Download Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 4 2019 PDF to understand the pattern of questions asks in the board exam. Know about the important topics and questions to be prepared for CBSE Class 10 Hindi board exam and Score More marks. Here we have given Hindi A Sample Paper for Class 10 Solved Set 4.

Board – Central Board of Secondary Education, cbse.nic.in
Subject – CBSE Class 10 Hindi A
Year of Examination – 2019.

Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 4

हल सहित सामान्य
निर्देश :

• इस प्रश्न-पत्र में चार खण्ड है – क, ख, ग, घ |
• चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है ।।
• यथासंभव प्रत्येक खण्ड के क्रमशः उत्तर दीजिए |

खण्ड ‘क’ : अपठित बोध
1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
मैं यह नहीं मानता कि समृद्धि और अध्यात्म एक-दूसरे के विरोधी हैं या भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना कोई गलत सोच है। उदाहरण के तौर पर, मैं खुद न्यूनतम वस्तुओं का भोग करते हुए जीवन बिता रहा हूँ, लेकिन मैं सर्वत्र समृद्धि की कद्र करता हूँ, क्योंकि समृद्धि अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो अंतत: हमारी आज़ादी को बनाए रखने में सहायक है। आप अपने आस-पास देखेंगे तो पाएँगे कि खुद प्रकृति भी कोई काम आधे-अधूरे मन से नहीं करती। किसी बगीचे में जाइए। मौसम में । आपको फूलों की बहार देखने को मिलेगी। अथवा ऊपर की तरफ़ ही देखें, यह ब्रह्माण्ड आपको अनंत तक फैला दिखाई देगा, आपके यकीन से भी परे। जो कुछ भी हम इस संसार में देखते हैं वह ऊर्जा का ही स्वरूप है। जैसा कि महर्षि अरविंद ने कहा है कि हम भी ऊर्जा के ही अंश हैं। इसलिए जब हमने यह जान लिया है कि आत्मा और। पदार्थ दोनों ही अस्तित्व का हिस्सा हैं, वे एक-दूसरे से पूरा तादात्म्य रखे हुए हैं तो हमें यह एहसास भी होगा कि भौतिक पदार्थों की इच्छा रखना किसी भी दृष्टिकोण से शर्मनाक या गैर-आध्यात्मिक बात नहीं है।
(i) लेखक के अनुसार समृद्धि और अध्यात्म में क्या सम्बन्ध है?
(ii) इस गद्यांश का शीर्षक क्या होगा?
(iii) भौतिक वस्तुओं की इच्छा के बारे में लेखक का क्या मत है?
(iv) समृद्धि को आवश्यक क्यों बताया गया है?
(v) लेखक ने प्रकृति का क्या स्वभाव बताया है?
उत्तर-
(i) लेखक के अनुसार समृद्धि और अध्यात्म एक दूसरे के विरोधी नहीं है।

(ii) इस गद्यांश का शीर्षक होगा-प्रकृति और हम।

(iii) लेखक भौतिक वस्तुओं की इच्छा को गलत नहीं मानता। आत्मा और पदार्थ दोनों ही अस्तित्व का हिस्स है व एक-दूसरे से तादात्म्य रखते है अत: भौतिक पदार्थों की इच्छा रखना किसी भी दृष्टिकोण से शर्मनाक या गैर आध्यात्मिक बात लेखक नहीं मानता।

(iv) समृद्धि अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो अंतत: हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक है इसलिए सर्वत्र समृद्धि होने को आवश्यक माना गया है।

(v) लेखक ने बताया कि प्रकृति का स्वभाव है कि वह कोई काम आधे-अधूरे मन से नहीं करती। मौसम में बगीचे में फूलों की बहार दिखती है तो ऊपर ब्रहमाण्ड अनंत तक फैला दिखाई देता है। कहीं कोई कमी दिखाई नहीं देती।।

2. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
ऋषि-मुनियों, साधु-सन्तों को                          पर-प्रकाश हित पिघल-पिघल कर
नमन, उन्हें मेरा अभिनन्दन।                          मोम-दीप-सा जलते हैं।
जिनके तप से पूत हुई है।                               जिनके उपदेशों को सुनकर
भारत देश की स्वर्णिम माटी                           साँवर जाए जन-जन का जीवन
जिनके श्रम से चली आ रही                            सत्य-अहिंसा जिनक भूषण
युग-युग से अविरल परिपाटी।                        करुणामय है जिनकी वाणी
जिनके संयम से शोभित है।                            जिनके चरणों से है पावन
जन-जन के माथे पर चंदन।                           भारत की यह अमिट कहानी।
कठिन आत्म-मंथन के हित                            उनसे ही आशीष, शुभेच्छा,
जो असि-धारा पर चलते हैं।                            पाने की करता पर-वंदन।
(i) ‘असि धारा पर चलते है’ से क्या आशय है।
(ii) वे स्वयं दीपक के समान क्यों जलते है?
(iii) ‘निरन्तर’ शब्द का समानार्थक पद्यांश से चुनिए?
(iv) ऋषि-मुनि व साधु-संत नमन करने योग्य क्यों है?
(v) कवि ने इनकी क्या विशेषता बतायी है?
उत्तर-
(i) इससे आशय है कि ऋषिमुनि व साधुसंत लोकहित में स्वयं कष्ट झेलते हैं।
(ii) वे स्वयं दीपक के समान जलकर जन-जीवन सँवारते हैं।
(iii) ‘निरन्तर’ शब्द का समानार्थक शब्द अविरल है।
(iv) तप, श्रम और संयम का आदर्श संसार के सामने प्रस्तुत करने के कारण वे नमन करने योग्य हैं।
(v) कवि ने इनकी विशेषता बताते हुए कहा है कि सत्य और अहिंसा के आभूषणों से सुशोभित ऋषि मुनियों की वाणी करुणामय है।

खण्ड ‘ख’ : व्याकरण
3. निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
(क) कभी ऐसा वक्त भी आएगा, जब हमारा देश विश्वशक्ति होगाः (आश्रित उपवाक्य छाँटकर उसका भेद भी लिखिए)
(ख) घर से दूर होने के कारण वे उदास थे। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(ग) जब बच्चे उतावले हो रहे थे तब कस्तूरबा की आशंकाएँ भीतर उसे खरोंच रही थीं। (सरल वाक्य में बदलिए)
उत्तर-
(क) जब हमारा देश विश्वशक्ति होगा ! – क्रियाविशेषण आश्रित उपवाक्य
(ख) वे घर से दूर थे इसलिए उदास थे।
(ग) बच्चों के उतावले होने पर कस्तूरबा की आशंकाएँ भीतर उसे खरोंच रही थीं।

4. निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तित कीजिए:
(क) बुलबुल रात्रि विश्राम अमरूद की डाल पर करती है। (कर्मवाच्य में)
(ख) कुछ छोटे भूरे पक्षियों द्वारा मंच सम्हाल लिया जाता है। (कर्तृवाच्य में)
(ग) वह रात भर कैसे जगेगी। (भाववाच्य में)
(घ) सात सुरों को इसने गजब की विविधता के साथ प्रस्तुत किया। (कर्मवाच्य में)
उत्तर-
(क) बुलबुल द्वारा / के द्वारा रात्रि विश्राम अमरूद की डाल पर किया जाता है।
(ख) कुछ छोटे भूरे पक्षी मंच सँभाल लेते हैं।
(ग) उससे उसके द्वारा रातभर कैसे जागा जाएगा ।
(घ) इसके द्वारा सात सुरों को गजब की विविधता के साथ प्रस्तुत किया गया।

5. निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित पदों का व्याकरणिक परिचय दीजिए-
(क) वह क्या लिख रहा है?
(ख) शायद किसी ने मेरी पुस्तक उठा ली।
(ग) तुम कहाँ से आए हो।
(घ) लाल हवेली में एक घटना घटी।
उत्तर-
(क) क्या – प्रश्नवाचक सर्वनाम, पुल्लिग, एकवचन, कर्मकारक।
(ख) पुस्तक – संज्ञा, जातिवाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्मकारक।
(ग) कहाँ – प्रश्नवाचक सर्वनाम, अपादानकारक, एकवचन, पुल्लिग।
(घ) लाल – गुणवाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एकवचन, अधिकरण विशेष्य-हवेली ।।

6. (क) निम्न काव्यांश में कौन-सा रस है? सोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुन चलत रेनु तन मंडित मुख दधि-लेप किए। चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए।
(ख) श्रृंगार रस का एक उदाहरण लिखिए।
(ग) करुण रस के स्थायी भाव का नाम लिखिए।
(घ) घृणा किस रस का स्थायीभाव है?
उत्तर-
(क) वत्सल रस (‘वात्सल्य’)
(ख) भरे मौन में करत हैं नैननि ही सों बात ।
(ग) शोक (घ) वीभत्स रस

खण्ड ‘ग’ : पाठ्यपुस्तक व पूरक पाठ्यपुस्तक
7. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाज़िर कर देते हैं।

नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फॉकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नज़रों से बच सकने के खयाल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं।

नवाब साहब ने फिर एक बार हमारी ओर देख लिया, ‘वल्लाह, शौक कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है!’

नमक-मिर्च छिड़क दिए जाने से ताज़े खीरे की पनियाती फाँकें देखकर पानी मुँह में ज़रूर आ रहा था, लेकिन इनकार कर चुके थे। आत्मसम्मान निबाना ही उचित समझा, उत्तर दिया शुक्रिया इस वक्त तलब महसूस नहीं हो रही, मेदा भी जरा कमजोर है, किबला शौक फरमाएँ।’
(क) कैसे कहा जा सकता है कि लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका भी जानते हैं?
(ख) नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में क्या विचार आया?
(ग) लेखक ने खीरा खाने से इंकार क्यों कर दिया?
उत्तर
(क) लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं, क्योंकि वे ग्राहकों को जीरा मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया खीरों के साथ देते हैं।

(ख) नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है।

(ग) पूर्व में इनकार कर चुकने के कारण आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया।

8. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए
(क) भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिये।
(ख) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यत कीजिये।
(ग) ‘मन्नू भंडारी की माँ त्याग और धैर्य की पराकष्ठा थी-फिर भी लेखिका के लिए आदर्श न बन सकी।’ (घ) लेखक ने सभ्यता और संस्कृति के अन्तर को समझाने के लिए किन उदाहरणों को दिया है?
उत्तर-
(क) भगत का समग्र व्यक्तित्व साधु की सब परिभाषाओं पर खरा उतरने वाला था। वे कबीर के दोहों तथा पदों को गाते और उन्हीं के बताए हुए मार्ग पर चलते थे। वे झूठ कभी नहीं बोलते और न ही झगड़ा करते थे। उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी। खेत में पैदा होने वाली हर फसल को ‘साहब’ के दरबार में भेंट करके ‘प्रसाद’ रूप में जो मिलता उसे घर लाते, वे कमर में लैंगोटी, सिर पर टोपी, जाड़ों में काली कमली ओढ़ते थे और मस्तक पर चन्दन का तिलक तथा गले में तुलसी की माला धारण करते थे।

(ख) नवाब साहब ने खीरों को अच्छी तरह से धोया और तौलिए से पोंछकर तौलिये पर रखा। जेब से चाकू निकाला और उससे दोनों खीरों के सिर काटकर झाग निकाले और बहुत सावधानी से छीलकर फाँकों को तौलिये पर तरीके से सजाया। फिर नवाब साहब ने खीरों की फॉकों पर जीरा मिला नमक-मिर्च बुरक दिया।

(ग) लेखिका की दृष्टि में माँ का स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं था। माँ का त्याग, धैर्य और सहिष्णुता विवशता से उत्पन्न थी। व्याख्यात्मक हल : लेखिका स्वयं स्वतंत्र विचारों वाली, अपने अधिकार और कर्तव्य को समझने वाली थी पर माँ पिताजी की हर ज्यादती को अपना प्राप्य समझकर सहन करती। माँ की असहाय मजबूरी में लिपटा उनका त्याग, सहनशीलता कभी भी लेखिका का आदर्श न बन सकों।
(घ)
• आग की खोज करने वाले आविष्कर्ता को, सुई-धागे की बात बतलाकर।
• जो योग्यता मानव से सर्वस्व त्याग कराए-वह संस्कृति है।
• संस्कृति का परिणाम है सभ्यता जैसे-खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, गमन-आगमन के तरीके।

9. निम्न पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुःख का अंत नहीं।
दुःख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छना
मन, होगा दुःख दूना।
(क) कवि का साहस किस दुविधा से पीड़ित है?
(ख) कवि को किस बात का दुःख है?
(ग) ‘छाया’ शब्द का अर्थ समझाइए।
उत्तर-
(क) मन इस दुविधा में पड़ा है कि हम यथार्थ में जिएँ या काल्पनिक सपनों में।
(ख) शरद रात आने पर भी चाँद नहीं खिला अर्थात् सुख का समय आने पर भी सुख प्राप्त नहीं हुआ इस बात का दुःख है।
(ग) छाया का प्रतीकार्थ है-अवास्तविक, काल्पनिक सुख। हमें सपनों में जीने की अपेक्षा यथार्थ में जीना चाहिए।

10. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
(क) ‘बाल कल्पना के से पाले’ पंक्ति का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) “यह दंतुरित मुस्कान” कविता में कवि ने मानव जीवन के किस सत्य को प्रकट किया है?
(ग) ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं? ‘छाया मत छूना’ कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
(घ) परशुराम द्वारा सहस्रबाहु से शिव धनुष तोड़ने वाले की तुलना करना कहाँ तक उचित है? अपने विचारानुसार लिखिए।
उत्तर-
(क) पंक्ति का भाव यह है कि जिस प्रकार बच्चे अनेक कल्पनाएँ करते तथा मिटाते हैं, उसी प्रकार बादल अचानक थोड़े समय के लिए छा गए हैं और तिरोहित भी होने लग जाते हैं।

(ख) शिशु पुत्र की मधुर दंतुरित मुसकान को देखकर कवि का मन सरसता तथा स्निग्धता से भरकर आनंदित हो उठता है, पारिवारिक जीवन अच्छा है इससे मनुष्य के मन में आनन्द और उत्साह का संचार होता है तथा वह अनेक कठिनाइयों को सरलता से पार कर लेता है।

(ग) मृग को चमकती रेत में जल का आभास होता है और वह उसके पीछे दौड़ताफिरता है कितु वह उसका भ्रम ही होता है। मानव भी जीवन-भर इसी प्रकार सुखऐश्वर्य के पीछे दौड़ता-फिरता है।

(घ) सहस्रबाहू से धनुष को तोड़ने वाले की तुलना परशुराम की वास्तविकता से अवगत न होने की अवस्था थी। फिर भी ‘सहस्रबाहू ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध कामधेनु गाय का बलपूर्वक अपहरण’ किया। राम ने जनक की इच्छा और विश्वामित्र की आज्ञा से धनुष -भंग किया था। राम का दोष नहीं था, सहस्रबाहु अपराधी था।

11. ‘माता का आँचल’ पाठ में लेखक द्वारा पिता के संग खेलने तथा माता के संग भोजन करने का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भोलानाथ कभी-कभी पिताजी के साथ कुश्ती खेला करता था। उस कुश्ती में पिताजी कमजोर पड़कर भोलानाथ के बल को बढ़ावा देते जिससे भोलानाथ उन्हें हरा देता था। बाबूजी पीठ के बल लेट जाते और भोलानाथ उनकी छाती पर चढ़ जाता। जब वह उनकी लम्बी-लम्बी पूंछे उखाड़ने लगता तो बाबूजी हँसते-हँसते उसके हाथों को मूछों से छुड़ाकर उन्हें चूम लेते थे। और माँ थाली में दही-भात सानकर तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे। इस प्रकार माँ के खेल-खेल में खिलाने पर भोलानाथ हँसते-हँसते खाना खा लेता था।

खण्ड ‘घ’ : पठित अवबोधनम्।
12. किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 200-250 शब्दों में निबंध लिखिए:
(क) सफलता की कुजी: मन की एकाग्रता
• मन की एकाग्रता क्या और क्यों
• सफलता की कुंजी
• सतत अभयास
(ख) पश्चिम की ओर बढ़ते कदम
• पश्चिम कफी चमक-धमक
• आकर्षण के कारण
• जचत्र
(ग) अनुशासन का महत्व
• अनुशासन का आशय
• अनुशासन की आवश्यकता
• सफलता की सीढ़ी
उत्तर-
• प्रारम्भ और समापन
• विषय-वस्तु (चार बिन्दु अपेक्षित)
• प्रस्तुति और भाषा
व्याख्यात्मक हल :
(क) सफलता की कुंजी: मन की एकाग्रता
संस्कृत की एक प्रसिद्ध उक्ति का तात्पर्य है-“परिश्रम से ही कार्य होते हैं, इच्छा से नहीं, सोते हुए सिंह के मुँह में पशु स्वयं नहीं आ गिरते।” इससे स्पष्ट है कि कार्य सिद्धि के लिए परिश्रम बहुत आवश्यक है। सृष्टि के आरम्भ से लेकर आज तक मनुष्य ने जो भी विकास किया है, वह सब परिश्रम की ही देन है। बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण देखिए, अनेक मंजिला भवन देखिए, खदानों की खुदाई, पहाड़ों की कटाई, समुद्र की गोताखोरी या आकाश-मण्डल की यात्रा का अध्ययन कीजिए। सब जगह मानव के परिश्रम की गाथा सुनाई पड़ेगी। केवल शारीरिक परिश्रम ही परिश्रम नहीं है। कार्यालय में बैठे हुए प्राचार्य, लिपिक या मैनेजर केवल लेखनी चलाकर या परामर्श देकर भी जी-तोड़ मेहनत करते हैं। महात्मा गाँधी दिन-भर सलाह-मशविरे में लगे रहते थे इसलिए कि वे घोर परिश्रमी थे। पुरुषार्थ का सबसे बड़ा लाभ यह है कि पुरुषार्थी को सफलता मिलती है। परिश्रम ही सफलता की ओर जाने वाली सड़क है। परिश्रम से आत्मविश्वास प्राप्त होता है। मेहनती आदमी को व्यर्थ में किसी की जी-हजूरी नहीं करनी पड़ती, बल्कि लोग उसकी जी-हजूरी करते हैं। मेहनती आदमी का स्वास्थ्य सदा ठीक रहता है। मेहनत करने से गहरा आनन्द मिलता है। उससे मन में यह शान्ति होती है कि मैं निठल्ला नहीं बैठा। रॉबर्ट कोलियार कहते हैं-‘मनुष्य का सर्वोत्तम मित्र उसकी दस उँगलियाँ हैं। अत: हमें जीवन का एक-एक क्षण परिश्रम करने में बिताना चाहिए। श्रम मानव-जीवन का सच्चा सौन्दर्य है ।

अथवा

(ख)                                                                       पश्चिम की ओर बढ़ते कदम
भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव है। पाश्चात्य संस्कृति के सभी पहलू सकारात्मक हैं। अगर उन्हें अपनाया जाए तो हमारा देश और उसकी भारतीय संस्कृति भी काफी विकसित होगी। पाश्चात्य संस्कृति के विरुद्ध सोच रखने वाले लोगों को इन सकारात्मक पहलुओं से दृष्टि पात कराना बहुत आवश्यक है। भारतीय संस्कृति का पहनावा सूट, साड़ी, कुर्ता पजामा, आदि है, वहीं पश्चिमी संस्कृति का पहनावा पैंट-शर्ट, स्कर्ट-टॉप, आदि। जब अंग्रेज लोग भारत में आते हैं तो यहाँ के पहनावे की ओर आकर्षित होते हैं। तो स्वभावत: जब कोई भारतीय विदेश जाता है तो वह भी वहाँ के पहनावे और चमक-धमक की ओर आकर्षित होता है। आज अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी संस्कृति के रंग में रंगने को ही आधुनिकता का पर्याय समझा जाने लगा है। हम पाश्चात्य देशों या विदेशों या अंग्रेजों की आलोचना उनके स्वच्छंद व्यवहार को देखते हुए करते हैं, परन्तु उनके विशेष गुणों जैसे-देश प्रेम, ईमानदारी, परिश्रम और कर्मठता को भूल जाते हैं। पूरा विश्व आज भारतीय संस्कृति की ओर उन्मुख है, लेकिन युवाओं की पाश्चात्य सभ्यता की दीवानगी चिन्ता का विषय है। आज युवा ही अपनी संस्कृति के दुश्मन बने हुए हैं। अगर भारतीय संस्कृति नहीं रही तो वे अपना अस्तित्व ही खो देंगे। युवाओं को अपनी संस्कृति का महत्व समझना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए, जिससे भारतीय संस्कृति सुदृढ़ बनी रहे।

अथवा

(ग)                                                                                अनुशासन का महत्व
अनुशासन ही जीवन है। इसकी अनुपस्थिति हमारे अस्तित्व पर प्रश्न-चिहन लगा देती है। अत: हमें अपनी व्यक्तिगत सामाजिक तथा राष्ट्रीय प्रगति के लिये अनुशासित रहना ही पड़ेगा।

अनुशासन शब्द ‘शासन’ में ‘अनु’ उपसर्ग के जुड़ने से बना है, इस तरह अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है-शासन के पीछे चलना। प्रायः माता-पिता एवं गुरुजनों के आदेशानुसार चलना ही अनुशासन कहलाता है, किन्तु यह अनुशासन का सीमित अर्थ है व्यापक रूप में स्वशासन अर्थात् स्वयं को आवश्यकतानुरूप नियंत्रण में रखना ही अनुशासन है। इसके व्यापक अर्थ में, शासकीय कानून के पालन से लेकर सामाजिक मान्यताओं का सम्मान करना ही नहीं, बल्कि स्वस्थ रहने के लिये शारीरिक नियमों का पालन करना भी शामिल है। अत: व्यक्ति जहाँ रहता हैं, वहाँ के नियम, कानून, सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप आचरण करना ही अनुशासन कहलाता है।

अक्सर कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अत: समाज की सरंचना के विभिन्न तत्वों को समन्वित एवं संतुलित रखना मनुष्य का कत्र्तव्य है। अनुशासन के बिना किसी भी समाज या राष्ट्र में अराजकता एवं अव्यवस्था का माहौल व्याप्त हो जाता है। उदाहरण के लिये, यदि परिवार के सदस्य अनुशासित न हो , तो उस परिवार में अव्यवस्था घर कर जाती है, सरकारी कार्यालयों में यदि सरकारी कर्मचारी अनुशासन के नियमों का पालन न करें तो वहाँ भी भ्रष्टाचार फैल जाता है। अत: अनुशासन किसी भी राष्ट्र तथा समाज का मूल आधार है। कहावत है-जैसा शासन होगा, वैसा अनुशासन होगा। यदि हम स्वयं को नियंत्रित नहीं रखते है तो हमारा व्यवहार असंतुलित हो जायेगा व चारित्रिक पतन की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। परिवार, समाज, देश का मुखिया जैसा आचरण करते हैं अन्य सदस्य भी उसी के समान व्यवहार करते हैं। अत: सफलता का आधार अनुशासन ही है। खेल के मैदान में भी अनुशासित टीम सफलता पाती है। प्राय: अनुशासनहीनता का परिणाम हमें जीवन में मिलने वाली असफलताओं के रूप में भुगतना पड़ता है।

चरित्र, कार्य, व्यवहार सभी पर अनुशासन के सकरात्मक प्रभाव दिखाई देते हैं। महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानन्द, सुभाषचन्द बोस, दयानंद सरस्वती आदि का जीवन अनुशासन के कारण ही सफल व प्रेरणादायी बन सका। विद्यार्थी जीवन में तो अनुशासन का महत्व और भी बढ़ जाता है।

राष्ट्र की प्रगति अनुशासित नागरिकों पर निर्भर होती है। हमें सर्वप्रथम स्वयं पर अनुशासन का अंकुश लगाना होगा, तब ही दूसरे अनुशासित हो पायेंगे।

13. अपने प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर अनुरोध कीजिए कि ग्रीष्मावकाश में विद्यालय में रंगमंच प्रशिक्षण के लिए एक कार्यशाला राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से आयोजित की जाए। इसकी उपयोगिता भी लिखिए।
उत्तर-
• प्ररूप / औपचारिकताएँ
• विषय-सामग्री
• प्रस्तुति और भाषा
व्याख्यात्मक हल :
मोहिनी
754, प्रकाश नगर
भोपाल
प्रिय पी.वी.सिंधु
मधुर स्मृति!
बहुत-बहुत बधाई हो सिंधु! मुझे अभी-अभी समाचार-पत्र के माध्यम से यह सूचना मिली, कि तुमने ओलंपिक में महिला एकल मुकाबले में रजत पद जीता है।

मुझे इस सूचना के मिलते ही इतनी प्रसन्नता हुई कि मैं खुशी से उछल पड़ी और दौड़कर मम्मी, पापा को भी ये खुशखबरी सुनायी और सब काम को छोड़कर तुम्हें बधाई लिख रही हूँ। मेरी ओर से तुम्हें हार्दिक बधाई। मेरे मम्मी-पापा भी तुम्हें आशीर्वाद भेज रहे हैं।

आज समूचा देश तुम्हारी इस सफलता पर गौरवान्वित हो रहा है। ईश्वर करें तुम्हारी खेल-प्रतिभा दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि करें मैं तो यही कहूँगी कि तुम और आगे बढ़ों और बढ़ी।।

इस पथ का उद्देश्य यही है श्रांत भवन में टिका रहना। किन्तु पहुँचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं।
आपकी सखी
मोहिनी।

14. आपको राजधानी एक्सप्रेस में यात्रा के दौरान एक अटैची मिली है। उसके मालिक तक पहुँचाने के लिए 25-50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर-
CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Solved Set 4 14

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