत्यंत घातक हैं। इन कार्यक्रमों के कारण जनसामान्य का दृष्टिकोण संकुचित होता है। इसका बच्चों एवं अशिक्षित लोगों पर अत्यधिक दुष्प्रभाव पड़ता है। उनके मस्तिष्क का विकास वैज्ञानिक एवं आधुनिक दृष्टिकोण के साथ नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त, समाज के लोगों के बीच अनेक भ्रांतियाँ भी फैलती हैं। वे इन अंधविश्वासों में पड़कर ऐसे कार्य करते हैं, जिससे न केवल उन्हें, बल्कि उनके साथ रहने वालों को भी अत्यधिक नुकसान उठाना पड़ता है। आज 21वीं सदी में दूरदर्शन के चैनलों द्वारा इस प्रकार के अंधविश्वासों व तंत्र-मंत्र को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम दिखाना अत्यंत शर्मनाक एवं मूर्खतापूर्ण है।
अत: मेरा आपसे निवेदन है कि ऐसे कार्यक्रम दिखाने वाले चैनलों को इसके विरुद्ध आवश्यक निर्देश दिए जाएँ या उन्हें पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाए।
सधन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) कहानी का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके इतिहास पर प्रकाश डालिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
“नाटक स्वयं में एक जीवंत माध्यम है।” इस कथन के आलोक में नाटक में स्वीकार और अस्वीकार की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
कहानी का अर्थ किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध विवरण, जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास हो, चरम उत्कर्ष का बिंदु हो, उसे कहानी कहा जाता है। कहानी का इतिहास कहानी का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव इतिहास, क्योंकि कहानी मानव स्वभाव और प्रकृति का हिस्सा है। धीरे-धीरे कहानी कहने की आदिम कला का विकास होने लगा। आरंभ में कथावाचक कहानी सुनाते थे, जिनका विषय किसी घटना, युद्ध, प्रेम और प्रतिशोध आदि हुआ करता था। धीरे-धीरे वीरता, बलिदान, त्याग आदि के किस्से भी सुनाए जाने लगे, जिससे व्यक्तियों में साहस के साथ-साथ मानवीय मूल्य भी बने रहे। सच्ची घटनाओं पर कहानी सुनाते-सुनाते उनमें कल्पना का समावेश होने लगा। कथावाचक सुनने वालों की आवश्यकतानुसार अपनी कल्पना के माध्यम से नायक के गुणों का वर्णन करने लगा।
अथवा
“नाटक स्वयं में एक जीवंत माध्यम है।” नाटक में कोई भी दो चरित्र जब आपस में मिलते हैं, तो विचारों के आदान-प्रदान में टकराहट होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि रंगमंच प्रतिरोध का सबसे सशक्त माध्यम है। वह कभी भी यथास्थिति को स्वीकार नहीं करता, इस कारण उसमें अस्वीकार की स्थिति भी बराबर बनी रहती है, जिस नाटक में असंतुष्टि, छटपटाहट, प्रतिरोध और अस्वीकार जैसे नकारात्मक तत्त्वों की जितनी अधिक उपस्थिति होगी, वह नाटक उतना ही सशक्त सिद्ध होगा। यही कारण है कि जब-जब किसी भी विचार, व्यवस्था अथवा तात्कालिक समस्याओं के समर्थन में नाटक लिखे गए हैं, वे कभी भी बहुत दिनों तक चर्चा में नहीं रहे। यही कारण है कि नाटककारों को राम की अपेक्षा रावण, कृष्ण की अपेक्षा कंस अधिक आकर्षित करता है।
(ii) नाटक और कहानी में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
कहानी का हमारे जीवन से क्या संबंध है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
कहानी में जीवन की किसी घटना का वर्णन किसी कहानीकार के मुख से होता है। इसमें कथा का सूत्रधार स्वयं कहानीकार होता है। नाटक में कथा की गति संवादों और रंग संकेतों से चलती है। नाटककार सामने नहीं आता। कहानी के पात्र संवाद करते-करते कथांत तक पहुँच जाए तो वह नाटक कहलाता है। अत: कहानी और नाटक में मूलभूत एकता है। दोनों के तत्त्व समान होते हैं।
अथवा
कहानी का हमारे जीवन से घनिष्ठ संबंध है। आदिम युग से ही कहानी मानव जीवन का प्रमुख अंग रही है। प्रत्येक मनुष्य किसी-न-किसी रूप में कहानी सुनता और सुनाता है। विचारों का आदान प्रदान इस संसार का एक अनूठा नियम है। हम अपनी बातें किसी को सुनाना और दूसरों की सुनना चाहते हैं। इसलिए यह सत्य है कि इस संसार में प्रत्येक मनुष्य में कहानी कहने या लिखने की मूल भावना होती है। अतः स्पष्ट है कि कहानी का मानवीय जीवन से अटूट संबंध है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 1 = 3)
(i) ‘गाँवों से शहरों की ओर बढ़ रहा पलायन’ विषय पर आलेख लिखिए।
अथवा
‘खेल के क्षेत्र में उभरता भारत’ विषय पर एक फ़ीचर तैयार कीजिए।
उत्तरः
गाँवों से शहरों की ओर बढ़ रहा पलायन वर्तमान में गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कभी रोज़गार की तलाश, कभी चकाचौंध और ग्लैमर के प्रति झुकाव, तो कभी अहम् की संतुष्टि के लिए भी गाँव के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। महानगरों की ओर पलायन करना एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। प्रत्येक व्यक्ति उन्नत कहलाना चाहता है। महानगरों में उन्नति पाने के अवसरों की कोई कमी नहीं है। स्वयं को बड़े महानगर से जुड़ा देखना स्टेटस सिंबल समझा जाता है। महानगरों में पढ़ाई, नौकरी, व्यवसाय, विकास और मनोरंजन के अनेक साधन एवं अवसर हैं, जिनका लाभ उठाकर व्यक्ति न केवल आर्थिक उन्नति कर सकता है वरन् व्यक्तित्व का विकास भी कर सकता है। इसलिए अवसर मिलते ही गाँवों, कस्बों या छोटे नगरों से लोग महानगर की ओर बढ़ चलते हैं और महानगर के सागर में विलीन हो जाते हैं। यहाँ अनेक प्रकार के कष्ट सहकर रहने में भी उन्हें कोई परेशानी नहीं होती। महानगरों की साफ़ चौड़ी सड़कें, चमक – दमक भरे बाज़ार, मॉल, यातायात आदि उन्हें रोमांचित करते हैं। इनकी तुलना में गाँव-कस्बे आदि फीके और पिछड़े दिखाई देते हैं। इस पलायन की प्रवृत्ति ने महानगरों की समस्याओं में वद्धि की है। वहाँ भीड़ बहुत बढ़ गई है। भोजन, पानी, बिजली, यातायात आदि संसाधन कम पड़ने लगे हैं या उनकी कमी होने लगी है। सरकार को चाहिए कि छोटे शहरों में भी रोज़गार के अवसरों और शैक्षिक संस्थानों में बढ़ोतरी के प्रयास करें। वहाँ मनोरंजन और विकास के साधनों को भी बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे महानगरों की ओर होता पलायन किसी हद तक नियंत्रित किया जा सके।
अथवा
खेल के क्षेत्र में उभरता भारत:
वर्तमान समय में खेलों को किसी व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक माना जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल में छाप छोड़ना, देश की प्रतिष्ठा तो बनाता ही है, साथ ही खेल को भी गौरवांवित करता है। वर्तमान में खेलों में कई बदलाव आ रहे हैं जो समय की मांग के अनुरूप हैं। यह बदलाव राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्तर पर हो रहे हैं, इसलिए सरकार ने खेलों के विकास के लिए कई कल्याणकारी तथा उत्कृष्ट योजनाओं एवं कार्यक्रमों की शुरुआत की है। इन योजनाओं का उद्देश्य भारत के युवाओं को खेल के लिए प्रोत्साहित एवं आकर्षित करना है। आज हमारे देश ने खेल के क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका बना ली है।
आज हमें अपनी विजय पर भरोसा ही नहीं होता। कभी-कभी हम स्वयं अपने प्रदर्शन पर चकित रह जाते हैं। यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की योग्यता रखने वाले खिलाड़ियों ने सफलता प्राप्त की है। उन्हीं के कारण हमारा देश खेल के क्षेत्र में उभरता हुआ दिखाई देता है। हमारे देश में खेल के क्षेत्र की उपलब्धियाँ अत्यंत क्षीण हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि हमारे देश में प्रतिभा की भी कमी नहीं है। यदि स्वस्थ वातावरण तैयार किया जाए और चयन उचित प्रक्रिया द्वारा किया जाए, तो हम इस क्षेत्र में बहुत प्रगति कर सकते हैं।
(ii) आर्थिक पत्रकारिता को किस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
अथवा
समाचार लेखन के लिए नवीनता का क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिए। (2 × 1 = 2)
उत्तरः
आर्थिक मामलों की पत्रकारिता सामान्य पत्रकारिता की अपेक्षा काफी जटिल होती है। जनसाधारण को इस क्षेत्र की शब्दावली का ज्ञान व उसका अभिप्राय ज्ञात नहीं होता।
आर्थिक पत्रकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि वह कैसे सामान्य पाठक तथा विषय के विशेषज्ञ पाठक को भली-भाँति संतुष्ट कर सके। किसी भी लेखन को विशिष्टता प्रदान करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है कि संवाददाता की बात पाठक श्रोता तक अपने वास्तविक अर्थ के साथ पहुंच रही है या नहीं तथा तथ्यों में तालमेल है या नहीं। एक आर्थिक पत्रकार को दोनों तरह के पाठकों की आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है। अत: ध्यान रखा जाना चाहिए कि किस वर्ग के पाठक के लिए लिखा जा रहा है। अर्थजगत से जुड़ी खबरों को उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है।
अथवा
समाचार में नवीनता का होना अत्यंत आवश्यक होता है। घटना, विचार आदि जितने नए व ताज़ा होंगे उतना ही समाचार बनने की संभावना बढ़ जाएगी। समाचार का समयानुकूल प्रेषित करना ज़रूरी है। दैनिक समाचार-पत्र की अपनी डेडलाइन (समय-सीमा) होती है। प्रायः समाचार-पत्र में रात 12 बजे तक के समाचार कवर किए जाते हैं। कुछ ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित समाचार भी तैयार किए जाते हैं जो किसी देश के लिए नई जानकारी हो सकती है। अतः समाचार में नवीनता का तत्त्व होना तो आवश्यक है, किंतु नवीनता न होने पर भी समाचार उपयोगी हो जाते हैं।
पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग (20 अंक)
प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(i) लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप कविता के अनुसार राम ने किसी सामाजिक दृष्टिकोण से स्त्री के लिए कोई निम्न वचन नहीं कहा बल्कि उनके कथन को भ्रातृशोक में डूबे व्यक्ति की स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानना अधिक उचित समझा।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तरः
भाई के शोक में डूबे राम के प्रलाप में स्त्री के प्रति कोई निम्न वचन नहीं कहा गया है। भाई तथा पत्नी में से भाई को अवश्य अधिक महत्त्व दिया गया है, किंतु यह महत्त्वपूर्ण है कि उस भाई को राम ने ‘नारी’ से अधिक महत्त्व दिया, जिस भाई ने राम के लिए बड़े-से-बड़ा त्याग किया था। लक्ष्मण ने बड़े भाई राम के साथ वन जाने के लिए माता-पिता, पत्नी तथा राजमहल तक का त्याग कर दिया। ऐसे भाई के प्रति राम की ऐसी संवेदना स्वाभाविक ही है। अत: कह सकते हैं कि राम ने सामाजिक दृष्टिकोण से स्त्री के लिए कोई निम्न वचन नहीं कहा, बल्कि उनके कथन को भ्रातृशोक में डूबे व्यक्ति की स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानना अधिक उचित समझा है।
(ii) फ़िराक गोरखपुरी की गज़ल के आधार पर शायर के गम (विरह) का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तरः
शायर का गम अर्थात् विरह प्रेम के प्रति पूर्ण समर्पण का नाम है। वह सौंदर्य तथा प्रेम में खो जाना चाहता है। यह एक ऐसा सौदा है, जिसे दीवाने ही करते हैं। शायर को विरह में भी विवेक का बोध है इसलिए वह अपने विरह को अपने में ही समेटना चाहता है, किंतु रात के अँधेरे में वह अपने दर्द को रोक नहीं पाता और चुपके-चुपके रोता है। शायर का गम दुनिया से अलग है क्योंकि उसका विरह अपनी प्रेमिका को याद करने से बढ़ता है, किंतु वह ऐसा समर्पित प्रेमी है कि हर क्षण उसे ही याद करता है।
(iii) ‘उषा’ कविता का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः
उषा’ कविता का केंद्रीय भाव उषा के सौन्दर्य का चित्रण करना है। उषा का सौंदर्य मोहक होता है। इस समय की प्रकृति अपने रूपाकाश को पल-पल परिवर्तित करती है, जिसे कवि ने अत्यंत आकर्षक तथा सजीव रूप में चित्रित किया है। उषाकाल का आकाश पवित्र, निर्मल तथा उज्ज्वल प्रतीत होता है। यह समय सृष्टि की नवगति का संदेशवाहक है। कवि का बिंब तथा प्रतीकों के माध्यम से उषाकाल के प्राकृतिक-सौंदर्य में परिवर्तन को रोचकता के साथ दर्शाना महत्त्वपूर्ण है। प्रयोगवादी कविता में प्रकृति के साथ मानवीय चेतना को एकाकार करना प्रभावित करता है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखिए।
(i) डॉ. आंबेडकर ने श्रम विभाजन के संदर्भ में क्या विचार व्यक्त किए हैं? समझाकर लिखिए।
उत्तरः
डॉ. आंबेडकर ने श्रम विभाजन के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए हैं, जो इस प्रकार हैं
(a) यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।
(b) इसमें व्यक्ति की क्षमता की उपेक्षा की जाती है।
(c) यह केवल माता-पिता के सामाजिक स्तर का ध्यान रखती है।
(d) व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसका श्रम विभाजन होना अनुचित है।
(e) जाति-प्रथा व्यक्ति को जीवनभर के लिए एक ही व्यवसाय से बाँध देती है। व्यवसाय उपयुक्त हो या अनुपयुक्त, व्यक्ति को उसे ही अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है।
(f) विपरीत परिस्थितियों में भी पेशा बदलने की अनुमति नहीं दी जाती, भले ही भूखा क्यों न मरना पड़े।
(ii) ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर बताइए कि लुट्टन सिंह पहलवान गाँव में फैली महामारी तथा अपने पुत्रों की मृत्यु के पश्चात् भी ढोल बजाना क्यों नही छोड़ता है?
उत्तरः
लुट्टन पहलवान ने कभी कुश्ती नहीं हारी थी, क्योंकि ढोल की आवाज़ सुनते ही उसमें शक्ति का संचार हो जाता था और इसी शक्ति के बल पर वह दंगल जीत जाता था। अत: वह ढोल को गुरु का स्थान देकर उसमें श्रद्धा रखता था। वह यह भी मानता था कि ढोल की आवाज़ गाँव वालों में उत्साह का संचार कर देगी, जिससे वे महामारी का डटकर सामना कर सकेंगे। इसलिए वह सारी रात अपने पुत्रों की सहायता से गाँव वालों के परोपकार हेतु ढोल बजाता रहता। वह मौत के सन्नाटे को चीरने के लिए और अपने पुत्रों की मृत्यु के पश्चात् भी जीवन के उत्साह को बनाए रखने के लिए ढोल बजाना नही छोड़ता है।।
(iii) ‘नमक’ कहानी के आधार पर बताइए कि किन तथ्यो से यह स्पष्ट होता है कि “राजनीतिक दृष्टि से अलग-अलग देश । होने के बावजूद भारत व पाकिस्तान के लोगों में एक ही दिल के टुकड़े धड़क रहे हैं।” (3)
उत्तरः
भारत-पाक विभाजन के बावजूद ‘नमक’ कहानी यथार्थ में मानवीय भावनाओं की समानता की कथा है। कहानी से स्पष्ट होता है कि राजनीतिक सीमा एवं सत्ता लोलुपता व मजहबी दुराग्रहों में बँटे होने के बावजूद भारत एवं पाकिस्तान के लोगों के दिलों की धड़कन एक जैसी है। सिख बीबी भारत में रहते हुए भी लाहौर को अपना वतन मानती हैं, तो पाकिस्तान का कस्टम अधिकारी दिल्ली को अपना वतन मानता है। सफ़िया का लाहौर के मित्रों एवं परिचितों ने इतना तहेदिल से स्वागत-सत्कार किया कि उसे पता ही नहीं चला कि समय कैसे निकल गया। सफ़िया के दोस्त ने उपहार में कीनू की टोकरी देते समय कहा कि “यह हिंदुस्तान-पाकिस्तान की एकता का मेवा है।” ये सभी तथ्य एवं परिवेश यह प्रमाणित करते हैं कि राजनीतिक दृष्टि से अलग-अलग देश होने के बावजूद भारत एवं पाकिस्तान के लोगों में एक ही दिल के टुकड़े धड़क रहे हैं, जो आपस में मिलने के लिए अत्यंत व्यग्र हैं।
(iv) सफ़िया और उसके भाई के विचार भिन्न थे कैसे? सफ़िया का भाई उससे क्या प्रार्थना करता है? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तरः
सफ़िया हिंदुस्तान से और उसका भाई पाकिस्तान से है और उन दोनों के विचारों में काफ़ी अंतर है। सफ़िया अपने वादे की पक्की है। यदि उसे अपने वादे को पूरा करने के लिए कानून भी तोड़ना पड़े, तो वह तैयार है और उधर उसका भाई कानून के बनाए नियमों के अंतर्गत ही कार्य करता है, क्योंकि वह पुलिस में नौकरी करता है और उन्हें नियमों की पूरी जानकारी है। वह सफ़िया को बताता है कि पाकिस्तान से नमक ले जाना गैर-कानूनी है, जिसके लिए सजा भी हो सकती है। यदि कस्टम अधिकारी को पता चल गया कि तुम्हारे सामान में नमक है तो वे सारे सामान के टुकड़े-टुकड़े को जाँचेगें। कहीं कोई अन्य गैर-कानूनी सामान तो नहीं है इससे बदनामी होगी वह अलग है। अत: वह सफ़िया से प्रार्थना करता है कि आप नमक न ले जाएँ और बहस के बाद चुप होकर बात समाप्त कर देता है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(i) ऐन ने अपनी डायरी एक निर्जीव गुड़िया को संबोधित करके लिखी है। इसका क्या कारण हो सकता है? अपने शब्दों में लिखिए। (3 × 1 = 3)
अथवा
सिन्धु सभ्यता की जल निकासी की सुव्यवस्था को देखते हुए हम इसे जल-संस्कृति कह सकते हैं।” इस कथन के आलोक में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तरः
ऐन एक संवेदनशील लड़की है। 13 वर्ष की उम्र में ही उसे दुःख बाँटने के लिए किसी साथी की आवश्यकता पड़ने लगी, परंतु अपने मन की बात किससे कहे? अब तक उसे ऐसा कोई मिला ही नहीं, जिससे वह अपने मन की बात कह सके। इसलिए उसने एक सुंदर तरीका ढूँढ निकाला। वह था अपनी प्यारी निर्जीव गुड़िया ‘किट्टी’ को संबोधित कर डायरी लिखना। लोग ऐन को घमंडी और अक्खड़ समझते थे और सब लोग ऐन के प्रति उपदेशात्मक व्यवहार ही रखते थे। पीटर को ऐन अच्छा दोस्त समझती थी तथा उसे प्यार भी करती थी, लेकिन पीटर ने कभी उसके मन में झाँकने की कोशिश ही नहीं की। सभी सवालों का हल ऐन ने डायरी लिखकर खोज निकाला। इससे ऐन का एकाकीपन भी दूर हो गया। यदि कोई ऐसा होता जो ऐन को उसके मन की गहराइयों तक समझ पाता, तो शायद ऐन को कभी डायरी लिखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, परंतु ऐसा न हो सका। इसलिए ऐन ने अपनी निर्जीव गुड़िया ‘किट्टी’ को ही अपना सहारा बना कर अपनी भावनाओं को डायरी में व्यक्त कर दिया।
अथवा
जल को मनुष्य के जीवन का आधार माना गया है। प्राचीन सभ्यताओं का विकास भी नदियों के किनारे ही हुआ है। आधुनिक युग में सबसे बड़ी समस्या ‘जल-संकट’ की पैदा हो चुकी है। इसी प्रकार जल की निकासी की समस्या से भी आज का युग जूझ रहा है। सिंधु सभ्यता के सामूहिक स्नान के लिए बने स्नानागार वास्तुकला के उदाहरण हैं। एक पाँत में आठ स्नानघर हैं और किसी का द्वार भी दूसरे के सामने नहीं खुलता। कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का उपयोग किया गया है, जिससे कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का ‘अशुद्ध’ (गंदा) पानी कुंड में न आने पाए। यहाँ नगरों में सड़कों के साथ बनी नालियाँ भी पक्की ईंटों से ढकी हुई हैं। यहाँ पानी की निकासी का सर्वोत्तम प्रबंध है। सिंधु सभ्यता में नदी के महत्त्व के कारण जल की समुचित व्यवस्था के साथ-साथ कुएँ और कुंड भी बनाए गए तथा विशाल स्नानागार भी बने। जल निकासी की सुव्यवस्था को देखते हुए हम इसे ‘जल-संस्कृति’ कह सकते हैं।
(ii) पुरुष समाज द्वारा नारी के योगदान को महत्त्व नहीं दिए जाने का क्या कारण हो सकता है? ‘ऐन की डायरी’ पाठ के आधार लिखिए। (2 × 1 = 2)
अथवा
मुअनजो-दड़ो में बने घरों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए
उत्तरः
पुरुष समाज नारी के योगदान को अधिक महत्त्व नहीं देता। इसका कारण यह है कि पुरुष समाज उसे अपने अधीन रखना चाहता है तथा उसे अपेक्षित स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता। पुरुष में अहंकार की भावना अधिक होती है। वह चाहता है कि नारी उसकी इच्छानुसार व्यवहार करे। उसे लगता है कि सामाजिक उन्नति में नारी का योगदान बहुत कम है। भारत में आज भी गाँवों में नारी की स्थिति दयनीय है। ग्रामीण लोग नारी को घर तक ही सीमित रखना चाहते हैं। वह उनकी शक्ति को महत्त्व नहीं देते।
अथवा
मुअनजो-दड़ो के घरों की पीठ सड़क की ओर होती है अर्थात् किसी घर का दरवाज़ा सड़क की ओर नहीं खुलता था। घरों के अंदर से पानी या मैल की नालियाँ बाहर हौदी तक आती हैं और फिर नालियों के जाल से जुड़ जाती हैं। हर घर में एक स्नानघर है। इन घरों की दीवारें ऊँची और मोटी हैं। सभी घर ईंट के बने हैं। इन घरों में एक विशेष बात यह है कि सामने की दीवार में केवल प्रवेश द्वार बना होता है, जिसमें कोई खिड़की नहीं होती थी।